CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 5 are part of CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 5.
CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium Paper 5
Board | CBSE |
Class | 10 |
Subject | Social Science |
Sample Paper Set | Paper 5 |
Category | CBSE Sample Papers |
Students who are going to appear for CBSE Class 10 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 5 of Solved CBSE Sample Papers for Class 10 Social Science in Hindi Medium is given below with free PDF download Answers.
समय : 3 घण्टे
पूर्णांक : 80
सामान्य निर्देश:
- इस प्रश्न-पत्र में कुल 26 प्रश्न हैं। सभी प्रश्न अनिवार्य हैं।
- प्रत्येक प्रश्न के अंक उसके सामने दिए गए हैं।
- प्रश्न संख्या 1 से 7 अति लघु-उत्तरीय प्रश्न हैं। प्रत्येक प्रश्न 1 अंक का है।
- प्रश्न संख्या 8 से 18 तक प्रत्येक प्रश्न 3 अंक का है। इनमें से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 80 शब्दों से अधिक का नहीं होना चाहिए।
- प्रश्न संख्या 19 से 25 तक प्रत्येक प्रश्न 5 अंक का है। इनमें से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 100 शब्दों से अधिक का नहीं होना चाहिए।
- प्रश्न संख्या 26 मानचित्र से सम्बंधित है। इसके दो भाग हैं 26(A) और 26(B) / 26(A) 2 अंक का इतिहास से तथा 26(B) 3 अंक का भूगोल से है। मानचित्र का प्रश्न पूर्ण होने पर उसे अपनी उत्तर-पुस्तिका के साथ नत्थी करें।
- पूर्ण प्रश्न-पत्र में विकल्प नहीं हैं। फिर भी कई प्रश्नों में आंतरिक विकल्प हैं। ऐसे सभी प्रश्नों में से प्रत्येक से आपको एक ही विकल्प हल करना है।
प्र० 1.
19वीं शताब्दी में स्लाव राष्ट्रवादी संघर्ष क्यों हुआ? एक कारण दीजिए। 1
अथवा
19वीं शताब्दी के मध्य के दौरान फ्रांस ने ‘सभ्यता मिशन’ का विचार क्यों अपनाया? एक कारण दीजिए। 1
प्र० 2.
चार्ल्स डिकेन्स ने लोगों के जीवन व चरित्र पर औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों के बारे में क्यों लिखा? एक कारण दीजिए। 1
अथवा
16वीं सदी के दौरान यूरोप में धार्मिक अधिकारियों तथा सम्राटों के मन में मुद्रित किताब के बारे में किसी भी एक भय की व्याख्या कीजिए। 1
प्र० 3.
“विकास के लिए संसाधनों का संरक्षण अति आवश्यक है।” इस कथन के लिए एक उपयुक्त उदाहरण दीजिए। 1
अथवा
“भूमि निम्नीकरण चिंता का विषय है।” इस कथन को एक कारण देकर स्पष्ट कीजिए। 1
प्र० 4.
बेल्जियम में सामुदायिक सरकार द्वारा सत्ता के विभाजन के रूप को पहचानिये। 1
प्र० 5.
मुद्रा को विनिमय का माध्यम क्यों कहा जाता है? 1
अथवा
बैंक ऋण देते समय समर्थक ऋणाधार (Collateral Security) की माँग क्यों करते हैं? 1
प्र० 6.
एक देश की MNC ने किसी अन्य देश की स्थानीय कंपनी के साथ एक सयुंक्त उत्पादन विकसित किया। स्थानीय कंपनी के इस संयुक्त उत्पादन का एक लाभ बताइए। 1
प्र० 7.
मान लीजिए आपने अपने घर की मरम्मत के उद्देश्य से सीमेंट की एक बोरी खरीदते हैं, आप इसके लिए किस प्रतीक चिह्न (लोगो) अथवा निशान को देखेगें? 1
प्र० 8.
19वीं शताब्दी के आरंभ में उदारवाद की विचारधारा का वर्णन कीजिए। 3
अथवा
वियतनामियों के स्वतंत्रता संघर्ष में हो-ची मिन्ह की भूमिका को समझाइए। 3
प्र० 9.
“मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ रची”। तर्क सहित उत्तर दीजिए। 3
अथवा
“हिंदी साहित्य के इतिहास में परीक्षा गुरु को मील का पत्थर माना जाता है।” इस कथन को तर्क सहित स्पष्ट कीजिए। 3
प्र० 10.
“बहुउद्देशीय परियोजनाएँ तथा बड़े बाँध बहुत अधिक परिनिरीक्षण के अंतर्गत आती है। इन परियोजनाओं तथा बाँधों को स्थापित करने से होने वाली कठिनाइयों को स्पष्ट कीजिए। 3
अथवा
“भारत पानी की दुलर्भता की ओर बढ़ रहा है। इस समस्या से निपटान के संभव उपाय सुझाए। 3
प्र० 11.
जीवन निर्वाह कृषि तथा वाणिज्यिक कृषि के मध्य उदाहरण सहित विभेद कीजिए। 3
प्र० 12.
संघवाद की किन्हीं तीन प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। 3
अथवा
1992 में विकेन्द्रीकरण की दिशा में भारतीय सरकार द्वारा उठाए गए किन्हीं तीन कदमों का वर्णन कीजिए। 3
प्र० 13.
“लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति बहुत सामान्य व स्वस्थ हो सकती है।” उपयुकत उदाहरण सहित विवेचना कीजिए। 3
प्र० 14.
किस प्रकार लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था एक अच्छी शासन व्यवस्था मानी जाती है, जब इसकी तुलना तानाशाही या किसी अन्य शासन व्यवस्था से की जाती है। 3
प्र० 15.
“सतत् पोषणीय विकास एक देश के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण कदम है।” उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 3
प्र० 16.
ऋण के अनौपचारिक स्रोतों की तुलना में औपचारिक स्रोत को प्राथमिकता क्यों दी जाती है? तीन कारण दीजिए। 3
अथवा
आर्थिक विकास में ऋण एक महत्वपूर्ण तत्त्व क्यों माना जाता है? 3
प्र०17.
भारत में वैश्वीकरण के प्रभावों की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए। 3
अथवा
एक देश के आर्थिक विकास में MNCs की भूमिका को स्पष्ट कीजिए। 3
प्र० 18.
