भारत स्वरभास्कर: भीमसेन जोशी – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
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लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
‘भारतरत्न स्वर भास्कर पं.भीमसेन जोशी’ इस महान गायक पर ‘नवभारत टाइम्स’ इस समाचार पत्र में लेख छपा था। किन मुश्किलों में उन्होंने संगीत साधना की उसका वर्णन किया है।
भीमसेन जोशी में गायन के प्रति दीवानगी बचपन से थी। वे 11 वर्ष की उम्र में अब्दुल करीम खाँ के दो 78 आर.पी.एन रिकॉर्ड सुन कर वैसा ही संगीत सीखने घर से भाग निकले थे और बंगाल से लेकर पंजाब तक भटकते, विष्णुपुर से लेकर पटियाला घरानों तक के सुरों को आत्मसात करते रहे। अंततः घर लौटकर उन्हें पास में ही सवाई गंधर्व गुरू के रूप में मिले जो अब्दुल करीम खाँ साहब के सर्वश्रेष्ठ शिष्य थे। उन्नीस वर्ष की उम्र में पहला सार्वजनिक गायन करने वाले भीमसेन जोशी पर जयपुर घराने की गायिका केसरबाई केरकर और इंदौर घराने के उस्ताद अमीर खाँ की मेरुदंड शैली का प्रभाव भी पड़ा।
इस तरह पं.भीमसेन जोशी ने बचपन में संगीत साधना की।
Solution 2:
प्रस्तुत प्रश्न में पं.भीमसेन जोशी की संगीत दृष्टि की विशेषता का वर्णन किया गया है।
विभिन्न घरानों के अंदाज भीमसेन जोशी की गायकी में घुल-मिलकर इतना संश्लिष्ट रूप ले लेते थे कि मंद्र से तार सप्तक तक सहज आवाजाही करने वाली उनकी हर प्रस्तुति अप्रत्याशित रंगों और आभा से भर उठती थी। किसी राग को हर बार एक नये अनुभव की तरह, स्वरों के लगाव, बढ़त और लयकारी की नयी रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत करने का जो कौशल भीमसेन जोशी के पास था वह शायद ही किसी दूसरे संगीतकार के पास रहा हो। इन खूबियों के चलते आप ज्ञान और जुनून का मिला-जुला संगम पेश करने वाले सर्वोच्च हिन्दुस्तानी गायक बन गए।
इस तरह पं.भीमसेन जोशी की संगीत दृष्टि की बहुत व्यापक थी।
Solution 3:
प्रस्तुत प्रश्न में पं.भीमसेन जोशी के व्यक्तित्व का परिचय दिया गया है।
भीमसेन जोशी में गायन के प्रति दीवानगी बचपन से थी। वे 11 वर्ष की उम्र में अब्दुल करीम खाँ के दो 78 आर.पी.एन रिकॉर्ड सुन कर वैसा ही संगीत सीखने घर से भाग निकले थे और बंगाल से लेकर पंजाब तक भटकते, विष्णुपुर से लेकर पटियाला घरानों तक के सुरों को आत्मसात करते रहे। भीमसेन जोशी के व्यक्तित्व में एक दुर्लभ विनम्रता थी। किराना में सबसे मशहूर होने के बावजूद वे अपनी गुरू-बहन गंगूबाई हंगल की तारीफ करते थे। वे एक जिज्ञासु, कर्मठ व साहसी व्यक्ति थे। वे असीम धैर्य, तेज और राष्ट्रीय एकता के जनक थे।
Solution 4:
पं.भीमसेन जोशी को निम्नलिखित सम्मान प्राप्त हुए थे –
- भीमसेन जोशी को 1972 में ‘पद्म श्री’ से सम्मानित किया गया।
- ‘भारत सरकार’ द्वारा उन्हें कला के क्षेत्र में सन 1985 में ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- पंडित भीमसेन जोशी को सन 1992 में ‘तानसेन सम्मान ‘ प्रदान किया गया था।
