CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 1 are part of CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 1.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 1
Board | CBSE |
Class | XII |
Subject | Hindi |
Sample Paper Set | Paper 1 |
Category | CBSE Sample Papers |
Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 1 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.
समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100
सामान्य निर्देश
- इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं-क, ख और ग।
- तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (15)
ईश्वर सच्चिदानंद स्वरूप है तथा उसकी सर्वोत्कृष्ट रचना है-मानव। कण-कण में व्याप्त होने के साथ ही वह सर्वाधिक निकट हमारे अंदर स्थित है, फिर भी मानुव हताश, निराश, दुःखी तथा अशांत है। कारण है ईश्वरीय ज्ञान का अभाव। प्रश्न है उसे कैसे जाना जाए? ईश्वर से मिलन का सीधा-सरल तरीका है—ध्यान। ध्यान है देखना, पर इन बाहरी आँखों से नहीं अंतर्दृष्टि से देखना। ध्यान के द्वारा मुन को एकाग्र कर प्राण में, आत्मा में स्थिर किया जाता है। जैसे सूर्य की बिखरी किरणों को सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा एक बिंदु पर केंद्रित करने से अग्नि उत्पन्न होती है, वैसे ही ध्यान द्वारा चित्तु की वृत्तियों के घनीभूत होने पर चैतन्य शक्ति का दिव्य प्रकाश, अमृतरस तथा अनुहद संगीत के रूप में प्रकटीकरण होता है, जिसे आत्म-साक्षात्कार कहते हैं। ध्यान आत्मा का भोजन तथा मुक्ति का मार्ग है, जिससे पुरम तृत्त्व परमात्मा के रहस्यों का उद्घाटन अंतरात्मा में होता है।
ध्यान सभी धर्मों का सार तथा सभी संतों एवं महापुरुषों द्वारा अपनाया गया मार्ग है। ध्यान के महत्त्व को समझे तथा किए बिना कोई भी व्यक्ति धार्मिक तथा अध्यात्मवादी नहीं हो सकता, क्योंकि ध्यान से चित्तु का रूपांतरण होता है। पारलौकिक के साथ-साथ लौकिक रूप से भी ध्यान मानवोपयोगी है, क्योंकि शारीरिक व्याधियों के मूल हैं-मुन के विकार। इस साधना से श्वासों की गति नियमित होती है, जिससे व्याधिकारक चंचल मन शांत होता है और अनेक प्रकार की व्याधियों का शुमुन होता है। ध्यान से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है, बुद्धि कुशाग्र होती है तथा समय-समय पर आने वाले प्रश्नों की समस्याओं का समाधान आंतरिक शक्ति से होता है। साधना से निष्क्रिय दायाँ मस्तिष्क सक्रिय हो जाता है तथा मस्तिष्क की कार्यकुशलता और शक्ति दस गुना बढ़ जाती है। ध्यान परमानंद का झरना है। इस प्रक्रिया में आनंद की रिमझिम वर्षा होती है, क्योंकि साधक के ध्यानस्थ होने पर मस्तिष्क में तुरंगें उत्पन्न होती हैं, जो शांति तथा आनंद का कारण हैं, किंतु इस हेतु मन का शांत होना आवश्यक है। प्रसन्नता की प्राप्ति हेतु आनंद केंद्र पर ध्यान कर उसे जगाया जाता है, जिससे व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थिति में भी खिन्न व विचलित नहीं होता तथा सदैव प्रसन्न व तनावमुक्त जीवन व्यतीत करता है। ध्यान की प्रक्रिया सरल है, किंतु आवश्यकता है इसे जानने की। तत्त्वदृष्टा सद्गुरु से जानकर इसका नित्य प्रति अभ्यास करना चाहिए। यह साधना शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक विकारों को दूर कर सुख, समृद्धि, दीर्घायु तथा आनंद प्रदायक है। स्वयं के अलावा परिवार एवं विश्व में शांति व मंगल-भावना हेतु भी साधना आवश्यक है।
(क) उपरोक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए। (1)
(ख) गद्यांश के अनुसार मानव हताश, निराश एवं दुःखी क्यों है? (2)
(ग) आत्म-साक्षात्कार से क्या अभिप्राय है? (2)
(घ) मानव के लिए किसे उपयोगी माना गया है और क्यों? (2)
(ङ) प्रसन्नता ध्यान से किस प्रकार संबंधित है? (2)
(च) ध्यान करने से मनुष्य को कौन-कौन-से लाभ प्राप्त होते हैं? (2)
(छ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘”ध्यान परमानंद का झरना है।” (2)
(ज) गद्यांश के केंद्रीय भाव को लगभग 20 शब्दों में लिखिए। (2)
प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (1 × 5= 5)
हम नए-नए धानों के बच्चे तुम्हें पुकार रहे हैं –
बादल ओ! बादल ओ! बादल ओ!