“उपभोक्ता आंदोलन केवल उपभोक्ताओं की सक्रिय भागीदारी के साथ ही प्रभावी हो सकते हैं। इस कथन को ध्यान में रखते हुए उन उपायों को स्पष्ट कीजिए जिनके द्वारा उपभोक्ता अपनी एकजुटता को प्रदर्शित कर सकते हैं। 3
प्र० 19.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी के प्रभावों का वर्णन कीजिए। 5
अथवा
भारतीय उद्योगों पर प्रथम विश्वयुद्ध के प्रभावों का वर्णन कीजिए। 5
अथवा
पारिस्थितिकी तथा पर्यावरण पर 19वीं शताब्दी के शहर के विकास के प्रभावों का वर्णन कीजिए। 5
प्र० 20.
सविनय अवज्ञा आंदोलन में विभिन्न सामाजिक वर्गों तथा समूह की भागीदारी को देखा गया। निम्नलिखित की भागीदारी के लिए कारण दीजिए। 5
- अमीर किसान
- गरीब किसान
- व्यवसायी वर्ग
- औद्योगिक श्रमिक वर्ग
- महिलाएँ
अथवा
शहरों में असहयोग आंदोलन में मध्यवर्ग ने एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। स्पष्ट कीजिए। आपके विचार से शहरों में यह आंदोलन धीमा क्यों पड़ने लगा? 5
प्र० 21.
अंधिकाश जूट मिलें हुगली तट के निकट क्यों स्थापित होती हैं? 5
प्र० 22.
“एक देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रगति उसके आर्थिक वैभव का सूचक होती है। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए। 5
प्र० 23.
सांप्रदायिकता को राजनीति में अभिव्यक्त करने वाले किन्हीं तीन रूपों का उल्लेख कीजिए। इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत के संविधान निर्माताओं द्वारा प्रदान किए गए समाधानों का वर्णन कीजिए। 5
प्र० 24.
ऐसी स्थिति को स्पष्ट कीजिए जो कि राजनीतिक पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र की कमी प्रदर्शित करती है। 5
अथवा
चुनाव के दौरान राजनीतिक पार्टियों के मध्य होने वाले पैसे तथा अपराधिक शक्ति की भूमिका को स्पष्ट कीजिए। 5
प्र० 25.
दर्शाइए किस प्रकार तृतीयक क्षेत्रक भारत के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्रक के रूप में उभर कर आया है। 5
प्र० 26.
(A) दो स्थान (a) और (b) भारत के दिए गए राजनीतिक रेखा-मानचित्र में अंकित किए गए हैं। इन स्थानों को निम्नलिखित जानकारी की सहायता से पहचानिए और उनके सही नाम मानचित्र पर खींची गई रेखाओं पर लिखिए : (2 x 1 = 2)
(a) वह स्थान जहाँ जलियाँवाला बाग की घटना हुई।
(b) वह स्थान जहाँ हिंसा के कारण असहयोग आंदोलन अचानक समाप्त हो गया था।
(B) इसी दिए गए भारत के राजनीतिक रेखा-मानचित्र में नीचे दिए गए किन्हीं तीन को उपयुक्त चिह्नों से दर्शाइए और उनके नाम लिखिए : (3 x 1 = 3)
(i) रावत भाटा ऊर्जा शक्ति संयंत्र
(ii) छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डा
(iii) भद्रावती-लोहा और इस्पात संयंत्र
(iv) नोएडा सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क
(v) विजयनगर लोहा और इस्पात उद्योग
Answers
उत्तर 1.
19वीं शताब्दी में स्लाव राष्ट्रवादी समूहों ने अपनी पहचान व स्वतंत्रता की परिभाषा तय करने के उद्देश्य से राष्ट्रवादी संघर्ष किए।
अथवा
फ्रांसीसियों ने वियतनाम के पिछड़े समाज के लोगों को सभ्य बनाने के उद्देश्य से ‘सभ्यता मिशन’ का विचार अपनाया। उनके विचार से पिछड़े समाज तक सभ्यता की रोशनी पहुँचाना विकसित यूरोपीय राष्ट्रों का ही दायित्व था।
उत्तर 2.
औद्योगीकरण के विकास के साथ ही पूंजीपतियों को उच्च एवं मजदूरों को निम्न मानने की प्रवृत्ति चल पड़ी थी। इस घटनाक्रम की कड़ी निंदा करने व समाज के लोगों को इसके दुष्प्रभावों के बारे में सजग कराने के उद्देश्य से चार्ल्स डिकेन्स ने लोगों के जीवन व चरित्र पर औद्योगीकरण के दुष्प्रभावों के बारे में लिखा।
अथवा
धर्मगुरुओं तथा सम्राटों द्वारा व्यक्त किए गए भय निम्नलिखित थे:
- वे इस बात से भयभीत थे कि छपी किताबों के व्यापक प्रचार-प्रसार व सुगमता से उपलब्ध होने का आम् जनता पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
- इस बात का भी भय था कि यदि किताबों के छपने व पढ़ने पर किसी प्रकार का कोई नियंत्रण न हुआ तो लोगों में बागी व अधार्मिक विचार उत्पन्न होने लगेंगे।
- उन्हें यह भी डर था कि इससे मूल्यवान’ साहित्य की सत्ता नष्ट हो जाएगी। (कोई एक)
उत्तर 3.
विकास के लिए संसाधनों का संरक्षण अति आवश्यक है। इसके लिए एक उपयुक्त उदाहरण वनरोपण है।
अथवा
“भूमि निम्नीकरण एक गंभीर चिंता का विषय है” क्योंकि इस कारण कई भयंकर समस्याएँ जैसे पर्यावरण असंतुलन, सूखा आदि जन्म लेती हैं।
उत्तर 4.
बेल्जियम में सत्ता का बँटवारा विभिन्न सामाजिक समूहों, जैसे भाषायी तथा धार्मिक समूहों के मध्य विभाजन के रूप में किया जाता है।
उत्तर 5.
