Contents
NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – मौखिक परीक्षा
NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – मौखिक परीक्षा provide comprehensive guidance and support for students studying Hindi Core in Class 11. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication.
मौखिक परीक्षा (श्रवण तथा वाचन)
श्रवण तथा वाचन
श्रवण (सुनना)-वर्णित या पठित सामग्री को सुनकर अर्थग्रहण करना, वार्तालाप करना, वाद-विवाद, भाषण, कविता-पाठ आदि को सुनकर समझना, मूल्यांकन करना और अभिव्यक्ति के ढंग को समझना। 5
वाचन (बोलना)-भाषण, सस्वर कविता–पाठ, वार्तालाप और उसकी औपचारिकता, कार्यक्रम-प्रस्तुति, कथा–कहानी अथवा घटना सुनाना, परिचय देना, भावानुकूल संवाद-वाचन। 5
वार्तालाप की दक्षताएँ
टिप्पणी-वार्तालाप की दक्षताओं का मूल्यांकन निरंतरता के आधार पर परीक्षा के समय होगा। निर्धारित 10 अंकों में से 5 श्रवण (सुनना) के मूल्यांकन के लिए और 5 वाचन (बोलना) के मूल्यांकन के लिए होंगे।
श्रवण (सुनना) टिप्पणी का मूल्यांकन-
परीक्षक किसी प्रासंगिक विषय पर एक अनुच्छेद का स्पष्ट वाचन करेगा। अनुच्छेद, तथ्यात्मक या सुझावात्मक हो सकता है। अनुच्छेद लगभग 250 शब्दों का होना चाहिए। परीक्षक/अध्यापक को सुनते-सुनते परीक्षार्थी अलग कागज पर दिए हुए श्रवण-बोध के अभ्यासों को हल कर सकेंगे।
अभ्यास रिक्तस्थानपूर्ति, बहुविकल्पी अथवा सही-गलत का चुनाव आदि विधाओं में हो सकते हैं। आधे-आधे अंक के 10 परीक्षण-प्रश्न होंगे।
मौखिक अभिव्यक्ति (बोलना) का मूल्यांकन-
- चित्रों के क्रम पर आधारित वर्णन-इस भाग में अपेक्षा की जाएगी कि विवरणात्मक भाषा का प्रयोग करें।
- किसी चित्र का वर्णन-चित्र लोगों या स्थानों के हो सकते हैं।
- किसी निर्धारित विषय पर बोलना-जिससे विद्यार्थी/परीक्षार्थी अपने व्यक्तिगत अनुभव का प्रत्यास्मरण कर सकें।
- कोई कहानी सुनाना या किसी घटना का वर्णन करना।
टिपणी-
परीक्षण से पूर्व परीक्षार्थी को कुछ तैयारी के लिए समय दिया जाए।
● विवरणात्मक भाषा में वर्तमान काल का प्रयोग अपेक्षित है।
● निर्धारित विषय परीक्षार्थी के अनुभव-जगत् के हों; जैसे-
कोई चुटकला या हास्य प्रसंग सुनाना।
हाल में पढ़ी पुस्तक या देखे सिनेमा की कहानी सुनाना।
जब परीक्षार्थी बोलना आरंभ कर दे तो परीक्षक कम-से-कम हस्तक्षेप करें।
कौशलों के अंतरण का मूल्यांकन
(इस बात का निश्चय करना कि क्या विदयार्थी में श्रवण और वाचन की निम्नलिखित योग्यताएँ हैं।)
भावों-विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है-भाषा। मनुष्य जितनी सरल और शुद्ध भाषा का प्रयोग करता है, उतने ही प्रभावपूर्ण ढंग से भावों-विचारों का संप्रेषण कर सकता है।
अभिव्यक्ति कौशल मानव की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके माध्यम से व्यक्ति दूसरे को प्रभावित कर सकता है। इसके विपरीत बहुत कुछ जानने वाला व्यक्ति अभिव्यक्ति में अकुशल होने पर प्रभावित नहीं कर पाता है। इसके माध्यम से विद्यार्थी सहपाठियों, अध्यापकों को प्रभावित कर पुरस्कृत होते हैं तो नेतागण इसी कौशल के दम पर जनता का विश्वास जीतकर विजयी बनते हैं। यद्यपि विचारों की मौखिक अभिव्यक्ति सरल नहीं हैं तथापि लिखित अभिव्यक्ति की तुलना में इसे सरल नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि लिखित भाषा में त्रुटियों को सुधारने का समय और अवसर मिल जाता है पर मौखिक अभिव्यक्ति में नहीं। मौखिक अभिव्यक्ति में एक या अनेक व्यक्ति हमारे सामने हो सकते हैं पर लिखित अभिव्यक्ति हम अपने समय और सुविधा के अनुरूप कर सकते हैं। मौखिक अभिव्यक्ति सफलता की पहली सीढ़ी है, इसलिए छात्रों को मौखिक अभिव्यक्ति दक्षता बढ़ाने के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए-
● अपने भावों-विचारों को छोटे-छोटे वाक्यों में बाँध लेना चाहिए, जिससे अभिव्यक्ति आसान हो जाएगी।
● प्रयास यह होना चाहिए कि हम एक ही भाषा का प्रयोग करें, विभिन्न भाषाओं के शब्दों का प्रयोग एक ही वाक्य में करने से बचें।
● शुद्ध एवं सरल भाषा का प्रयोग करने के लिए अभ्यास करना चाहिए।
मौखिक अभिव्यक्ति के उधेश्य
● सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग करना, जिससे विचारों की अभिव्यक्ति बेहतर हो।
● किसी विषय पर तर्कसंगत संतुलित एवं भावपूर्ण विचार प्रस्तुत करना।
● आरोह, अवरोह, बलाघात आदि का प्रयोग करते हुए शुद्ध एवं स्पष्ट उच्चारण कर अभिव्यक्ति दक्षता को बढ़ाना।
● भावानुकूल शब्दों के अर्थ समझकर वाक्य प्रयोग दक्षता को बढ़ाना।
● सरस एवं रुचिकर भाषा का प्रयोग करना ताकि सुनने वालों की रुचि हमारी अभिव्यक्ति में बनी रहे।
● भाषा सरल, सहज, बोधगम्य, रुचिकर हो पर उसका प्रयोग अवसर और भावों के अनुरूप ही करना चाहिए।
मौखिक अभिव्यक्ति की विशेषताएँ
● अपनी अभिव्यक्ति को प्रभावी बनाने के लिए उच्चारण की शुद्धता आवश्यक है।
● अच्छी मौखिक अभिव्यक्ति में शुद्ध भाषा का प्रयोग आवश्यक होता है।
● वाक्य में पदक्रमों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। शिष्टाचार पूर्ण भाषा के प्रयोग से अभिव्यक्ति प्रभावी बनती है।
● अवसर के अनुरूप तथा अनुकूल भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
● बलाघात, अनुतान, यति-गति का यथास्थान प्रयोग किया जाना चाहिए।
● नि:संकोच बात करना, हिचकिचाहट न आने देने से भी भाव अभिव्यक्ति प्रभावी होती है।
मौखिक अभिव्यक्ति के विविध रूप
● गद्यांशों का वाचन ● भाषण
● काव्यांशीं का सस्वर वाचन ● संवाद
● काव्य-पाठ ● वाद-विवाद प्रतियोगिता
● वार्तालाप ● समाचार वाचन
● चित्र देखकर घटनाओं का मौखिक वर्णन ● आशुभाषण
● साक्षात् दृश्य का वर्णन ● टेलीफोन वार्ता
● कहानी सुनाना
मौखिक अभिव्यक्ति के विभिन्न रूप
श्रवण कौशल का मूल्यांकन
मनुष्य जो कुछ सुनता है उसी के अनुरूप अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। इसी प्रकार छात्र भी शिक्षक की बातें ध्यानपूर्वक सुनता है और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने का प्रयास करता है। इसी कौशल पर पठन-पाठन की कुशलता निर्भर करती है। इसके लिए अध्यापक कक्षा में पढ़ाए गए किसी पाठ पर किसी काव्यांश या गद्यांश पर प्रश्न पूछकर या कविता अथवा गद्य पाठ का मूल भाव संबंधी प्रश्न पूछ सकता है। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि जो अंश छात्रों को सुनाया जा रहा है वह उनके ही स्तर का होना चाहिए और इनका विषय छात्रों के जीवन से जुड़ा होना चाहिए।
गद्यांस
गद्य के इस अंश को ध्यानपूर्वक सुनकर और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर एक या दो शब्दों में देना होता है; जैसे-
तीन पर्वतीय अंचलों में बँटा हुआ है मेघालय-खासी पर्वत, गारो पर्वत और जयंतिया पर्वत। और इन्हीं तीन पर्वतीय अंचलों से जयंतिया पर्वत जिला। हर अंचल की अपनी अलग संस्कृति है, रीति-रिवाज, पर्व-उत्सव हैं, लेकिन हर कहीं पारिवारिक व्यवस्था मातृसत्तात्मक है-भूमि, धन, संपत्ति सब माँ से बेटी को मिलती है। “मातृसत्तात्मक व्यवस्था होने के कारण यहाँ नारी-शोषण की वैसी घटनाएँ नहीं होतीं, जैसी कि देश के अन्य भागों में देखने-सुनने को मिलती हैं।” संगमा कहते हैं।