हम बच्चे हैं,
(चिड़ियों की परछाईं पकड़ रहे हैं उड़-उड़।)
हम बच्चे हैं,
हमें याद आई है जाने किन जन्मों की
आज हो गया है जी उन्मन!
तुम कि पिता हो
इंद्रधनुष बरसो!
कि फूल बरसो,
कि नींद बरसो
बादल ओ!
हम कि नदी को नहीं जानते,
हम कि दूर सागर की लहरें नहीं माँगते।
हमने सिर्फ तुम्हें जाना है,
तुम्हें माँगते हैं।
आर्द्रा के पहले झोंके में तुमको सँघा है
पहला पत्ता बढ़ा दिया है।
लिए हाथ में हाथ हवा का–
खेतों की मेड़ों पर घिरते तुमको देखा है,
ओठों से विवश छू लिया है।
ओ सुनो, अन्न-वर्षी बादल
ओ सुनो, बीज-वर्षी बादल
हम पंख माँगते हैं,
हम नए फेन के उजले-उजुले
शंख माँगते हैं,
हम बस कि माँगते हैं।
बादल! बादल।
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कौन, किसे और क्यों पुकार रहा है?
(ख) धानों के नन्हे-नन्हे बच्चे बादलों को किस संबोधन से पुकारते हैं?
(ग) अपने जीवन की रक्षा के लिए धानों के बच्चे किनकी सहायता नहीं पाना चाहते?
(घ) आर्द्र के प्रथम झोंके ने धानों के बच्चों को किस तरह प्रभावित किया है?
(ङ) प्रस्तुत काव्यांश में बादलों को ‘अन्न-वर्षी’ और ‘बीज-वर्षी’ क्यों कहा गया है?
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अनुच्छेद लिखिए (5)
(क) पुस्तकों का महत्त्व
(ख) आधुनिक जनसंचार माध्यम
(ग) राष्ट्रभाषा हिंदी
(घ) महँगाई : समस्या और समाधान
प्रश्न 4.
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर बताइए कि आपके घर के पास एक अनाधिकृत कारखाना है, जिसके शोर एवं प्रदूषण का आपके परिवार एवं मोहल्ले पर बहुत खराब प्रभाव पड़ रहा है। इस कारखाने को स्थानांतरित करने की प्रार्थना करते हुए इस संबंध में शीघ्र कार्रवाई की माँग कीजिए।
अथवा
किसी प्रतिष्ठित दैनिक समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखकर चुनाव के दिनों में कार्यकर्ताओं द्वारा घरों, विद्यालयों और मार्गदर्शक चित्रों आदि पर बेतहाशा पोस्टर लगाने के कारण इससे लोगों को होने वाली असुविधा की ओर ध्यान आकृष्ट कीजिए। (5)
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए (1 × 5=5)
(क) संयुक्त क्रांति से आप क्या समझते हैं?
(ख) खोजपरक पत्रकारिता से क्या अभिप्राय है?
(ग) एंकर बाइट किसे कहते हैं?
(घ) समाचार संक्षेपण में किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है?
(ङ) संचार को प्रयोग किस उद्देश्य से किया जाता है?
प्रश्न 6.
‘सबक सिखातीं आपदाएँ’ विषय पर एक आलेख लिखिए।
अथवा
हाल ही में पढ़ी गई किसी पुस्तक की समीक्षा लिखिए।
प्रश्न 7.
‘भारत : दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था’ अथवा’बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन तैयार कीजिए। (5)
प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)
फ़ितरतु का कायम है तुवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खोले हैं।
आबो ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं।
ऐसे में तू याद आए है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गए गर्दै पै फ़रिश्ते बाबे-गुनह जग खोले हैं।
सदके फ़िराक एज़ाज़े-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन गज़लों के परदों में तो ‘मीर’ की गज़लें बोले हैं।
(क) ‘आँखें रक्खो’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ख) ‘अंजुमने-मय में रिंदों को’-काव्य-पंक्ति से कैसा दृश्य उपस्थित होता है?
(ग) काव्यांश में रचनाकार किस फ़ितरत की बात कर रहा है?
(घ) काव्यांश का केंद्रीय भाव समझाइए।
अथवा
सुत बित् नारि भुवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।
असु बिचारि जियें जागुहु ताता। मिलई न जुगुत् सहोदर भ्राता।।
जुथा पंख बिनु खग अति दीना। मुनि बिनु फनि करिबूर कर हीना।।
अस मुम् जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।।
जेहऊँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गॅवाई।।
बरूउँ अपजस सहतेॐ जग माही। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।
(क) लक्ष्मण के बिना राम अपनी दशा की तुलना किससे करते हैं?
