CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 3 are part of CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Here we have given CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 3.
CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 3
Board | CBSE |
Class | IX |
Subject | Hindi A |
Sample Paper Set | Paper 3 |
Category | CBSE Sample Papers |
Students who are going to appear for CBSE Class 9 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme, as prescribed by the CBSE, is given here. Paper 3 of Solved CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A is given below with free PDF download solutions.
समय : 3 घंटे
पूर्णांक : 80
निर्देश
- इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैंक, ख, ग और घ।
- चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
खंड {क} अपठित बोध [ 15 अंक ]
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
महानगरीय जीवन का अपना विशेष आकर्षण है। वह आकर्षण है–आधुनिकता की चमक-दमक। शिक्षा की बेहतर सुविधाएँ, फलते-फूलते कारोबार, आवागमन के उन्नत साधन, स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएँ, चमचमाती सड़कें, शॉपिंग मॉल, ऊँची-ऊँची इमारतें आदि महानगर के आकर्षण में वृद्धि करते हैं। गाँवों तथा छोटे-छोटे शहरों के वासी कभी रोज़गार की तलाश में, तो कभी बेहतर जीवन जीने की लालसा में महानगरों की ओर अग्रसर हो जाते हैं और यहीं के होकर रह जाते हैं। उन्हें महानगरीय जीवन वरदान जैसा लगता है, परंतु महानगरों में बढ़ती जनसंख्या और आम आदमी के लिए उपलब्ध साधनों की कमी ने मानव जीवन को कष्टप्रद बना दिया है।
आवास की समस्या सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। वनों की अंधाधुंध कटाई व बढ़ते प्रदूषण से साँस लेने के लिए ताज़ी हवा दुर्लभ हो गई है। पीने के लिए स्वच्छ पानी नहीं, खाने के लिए कुछ भी शुद्ध नहीं, मिलावट दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। फ्लैटों में शायद ही कभी धूप के दर्शन होते हों। जनसाधारण के लिए महानगर किसी अभिशाप से कम नहीं है। महानगरीय जीवन के ही परिणामस्वरूप आज संयुक्त परिवार के स्थान पर एकल परिवार स्थापित होते जा रहे हैं। हमारी संस्कृति, मूल्यों आदि का गिरता स्तर महानगरीय जीवन का ही परिणाम है।
(क) महानगरीय जीवन का आकर्षण क्या है?
(ख) मानव महानगरों की ओर क्यों अग्रसर है तथा मानव जीवन को किसने कष्टप्रद बना दिया है?
(ग) ताजी हवा न मिलने का मुख्य कारण क्या है?
(घ) ऊँची-ऊँची इमारतें’ में ऊँची शब्द क्या है?
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में लिखिए
मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज मिटातो;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता!
मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ।
(क) कौन स्वयं को शेष संसार से अलग मानता है व क्यों?
(ख) कवि स्वयं को किस प्रकार के खंडहर का स्वामी मानता है?
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना,
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!
(ग) शीतल वाणी में आग लिए फिरना’ किस प्रकार की स्थिति का द्योतक है?
(घ) कवि स्वयं को क्या मानता है?
(ङ) कवि संसार को किस प्रकार का संदेश देना चाहता है?
खंड {ख} व्याकरण [15 अंक ]
प्रश्न 3.
निम्नलिखित के निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।
(क) ‘दुर्भाग्य’ शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग तथा मूल शब्द लिखिए।
(ख) “परि’ उपसर्ग से दो शब्द बनाइए।
(ग) “पुस्तकीय’ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय तथा मूल शब्द लिखिए।
(घ) “त्व’ प्रत्यय से दो शब्द बनाइए।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह करके समास का नाम लिखिए
(क) शताब्दी
(ख) लंबोदर
(ग) देश-विदेश
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में वाक्य-भेद बताइए
(क) मैं बाज़ार नहीं जा रहा।
(ख) यदि वह ज़ल्दी जाता, तो उससे मिल लेता।
(ग) वाह! क्या बात है।
(घ) आधुनिक युग विज्ञान का युग है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित अलंकार के प्रकार बताइए
(क) तनकर भाला यह बोल उठा
राणा मुझको विश्राम न दे
(ख) सखि सोहत गोपाल के, उर गुंजन की माल बाहर
सोहत मनु पिये, दावानल की ज्वाल।
(ग) चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल, थल में
(घ) जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय।
बारै उजियारो करै, बढ़े अँधेरो होय।।
खंड {ग} पाठ्यपुस्तक व पूरक पुस्तक [30 अंक]
प्रश्न 7.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
“बड़े दुख का विषय है कि भारत-सरकार आज तक उस दुर्दात नाना साहब को नहीं पकड़ सकी, जिस पर समस्त अंग्रेज़। जाति का भीषण क्रोध है। जब तक हम लोगों के शरीर में रक्त रहेगा, तब तक कानपुर में अंग्रेज़ों के हत्याकांड का बदला लेना हम लोग न भूलेंगे। उस दिन पार्लमेंट की ‘हाउस ऑफ़ लाड्र्स’ सभा में सर टामस ‘हे’ की एक रिपोर्ट पर बड़ी हँसी हुई, जिसमें सर ‘हे’ ने नाना की कन्या पर दया दिखाने की बात लिखी थी। ‘हे’ के लिए निश्चय ही यह कलंक की बात है- जिस नाना ने अंग्रेज़ नर-नारियों का संहार किया, उसकी कन्या के लिए क्षमा! अपना सारा जीवन युद्ध में बिता कर अंत में वृद्धावस्था में सर टामस ‘हे’ एक मामूली महाराष्ट्र बालिका के सौंदर्य पर मोहित होकर अपना कर्तव्य ही भूल गये।”
(क) अंग्रेज़ नाना साहब को दुर्दात क्यों मानते थे?
