नैतिक शिक्षा संकेत बिंदु:
- शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका
- समाज और राष्ट्र के हितैषी
- शिक्षा का सही उद्देश्य
- आंतरिक विकास
- नैतिक मूल्यों में गिरावट।
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नैतिक शिक्षा पर अनुच्छेद लेखन, Naitik Shiksha | Paragraph on Television in Hindi
नैतिक शिक्षा पर निबंध – Essay on The Inevitability of Moral Education in Hindi
समाज में शिक्षक की भूमिका अधिक महत्त्वपूर्ण है। बच्चों के भविष्य को सुंदर और सुदृढ़ बनाने की सारी ज़िम्मेदारी शिक्षकों की होती है। कहा भी जाता है कि शिक्षक द्वारा दिए गए ज्ञान को ही छात्र अधिक महत्त्व देते हैं। शिक्षकों की भूमिका को कबीर तथा तुलसी ने भी सराहा है। गुरु ज्ञान के द्वार होते हैं।
वे ही अपने शिष्यों को सही शिक्षा देकर समाज और राष्ट्र के हितार्थ नागरिकों को तैयार करते हैं। ऐसे में नैतिक मूल्यों के उत्थान में शिक्षकों की भूमिका सबसे कारगर और प्रभावी मानी जाती है। शिक्षक ही अपने छात्रों के जीवन में ईमानदारी, सदाचार, चरित्र निर्माण तथा कर्तव्यनिष्ठा का बीजारोपण करते हैं। माँ तो केवल उँगलियाँ पकड़कर चलना सीखाती है, लेकिन गुरु प्रारंभिक शिक्षा से उच्चतर शिक्षा तक उसके साथ रहकर उसे सही राह दिखाता है।
बिना गुरु के ज्ञान की अवधारणा ही व्यर्थ है। छोटे-छोटे बच्चों को झूठ न बोलने, चोरी न करने, बड़ों का आदर करने, सभ्यता को अपनाने तथा संस्कृति से प्यार करने की शिक्षा भी तो शिक्षक ही देते हैं। बच्चों का चरित्र-निर्माण शिक्षकों के द्वारा ही होता है। बड़े-बड़े महापुरुषों ने अपने निर्माण में शिक्षकों की भूमिका को ही सर्वोपरि माना है। महात्मा गांधी ने अपनी आत्मकथा में शिक्षक की भूमिका का उल्लेख किया है।
वे शिक्षा को चरित्र-निर्माण के लिए अनिवार्य मानते थे। वे कहते थे-शिक्षा का सही उद्देश्य चरित्र-निर्माण होना चाहिए। छात्रों के उचित मार्गदर्शन में शिक्षकों की भूमिका सबसे विशिष्ट मानी गई है। शिक्षा के विषयों के अतिरिक्त शिक्षक का यह भी कर्तव्य है कि समय-समय पर छात्रों को सदाचार तथा सद्व्यवहार की शिक्षा दे। चरित्र के निर्माण के लिए उचित मार्गदर्शन करे। शिक्षक आदर के योग्य होते हैं, अत: उन्हें छात्रों से आदर योग्य आचरण करते हुए, उनके आंतरिक विकास पर ध्यान देना चाहिए। शिक्षकों के हाथ में छात्रों के भविष्य की डोर होती है।
वे उसे जिस ओर ले जाना चाहे, उसे उस ओर ले जा सकते हैं। देश के लिए नैतिक मूल्यों वाले अच्छे नागरिकों के निर्माण का दायित्व शिक्षकों पर ही है। हाल के वर्षों में नैतिक मूल्यों में जो गिरावट आई है, उसका कारण कहीं-न-कहीं हमारी शिक्षा व्यवस्था भी है। शिक्षा के व्यवसायीकरण के कारण ही ऐसा हुआ है, यह भी कहा जा सकता है। आज आवश्यकता है शिक्षकों में जागृति की।