स्त्री का यहाँ वर्चस्व है, यह अहसास गुवाहाटी से मेघालय की सीमा में घुसने के साथ ही होने लगता है। तमाम दुकानों पर स्त्रियाँ सौदा बेचतीं और बेहिचक बतियाती दिखाई देती हैं। शायद कमोबेश यह स्थिति पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी है, भले ही वहाँ मातृसत्तात्मक परिवार व्यवस्था न हो। कुछ साल पहले मणिपुर की राजधानी इंफाल में भी यही सब देखा था। स्त्रियों का एक पूरा-का-पूरा बाजार ही है वहाँ, जिसे ‘माइती बाजार’ कहते हैं-यानी माँ का बाजार। दिन-दोपहर हुई नहीं कि सिर पर सब्जी, कपड़ों या अन्य सामान के टोकरे रखे स्त्रियाँ इस बाजार में आ पहुँचती हैं। दिन-भर सामान की बिक्री कर शाम को अपने-अपने घर लौट पड़ती हैं। किसी प्रकार का वर्ग-भेद नहीं। यानी अमीर घरों की स्त्रियाँ भी इस ‘माइती बाजार’ में मिल जाएँगी और गरीब घरों की स्त्रियाँ भी। और यह बाजार केवल इंफाल में ही नहीं है, मणिपुर के हर नगर, कस्बे, गाँव में हैं-वहाँ की संस्कृति का एक अटूट सिलसिला।
परीक्षण प्रश्न
● गदय के इस अंश को ध्यानपूर्वक सुनिए और पूछे गए प्रश्नों के उत्तर एक या दो शब्दों में लिखिए-
जाकिर साहब से मिलने के लिए समय प्राप्त करने में देर नहीं लगती थी। एक बार मेरी एक सहेली ऑस्ट्रेलिया से भारत की यात्रा करने आई। अपने देश में वे भारतीयों की शिक्षा के लिए धन एकत्र किया करती थीं। एक भारतीय बच्चे को उन्होंने गोद भी ले लिया था। जाकिर साहब ने तुरंत उनसे मिलने के लिए समय दिया और देर तक बैठे। उनसे उनके कार्य, उनकी भारत यात्रा के बारे में सुनते रहे। हिंदी सीखने के बारे में एक बार जब उनसे प्रश्न किया तो उन्होंने कहा, “मेरे परिवार के एक बच्चे ने जब गाँधी जी से ऑटोग्राफ माँगा तो उन्होंने अपने हस्ताक्षर उर्दू में किए, उसी दिन से मैंने अपने मन में निश्चय कर लिया कि हिंदी भाषियों को अपने हस्ताक्षर हिंदी में ही दिया करूँगा।
एक बार रामलीला में जनता ने उनसे रामचंद्र जी का तिलक करने के लिए कहा। जाकिर साहब खुशी से आए और तिलक किया। इस पर कुछ उर्दू अखबारों ने एतराज किया। जाकिर साहब ने जवाब दिया, “इन नादानों को मालूम नहीं है कि मैं भारत का राष्ट्रपति हूँ। किसी खास धर्म का नहीं।”
जाकिर साहब राष्ट्रपति भवन में सादगी और विनम्रता के साथ कला-प्रियता को भी ले आए थे। उनकी आँखों में ब्रिटेन के अभिमान के अवशेष शीशे के टुकड़ों के समान खटके। उन्होंने मुगल उद्यान को न केवल सुरक्षित रखा, अपितु अपने व्यक्तित्व के वैभव से उसकी वृद्ध भी की। उनके समय में राष्ट्रपति भवन के बगीचों में 400 किस्म के नए गुलाब लगाए गए, अनेक रंग-बिरंगे पशु-पक्षी, हिरन, मोर, सारस, कबूतर, राजहंस आदि भारत के कोने-कोने से मैंगवा कर रखे गए। जानवरों से उनका इतना घनिष्ठ प्रेम था कि राष्ट्रपति भवन में उनके साथ उनका प्रिय तोता, मैना और गाय भी आए थे।
परीक्षण प्रश्न
पूछे गए प्रश्न
वार्तालाप
वार्तालाप को बातचीत अथवा संवाद भी कहा जा सकता है। सामान्यतया यह दो व्यक्तियों के बीच होता है। वार्तालाप में पूरी स्वाभाविकता होती हैं, किसी प्रकार का बनावटीपन नहीं।
विशेषताएँ-
- संवाद किसी भी विषय पर हो सकता है।
- संवाद क्रमबद्ध होते हैं।
- संवाद की भाषा शालीन एवं मर्यादित होती है।
फिल्मों में बढ़ती अश्लीलता पर दो सहेलियों की बातचीत।
सुमन – अरे पूनम! इस समय कहाँ से आ रही हो? कुछ परेशान सी लग रही हो?
पूनम – घर बैठे-बैठे बोर हो रही थी। सोचा, चलो फिल्म देख आते हैं।
सुमन – यह तो अच्छा किया, पर ये तो बताओ कि कौन-सी फिल्म देखी तुमने?
पूनम – जिस्म।
सुमन – जिस्म! यह कैसा नाम है? क्या किसी देवी-देवता द्वारा शरीर की महत्ता बताती कोई फिल्म है यह?
पूनम – क्या कहूँ, सुमन, सोचा था, फिल्म का विषय नया होगा, फिर पास के एकमात्र सिनेमाहाल में यही फिल्म लगी थी। सोचा दूर जाकर पैसे क्यों बरबाद करना, पर किराया बचाना अच्छा नहीं रहा।
सुमन – क्या मतलब, क्या कहानी और गीत अच्छे नहीं थे?
पूनम – अरे नहीं, कुछ देर तक कहानी तो ठीक-ठाक चली पर बाद में अश्लील दृश्य आने शुरू हो गए। कहानी और इन दृश्यों में कोई तालमेल नहीं था। अच्छा रहा कि बच्चों को साथ नहीं लाई। हाँ, कुछ गीत ठीक थे।
सुमन – ठीक कहती हो पूनम। आज हर फिल्म में अश्लीलता, फूहड़पन, हिंसा, बलात्कार जैसे दृश्यों का बोलबाला रहता है। पता नहीं सेंसर बोर्ड इन दृश्यों को कैसे पास कर देता है।
पूनम – अब तो दूरदर्शन पर फिल्मों के ट्रेलर भी अश्लीलता का स्पर्श करने लगे हैं।
सुमन – ठीक कहती हो पूनम। कल ‘पाप’ फिल्म का ट्रेलर आ रहा था। मेरा बेटा काव्य बोल उठा, “मम्मी चैनल बदल दो”। यह कहकर उठ गया और पति शरारत से मेरी ओर देखने लगे। ऐसा लगता है कि फिल्मों में नग्नता के सिवा अब कुछ बचा ही नहीं है। पर ऐसा क्यों है?
पूनम – फिल्मों के निर्माता ऐसे दृश्यों को कहानी की माँग बताकर फिल्माते हैं। अब तो उन्होंने इसे व्यवसाय बना लिया है।
सुमन – पर व्यवसाय तो मर्यादित तरीके से भी किया जा सकता है।
पूनम – आजकल व्यवसाय से अधिकाधिक कमाने के लिए लोग अनैतिक तरीके अपनाने से परहेज नहीं करते। अब देखो न प्रसारण मंत्रालय इन दृश्यों पर कैंची क्यों नहीं चलाता और फिल्में पास कर देता है।
सुमन – ऐसे फिल्म निर्माताओं पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। वे हमारी संस्कृति को खराब कर रहे हैं।
पूनम – देखो सुमन, वे तो केवल फिल्में बनाते हैं, पर हमारा समाज भी कम दोषी नहीं है। हम ऐसी फिल्में देखने ही क्यों जाते हैं। पर देखो न, आठ सप्ताह से यह फिल्म हाउसफुल जा रही है, जिसके दृश्य याद कर घृणा आती है।
सुमन – तो क्या इस समस्या का कोई हल नहीं है?
पूनम – समय आने पर सबका हल मिल जाएगा।
सुमन – मुझे तो लगता है कि हमारी युवा पीढ़ी को ही आगे आना चाहिए।
पूनम – तुम ठीक कहती हो सुमन, हमारी युवा पीढ़ी शीघ्र ही ऐसे दृश्यों से ऊब जाएगी और वह ऐसी फिल्में देखना पसंद ही नहीं करेगी।
सुमन – तब शायद एक बार फिर अच्छी फिल्मों का दौर आ जाए।
पूनम – तुम्हारी बातें जरूर सच होंगी सुमन। अच्छा मैं चलती हूँ।
सुमन – फिर मिलेंगे। अच्छा नमस्ते।
पूनम – नमस्ते।
परीक्षण प्रश्न
वाद-विवाद
किसी भी विषय के पक्ष अथवा विपक्ष में तर्कपूर्वक अपने विचार रखना ही वाद-विवाद कहलाता है। वाद-विवाद अनेक संस्थाओं द्वारा आयोजित कराया जाता है, जिसका उद्देश्य जन-जागरूकता फैलाना है, जिससे लोगों का ध्यान उस ओर आकृष्ट हो। वात् विवाद में दो पक्ष होते हैं- 1. समर्थन करने वाला (पक्ष) 2. विरोध करने वाला (विपक्ष)।
वाद-विवाद के समय
● वक्ता को स्पष्ट करना चाहिए कि वह पक्ष में बोल रहा है या विपक्ष में।
● वाद-विवाद में शालीन एवं मर्यादित भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
● वाद-विवाद में तार्किक एवं प्रामाणिक बातें कहना चाहिए।
● अपनी बातों के समर्थन में आवश्यकतानुसार आक्रमता का हल्का पुट रखना चाहिए।
● वाद-विवाद के लिए चयनित विषय के सभी उप पक्षों पर विचार स्पष्ट करना चाहिए।
● अपनी बातों के विशेष तथ्य अध्यक्ष महोदय को संबोधित करते हुए कहना चाहिए।
● समय-समय पर विरोधी वक्ता के कथनों का आवश्यकतानुसार उद्धरण अवश्य देना चाहिए।
विषय – क्या आतंकवादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना चाहिए?