(ख) ब्रिटिश मीडिया ने सर टामस ‘हे’ पर क्या आरोप लगाया?
(ग) पार्लमेंट की सभा में किसकी हँसी हुई और क्यों?
प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
(क) टीले शब्द का अर्थ बताते हुए स्पष्ट कीजिए कि ‘प्रेमचंद के फटे जूते पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है?
(ख) सुभद्रा कुमारी चौहान के चले जाने पर महादेवी के कमरे में किसने जगह ली तथा लेखिका ने उसके माध्यम से कौन-सी भाषा सीखी?
(ग) “गिरे हुए बैरी पर सींग नहीं चलाना चाहिए इस कथन के आधार पर हीरा की विशेषताएँ लिखिए।
(घ) राहुल सांकृत्यायन लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गए?
प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
मोकों कहाँ हूँढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।।
(क) मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए क्या-क्या प्रयास करता है ?
(ख) इस पद के माध्यम से कबीर क्या कहना चाहते हैं?
(ग) स्वाँसों की स्वाँस’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में दीजिए
(क) कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की भाँति न लिखकर प्रश्न के रूप में पूछा जाना चाहिए कि ‘काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?’ कवि की दृष्टि में इस बात का विवरण न देते हुए उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
(ख) सारस की ‘टिरटों-टिरटों की ध्वनि सुनकर कवि की क्या इच्छा होती है? ‘चंद्र गहना से लौटती बेर कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
(ग) कवि को कोयल से ईष्र्या क्यों हो रही है? ‘कैदी और कोकिला’ कविता के आधार पर बताइए।
(घ) भारतीय समाज का सर्वमान्य, सर्वाधिक लोकप्रिय तथा लीलावतारी पुरुष किसे माना जाता है? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 11.
लेखिका की परदादी के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए बताइए कि उन्होंने भगवान से क्या कामना की?
अथवा
टिहरी में रहने वाली बुढ़िया क्या काम करती थी? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।
खंड {घ} लेखन [ 20 अंक ]
प्रश्न 12.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर लगभग 200-250 शब्दों में एक निबंध लिखिए
(क) विज्ञापनों से घिरा हमारा जीवन
संकेत बिंदु
- विज्ञापन का युग।
- विज्ञापन का प्रभाव
- विज्ञापन के लाभ व हानि
- उपसंहार
(ख) भ्रष्टाचार : समाज का सबसे बड़ा अभिशाप
संकेत बिंदु
- भ्रष्टाचार से आशय
- सामाजिक मूल्यों की स्थिति
- नैतिकता का ह्रास
- भ्रष्टाचार की समस्या
- उपसंहार
(ग) वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे
संकेत बिंदु
- मानवे : एक सामाजिक प्राणी
- परोपकार का महत्त्व
- परोपकार की आवश्यकता
- उपसंहार
प्रश्न 13.
आपका टेलीफोन लगभग दस दिनों से खराब पड़ा है। आपने महानगर टेलीफोन निगम के दोष सुधार सेवा विभाग में कई बार शिकायत दर्ज की, किंतु परिणाम ज्यों का त्यों है। इसकी शिकायत करते हुए महानगर \ टेलीफोन निगम के प्रबंधक को एक पत्र लिखिए।
अथवा
आपका मित्र बोर्ड की परीक्षा में प्रथम रहा है। उसे बधाई पत्र लिखिए।
प्रश्न 14.
जलभराव की शिकायत लेकर गए नागरिक और नगरपालिका अध्यक्ष के बीच होने वाले संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
अथवा
परीक्षा का परिणाम घोषित होने पर पिता और पुत्र के मध्य होते संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
जवाब
उत्तर 1.
(क) महानगरीय जीवन का आकर्षण आधुनिकता की चमक-दमक है। महानगर के आकर्षण में शिक्षा की अत्यधिक उपलब्ध सुविधाएँ, बढ़ता हुआ कारोबार, आवागमन के उन्नत साधन, स्वास्थ्य सुविधाएँ, बड़ी-बड़ी इमारतें, शापिंग मॉल आदि वृद्धि करते हैं।
(ख) मानव रोज़गार की खोज में तथा अच्छा जीवन जीने की लालसी में महानगरों की ओर अग्रसर हो जाते हैं। महानगरों की बढ़ती जनसंख्या और जन साधारण के लिए उपलब्ध साधनों की कमी ने मानव जीवन को कष्टप्रद बना दिया है।
(ग) ताज़ी हवा न मिलने का मुख्य कारण वनों की कटाई व अनेक प्रकार से बढ़ता प्रदूषण है। आज आवास की समस्या सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है। जिसके लिए वनों की कटाई की जाती है। वनों की कटाई से प्रदूषण बढ़ता है।
(घ) ‘ऊँची-ऊँची इमारतें’ में ‘ऊँची’ शब्द विशेषण है, क्योंकि ‘ऊँची’ शब्द इमारत की विशेषता बता रहा है कि इमारतें बहुत ऊँची-ऊँची है।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक ‘महानगरीय जीवन की समस्याएँ’ होगा, क्योंकि प्रस्तुत गद्यांश में शुरू से अंत तक महानगरीय जीवन के आकर्षण, समस्याएँ आदि की चर्चा की गई है।
उत्तर 2.
