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CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 1

CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 1 are part of CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 1.

CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 1

Board CBSE
Class 10
Subject Social Science
Sample Paper Set Paper 1
Category CBSE Sample Papers

Students who are going to appear for CBSE Class 10 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 1 of Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium is given below with free PDF download Answers.

समय : 3 घण्टे
पूर्णांक : 80

सामान्य निर्देश:

  • इस प्रश्न-पत्र में कुल 26 प्रश्न हैं। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
  • प्रत्येक प्रश्न के अंक उसके सामने दिए गए हैं।
  • प्रश्न संख्या 1 से 7 अति लघु-उत्तरीय प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का है।
  • प्रश्न संख्या 8 से 18 तक प्रत्येक प्रश्न 3 अंक का है। इनमें से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 80 शब्दों से अधिक का नहीं होना चाहिए।
  • प्रश्न संख्या 19 से 25 तक प्रत्येक प्रश्न 5 अंक का है। इनमें से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 100 शब्दों से अधिक का नहीं होना चाहिए।
  • प्रश्न संख्या 26 मानचित्र से सम्बंधित है। इसके दो भाग हैं 26(A) और 26(B) / 26(A) 2 अंक का इतिहास से तथा 26(B) 3 अंक का भूगोल से है। मानचित्र का प्रश्न पूर्ण होने पर उसे अपनी उत्तर-पुस्तिका के साथ नत्थी करें।
  • पूर्ण प्रश्न-पत्र में विकल्प नहीं हैं। फिर भी कई प्रश्नों में आंतरिक विकल्प हैं। ऐसे सभी प्रश्नों में से प्रत्येक से आपको एक ही विकल्प हल करना है।

प्र० 1.
आनंदमठ’ उपन्यास के लेखक का नाम बताइए। 1
अथवा
1448 ई० में जॉन गुटेन्बर्ग में कौन-सी पहली पुस्तक छापी थी? 1

प्र० 2.
उस नदी का नाम लिखिए जिसका संबंध ‘राष्ट्रीय नौगम्य जलमार्ग’ संख्या 1 से है।

प्र० 3.
भारतीय समाज का सामाजिक विभाजन किस आधार पर हुआ है? 1

प्र० 4.
लोकतंत्र की चुनौतियों का अर्थ स्पष्ट कीजिए। 1

प्र० 5.
सेवा क्षेत्र को परिभाषित कीजिए। 1

प्र० 6.
आवश्यकताओं के दोहरे संयोग में छुपी समस्या को उजागर कीजिए। 1

प्र० 7.
उपभोक्ता के ‘चुनने के अधिकार’ को कोई एक उदाहरण दीजिए। 1

प्र० 8.
“खाद्य पदार्थों ने दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया।” इस कथन को तीन उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए। 3
अथवा
“17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। 3
अथवा
19वीं और 20वीं शताब्दियों में लंदन से भीड़-भाड़ को कम करने के लिए किए गए विभिन्न उपायों का उल्लेख कीजिए। 3

प्र० 9.
“गिरमिटिया मज़दूरों ने कैरीबियन क्षेत्र में एक नई संस्कृति को जन्म दिया।” इस कथन को तीन उदाहरणों द्वारा स्पष्ट कीजिए। 3

प्र० 10.
महात्मा गाँधी ने कहा कि स्वराज की लड़ाई दरअसल अभिव्यक्ति, प्रेस, और सामूहिकता के लिए लड़ाई है। कथन स्पष्ट कीजिए। 3
अथवा
1740 के बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।” इस कथन की व्याख्या कीजिए। 3

प्र० 11.
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रवाद को साकार करने में लोक कथाओं, गीतों एवं चित्रों आदि के योगदान का मूल्याकंन कीजिए। 3

प्र० 12.
“कृषि एवं उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं।’ स्पष्ट कीजिए। 3

प्र० 13.
भारत में लौह अयस्क की ‘उड़ीसा-झारखंड पेटी’ की किन्हीं तीन विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 3

प्र० 14.
केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच सही संतुलन एक संघीय व्यवस्था को दूसरी संघीय व्यवस्था से भिन्न क्यों होता है? दो तर्क देकर स्पष्ट कीजिए। 3

प्र० 15.
“जाति सामाजिक वर्ग संगठन का वह कठोरतम रूप है जहाँ व्यक्ति की स्थिति उसके वंश और जन्म द्वारा निश्चित होती है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए। 3

प्र० 16.
सरकार के तृतीय स्तर की शासन व्यवस्था की किन्हीं चार विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। 3

प्र० 17.
“धरती के पास सब लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन एक भी मनुष्य के लालच को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं।” यह कथन विकास की चर्चा में कैसे प्रासंगिक है? चर्चा कीजिए। 3

प्र० 18.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनी उत्पादन इकाइयों को स्थापित करने के लिए ध्यान में रखने योग्य किन्हीं तीन परिस्थितियों की परख कीजिए। (3 x 1 = 3)