मुद्रा को किसी भी देश की सरकार विनिमय के रूप में स्वीकार करने के लिए प्राधिकृत करती है इसलिए इसे विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है।
अथवा
बैंक ऋण देते समय समर्थक ऋणाधार की माँग गांरटी के रूप में कर्जदार से करते हैं, क्योंकि यदि देय तिथि पर कर्जदार उधार वापस करने में असमर्थ होते हैं, तो उस स्थिति में बैंक के पास भुगतान प्राप्ति के लिए समर्थक ऋणाधार बेचने का अधिकार होता है अर्थात् इसके द्वारा उनकी ‘रकम’ के डूबने का खतरा नहीं रहता।
उत्तर 6.
इस संयुक्त उत्पादन से स्थानीय कंपनी को दोहरा लाभ प्राप्त होता है :
- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ (MNCs) अतिरिक्त निवेश के लिए धन प्रदान करती है।
- MNCs उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी को तीव्रता से प्रयोग में ला सकती है।
उत्तर 7.
ISI मार्क
उत्तर 8.
यूरोप में 19वीं सदी के आरंभिक दशकों में राष्ट्रीय एकता के विचार उदारवाद से संबंधित थे। नए मध्यवर्गों के लिए उदारवाद का अर्थ व्यक्ति के लिए आज़ादी व कानून के समक्ष सबकी बराबरी था। राजनीतिक रूप से उदारवाद एक ऐसी सरकार पर ज़ोर देता था जो सबकी सहमति से बनी हो। उदारवाद निरकुंश शासक व पादरीवर्ग के विशेषाधिकारों की समाप्ति, संविधान तथा संसदीय प्रतिनिधि सरकार का पक्षधर भी था।
अथवा
हो-ची मिन्ह वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता थे। इन्होंने वियतनाम की स्वाधीनता एवं एकीकरण के लिए संघर्ष करते हुए 40 वर्ष से अधिक समय तक पार्टी का नेतृत्व किया।
- 1930 में उन्होंने राष्ट्रवादियों के लिए विभिन्न समूहों तथा गुटों को एकत्रित करके ‘वियतनामी कम्युनिस्ट पार्टी’ की स्थापना की जिसे बाद में ‘इंडो-चाइनीज़ कम्युनिस्ट पार्टी’ के नाम से जाना गया। वह यूरोपीय कम्युनिस्ट पार्टियों के उग्र आंदोलनों से बहुत अधिक प्रभावित थे।
- 1940 में जापान ने वियतनाम पर कब्जा कर लिया, जिस कारण राष्ट्रवादियों को फ्रांसीसियों के साथ जापानियों से भी युद्ध करना पड़ा। जापानियों से युद्ध करने के लिए ‘वियेत मिन्ह’ नामक संघ की स्थापना की गई जिसकी सहायता से सितंबर 1945 में हनोई को भी स्वतंत्र करवा लिया गया। इसके बाद वियतनाम के लोकतांत्रिक गणराज्य का गठन हुआ और हो-ची मिन्ह इसके अध्यक्ष बने।
- वियतनाम में अमेरिकी हस्तक्षेप के पश्चात् उन्होंने शक्तिशाली अमेरिकी सेना के विरुद्ध लड़ने के लिए संसाधनों तथा सेना के साथ NLF (नेशनल लिबरेशन फ्रंट) का समर्थन किया।
उत्तर 9.
मुद्रण संस्कृति ने फ्रांसीसी क्रांति के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कीं :
- मुद्रण संस्कृति ने प्रबुद्ध विचारकों के विचारों को बढ़ावा दिया। उनके लेखनों ने पूर्णतः परंपरा, अंधविश्वास तथा निरंकुशवाद की आलोचना की।
- उन्होंने चर्च के पवित्र अधिकारों तथा राज्य की निराशाजनक शक्तियों पर हमला किया और इस प्रकार पारंपरिक आधार पर दिए गए आदेशों की वैधता को समाप्त कर दिया गया। वॉल्तेयर और रूसो को व्यापक रूप से पढ़ा और समझा भी गया।
- जानकारों, आलोचकों तथा तर्कपूर्ण रूप से देखने वाले लोगों द्वारा सभी मूल्यों, मानदंडों और संस्थाओं का पुनर्मूल्यांकन किया गया। इसलिए सामाजिक क्रांति के नए विचारों का जन्म हुआ।
- 1780 के दशक तक, साहित्य ने राजशाही तथा उसकी नैतिकता को मजाक बनाया और जमकर आलोचना की। फलस्वरूप आम जनता में राजतंत्र के विरूद्ध शत्रुतापूर्ण भावनाओं का विकास हुआ।
अथवा
श्रीनिवास दास द्वारा रचित ‘परीक्षा गुरु’ हिंदी भाषा का पहला उपन्यास है। इसका प्रकाशन 1882 में हुआ था। यह उपन्यास हिंदू बैंकरों तथा व्यापारियों की असाधारण कहानी बताता है। इसका विषय पश्चिमी संस्कृति अपनाना नहीं था। इसने निम्नलिखित तथ्यों का प्रचार किया जो इससे पहले किसी उपन्यास में नहीं किया था।
- इसमें सम्पन्न परिवारों के युवाओं को बुरी संगत के खतरों और इसके परिणामस्वरूप होने वाले नैतिक पतन से बचने हेतु आगाह किया गया है।
- यह उपन्यास चरित्रों के आधार पर नवनिर्मित मध्यवर्ग की आंतरिक और बाह्य दुनिया को, उपन्यास के चरित्रों के सामने औपनिवेशिक समाज को अपनाने में होने वाली कठिनाइयों और उनके द्वारा अपनी सांस्कृतिक अस्मिता को बचाने के प्रयासों द्वारा दर्शाता है। औपनिवेशिक आधुनिकता चरित्रों की सांस्कृतिक पहचान के लिए डरावनी और अनूठी है।
- यह उपन्यास पाठकों को जीने का सही तरीका बताता है और हर समझदार इंसान से यह आशा करता है। कि वह चतुर और व्यावहारिक बनने के साथ अपनी संस्कृति और परंपरा में रहकर सम्मानीय जीवन जिए।
- उपन्यास के चरित्र अपने कर्म के द्वारा दो विभिन्न संसारों के मध्य की दूरी को कम करने का प्रयास करते दिखाई देते हैं। उपन्यास में युवाओं से अखबार पढ़ने जैसी ‘स्वस्थ आदत’ बनाने की अपील भी गई है। उपन्यास इस बात पर जोर देता है कि औपनिवेशिक आधुनिकता को मध्यमवर्गीय गृहस्थी के पारंपरिक मूल्यों के साथ समझौता किए बिना अपनाया जाए। अपने तमाम अच्छे प्रयासों के बावजूद परीक्षा गुरु अपनी उपदेशात्मक शैली के कारण बहुत ज्यादा पाठक नहीं जुटा पाया।
उत्तर 10.