(क) कवि स्वयं को शेष संसार से अलग मानता है, क्योंकि वह संसार में रहने वाले अन्य लोगों की भाँति धन-संग्रह या वैभव के पीछे नहीं भागता।
(ख) कवि स्वयं को ऐसे खंडहर का स्वामी मानता है, जिस पर राजाओं के राजमहल भी न्योछावर हैं अर्थात् राजमहलों की भव्यता भी उस खंडहर के सामने तुच्छ नजर आती है।
(ग) ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरना’ एक विरोधाभासी स्थिति का द्योतक है, लेकिन सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण भी, क्योंकि क्रांति या परिवर्तन केवल शोर करके नहीं, अपितु शांत भाव से एकाग्र रहकर किया जा सकता
(घ) कवि स्वयं को एक दीवाना मानता है। उसकी विशिष्टता यह है कि वह संसार से अलग सोच रखता हुआ मस्ती का संदेश देने का कार्य करता है।
(ङ) कवि संसार को इस प्रकार की मस्ती का संदेश देना चाहता है, जिसे सुनकर संसार उन्मत्तता के आवेग में झूम उठे, लहरा उठे, प्रसन्न हो उठे अर्थात् अपनी सारी चिंताएँ या विकलताएँ भूल जाए।
उत्तर 3.
(क) दुर् (उपसर्ग) तथा भाग्य (मूल शब्द)
(ख) परिश्रम, पर्यावरण
(ग) पुस्तक (मूल शब्द) तथा ईय (प्रत्यय)
(घ) निजत्वे, लघुत्व
उत्तर 4.
(क) समस्त पद विग्रह —– समास का नाम
शताब्दी (सौ वर्षों का समूह) – द्विगु समास
इस समास को पूर्वपद संख्यावाचक (शत) है, इसलिए यहाँ द्विगु समास है।
(ख) लंबोदर (लंबा है उदर जिनका अर्थात् गणेश)-बहुव्रीहि समास यहाँ दोनों पद मिलकर एक विशेष (तीसरे) अर्थ का बोध करा रहे हैं, इसलिए यहाँ बहुव्रीहि समास है।
(ग) देश-विदेश (देश और विदेश) – द्वंद्व समास यहाँ दोनों पद समान रूप से प्रधान हैं, इसलिए यहाँ द्वंद्व समास है।
उत्तर 5.
(क) निषेधवाचक वाक्य ‘मैं बाज़ार नहीं जा रहा’ वाक्य में बाज़ार नहीं जाने का बोध हो रहा है, इसलिए यह निषेधवाचक वाक्य है।
(ख) संकेतवाचक वाक्य ‘यदि वह जल्दी जाता, तो उससे मिल लेता’ वाक्य में संकेत दिया जा रहा है कि जल्दी जाता तो मिल लेता’ इसलिए यह संकेतवाचक वाक्य है।
(ग) विस्मयवाचक वाक्य ‘वाह! क्या बात है’ वाक्य में ‘वाह! विस्मय शब्द से हर्ष प्रकट किया जा रहा है, इसलिए यह विस्मयवाचक वाक्य है।
(घ) विधानवाचक वाक्य ‘आधुर्निक युग विज्ञान का युग है’ वाक्य में होने का बोध हो रहा है कि ‘विज्ञान का युग है’ इसलिए यह विधिवाचक/विधानवाचक वाक्य है।
उत्तर 6.
(क) मानवीकरण अलंकार यहाँ ‘भाला’ को मनुष्य के रूप में चित्रित किया गया है, इसलिए यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार यहाँ पर गुंजन की माला उपमेय में दावानल की ज्वाल उपमान की संभावना होने से उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(ग) अनुप्रास अलंकार यहाँ ‘च’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।
(घ) श्लेष अलंकार यहाँ ‘बारै’ का अर्थ ‘लड़कपन’ और ‘जलाने’ से है और ‘बड़े’ का अर्थ बड़ा होने और ‘बुझ जाने से है। इसलिए यहाँ श्लेष अलंकार है।
उत्तर 7.
(क) नाना साहब सन् 1857 के विद्रोह के प्रमुख नेता थे। उस विद्रोह में उन्होंने अंग्रेज़ों को बहुत क्षति पहुँचाई थी, उन्होंने उनका प्रतिकार किया था। नाना साहब ने अंग्रेज़ नर-नारियों का संहार भी किया था, इसलिए अंग्रेज़ उन्हें दुर्दात मानते थे।
(ख) ब्रिटिश मीडिया ने सर ‘हे’ पर आरोप लगाया कि जिस सर टामस ‘हे’ ने अपना सारा जीवन युद्ध में बिता दिया, अंत में। वही सर ‘हे’ वृद्धावस्था में एक मामूली-सी महाराष्ट्र कन्या पर मोहित होकर अपना कर्तव्य ही भूल गए।
(ग) पार्लियामेंट (संसद) की सभा में सर टामस ‘हे’ की एक रिपोर्ट की बहुत हँसी हुई, क्योंकि उसमें उन्होंने नाना साहब की कन्या मैना पर दया दिखाने की बात लिखी थी।
उत्तर 8.