प्र० 19.
मारीआन और जर्मेनिया कौन थे? नारी रूपकों की यूरोप में राष्ट्रवाद के विकास में क्या भूमिका थी? 5
अथवा
फ्रांसीसियों द्वारा हनोई में ‘चूहों की पकड़-धकड़’ नामक शुरू की गई योजना का वर्णन कीजिए। 5

प्र० 20.
भारत के पटसन उद्योग के सम्मुख किन्हीं दो प्रमुख चुनौतियों को स्पष्ट कीजिए। राष्ट्रीय पटसन नीति के किन्हीं तीन उद्देश्य की व्याख्या कीजिए। (2 + 3 = 5)

प्र० 21.
चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन कीजिए। 5

प्र० 22.
“नागरिक की गरिमा और आज़ादी को सुरक्षित रखने के लिए लोकतंत्र अति महत्त्वपूर्ण है।” तर्क देकर कथन की पुष्टि कीजिए। 5

प्र० 23.
श्रीलंकाई तमिलों की किन्हीं तीन माँगों का वर्णन कीजिए। उन्होंने अपनी माँगों के लिए किस प्रकार संघर्ष किया? 5

प्र० 24.
“स्वयं सहायता समूह’ कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में सहायता करते हैं।” कथन की परख कीजिए। 5

प्र० 25.
(a) भारत सरकार द्वारा ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986′ को पारित करने के किन्हीं तीन कारणों की व्याख्या कीजिए। 3
(b) दो उदाहरण देकर उपभोक्ता जागरूकता की आवश्यकता का वर्णन कीजिए। 2

प्र० 26.
(A) भारत के दिए गए राजनीतिक रेखा-मानचित्र पर
पहचानिए : (a) से अंकित किया गया वह स्थान, जहाँ सितम्बर 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था।
पता लगाकर चिन्हित कीजिए :
(b) वह स्थान, जहाँ किसान सत्याग्रह हुआ था।
CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 1 1
(B) भारत के दिए गए राजनीतिक रेखा-मानचित्र पर-
पहचानिए :
(c) से अंकित किया गया एक प्रमुख तेल क्षेत्र 1
पता लगाकर चिन्हित कीजिए :
(i) अंतर्राष्ट्रीय हवाई पत्तन : मीनम्बक्कम 3
(ii) सलल बांध (1 + 1 = 2)
CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 1 2
नोटः निम्नलिखित प्रश्न केवल दृष्टिबाधित परीक्षार्थियों के लिए प्रश्न संख्या 26 के स्थान पर हैं : (5 x 1 = 5)
(a) उस शहर का नाम लिखिए जहाँ गुजरात में किसान सत्याग्रह का आरंभ हुआ था।
(b) उस स्थान का नाम लिखिए जहाँ दिसम्बर 1920 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था।
(c) बिहार में किस प्रकार की मृदा पाई जाती है?
(d) उत्तर-दक्षिण गलियारे के दक्षिणी टर्मिनल स्टेशन का नाम लिखिए।
(e) सलल बांध किस राज्य में स्थित है?

Answers

उत्तर 1.
बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय।
अथवा
बाइबिल।

उत्तर 2.
गंगा नदी।

उत्तर 3.
भारतीय समाज के विभाजन के मुख्य आधार जातिवाद, लिंग असमानता एवं सामुदायिक विभाजन हैं।

उत्तर 4.
लोकतंत्र की चुनौतियों का अर्थ वे समस्याएँ हैं जो देश में लोकतंत्र के सफल संचालन में बाधाओं के रूप में सामने आती हैं। लोकतंत्र की सफलता के लिए इन्हें दूर करना अति आवश्यक है।

उत्तर 5.
सेवा क्षेत्र से अभिप्राय उन गतिविधियों से है जो वस्तुओं का उत्पादन स्वयं नहीं करतीं अपितु उत्पादन प्रक्रिया में आर्थिक सहयोग अवश्य करती हैं। सेवा क्षेत्र को तृतीयक क्षेत्र भी कहते हैं।

उत्तर 6.
वस्तु विनिमय प्रणाली में आवश्यकता के दोहरे संयोग की समस्या होती है। इस प्रणाली में मुद्रा का उपयोग किए बिना ही वस्तुओं को विनिमय होता है। उदाहरण के लिए यदि एक छात्र अपनी पुरानी पुस्तकें बेचकर अपने लिए गिटार खरीदना चाहता है तो उसे एक ऐसे व्यक्ति को ढूंढना होगा जो अपनी गिटार बेचने के साथ-साथ उसकी पुरानी पुस्तकें भी खरीदने के लिए तैयार हो। अतः दोहरे संयोग की यह प्रक्रिया अत्यंत जटिल है।

उत्तर 7.
एक उपभोक्ता को संवैधानिक रूप से चुनने का अधिकार’ है। उदाहरण के लिए यदि राहुल एक टूथपेस्ट खरीदना चाहता है और दुकानदार उसे टूथपेस्ट और ब्रुश साथ में लेने के लिए कहता है। राहुल अपनी आवश्यकतानुसार केवल टूथपेस्ट ही खरीदने का इच्छुक है तो वह अपने चुनने के अधिकार का प्रयोग कर केवल टूथपेस्ट ही खरीद सकता है।