(ख) ‘मिलइ न जगत सहोदर भ्राता’ के माध्यम से राम क्या कहना चाहते हैं?
(ग) ‘जेहऊँ अवध कवन मुहँ लाई’-राम ने ऐसा क्यों कहा?
(घ) ‘नारि हानि बिसेष छति नाहीं’ राम का यह कथन आपकी दृष्टि में कैसा है?
प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3 = 6)
रुद्ध कोष है, क्षुब्ध तोष
अंगना-अंग से लिपटे भी
आतंक अंक पर काँप रहे हैं।
धुनी, वज्र-गृर्जन से बादल!
त्रस्तु-नयन मुख ढाँप रहे हैं।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर,
ए विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार,
हाड़-मात्र ही है आधार,
ऐ जीवन के पारावार!
(क) प्रस्तुत काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य की चर्चा कीजिए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त भाषा में तत्सम शब्दों की बहुलता है। कुछ तत्सम शब्दों को छाँटकर लिखिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में बादलों को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है?
अथवा
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे।
हम समर्थ शक्तिवान्
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में।
उससे पूछेगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपूने तो दु:ख देता होगा देता है?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़ा)
हाँ तो बताइए आपका दु:ख क्या है।
जुल्दी बताइए वह दुःख बताइए
बता नहीं पाएगा।
(क) प्रस्तुत काव्यांश के काव्य-सौंदर्य की विशेषता बताइए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त छंद को स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 2= 6)
(क) ‘छोटा मेरा खेत’ कविता के आधार पर ‘अनंतता की कटाई’ को स्पष्ट कीजिए।
(ख) कवि ने सूर्योदय से पहले आकाश की भंगिमा में आए परिवर्तनों को किस रूप में देखा है?
(ग) कवि को संसार क्यों अच्छा नहीं लगता? ‘आत्म-परिचय’ कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)
जाति प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्व निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवनभर के लिए एक पेशे से बाँध भी देती है। भले ही पेशा अनुपयुक्त या अपर्याप्त होने के कारण वह भूखा मर जाए। आधुनिक युग में यह स्थिति प्रायः आती है, क्योंकि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात् परिवर्तन हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ सकती है और यदि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की स्वतंत्रता न हो, तो इसके लिए भूखा मरने के अलावा क्या चारा रह जाता है? हिंदू धर्म की जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को ऐसा पेशा चुनने की अनुमति नहीं देती है, जो उसका पैतृक पेशा न हो, भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोज़गारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
(क) जाति प्रथा के आधार पर पेशे का पूर्व निर्धारण क्यों उचित नहीं है?
(ख) लेखक के अनुसार, जाति प्रथा में कौन-से दोष हैं?
(ग) वर्तमान युग में मनुष्य को अपना पेशा या व्यवसाय बदलने की आवश्यकता क्यों पड़ती है?
(घ) जाति प्रथा बेरोज़गारी का एक प्रमुख कारण कैसे है?
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 4 = 12)
(क) बाज़ार का जादू चढ़ने और उतरने पर मनुष्य पर क्या-क्या असर पड़ता है?
(ख) लेखिका को कब लगा कि भक्तिन उसका साथ नहीं छोड़ना चाहती?
(ग) दंगल में विजयी होने के पश्चात् लुट्टन सिंह की जीवन-शैली में क्या परिवर्तन आ गया था?
(घ) “हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता भी कभी-कभी ज़रूरी हो जाती है।” ‘शिरीष के फूल’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ङ) नमक ले जाने के बारे में सफ़िया के मन में उठे द्वंद्वों के आधार पर उसकी चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 13.
आज के युग के संदर्भ में यशोधर बाबू के स्वभाव पर टिप्पणी करते हुए बताइए कि आप इसमें क्या-क्या बदलाव चाहते हैं? (5)
प्रश्न 14.
(क) ऐन फ्रैंक ने अपनी डायरी में स्त्रियों के बारे में क्या कहा है? उसकी समीक्षा करते हुए बताइए कि आज स्त्रियों में कितना परिवर्तन आया? (5)
(ख) ‘जूझ’ कहानी के लेखक के पिता ने किन-किन शर्तों के आधार पर लेखक को पढ़ने की आज्ञा दी? (5)
उत्तर
उत्तर 1.
