भूमिका: दामू की – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
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लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है। यहाँ पर दामू के अपने बेटे को स्कूल में दाखिला करवाने के रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को स्पष्ट किया गया है।
दामू ने अपने बेटे को मुंबई की एक प्रतिष्ठित स्कूल में दाखिला दिलवाने का निश्चय किया। इस कार्य को संपन्न करने के लिए जब वे स्कूल पहुँचे तो साधारण वेशभूषा देखकर स्कूल के दरबान ने उन्हें रोक दिया और आने का कारण पूछा। दामू ने जब उसे बताया कि वे अपने बेटे के दाखिले के लिए आए हैं तो उसे विश्वास न हुआ और उसने दामू को भगाना चाहा। इस बात पर उन्हें गुस्सा आया पर अपने गुस्से को दबाकर उन्होंने दरबान को अठन्नी दी। पैसा मिलते ही दरबान का व्यवहार एकदम बदल गया और उसने दामू को हेडमास्टर का कमरे का रास्ता दिखा दिया।
इस प्रकार अपने निश्चय पर अडिग होने के कारण दामू ने युक्ति से काम लेकर हेडमास्टर तक पहुँचे।
Solution 2:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है। यहाँ पर दामू के निश्चय से लेखक ने यह स्पष्ट करना चाहा है कि जीवन में सफलता पाने के लिए शिक्षा एक अनिवार्य अंग है।
दामू दलित जाति से संबंध रखने वाला निरक्षर व्यक्ति था। उसका जीवन बड़ा ही साधारण था। वह नहीं चाहता था कि भविष्य में उसके बच्चे भी उसकी ही तरह संघर्ष करते रह जाएँ। साथ ही दामू बाबा साहेब आंबेडकर को बहुत मानते थे उनके कहे शब्द सदा दामू की कानों में गूँजते थे कि यदि प्रतिष्ठा पूर्वक जीवन जीना है तो अपने बच्चों को शिक्षित बनाओ। यही कारण था कि दामू ने अपने बच्चे को मुंबई के अच्छे स्कूल में भर्ती करवाने का निश्चय किया।
Solution 3:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है। यहाँ पर दामू के बेटे को दाखिला देने में हेडमास्टर की असमर्थता व्यक्त की गई है।
दामू अपने बेटे को स्कूल में दाखिला करवाना चाहता था। इस कारण वे स्कूल के हेडमास्टर से मिलते हैं। हेडमास्टर ने दामू को समझाया कि जुलाई का महीना आ गया है। स्कूल के दाखिले संबंधित कार्य मई महीने तक पूरे हो जाते हैं और शिक्षा का वर्ष जून से शुरू हो जाता है। अत:अब स्कूल में दाखिला नहीं हो सकता। वे चाहे तो अगले वर्ष कोशिश कर सकते हैं।
इस प्रकार हेडमास्टरजी ने दाखिले संबंधित अपनी मजबूरी प्रकट की।
Solution 4:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है।
हेडमास्टर द्वारा जब दामू के बेटे को दाखिला देने से मना कर दिया तब दामू सीधा हेडमास्टर के सामने साष्टांग लेट गया और कहने लगा कि वह यहाँ से कतई जानेवाला नहीं है। वे जो चाहे कर सकते हैं। यदि हेडमास्टर चाहे तो पुलिस को भी बुला लें परंतु अपने बच्चे को दाखिला मिले बिना वे आमरण अनशन पर बैठे रहेंगे और वहाँ से दाखिला होने के बाद ही हटेंगे।
इस प्रकार अपने बेटे को दाखिला दिलवाने में हेडमास्टर ने जब दामू के इस दृढनिश्चय को देखा तो वे मन-ही-मन प्रसन्न हो गए।
Solution 5:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है। यहाँ पर दामू की निश्चिंतता के बारे में बताया गया है।
हेडमास्टर द्वारा दाखिले का आश्वासन देने पर दामू सवेरे ही अपने बेटे को लेकर स्कूल पहुँच गया। फार्म भरने, फीस जमा करने की सभी औपचारिकताएँ पूरी करने के बाद क्लर्क के साथ बच्चे को कक्षा में भेजा गया। अपने बेटे को कक्षा में बैठते देखा दामू को पूरी तसल्ली हो गई कि उसके बेटे को स्कूल में प्रवेश मिल चुका है।