(क) ‘टीले’ शब्द का सामान्य अर्थ है-जमीन की सतह से ऊपर उठा मिट्टी या कूड़े का ढेर प्रस्तुत पाठ में टीले शब्द को प्रतीक के रूप में लिया गया है। यहाँ इसका अर्थ है समाज में व्याप्त कुरीतियाँ एवं संकीर्णताएँ। प्रेमचंद जीवनभर इन्हीं कुप्रवृत्तियों से टकराते रहे।
(ख) सुभद्रा कुमारी चौहान जब छात्रावास छोड़कर चली गई थीं, तब उनकी जगह एक मराठी लड़की जेबुन्निसा महादेवी के कमरे में रहने लगी। वह कोल्हापुर से आई थी। ज़ेबुन लेखिका को बहुत-सा काम कर दिया करती थी। वह लेखिका की किताबें ठीक से रख देती थी, डेस्क भी साफ़ कर देती थी और इस प्रकार उन्हें कविता के लिए अधिक समय मिल जाता था। ज़बुन मराठी शब्दों से मिली-जुली हिंदी बोलती थी। लेखिका भी उससे कुछ-कुछ मराठी भाषा सीखने लगी थी।
(ग) “गिरे हुए बैरी पर सींग नहीं चलाना चाहिए” इस कथन के आधार पर कहा जा सकता है कि हीरा भारतीय संस्कृति के आदर्श का प्रतिनिधित्व करता है। प्रेमचंद ने हीरा के माध्यम से यह बताया है कि निहत्थे पर वार नहीं करना चाहिए। निहत्थे पर वार करना कायरता की निशानी है। सच्चे वीर, साहसी और दयालु लोग ऐसा नहीं करते। अतः हीरा में एक न्यायप्रिय, साहसी, शूरवीर एवं दयालु स्वभाव से संबंधित विशेषताएँ सम्मिलित हैं।
(घ) राहुल सांकृत्यायन लङ्कोर के मार्ग में अपने साथियों से दो कारणों से पिछड़ गए—एक तो उनका घोड़ा बहुत आलसी था। उनका घोड़ा बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। यह पता नहीं चल पा रहा था कि वह आगे जा रहा है या पीछे।
दूसरा कारण यह है कि वह ‘रास्ता भूल गए थे। एक स्थान से दो रास्ते जा रहे थे। दायाँ रास्ता लङ्कोर जाता था, पर वह बाएँ रास्ते पर चले गए।
उत्तर 9.
(क) मनुष्य ईश्वर को पाने के लिए मंदिर, मस्जिद, तीर्थों आदि स्थानों पर जाता है। वह मंदिर-मस्जिद में ईश्वर की प्रार्थना करता है और नमाज़ पढ़ता है। वह अनेक प्रकार के क्रिया-कर्म करता है तथा योग-बैराग का भी सहारा लेता है।
(ख) इस पद के माध्यम से कबीर यह कहना चाहते हैं कि ईश्वर को पाने के लिए धार्मिक स्थलों (तीर्थों) तथा मंदिर-मस्जिद में जाने की आवश्यकता नहीं है। प्रत्येक जीव के हृदय में उसका वास है। अतः साधक को अपने हृदय के भीतर ही ईश्वर को खोजना चाहिए।
(ग) ‘स्वाँसों की स्वाँस’ से कवि का तात्पर्य है-प्रत्येक प्राणी के हृदय और प्रत्येक स्थान पर अर्थात् ईश्वर का वास प्रत्येक प्राणी के हृदय में है।
उत्तर 10.
(क) कवि को इस बात से दु:ख पहुँचती है कि छोटे-छोटे बच्चे काम पर जा रहे हैं। इसे मात्र विवरण की भाँति नहीं पूछा जाना चाहिए। यह कोई साधारण समाचार न होकर देश के सम्मुख एक ज्वलंत प्रश्न है कि देश की स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं?
(ख) सारस की ‘टिरटों-टिरटों’ की ध्वनि सुनकर कवि की यह तीव्र इच्छा होती है कि वह उड़कर हरे-भरे खेतों में पहुँच जाए, जहाँ सारस की जोड़ी रहती है। वह वहाँ जाकरे चुपके-चुपके उनकी सच्ची प्रेम कहानी सुनना चाहता है।
(ग) कवि को कोयल से ईष्र्या इसलिए हो रही है, क्योंकि कोयल स्वतंत्र है, जबकि कवि जेल में बंद है। कोयल हरियाली को आनंद लेते हुए, खुले नभ में विचरण कर सकती है, जबकि कवि दस फुट की अँधेरी कोठरी में जीने के लिए विवश है। कोयल के गान की सभी सराहना करते हैं, जबकि कवि के लिए रोना भी दोष/पाप है।
(घ) श्रीकृष्ण, भारतीय जनजीवन के सर्वमान्य, सर्वाधिक लोकप्रिय लीलावतारी पुरुष हैं। भारतीय समाज ने अपनी प्रत्येक जीवन स्थितियों में श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व, उपदेश एवं महिमामय कार्यों से सुविधा, सुरक्षा एवं सिद्धि प्राप्त की है। वे ईश्वर के सर्वाधिक लोकप्रिय अवतारों की श्रेणी में आते हैं। यह बात भारतीय समाज पर उनकी भक्ति के व्यापक एवं अमिट प्रभाव से स्पष्ट हो जाती है।
उत्तर 11.