(क) उपरोक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-‘ध्यान का महत्त्व।
(ख) गद्यांश के अनुसार मानव हताश, निराश एवं दुःखी इसलिए है, क्योंकि उसे ईश्वर का ज्ञान नहीं है। मानव ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट रचना है और कण-कण में व्याप्त ईश्वर मानव मन के सर्वाधिक निकट है, परंतु फिर भी मानव को ईश्वर का ज्ञान नहीं होने के कारण वह दुःखी है।
(ग) आत्म-साक्षात्कार से अभिप्राय उस स्थिति से है जब ध्यान द्वारा चित्त (हृदय) की वृत्तियों के घनीभूत होने पर चैतन्य शक्ति का दिव्य प्रकाश, अमृतरस तथा अनहद संगीत के रूप में प्रकट होता है। सरल शब्दों में कहें; तो स्वयं से परिचित होना आत्म-साक्षात्कार है।
(घ) मानव के लिए ध्यान को उपयोगी माना गया है, क्योंकि ध्यान द्वारा मनुष्य के हृदय का रूपांतरण होता है। इससे मनुष्य के मन के विकार समाप्त होते हैं और मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है। इससे मनुष्य की आंतरिक शक्ति का विकास होता है।
(ङ) गद्यांश में कहा गया है कि प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए आनंद केंद्र पर ध्यान लगाया जाता है। इससे मनुष्य कठिन परिस्थितियों में भी विचलित नहीं होता। वह सदैव प्रसन्न तथा तनाव मुक्त जीवन व्यतीत करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि प्रसन्नता ध्यान से जुड़ी हुई है यानी संबंधित है।
(च) ध्यान करने से मनुष्य को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं। ध्यान से मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ती है, बुद्धि तीव्र होती है तथा समय-समय पर आने वाले प्रश्नों की समस्याओं का समाधान आंतरिक शक्ति से होता है। मस्तिष्क की कार्यकुशलता और शक्ति दस गुना बढ़ जाती है।
(छ) “ध्यान परमानंद का झरना है” पंक्ति का आशय यह है कि ध्यान को ईश्वर का वह झरना बताया गया है, जिससे आनंद की रिमझिम वर्षा होती है। जब साधक ध्यान में लीन होता है तब उसके मस्तिष्क में तरंगें उत्पन्न होती हैं, जो उसे शांति तथा आनंद प्रदान करती हैं। इस प्रकार ध्यान के द्वारा मनुष्य को परम आनंद को सुख प्राप्त होता है।
(ज) गद्यांश का केंद्रीय भाव ध्यान के महत्त्व पर प्रकाश डालना है। गद्यांश में स्पष्ट किया गया है कि ध्यान के द्वारा मन को एकाग्र कर प्राण तथा आत्मा में स्थित किया जाता है। ध्यान को आत्मा का भोजन तथा मुक्ति का मार्ग भी कहा गया है। साथ ही, ध्यान करने से होने वाले लाभों को भी उजागर किया गया है।
उत्तर 2.
(क) प्रस्तुत काव्यांश में खेतों में उगे धान के नन्हें-नन्हें पौधे सूख जाने के भय से बादलों को पुकार रहे हैं, क्योंकि बादलों के आने पर वर्षा होगी और वर्षा आने पर ही उनके जीवन की रक्षा हो सकेगी।
(ख) धानों के नन्हे-नन्हे बच्चे अपनी रक्षा अर्थात् पालन करने वाले बादलों को ‘पिता’ के संबोधन से पुकारते हैं।
(ग) अपने जीवन की रक्षा के लिए धानों के बच्चे न तो नदियों का जले पाना चाहते हैं और न ही सागर की लहरों की आकांक्षा रखते हैं। अर्थात् वह इनकी सहायता नहीं पाना चाहते।
(घ) आर्द्र के प्रथम झोंके ने धानों के नन्हे-नन्हे बच्चों को आशाओं से भर दिया है। उनके आगमन से उन नए पौधों के प्रथम पत्ते बढ़ चले हैं तथा बादलों के स्पर्श से वे आनंदित व उत्साहित हो गए हैं।
(ङ) बादल अपने साथ वर्षा लाते हैं। वर्षा रूप में अमृत जल प्राप्त करने से धरती पर उगे पेड़-पौधों में नवजीवन का संचार होता है। फ़सलें और समस्त वनस्पतियाँ अन्न-बीज से परिपूर्ण हो जाती हैं। इसी कारण बादलों को अन्न-वर्षी और बीज-वर्षी कहा गया है।
उत्तर 3.
