मैच का आँखों देखा हाल संकेत बिंदु:
- मैच की भूमिका
- मैच का वर्णन
- मैच के किसी खिलाड़ी का योगदान
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मैच का आंखों देखा हाल पर निबंध | Essay on Match Ka Aankhon Dekha Haal In Hindi
मेरा छोटा भाई रोहित घर भर का प्यारा है। वह हॉकी खेलने का बहुत शौकीन है। हम दोनों भाई एक ही स्कूल में पढ़ते हैं। मैं ग्यारहवीं और रोहित नवीं कक्षा का छात्र है। रोहित आठवीं कक्षा में पढ़ता था तभी उसका चुनाव स्कूल की हॉकी टीम में हो गया था। रोहित प्रतिदिन विद्यालय के मैदान में हॉकी का अभ्यास करने शाम के समय जाया करता है। अब तो वह अपने विद्यालय का एक अच्छा खिलाड़ी माना जाता है।
इस वर्ष 26 अगस्त को सायंकाल वह जब स्कूल से हॉकी-अभ्यास करने के बाद वापिस आया तो बहुत उत्साहित था। उसने मुझे बताया कि 14 सितंबर को हमारे स्कूल की टीम का मेहता बालकृष्ण पब्लिक स्कूल की टीम के साथ मैच होना निश्चित हुआ है। उसने मुझसे यह मैच देखने के लिए आग्रह किया। मैंने अपने भाई और टीम के अन्य खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने के लिए उसके साथ जाने का निश्चय कर लिया।
रोहित का यह पहला मैच था जो वह किसी दूसरे स्कूल की टीम के विरुद्ध खेल रहा था। रोहित के लिए यह अत्यन्त महत्वपूर्ण मैच था। वह उत्साहित तो था किंतु साथ ही कुछ आशंकित भी था। अंततः 14 सितंबर का दिन आ पहुँचा। मैच शाम चार बजे होना था। हम दोनों भाई तैयार होकर तीन बजे ही स्कूल पहुंच गए। सभी खिलाड़ी तथा हमारे अध्यापक 3.30 बजे तक खेल के मैदान में जमा हो गए। उन्होंने टीम के सभी खिलाड़ियों का उत्साहवर्धन किया। दूसरी टीम भी समय से पूर्व ही मैदान पर आ पहुँची। चार बजते ही रैफ़री का संकेत पाकर दोनों टीमें खेलने के लिए मैदान में जा पहुँची।
टॉस के बाद दोनों टीमों ने अपने-अपने छोर सँभाले। टॉस ‘मेहता बालकृष्ण पब्लिक स्कूल’ के कप्तान ने जीता और उसने अपनी टीम के लिए पहले मैदान का पश्चिमी छोर चुना। सीटी बजते ही टीम के अग्रसरों ने तीन बार परस्पर हॉकी को छुआकर खेल शुरू किया। खेल शुरू होने पर दर्शकों ने तालियाँ बजाकर दोनों टीमों का स्वागत किया। खिलाड़ी अपनी-अपनी टीम के लिए गोल करने में जुट गए किंतु मध्यावकाश तक खेल बराबरी का रहा।
कोई भी टीम गोल न कर सकी। मध्यांतर के दौरान टीम के प्रशिक्षक और प्रशंसकों ने अपनी-अपनी टीमों के खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया। ब्रेक के समाप्त होने पर खिलाड़ी पुनः मैदान में जा पहुँचे और खेल शीघ्र ही फिर शुरू हो गया। अब दोनों टीमों का पाला बदल गया था। दसवें मिनट पर हमारे मिडिल हाफ़ खिलाड़ी की जरा सी चूक से विरोधी टीम ने गेंद को हथिया लिया। उनके सेंटर फ़ार्वर्ड ने एक ज़ोरदार हिट लगाया पर हमारी टीम के गोलकीपर ने बड़ी होशियारी से गोल बचा लिया। हमारी टीम और उसके समर्थक खुशी से झूम उठे। गोल बाल-बाल बच गया था।
अभी तक कोई गोल नहीं हुआ था। दोनों टीमों की ओर से गोल करने के लगातार प्रयत्न हो रहे थे और खेल की समाप्ति निकट आ रही थी। मैच समाप्त होने से केवल आठ मिनट पहले गेंद अचानक हमारी टीम के हाथ लग गई। रोहित विरोधी टीम के गोल पोस्ट के पास ही था। हमारी टीम के एक खिलाड़ी ने गेंद हिट की जिससे गेंद रोहित की ओर आई और रोहित ने लपक कर बिना चूक किए एक हिट लगाई। गेंद सीधी गोल के अंदर जा पहुँची।
दर्शक खुशी से उछल पड़े। काफ़ी देर तक तालियाँ बजती रहीं। अंतिम समय को सुरक्षित रूप से बचाने के इरादे से हमारी टीम ने रक्षात्मक खेल खेला। दूसरी टीम के खिलाड़ियों के चेहरे पर निराशा साफ़ दिखाई दे रही थी। देखते-ही-देखते एक लंबी सीटी बजी और खेल समाप्त हो गया। रोहित हमारे स्कूल की टीम का हीरो था। सभी ने चारों ओर से उसे घेर लिया और खुशी से अपने कंधों पर उठा लिया। भाई की विजय से मेरा मन भी गर्व से फूला नहीं समा रहा था।