मेरी प्रिय पुस्तक संकेत बिंदु:
- मेरी प्रिय पुस्तक क्यों
- पुस्तक का परिचय
- पुस्तक की विशेषता
- पुस्तक का महत्व
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
मेरी प्रिय पुस्तक पर निबंध | My Favorite Book Essay In Hindi
मेरी रुचि आरंभ से ही पुस्तकें पढ़ने की रही है। मैंने विभिन्न विधाओं की अनेक पुस्तकें पढ़ी हैं। इनसे मेरा ज्ञानवर्धन तो हुआ ही है, मुझ पर इनका प्रभाव भी पड़ा है। कुछ पुस्तकें ऐसी होती हैं। जिन्हें बार-बार पढ़ने का मन करता है। ऐसी पुस्तकें जीवन को दिशा देती हैं। प्रसिद्ध साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा का उपन्यास ‘रानी लक्ष्मीबाई’ मेरी प्रिय पुस्तक है। इस उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के बाल्यकाल से उनके प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में साहसपूर्ण भाग लेना का प्रभावशाली चित्रण हुआ है। उपन्यास पढ़ते-पढ़ते पाठक स्वयं को भूलकर उस युग में पहुँच जाता है।
वह स्वयं को रानी लक्ष्मीबाई के निकट पाता है। मैंने इस उपन्यास को बार-बार पढ़ा है। इसे जितनी बार पढ़ा है उतना ही इसने प्रभावित किया है। रानी लक्ष्मीबाई इस उपन्यास की नायिका है। वह बाल्यकाल से ही सामान्य बालिकाओं से भिन्न थी। उसकी रुचि गुड्डे-गुड़ियों की शादियाँ रचाने से अधिक युद्ध कौशल सीखने की थी। वह बचपन में मलखंभ, कुश्ती, तलवार बंदूक चलाना सीखने लगी थी। उसे घुड़सवारी का शौक था। वह ज्यों-ज्यों बड़ी होती चली गई उसमें राष्ट्र प्रेम की भावना विकसित होती चली गई। वह साहसी, निडर, स्वाभिमानी, विवेकशील थी। उसका विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। वह विलासी और राज-काज में अकुशल था। रानी लक्ष्मीबाई से विवाह के पश्चात् उसके विचारों में कुछ परिवर्तन आया।
विवाह के समय लक्ष्मीबाई मात्र तेरह वर्ष की थी। वह सोलहवें वर्ष में माँ बनी परंतु उसका पुत्र केवल तीन माह ही जीवित रहा। इससे पति-पत्नी दोनों को गहरा आघात पहुँचा। राजा अस्वस्थ रहने लगा। उसने आनंदराव नामक बालक को गोद लेकर उसका नाम दामोदर राव रखा। राजा के शीघ्र ही चल बसने पर अंग्रेज़ों ने किले पर अधिकार जमा लिया। यहाँ से लक्ष्मीबाई का नया रूप उभरा। उसने अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने का निश्चित किया।
उसने झाँसीवासियों को युद्ध के लिए तैयार किया। उसने अपनी प्रिय सखियों को उच्च पदों पर आसीन किया। सभी धर्मावलंबियों के प्रति समान भाव रखकर मुसलमानों को भी उच्च पद दिए। जब जनरल रोज़ ने झाँसी के किले को घेरकर आक्रमण किया तो रानी के नेतृत्व में स्त्री-पुरुषों ने तोपें चलाकर अंग्रेज़ों का डटकर मुकाबला किया। अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध कई दिन तक चला। रानी झाँसी छोड़कर कालपी आ गई और फिर ग्वालियर के किले पर
अधिकार कर लिया। यहीं अंग्रेजों से युद्ध करते-करते रानी लक्ष्मीबाई ने 23 वर्ष की आयु में अपना बलिदान दे दिया। इस उपन्यास को पढ़कर न केवल रानी लक्ष्मीबाई बल्कि नाना साहब, तात्या टोपे, खुदाबख्श, गुलाम गौस खाँ, मोतीबाई, सुंदर, जूही आदि पात्रों के प्रति भी श्रद्धा भाव उमड़ आता है।
इन्होंने अंग्रेज़ी सेना का जिस प्रकार सामना किया, रानी लक्ष्मीबाई को जिस प्रकार सहयोग दिया वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अद्भुत और अतुलनीय है। पूरे उपन्यास में ऐसे छोटे-छोटे कई पात्र हैं जिनकी भूमिका अत्यधिक प्रभावशाली है।
इस पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह युवाओं के संघर्षरत रहने की मात्र कहानी नहीं है अपितु भारत भूमि पर अमर हो गए शहीदों की रक्तरंजित स्मृति है। इन वीरों और वीरांगनाओं ने अपने बलिदानों द्वारा भारत का नया इतिहास रचा। इस उपन्यास के सभी पात्र विशेष रूप से प्रभावित करते हैं। इन स्त्रियों ने न केवल जासूसी के कार्य किए, अंग्रेज़ छावनियों में घुसकर उन्हें मूर्ख बनाया अपितु आवश्यकता पड़ने पर तोपें चलाकर अंग्रेजों को मुँहतोड़ उत्तर दिया। इस उपन्यास को पढ़ना उन अमर बलिदानियों के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने के समान है।
कुछ पुस्तकें केवल मनोरंजन करती हैं, कुछ रसास्वादन कराती हैं, कुछ भक्ति-भाव में डुबा लेती हैं, कुछ ज्ञान बढ़ाती हैं। मेरी प्रिय पुस्तक ‘रानी लक्ष्मीबाई’ इन सबसे भिन्न है। यह मनुष्य को स्वाभिमानपूर्वक जीना सिखाती है। इसे पढ़कर मातृभूमि की रक्षा के महत्व का बोध होता है। इसे पढ़कर उस समय की युवा पीढ़ी के मन के दृढ़ संकल्पों से साक्षात्कार होता है। मेरे मस्तिष्क में रानी लक्ष्मीबाई के प्रति कहे जनरल रोज़ के वाक्य सदा गूंजते रहते हैं-‘रानी उनमें सर्वश्रेष्ठ पुरुष है’ अर्थात् उन पुरुष योद्धाओं से बढ़कर रानी लक्ष्मीबाई है।