और भी दूँ – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
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लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
प्रस्तुत कविता ‘और भी दूँ’ के रचियता रामावतार त्यागी जी हैं। प्रस्तुत कविता में कवि की देश के प्रति असीम भक्ति भावना प्रकट हुई है।
कवि देश के लिए अपना सब-कुछ तन, मन और जीवन तक समर्पित करना चाहता है। कवि जीवन का गान, प्राण तथा रक्त का कण-कण देश को समर्पित करना चाहते हैं। कवि अपने जीवन के सुंदर स्वप्न सारी इच्छाएँ, आकांक्षाएँ, समस्याएँ, प्रश्न और आयु का कर एक क्षण मातृभूमि को अर्पित करना चाहते हैं। यहाँ तक कि कवि धरती के सुंदर फूल, उद्यान और नीड़ का तृण-तृण आदि भी देश को समर्पित करना चाहते हैं।
इस तरह कवि ईश्वरप्रदत्त सभी सांसारिक और प्राकृतिक वस्तुएँ देश को ही समर्पित करना चाहते हैं।
Solution 2:
प्रस्तुत कविता ‘और भी दूँ’ के रचियता रामावतार त्यागी जी हैं। प्रस्तुत कविता में कवि की देश के प्रति असीम भक्ति भावना प्रकट हुई है।
कवि ने अपना सर्वस्व देश को अर्पित कर दिया है परंतु फिर भी कवि के मन में संतुष्टि का भाव नहीं है। कवि को लगता है की मातृभूमि का कर्ज हम कभी चुका नहीं सकते। कवि एक तुच्छ प्राणी है उसके पास ऐसी कोई अमूल्य वस्तु नहीं जिससे वह मातृभूमि के ऋण से उऋण हो सके।
अत: अपना सर्वस्व समर्पित करने के बाद भी कवि संतुष्ट नहीं है।
Solution 3:
प्रस्तुत कविता ‘और भी दूँ’ के रचियता रामावतार त्यागी जी हैं। प्रस्तुत कविता में कवि की देश के प्रति असीम भक्ति भावना प्रकट हुई है।
यहाँ पर कवि अपने हाथ में तलवार की कामना करते हैं। वे दुश्मनों का सामना करना चाहते हैं और अपने ध्वज को फड़कता हुआ देखना चाहते हैं इसलिए कवि सीधे अर्थात् दाएँ हाथ में तलवार और बाएँ हाथ में ध्वज लेना चाहते हैं।
Solution 4:
प्रस्तुत कविता ‘और भी दूँ’ के रचियता रामावतार त्यागी जी हैं। प्रस्तुत कविता में कवि की देश के प्रति असीम भक्ति भावना प्रकट हुई है। कवि देश के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करना चाहता है फिर भी उसे लगता है कि देश के प्रति समर्पित यह जीवन भी तुच्छ है। इसलिए कवि की ऐसी इच्छा है कि यदि कभी उसे मातृभूमि पर जान लुटाने का मौका मिले तो उसके इस बलिदान को स्वीकार जाय। कवि जीवन के सारे बंधनों को तोड़कर, मातृभूमि की धूल को मस्तक पर लगाकर भारतमाता का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। कवि ने अपना सब-कुछ मातृभूमि को अर्पण कर दिया है परंतु अभी भी कवि के मन में इससे भी अधिक मातृभूमि को देने की लालसा बाकी है।
हेतुलक्ष्यी प्रश्न
Solution 1:
- माँ तुम्हारा ऋण बहुत है।
- थाल में लाऊँ सजाकर, भाल जब भी।
- शीश पर आशीष की छाया घनेरी।
- तोड़ता हूँ, मोह का बंधन क्षमा दो।
Solution 2:
- कवि रामावतार त्यागी जी थाल में भाल सजाकर लाना चाहते हैं।
- कवि कमर पर कसकर ढाल बाँधना चाहता है।
- कवि त्यागी जी सुमन, चमन और नीड़ का तृण-तृण धरती माता को समर्पित करना चाहता है।
- कविता में व्यक्त कवि की भावना देशभक्ति की भावना है।