(क) पुस्तकों का महत्त्व
पुस्तक पढ़ने की रुचि का विकास बचपन से ही होने लगता है। यदि बाल्यावस्था में बच्चों को अच्छी पुस्तकें उपलब्ध नहीं होतीं, तो भविष्य में उनमें इस रुचि का विकास नहीं हो पाता, इसलिए जो लोग चाहते हैं कि उनके बच्चों में पुस्तक पढ़ने की अच्छी आदत का विकास हो, वे अपने बच्चों को समय-समय पर अच्छी पुस्तकें लाकर देते रहते हैं। बच्चों के लिए पुस्तकों के महत्त्व को देखते हुए प्राचीनकाल से ही बाल पुस्तकों के लेखन पर ध्यान दिया जाता रहा है। ‘पंचतंत्र’ एवं ‘हितोपदेश’ इसके उदाहरण हैं।
विश्व की हर सभ्यता के विकास में पुस्तकों का प्रमुख योगदान रहा है। मध्यकाल में पुनर्जागरण में भी पुस्तकों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी पुस्तकों ने अग्रणी भूमिका अदा की। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के शब्दों में-“पुस्तकें वे साधन हैं, जिनके माध्यम से हम विभिन्न संस्कृतियों के बीच पुल का निर्माण कर सकते हैं।”
पुस्तकें शिक्षा प्रदान करने का प्रमुख साधन हैं। पुस्तकों के बिना शिक्षण की क्रिया अत्यंत कठिन हो सकती है। कई मामलों में तो पुस्तकों के अभाव में शिक्षण की कल्पना भी नहीं की जा सकती। पाठ्यपुस्तकों के अतिरिक्त पूरक पुस्तकों की भी व्यवस्था विद्यार्थियों के विकास के लिए की जाती है। पाठ्य पुस्तकें जहाँ छात्रों को पाठ्यक्रम संबंधी जानकारी देती हैं, वहीं पूरक पुस्तकें छात्रों में स्वाध्याय की योग्यता विकसित करने में सहायक होती हैं। पुस्तकें शिक्षा का प्रमुख साधन तो हैं ही, साथ ही इनके माध्यम से लोगों में सद्वृत्तियों का विकास भी किया जा सकता है, ये सृजनात्मक क्षमता के विकास में भी सहायक होती हैं। इतना ही नहीं इनसे अच्छा मनोरंजन भी होता है। विज्ञान के इस अत्याधुनिक दौर में इंटरनेट के आ जाने के कारण पुस्तक पढ़ने के शौकीनों के लिए ई-पुस्तक के रूप में पठन सामग्री का एक नया विकल्प सामने आ गया है। पुस्तक की महत्ता को स्वीकारते हुए लोकमान्य तिलक ने कहा था- “मैं नरक में भी उत्तम पुस्तकों का स्वागत करूँगा, क्योंकि इनमें वह शक्ति है कि ये जहाँ भी रहेंगी, वहाँ अपने आप स्वर्ग बन जाएगा|” पुस्तकें सचमुच हमारी मित्र हैं। वे अपना अमृत-कोश सदा हम पर न्योछावर करने को तैयार रहती हैं। उनमें छिपी अनुभव की बातें हमारा मार्गदर्शन करती हैं।
(ख) आधुनिक जनसंचार माध्यम
जिन साधनों का प्रयोग कर एक बड़ी जनसंख्या तक विचारों, भावनाओं व सूचनाओं को संप्रेषित किया जाता है, उन्हें हम जनसंचार माध्यम कहते हैं। जनसंचार माध्यमों को कुल तीन वर्गों-मुद्रण माध्यम, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम एवं नव-इलेक्ट्रॉनिक माध्यम में विभाजित किया जा सकता है। मुद्रण माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पैंफलेट, पोस्टर, जर्नल, पुस्तकें इत्यादि आती हैं। इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के अंतर्गत रेडियो, टेलीविजन एवं फ़िल्में आती हैं और इंटरनेट नव–इलेक्ट्रॉनिक माध्यम है।
समाचार-पत्र
मुद्रण माध्यम की शुरुआत गुटेनबर्ग द्वारा 1454 ई. में मुद्रण मशीन के आविष्कार के साथ हुई थी। इसके बाद विश्व के अनेक देशों में समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। आज समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ विश्वभर में जनसंचार का एक प्रमुख एवं लोकप्रिय माध्यम बन चुकी हैं।
रेडियो
आधुनिक काल में रेडियो जनसंचार का एक प्रमुख साधन है, खासकर दूरदराज़ के उन क्षेत्रों में जहाँ अभी तक बिजली भी नहीं पहुँच पाई है या जिन क्षेत्रों के लोग आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। भारत में वर्ष 1923 में रेडियो के प्रसारण के प्रारंभिक प्रयास और वर्ष 1927 में प्रायोगिक तौर पर इसकी शुरुआत के बाद से अब तक इस क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हासिल की जा चुकी है और इसका सर्वोत्तम उदाहरण एफ.एम. रेडियो प्रसारण है।