प्रस्तोता – आज के इस कार्यक्रम के अध्यक्ष महोदय, निर्णायक मंडल के सदस्यगण, प्रधानाचार्य जी, आदरणीय गुरुजन एवं उपस्थित छात्र भाइयो! जैसा कि आप जानते हैं कि आज की वाद-विवाद प्रतियोगिता का चयनित विषय है’क्या आतंकवादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना चाहिए?”, जिस पर विद्यालय के दो छात्र मनोज और सुबोध अपने-अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। आप सभी इनके विचारों को सुनकर इनका उत्साहवर्धन करें। पहला अवसर मैं मनोज को देता हूँ जो विषय के पक्ष में अपने विचार रखेंगे। आइए, मनोज।
मनोज – (पक्ष में) – परमादरणीय अध्यक्ष महोदय! आज की वाद-विवाद प्रतियोगिता के विषय ‘क्या आतंकवादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना चाहिए’? के पक्ष में मैं अपने विचार रखना चाहता हूँ। आशा है कि आप लोग मेरे विचारों को ध्यान से सुनेंगे और उचित विचारों की सराहना करेंगे।
अध्यक्ष महोदय! हमारे शास्त्रों में कहा गया है, ‘शठे शाठयम् समाचरेत’। अर्थात् दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिए। हम सभी जानते हैं कि स्वतंत्रतापूर्व पाकिस्तान भी हमारे देश का अंग हुआ करता था पर अंग्रेजों की घटिया नीति के कारण देश का विभाजन हो गया और पाकिस्तान जो कल तक हमारे देश का अंग था, आज हमारा कट्टर दुश्मन बन बैठा है। वह हर प्रकार से देश को कमजोर करने की कोशिशें करता रहता है। वह आतंकवादियों को प्रशिक्षण देकर हमारे देश में घुसपैठ कराता है जिससे जान-माल की अपार क्षति हो रही है और देशवासियों की शांति छिन रही है।
अध्यक्ष महोदय! भारत एक शांतिप्रिय देश रहा है, जिसे युद्धों से परहेज रहा है। इसने आक्रमणकारियों को भी सुधरने का भरपूर अवसर दिया, पर ये आतंकी सुधरने के बजाए बिगड़ते गए। आतंकवादियों के पकड़े जाने पर उन्हें मौत के घाट न उतारकर उन्हें अपना पक्ष रखने का भरपूर अवसर दिया गया जाता है। हमने अपनी सांस्कृतिक परंपरा के अनुसार ‘क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात’ का अनुसरण किया और अनेक बार आतंकी तैयार करने वाले राष्ट्र को माफ किया।
अध्यक्ष महोदय! शायद आतंकवादियों ने हमारी इसी विनम्रता को दुर्बलता समझ लिया और उद्दंडता दिखाते हुए संसद हमला, लालकिला हमला, दिल्ली बम धमाके, हैदराबाद बम धमाके, मुंबई सिलसिलेवार बम विस्फोट जैसे घिनौने कृत्यों को अंजाम दिया, जिनमें सैकड़ों लोगों की जानें गई और हजारों लोग घायल हुए तथा न जाने कितनी संपत्ति का नुकसान हुआ।
मेरा मानना है कि आतंकवादियों ने हमारी सहनशक्ति का खूब फायदा उठाया है। अब वह समय आ गया है कि हम इन आतंकवादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब दें, क्योंकि इसके अलावा उन्हें कोई और भाषा समझ में ही नहीं आती। ‘न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी’ की तर्ज पर हमें आतंक फैलाने वालों के साथ कठोर-से-कठोर व्यवहार करना चाहिए ताकि कोई आतंकी बनकर भारत की ओर कदम बढ़ाने से पहले सौ बार सोचे।
धन्यवाद।
सुभोध – (विपक्ष में) आदरणीय अध्यक्ष महोदय, निर्णायक मंडल के सदस्यगण, प्रधानाचार्य जी एवं उपस्थित छात्र बंधुओ! अभी मेरे साथी मनोज ने ‘क्या आतंकवादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना चाहिए?” के पक्ष में अपने विचार आप सभी के सामने रखे। अब मैं अत्यंत विनम्र शब्दों में अपने विचार इस विषय के विपक्ष में आप सभी के सामने रखना चाहता हूँ।
अध्यक्ष महोदय! अभी-अभी मेरे साथी मनोज ने कहा कि ‘शठे शाट्यम् समाचरेत’, पर वे यह नहीं बता सके कि इतिहास में कितनी बार या शास्त्रों में ऐसा कितनी बार हुआ है। यदि ऐसा एकाधबार हुआ भी है तो इसे सार्वकालिक नियम माना या बनाया नहीं जा सकता है। एकाधबार की घटना को हमेशा अपवाद ही माना गया है। उनका यह कहना सत्य है कि पड़ोसी देश हमारे देश से दुश्मनी की भावना रखता है और आतंकी तैयार कर भारत की सीमा में घुसपैठ कराता है, पर क्या इसका अंतिम उपाय बस यही बचा है कि आंतकियों की गोली का जवाब गोली से दिया जाए। मैं जानना चाहता हूँ क्या इससे स्थायी शांति मिल सकती है। हो सकती है कि बाहरी शांति और समस्या का क्षणिक समाधान भले मिल जाए पर मानसिक शांति और स्थायी हल नहीं निकल सकता है। इतिहास में मौर्य सम्राट अशोक ने क्या शांति प्राप्त कर ली थी? नहीं न। आखिर उसे शांति के लिए तथागत गौतम बुद्ध की शरण में जाना ही पड़ा था। महाभारत युद्ध में विजयी पांडव और युधिष्ठिर ने कौरवों को उन्हीं की भाषा में जवाब दिया पर वे स्वयं भी चैन से नहीं रह सके।
अध्यक्ष महोदय, मेरे योग्य साथी ने कहा कि ‘सुधरने का अवसर दिए जाने पर ये आतंकवादी और भी बिगड़े हैं” पर ऐसा नहीं है। आज भी अनेक उदाहरण ऐसे हैं जब आतंकियों को सुधरने का अवसर दिया गया तो वे अपना हथियार त्याग देश की मुख्य धारा में शामिल हुए और उन्होंने कोई असामाजिक कार्य नहीं किया। मैं तो कहूँगा कि यदि आतंकवाद को रोकना है, नए आतंकी को देश में आने से रोकना है तो सीमा की गहन चौकसी की जानी चाहिए। देश विरोधी कार्यों करने वाले की सूचना मिलते ही उसे प्राथमिक स्तर पर ही सुधारा जाना चाहिए। न्याय प्रणाली में सुधार होना चाहिए और असंतुष्टों के साथ मिल-बैठकर बातचीत की जानी चाहिए, क्योंकि हिसा का जवाब हिंसा न कभी हुआ है और न कभी होगा। अत: आतंकवादियों की गोली का जवाब गोली से न देकर सौहाद्रपूर्ण वातावरण में बातचीत के माध्यम से समझा-बुझाकर उन्हें मुख्यधारा में जोड़ने का पूर्ण प्रयास किया जाना चाहिए।
धन्यवाद।
परीक्षण प्रश्न
कविता
1. नीचे दी जा रही कवि मैथिली शरण गुप्त की कविता का पठन कीजिए-
परीक्षण प्रश्न
2. सुमित्रानंदन पंत की निम्नलिखित कविता का पठन कीजिए
परीक्षण प्रश्न
वाचन कौशल का मूल्यांकन
वाचन का अर्थ है-बोलना। इसका मूल्यांकन निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है-
भाषण
भाषण को मौखिक अभिव्यक्ति के वाचन पक्ष का उत्कृष्ट रूप कहा जाता है। छात्रों एवं लोगों को भाषण देने के विविध अवसर मिलते हैं। भाषण के माध्यम से ही नेता सत्ता के केंद्र तक पहुँच जाते हैं तथा विक्रय प्रतिनिधि लोगों को अपने वश में कर अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं। भाषण देते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
- यथासंभव भाषण को कंठस्थ कर लेना चाहिए।
- आईने के सामने खड़े होकर उचित भाव-भंगिमा के साथ भाषण का अभ्यास करना चाहिए।
- सरल, सहज और बोधगम्य भाषा का प्रयोग करना चाहिए, जिसे सभी समझ सकें।
- भाषण में शामिल कहावतें, लोकोक्तियाँ, मुहावरे और सूक्तियाँ इसे रोचक बनाती हैं।
- भाषण से पूर्व उचित ढंग से उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों व अध्यक्ष महोदय को संबोधित करना चाहिए।
- भाषा में आरोह-अवरोह का भी ध्यान रखना चाहिए।
1. भाषण के उदाहरण
आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, अध्यापकगण एवं मेरे प्रिय साथियो! मैं आपके सम्मुख ‘वर्तमान में नारी शिक्षा की आवश्यकता’ विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ। आशा है आप लोग इसे ध्यान से सुनेंगे।
शिक्षा प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है। मनुष्य से हमारा तात्पर्य पुरुष एवं नारी से है। शिक्षा के बिना व्यक्ति का जीवन अधूरा है। पेट तो पशु भी भरते हैं, किंतु पुरुष अथवा नारी केवल पेट भरकर ही जीवन-यापन नहीं कर सकते। शिक्षित और अशिक्षित व्यक्ति के जीवन में बहुत अंतर है। ‘बिना पढ़े नर पशु कहलावै’ अक्षरश: सत्य है। अच्छाई-बुराई का निर्णय शिक्षित ही ले पाता है। अशिक्षित को केवल पेट भरने का कार्य पता होता है, परंतु वह स्तरीय जीवन व्यतीत नहीं कर सकता।
नारी जगत् की अनदेखी प्रारंभ से ही की जा रही है। इसका कारण उनकी अशिक्षा रही है। इसे घर की चारदीवारी में बंद करके मात्र सेविका अथवा मनोरंजन का साधन समझा जाता रहा है। आजादी के बाद भी गाँवों में लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूल नहीं होते थे। दूर के स्कूलों में ग्रामीण अपनी लड़कियों को शिक्षा ग्रहण करने नहीं भेजते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि नारी हर क्षेत्र में पिछड़ गई।
