टेलीविज़न का प्रभाव संकेत बिंदु:
- टेलीविज़न का प्रसार
- टेलीविज़न के कार्यक्रम
- हानियाँ-लाभ
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
टेलीविजन पर निबंध | Essay on Television In Hindi
आज घर-घर में टेलीविज़न पहुँच गया है। इसके साथ ही विभिन्न चैनलों के कार्यक्रम टी.वी. के माध्यम से पहुँच गए हैं। इन्होंने पारिवारिक संस्कृति को प्रभावित किया है। संस्कृति से तात्पर्य होता है लोगों के रीति-रिवाज, उनके रहन-सहन का ढंग, उनकी वेशभूषा, उनकी परंपराएँ, उनकी भाषा, विचारधारा और तीज-त्योहार। टेलीविज़न की संस्कृति ने प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित किया है।
जिधर देखते हैं उधर तू ही तू है,
तेरी ही चर्चा और तेरी खुशबू है।
टेलीविज़न मनोरंजन का सबसे सस्ता और सहज उपलब्ध साधन है। यह घर-घर में उपलब्ध है। इसे उठते-बैठते, खाते-पीते, काम करते हुए देखा जा सकता है। यह मनोरंजन ही नहीं ज्ञान का भी खजाना है। इसमें प्रत्येक आयु वर्ग के लिए कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। नन्हें-मुन्नों के लिए कार्टून और जादुई कार्यक्रम होते हैं। फ़िल्म प्रेमियों के लिए फ़िल्में दिखाई जाती हैं। संगीत प्रेमियों के लिए नवीनतम फ़िल्मी तथा निजी एलबमों के गीत प्रसारित होते हैं।
धार्मिक विचारधारा के लोगों के लिए संत-संतनियों के प्रवचनों के कार्यक्रम होते हैं। ज्ञान के पिपासुओं के लिए तो कई कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। विद्यार्थियों के लिए शिक्षा संबंधी और खिलाड़ियों के लिए खेल संबंधी अलग ही चैनल हैं।
टेलीविज़नी संस्कृति का प्रभाव बच्चों से लेकर बूढ़ों तक देखा जा सकता है। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ धारावाहिक प्रसारित हुए तो सभी ‘माताश्री’, ‘पिताश्री’ शब्दों का प्रयोग करने लगे। ‘कौन बनेगा करोड़पति’ प्रसारित होने लगा तो ‘ताला लगा दिया जाए’, ‘कान्फीडेंट, ‘कंप्यूटर जी’ आदि शब्द प्रचलन में आए। ‘डिस्कवरी’ और ‘नेशनल ज्योग्राफिकल’ चैनलों ने तो बच्चों तक का इतना ज्ञानवर्धन कर दिया है कि उनसे विभिन्न पशु-पक्षियों, देशों, ऋतुओं, मौसमों, समुद्रों, नदियों, पहाड़ों के विषय में पूछ लीजिए।
पंजाबी पॉप गायकों के नाम और गीतों के मुखड़ों पर कक्षाओं में अंत्याक्षरियाँ होने लगी हैं। परिवारों में विवाह, जन्म-दिन, पार्टियों आदि पर टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले गीतों की धुनों और गायक-गायिकाओं, नर्तकों-नर्तकियों के गीतों और नृत्यों पर बालक-बालिकाओं और युवक-युवतियों को गाते-नाचते देखा जा सकता है।
युवक-युवतियों की वेशभूषा अंतर्राष्ट्रीय रूप लेती जा रही है। टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले फ़ैशन-शो और सौंदर्य-प्रतियोगिताओं से प्रभावित किशोर और युवा वैसे ही वस्त्र सिलाते हैं। उनका व्यवहार भी परिवर्तित हो रहा है। क्रिकेट के घोटालों का भंडाफोड़ हुआ तो बच्चे-बच्चे की जबान पर ‘मैच फिक्सिंग’ शब्द आ गए।
गृहिणियों को भाँति-भाँति के व्यंजन बनाने के लिए कुकिंग-कक्षाओं में जाने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें पता है कि किस चैनल पर किस समय स्वादिष्ट पकवान बनाना सिखाया जाता है। वे आँख गड़ाए नमक, मिर्च, मसाले को देखती रहती हैं। उत्तर, दक्षिण, पूर्व, पश्चिम के सभी प्रकार के व्यंजनों को बनाना सरल हो गया है।
