राष्ट्रभाषा हिंदी संकेत बिंदु:
- राष्ट्र और राष्ट्रभाषा
- राष्ट्रभाषा बनने की भूमिका
- हिंदी राजभाषा बनी
- हिंदी का महत्व
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
राष्ट्रभाषा हिंदी पर निबंध | National Language Hindi Essay In Hindi
किसी राष्ट्र के लिए भूमि और भूमि पर रहने वाले लोगों का होना आवश्यक होता है। इसके साथ-साथ उसकी राष्ट्रभाषा का होना भी अत्यंत आवश्यक होता है। किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रभाषा वह होती है जिसे उसमें रहने वाले अधिकांश नागरिक बोलते, समझते और व्यवहार में लाते हैं। भारत में हिंदी ही एकमात्र ऐसी भाषा है जिसे लेह-लद्दाख से लक्षदीप और अरुणाचल प्रदेश से जैसलमेर तक सभी लोग बोलते हैं। इसलिए हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है।
हिंदी को राष्ट्रभाषा का गौरव दिलाने में स्वतंत्रता सेनानियों ने अहम् भूमिका निभाई है। वस्तुतः हिंदी द्वारा ही स्वतंत्रता का संघर्ष लड़ा गया। इसके माध्यम से ही सभी नेता और क्रांतिकारी विचारों का आदान-प्रदान करते थे। हिंदी के लिए गौरव का विषय यह रहा कि इसे राष्ट्रभाषा का स्थान अहिंदीभाषियों ने दिलाया। महात्मा गाँधी, सुभाषचंद्र बोस, लोकमान्य तिलक आदि अहिंदीभाषी थे। उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया।
सामाजिक कुरीतियों से छुटकारा दिलाने के लिए जिन महापुरुषों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनमें स्वामी विवेकानंद और स्वामी दयानंद प्रमुख थे। दोनों ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करके जिस भाषा द्वारा भारत को नया आध्यात्मिक चिंतन दिया वह हिंदी ही थी। महात्मा गाँधी ने तो यहाँ तक कहा था-‘अंग्रेज़ी कभी राष्ट्रभाषा नहीं बन सकती। यदि हिंदुस्तान को सचमुच एक राष्ट्र बनना है तो चाहे कोई माने या न माने राष्ट्रभाषा तो हिंदी ही बन सकती है।
जो स्थान हिंदी को प्राप्त है, वह किसी दूसरी भाषा को कभी नहीं मिल सकता।’ पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 16 मई सन् 1931 को सेठ गोविंददास को लिखा था- हिंदी ने अब पूर्णतः राष्ट्रभाषा की भूमिका ले ली है।’ नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने 20 सितंबर 1928 को कहा था, ‘यदि हमने तन, मन और धन से प्रयत्न किया तो वह दिन दूर नहीं जब भारत स्वाधीन होगा और उसकी राष्ट्रभाषा हिंदी होगी।’
हिंदी के राष्ट्रभाषा होने पर कोई विवाद नहीं है। अन्य भारतीय भाषाएँ भी इसी राष्ट्र की भाषाएँ हैं। यदि कोई भाषा किसी एक विशेष क्षेत्र तक सीमित है और उसका प्रयोग देश के दूसरे क्षेत्रों के साथ संपर्क के लिए नहीं होता तो उसकी स्थिति भिन्न है। राष्ट्रभाषा वही होती है जो जन-जन की संपर्क भाषा भी है। संविधान के अनुच्छेद 343 से 351 तक हिंदी के राष्ट्रभाषा के रूप की कल्पना की गई है।
जब संविधान सभा में भाषा के संबंध में विचार-विमर्श किया जा रहा था तब अधिकांश सदस्यों ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रस्तावित किया था। संविधान में हिंदी को राजभाषा और अन्य भारतीय भाषाओं को प्रादेशिक भाषाएँ’ कहा गया है। हिंदी को 14 सितंबर, 1949 को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया। इससे इसके राष्ट्रभाषा के स्वरूप को मान्यता मिली। 14 सितंबर को संपूर्ण राष्ट्र ‘हिंदी दिवस’ के रूप में मनाता है।
हिंदी के साथ अंग्रेजी को कुछ वर्षों के लिए सह-राजभाषा का दर्जा दिया गया। अंग्रेज़ी को इस विशेष स्थान से हटा देना, चाहिए था परंतु राजनीतिक कारणवश अंग्रेज़ी अभी तक इस स्थान पर बनी हुई है। अब हिंदी माध्यम से ‘संघ लोक सेवा आयोग’ की परीक्षाएँ दी जाने लगी हैं। हिंदी का निरंतर प्रचार-प्रसार हो रहा है। हिंदी भारत की नब्बे प्रतिशत लोगों की भाषा है। यह विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
इसका साहित्य समृद्ध है। इसमें तकनीकी शब्दावली का प्रारूप निर्धारित हो चुका है। इसका अध्ययन-अध्यापन विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में हो रहा है। इसमें सबसे अधिक समाचार-पत्र प्रकाशित होते हैं। प्रत्येक भारतीय को हिंदी भाषा पर गर्व होना चाहिए। इसके प्रति वही भाव होना चाहिए जैसा भाव अपने राष्ट्र के लिए होता है। हिंदी की प्रतिस्पर्धा किसी अन्य भारतीय भाषा के साथ नहीं है।
अन्य भारतीय भाषाओं को भी विकसित होना चाहिए। हिंदी सूचना-प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अपनी दृढ़ स्थिति बना चुकी है। कंप्यूटरों में इसका सफल और सार्थक प्रयोग हो रहा है। अन्य विदेशी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त करने में संकोच नहीं करना चाहिए। अपनी राष्ट्रभाषा का ज्ञान ही नहीं होना चाहिए बल्कि उसका सम्मान भी करना चाहिए।