- पंडित भीमसेन जोशी को सन 2008 में देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
Solution 5:
पं.भीमसेन जोशी का संगीत सिर्फ़ किराना घराने तक सीमित नहीं था। उन पर जयपुर घराने की गायिका केसरबाई केरकर और इंदौर घराने के उस्ताद अमीर खाँ की मेरुदंड शैली का प्रभाव भी पड़ा। विभिन्न घरानों के अंदाज भीमसेन जोशी की गायकी में घुल-मिलकर इतना संश्लिष्ट रूप ले लेते थे कि मंद्र से तार सप्तक तक सहज आवाजाही करने वाली उनकी हर प्रस्तुति अप्रत्याशित रंगों और आभा से भर उठती थी। इनकी संगीत दृष्टि अपने घराने से होते हुए बहुत दूर दूसरे घरानों, संगीत के लोकप्रिय रूपों, मराठी नाट्य और भावसंगीत, कन्नड भक्तिगायन और कर्नाटक संगीत तक जाती थी। यह एक ऐसी दृष्टि थी, जिसमें समूचा भारतीय संगीत एकीकृत रूप में गूँजता था।
इस तरह जोशी का शास्त्रीय संगीत महाराष्ट्र, कर्नाटक या समूचे भारत तक ही सीमा नहीं रहा।
Solution 6:
भीमसेन जोशी में गायन के प्रति दीवानगी बचपन से थी। वे 11 वर्ष की उम्र में अब्दुल करीम खाँ के दो 78 आर.पी.एन रिकॉर्ड सुन कर वैसा ही संगीत सीखने घर से भाग निकले थे और बंगाल से लेकर पंजाब तक भटकते, विष्णुपुर से लेकर पटियाला घरानों तक के सुरों को आत्मसात करते रहे। फिर उन्हें सवाई गंधर्व गुरू के रूप में मिले जो अब्दुल करीम खाँ साहब के सर्वश्रेष्ठ शिष्य थे। भीमसेन जोशी पर जयपुर घराने की गायिका केसरबाई केरकर और इंदौर घराने के उस्ताद अमीर खाँ की मेरुदंड शैली का प्रभाव भी पड़ा। इसी प्रभाव वश विभिन्न घरानों के अंदाज भीमसेन जोशी की गायकी में घुल-मिलकर संश्लिष्ट रूप ले लेते थे।
इसीलिए वे कहते थे – ‘मैंने जगह-जगह से, कई उस्तादों से संगीत लिया है और मैं शास्त्रीय संगीत का बहुत बड़ा चोर हूँ। यह जरूर है कि कोई यह नहीं बता सकता कि मैंने कहाँ से चुराया है।’
Solution 7:
यहाँ पर किराना घराने की गायकी में पं.भीमसेन जोशी के योगदान को स्पष्ट किया गया है।
किराना घराने के महत्त्वपूर्ण शास्त्रीय गायक थे। उन्होंने 19 साल की उम्र से गायन शुरू किया था और वे सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे। भीमसेन जोशी ने कर्नाटक को गौरवान्वित किया है। विभिन्न घरानों के गुणों को मिलाकर भीमसेन जोशी अद्भुत गायन प्रस्तुत करते थे।
Solution 8:
विभिन्न घरानों के अंदाज भीमसेन जोशी की गायकी में घुल-मिलकर इतना संश्लिष्ट रूप ले लेते थे कि मंद्र से तार सप्तक तक सहज आवाजाही करने वाली उनकी हर प्रस्तुति अप्रत्याशित रंगों और आभा से भर उठती थी। भीमसेन जोशी पर जयपुर घराने की गायिका केसरबाई केरकर और इंदौर घराने के उस्ताद अमीर खाँ की मेरुदंड शैली का प्रभाव भी पड़ा। किसी राग को हर बार एक नये अनुभव की तरह, स्वरों के लगाव, बढ़त और लयकारी की नयी रचनात्मकता के साथ प्रस्तुत करने का जो कौशल भीमसेन जोशी के पास था वह शायद ही किसी दूसरे संगीतकार के पास रहा हो। इन खूबियों के चलते आप ज्ञान और जुनून का मिला-जुला संगम पेश करने वाले सर्वोच्च हिन्दुस्तानी गायक बन गए।