संत कवि भारती – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
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लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
प्रस्तुत प्रश्न मीराबाई द्वारा रचित पदावली से लिया गया है। यहाँ पर मीराँ ने अपने गोविंद को मोल लेने के बारे में बताया है।
मीराँ ने अपने गोविंद को मोल लिया है। मीराँ के इस कृत्य पर सभी की अपनी-अपनी धारणाएँ है। कोई कहता है यह सौदा महँगा है, तो कोई कहता सस्ता परंतु मीराँ के अनुसार उन्होंने तो तराजू में तौल-परखकर यह सौदा किया है और इसे वे फायदे का सौदा मानती हैं।
इस प्रकार मीराँ ने सोच-समझकर, तराजू में तौल कर अपने आराध्य श्रीकृष्ण को अपना लिया है।
Solution 2:
प्रस्तुत प्रश्न मीराबाई द्वारा रचित पदावली से लिया गया है। यहाँ पर मीराँ की अपने अनन्य प्रेम श्रीकृष्ण पर पूर्ण समर्पण और एकनिष्ठ भक्ति की झलक मिलती है।
मीराँ का संबंध राजघराने से था। मीराँ राजसी व्यवहार न कर साधु-संतों के साथ भजन कीर्तन में मग्न रहती यह बात राणा को पसंद नहीं थी। अत:उन्होंने मीराँ को मारने के लिए विष का प्याला भेजा और मीराँ ने उस विष के प्याले को श्रीकृष्ण का नाम लेकर पी लिया। उस जहर को पीने के बावजूद भी मीराँ को कुछ न हुआ।
इस प्रकार अपने आराध्य पर अटूट विश्वास होने के कारण जहर का प्याला भी मीराँ का कुछ बिगाड़ न पाया।
Solution 3:
प्रस्तुत प्रश्न मीराबाई द्वारा रचित पदावली से लिया गया है। यहाँ पर मीराँ ने भक्ति से प्राप्त ईश्वर रूपी धन की महिमा बताई है।
मीराँ ने अपना सब-कुछ खोकर अपनी अनन्य भक्ति से रामरुपी धन को प्राप्त किया है।
राम रूपी इस धन की विशेषता यह है कि यह धन कभी कम नहीं होता, उल्टे खर्च करने पर बढ़ता ही जाता है, न ही इसे कोई चोर चुरा पाता है।
इस प्रकार मीराँ ने भक्ति से प्राप्त ईश्वर-धन की महिमा बताई है।
Solution 4:
प्रस्तुत प्रश्न मीराबाई द्वारा रचित पदावली से लिया गया है। यहाँ पर मीराँ ने इस संसार को पार करने के लिए भगवद् भक्ति का मार्ग सुझाया है।
मीराँ के अनुसार यह संसार एक सागर के समान है। इस सागर को पार करने के लिए साधारण नहीं बल्कि सत्य की नाव पर सवार होना पड़ता है। इस नाव के खेवनहार सतगुरु होते हैं। अत: सद्गुरु पर विश्वास और निष्ठा रखते हुए उसे अपना जीवन सौंप दें।
इस प्रकार मीराँ के अनुसार भगवद् भक्ति में लीन हो जाओ, वे ही जीवन रूपी नैया को इस सागर रूपी भवसागर से पार कराएँगे।
Solution 5:
प्रस्तुत प्रश्न मीराबाई द्वारा रचित पदावली से लिया गया है।
मीराँ रामरुपी धन पाकर कृतार्थ है। मीराँ ने इस धन को अपना सब-कुछ खोकर जन्म-जन्मान्तर के लिए पा लिया है। रामरुपी ऐसा अमूल्य धन से जिसकी कीमत नहीं आँकी जा सकती है। यह ऐसी पूँजी है, जो कोई चुरा नहीं सकता और जो खर्च करने पर और अधिक बढ़ती जाती है।
अत:मीराँ राम रूपी अमूल्य धन को पाकर कृतार्थ है।
Solution 6:
मीराँ ने ईश्वर भक्ति को अमूल्य धन माना है। उन्होंने अपनी एकनिष्ठ भक्ति से रामरुपी अनमोल धन की प्राप्ति जन्म-जन्मान्तर के लिए कर ली है। चोर भी उनके इस अनमोल धन को चुरा नहीं सकता है। मीराँ ने अपने आराध्य श्रीकृष्ण को मोल ले लिया है। कोई इसे महँगा तो कोई इसे सस्ता सौदा कहता है। यहाँ पर मीराँ की अपनी प्रभु के प्रति एकनिष्ठ भक्ति के दर्शन होते हैं।
हेतुलक्ष्यी प्रश्न
Solution 1:
- खरचै नहिं कोई चोर न लेवै।
- सत की नाव खेवटिया सतगुरु।
- मीराँ प्रभु के हाथ बिकानी।
- मैं तो गोविंद लीन्हा मोल।
Solution 2:
- मीराँ हमसे कह रही है कि उसे राम रत्न रूपी धन को पा लिया है।
- मीराँ ने जग में सब-कुछ खोकर राम रत्न रूपी धन पा लिया है।
- मीराँ के प्रभु श्रीकृष्ण हैं।
- मीराँ ने तौल-परखकर, आँख-खोलकर श्रीकृष्ण को खरीद लिया है।