लेखिका की परदादी उच्च आदर्शों वाली तथा लीक (अनुगमन) से अलग हटकर चलने वाली महिला थी। उस समय समाज-सुधार तथा स्त्री उत्थान के आंदोलनों के प्रचार-प्रसार के चलते गाँव-शहर प्रत्येक स्थान पर नई चेतना का विकास हो रहा था, जिनसे प्रेरणा पाकर कुछ ऐसी पारंपरिक और रूढ़िवादी महिलाओं की सोच में परिवर्तन आया कि सब अचंभित (हैरान) हो गए। उन्होंने अपनी पतोहू के गर्भवती होने पर भगवान से लड़की होने की कामना की। उनकी इस कामना ने सबको आश्चर्य में डाल दिया और इस कामना की घोषणा सार्वजनिक की। उनका अपनी पतोहू के पहले बच्चे के रूप में लड़की की कामना माँगना यह सिद्ध करता है कि उनकी दृष्टि में स्त्रियों का स्थान अत्यंत ऊँचा था।
अथवा
टिहरी में रहने वाली बुढ़िया प्रतिदिन माटाखान से माटी (मिट्टी) खोदकर लाती है और शहरों के घरों में देती है। टिहरी शहर का ऐसा कोई घर नहीं है, जो माटी वाली का ग्राहक न हो, माटी वाली बुढिया ही एक ऐसी महिला है जो अपने नए-पुराने सभी ग्राहकों को मिट्टी उपलब्ध कराती है। वह प्रातःकाल ही घर से निकल जाती है। और दोपहर बाद घर पहुँचती है। ऐसे में उसे न भोजन बनाने को समय मिलता है और न आराम करने का। वह जिन घरों में मिट्टी देने का काम करती है, उन्हीं घरों की महिलाएँ उसे एक-दो रोटी दे देती हैं। ठकुराइन भी उसे रोटी के साथ चाय देकर कहती है कि इसी से खा ले, साग तो है नहीं। इस पर विवशता प्रकट करती हुई माटी वाली कहती है कि चाय से तो स्वयं ही बहुत अच्छा स्वाद आ जाती है, क्योंकि प्रायः उसे सूखी रोटियाँ ही खानी पड़ती हैं। यहाँ कम-से-कम सूखी रोटी के साथ चाय तो है।
उत्तर 12.
(क) विज्ञापनों से घिरा हमारा जीवन
विज्ञापन का युग
विज्ञापन देता उत्पादों का ज्ञान।
प्रसिद्ध बनाना कार्य महान्।।
वर्तमान समय विज्ञापन युग के रूप में जाना जाता है। विज्ञापनों के द्वारा ही उत्पादक अपने माल का प्रचार करके लाभ कमाते हैं। विज्ञापनों में इतना चमत्कार होता है कि कम गुणवत्ता वाले उत्पाद भी बड़ी आसानी से बाज़ार में बहुत बिकते हैं।
विज्ञापन का प्रभाव विज्ञापनों का संसार बड़ा मायावी है। यहाँ कुरूप लोगों के भी अति सुंदर चित्र पेश किए जाते हैं। इनके द्वारा बेकार सामग्री को बहुत प्रभावशाली बनाकर प्रस्तुत किया जाता है। टी.वी. तो चित्रों, शब्दों और संवादों के माध्यम से बहुत बड़ा भ्रमजाल फैला देता है; जैसे-एक सप्ताह में कोई भी फर्राटेदार अंग्रेज़ी बोलना सीख लेगा, एक महीने में गंजे के बाल उग आएँगे आदि। ऐसे भ्रामक विज्ञापनों पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। सरकार को विज्ञापनों की सत्यता की जाँच अवश्य करनी चाहिए, तथा विज्ञापनदाताओं पर कठोर जुर्माना लगाना चाहिए।
विज्ञापन के लाभ व हानि विज्ञापन से अनेक प्रकार के लाभ होते हैं। यह उत्पादों, मूल्यों, गुणवत्ता, बिक्री संबंधी जानकारियों, विक्रय उपरांत सेवाओं इत्यादि के बारे में उपयोगी सूचनाएँ प्राप्त करने में उपभोक्ताओं की सहायता करता है। यह नए उत्पादों के प्रस्तुतीकरण, वर्तमान उत्पादों के उपभोक्ताओं को बनाए रखने और नए उपभोक्ताओं को आकर्षित कर अपनी बिक्री बढ़ाने में निर्माताओं की सहायता करता है। यह लोगों को अधिक सुविधा, आराम, बेहतर जीवन पद्धति उपलब्ध कराने में सहायक होता है। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ ही आज खेल-कूद आयोजनों एवं अन्य कार्यक्रमों को प्रायोजित करती हैं। आजकल तकनीक एवं प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ ही विज्ञापन संचार के सशक्त माध्यम के रूप में उभरे हैं। समाचार-पत्र एवं रेडियो, टेलीविजन ही नहीं, इंटरनेट पर भी आजकल विभिन्न प्रकार के विज्ञापनों को देखा जा सकता है। सरकार की विकासोन्मुखी योजनाओं; जैसे-साक्षरता अभियान, परिवार नियोजन, महिला सशक्तीकरण, कृषि एवं विज्ञान संबंधी योजनाएँ, पोलियो एवं कुष्ठ निवारण अभियान इत्यादि विज्ञापन के माध्यम से ही त्वरित गति से क्रियान्वित होकर प्रभावकारी सिद्ध होते हैं। इस प्रकार विज्ञापन समाजसेवा में भी सहायक होता है।