- नदियों पर बाँध बनाने तथा उनका बहाव नियंत्रित करने से नदियों को प्राकृतिक बहाव बाधित होता है, जिसके कारण तलछट बहाव कम हो जाता है और वह जलाशय की तली में जमा होता रहता है। इससे नदी का तल चट्टानी हो जाता है और नदी के जलीय जीव-आवासों में भोजन की बेहद कमी हो जाती है।
- बाँध नदियों को टुकड़ों में बाँट देते हैं जिससे विशेषकर अंडे देने की ऋतु में जलीय जीवों का नदियों में स्थानातंरण बाधित हो जाता है।
- बाढ़ के मैदान में बनाए जाने वाले जलाशयों द्वारा वहाँ मौजूद वनस्पति तथा मिट्टी जल में डूब जाती है। जो लम्बे समयान्तराल में अपघटित हो जाती है तथा लाखों लोग बेघर हो जाते हैं।
अथवा
भारत में जल दुर्लभता को दूर करने के संभव उपाय इस प्रकार हैं :
- भौमजल के स्तर को बनाए रखने के लिए वर्षा जल संरक्षण करना।
- नदियों व तालाबों में गर्म जल तथा अपशिष्ट पदार्थों को प्रवाहित करने से पूर्व उनका शोधन करना।
- बागवानी, वाहनों की धुलाई, शौचालयों व अन्य कार्यों में जल के अनावश्यक उपयोग को रोकना।
- सभी जल निकास की इकाईयाँ, जैसे कुएँ, नलकूप आदि को पंजीकृत करना ताकि उद्योगों की पूर्ति हेतु इसका अनावश्यक उपयोग न किया जाए।
- जल के संरक्षण तथा उसके कुशल प्रबंधन से संबंधित सभी क्रियाकलापों से जनमानस को जागरूक कराना।
उत्तर 11.
भारत में प्रचलित ‘जीवन निर्वाह कृषि तथा वाणिज्यिक कृषि’ के मध्य विभेद:
उत्तर 12.
संघीय शासन व्यवस्था की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- यहाँ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती हैं।
- अलग-अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं परन्तु कानून बनाने, कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना-अपना अधिकार क्षेत्र होता है।
- वित्तीय स्वायत्तता निश्चित करने के लिए विभिन्न स्तर की सरकारों के लिए राजस्व के अलग-अलग स्त्रोत निर्धारित हैं।
- विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार-क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं इसलिए संविधान सरकार के हर स्तर के अस्तित्व और प्राधिकार की गांरटी और सुरक्षा देता है।
अथवा
तीसरे प्रकार की शासन व्यवस्था को अधिक प्रभावी तथा शक्तिशाली बनाने के लिए विकेंद्रीकरण की दिशा में 1992 में कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाए गए है।
- अब स्थानीय स्वशासी निकायों के चुनाव नियमित रूप से करना संवैधानिक बाध्यता है।
- निर्वाचित स्वशासी निकायों के सदस्य तथा पदाधिकारियों के पदों में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों के लिए भी सीटें आरक्षित की गई हैं।
- कम से कम एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए भी आरक्षित की गई हैं।
- प्रत्येक राज्य में पंचायत तथा नगरपालिका चुनाव कराने के लिए राज्य चुनाव आयोग नामक स्वतंत्र संस्था का गठन किया गया है।
- राज्य सरकारों को अपने राजस्व तथा अधिकारों का कुछ अंश स्थानीय स्वशासी निकायों को भी देने का प्रावधान किया गया है। (कोई तीन)
उत्तर 13.
लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन की राजनीतिक अभिव्यक्ति बहुत सामान्य व स्वस्थ हो सकती है :
- इस सामाजिक विभाजन द्वारा समाज के निम्नवर्ग को अपनी आवश्यकताओं व समस्याओं को सरकार के समक्ष प्रस्तुत करने का अवसर प्राप्त होता है।
- लोकतंत्र में सामाजिक विभाजन द्वारी लोग शांतिपूर्ण व संवैधानिक तरीकों द्वारा अपनी माँग रखते हैं तथा चुनावों के माध्यम से उन्हें प्राप्त करने के लिए सरकार पर दबाव बनाते हैं।
- राजनीति में विभिन्न प्रकार के सामाजिक विभाजनों की अभिव्यक्ति ऐसे विभाजनों के मध्य संतुलन बनाए रखने का कार्य करती है। इसी कारण सामाजिक विभाजन एक हद से अधिक उग्र नहीं हो पाता। इस स्थिति में लोकतंत्र और अधिक मजबूत होता जाता है।
उदाहरण – यदि सरकार सत्ता में साझेदारी करने को तैयार हो तथा अल्पसंख्यक समुदाय की उचित माँगों को ईमानदारी से पूरा करने का प्रयास करे तो यह विभाजन देश के लिए लाभकारी सिद्ध होता है।
उत्तर 14.
लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था किसी और शासन व्यवस्था से अच्छी मानी जाती है क्योंकि-
- लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें स्वतंत्रता, समानता व न्याय पर अधिक बल दिया जाता है। लोकतंत्र में नागरिकों को सरकार चुनने का अधिकार है। सरकार जनता के प्रति पूरी तरह जवाबदेह होती है।
- लोकतांत्रिक सरकार गैर-लोकतांत्रिक सरकारों की अपेक्षा अधिक पारदर्शी होती है, अर्थात् इसमें जनता को सरकार द्वारा लिए जाने वाले फैसलों को जानने की स्वतंत्रता होती है।
- सामाजिक अंतर, विभाजन व टकरावों को सुलझाना निश्चित रूप से लोकतांत्रिक व्यवस्था की एक सबसे प्रमुख विशेषता है।
- गैर-लोकतांत्रिक सरकारों की अपेक्षा लोकतांत्रिक सरकार वैध सरकार का गठन करती है।
उत्तर 15.