नारी सबको जन्म देने वाली है। माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी, सबकी जन्मदात्री नारी है। उस पर सब तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। उनका कार्य बच्चे उत्पन्न करना, पालन-पोषण करना और परिवारजनों की सेवा करना मात्र है। प्रतिबंध लगाने वाले यह भूल जाते हैं कि बालक पर नारी के संस्कारों का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। नारी के गुणों का समावेश की नीरू में क्यों में होता है पिरवारक संर्ण किस नारीप वर्ष होता है। अतः नारी का शिक्षित होना अति आवश्यक हो।
नारी को शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार वैदिक काल में था। अनेक ग्रंथों में महिला रचनाकारों का नाम मिलता है। वेद व पुराणों में स्पष्ट कहा गया है कि नारी के बिना पुरुष कोई भी कार्य संपन्न नहीं कर सकता। इसी कारण महिलाओं को शिक्षा दी जाती थी। समय बदलने के साथ-साथ महिला की शिक्षा के अधिकार से वंचित किया जाने लगा।
नारी मनुष्य को हर क्षेत्र में सहयोग करती है। महाभारत, रामायण आदि महाकाव्यों से पता चलता है नारी ने विजय प्राप्त कर ध म की स्थापना में सहयोग दिया है। आजादी के संघर्ष में भी नारियों ने पुरुषों का कंधे-से-कंधा मिलाकर साथ दिया। आज नारी जागृत हो चुकी है। नारी जाति की जागृति देखकर ही पुरुष को विवश होकर उसके लिए शिक्षा के द्वार खोलने पड़ रहे हैं। आज सरकार भी नारी-शिक्षा के लिए प्रयासरत है। सरकार अपने स्तर पर गाँव स्तर तक स्कूलों व कॉलेजों की स्थापना कर रही है तथा नारी-शिक्षा को बढ़ावा देने वाली संस्थाओं को अनुदान देती है। तकनीकी शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं को बड़े पैमाने पर नियमों में छूट दी जा रही है। आज तो मुक्त कंठ से कहा जा रहा है
‘पढ़ी-लिखी लड़की, रोशनी घर की’
नारी-शिक्षा का ही परिणाम है कि आज प्रत्येक विभाग में नारी को स्थान मिल रहा है और वे उत्तम कार्य कर अपनी कार्य-कुशलता का परिचय दे रही हैं। शिक्षित लड़कियाँ घर की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर रही हैं। इससे दहेज समस्या भी कम हुई है। इसके अलावा पर्दा प्रथा, शिशु हत्या आदि कुप्रथाओं में भारी कमी आई है।
निष्कर्षत: हम कह सकते हैं कि नारी-शिक्षा का विशेष महत्व है। समय की माँग है कि महिलाओं को साथ लिए बिना देश का पूर्ण विकास संभव नहीं। आज नारी शिक्षा के कारण स्वावलंबी बनती जा रही है परंतु यह समग्र रूप से पूरे देश में नहीं हो पा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की तुलना में काफी पिछड़ापन है। अत: नगरों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में नारियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
परम आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, गुरुजन एवं मेरे प्रिय सहपाठियो! मैं आपके सम्मुख परोपकार की महत्ता विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करना चाहता हूँ। आशा है कि आप सभी इसे ध्यान से सुनने का कष्ट करेंगे-
परोपकार के संबंध में हमारे ऋषि-मुनियों ने, हमारे धर्म-ग्रंथों में अनेक प्रकार से चर्चाएँ की हैं। केवल चर्चाएँ ही नहीं की अपितु उन्हें अमल भी किया है। जीवन की सार्थकता परोपकार में ही निहित है, इसके लिए उन्होंने जो सिद्धांत बनाए उसके अनुसार स्वयं उस पर चले।
इसी संदर्भ में श्री तुलसीदास जी ने कहा है-
परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई’।।
परोपकार हेतु प्रकृति भी सदैव तत्पर रहती है। प्रकृति की परोपकार भावना से ही संपूर्ण विश्व चलायमान है। प्रकृति से प्रेरित होकर मनुष्य को परोपकार के लिए तत्पर रहना उचित है। प्रकृति के उपादानों के बारे में कहा जाता है कि वृक्ष दूसरों को फल देते हैं, छाया देते हैं, स्वयं धूप में खड़े रहते हैं। कोई भी उनसे निराश होकर नहीं जाता है। उनका सब कुछ परार्थ के लिए होता है। इसी प्रकार नदियाँ स्वयं दूसरों के लिए निरंतर निनाद करती हुई बहती रहती हैं। इस प्रकार संपूर्ण प्रकृति आचरण से लोगों को परोपकार का संदेश देती हुई दिखाई देती है।
भारतीय-संस्कृति में परोपकार के महत्व को सर्वोपरि माना गया है। भारत के मनीषियों ने जो उदाहरण प्रस्तुत किए, ऐसे उदाहरण धरती क्या संपूर्ण ब्रहमांड में भी नहीं सुने जाते हैं। यहाँ महर्षि दधीचि की परोपकार भावना से प्रेरित होकर देवता भी सहायता के लिए उनसे याचना करते हैं और महर्षि अपने जीवन की चिंता किए बिना सहर्ष उन्हें अपनी हड्डयाँ तक दे देते हैं। याचक के रूप में आए इंद्र को दानवीर कर्ण अपने जीवनरक्षक कवच और कुंडलों को अपने हाथ से उतारकर दे देते हैं। राजा रंतिदेव स्वयं भूखे रहकर आए हुए अतिथि को भोजन देते हैं। इन उदाहरणों के आधार पर मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि यहाँ की संस्कृति में अतिथि को देवता समझते हैं।
मित्रो! परोपकार में स्वार्थ की भावना नहीं होती है। आज परोपकार में मनुष्य अपना स्वार्थ देखने लगा है। वणिक-बुद्ध से अपने हानि की गणना कर परोपकार की ओर प्रेरित होता है। इस भावना के प्रादुर्भाव से पारस्परिक वैमनस्यता बढ़ी है। लोगों में दूरियाँ बढ़ी हैं। आपद्-समय में भी हम सहायता करना भूलते जा रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति एकाकी जीवन जीने का आदी होता जा रहा है। सामूहिकता की भावना नष्ट होती जा रही है, क्योंकि आज हम परोपकार से दूर होते जा रहे हैं।
लेकिन मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि जीवन में सुख की अनुभूति परोपकार से होती है। स्वयं प्रगति की ओर बढ़ते हुए दूसरों को अपने साथ ले चलना मनुष्य का ध्येय होगा तो सम्पूर्ण मानवता धन्य होगी। मात्र अपने स्वार्थ में डूबे रहना तो पशु प्रवृत्ति है। मनुष्यता से ही मनुष्य होता है। जिस दिन परोपकार की भावना पूर्णत: समाप्त हो जाएगी उस दिन धरती शस्य-स्यामला न रहेगी, माता का मातृत्व स्नेह समाप्त हो जाएगा।
सरस्वर वाचन और कविता-पाठ
कविता वाचन भी एक कला है। निरंतर अभ्यास द्वारा इस कला को विकसित और परिष्कृत किया जा सकता है। कविता वाचन करते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-
- कविता वाचन में उच्चारण शुद्धता पर ध्यान देना चाहिए।
- कविता पूरी तरह कंठस्थ होनी चाहिए ताकि बीच में रुकना न पड़े या कविता की प्रति न ढूँढ़ना पड़े।
- कविता की भाषा का स्तर श्रोताओं के ज्ञान एवं रुचि के अनुरूप होना चाहिए।
- कविता में भावों के स्पष्टीकरण यथा स्थान रुककर पठन करना चाहिए।
- भावानुसार स्वर में उतार-चढ़ाव, गति-लय, अनुप्तान, बलाघात का ध्यान रखना चाहिए।
- कविता के मूल संदेश या मूल भाव वाली पंक्तियों को दोहराना चाहिए। ये पाठकों पर विशेष प्रभाव छोड़ती हैं।
- कविता पाठ करते समय स्वयं भावों में डूब जाना चाहिए।
- जब श्रोता तालियाँ बजा रहें हो तब कविता-पाठ नहीं करना चाहिए।
पथ की पहचान
झाँसी की रानी की समाधि पर
परिचर्चा
किसी समसामयिक विषय पर कुछ विशेषज्ञों द्वारा किया जाने वाला विचार-विमर्श परिचर्चा कहलाता है। उनकी परिचर्चा का आरंभ संचालक द्वारा विषय आरंभ कराने से होता है। इसके बाद विशेषज्ञ बारी-बारी से अपने-अपने विचार उनके बीच रखते हैं। संचालक उसमें अपने व्यक्तिगत विचार उनके बीच नहीं रखता है पर जब किसी मुद्दे पर उत्तेजित हो कोई विशेषज्ञ विषय से हट कर बातें करने लगता है तो संचालक उन्हें वापस विषय पर लाता है। वह सदस्यों या विशेषज्ञों के बीच की कड़ी होता है। परिचर्चा के अंत में निष्कर्ष बताते हुए वह समापन की घोषणा करता है।
विद्यालय में परिचर्चा के कुछ निम्नलिखित विषय हो सकते हैं-
- शिक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता
- विद्यार्थियों में बढ़ती अनुशासनहीनता
- गिरिता शिक्षा स्तर
- पुस्तकालय कितना उपयोगी
- हरियाली कैसे बढ़ाएँ
- पानी कैसे बचाएँ