विज्ञापन से यदि अनेक लाभ हैं, तो इससे हानियाँ भी कम नहीं हैं। विज्ञापन पर किए गए व्यय के कारण उत्पाद के मूल्य में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए ठंडे पेय पदार्थों को ही लीजिए। कभी-कभी विज्ञापन हमारे सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों को क्षति पहुँचाता है। भारत में पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव एवं उपभोक्तावादी संस्कृति के विकास में विज्ञापनों का भी हाथ है। ‘वैलेंटाइन डे’ हो या ‘न्यू ईयर ईव’ बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ इनका लाभ उठाने के लिए विज्ञापनों का सहारा लेती हैं। इंटरनेट से लेकर गली-मोहल्ले तक में इससे संबंधित सामानों का बाज़ार लग जाता है। इस प्रकार कंपनियों को करोड़ों का लाभ होता है।
उपसंहार इस प्रकार की दुनिया एक रोचक दुनिया है। जहाँ पैसा है, ग्लैमर है, प्रसिद्धि है एवं सफलता की ऊँचाइयाँ हैं। विज्ञापन की दुनिया की विशेष बात इसकी रचनात्मकता होती है। कुछ विज्ञापन तो हास्य-व्यंग्य से भी भरपूर होते हैं, जिसके कारण इनसे भी लोगों का अच्छा मनोरंजन हो जाता है।
(ख) भ्रष्टाचार : समाज का सबसे बड़ा अभिशाप
भ्रष्टाचार से आशय भ्रष्टाचार ‘भ्रष्ट’ एवं ‘आचार’ दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘भ्रष्ट’ का अर्थ है-बिगड़ा हुआ तथा ‘आचार’ को अर्थ है-आचरण या व्यवहार। दोनों के मिलने से अर्थ हुआ ‘आचरण की भ्रष्टता या बिगड़ा हुआ व्यवहार । समाज में विभिन्न स्तरों और क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों से जिस निष्ठा व ईमानदारी की अपेक्षा की जाती है, उसका न होना ही भ्रष्टाचार है। साधारण रूप से घूस लेना, पक्षपात करना, सार्वजनिक धन एवं संपत्ति का दुरुपयोग करना तथा स्वेच्छानुसार किसी को नियम विरुद्ध लाभ या हानि पहुँचाना आदि भ्रष्टाचार कहलाता है।
सामाजिक मूल्यों की स्थिति भ्रष्टाचार की समस्या से छोटे-बड़े सरकारी तथा गैर-सरकारी सभी व्यक्ति पीड़ित हैं। इसलिए सरकारी, संस्थागत एवं व्यक्तिगत स्तर पर इसके कारणों को जानने का प्रयास किया जाना चाहिए। प्रायः देखा गया है कि राष्ट्रीय आपत्ति एवं संघर्ष के अवसर पर हमारे जीवन में श्रेष्ठ मूल्यों; जैसे-एकता, त्याग, बलिदान इत्यादि की भावनाएँ विद्यमान रहती हैं। स्वतंत्रता के बाद देश के नैतिक और चारित्रिक स्तर में गिरावट आई। भोग के साधनों के लिए अधिक-से-अधिक धन की आवश्यकता होती है। अतः किसी भी प्रकार धन एकत्रित करना मनुष्यों का उद्देश्य होता गया। विद्यालय और परिवार अपने सदस्यों को नैतिकता सिखाने में असमर्थ हो गए।
नैतिकता का ह्रास नैतिकता ही मानव को मानव बनने की शिक्षा प्रदान करती है। नैतिकता से ही व्यक्ति के साथ-साथ समाज और देश का भी भला होता है, किंतु आज मनुष्य अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए नैतिकता का ह्रास करता जा रहा है। इसका परिणाम यह हो रहा है कि मनुष्य देश को पतन की ओर ले जा रहा है। नैतिकता के हास का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण भ्रष्टाचार है। इसमें लिप्त होने वाले व्यक्ति को इससे रोकने में या तो नीति ज्ञान सहायक होता है या समाज का दंड विधान । यह बात सही है कि जब आदमी की आत्मा उचित-अनुचित का निर्णय करने योग्य नहीं रहती तथा जबे नीति के बंधन शिथिल हो जाते हैं, तब दंड की कठोरता का डर व्यक्ति को बुराइयों से रोकता है, लेकिन हमारी न्याय पद्धति एवं न्याय व्यवस्था इतनी शिथिल है कि अपराध का निर्णय विलंब से होता है।