उत्तर 8.
आधुनिक युग से पहले खाद्य पदार्थ दूर देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान का माध्यम बन गए थे :
(i) जब भी व्यापारी और मुसाफिर किसी नए देश में जाते थे तब वे वहाँ नई फ़सलों के बीज बो देते थे।
(ii) आलू, सोयाबीन, मूंगफली, मिर्च, टमाटर, शकरकंद, मक्का और ऐसे बहुत-से पदार्थ लगभग पाँच सौ वर्ष पहले नहीं थे। यह खाद्य पदार्थ यूरोप और एशिया में तब आए जब कोलंबस गलती से अमेरिका महाद्वीप पहुँच गया था। बहुत-से खाद्य पदार्थ अमेरिका से हमारे पास आए।
(iii) स्पेघेटी (Spaghetti) और नूडल्स की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण रही। चीन से नूडल्स पश्चिम में पहुँचा और वहाँ स्पेघेटी का जन्म हुआ। इसी प्रकार पास्ता अरबों के साथ पाँचवी सदी में सिसली पहुँचा जो अब इटली की ही एक टापू है। इसी तरह के आहार भारत और जापान में पाए जाते हैं। इसलिए यह कहना मुश्किल है इनका जन्म कैसे और कहाँ हुआ होगा। लेकिन यह कहा जा सकता है कि आधुनिक काल से पहले भी दूर देशों के बीच सांस्कृति आदान-प्रदान चल रहा होगा।
अथवा
17वीं शताब्दी में यूरोपीय शहरों के सौदागर गाँवों में किसानों और कारीगरों से काम करवाने लगे :
(i) यूरोपीय सौदागर किसानों और कारीगरों को पैसा देकर अंतर्राष्ट्रीय बाजार के लिए उत्पादन करवाते थे।
(ii) 17वीं शताब्दी में विश्व व्यापार के विस्तार और दुनिया के विभिन्न भागों में उपनिवेशों की स्थापना के कारण वस्तुओं की माँग बढ़ने लगी थी एवं इस माँग को पूरा करने के लिए शहरों में उत्पादन बढ़ाया नहीं जा सकता था क्योंकि शहरी दस्तकारी और व्यापारिक गिल्ड्स अधिक प्रभावशाली थे।
(iii) इस समये काम चलाने के लिए छोटे तथा गरीब किसान आमदनी के नए स्रोत खोज रहे थे। गाँवों में बहुत-से किसानों के पास छोटे-मोटे खेत थे, जिनसे उनकी आजिविको का निर्वाह नहीं हो पा रहा था। अतः पैसों की खातिर गाँवों में गरीब किसान तथा दस्तकार सौदागरों के लिए काम करने लगे।
(iv) यूरोपीय शहरों के सौदागर जब गाँवों में आए और उन्होंने माल पैदा करने के लिए पेशगी रकम दी तो किसान और कारीगर काम करने के लिए फौरन तैयार हो गए। ये लोग गाँव में रहकर अपने खेतों को सँभालते हुए, सौदागरों का काम भी कर लेते थे।
(v) इस व्यवस्था से शहरों और गाँवों के बीच एक घनिष्ठ संबंध विकसित हुआ। सौदागर शहरों में रहते थे लेकिन उनके लिए कामे अधिकतर देहात में चलता था। वस्तुओं का उत्पादन कारखानों के बजाय घरों ‘ में होता था और उस पर सौदागरों का पूर्ण नियंत्रण होता था। (कोई तीन)
अथवा
19वीं और 20वीं शताब्दियों में लंदन से भीड़-भाड़ को कम करने के लिए किए गए विभिन्न उपाय :
(i) नए आवासों का प्रबंध-लंदन में बढ़ती हुई भीड़ को सुव्यवस्थित रूप से बसाने के लिए टेनमेंट्स तथा बगीचा उपशहरों की व्यवस्था की गई।
(ii) आवागमन में परिवर्तन-लंदन में भीड़-भाड़ को कम करने के लिए आवागमन की व्यवस्था में परिवर्तन किए गए। भूमिगत रेलवे का आरंभ किया गया। भूमिगत रेलवे के कारण शहर की आबादी बिखरने लगी और कामगार प्रतिदिन आसानी से लंदन आ-जा सकते थे। अतः लंदन के बाहर रहना अब कोई समस्या नहीं थी।
(iii) उपशहरी बस्तियों की व्यवस्था-लंदन से बाहर और उसके आस-पास लगभग 10 लाख मकान बनाए गए। इन उपबस्तियों की व्यवस्था से लंदन की आबादी और भीड़-भाड़ कम हो गई।

उत्तर 9.
गिरमिटिया मजदूरों ने कैरीबियन क्षेत्र में एक नई संस्कृति को जन्म दिया, जिसके उदाहरण हैं :