- स्वच्छता को आदत बनाएँ आदि।
समाचार वाचन
जनसंचार माध्यमों से मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी बदलाव आया है। इन माध्यमों में समाचार-पत्र, टेलीविजन, रेडियो, पत्र-पत्रिकाएँ आदि प्रमुख हैं। समाचार-पत्र शिक्षित मनुष्य की आवश्यकता बन गए हैं। विद्यार्थियों में समाचार पठन की स्वस्थ आदत विकसित करने से उनके ज्ञान और जागरूकता में वृद्ध होगी तथा स्वस्थ मनोरंजन भी होगा। इसकी शुरूआत प्रार्थना-स्थल से की जा सकती है। प्रत्येक विद्यार्थी समाचार-पत्र से कुछ पंक्तियाँ पढ़कर आए और क्रमानुसार विद्यालय के प्रार्थना-स्थल पर सुनाए। इससे विद्यार्थियों की वाचन कला का विकास होगा और अन्य छात्रों का ज्ञानवर्धन होगा। समाचार-पत्र, दूरदर्शन और रेडियो जैसे स्रोतों से समाचार संकलन किया जा सकता है।
समाचार वाचन को प्रभावी बनाने के लिए-
● शुद्ध और स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए।
● समाचार की प्रस्तुति संक्षेप में की जानी चाहिए।
● समाचारों की पुनरुक्ति नहीं होनी चाहिए।
● समाचारों की भाषा सरल तथा वाक्य छोटे-छोटे होने चाहिए।
● समाचार वाचन की गति न बहुत द्रुत हो और न अत्यंत सुस्त या धीमी। इसके लिए संतुलित गति अपनाना चाहिए।
उदाहरण
सीधे बुक होंगे कम्युनिटी हॉल
नई दिल्ली (प्र. सं.)। पूर्वी नगर निगम के सदन की बैठक में मंगलवार को कमिश्नर एसएस यादव ने जानकारी दी कि निगम के कम्युनिटी हॉल की बुकिंग कोई भी व्यक्ति निगम से संपर्क करके करा सकेगा। इसके लिए उपराज्यपाल ने आदेश दे दिए हैं।
निगम के कम्युनिटी हॉल बुक कराने के लिए काउंसलर के अनुमति पत्र की आवश्यकता होती है। यह पत्र पेश करने पर ही निगम का सामुदायिक सेवा विभाग कम्युनिटी सेंटर की बुकिंग करता है। काउंसलर अपने कार्यालय में एक रजिस्टर रखते हैं जिसमें उस व्यक्ति का नाम दर्ज किया जाता है जो कम्युनिटी सेंटर लेने के लिए संपर्क करता है। लोगों को यही रजिस्टर देखकर बताया जाता है कि जिस तिथि में सेंटर चाहिए, उस दिन बुकिंग है या नहीं, लेकिन उपराज्यपाल के आदेश के बाद अब सीधे निगम से संपर्क करके कम्युनिटी हॉल बुक कराया जा सकेगा।
यदि पहले से हॉल बुक नहीं होगा तो आप शुल्क जमा करके उसे बुक करा सकेंगे। इसका पार्षद विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि यदि पार्षदों की भूमिका खत्म कर दी जाएगी तो वार्ड के बाहर रहने वाले लोग हॉल बुक करा लेंगे।
मुंबई। जेट एयरवेज ने हवाई यात्रा के टिकटों की महासेल लगाते हुए 50 फीसदी डिस्काउंट पर टिकट बुक कराने ऑफर दिया है।
जेट एयरवेज ने घरेलू नेटवर्क पर एक तरफ की यात्रा के लिए न्यूनतम 2250 रुपये के विशेष किराये की मंगलवार को पेशकश की है। कंपनी ने 57 गंतव्यों के लिए 20 लाख सस्ती सीटों की पेशकश की है। इसके तहत 23 फरवरी तक आप इस साल के 31 दिसंबर तक किसी भी तारीख के टिकट बुक करा सकते हैं।
ऑफर में 750 किलोमीटर तक के टिकट 2,250 रुपये में, 1400 किलोमीटर तक 3,300 रुपये और उससे ज्यादा दूरी के टिकट 3,800 रुपये में उपलब्ध है। (एजेंसी)
बिजली कंपनी की गलती से तीन परिवार अंधेरे में
नई दिल्ली। पंकज रोहिला। बीएसईएस की लापरवाही से एक बिल्डिंग में रह रहे तीन परिवारों को छह दिनों से बिना बिजली के रहना पड़ रहा है। ये परिवार मयूर विहार फेज-1 में रहते हैं। बिजली कंपनी ने करीब 3.60 लाख का बकाया बताकर इनके तीन घरेलू मीटर उखाड़ दिए हैं, जबकि जाँच में राशि बकाया नहीं होने की बात सामने आई है। बिजली कंपनी ने इसे कंप्यूटर से हुई गड़बड़ी बताई है और जल्द ही बिल्डिंग में मीटर लगाने का आश्वासन दिया है।
यह मामला मयूर विहार फेज-1 के पटपड़गंज इलाके स्थित बंसल भवन का है। इस परिसर में तीन परिवार रहते हैं। भवन के बिल नंबर 270220060011 पर तीन घरेलू मीटर लगे थे। 2006 से पहले इस मकान पर बीएसईएस की राशि बकाया थी और इसके बाद यह मामला कोर्ट में गया था। जहाँ उपभोक्ताओं और कंपनी के बीच समझौता हो गया था। भुगतान के बाद उपभोक्ताओं को क्लीनचिट मिल गई थी। इसके बाद कंपनी ने बकाया राशि न होने का प्रमाण-पत्र भी जारी कर दिया था। मामले के निपटारे के बाद बीएसईएस की तरफ से पाँच-सात बार टीमें आई और इन्हें कंपनी की ओर से जारी प्रमाण-पत्र दिखाया गया। इसके बाद 15 फरवरी को परिसर में पहुँची टीमों ने वहाँ रहने वाली महिला से मीटर जाँच का हवाला दिया था और मीटर ले गए। इसके बाद से ही यहाँ के परिवार बिना बिजली के रह रहे हैं। परिवार के लोगों को जल्द बिजली कनेक्शन जोड़ने का आश्वासन तो दिया गया है लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया है कि कब तक यह कार्य पूर्ण कर दिया जाएगा। कंपनी की लापरवाही का खामियाजा उपभोक्ताओं को झेलना पड़ रहा है। वहीं, बीएसईएस प्रवक्ता सी.पी. कामत का कहना है कि परिसर पर कोई राशि बकाया नहीं और कंप्यूटर रिपोर्ट में स्थिति स्पष्ट न होने की वजह से यह लापरवाही हुई है।
(तीनों समाचार 20 फरवरी, 2013 के हिदुस्तान दैनिक से साभार)
कहानी सुनाना
कहानी शब्द का नाम आते ही मन उल्लसित हो जाता है। कहानी सुनना और सुनाना दोनों ही रोचक लगता है। यह मौखिक अभिव्यक्ति को सबसे रोचक, प्रभावपूर्ण एवं सशक्त माध्यम है। कहानी सुनाते समय निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान देना चाहिए-
● कहानी सुनाने के लिए रोचक, मनोरंजन ज्ञानवर्धक संक्षिप्त कहानी का चुनाव करना चाहिए।
● घटनाक्रम के अनुसार स्वर में आरोह-अवरोह आवश्यक है।
● कहानी पूर्णतया कंठस्थ होनी चाहिए जिससे बीच में अटकना न पड़े।
● कहानी सुनाते समय सरल भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए।
● पंचतंत्र, हितोपदेश तथा पुराणों की कहानियाँ सुनाने को प्राथमिकता देना चाहिए।
● कहानी के अंत में नैतिक बातों या उसमें निहित शिक्षा का उल्लेख करना चाहिए।
उदाहरण
1. आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, अध्यापकगण एवं मेरे सहपाठियो! आज मैं आपको एक कहानी सुनाता हूँ, जिसका शीर्षक है-
सच बालक।
यह कहानी उस समय की है जब यातायात के साधनों का विकास नहीं हुआ था। लोग पैदल, ऊँटों, घोड़ों तथा बैलगाड़ियों से यात्रा किया करते थे। रेगिस्तानी इलाकों में ऊँट ही आवागमन का एकमात्र साधन था। प्राय: लोग पैदल यात्रा किया करते थे। यह कहानी भी कुछ ऐसे ही इलाके से संबंधित है।
बगदाद में अब्दुल कादिर नामक एक बालक अपने परिवार के साथ रहता था। उसकी नानी का घर उसके घर से काफी दूर था। एक बार उसकी माँ ने उसे नानी से मिलने के लिए भेजा। दस वर्षीय अब्दुल कादिर को रेगिस्तानी इलाके में सुनसान रास्ते पर भेजना खतरे से खाली न था। ऐसे रास्तों पर सदैव डाकुओं का भय बना रहता था। डाकुओं से बचने के लिए यात्री समूह बनाकर यात्रा किया करते थे। कादिर की माँ को उसकी नानी के पास कुछ अशर्फियाँ भिजवानी थी। उसने कुछ उपाय सोचा और इन अशर्फियों को कादिर की सदरी के अस्तर में छिपाकर सिल दिया, जिससे किसी को इनका पता न चले। उसने इन्हें अपनी माँ को देने के लिए कादिर से कहा। अगले दिन प्रात: कादिर जब नानी के घर जाने के रवाना हुआ तो उसकी माँ ने कादिर से कहा, “बेटा! झूठ मत बोलना। झूठ बोलना पाप है।” उसने कादिर को व्यापारियों के काफिले के साथ कर दिया जो उसी रास्ते से जा रहा था। चलते-चलते दोपहरी हो गई। यात्री सुनसान इलाके से जा रहे थे कि तभी रेत के टीले के पीछे से डाकुओं के दल ने उन पर हमला कर दिया। उन्होंने अपनी-अपनी चमकती तलवारें निकालकर व्यापारियों से सामान तथा माल उनके हवाले करने के लिए कहा। डरे-सहमें व्यापारी अपना रुपया-पैसा और माल डाकुओं को देते गए। डरा-सहमा कादिर एक किनारे खड़ा यह सब देख रहा था। अचानक एक डाकू की नजर कादिर पर पड़ी। वह कादिर के पास जाकर बोला, “क्यों रे बालक! तेरे पास भी कुछ है क्या? जल्दी बोल” हकलाते हुए कादिर ने बताया, “मेरे पास दस अशर्फियाँ हैं।” डाकू ने बालक की तलाशी ली पर उसे एक भी न मिली। उसने बालक से कहा, “सच बता तेरे पास क्या है?” बालक कादिर ने फिर वही जवाब दिया- “दस अशर्फियाँ।” इतने छोटे से बालक के पास दस अशर्फियों की बात सुनकर उसे विस्मय हुआ। उसने बालक का हाथ पकड़ा और अपने सरदार के पास ले जाकर बोला, ‘सरदार, यह बालक अपने पास दस अशर्फियाँ बता रहा है।” डाकुओं के सरदार को आश्चर्य हुआ। उसने बालक की जेबें टटोली पर निराशा ही हाथ लगी। उसने कड़ककर बालक से पूछा, ‘ कहाँ हैं तेरी अशर्फियाँ? चल जल्दी निकाल”। इतना सुनते ही कादिर ने अपनी सदरी उतारी और उसका अस्तर फाड़ दिया। अस्तर के फटते ही अशर्फियाँ खन-खन करती हुई रेत पर गिरने लगीं। डाकुओं के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। डाकुओं ने अपने सरदार से कहा कि हम इसकी अशर्फियाँ ढूँढ़ नहीं सकते थे। सरदार ने पूछा, ‘तूने हमें अशर्फियों के बारे में क्यों बता दिया? हम तो इन्हें ढूँढ़ ही नहीं सकते थे।” बालक कादिर ने सरदार को बताया कि चलते समय मेरी माँ ने कहा था, “बेटा झूठ मत बोलना। झूठ बोलना पाप है।”