भ्रष्टाचार की समस्या सरकारी स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने में शक्तिशाली विपक्ष एक सकारात्मक भूमिका निभा सकती है। दुर्भाग्य की बात यह है कि हमने लोकतंत्र की स्थापना कर ली, किंतु अभी तक सशक्त एवं रचनात्मक विपक्ष की महत्ता को नहीं समझ पाए। यदि विपक्ष चाहे, तो वह सरकार के मनमाने आचरण पर अंकुश लगा सकता है। भारत में बहुदलीय लोकतंत्रीय राज्य व्यवस्था है। चुनावों में चंदा देकर बड़े-बड़े पूँजीपति दल सरकार बनने पर उससे अनुचित लाभ उठाते हैं और अपने स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
उपसंहार भ्रष्टाचार को दूर करना आसान कार्य नहीं है, परंतु इसे समाप्त किए बिना हमारे देश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है। अतः इसे दूर करना ही होगा। भ्रष्टाचार जैसी समस्या के समाधान के लिए चुनाव पद्धति में भी सुधार लाना आवश्यक है। लोकतंत्र में सफलता नागरिकों की जागरूकता पर आश्रित होती है, इसलिए भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए नागरिकों में जागरूकता उत्पन्न करना भी आवश्यक है। राजनीति से ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों पर विचार और प्रयास करना आवश्यक है। भ्रष्टाचार एक रोग के रूप में व्याप्त है। जब तक सभी नागरिक और सभी दल निहित स्वार्थों और हितों से ऊपर उठकर इस पर विचार नहीं करेंगे, तब तक इससे मुक्ति संभव नहीं है।
(ग) वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे
मानव : एक सामाजिक प्राणी मानव एक सामाजिक प्राणी है और उसे समाज में रहकर अपने दायित्वों का निर्वाह करना पड़ता है। इसमें परहित अथवा परोपकार सर्वोपरि है। जिनके हृदय में परहित का भाव विद्यमान है, वे संसार में सब कुछ कर सकते हैं। इतिहास एवं पुराणों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनमें परोपकार के लिए महान् व्यक्तियों ने अपने शरीर तक का त्याग कर दिया। महान् देशभक्तों ने परोपकार की भावना से प्रेरित होकर अपने प्राणों का बलिदान कर दिया।
परोपकार का महत्त्व परोपकार से मानव को अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है। यदि हम किसी व्यक्ति को संकट से उबारें, किसी भूखे को भोजन व नग्न को वस्त्र दें, तो इससे हमें आत्मिक आनंद की प्राप्ति होती है। रहीम ने परोपकार के विषय में ठीक ही कहा है।
रहीमन यों सुख होत है, उपकारी के संग।
बाँटनवारे को लगे, ज्यों मेहँदी को रंग।।
परोपकार की भावनाएँ अनेक रूपों में प्रकट होती हैं। धर्मशालाएँ, धर्मार्थ औषधालयों, जलाशयों इत्यादि का निर्माण तथा भोजन-वस्त्र आदि दान परोपकार के ही रूप हैं। इनके पीछे सर्वजन हिताय की भावना निहित होती है।
परोपकार की आवश्यकता परोपकार भ्रातृत्व भाव का भी परिचायक है। परोपकार की भावना ही आगे बढ़कर विश्वबंधुत्व के रूप में परिणत होती है। हमारे यहाँ परोपकार को पुण्य तथा परपीड़ा को पाप माना गया है।
जिस समाज में जितने महान् परोपकारी व्यक्ति होंगे, वह समाज उतना ही सुखी होगा। समाज में सुख-शांति के विकास के लिए परोपकार की भावना के विकास की परम आवश्यकता है।
तुलसीदास की उक्ति परहित सरिस धर्म नहिं भाई से यही निष्कर्ष निकलता है कि परोपकार ही वह मूल मंत्र है, जो व्यक्ति को उन्नति के शिखर पर पहुँचा सकता है। समाज की स्थिति को आगे बढ़ा सकता है तथा राष्ट्र का उत्थान कर सकता है। अतः किसी कवि ने ठीक ही कहा है।
‘मत व्यथा अपनी सुना तू, हर पराई पीर।
इसका अर्थ है कि एक परोपकारी और विवेकशील व्यक्ति केवल अपनी और अपने परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति तक सीमित नहीं रहता, बल्कि वह समाज के अन्य सदस्यों के हितों की भी चिंता करता है।
उपसंहार पारस्परिक सहयोग, एक-दूसरे की सहायता के समर्थन करना, आपसी सुख-दुःख की भावनाओं में सम्मिलित होना ही परोपकार है। अतः हमें परोपकार को अपने व्यक्तित्व का अंग बनाना चाहिए और अपने जीवन एवं समाज दोनों को अर्थपूर्ण बनाने का प्रयत्न करना चाहिए।
उत्तर 13.
