मन के हारे हार है, मन के जीते जीत संकेत बिंदु:
- मन सभी प्रवृत्तियों का जनक
- दृढ़ मन सफलता का आधार
- संकल्पशक्ति का कारण।
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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत पर निबंध | Essay on Man Ke Haare Haar Hai Man Ke Jeete Jeet Essay In Hindi
शास्त्र और लोक दोनों में मन को समस्त स्थूल एवं सूक्ष्म इंद्रियों का स्वामी और नियंत्रक-निदेशक स्वीकारा गया है। इतना ही नहीं, शास्त्र तो मन को ही मनुष्यों की समूची गतिविधियों और अस्तित्व का मूलभूत कारण मानते हैं। वास्तव में मन ही वह तत्त्व है जिसमें मानव जीवन के संचालक, निर्णायक एवं ध्वंसक, सभी प्रकार के विचार जन्म लेते हैं। इस कर्म एवं संघर्षमय जीवन संसार में मानव जीवन की हार-जीत की कहानियाँ लिखने वाला असंदिग्ध रूप से मन ही है। दृढ़ मन साधनों से विरक्त होते हुए भी हार को जीत में परिणत कर दिया करते हैं।
इसके विपरीत दुर्बल मन सब प्रकार के सुलभ साधनों से संपन्न होते हए भी जीत को हार में बदलने के लिए विवश हो जाया करते हैं। इसी कारण मनीषी मन को संयमित रखने की बात चिरंतन काल से ही कहते आ रहे हैं, क्योंकि संयमित मन ही विकल्पों से मुक्त होकर कुछ करने का दृढ़ संकल्प ले सकता है। जब संकल्प दृढ़ होगा, तो निश्चय ही साधनहीनता की स्थितियों में भी कोई-न-कोई साधन खोज ही लिया जाएगा। स्पष्ट है कि संसार केवल तलवार वालों का अर्थात् साधन-शक्ति संपन्न लोगों का ही नहीं हुआ करता, बल्कि संकल्प वालों का भी हुआ करता है।
शारीरिक दृष्टि से दुर्बल एवं हीन होते हुए भी दृढ़ निश्चयी व्यक्ति ऐसे-ऐसे कार्य कर जाया करते हैं कि उनकी असाधारणता पर विस्मय-विभोर होकर रह जाना पड़ता है। सामान्यतः साधारण प्रतीत होने वाले व्यक्ति भी अपनी संकल्प शक्ति के बल से भयावह तूफानों तक का मुँह मोड़ देने में सफल हो जाया करते हैं।