सतत् पोषणीय विकास का अर्थ है कि प्रकृति के विभिन्न साधनों का प्रयोग इस प्रकार किया जाए ताकि उसका अस्तित्व समाप्त न हो जाए। धारणीयता विकास का ऐसा स्तर है जिसमें विकास वर्तमान में पर्यावरण को बिना हानि पहुचाएँ तथा भावी पीढ़ी की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए किया जाता है। हमें प्राकृतिक संसाधनों का बहुत सावधानी एवं समझदारी से प्रयोग करना चाहिए ताकि उनका लाभ वर्तमान के साथ-साथ भावी पीढ़ियों को भी प्राप्त होता रहे। प्राकृतिक संसाधनों, जैसे कोयला, कच्चे तेल आदि, के भंडार सीमित तथा अनवीकरणीय हैं अर्थात् इन्हें एक बार प्रयोग करने के पश्चात् प्राप्त करना बहुत कठिन होता है। हमें प्राकृतिक संसाधनों को मानव शोषण से बचाना चाहिए। इनके दोहन पर रोकथाम लगाना भी अति आवश्यक है, अन्यथा वर्तमान पीढ़ी के साथ-साथ भावी पीढ़ियों को भी प्राकृतिक संसाधनों के लाभों से वंचित रहना पड़ेगा। ऐसा सम्पूर्ण विश्व के लिए अति दुर्भाग्यपूर्ण होगा। हमें अपने संसाधनों का प्रयोग एक सीमित मात्रा में तथा बड़ी सूझबूझ के साथ करना चाहिए।
उत्तर 16.
अनौपचारिक स्रोतों की अपेक्षा औपचारिक स्रोतों से ऋण लेने के निम्नलिखित कारण हैं :
- अनौपचारिक क्षेत्रक के ऋणदाताओं की कार्यप्रणाली का निरीक्षण करने वाली कोई संस्था नहीं होती। ऋणदाता ऐच्छिक दरों पर ऋण देते हैं तथा ऋण को गैरकानूनी तरीके से वसूलने में भी पीछे नहीं हटते।
- इस क्षेत्रक में ऋणदाता दिए गए ऋण पर अधिक से अधिक ब्याज लेने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनकी कोई सीमा नहीं होती एवं ना ही उन पर कोई बंधन होता है।
- ऋण की दरें बहुत ऊँची होने के कारण ऋण लेने वाले की आय का अधिकतर भाग ब्याज की अदायगी में ही चला जाता है। परंतु मूलधन वहीं का वहीं रह जाता है परिणामस्वरूप ऋण लेने वाला ऋणदाता के जाल में ही फंसा रह जाता है।
- औपचारिक स्रोत अनौपचारिक स्रोत की अपेक्षा अधिक सुविधाजनक हैं क्योंकि इनसे ऋण लेने वालों को किसी भी प्रकार का शोषण नहीं होता। परंतु अनौपचारिक स्रोत से ऋण लेने वाले को शोषण का शिकार बनना ही पड़ता है। उदाहरण-यदि कोई किसान किसी व्यापारी से ऋण लेता है तो वह चाहेगा कि किसान उसे अनाज सस्ते दामों में बेचे ताकि वह उसे बाजार में महंगे दामों पर बेच कर अधिक मुनाफा कमा सके।
अथवा
ऋण से तात्पर्य एक सहमति से है जहाँ ऋणदाता कर्ज र को धन, वस्तुएँ या सेवाएँ उपलब्ध कराता है और बदले में भविष्य में कर्जदार से भुगतान करने का वादा लेता है।
- सस्ते और सामर्थ्य के अनुकूल ऋण द्वारा लोगों की आय बढ़ सकती है जिसके परिणामस्वरूप बहुत से लोग अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए सस्ता ऋण ले सकते है।
- सस्ते ऋण द्वारा किसान उत्तम किस्म के बीजों तथा आधुनिक कृषि उपकरणों को खरीद सकते हैं तथा इनके उपयोग से अच्छी फसल उगा सकते हैं।
- ऋण सस्ता होने से छोटे व्यवसायी अपनी व्यावसायिक गतिविधियों को बढ़ा सकते हैं तथा नवीन उद्योगों में भी धन निवेश कर सकते हैं।
इसके साथ-साथ सस्ते तथा सामर्थ्य अनुकूल ऋण कुटीर तथा अन्य गृह उद्योगों के लिए वरदान सिद्ध हो सकते हैं। परिणामस्वरूप, विभिन्न प्रकार के उद्योगों का विकास होता है, रोजगार के अवसर बढ़ते हैं, जो किसी भी देश के आर्थिक विकास के लिए अनिवार्य शर्त है।
उत्तर 17.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के भिन्न-भिन्न प्रभाव पड़े हैं। वैश्वीकरण से उपभोक्ताओं, विशेषकर शहरी क्षेत्र में धनी वर्ग के उपभोक्ताओं को लाभ हुआ है। इन उपभोक्ताओं के समक्ष पहले से अधिक विकल्प उपलब्ध हैं और वे अब अनेक उत्पादों की उत्कृष्ट गुणवत्ता और कम कीमत से लाभ उठा रहे हैं। इससे ये लोग पहले की तुलना में आज अपेक्षाकृत उच्चतर जीवन स्तर का आनंद ले रहे हैं। परंतु छोटे उत्पादकों व कुटीर उद्योगों को वैश्वीकरण से हानि हुई है। बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा के चलते छोटे उद्योग अब समाप्त होते जा रहे हैं। इन क्षेत्रों में लगे लोगों के सामने आज बेरोजगारी का खतरा मंडरा रहा है। कई छोटे उद्योग बंद हो गए हैं एवं कई श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं। निर्यातकों के बीच प्रतिस्पर्धा से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अधिक लाभ कमाने में मदद मिली है, परंतु वैश्वीकरण के कारण मिले लाभ में श्रमिकों को न्यायसंगत हिस्सा नहीं मिल पाया है।
अथवा
आर्थिक विकास में MNCs की भूमिका है।
- विकसित देशों की बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ छोटे उत्पादकों को उत्पादन का ऑर्डर देती हैं तत्पश्चात् उत्पाद को अपने ब्राण्ड नाम के साथ ग्राहकों को बेचती हैं।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ दूरस्थ उत्पादकों के मूल्य, गुणवत्ता, आपूर्ति और श्रम शर्तों का निर्धारण कर उत्पादन पर नियंत्रण रखती हैं।
- बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ उस स्थान पर उत्पादन इकाई स्थापित करती हैं जो बाज़ार के निकट हो, जहाँ कम लागत पर कुशल और अकुशल श्रम उपलब्ध हों तथा जहाँ उत्पादन के अन्य कारकों की उपलब्धता हो। जिस कारण देश के लोगों को रोजगार प्राप्त होता है।
- कभी-कभी बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ स्थानीय कंपनियों के साथ संयुक्त रूप से उत्पादन कर तथा उन पर नियंत्रण कर स्थानीय कपनियों को दोहरा लाभ कमाने का अवसर प्रदान करती हैं।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी अपनाकर उत्पादन को तीव्रता प्रदान कर वैश्वीकरण को संभव बनाया है।
- बहुराष्ट्रीय कम्पनियाँ अन्य देशों में अपने उत्पादन को विस्तार कर रही हैं जिससे इन देशों में विदेशी निवेश की पूर्ति होती है।
उत्तर 18.