  • त्रिनिदाद में मुहर्रम के वार्षिक जुलूस को एक विशाल उत्सवी मेले को रूप दिया गया, जिसमें सभी धर्मों व जातियों के मज़दूर भाग लेते थे।
  • रास्ताफारियानवाद नामक विद्रोही धर्म को अपनाकर इन मजदूरों ने एक नई सामाजिक व सांस्कृतिक सभ्यता को जन्म दिया।
  • “चटनी म्यूजिक” द्वारा रचनात्मक अभिव्यक्ति विकसित हुई जिसने कैरीबियाई क्षेत्र को सांस्कृतिक समागम स्थल बना दिया।

उत्तर 10.
महात्मा गाँधी ने 1922 में कहा था, “वाणी की स्वतंत्रता…. प्रेस की आज़ादी…. सामूहिकता की आज़ादी। भारत सरकार अब जनमत को व्यक्त करने और बनाने के इन तीन शक्तिशाली औजारों को दबाने की कोशिश कर रही है। स्वराज, खिलाफ़त…. की लड़ाई, सबसे पहले इन संकटग्रस्त आज़ादियों की लड़ाई है।” गाँधीजी के इस कथन का औचित्य यह था कि 1857 के विद्रोह के पश्चात् क्रुद्ध ब्रिटिश सरकार ने 1878 में वर्नाक्युलर प्रेस एक्ट को लागू कर भारतीय पत्र-पत्रिकाओं पर छपी सामग्री तथा संपादकीय को सेंसर करने का अधिकार प्राप्त कर लिया था। तो इसके कारण भारतीय प्रेस की आज़ादी छिन गई अर्थात् ‘देसी’ प्रेस से बोलने का अधिकार छीन लिया गया।

आम भारतीय जनता को भारतीय पत्र-पत्रिकाओं द्वारा सम्पूर्ण देश की परिस्थितियों का ज्ञान हो जाता था। ब्रिटिश सरकार की दमनकारी नीतियों के विषय में भी इन पत्र-पत्रिकाओं में आए दिन छपता था। इससे जनमानस में भारतीय देशभक्तों के प्रति सहानुभूति के साथ-साथ देशप्रेम की भावना जागृत होती थी। बाल गंगाधर तिलक जैसे देशभक्त संपादकों ने अपने अख़बार ‘केसरी’ द्वारा ब्रिटिश औपनिवेशिक कुशासन की रिपोर्टिंग एवं राष्ट्रवादी ताकतों का उत्साह बढ़ाना जारी रखा। ब्रिटिश सरकार द्वारा यदि किसी रिपोर्ट को बागी करार दे दिया जाता तो पहले अख़बार को चेतावनी दी जाती और यदि चेतावनी अनसुनी होती तो अख़बार ज़ब्त कर लिया जाता एवं छपाई की मशीनें छीन ली जातीं।
इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से दिख रहा था कि स्वराज की लड़ाई वास्तव में अभिव्यक्ति, प्रेस एवं सामूहिकता की लड़ाई ही थी।
अथवा
1740 के बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे क्योंकि शुरूआत में उपन्यास बहुत महंगे होते थे जिसके चलते गरीब लोग उपन्यास पढ़ने के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। समाज का गरीब वर्ग काफी समय तक प्रकाशन के बाजार से स्वंय को जोड़ नहीं पाया। हेनरी फ़ील्डिंग का 1749 ई० में प्रकाशित उपन्यास ‘टॉम जोंस’ छः खंडों में प्रकाशित हुआ और प्रत्येक खंड की कीमत 3 शिलिंग थी जो एक औसत मजदूर के सप्ताह भर की कमाई होती थी। लेकिन जल्द ही किराए पर चलने वाले पुस्तकालयों की स्थापना के बाद लोगों के लिए किताबें सुलभ हो गईं। तकनीकी सुधार के कारण भी छपाई के खर्च में कमी आई और मार्केटिंग के नए तरीकों से किताबों की बिक्री में वृद्धि हुई। चार्ल्स डिकेन्स के उपन्यास ‘हाई टाइम्स’ में मजदूर वर्ग की कठिनाइयों को उजागर किया गया और 1740 ई० के बाद गरीब लोग भी उपन्यास पढ़ने लगे।