समाचारों के चैनल चौबीसों घंटे विश्व भर की घटनाओं की जानकारी देते रहते हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति के चुनावों के संबंध में सीधा प्रसारण होता है अमेरिका से और उसी समय बहस छिड़ जाती है रोशनलाल के रोहतक में बने ढाबे में। एड्ज़ रोग के कारणों से बालक-बालिकाएँ भी परिचित हो गए हैं। ‘पल्स पोलियो’ संबंधी सूचनाएँ टेलीविज़न गाँव-गाँव तक पहुँचा देता है। टेलीविज़न पर कौन क्या कार्यक्रम देखेगा, इस पर भाई-बहन, पति-पत्नी, चाचा-भतीजा झगड़ पड़ते हैं। दादा जी दूरदर्शन पर समाचार देखना चाहते हैं तो पोते जी कार्टून नेटवर्क लगाना चाहते हैं।
टेलीविज़न के कारण गली-मौहल्ले में लड़ाइयाँ कम होने लगी हैं। लोग टेलीविज़न के आगे बैठे-बैठे अपने आसपास के संसार को भुला देते हैं। उनके हाथ में ‘रिमोट’ होता है और वे अपनी इच्छानुसार चैनल पर चैनल बदलते चले जाते हैं। टेलीविज़नी संस्कृति प्रत्येक व्यक्ति को अपने साथ बाँध लिया है। प्रत्येक परिवार की संस्कृति को प्रभावित कर दिया है।
टेलीविज़नी संस्कृति ने सबसे अधिक बच्चों को प्रभावित किया है। वे टी.वी. के आगे बैठे रहते हैं। उनको खेलने तक की चिंता नहीं रहती। वे पढ़ाई की ओर ध्यान नहीं देते। वे टेलीविज़न के नशे में मस्त रहने लगे हैं। वे इस पर दिखाए गए कार्यक्रमों पर ही चर्चाएँ करते रहते हैं। टेलीविज़न अधिक समय तक देखते रहने के दुष्प्रभाव सामने आने लगे हैं। इससे आँखों के रोग बढ़े हैं। बालकों, किशोरों और युवाओं तक को चश्मे लगने लगे हैं।
इसके अतिरिक्त कमर दर्द के रोग बढ़ गए हैं। टेलीविज़न देखते रहने के कारण व्यक्ति एकाकी होता जा रहा है। उसमे सामाजिकता का भाव कम होता जा रहा है। वे एक-दूसरे से मिलने के स्थान पर टी.वी. के कार्यक्रम देखना अधिक पसंद करने लगा है। इससे आपसी संबंधों में आत्मीयता का भाव नष्ट होता ज टेलीविज़नी संस्कृति का दुष्प्रभाव किशोरों और युवाओं के चरित्र पर सर्वाधिक पड़ रहा है।
पश्चिमी देशों की नग्न संस्कृति ने भारतीय युवाओं को अपने रंग में रंग लिया है। वे अमर्यादित आचरण करने लगे हैं। स्कूलों और कॉलेजों में पढ़ रहे किशोरों की यौन समस्याओं के कारण माता-पिता चिंतित हो उठे हैं। टेलीविज़न पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रमों से अपराधों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। अपराधी नए-नए ढंग से अपराध करने लगे हैं।
बेरोज़गार युवा अपराध करके एक ही दिन में धनी हो जाने के सपने देखने लगे हैं। टेलीविज़नी संस्कृति से ज्ञान के नए-नए क्षेत्रों के संबंध में जानकारियाँ मिली हैं। लोगों के जीने के ढंग में परिवर्तन आया है। यह मनोरंजन का सस्ता और सर्वोत्तम साधन है। इसके साथ ही इसके दुष्प्रभाव भी स्पष्ट उजागर होने लगे हैं। युवाओं का चारित्रिक ह्रास होने लगा है। वे मादक द्रव्यों का अधिक सेवन करने लगे हैं। टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले उन कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगना चाहिए जिनसे किशोरों और युवाओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है।