इस कथन में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि उपभोक्ता आंदोलन तभी प्रभावी हो सकते हैं जब उपभोक्ता उसमें सक्रिय रूप से भाग लें। निम्नलिखित उपायों के द्वारा उपभोक्ता अपनी एकजुटता को प्रदर्शित कर सकते हैं :
- उपभोक्ता अपनी एकजुटता का प्रदर्शन उपभोक्ता यूनियन व संगठन बनाकर संयुक्त रूप से सरकार के समक्ष उपभोक्ता संरक्षण से संबंधित माँगें रखकर कर सकते हैं।
- उपभोक्ता अपने विभिन्न अधिकारों (जैसे-चयन, सूचना, सुरक्षा, क्षतिपूर्ति, प्रतिनिधित्व तथा शोषण के विरूद्ध अपने अधिकार) तथा कर्तव्यों के प्रति जागरूक होकर कर सकते हैं।
- उपभोक्ता अपने साथ किसी प्रकार की धोखाधड़ी होने पर मौन रहने की बजाय कोपरा (COPRA) के अंतर्गत निर्मित उपभोक्ता अदालतों में इसकी शिकायत दर्ज करवा सकते हैं।
उत्तर 19.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर महामंदी के प्रभाव:
- महामंदी का भारतीय व्यापार पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। 1928 से 1934 के मध्य भारत के आयात तथा निर्यात घट कर आधे रह गए। इसी दौरान भारत में गेहूं की कीमत में भी 50% तक कमी आई।
- आर्थिक महामंदी का सबसे बुरा प्रभाव उन काश्तकारों पर पड़ा जो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिए उत्पादन करते थे।
- बंगाल में जूट का उत्पादन करने वाले लोगों पर भी महामंदी का विनाशकारी प्रभाव पड़ा। जूट की कीमतों में 60% की वृद्धि हुई जिस कारण जूट उत्पादक बर्बाद हो गए तथा पहले से भी अधिक कर्ज में डूबे गए।
- आर्थिक महामंदी के दौरान कृषि उत्पादों की कीमतों में बहुत अधिक कमी आई परंतु औपनिवेशिक सरकार ने लगान में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं की। परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में फैल रहे असंतोष को देखते हुए महात्मा गाँधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ किया।
- अपने दैनिक खर्चे को पूरा करने के लिए काश्तकारों को अपनी जमीनों को ज़मीदारों के पास गिरवी रखने व जेवर बेचने के लिए विवश होना पड़ा। सरकार ने राष्ट्रवादी खेमे के दबाव में उद्योगों की रक्षा के लिए सीमा शुल्क बढ़ा दिए जिस कारण औद्योगिक क्षेत्र में भी निवेश में तीव्रता नजर आई।
अथवा
प्रथम विश्वयुद्ध से भारतीय उद्योगों को अनेक कारणों से प्रोत्साहन मिला :
- ब्रिटिश कारखाने सेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए युद्ध-संबंधी उत्पादन में व्यस्त हो गए, इससे भारत में वास्तविक रूप से सारे आयात बंद हो गए।
- भारतीय कारखानों को अचानक घरेलू बाजार के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ उत्पादित करने का अवसर मिल गया।
- भारतीय कारखानों में भी फौज के लिए जूट की बोरियाँ, फौजियों की वर्दी, टैंट, चमड़े के जूते, घोड़े तथा खच्चरों के लिए जीन तथा अन्य बहुत सारे सैन्य उत्पाद तैयार होने लगे।
- कारखानों में उत्पादन बढ़ाने के लिए कई पालियों में काम किया जाने लगा।
- बहुत सारे नए मजदूरों को काम पर रखा गया। इतना ही नहीं, अधिक उत्पादन के लिए प्रत्येक मज़दूर को पहले से अधिक काम करना पड़ता था।
यही कारण था कि प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय औद्योगिक उत्पादन बढ़ गया।
अथवा
शहरों का विकास पारिस्थितिक तथा पर्यावरण की कीमत से जुड़ा था
- कारखाने, मकान तथा अन्य संस्थानों को स्थापित करने के उद्देश्य से बहुत अधिक मात्रा में प्राकृतिक आयामों के साथ काँट-छाँट की गई।
- शहरों में उत्पन्न होने वाले कचरे व गंदगी से हवा तथा जल प्रदूषित होने लगा।
- 19वीं शताब्दी में इग्लैंड के घरों व कारखानों में कोर ते के अत्यधिक उपयोग से गंभीर समस्याएँ उत्पन्न होने लगीं।
- लीड्स, अँडफोर्ड तथा मैनचेस्टर जैसे औद्योगिक शहरों में कारखानों की चिमनियों से बहुत अधिक मात्रा में काला धुआं निकलता था। लोगों को अब यह लगने लगा कि ऐसी परिस्थिति भी उत्पन्न हो सकती है जब आसमान मटमैला होने लगेगा। इस कारण वहाँ रहने वालों में धुएँ से जुड़ी बिमारियाँ फैलने लगीं।
- शहरों की हवा को साफ करने के लिए लोगों ने एकजुट होकर कई कैम्पेन चलाए परंतु मिल मालिक अपनी मशीनों को सुधारने के लिए पैसे खर्च नहीं करना चाहते थे। 1840 में डर्बी, लीड्स व मैनचेस्टर जैसे शहरों में धुआं नियंत्रण कानून भी बनाए परंतु ये कानून अपने लक्ष्य में हमेशा असफल ही रहे।
उत्तर 20.