उत्तर 11.
स्वतंत्रता आंदालन के दौरान इतिहास व साहित्य, लोक कथाएँ व गीत, चित्र व प्रतीक, सभी ने राष्ट्रवाद को साकार करने में अपना-अपना योगदान दिया। 20वीं सदी में राष्ट्रवाद के विकास के साथ भारत की पहचान भी भारत माता की छवि का रूप लेने लगी। यह तस्वीर पहली बार बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने बनाई थी। 1870 के दशक में उन्होंने मातृभूमि की स्तुति के रूप में ‘वंदे मातरम्’ गीत लिखा था। यह गीत बंगाल में स्वदेशी आंदोलन में बहुत प्रचलित था। स्वदेशी आंदोलन की प्रेरणा से अबनीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत माता की विख्यात छवि को चित्रित किया। इस मातृ छवि के प्रति श्रद्धा को राष्ट्रवाद में आस्था का प्रतीक माना जाने लगा। जैसे-जैसे राष्ट्रवाद बढ़ा, राष्ट्रवादियों ने लोगों को एकजुट करने हेतु चिन्हों और प्रतीकों का सहारा लिया। इसी के चलते बंगाल में स्वदेशी आंदोलने का एक तिरंगा (हरा, पीला, लाल) झंडा तैयार किया गया। 1921 में गाँधीजी ने भी स्वराज का तिरंगा (सफ़ेद, हरा, लाल) झंडा तैयार किया जिसको जुलूसों आदि में लेकर चलना औपनिवेशिक शासन के प्रति अवज्ञा का स्पष्ट संकेत था।

राष्ट्रवाद का विचार भारतीय लोक कथाओं को पुनर्जीवित करने के आंदोलन से भी मजबूत हुआ। 19वीं सदी के अंत में राष्ट्रवादियों ने भाटों व चारणों द्वारा गाई-सुनाई जाने वाली लोक कथाओं को दर्ज करना शुरू कर दिया। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लोक परंपराओं को पुनर्जीवित करने वाले आंदोलन का नेतृत्व किया। उनका मानना था कि लोक कथाएँ राष्ट्रीय साहित्य होती हैं; यह ‘लोगों के असली विचारों और विशिष्टताओं की सबसे विश्वसनीय अभिव्यक्ति’ है।

उत्तर 12.
भारत कृषि-प्रधान देश है। आज कृषि का विकास पूर्णतया उद्योगों के विकास पर निर्भर है। कृषि तथा उद्योग साथ-साथ बढ़ रहे हैं। उद्योग अपने कच्चे माल के लिए कृषि पर ही निर्भर करते हैं। कृषि ने उद्योगों की सुदृढ़ आधारशिला रखी है तो उद्योगों ने भी कृषि उपजों को बढ़ाने में भारी योगदान दिया है। कृषि में उर्वरकों, कीटनाशकों, प्लास्टिक, बिजली और डीजल का उपयोग निरंतर बढ़ रहा है। कृषि की शाखाओं को आधुनिक काल में उद्योग ही कहा जाने लगा है। उदाहरण के लिए, रोपण उद्योग, डेरी उद्योग, अधिक उपज देने वाले बीज उद्योग, कृषि के लिए रूप हैं। जैव प्रौद्योगिकी के तीव्र विकास के पश्चात् तो कृषि और उद्योगों के बीच विभाजन रेखा खींचना और भी कठिन हो गया है।

उत्तर 13.
‘उड़ीसा-झारखंड पेटी’ की तीन विशेषताएँ :

  • उड़ीसा में उच्चकोटि का हेमेटाइट किस्म का लौह-अयस्क होता है।
  • यह मयूरभंज व केंदूझर जिलों में बादाम पहाड़ खदानों से निकाला जाता है।
  • झारखंड के सिंहभूम जिले में गुआ और नोआमुंडी से हेमेटाइट अयस्क का खनन होता है।

उत्तर 14.
केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों के बीच सत्ता का बँटवारा हर संघीय सरकार में भिन्न होता है जिसे निम्न तर्को द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है :
(i) जब दो या दो से अधिक स्वतंत्र राष्ट्र साथ मिलकर एक बड़ी इकाई का गठन करते हैं तो इसमें दोनों स्वतंत्र राष्ट्र अपनी संप्रभुता को साथ रखते हैं, अपनी अलग-अलग पहचान को भी बनाए रखते हैं और अपनी सुरक्षा तथा खुशहाली बढ़ाने का रास्ता अपनाते हैं।
साथ आकर संघ बनाने के उदाहरण हैं-संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैंड और आस्ट्रेलिया।

(ii) संघीय शासन व्यवस्था के गठन का दूसरा तरीका है बड़े देशों द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा कर देना। भारत, बेल्जियम और स्पेन इसके उदाहरण हैं। इस व्यवस्था में राज्यों को समान अधिकार दिए जाते हैं पर विशेष स्थिति में किसी-किसी राज्य को विशेष अधिकार भी दिए जाते हैं।

उत्तर 15.
जाति व्यवस्था सदा से ही भारतीय समाज का अटूट एवं महत्त्वपूर्ण अंग रही है और उसने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया गया है। प्राचीन काल में वर्ण-व्यवस्था का आधार कर्म था, परंतु धीरे-धीरे यह व्यवस्था विकृत होती चली गई और जाति का आधार कर्म न रहकर जन्म बन गया। जन्म पर आधारित वर्ण-व्यवस्था ने ही जातिवाद को जन्म दिया। जातिवाद एक ऐसी संकीर्ण विचारधारा है जो सामाजिक असमानता और सामाजिक विघटन को बढ़ावा देती है। जातिवाद का सबसे भयंकर रूप अस्पृश्यता है। जातिवाद का अर्थ है-जाति के आधार पर लोगों में भेदभाव करना। यद्यपि संविधान द्वारा जाति के आधार पर भेदभाव को समाप्त कर दिया गया है तथापि आज भी जीवन के अनेक क्षेत्रों में जातिवाद का बोलबाला है।