टेलीविज़न
टेलीविज़न का आविष्कार वर्ष 1925 में जे.एल.बेयर्ड ने किया था। आजकल यह जनसंचार का प्रमुख साधन बन चुका है। पहले यह विभिन्न धारावाहिकों एवं सिनेमा के प्रसारण के कारण लोकप्रिय था। बाद में कई न्यूज़ चैनलों की स्थापना के साथ ही यह जनसंचार का एक ऐसा सशक्त माध्यम बन गया, जिसकी पहुँच करोड़ों लोगों तक हो गई। भारत में इसकी शुरुआत वर्ष 1959 में हुई थी।
फ़िल्म
फ़िल्म जनसंचार का एक सशक्त एवं लोकप्रिय माध्यम है। किसी भी अन्य माध्यम की अपेक्षा यह जनता को प्रभावित करने में अधिक सक्षम है। दादा साहब फाल्के को भारतीय फ़िल्मों का पितामह कहा जाता है। हर वर्ष विश्व में लगभग दस हजार से अधिक फ़िल्मों का निर्माण होता है। अकेले भारत में हर वर्ष एक हज़ार से अधिक फ़िल्मों का निर्माण होता है। फ़िल्मों का उद्देश्य केवल मनोरंजन करना ही नहीं, देशहित एवं समाज सुधार भी होता है।
कंप्यूटर एवं इंटरनेट
इंटरनेट जनसंचार का एक नवीन इलेक्ट्रॉनिक माध्यम है। इसका आविष्कार वर्ष 1969 में हुआ था। इंटरनेट वह इलेक्ट्रॉनिक युक्ति है, जो व्यक्ति के सभी आदेशों का पालन करने को तैयार रहता है। विदेश जाने के लिए हवाई जहाज़ का टिकट बुक कराना हो, किसी पर्यटन स्थल पर स्थित होटल का कोई कमरा बुक कराना हो, किसी किताब का ऑर्डर देना हो, अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए विज्ञापन देना हो, अपने मित्रों से ऑनलाइन चैटिंग करनी हो, डॉक्टरों से स्वास्थ्य संबंधी सलाह लेनी हो या वकीलों से कानूनी सलाह लेनी हो; इंटरनेट हर मर्ज की दवा है। जनसंचार के प्रमुख माध्यमों द्वारा लोकमत का निर्माण, सूचनाओं का प्रसार, भ्रष्टाचार एवं घोटालों का पर्दाफ़ाश तथा समाज की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत की जाती है।
(ग) राष्ट्रभाषा हिंदी
किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक प्रचलित एवं स्वेच्छा से आत्मसात् की गई भाषा को ‘राष्ट्रभाषा’ कहा जाता है। हिंदी, बांग्ला, उर्दू, पंजाबी, तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम, ओडिसी इत्यादि भारत के संविधान द्वारा राष्ट्र की मान्य भाषाएँ हैं। इन सभी भाषाओं में हिंदी का स्थान सर्वोपरि है, क्योंकि यह भारत की राजभाषा भी है। राजभाषा वह भाषा होती है, जिसका प्रयोग किसी देश में राज-काज को चलाने के लिए किया जाता है। हिंदी को 14 सितंबर, 1949 को राजभाषा का दर्जा दिया गया।
देश की अन्य भाषाओं के बदले हिंदी को राजभाषा बनाए जाने का मुख्य कारण यह है कि यह भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा के साथ-साथ देश की एकमात्र संपर्क भाषा भी है। हिंदी की इसी सार्वभौमिकता के कारण राजनेताओं ने हिंदी को राजभाषा का दर्जा देने का निर्णय लिया था। हिंदी भाषा राष्ट्र के बहुसंख्यक लोगों द्वारा बोली और समझी जाती है, इसकी लिपि देवनागरी है, जो अत्यंत सरल है। प. राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में- “हमारी नागरी लिपि दुनिया की सबसे वैज्ञानिक लिपि है।” हिंदी में आवश्यकतानुसार देशी-विदेशी भाषाओं के शब्दों को सरलता से आत्मसात् करने की शक्ति है। यह भारत की एक ऐसी राष्ट्रभाषा है, जिसमें पूरे देश में भावात्मक एकता स्थापित करने की पूर्ण क्षमता है। प्रत्येक देश की पहचान का एक मज़बूत आधार उसकी अपनी भाषा होती है, जो अधिक-से-अधिक व्यक्तियों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा के रूप में व्यापक विचार-विनिमय का माध्यम बनकर ही राष्ट्रभाषा (यहाँ राष्ट्रभाषा का तात्पर्य है-पूरे देश की भाषा) का पद ग्रहण करती है। राष्ट्रभाषा के द्वारा आपस में संपर्क बनाए रखकर देश की एकता एवं अखंडता को भी कायम रखा जा सकता है। हिंदी देश की संपर्क भाषा तो है ही, इसे राजभाषा का वास्तविक सम्मान भी दिया जाना चाहिए, जिससे कि यह पूरे देश को एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा बन सके।