- अमीर किसान – गाँवों में संपन्न किसान समुदाय, जैसे-गुजरात के पाटीदार और उत्तर प्रदेश के जाट आंदोलन में सक्रिय थे। यह समुदाय आंदोलन में बढ़-चढ़ कर भाग ले रहा था। उनके लिए स्वराज की लड़ाई भारी लगाने के विरूद्ध लड़ाई थी।
- गरीब किसान – गरीब किसान केवल लगान में कमी नहीं चाहते थे। वे चाहते थे कि ज़मींदारों को चुकाए जाने वाले उनके भाड़े को माफ़ कर दिया जाए। इसके लिए उन्होंने कई रेडिकल आंदोलनों में हिस्सा लिया।
- व्यवसायी वर्ग – पुरुषोत्तमदास ठाकुरदास और जी०डी० बिड़ला जैसे जाने-माने उद्योगपतियों के नेतृत्व में उद्योगपतियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर औपनिवेशिक नियंत्रण का विरोध किया और सविनय अवज्ञा आंदोलन का समर्थन किया।
- औद्योगिक श्रमिक वर्ग – जैसे-जैसे उद्योगपति कांग्रेस के निकट आते गए वैसे-वैसे औद्योगिक श्रमिक वर्ग ने सविनय अवज्ञा आंदोलन में अपनी भागीदारी कम कर दी। नागपुर के अतिरिक्त किसी अन्य स्थान पर औद्योगिक श्रमिकों ने इस आंदोलन में हिस्सा नहीं लिया परंतु फिर भी कुछ मजदूरों ने इस आंदोलन में गाँधीवादी विचारों, जैसे विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, कम वेतन व खराब कार्यस्थितियों का विरोध आदि, को अपनाकर प्रदर्शन किया।
- महिला वर्ग – सविनय अवज्ञा आंदोलन में औरतों ने बड़े स्तर पर हिस्सा लिया। उन्होंने जुलूसों में, नमक बनाने में और विदेशी कपड़ों व शराब की दुकानों की पिकेटिंग में भाग लिया।
अथवा
शहरों में असहयोग आंदोलन शहरी मध्य वर्ग की हिस्सेदारी के साथ शुरू हुआ :
- हज़ारों विद्यार्थियों ने सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूल-कॉलेजों का बहिष्कार कर दिया। मुख्याध्यापकों तथा शिक्षकों ने स्कूलों से इस्तीफा दे दिया। वकीलों ने भी मुकदमे लड़ना बंद कर दिया।
- मद्रास के अतिरिक्त अधिकतर प्रांतों में परिषद् चुनावों का बहिष्कार किया गया।
- विदेशी वस्तुओं तथा विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया गया। व्यापारियों ने भी विदेशी वस्तुओं को व्यापार करने से मना कर दिया।
असहयोग आन्दोलन के शहरों में धीमा पड़ने के कारण :
- हाथ से बुनी खादी का कपड़ा मिलों में भारी मात्रा में बनने वाले कपड़े के मुकाबले में प्रायः महँगा होता था अतः गरीब लोग उसे खरीद नहीं सकते थे। अतः वे मिलों के कपड़े का लंबे समय तक बहिष्कार नहीं कर सकते थे।
- ब्रिटिश संस्थानों के बहिष्कार से भी समस्या पैदा हो गई थी। आंदोलन की सफलता के लिए वैकल्पिक भारतीय संस्थानों की स्थापना आवश्यक थी ताकि ब्रिटिश संस्थानों के स्थान पर उनका प्रयोग किया जा सके। परन्तु वैकल्पिक संस्थानों की स्थापना की प्रक्रिया धीमी थी। फलस्वरूप विद्यार्थी और शिक्षक सरकारी स्कूलों में लौटने लगे और वकील दोबारा सरकारी अदालतों में दिखाई देने लगे।
- काउंसिल के चुनावों का भी सभी वर्गों ने बहिष्कार नहीं किया था। मद्रास की जस्टिस पार्टी ने काउंसिल चुनावों में भाग लिया।
उत्तर 21.
जूट मिलों के हुगली नदी के निकट स्थित होने के कारण :
- हुगली नदी क्षेत्र जूट उत्पादन में अग्रणी है। इसलिए मिलों को कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो जाता है।
- हुगली नदी अंत:स्थानीय जल मार्ग का केन्द्र भी है तथा इसके समीप सड़कों और रेलवे की अच्छी सुविधाएँ हैं जिससे तैयार माल का परिवहन सरलता से हो जाता है।
- जूट उत्पादन करने वाली मिलों में उपयोग किए जाने काले पानी की माँग हुगली नदी द्वारा आसानी से पूरी हो जाती है।
- इन मिलों के लिए सस्ते मज़दूर पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा और उत्तर प्रदेश से आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
- वर्षा के अधिक होने से नदियाँ, तालाब और जलाशय जल से भरे रहते हैं। जूट को रंगने, साफ करने, गलाने आदि के लिए विपुल मात्रा में जल चाहिए, जो यहाँ सहज सुलभ है।
उत्तर 22.
एक देश के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की प्रगति उसके आर्थिक वैभव का सूचक होती है :
- संसाधन पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने के कारण कोई भी देश वस्तुओं वे सेवाओं का व्यापार स्वयं नहीं कर सकता इसलिए सभी देश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर निर्भर रहते हैं।
- यदि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का भुगतान शेष अधिशेष (Surplus) (अर्थात् निर्यात मूल्य आयात मूल्य से अधिक होता है) दर्शाता है तो देश, विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में समर्थ होता है।
- एक देश की आर्थिक समृद्धि को उसकी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के आधार पर मापा जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार विश्व के सभी देशों के हितों की रक्षा करता है और कच्चे माल की उपलब्धि के लिए सभी देशों को समान अवसर उपलब्ध करता है।
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार द्वारा प्राप्त विदेशी मुद्रा का प्रयोग अनेक महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के आयात में किया जाता है जिसकी देश व देश में चलाए जाने वाले उद्योगों को आवश्यकता होती है।
उत्तर 23.