इस तरह दामू को जब बड़े कष्ट के बाद बेटे को कक्षा में बैठते देखा तो दामू ने निश्चिंतता की साँस ली।
Solution 6:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है।
अपने बेटे को अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए दामू को बड़े कष्ट उठाने पड़े। पहले तो उसे चौकीदार को पैसे देकर स्कूल के भीतर प्रवेश करने मिला। हेडमास्टर ने नियम और कानून की बातें बताकर प्रवेश देने से इंकार ही कर दिया था। पर दामू ने हिम्मत नहीं हारी और बेटे को प्रवेश दिलाने के लिए वह हेडमास्टर के चरणों में ही गिर पड़ा और तब तक जाने के लिए तैयार न हुआ जब तक हेडमास्टर ने उसे एडमिशन का आश्वासन नहीं दिया।
इस प्रकार बड़ी मेहनत के बाद दामू अपने बच्चे को स्कूल में भरती करवाने में कामयाब रहा।
Solution 7:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है।
छुआछूत और अस्पृश्यता के बारे में लेखक बताते हैं कि यह समस्या 3500 वर्षों पुरानी है। दुनिया की आबादी का प्रत्येक छठा व्यक्ति भारतीय है और हर आबादी का छठा व्यक्ति कुछ वर्ष पूर्व तक अछूत था। सन 1950 में जब भारतीय संविधान ने छुआछूत पर प्रतिबंध लगा दिया, उस समय से अछूतों को दलित कहा जाने लगा। भारत में आज दलितों की आबादी साढ़े सोलह करोड़ के आस-पास है। दलित समाज में अब लेकिन जागृति आ रही है। देश की भी सांस्कृतिक, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति बदल रही है जिसके परिणामस्वरूप अस्पृश्यता भी ज्यादा दिनों तक टिकने वाली नहीं है। आज शिक्षा का प्रसार और देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था भी दलितों के उत्थान में सहायक बन रही है।
Solution 8:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है। यहाँ पर लेखक ने अपने पिता के बारे में जानकारी दी है।
लेखक के पिता मुंबई के पोर्ट ट्रस्ट में काम करते थे। 1960 में वे नौकरी से रिटायर होने के कारण उनके पास काफी समय बचता था। चीजों को दुरुस्त करने का पुराना शौक उनके मन में जाग उठा। वे सामने पड़ी कोई भी टूटी-फूटी चीजों को रिपेयर करने लगते थे। यहाँ तक कि सही-सलामत चीजों को भी फिर से खोलकर जोड़ते रहते थे। लेखक ने फिर पिता को अपनी जीवनी लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। शुरू में उनका मन इस काम में नहीं लगता था परंतु धीरे-धीरे उन्हें इस काम में मजा आने लगा। उन्होंने अपने संघर्षों और अपने अनुभवों को डायरी में उतारना शुरू कर दिया।
इस प्रकार लेखक के पिता अपने खाली समय का उपयोग करने लगे।
Solution 9:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखित ‘भूमिका दामू की’ पाठ से लिया गया है।
‘असीम है आसमाँ’ यह लेखक नरेंद्र जाधव की मूल मराठी पुस्तक ‘आमचा बाप आणि आम्ही’ का हिन्दी अनुवाद है।
भाषा अध्ययन
Solution 1:
- यह परिच्छेद लेखक नरेंद्र जाधव द्वारा लिखी गई ‘असीम है आसमाँ नामक पुस्तक से लिया गया है।
- बाबा लेखक के पिता को संबोधित किया गया है।
- लेखक अछूत जाति का था और अछूत जाति को पानी छूना मना था।
- यहाँ पर घड़े शब्द के लिए ‘कुंजा’ शब्द का प्रयोग किया गया है?
- लेखक द्वारा घड़े को छूने पर उसे डाँट दिया गया दूसरी ओर कुत्ता उसी घड़े से पानी आराम से चाट रहा था उस पर कोई रोक-टोक नहीं थी इसलिए लेखक को लगा कि अछूत होने से अच्छा था वे कुत्ता होते।