ऋतुओं का देश भारत संकेत बिंदु:
- भारत ऋतुओं का देश
- भारत की ऋतुएँ
- ऋतुओं का वर्णन
- ऋतुओं का प्रभाव
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
भारत को ऋतुओं का देश कहें तो इसमें अतिशयोक्ति न होगी। यहाँ विभिन्न ऋतुएँ आकर इसका श्रृंगार करती हैं। भारत के कण-कण को अपनी विभिन्न छटाओं से सजाती-संवारती है। इनके सौंदर्य से देश के जन-जन का मन प्रफुल्लित हो उठता है। इस सौंदर्य का आनंद लेने को देवताओं का हृदय भी व्याकुल हो उठता है।
भारत में ऋतुओं के रंग बरसते हैं,
देवता भी इनके आनंद को तरसते हैं।
भारत की प्रमुख ऋतुएँ हैं-ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर, हेमंत और वसंत।
वसंत को ऋतुराज कहते हैं। इसके आगमन से प्रकृति अपने पूर्ण शृंगार से धरती को नई दुल्हन-सा सजा देती है। हरे-भरे पेड़-पौधे लहलहाने लगते हैं। वृक्षों की टहनियों पर उगी नई कोंपलें मन मोह लेती हैं। रंग-बिरंगे पुष्पों की मुस्कानें अबोध शिशु-सी सहज ही आकर्षित कर लेती हैं। संपूर्ण प्रकृति नवीन परिधान पहनकर सुशोभित हो जाती है। मदमस्त पवन के झोंके लहराने लगते हैं। पुष्पों पर मंडराते भँवरों की मधुर गूंज वन-उपवनों को संगीतमय कर देती है। रंग-बिरंगी तितलियाँ नन्हीं बालिकाओं के समान पुष्पों के चारों ओर नृत्य करने लगती हैं। आनंद का सागर उमड़कर सभी को स्वयं में समेट लेता है। कवि भी गा उठता है-
नाच री सखी वसंत आया,
गा री सखी उमंग लाया।
वसंत का आनंद और मस्ती भरा वातावरण धीरे-धीरे तपने लगता है। ग्रीष्म ऋतु धीरे-धीरे पग रखती आती है और संपूर्ण धरती को अपनी गर्म हवाओं से तपाने लगती है। सूर्य की किरणें आग-सी झुलसाने लगती हैं। नीचे धरती तप जाती है, ऊपर आकाश तप जाता है। क्या मानव, क्या प्राणी और क्या प्रकृति का अंग-अंग सभी व्याकुल हो उठते हैं। गर्मी ज्येष्ठ-आषाढ़ (मई-जून) के महीनों में अपना प्रचंड रूप धारण कर लेती है।
जेठ के दारुण आतप से, तप के जगती-तल जावै जला,
जलहीन जलाशय, व्याकुल हैं पशु पक्षी, प्रचंड है भानुकला।
नदियों का जल-स्तर गिर जाता है। तालाब और कुएँ सूख जाते हैं। गर्मी के कारण पशु-पक्षी तक हाँफने लगते हैं। पंखों और कूलरों की हवाओं में भी गर्मी दूर करने की क्षमता नहीं रहती। लोग घरों से बाहर नहीं निकलते। खेतों में खड़ी फसलों के लिए यह गर्मी अत्यंत लाभदायक होती है। फसलें पक जाती हैं।
गर्मी की इस तपन से मुक्ति मिलती है वर्षा ऋतु के आगमन से। वर्षा की फुहारें आकर धरती के कण-कण की प्यास बुझाती हैं। आकाश में बादल नगाड़े बजाते हैं। बिजलियों की चमक सबके मन को आंदोलित कर देती है। मुरझाए पेड़-पौधों में नया जीवन आ जाता है। सूखी पड़ी घास फिर हरी-भरी हो जाती है। वायु के शीतल झोंके प्रत्येक मनुष्य को आनंदलोक में ले जाते हैं। हरियाली की चादर ओढ़कर धरती सज-संवर जाती है।
फेरि झूमि-झूमि वर्षा की ऋतु आई फेरि,
बादर निगोरे झुकि-झुकि बरसै लगे।
किसान प्रसन्न होकर खेतों में बीज बोने लगते हैं। महिलाएँ सावन के गीत गाती हैं। सावन-भादों (जुलाई-अगस्त) के महीनों में नदियाँ लबालब भर जाती हैं।
वर्षा के कारण वातावरण में शीतलता छा जाती है। यह शीतलता धीरे-धीरे बढ़ती जाती है और शरद ऋतु का आगमन हो जाता है।
काली घटा का घमंड घटा, नभमंडल तारक वृंद खिले।
उजियाली निशा, छविशाली दिशा, अति सौहे धरातल फूले-फलै।
इस ऋतु के साथ-साथ आते हैं त्योहार। रामलीलाओं के पश्चात् दशहरा और फिर जगमगाती दीपावली। चारों और धूमधाम, पटाखे और फुलझड़ियाँ तथा खुशियाँ ही खुशियाँ। आश्विन और कार्तिक (सितंबर-अक्टूबर) महीनों को आनंददायक माना जाता है। इनमें वातावरण में हल्की-हल्की शीतलता छाई रहती है। वातावरण सुखद हो जाता है।
सूर्य उत्तरायण से दक्षिणायन की ओर चला जाता है। सर्दियाँ अपनी पूर्णता ग्रहण कर लेती हैं, हेमंत ऋतु का आगमन होता है। नवंबर और दिसंबर के महीनों में लोग गर्म वस्त्र लपेटे सर्दियों से जूझने का प्रयत्न करते हैं। साधन-संपन्न लोग गर्म वस्त्र पहनते हैं, हीटरों के आगे बैठकर गर्मी ले लेते हैं। निर्धनों के लिए यह ऋतु प्राणघातक होती है। उनके पास गर्म वस्त्र नहीं होते और रहने के लिए मकान नहीं होते।
माघ और फाल्गुन (जनवरी-फरवरी) में शिशिर ऋतु का आगमन होता है। ठंड कम होने लगती है। वातावरण आनंददायक हो जाता है वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। पतझड़ का आगमन होने लगता है।
ऋतुओं का परिवर्तन भारतवासियों को सदा सजग रखता है। वे प्रत्येक ऋतु को सहने की क्षमता पा लेते हैं। विभिन्न ऋतुओं का आनंद भी लेते हैं। भारत में प्रत्येक ऋतु के साथ कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है। इसलिए प्रत्येक ऋतु अपने साथ उत्साह और उमंग लेकर आती है। विविधताओं से भरे भारत की ऋतुएँ भी विविध रगों में रंग देती हैं। प्रत्येक भारतीय इन ऋतुओं का हृदय से स्वागत करता है।