उत्तर 16.
भारत में स्थानीय शासन को तृतीय स्तर कहा जाता है। इसके अंतर्गत केन्द्र और राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकरों की दी जाती है। इसे सत्ता का विकेन्द्रीकरण कहते हैं।
विशेषताएँ-
जब केंद्र और राज्य सरकार से शक्तियाँ लेकर स्थानीय सरकारों को दी जाती हैं तो इसे सत्ता का विकेंद्रीकरण कहते हैं। विकेंद्रीकरण की दिशा में 1992 में उठाए गए कदम :

  • केंद्रीय सरकार ने स्थानीय निकायों के लिए नियमित चुनाव अनिवार्य कर दिए हैं।
  • चुनावों में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं पिछड़े वर्गों के लिए सीटों का आरक्षण है।
  • कम-से-कम 1/3 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित है।
  • हर राज्य में पंचायत और नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन किया गया है।
  • राज्य सरकारों को अपने राजस्व और अधिकारों का कुछ भाग स्थानीय प्रशासन को देना पड़ेगा।

उत्तर 17.
यह कथन सर्वथा सत्य है कि धरती के पास सब लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं परंतु मनुष्य अपनी असीमित आवश्यकताओं के कारण असंतुष्ट रहता है। धरातल के नीचे लौह-खनिज (जैसे मैंगनीज, निक्कल आदि), अलौह खनिज (जैसे सोना, चाँदी, सीसा आदि) तथा अधात्विक खनिज (जैसे कोयला, पेट्रोलियम आदि) के भंडार हैं। इसके साथ ही प्रकृति ने हवा, पानी, वनस्पति आदि संसाधन भी उपलब्ध कराए हैं जिससे मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है। परंतु अपने लोभ के कारण मनुष्य इन संसाधनों का दोहन इस प्रकार कर रहा है कि इनका भंडार तो समाप्त हो ही रहा है साथ ही पर्यावरण असंतुलन का खतरा भी मंडरा रहा है।

उत्तर 18.
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अपनी उत्पादन इकाइयों को स्थापित करने के लिए ध्यान में रखने योग्य परिस्थितियाँ :

  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ प्रायः उन क्षेत्रों में कार्यालय तथा उत्पादन के लिए कारखाने स्थापित करती हैं जहाँ उन्हें सस्ता श्रमिक और अन्य संसाधन सुलभ हों। उत्पादन लागत में कमी करने तथा अधिक लाभ कमाने के लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ ये कदम उठाती हैं।
  • ये कम्पनियाँ प्रायः उन्हीं स्थानों पर अपनी औद्योगिक इकाइयाँ स्थापित करती हैं जहाँ बाज़ार निकट हों ताकि वह आसानी से अपना उत्पाद बेच सकें।
  • बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ सरकारी नीतियों पर भी नजर रखती है जो उनके हितों की देखभाल करती हैं।

इन परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के बाद ही बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अपनी उत्पादन इकाइयों की स्थापना करती हैं।

उत्तर 19.
फ्रांसिसी क्रांति के दौरान कलाकारों ने स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को व्यक्त करने के लिए नारी रूपकों का प्रयोग किया। इनमें मारीआन और जर्मेनिया की छवि राष्ट्र रूपक बन गई। मारीआन-नारी रूपकों को आविष्कार कलाकारों ने 19वीं शताब्दी में किया। फ्रांस में उसे लोकप्रिय ईसाई नाम ‘मारीआन’ दिया गया जिसने जन-राष्ट्र के विचार को रेखांकित किया। उसके चिन्ह भी स्वतंत्रता और गणतंत्र के थे-लाल टोपी, तिरंगा और कलगी। सार्वजनिक चौकों पर ‘मारीआन’ की प्रतिमाएँ लगाई गईं ताकि जनता को एकता के राष्ट्रीय प्रतीक की याद आती रहे और लोग उससे जुड़ सकें।

