राष्ट्रसंत गाड़गे बाबा – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
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लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
प्रस्तुत प्रश्न राष्ट्र संत गाडगेबाबा पाठ से लिया गया है। जिसके लेखक विश्वास पाटील हैं। यहाँ पर गाडगेबाबा के प्रारंभिक संघर्षमय जीवन की जानकारी दी गई है।
एक गरीब परिवार में जन्में बाबा सदैव दरिद्रता से संघर्ष करते रहे। 13 वर्ष की आयु तक वे जानवरों को चराते रहे। सत्रह सालों तक गुलामों का जीवन जीते हुए अपने मालिकों की गालियाँ सहते रहे। उन्हें शिक्षा भी नसीब न हुई।
इस प्रकार बाबा ने सदा प्रतिकूलपरिस्थिति व गरीबी में दिन निकाले।
Solution 2:
प्रस्तुत प्रश्न राष्ट्र संत गाडगेबाबा पाठ से लिया गया है। जिसके लेखक विश्वास पाटील हैं।
उस समय धर्म के नाम पर झूठा दिखावा था। चारों और जादू-टोना और अंधविश्वास का साम्राज्य छाया हुआ था। भोली-भाली जनता को ढोंगी बाबा उनके अंधविश्वास का फायदा उठाकर लूट रहे थे। बाबा ने ऐसे ढोंगियों की पोल खोल कर रख दी। इस तरह से बाबा ने जनता की धार्मिक और आर्थिक लूट को रोका। चमत्कार और सिद्धियों का विरोध किया। परलोक के बजाए इहलोक को सुंदर बनाने का आग्रह किया समाज में जागृति फैलाई। नारी और दलितों की शिक्षा अभियान में जुटे रहे।
इस प्रकार गाडगेबाबा ने जनता की धार्मिक और आर्थिक लूट को रोका।
Solution 3:
प्रस्तुत प्रश्न राष्ट्र संत गाडगेबाबा पाठ से लिया गया है। जिसके लेखक विश्वास पाटील हैं। यहाँ पर ईश्वर में असीम विश्वास रखने वाले बाबा का उसे प्रकट करने का ढंग कितना निराला था यह बताया गया है।
बाबा स्वयं कभी किसी मंदिर में नहीं गए परंतु मंदिर में जानेवाले भक्तों के लिए उन्होंने अनेक धर्मशालाओं का निर्माण किया। वे हर महीने के सत्ताईस दिनों तक कीर्तन करते थे। ‘गोपाला – गोपाला देवकीनंदन गोपाला’ यही उनका मंत्र था और कीर्तन के जरिए वे मुक्त संवाद बाँधा करते थे। संवाद के दौरान वे हँसते-हँसाते, प्रश्न करते, सुनने वाले ही ज़वाब दिया करते समाज अपने ही व्यंग को समझता खुद लज्जित होता और आत्म परीक्षण करता।
इस प्रकार अपने कीर्तन में संवाद साधना यही बाबा के कीर्तन की खास विशेषता थी।
Solution 4:
प्रस्तुत प्रश्न राष्ट्र संत गाडगेबाबा पाठ से लिया गया है। जिसके लेखक विश्वास पाटील हैं। यहाँ पर बाबा द्वारा किए गए सामाजिक कार्यों का उल्लेख किया गया है।
गाडगे बाबा का पूरा जीवन ही समाज को समर्पित रहा।
उन्होंने जनता में जागृति पैदा कर धर्म और रूढ़ियों से मुक्ति दिलाई। उन्होंने समाज के सर्वांगीण विकास का लक्ष्य अपने सामने रखा। छुआ-छूत को पाप माना। उनके चिंतन के दस सूत्र भी समाज के परोपकार पर ही आधारित थे। बाबा ने लाखों रुपयों की संपत्ति जमा की पर अपने मिट्टी के बर्तनों का और अपने चिंदियों की झालर को नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं को भी अपरिग्रह व्रत की शिक्षा दी।
इस तरह संत गाडगे बाबा सदैव जनता जनार्दन के सेवक रहे।