संत कवि भारती – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
AlgebraGeometryScience and TechnologyHindi
लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
प्रस्तुत प्रश्न कवि रहीम द्वारा लिखित ‘संत कवि भारती’ कविता से लिया गया है। यहाँ पर कवि ने प्रेम-संबंधों के विषय में बताया है।
प्रेम संबंध बड़े नाजुक और संवेदनशील होते हैं।
कवि रहीम ने प्रेम के मधुर संबंध को एक नाजुक धागे के समान बताया है। कवि के अनुसार इस प्रेम रूपी धागे को तोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि एक बार टूटने के बाद यह जुड़ तो सकता है परन्तु उसमें सदा एक गाँठ बनी रहेंगी। जुड़ने के बाद संबंधों में पहले जैसा प्यार और अपनापन नहीं रह पाता अत: हमें हमारे प्रेम संबंधों में कभी भी अविश्वास या संदेह की गाँठ पड़ने नहीं देनी चाहिए। उल्टे प्रेम संबंधों को हमेशा सहेजकर और बनाए रखना चाहिए।
Solution 2:
प्रस्तुत प्रश्न कवि रहीम द्वारा लिखित ‘संत कवि भारती’ कविता से लिया गया है। यहाँ पर कवि ने सज्जन पुरुषों द्वारा किए गए परोपकार के महत्त्व को बताया है।
रहीम कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष अपने फलों को स्वयं नहीं खाते हैं, न ही तालाब अपना पानी स्वयं पीते हैं, ये तो दूसरों की भूख व प्यास मिटाते हैं। ठीक उसी प्रकार कवि के अनुसार जो सज्जन पुरुष होते हैं वे अपनी धन संपदा का उपयोग जन कल्याण के लिए करते हैं। उनके अनुसार लोगों की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म होता है।
इस प्रकार सज्जन पुरुष अपनी संपदा का उपयोग लोगों की भलाई के लिए करते हैं।
Solution 3:
प्रस्तुत प्रश्न कवि रहीम द्वारा लिखित ‘संत कवि भारती’ कविता से लिया गया है। रहीम यहाँ प्रियजनों (सुजनों) के महत्त्व को बता रहे हैं।
रहीम कहते हैं जो भी हमारा प्रियजन हमसे रूठ जाए तो उसे मना लेना चाहिए। भले हमें उसे सौ बार ही क्यों न मनाना पड़े, प्रियजन को हमेशा ही मना लेना चाहिए क्योंकि वे ही हमारे सच्चे हितैषी होते हैं। रहीम प्रियजनों की तुलना मोतियों से करते हुए कहते हैं जिस प्रकार सच्चे मोतियों की माला के बार बार टूटने पर भी हर बार मोतियों को पिरोकर हार बना लिया जाता है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि व्यक्ति की शोभा भी उसके प्रियजनों से ही होती है।
अत: हमें अपने प्रियजनों को बार-बार मनाने में संकोच नहीं करना चाहिए।
Solution 4:
प्रस्तुत प्रश्न कवि रहीम द्वारा लिखित ‘संत कवि भारती’ कविता से लिया गया है। यहाँ पर कवि ने बताया है किस प्रकार परोपकारी व्यक्ति अपना जीवन दूसरों की भलाई में बिता देते हैं।
परोपकार की भावना वृक्षों, सरोवरों और सज्जन पुरुषों में देखी जाती है।
वृक्षों पर मीठे और स्वादिष्ट फल लगते हैं परंतु वे अपने फलों को स्वयं न खाकर लोगों को दे देते हैं। सरोवर भी अपने जल का उपयोग लोगों के लिए ही करते हैं ठीक उसी प्रकार सज्जन पुरुष भी अपने धन-संचय को परोपकार के कामों में लगा देते हैं।
वे अपना जीवन दीन-दुखियों की भलाई में ही बिता देते हैं।
हेतुलक्ष्यी प्रश्न
Solution 1:
- रहिमन धागा प्रेम का।
- सरवर पियहिं न पान।
- रहिमन फिरि-फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार।
Solution 2:
- कवि रहीम के अनुसार प्रेम के धागे को झटके के साथ नहीं तोड़ना चाहिए।
- वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाता।
- मुक्ताहार बहुमूल्य होने के कारण हम उसे बार-बार पिरोते हैं।
- कवि ने सुजन की तुलना बहुमूल्य मुक्ताहार से की है।
Solution 3:
- तरुवर फल नहीं खात है, सरवर पियहिं न पान।
- कवि रहीम परकाजहित, संपति संचहिं सुजान।
- टूटे से फिरि ना जूरै, जूरै गाँठ परि जाय।
- टूटे सुजन मनाइए, जौ टूटे सौ बार।
Solution 4:
- हमारे देश में धर्मों-संप्रदायों के अनेक उपासनागृह, मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और गुरुद्वारे हैं।
- हमें आज धार्मिक क्षेत्र में वैचारिक क्रांति, सत्साहित्य एंव चरित्र निर्माण की आवश्यकता है।
- सभी शांति चाहते हैं, पर शांति का दर्शन कहीं होता नहीं। इसलिए हर जगह कोई न कोई आंदोलन छिड़ा है।
- गद्यखंड के लिए उचित शीर्षक ‘हमारे धार्मिक स्थल’