विद्यार्थी और अनुशासन संकेत बिंदु:
- विद्यार्थी का अर्थ
- विद्यार्थी और परिश्रम
- दैनिक समय सारिणी
- मित्र और आचरण
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
विद्यार्थी और अनुशासन पर निबंध | Essay on Student and Discipline In Hindi
विद्यार्थी का सामान्य अर्थ है वह व्यक्ति जो विद्या को प्राप्त करना चाहता है। विद्या प्राप्त करने के लिए वह वर्षों तक साधनारत रहता है। इस आयु में प्राप्त ज्ञान के बल पर वह अपनी अजीविका का चयन करके जीवनयापन करता है।
जीवन को वास्तविक अर्थों में जीना सीखता है। वह मानव जीवन को सार्थक करता है। सामान्य अर्थ में विद्यार्थी जीवन लगभग पच्चीस वर्ष तक का होता है। मनुष्य की आयु को सौ वर्ष का मानकर प्रथम पच्चीस वर्षों को ब्रह्मचर्य आश्रम की आयु माना गया। यह आयु ज्ञान प्राप्ति की आयु मानी गई है। इसमें व्यक्ति विद्याध्यय करके विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त करता है। आधुनिक युग में प्रथम अठारह वर्षों में बालक-बालिकाएँ स्कूली शिक्षा पूर्ण करके युवक-युवतियाँ बनकर उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिए कॉलेजों में प्रवेश लेते हैं। प्रशिक्षण ग्रहण करके वे जीवन के कर्म क्षेत्र में प्रवेश करते हैं।
विद्यार्थी जीवन में जो जितना परिश्रम करता है, वह भावी जीवन में उतना ही सफल होता है। विद्याध्ययन काल को साधना काल माना जाता है। इसमें विद्यार्थी सांसारिक आकर्षणों से मुक्त होकर संपूर्ण ध्यान ज्ञान प्राप्त करने पर केंद्रित करते हैं। वास्तविक रूप में ऐसा ही होना चाहिए। आज प्राचीन गुरुकुल पद्धति से शिक्षा नहीं दी जाती। सरकारी स्कूलों के साथ-साथ पब्लिक स्कूलों में शिक्षा दी जाती है। सहशिक्षा के कारण बालक-बालिकाएँ और किशोर-किशोरियाँ एकसाथ शिक्षा ग्रहण करते हैं। इससे एक-दूसरे की ओर आकर्षित होना स्वाभाविक होता है। जो विद्यार्थी संयमित और नियंत्रित जीवन जीते हैं वे इस दिशा में अग्रसर नहीं होते।
विद्यार्थियों को सर्वाधिक महत्व चरित्र निर्माण पर देना चाहिए। एक कहावत है धन, स्वास्थ्य और चरित्र में से चरित्र का सबसे अधिक महत्व होता है। खोया धन फिर कमाया जा सकता है। खोए स्वास्थ्य को दवा तथा पौष्टिक आहार द्वारा पुनः प्राप्त किया जा सकता है परंतु चरित्रिक पतन हो जाने पर पुनः खोई प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं की जा सकती।
विद्यार्थियों के अध्ययन में बाधा के रूप में टी.वी. घर-घर में पहुँच गया है। इसके अनेक चैनलों में भाँति-भाँति के कार्यक्रमों का प्रसारण होता है। अधिकांश कार्यक्रम मनोरंजन प्रधान होते है। फ़िल्मों और फ़िल्मी गीतों पर आधारित कार्यक्रमों में अश्लील दृश्य भी होते हैं। अन्य अनेक कार्यक्रमों में अर्धनग्न स्त्रियों के नृत्यादि कार्यक्रम प्रसारित होते हैं।
इस प्रकार के कार्यक्रम किशोर मन पर उचित प्रभाव नहीं डालते। उन्हें इन कार्यक्रमों को नहीं देखना चाहिए। टी.वी. पर दिखाए जाने वाले ज्ञानवर्धक कार्यक्रम ही देखने चाहिए। स्वयं पर संयम रखकर टेलीविज़न के आकर्षण से बचना चाहिए। विद्यार्थी जीवन में स्वास्थ्य पर उचित ध्यान देना चाहिए। प्रातः उठकर सैर करनी चाहिए। पौष्टिक तत्वों से पूर्ण भोजन करना चाहिए। भोजन नियमित रूप से निश्चित समय पर करना चाहिए। योग के आसनों द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों का व्यायाम करना चाहिए।
खेल-कूद के लिए समय निर्धारित करके नियमित रूप से खेलना चाहिए। इनसे शरीर के सभी अंगों का विकास होता है। विद्यार्थी जीवन में अध्ययन की आदत डालनी चाहिए। पाठ्य-पुस्तकों के अतिरिक्त समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, संस्कार प्रदान करने वाली पुस्तकें पढ़नी चाहिए। पुस्तकें मनुष्य की सच्ची मित्र होती हैं। अच्छी पुस्तकें पढ़ने से अच्छे विचार जन्म लेते हैं। चिंतन की क्षमता बढ़ती है। ज्ञान का क्षेत्र विस्तृत होता है।
विदयार्थी जीवन में आचरण पर अधिक ध्यान देना चाहिए। बड़ों का आदर-सम्मान करना चाहिए। माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी आदि परिवार के सदस्यों से संस्कार ग्रहण करने चाहिए। अध्यापक-अध्यापिकाओं का आदर करना चाहिए। अच्छी भाषा का प्रयोग करना चाहिए। गाली-गलौच की भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सुसंगति में रहना चाहिए। मित्र बनाने से पूर्व उनके गुणों-अवगुणों को परख लेना चाहिए।
अच्छे मित्र बनाने चाहिए। कक्षाओं में पढ़ाए गए विषयों को घर आकर दोहराना चाहिए। प्रतिदिन कम-से-कम चार घंटे तक स्वाध्याय करना चाहिए। नियमित रूप से अध्ययन करने वाले विद्यार्थी ही जीवन में सफलताओं के शिखरों का स्पर्श कर पाते हैं। अपने जीवन के लक्ष्य का निर्धारण करके उसे प्राप्त करने के लिए अनथक प्रयास करना चाहिए। विद्यार्थी जीवन भावी जीवन का नींव होता है।
किसी भवन की नींव जितनी मज़बूत होती है वह भवन उतना ही मज़बूत होता है। इसी प्रकार विद्यार्थी जीवन में जितना परिश्रम करके ज्ञान प्राप्त कर लिया जाता है, भावी जीवन उतना ही सुंदर और सुखमय होता है। इस आयु में पूर्ण ध्यान ज्ञानार्जन पर लगा देना चाहिए। अनुशासन के मार्ग पर चलकर विद्यार्थी सारा जीवन सफलतापूर्वक जीते हैं। अनुशासन से परिपूर्ण जीवन का अपना ही आनंद होता है।