(घ) महँगाई : अमस्या और अमाधान
आज हमारा देश निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है, परंतु इसके साथ उसे महँगाई की भीषण समस्या का भी सामना करना पड़ रही है। महँगाई से तात्पर्य है-वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि हो जाना। इस समय भारत ही नहीं, बल्कि विश्व के अधिकतर देशों में महँगाई प्रमुख आर्थिक समस्या का रूप धारण कर चुकी है। आवश्यक उपयोगी वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि के कारण आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। महँगाई एक आर्थिक समस्या है। इसका संबंध माँग और आपूर्ति जैसी आर्थिक प्रक्रियाओं से है। उत्पादित वस्तु उपभोक्ता तक आते-आते कई ऐसी शक्तियों से होकर गुज़रती है, जो माँग तथा आपूर्ति के साथ उक्त वस्तु के मूल्य को प्रभावित कर सकती है। इसके अतिरिक्त महँगाई के कई सामाजिक एवं राजनीतिक कारण भी हैं; जैसे-मुद्रास्फीति, जनसंख्या में तीव्र वृद्धि, मुनाफ़ाखोरी, कालाबाज़ारी, धन-संपत्ति का असमान वितरण, भ्रष्टाचार इत्यादि। मुद्रास्फीति के कारण न केवल वस्तुओं के मूल्य बढ़ते हैं, बल्कि मुद्रा का मूल्य भी गिर जाता है। एक तरफ़ महँगाई में वृद्धि हो रही है, तो दूसरी तरफ़ उसके भयंकर दुष्परिणाम आर्थिक विकास में बाधा, निर्धनता एवं आर्थिक असमानता में वृद्धि, बेरोज़गारी इत्यादि के रूप में सामने आ रहे हैं। अतः इस पर नियंत्रण लगाना बहुत आवश्यक है। इसके लिए सरकार को विशेष प्रयास करने की आवश्यकता है। मुद्रास्फीति की दर पर नियंत्रण करके महँगाई पर अंकुश लगाया जा सकता है। जमाखोरी, मुनाफ़ाखोरी, कालाबाज़ारी इत्यादि पर नियंत्रण करना महँगाई को रोकने का सर्वाधिक कारगर उपाय हो सकता है। आम उपभोक्ता यदि जागरूक हो जाए, तो भी कृत्रिम महँगाई पर नियंत्रण काफ़ी हद तक संभव है।
उत्तर 4.
परीक्षा भवन, दिल्ली।
दिनांक 17 सितंबर, 20××
सेवा में,
सचिव,
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय,
नई दिल्ली।
विषय प्रदूषण फैलाने वाले अनाधिकृत कारखाने को स्थानांतरित करने संबंधी अनुरोध।
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से अपने मोहल्ले के प्रदूषित पर्यावरण की ओर आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहती हैं। हमारे मोहल्ले में मेरे ही घर के पास लौह-इस्पात से संबंधित एक कारखाना है, जो गैर-कानूनी है। इस कारखाने के कारण मोहल्ले के लोगों का जीना दूभर हो गया है। इसकी चिमनियों की ऊँचाई कम होने के कारण इसका विषैला धुआँ वायु को प्रदूषित करता है। इसके उत्सर्जित कण हमारे घरों में घुसते हैं। इसके कारण घर के बाहर निकलना और छतों पर बैठना मुश्किल हो गया है। इसके अतिरिक्त इस कारखाने से निकलने वाली विषैली गंदगी हमारे घरों के आस-पास फेंक दी जाती है। साथ ही, सुबह से लेकर देर रात तक होने वाली मशीनों की गड़गड़ाहट एवं शोर ने मोहल्ले के लोगों की नींद हराम कर दी है। इस ध्वनि प्रदूषण के कारण लोगों में सुनने संबंधी बीमारियाँ भी उत्पन्न हो रही हैं।
अतः मंत्रालय से मेरा अनुरोध है कि शीघ्र ही इस दिशा में कोई ठोस कार्यवाही की जाए तथा इस कारखाने को किसी औद्योगिक क्षेत्र में स्थानांतरित किया जाए।
सधन्यवाद!
भवदीय
क.ख.ग.