सरदार ने अपने डाकू साथियों को संबोधित करते हुए कहा, “यह छोटा बालक अपनी माँ का इतना कहना मानता है और हम बड़े होकर भी ईश्वर का कहना नहीं मानते हैं। आज से हम भी ईश्वर का कहना मानेंगे। अब हम लूट-मार, मार-काट नहीं करेंगे और मेहनत की रोटी खाएँगे। उन्होंने व्यापारियों से लूटा रुपया-पैसा और सारा माल वापस कर दिया। सरदार ने बालक की अशर्फियाँ उसी तरह सदरी में सुरक्षित रख दिया और चले गए। अपना लूटा माल वापस पाकर सभी व्यापारी बहुत खुश हुए। उन्होंने बालक कादिर को गले लगा लिया और अपने ऊँट पर बिठाकर उसकी नानी के घर छोड़ दिया।
कहा जाता है कि बड़ा होकर यह बालक एक बड़े पीर के रूप में प्रसिद्ध हुआ, जिसने लोगों को सच्चाई के रास्ते पर चलने की आजीवन सीख दी।
शिक्षा-विपरीत परिस्थितियों में भी हमें झूठ नहीं बोलना चाहिए।
2. आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, अध्यापकगण एवं मेरे सहपाठियो! आज मैं आपको एक कहानी सुनाने जा रहा हूँ। इसकी शीर्षक है-हार की जीत।
माँ को अपने बेटे, साहूकार को अपने देनदार और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। यह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान्। इसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे सुलतान कहकर पुकारते अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते, और देख-देखकर प्रसन्न होते थे। ऐसी लगन, ऐसे प्यार ऐसे स्नेह से कोई सच्चा प्रेमी अपने प्यारे को भी न चाहता होगा। उन्होंने अपना सब कुछ छोड़ दिया था, रुपया, माल, असबाब, जमीन; यहाँ तक कि उन्हें नागरिक जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मंदिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। परंतु सुलतान से बिछुड़ने की वेदना उनके लिए असहय थी। मैं इसके बिना नहीं रह सकूंगा, उन्हें ऐसी भ्रांति-सी हो गई थी। वह उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, ऐसा चलता है, जैसे मोर घन-घटा को देखकर नाच रहा हो। गाँवों के लोग इस प्रेम को देखकर चकित थे; कभी-कभी कनखियों से इशारे भी करते थे; परंतु बाबा भारती को इसकी परवाह न थी। जब तक संध्या-समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आती।
खड्गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे। होते-होते सुलतान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया।
बाबा भारती ने पूछा-“खड्गसिंह, क्या हाल है?”
खड्गसिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया-“आपकी दया है।”
‘कहो, इधर कैसे आ गए?”
‘सुलतान की चाह खींच लाई।”
‘विचित्र जानवर है। देखोगे, तो प्रसन्न हो जाओगे।”
“मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।”
‘उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी।”
“कहते हैं, देखने में भी बड़ा सुंदर है।”
‘क्या कहना। जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।”
‘बहुत दिनों से अभिलाषा थी; आज उपस्थित हो सका हूँ।” बाबा और खड्गसिंह, दोनों अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से। खड्गसिंह ने घोड़ा देखा आश्चर्य से। उसने सहस्त्रों घोड़े देखे थे; परंतु ऐसा बाँका घोड़ा उसकी आँखों से कभी न गुजरा था। सोचने लगा, ‘भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड्गसिंह के पास होना चाहिए था। इस साधु को ऐसी चीजों से क्या लाभ?” कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्चात् हृदय में हलचल हाने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला-‘परंतु बाबा जी, इसकी चाल न देखी, तो क्या देखा?”
बाबा जी भी मनुष्य ही थे। अपनी वस्तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय भी अधीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर लाए, और उसकी पीछ पर हाथ फेरने लगे। एकाएक उचककर सवार हो गए। घोड़ा वायुवेग से उड़ने लगा। उसकी चाल देखकर, उसकी गति देखकर खड्गसिंह के हृदय पर साँप लौट गया। वह डाकू था, और जो वस्तु उसे पसंद आ जाय, उस पर अपना अधिकार समझता था। उसके पास बाहुबल था, और आदमी थे। जाते-जाते उसने कहा-बाबा जी, मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा।
बाबा भारती डर गए। अब उन्हें रात को नींद न आती थी। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी। प्रतिक्षण खड्गसिंह का भय लगा रहता। परंतु कई मास बीत गए, और वह न आया यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ लापरवाह हो गए और इस भय को स्वप्न के भय बी नाई मिथ्या समझने लगे।
संध्या का समय था। बाबा भारती सुलतान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उसकी आँखों में चमक थी, मुख पर प्रसन्नता। कभी घोड़े के शरीर को देखते, कभी रंग को, और मन में फूले न समाते थे।
सहसा एक ओर से आवाज आई-‘ओ बाबा, इस कंगले की भी बात सुनते जाना।”
आवाज में करुणा थी। बाबा ने घोड़े को थाम लिया। देखा एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले-‘क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?”
‘रामावाला यहाँ से तीन मील है; मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।”
‘वहाँ तुम्हारा कौन है?”
“दुर्गादत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ!”
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे।
सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा, और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा, और घोड़े को दौड़ाये लिये जा रहा है। उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। यह अपाहिज खड्गसिंह डाकू था।
बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे, और इसके पश्चात् कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले-“जरा ठहर जाओ।” खड्गसिंह ने यह आवाज सुनकर घोड़ा रोक लिया और उसकी गर्दन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा-“बाबा जी, यह घोड़ा अब न दूँगा।”
‘परंतु एक बात सुनते जाओ।”
खड्गसिंह ठहर गया। बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा, जैसे बकरा कसाई की ओर देखता है, और कहा-“यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका। मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूँगा। परंतु खड्गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ, उसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।”
“बाबा जी आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल यह घोड़ा न दूँगा।”
‘अब घोड़े का नाम न लो, मैं तुमसे इसके विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।”
खड्गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि मुझे इस घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उससे कहा कि इस घटना को किसी के समाने प्रकट न करना। उससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड्गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा; परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं, और पूछा-“बाबा जी, इसमें आपको क्या डर है?”