जर्मेनिया – इसी तरह जर्मेनिया जर्मन राष्ट्र का रूपक बन गई। जर्मेनिया बलूत वृक्ष के पत्तों का मुकुट पहनती थी क्योकि जर्मन बलूत वीरता का प्रतीक है। जर्मेनिया की तलवार पर, जर्मन तलवार जर्मन राइन की रक्षा करती है’ अंकित है। यह नारी रूपक स्वतंत्रता, न्याय और गणतंत्र जैसे विचारों को प्रतीकात्मक रूप से व्यक्त करती है।
अथवा
(i) हनोई के फ्रांसीसी आबादी वाले हिस्से को एक खूबसूरत और साफ-सुथरे शहर के रूप में बनाया गया था। शहर के आधुनिक भाग में लगे विशाल सीवर आधुनिकता के प्रतीक थे। यही सीवर चूहों के पनपने के लिए भी आदर्श साबित हुए। ये सीवर चूहों की निर्बाध आवाजाही के लिए भी उचित थे। इनमें चलते हुए चूहे पूरे शहर में बेखटके घूमते थे और इन्हीं पाइपों के रास्ते वह फ्रांसीसियों के चाक-चौबंद घरों में घुसने लगे।
(ii) इस समस्या से छुटकारा पाने हेतु फ्रांसीसियों ने वियतनामी कामगारों को प्रत्येक चूहे को पकड़ने के बदले उचित इनाम की पेशकश की। हजारों की संख्या में चूहे पकड़े जाने लगे। इससे वियतनामी कामगारों को फ्रांसीसियों से सौदा करने का अवसर मिला। सीवरों में घुसकर चूहे पकड़ने के गंदे कार्य को करने वालों ने पाया कि यदि वह एक हो जाएं तो इस कार्य के बदले अच्छी-खासी रकम ले सकते हैं।
(iii) इस स्थिति ने वियतनामियों को लाभ के नए तरीके भी सुझाए। मारे गए प्रत्येक चूहे की पूंछ दिखाने पर उन्हें रकम दी जाती थी। इसलिए चूहे पकड़ने वाले चूहे की पूंछ काटकर उसे फिर से छोड़ देते थे ताकि समस्या ज्यों की त्यों रहे तथा उनकी नियमित आमदनी भी होती रहे।
(iv) वियतनामी कामगारों के इस कार्य से हार कर फ्रांसीसियों ने इस कार्यक्रम को स्थगित कर दिया। सन् 1903 में पूरा क्षेत्र ब्यूबोनिक प्लेग की चपेट में आ गया। इस प्रकार चूहों की समस्या फ्रांसीसियों के लिए एक बड़ा सिरदर्द बन कर उभरी। यह घटना प्रतिदिन होने वाले वियतनामी जनमानस तथा फ्रांसिसी उपनिवेशवाद के टकराव का एक उदाहरण मात्र थी।

उत्तर 20.
भारत के पटसन उद्योग के सम्मुख आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ :

  • अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में पटसन उद्योग की कृत्रिम वस्त्रों और बांग्लादेश, ब्राजील, फिलीपींस, मिस्र तथा थाइलैंड जैसे अन्य देशों से कड़ी प्रतिस्पर्धा है।
  • गत वर्षों में पटसन पैकिंग के अनिवार्य प्रयोग की सरकारी नीति के कारण इसकी घरेलू माँग बढ़ी है फिर भी माँग बढ़ाने हेतु उत्पाद में विविधता भी आवश्यक है।

राष्ट्रीय पटसन नीति के तीन उद्देश्य :

  • इसका मुख्य उद्देश्य पटसन का उत्पाद बढ़ाना, गुणवत्ता में सुधार, पटसन उत्पादक किसानों को अच्छा मूल्य दिलाना तथा प्रति हेक्टेयर उत्पादकता को बढ़ाना था।
  • अमेरिका, कनाडा, रूस, अरब, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया पटसन के प्रमुख खरीददार देश हैं।
  • बढ़ते वैश्विक पर्यावरण अनुकूलन, जैवनिम्नीकरणीय पदार्थों के लिए विश्व की बढ़ती जागरूकता ने पुनः जूट उत्पादों के लिए अवसर प्रदान किया है।

उत्तर 21.
चाव की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियाँ :

  • चावल भारत की एक प्रमुख खाद्य फसल है। यह उष्णकटिबंधीय पौधा है। अतः यह गर्म तथा आर्द्र जलवायु में खूब पनपता है। चावल को 25° सैल्सियस से अधिक तापमान आवश्यकता होती है।
  • चावल को अधिक आर्द्रता (100 सेंटीमीटर से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है। अधिक वर्षा वाली पहाड़ी ढालों पर सीढ़ीदार खेत बनाकर भी चावल की खेती की जाती है।
  • चावल की खेती के लिए समतल व उपजाऊ भूमि होनी चाहिए। डेल्टा प्रदेश तथा जलोढ़ मैदानी भाग चावल की उपज के लिए सर्वोत्तम हैं।
  • चावल की उपज के लिए बड़ी संख्या में श्रम की आवश्यकता होती है। फसल की रोपाई, गुड़ाई, कटाई आदि के लिए अधिक श्रमिकों की आवश्यकता होती है क्योंकि चावल की कृषि का अधिकतम काम हाथों से किया जाता है। बोने से लेकर कटाई तक खेतों में नमी बनी रहती है। अत: चावल की खेती सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में ही होती है।
  • नहरों के जाल एवं नलकूपों की सघनता के कारण पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है।

उत्तर 22.
“नागरिक की गरिमा और आज़ादी को सुरक्षित रखने के लिए लोकतंत्र अति महत्त्वपूर्ण है।” यह कथन निम्नलिखित कारणों से सिद्ध होता है :