परीक्षा भवन,
नई दिल्ली।
दिनांक 15 मार्च, 20××
सेवा में,
प्रबंधक महोदय,
महानगर टेलीफोन निगम,
नई दिल्ली।
विषय खराब टेलीफोन की शिकायत हेतु।
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान अपने खराब टेलीफोन की ओर दिलाना चाहता हूँ। मेरा टेलीफोन नं. 9119×××××× है। यह टेलीफोन गत दस दिनों से खराब है। मैं इसकी शिकायत आपके सुधार सेवा विभाग में तीन बार कर चुका हूँ। अंतिम शिकायत, शिकायत नं. 502, दिनांक 12 मार्च, 20XX को लिखवाई गई थी। वहाँ से हमेशा एक ही उत्तर मिलता है-‘आपकी शिकायत लिख ली गई है, लेकिन कार्यवाही कुछ नहीं होती। परिणाम ज्यों का त्यों है। अंत में परेशान होकर मुझे आपको यह शिकायती पत्र लिखना पड़ रहा है। महानगर में टेलीफोन के बिना दस दिन का समय बिताना कितना कठिन है, यह आप भली-भाँति जानते हैं।
मैं आपसे विनम्र निवेदन करता हूँ कि मेरा टेलीफोन शीघ्र ही ठीक करवाया जाए।
सधन्यवाद!
भवदीय
बालकृष्ण नवीन
बी-22, कर्मपुरा दिल्ली
टेलीफोन नं. 9119××××××
अथवा
31 सेक्टर, फरीदाबाद
दिनांक 30 जनवरी, 20××
प्रिय मित्र यश,
सस्नेह नमस्कार!
आज के दैनिक भास्कर में तुम्हारा चित्र देखकर तथा यह जानकर कि तुम बोर्ड की परीक्षा में पूरे प्रांत में प्रथम आए हो, हृदयं प्रसन्नता से झूम उठा। मित्रवर, तुम से यही आशा थी। तुमने अपने माता-पिता तथा अध्यापक वर्ग के सपनों को साकार कर दिया है। इस कीर्तिमय सफलता पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करो। यह तुम्हारे कठोर परिश्रम का सुपरिणाम है। आज तुमने अनुभव किया होगा कि परिश्रम और प्रयत्न की कितनी महिमा है।
आज तुम्हारे ऊपर सभी गर्व का अनुभव कर रहे हैं। तुम्हारे माता-पिता कितने प्रसन्न होंगे, इसका अनुमान लगाना सहज नहीं। तुम्हारी इस असामान्य सफलता ने पाठशाला की प्रतिष्ठा में भी चार चाँद लगा दिए हैं।
आशा है भविष्य में भी तुम इसी प्रकार से सफलता प्राप्त करते रहोगे।
तुम्हारा मित्र
मोहित पवार
उत्तर 14.
नागरिक सर, हमारे क्षेत्र में जलभराव की समस्या बढ़ती जा रही है। अधिकांश सड़कें टूटी हुई हैं। जिनमें बारिश का पानी भर जाता है। सड़कों पर चलना कठिन हो जाता है।
नगरपालिका अध्यक्ष आपने इस समस्या की शिकायत जमा नहीं करवाई।
नागरिक शिकायत तो जमा की गई थी, परंतु अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई।
नगरपालिका अध्यक्ष अच्छा! आप लिखित रूप से एक शिकायती पत्र तैयार करके उसे यहाँ जमा कर दीजिए।
नागरिक ठीक है सर! कृपया आप इस संबंध में शीघ्र ही उचित कार्यवाही कीजिए, जिससे हमें इस समस्या से छुटकारा मिले।
नगरपालिका अध्यक्ष मैं, आज ही नगर निगम के कर्मचारियों को भेजकर इस समस्या का समाधान कराता हूँ।
नागरिक धन्यवाद, हमारे क्षेत्र के सभी क्षेत्रवासी आपके आभारी रहेंगे।
अथवा
पिता बेटा आज तुम्हारी परीक्षाओं का परिणाम आने वाला था?
बेटा हाँ पिताजी! मेरी परीक्षाओं का परिणाम आ गया है, मैं आपको बताने ही वाला था। मुझे अपनी कक्षा में 95%, अंकों के साथ प्रथम स्थान मिला है।
पिता अरे वाह! बेटा यह तो बहुत अच्छी बात है। तुम अपने परिणाम से खुश हो?
बेटा हाँ, पिताजी मैं अपने परिणाम से बहुत खुश हैं। भगवान के प्रति आभारी भी हूँ।
पिता अब तुमको अपना करियर चुनना चाहिए।
बेटा हाँ, पिताजी आप सही कह रहे हैं। अब मुझे अपना करियर ही चुनना होगा।
पिता तुम क्या बनना चाहते हो?
बेटा मैं एक डॉक्टर बनना चाहता हूँ।
पिता हमारे देश में बहुत-से व्यवसाय हैं, लेकिन तुमने एक डॉक्टर बनना ही क्यों चुना?
बेटा भारत के लोग गरीब हैं और उपचार के लिए उनके पास पैसा नहीं है, मैं उन्हें निःशुल्क उपचार देना चाहता हूँ।
पिता यह तो बहुत अच्छी बात है। बेटा यह तुम्हारा बहुत ही उत्तम विचार है।
बेटा धन्यवाद, पिताजी।
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