बाबा भारती ने उत्तर दिया-“लोगों को यदि इस घटना का पता लग गया, तो वे किसी गरीब पर विश्वास न करेंगे।”
और यह कहते-कहते उन्होंने सुलतान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही न था। बाबा भारती चले गए, परंतु उनके शब्द खड्गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूँज रहे थे। सोचता था, “कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! उन्हें इस घोड़े से प्रेम था। इसे देखकर उनका मुख फूल की नाई खिल जाता था। कहते थे, इसके बिना मैं रह न सकूंगा। इसकी रखवाली में वह कई रातें सोये नहीं। भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुख की रेखा तक न दीख पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग गरीबों पर विश्वास करना न छोड़ दें। उन्होंने अपनी निज की हानि को मनुष्यत्व की हानि पर न्योछावर कर दिया। ऐसा मनुष्य नहीं, देवता है।”
रात्रि के अंधकार में खड्गसिंह बाबा भारती के मंदिर में पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था। आकाश पर तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंकते थे। मंदिर के अंदर कोई शब्द सुनाई न देता था। खड्गसिंह सुलतान की बाग पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक किसी वियोगी की आँखों की तरह चौपट खुला था। किसी समय वहाँ बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे; परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था। हानि ने उन्हें हानि की तरफ से बेपरवाह कर दिया था। खड्गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से फाटक बंद कर दिया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे।
अंधकार में रात्रि ने तीसरा पहर समाप्त किया, और चौथा पहर आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया। उसके पश्चात् इस प्रकार, जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर मुड़े। परंतु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई। साथ ही घोर निराशा के पाँवों को मन-मन भर का भारी बना दिया। वह वहीं रुक गए। घोड़े ने स्वाभाविक मेधा से अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और जोर से हिनहिनाया।
बाबा भारती दौड़ते हुए अंदर घुसे, और अपने घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे, जैस बिछड़ा हुआ पिता चिरकाल के पश्चात् पुत्र से मिलकर रोता है। बार-बार उसकी पीठ पर हाथ फेरते. बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते और कहते थे-‘अब कोई गरीबों की सहायता से मुँह न मोड़ेगा।’
थोड़ी देर के बाद जब वह अस्तबल से बाहर निकले, तो उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे, ये आँसू उसी भूमि पर ठीक उसी जगह गिर रहे थे, जहाँ बाहर निकलने के बाद खड्गसिंह खड़ा होकर रोया था।
दोनों के आँसुओं का उसी भूमि की मिट्टी पर परस्पर मिलाप हो गया।
घटना का वर्णन
कोई घटना जो हमारी आँखों के सामने घटी हो अथवा जिसमें हम शामिल रहे हों, का वर्णन करना मौखिक अभिव्यक्ति की वाचन दक्षता प्रदर्शित करता है। किसी घटना का वर्णन, संक्षिप्त रूप में सरल भाषा और रोचक शैली में प्रस्तुत करना चाहिए। इनके अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन से बचना चाहिए। मेले का वर्णन, किसी खेल का आँखों देखा वर्णन, विद्यालय का वार्षिकोत्सव का वर्णन, शादी-विवाह में घटी कोई घटना इसका विषय बन सकती है।
उदाहरण
गत वर्ष मुझे अपनी ममेरी बहन के वैवाहिक कार्यक्रम में शामिल होने दिल्ली से आगरा जाना था। मैं ताज एक्सप्रेस से आगरा गया और वहाँ से मामा के घर। अगले दिन उनके यहाँ वैवाहिक कार्यक्रम संपन्न होना था। मैंने भी मामा-मामी से कुछ काम पूछकर हाथ बँटाना शुरू कर दिया। शाम तक आवश्यक कार्य निबटा लिए गए। अगले दिन मुझे अपने मित्र शिवम को लेने आगरा स्टेशन पर जाना था। वह मेरे साथ दिल्ली से आगरा नहीं आ सका था। उसे उसके कार्यालय से छुट्टी नहीं मिली थी।
मैं और शिवम साथ-साथ पढ़ा करते थे। उसकी माता ने ही उसकी पढ़ाई-लिखाई पूरी कराई। हाँ, आवश्यकता होने पर पिता जी शिवम की आर्थिक सहायता कर दिया करते थे, जिसे वह कृतज्ञता के भाव से ले लेता था। हम दोनों ने साथ-साथ पी. सी. एस. परीक्षा उत्तीर्ण की थी। वह नायब तहसीलदार और मैं खंड विकास अधिकारी के पद पर कार्य कर रहा था। मेरी ममेरी बहन किसी कार्यालय में एकाउटेंट लगी थी, जिसकी शादी थी। जिस लड़के से शादी तय थी, वह चार्टेड एकाउटेंट था। खैर तय समय पर ट्रेन आ गई और मैं उसे लेकर घर आ गया। तय समय पर बारात आ गई पर फेरों से पहले ही लड़के के पिता गुस्से में बोले जा रहे थे कि उन्हें चार लाख की कार की जगह कम-से-कम दस लाख की लक्जरी गाड़ी चाहिए थी। उन्होंने वर को वरमाला की रस्म और शादी तब तक टालने की बात कही जब तक उनकी माँग पूरी करने के लिए कम-से-कम पाँच लाख रुपये नहीं मिल जाते। इतने कम समय में इतनी बड़ी रकम की व्यवस्था करना हँसी का खेल न था। दुर्भाग्य से लड़के ने भी अपने पिता की बात मानकर मंडप से बाहर आ गया। मेरी ममेरी बहन वरमाला लिए खड़ी रह गई। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। सब उसे समझा-बुझाकर घर में ले गए। इधर बारातियों ने आपस में कुछ विचार-विमर्श किया और लड़के के पिता को समझाने लगे, क्योंकि कन्या पक्ष के कुछ लोगों ने पुलिस बुलाने की बात कह दी थी। खैर लड़का और उसके पिता जी इस शर्त पर शादी के लिए राजी हुए कि पाँच लाख रुपये विवाह के 15 दिनों के अंदर भिजवा दिए जाए। मामा-मामी एवं अन्य रिश्तेदार इस बात पर अभी विचार कर ही रहे थे कि मेरी ममेरी बहन नूतन ने उस लड़के से विवाह करने से मना कर दिया और कहा कि उन लोगों को बारात लेकर लौटने को कह दिया जाए। इस अप्रत्याशित बात से मामा-मामी और भी परेशान हो उठे। उन्होंने अपनी बेटी को इज्जत की दुहाई देते हुए विवाह करने का अनुनय-विनय करने लगे। उन्होंने यह भी कहा कि इस घटना के बाद तुझसे कौन शादी करेगा, पर वह टस-से-मस नहीं हो रही थी। आखिरकार बारात बैरंग वापस लौट गई। अब मेरे मामा-मामी अपनी बेटी पर क्रोध उतारने ९ागे और उसे दोषी ठहराने लगे। इधर लड़की विवाह-मंडप को बार-बार देख रोए जा रही थी। अचानक मेरा मित्र मुझे एक ओर ले गया और कहा “नूतन से पूछकर देख ले। यदि वह चाहे तो मैं उससे इसी मंडप में विवाह करने को तैयार हूँ।” मैंने सारे रिश्तेदारों से कहा कि वे नूतन को अकेला छोड़ दें। मैं अपने दोस्त को लेकर उसके कमरे में गया और सारी बात कह सुनाई। नूतन ने मेरे मित्र से दहेज की बात पूछी तो उसने कहा कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, क्योंकि वह आज जो कुछ भी है अंकल (मेरे पिता जी) के कारण है। नूतन की स्वीकृति मिलते ही मैंने यह बात अपने मामा-मामी को बताई। उन्हें इस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। आनन-फानन में गमगीन माहौल खुशी में बदल गया और सवेरे तक वैवाहिक रस्में पूरी हो गई। आज वे दोनों सुखमय जीवन बिता रहे हैं। वह घटना आज भी मेरी आँखों के सामने घूम जाती है। सोचता हूँ, चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ।
टेलीफ़ोन वार्ता
किसी काल में कल्पना की वस्तु माने जाने वाले टेलीफोन ने मानव जीवन को अत्यंत गहराई से प्रभावित किया है। आज यह हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गया है। टेलीफोन का ही परिष्कृत एवं आधुनिक रूप मोबाइल फोन है। आज मोबाइल फोन सर्वसुलभ और सस्ते होने के कारण हर व्यक्ति की जरूरत बनते जा रहे हैं। कार्यालय, उद्योग, व्यवसाय, स्थान विशेष तक सीमित रहने वाला टेलीफोन आज मोबाइल फोन के रूप में आम आदमी तक की जेब में पहुँच चुका है। अब तो यह विद्यार्थियों की जेब में भी दिखाई देने लगा है।
फोन पर बातचीत करना भी एक कला है। यह वाचन का माध्यम है। निरंतर अभ्यास द्वारा इस कला को निखारा जा सकता है। फोन पर बातें करते समय अनेक बातों का ध्यान रखना चाहिए जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं-
● वार्ता का प्रारंभ अपना परिचय देकर फोन करने का कारण बताते हुए करना चाहिए।
● फोन उठाने वाले के साथ उचित अभिवादन का प्रयोग करना चाहिए।
● हमेशा शिष्ट, शालीन और मर्यादित भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
● फोन पर कभी गुस्सा करते हुए ऊँची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए।
● किसी को असमय फोन नहीं करना चाहिए। e यथासंभव अपनी बातें संक्षेप में ही कहना चाहिए।
● यदि गलती से गलत नंबर मिल जाए तो खेद व्यक्त करना चाहिए।
● यदि कोई आपके पास फोन करता है तो बिना पूरी बात सुने फोन नहीं काटना चाहिए।
फोन पर बातचीत का एक उदाहरण
साक्षी – हैलो! मैं साक्षी बोल रही हूँ। क्या मैं विभा से बातचीत कर सकती हूँ?
ममता – मैं विभा की माँ ममता बोल रही हूँ। तुम कौन?
साक्षी – नमस्ते आटी, मैं विभा की सहेली साक्षी बोल रही हूँ। विभा इस समय क्या कर रही है?
ममता – नमस्ते बेटा। विभा ऊपर के कमरे में पढ़ाई कर रही है। मैं उसे अभी फोन देती हूँ।
साक्षी – धन्यवाद आटी। विभा – अरे साक्षी कैसी है तू? क्या कर रही है इस समय?
साक्षी – पढ़ रही थी। बस कल स्कूल नहीं आ सकी थी। गणित का होमवर्क जानना था। और क्या कल यूनिट टेस्ट के नंबर बताए गए थे?