  • लोकतंत्र लोगों का शासन है। शासन की शक्तियाँ जनता में निहित होती हैं। इसमें समस्त जनता की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक उन्नति की जाती है। किसी विशेष वर्ग के हितों की ओर ध्यान नहीं दिया जाता।
  • लोकतंत्र समानता पर आधारित होता है। प्रत्येक व्यक्ति को शासन में भाग लेने का अधिकार होता है। जाति, धर्म, जन्म, वंश आदि का कोई भेदभाव नहीं किया जाता।
  • स्वतंत्रता भी लोकतंत्र का महत्त्वपूर्ण गुण है। समुदाय बनाने, धर्म के अनुसार पूजा-पाठ करने, भाषण देने, प्रेस आदि की स्वतंत्रता सबको प्राप्त होती है।
  • लोकतंत्र में लोग कानूनों का पालन स्वाभाविक रूप से करते हैं। जनता स्वयं ही कानून बनाती है अथवा जनता की इच्छानुसार उनके चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा कानूनों का निर्माण किया जाता है।
  • लोकतंत्र प्रगतिशील सरकार है। इसमें राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक सुधार किए जाते हैं। जनता के प्रतिनिधि इस बात का प्रयास करते हैं कि शासन में अधिक से अधिक सुधार किए जाएं, जिससे राजनीतिक और सामाजिक बुराइयों को दूर किया जा सके।

उत्तर 23.
श्रीलंकाई तमिलों की मुख्य माँगें निम्नलिखित हैं :

  • बहुसंख्यक सिंहली समुदाय ने तमिलों की अवहेलना करते हुए केवल ‘सिंहली’ को ही राजभाषा बनाया गया है। जबकि तमिलों की माँग है कि तमिल भाषा को भी राजभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए।
  • तमिलों की माँग है कि तमिल बहुल क्षेत्रों को तमिल भाषाई प्रदेश बनाया जाए।
  • वर्तमान सरकारी नीतियों के अनुसार विश्वविद्यालयों तथा सरकारी नौकरियों के लिए सिंहलियों को प्राथमिकता दी जाती है। तमिलों की यह माँग है कि यहाँ उनको भी अवसर दिए जाएं।

उत्तर 24.
स्वयं सहायता समूह ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों के वह समूह हैं जो स्वयं सहायता हेतु संगठित होते हैं और अपनी बचत पूँजी से एक-दूसरे की सहायता करते हैं। स्वयं सहायता समूह कर्जदारों को ऋणाधार की कमी की समस्या से उबारने में सहायता करते हैं। ये संगठन समयानुसार विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं के लिए निर्धनों को एक उचित ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करवाते हैं। इसके अतिरिक्त यह समूह ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को संगठित करने में सहायता करते हैं। इससे न केवल महिलाएँ आर्थिक रूप से स्वावलंबी हो सकती हैं, बल्कि समूह की नियमित बैठकों द्वारा लोगों को एक आम मंच मिलता है, जहाँ वह तरह-तरह के सामाजिक विषयों, जैसे-स्वास्थ्य, पोषण और घरेलू हिंसा इत्यादि पर आपस में चर्चा कर पाते हैं।

उत्तर 25.
भारत सरकार द्वारा ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986′ को पारित करने के तीन कारण :

  • ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ से पूर्व विक्रेता कई अनुचित व्यावसायिक व्यवहारों में सम्मिलित होते थे तथा बाजार में उपभोक्ता को शोषण से बचाने के लिए कोई कानूनी व्यवस्था उपलब्ध नहीं थी।
  • अधिकतर भारतीय बाज़ार खाद्य की कमी, जमाखोरी, कालाबाजारी, खाद्य पदार्थों एवं खाद्य तेलों में मिलावट से ग्रस्त थे।
  • उपभोक्ताओं के हितों के लिए और अनुचित व्यवसाय शैली में सुधार लाने के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986′ का निर्माण हुआ।

उपभोक्ता जागरूकता की आवश्यकता के दो उदाहरण :

  • एक दूरसंचार कंपनी द्वारा भेजे गए गलत बिल को एक उपभोक्ता रमेश ने उपभोक्ता अदालत में चुनौती दी। अदालत ने रमेश के पक्ष में फैसला दिया और उसे क्षतिपूर्ति प्रदान की गई।
  • मनोज ने फ्लैट के दोषपूर्ण निर्माण की सोसाइटी को शिकायत की जिसे सोसाइटी ने अनसुना कर दिया। मनोज ने सोसाइटी की शिकायत उपभोक्ता अदालत में की, उपभोक्ता अदालत ने मनोज के पक्ष में फैसला सुनाया और सोसाइटी को हर्जाना देने का निर्देश दिया।

उत्तर 26.
CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 1 3
CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 1 4
(a) खेड़ा (गुजरात)
(b) नागपुर
(c) जलोढ़ मृदा
(d) कन्याकुमारी
(e) जम्मू और कश्मीर

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