सांप्रदायिकता को राजनीति में अभिव्यक्त करने वाले तीन रूप इस प्रकार हैं-
- साम्प्रदायिकता की सबसे आम अभिव्यक्ति दैनिक जीवन में ही दिखाई पड़ती है। इनमें धार्मिक पूर्वाग्रह, धार्मिक समुदायों के विषय में बनी-बनाई धारणाएँ और एक धर्म को दूसरे धर्म से श्रेष्ठ मानने जैसी मान्यताएँ शामिल हैं।
- साम्प्रदायिक सोच अक्सर अपने समुदाय का राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने की फ़िराक में रहती है। जो लोग बहुसंख्यक समुदाय से संबंधित होते हैं उनका यह प्रयास बहुसंख्यकवाद का रूप ले लेता है तथा जो अल्पसंख्यक समुदाय के होते हैं उनमें एक अलग राजनीतिक इकाई बनाने की इच्छा होती है।
- सांप्रदायिक आधार पर राजनीतिक गुटबंदी सांप्रदायिकता का दूसरा रूप है। चुनावी राजनीति में एक धर्म के मतदाताओं की भावनाओं या हितों की बात उठाने जैसे तरीके आम तौर पर अपनाए जाते हैं।
चुनौती का सामना करने के लिए भारत के संविधान निर्माताओं द्वारा प्रदान किए गए समाधान – इस समस्या के समाधान के लिए संविधान निर्माताओं ने धर्मनिरपेक्ष शासन का मॉडल चुना तथा इसी आधार पर संविधान में अनेक प्रावधान अपनाए जो कि निम्नलिखित हैं :
- जिस प्रकार श्रीलंका में बौद्ध धर्म, पाकिस्तान में इस्लाम तथा इंग्लैंड में इसाई धर्म को विशेषाधिकार दिया गया है परंतु भारत में किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं दिया गया है। भारतीय संविधान में सभी धर्म को समान अधिकार प्राप्त है।
- संविधान में सभी नागरिकों को किसी भी धर्म को अपनाने तथा उसका प्रचार करने की पूरी स्वतंत्रता है।
- संविधान, धर्म के आधार पर किए जाने वाले किसी भी प्रकार के भेदभाव को अवैधानिक घोषित करता है।
- संविधान, धार्मिक समुदायों में समानता सुनिश्चित करने के लिए शासन को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार प्रदान करता है।
उत्तर 24.
सम्पूर्ण विश्व में यह प्रवृत्ति बन गई है कि सम्पूर्ण शक्ति एक या कुछ नेताओं के हाथों में सिमट कर रह जाती है। राजनीतिक पार्टियों के पास न तो सदस्यों की खुली सूची होती है और न ही इनकी नियमित रूप से सांगठनिक बैठकें होती हैं। इन पार्टियों के आंतरिक चुनाव भी नहीं होते।
परिणामस्वरूप दलों की कार्यप्रणाली पारदर्शी नहीं रह पाती तथा पार्टी के नाम पर सारे निर्णय लेने का अधिकार उस पार्टी के प्रभावशाली नेता हथिया लेते हैं। चूँकि कुछेक नेताओं के पास ही वास्तविक शक्ति होती है इसलिए जो सदस्य उनसे असहमत होते हैं, उनका पार्टी में टिके रह पानी अत्यंत जटिल हो जाता है। इस कारण कोई भी सदस्य उनके समक्ष अपना विरोध प्रदर्शित नहीं कर पाता। अतः इस प्रकार पार्टी के सिद्धांतों और नीतियों से निष्ठा के स्थान पर व्यक्ति विशेष से निष्ठा ही अधिक महत्त्वपूर्ण बन जाती है।
अथवा
चुनाव के समय पैसा तथा अपराधी तत्त्वों का प्रभुत्व :
- चुनाव जीतने की होड़ में राजनीतिक पार्टियाँ पैसे का अनुचित प्रयोग करके अपनी पार्टी का बहुमत स्थापित करने का प्रयत्न करती हैं।
- ये, पार्टियाँ मुख्य तौर पर ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाती हैं जो तन, बल तथा जन तीनों से समृद्ध हों।
- सामान्यतः ऐसा देखा गया है कि अधिक धन देने वाली कंपनियाँ तथा अमीर लोग, अपने द्वारा समर्थित एवं जीती हुई पार्टी की नीतियों तथा फैसले पर भी अपना मत थोपते हैं।
- कई बार पार्टियाँ केवल चुनाव जीतने के लिए बाहुबली अपराधियों की मदद लेती हैं अथवा उनको अपनी पार्टी का उम्मीदवार बनाती हैं।
- दुनिया भर में लोकतंत्र के समर्थक लोकतांत्रिक राजनीति में दबाव समूहों व बड़ी कंपनियों की बढ़ती भूमिका को लेकर चिंतित हैं।
उत्तर 25.
सेवा क्षेत्र का महत्त्व :
- सेवा क्षेत्र द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं की शीघ्र एवं कम मूल्य पर पूर्ति से लागत में कमी होती है, जिससे उपभोक्ताओं को लाभ होता है।
- किसी भी देश में अनेक सेवाओं, जैसे-अस्पताल, शैक्षिक संस्थाएँ, डाक वे तार सेवा, थाना, कचहरी, नगर-निगम, रक्षा, परिवहन, बैंक इत्यादि की आवश्यकता होती है जिन्हें तृतीयक क्षेत्रक पूरा करता है।
- कृषि एवं उद्योग के विकास के परिवहन, व्यापार, भण्डारण जैसी सेवाओं का विकास होता है। प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रक के विकास में तृतीयक क्षेत्रक पूरा सहयोग देता है। सेवा क्षेत्र की सेवाओं से समय एवं स्थान की बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
- तृतीयक क्षेत्रक में विस्तार होने के कारण इसने लाखों लोगों को रोजगार प्रदान किया है तथा लोगों की कार्य-कुशलता में वृद्धि होने से यह क्षेत्रक बहुत अधिक विकसित हुआ है।
- सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाएँ, जैसे-इंटरनेट कैफे, A.T.M. बूथ आदि, में भी तृतीयक क्षेत्रक बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
दुर्भाग्यवश, भारत के सेवा क्षेत्र में तीव्र वृद्धि ने रोजगार में अपेक्षित वृद्धि नहीं दर्शायी है।
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