विभा – कल गणित की अध्यापिका नहीं आई थीं इसलिए न होमवर्क मिला और न यूनिट टेस्ट के नंबर बताए गए।
साक्षी – धन्यवाद विभा। कल स्कूल में मिलते हैं। बाइ।
विभा – बाइ।
कार्यक्रम प्रस्तुति
किसी प्रकार का कार्यक्रम प्रस्तुत करना स्वयं में एक कला है, जिसके लिए कुशलता की आवश्यकता होती है। बिना भरपूर अभ्यास के इसे हर कोई नहीं कर सकता है। कार्यक्रम प्रस्तुति देने वाले को प्रस्तोता, मंच संचालक, उद्घोषक या कार्यक्रम संचालक कहा जाता है। कार्यक्रम की सफलता में मंच संचालक की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। बाल सभा, सदन की बैठक तथा विद्यालय में होने वाले अनेक कार्यक्रमों में विद्यार्थियों को मंच संचालन का अवसर मिलता है। मंच संचालन करते समय विद्यार्थी को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-
● मंच संचालन से पूर्व कार्यक्रमों की एक सूची तैयार कर अपने पास रख लेनी चाहिए।
● मंच संचालन के समय अत्यंत फैशन वाली वेषभूषा के प्रयोग से बचना चाहिए। इस अवसर पर शालीन वेषभूषा ही अच्छी मानी जाती है।
● उद्घोषक को संयमी तथा साहसी होना चाहिए।
● कार्यक्रम से दर्शकों को जोड़े रखने के लिए चुटकुले, सूक्तियाँ, कहावतें तथा ज्ञानवर्धक बातों का कोश होना चाहिए।
● दो कार्यक्रमों के बीच रिक्त समय को भरने की कला में पारंगत होना चाहिए।
● कार्यक्रम प्रस्तुत करते समय ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिसे आम श्रोता भी आसानी से समझ सकें।
कार्यक्रम प्रस्तुति का उदाहरण-
img src=”https://farm5.staticflickr.com/4539/25109504758_3779bc8a22_o.png” width=”661″ height=”272″ alt=”NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – मौखिक परीक्षा-12-2″>
उपर्युक्त सूची के आधार पर कार्यक्रम की प्रस्तुति इस प्रकार की जा सकती है-
[कार्यक्रम के लिए सजा हुआ पंडाल, मंच, अतिथियों के लिए एक ओर मंच के सामने रखी गई कुर्सियाँ तथा सामने पंक्तिबद्ध बैठे हुए बच्चे तथा देशभक्ति पूर्ण गीत बजता जा रहा है।]
मंच संचालक-सभी उपस्थित व्यक्तियों को मेरा नमस्कार! अरावली पब्लिक स्कूल, गौतम नगर के वार्षिकोत्सव के शुभ अवसर पर आप सभी का स्वागत एवं अभिनंदन करते हुए मुझे अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है। इंतजार की घड़ियाँ खत्म हुई। दस बजनेवाले हैं। मुख्य अतिथि महोदय आप सभी के बीच इस पंडाल में पहुँचनेवाले हैं। मैं आप सभी से अनुरोध करता हूँ कि पंडाल में पहुँचने पर मुख्य अतिथि महोदय का स्वागत करतल ध्वनि से करें। धन्यवाद!
और ये हुई इंतजार की घड़ियाँ खत्म। मुख्य अतिथि महोदय हमारे-आपके बीच पधार चुके हैं। मैं विद्यालय तथा प्रबंध कमेटी की ओर से विनम्र निवेदन करता हूँ कि माननीय मुख्य अतिथि महोदय, जो स्थानीय विधायक भी हैं, मंच पर सुशोभित हों। मैं विद्यालय प्रबंधक श्री —————— से अनुरोध करता हूँ कि वे भी मुख्य अतिथि महोदय के साथ मंच पर उचित स्थान ग्रहण करने की कृपा करें।
अब मैं विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती नलिनी सिंह से अनुरोध करता हूँ कि वे पुष्प-गुच्छ (बुके) द्वारा मुख्य अतिथि महोदय का स्वागत करें।
इसी क्रम में भारतीय परंपरानुसार कक्षा सात की दो छात्राएँ सुमन और सौम्या, मुख्य अतिथि को तिलक लगाकर उनका स्वागत करेंगी।
अब मैं विद्यालय प्रबंध समिति के सचिव श्री राजकुमार जी से अनुरोध करता हूँ कि वे मुख्य अतिथि महोदय का परिचय आप सभी से कराएँ।
अब मैं माननीय मुख्य अतिथि महोदय से अनुरोध करता हूँ कि वे विद्या की देवी, माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित करें, जिससे कार्यक्रम का शुभारंभ किया जा सके। प्रधानाचार्या महोदया, स्टॉफ सचिव तथा विद्यालय के दो शिक्षकों द्वारा मुख्य अतिथि महोदय का सहयोग किया जाएगा।
अब सांस्कृतिक कार्यक्रम शुरू होनेवाला है। मंच पर आसीन सभी महानुभावों से मेरा अनुरोध है कि वे पंडाल की अग्रिम पंक्ति में रखी कुर्सियों पर अपना स्थान ग्रहण करने का कष्ट करें और कार्यक्रम का आनंद लें। प्रधानाचार्या तथा व्यायाम शिक्षिका से अनुरोध है कि वे इसमें मुख्य अतिथि महोदय का सहयोग करें।
धन्यवाद!
सर्वप्रथम कार्यक्रम का शुभारंभ ज्ञानदायिनी विद्या की देवी माँ सरस्वती की वंदना द्वारा किया जा रहा है। इसके बोल हैं- ‘हे वीणावादिनी! वर दे’ तथा इसे प्रस्तुत कर रहीं हैं- विद्यालय की छात्राएँ सविता, दीपिका, निहारिका, गौतमी तथा आरुषी।
वाह! कितनी सुंदर प्रस्तुति थी। छात्राओं ने इस वंदना को जीवंत बना दिया। यह आप सभी महसूस कर रहे होंगे। हम सब अपनी मातृभूमि और देश को अपनी जान से भी ज्यादा चाहते हैं। इसकी रक्षा करते हुए अगणित वीरों ने अपनी जान की बाजी लगा दी। इस पर हम किसी की कुदृष्टि भी नहीं सहन कर सकते। यही संदेश गीत के माध्यम से दे रहे हैं दसवीं के छात्र। गीत के बोल हैं-‘दूर हटो ऐ दुनियावालो! हिंदुस्तान हमारा है।’ आप सभी इसका आनंद उठाएँ।
वास्तव में यह गीत देश-प्रेम तथा देश-भक्ति की भावना हमारे दिलों में जगाने एवं प्रगाढ़ करने में सफल रहा है। तालियों के लिए खूब सारा धन्यवाद!
आइए, अब कार्यक्रम की दिशा मोड़कर गाँवों की ओर चलते हैं जहाँ भारत का दिल बसता है। कक्षा सात की छात्राओं द्वारा राजस्थानी गीत की धुन पर मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसमें वर्षा ऋतु में घिरे बादलों को देख कर मोरनी की खुशी समाहित है।
वाह-वाह! अत्यंत सुंदर नृत्य। कितना सुंदर प्रयास था इन छात्राओं का! आप सभी को यह नृत्य अच्छा लगा, यह आपकी तालियों की गड़गड़ाहट से प्रकट हो रहा है। तालियों के लिए धन्यवाद!
गाँवों के परिवेश से निकलकर अब हम आपको ले चलते हैं-देश-प्रेम के रंग में सराबोर करने। कक्षा नौ के छात्र आपके सामने एक नाटक प्रस्तुत कर रहे हैं-बलिदान। आप इसे देखें और आनंदित हों।
वाह! सचमुच हमें देशभक्तों और शहीदों के त्याग और बलिदान पर गर्व होने लगा है। निश्चित रूप से आप भी ऐसा महसूस कर रहे होंगे। तालियों द्वारा उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद!
अब सांस्कृतिक कार्यक्रमों को विराम देते हुए मैं विद्यालय की प्रधानाचार्या से अनुरोध करता हूँ कि वे विद्यालय की रिपोर्ट पढ़कर विद्यालय की प्रगति संबंधी जानकारी का विवरण प्रस्तुत करने का कष्ट करें।
(विद्यालय की प्रधानाचार्या द्वारा रिपोर्ट पढ़ी जाती है।)
अब बारी है पुरस्कार-वितरण की। बच्चों और अध्यापकों के साल भर के परिश्रम के परिणाम की। इसके लिए मैं मुख्य अतिथि महोदय से अनुरोध करता हूँ कि वे मंच पर आकर अपने कर-कमलों से पुरस्कार प्रदान करें। इस कार्य में खेल शिक्षिका एवं दो अध्यापक उनका सहयोग करेंगे तथा पुरस्कार पानेवालों के नामों की घोषणा उप-प्रधानाचार्या श्रीमती कपिला शर्मा करेंगी।
आप सभी ने देखा कि इस विद्यालय के विद्यार्थियों ने शिक्षा, खेल एवं अन्य क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए सराहनीय प्रदर्शन किया। इसमें विद्यालय के प्रधानाचार्या का कुशल निर्देशन, अध्यापकों के परिश्रम आदि का योगदान रहा है। आशा है कि अगले वर्ष इससे भी अधिक विद्यार्थी पुरस्कार पाने की होड़ में शामिल होंगे।
अब मैं मुख्य अतिथि महोदय से विनम्र निवेदन करूंगा कि वे उपस्थित जनों को संबोधित करते हुए उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा दें जिससे विद्यार्थियों तथा विद्यालय परिवार के सदस्यों को परिश्रमपूर्वक कार्य करने का उत्साह मिले।
मुख्य अतिथि महोदय का बहुत-बहुत धन्यवाद! आपके ये वचन हम सभी के लिए प्रेरणा-स्रोत बनेंगे।
कार्यक्रम की अगली कड़ी में कक्षा नौ के छात्र-छात्राओं द्वारा एक हास्य प्रहसन प्रस्तुत किया जा रहा है, जो कि आपको हास्य रस से सराबोर करने में सक्षम साबित होगा। इसका शीर्षक है-‘गधे की पढ़ाई’।
आपकी हँसी इस बात का प्रमाण है कि आपने इस हास्य प्रहसन का आनंद उठाया। तालियों द्वारा उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद!
यह कार्यक्रम अब समाप्ति की ओर अग्रसर है। विद्यालय के प्रधानाचार्या जी से मेरा निवेदन है कि वे मंच पर आएँ और मुख्य अतिथि तथा आगंतुकों का धन्यवाद ज्ञापन करें।
अब सभी उपस्थित जनों तथा विद्यार्थियों से अनुरोध है कि वे अपने स्थान पर सावधान मुद्रा में खड़े हों तथा राष्ट्रगान के प्रति अपना सम्मान प्रदर्शित करें।
लगातार ढाई घंटे से भी अधिक समय तक इतने धैर्य के साथ सहयोग देने तथा विद्यार्थियों का उत्साहवर्धन करने हेतु हम आपका अत्यंत आभार प्रकट करते हैं। इस सुंदर कार्यक्रम में उपस्थित होकर इसकी सफलता में वृद्ध करने के लिए मैं एक बार पुन: आप सभी को धन्यवाद देता हूँ और कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा करता हूँ। जय हिद! जय भारत!