सत्संगति संकेत बिंदु:
- सत्संगति अर्थ और महत्व
- संगति का प्रभाव
- सुसंगति से लाभ
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
सत्संगति पर निबंध | Essay on Satsangi In Hindi
सत्संगति का अर्थ है अच्छी या श्रेष्ठ संगति। संगति का प्रभाव प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ता है इसलिए सदा सत्संगति पर बल दिया जाता रहा है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। वह सदा परिवार के मध्य ही नहीं रहता। बाल्यकाल से वह घर की चारदीवारी से बाहर कदम रखने लगता है। अध्ययन के लिए बालक-बालिकाएँ और युवा स्कूलों और कॉलेजों में जाते हैं। शिक्षा ग्रहण, नौकरी व्यापार आदि व्यवसाय किए जाते हैं।
इन सबके मध्य व्यक्ति किसी-न-किसी की संगति में अवश्य रहता है। वह मित्र बनाता है। यही मित्र उसके जीवन के अंग बन जाते हैं। इनकी संगति से उसकी विचारधारा और व्यवहार आदि प्रभावित होते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में सत्संगति की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।
कहा जाता है-जैसी संगत, वैसी रंगत। एक गरम बरतन को ठंडे बरतन के साथ रखने पर ठंडा बरतन भी गरम हो जाता है। संगति सदा प्रभाव डालती है। वर्षा की एक बूंद संगति के प्रभाव से भिन्न-भिन्न रूप धारण कर लेती है। रहीम ने इसके माध्यम से संगति के महत्व को दर्शाया है-
कदली, सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन॥
स्वाति नक्षत्र में होने वाली वर्षा की एक बूंद केले पर पड़कर कपूर बन जाती है; सीप के मुख में पड़कर मोती बन जाती है और साँप के मुख में पड़कर विष बन जाती है। संगति के अनुसार बूंद का रूप परिवर्तित हो जाता है। इसलिए सदा अच्छी संगति में रहना चाहिए।
बाल्यकाल से संगति पर विशेष ध्यान देना चाहिए। बालक-बालिकाएँ जिनके साथ मिलते-जुलते, खेलते-कूदते हैं उन पर उनका प्रभाव पड़ता है। गाली-गलौच और अश्लील भाषा का प्रयोग करने वालों की संगति में रहकर बच्चे भी वैसी ही भाषा का प्रयोग करने लगते हैं। सुसंस्कृत विचारों के बच्चों की संगति श्रेष्ठ संस्कार उत्पन्न करती है। विद्यार्थी जीवन में मित्र बनाने की होड़ लग जाती है। उस समय मित्र के अवगुणों पर ध्यान नहीं दिया जाता। धीरे-धीरे मित्र के अवगुण सामने आते हैं। उसकी बुरी आदतें सामने आती हैं। मित्र अपना प्रभाव डालना आरंभ कर देता है। उसकी संगति दूसरों को भी अपने रंग में ढाल लेती है।
एक वृक्ष को विकसित होने के लिए उचित खाद और जल की आवश्यकता होती है। यदि इसके स्थान पर विषैला जल डाल दें तो एक दिन वृक्ष सूख जाएगा। सत्संगति और कुसंगति का भी यही प्रभाव होता है। कुसंगति सदा कष्टकारी होता है। बुरा व्यक्ति सदा किसी-न-किसी झंझट अथवा परेशानी में पड़ा रहता है। वह अपने साथ अपने मित्रों को भी परेशानियों में डालता रहता है। सूरदास ने संगति के महत्व को दर्शाते हुए कहा है-
तजो मन हरि विमुखनि को संग।
जाके संग कुमति उपजत है, परत भजन में भंग।
हे मन! तुम उन लोगों की संगति त्याग दो जिनका मन भगवान की ओर नहीं है जिनके संग रहकर बुद्धि में बुरे विचार उत्पन्न होते हैं और भगवान का भजन करने में बाधा पहुँचती है। गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ में सत्संगति के विषय में सत्य ही लिखा है-
सत संगति मुद मंगल मूला।
सोइ फल सिधि सब साधन फूला॥
परोपकारी, सत्यवादी, सज्जन और ईमानदार की संगति से मनुष्य महान बनता है। उसकी चिंतन शैली, आचार-व्यवहार और दृष्टिकोण में श्रेष्ठता आ जाती है। वह सन्मार्ग पर अग्रसर होने लगता है। वह जीवन के वास्तविक अर्थ को समझने लगता है। वह तुच्छ विचारधारा से ऊपर उठकर विशालता ग्रहण करने लगता है।
प्रत्येक व्यक्ति को सत्संगति में रहना चाहिए। बुरी संगति से कोसों दूर रहना चाहिए। व्यक्ति का चारित्रिक, नैतिक, सामाजिक और वैयक्तिक विकास केवल सत्संगति से ही होता है। बाल्यकाल से ही सत्संगति में रहने वाले व्यक्ति अपने जीवन को सत्य के मार्ग पर ले जाते हैं। इससे वे अपना और समाज का भी हित करते हैं। कबीर ने सत्संगति के विषय में सत्य ही कहा है-
कबिरा संगति साधु की, ज्यों गंधी की बास।
जो गंधी कछु दे नहीं, तो भी बास सुबास॥