अथवा
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 15 फरवरी, 20××
सेवा में,
संपादक महोदय,
दैनिक जागरण,
मेरठ।
विषय पोस्टर लगाने के कारण होने वाली असुविधा हेतु।
मान्यवर,
मैं आपके लोकप्रिय दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से चुनाव के दिनों में पोस्टरों से उत्पन्न होने वाली समस्या की ओर प्रशासनिक अधिकारियों, राजनीतिक दलों तथा जनता का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ।
चुनाव के दिनों में विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवार के पक्ष में जनमत तैयार करने के लिए तरह-तरह के पोस्टरों, होर्डिंग्स आदि को घरों की दीवारों, दरवाज़ों, खिड़कियों, विद्यालयों, चौराहों, विज्ञापन बोर्डी, सार्वजनिक अस्पतालों के मुख्य द्वारों तथा मार्गदर्शक चित्रों पर चिपका देते हैं, जिसके कारण आम जनता को बहुत अधिक असुविधा का सामना करना पड़ता है। चुनाव आयोग, पुलिस विभाग तथा संबंधित नगर निगम के अधिकारियों से मेरी यह अपील है कि सभी को मिल-जुलकर इस समस्या का समाधान खोजना चाहिए।
मुझे आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि आम जनता के हित में सभी राजनीतिक दल, चुनाव आयोग तथा नगर निगम अपने कर्तव्यों का सावधानीपूर्वक निर्वाह करेंगे तथा ऐसा कोई भी कार्य नहीं करेंगे, जो जनता के लिए असुविधाजनक हो।
सधन्यवाद!
भवदीय
क.ख.ग.
उत्तर 5.
(क) कागज़ तथा मुद्रण का आविष्कार संसार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। इसे संयुक्त क्रांति भी कहा जाता है।
(ख) खोजपरक पत्रकारिता से आशय ऐसी पत्रकारिता से है, जिसमें ऐसे तथ्यों की छानबीन की जाती है, जिन्हें दबाने या छुपाने का प्रयास किया जाता है।
(ग) जब किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य दिखाने के साथ प्रत्यक्षदर्शियों के कथन दिखा-सुनाकर समाचार को प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत किया जाता है, तो वह एंकर बाइट कहलाता है।
(घ) समाचार का अंत संक्षिप्त सार से किया जाता है, जिसे संक्षेपण कहते हैं। संक्षेपण करने के दौरान निम्नलिखित बातों का ध्यान दिया। जाता है-पुनरुक्ति दोष से बचें, अनावश्यक विवरण न दें, नकारात्मक वाक्य का प्रयोग न होने पाए, संवाददाता अपने अभिमत को प्रकट करने तथा समाचार के निष्कर्ष रूप में अपनी टिप्पणी करने से बचें।
(ङ) किसी घटना की सूचना को अन्य लोगों तक पहुँचाने के लिए मनुष्य संचार की सहायता लेता है। संचार का प्रयोग इसी उद्देश्य की पूर्ति अर्थात् सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है।
उत्तर 6.
सबक सिखार्ती आपदाएँ
वैज्ञानिकों की माने तो लगभग 80% आपदाएँ जलवायु परिवर्तन से संबद्ध होती हैं, जिसके लिए मनुष्य स्वयं ज़िम्मेदार हैं। निश्चय ही भूकंप एक विशुद्ध प्राकृतिक घटना है, जिसका संबंध जलवायु परिवर्तन से भी नहीं, पर इसके विध्वंसक परिणामों के पीछे मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं। सत्य ही कहा गया है- ”भूकंप से लोग नहीं मरते, इमारतें जान लेती हैं। हाल ही में आए भीषण भूकंप से घनी आबादी वाले शहर काठमांडू का वीरान होना इसका जीता-जागता सबूत है। कुछ समय पूर्व जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदाओं का दंश लोग आज भी झेल रहे हैं।
निश्चय ही प्राकृतिक आपदाओं पर हमारा वश नहीं चलता, पर हम इनसे सीख अवश्य ले सकते हैं। भूकंपरोधी संरचना के प्रावधानों के अनुसार, भवनों का निर्माण कर भूकंप से होने वाली जान-माल की क्षति को कम किया जा सकता है, पर्यावरण और पारिस्थितिकी को मित्र मानकर विलासितापूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रकृति का दोहन न करना संपूर्ण प्राणी जगत के हित में होगा। हम प्रकृति की रक्षा करेंगे, तो प्रकृति भी हमारी रक्षा करेगी। इसके साथ-ही-साथ आपदा प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देते हुए बचाव और तैयारी सहित आपदा की गंभीरता को कम करने पर ज़ोर देना होगा, ताकि न सिर्फ आपदा, बल्कि उसके बाद की विषम परिस्थितियों का भी डटकर मुकाबला किया जा सके।
अथवा
अप्रसिद्ध आहित्यकार गंगेय राघव
रचित उपन्यास ‘कब तक पुकाऊँ’ की समीक्षा
प्रसिद्ध साहित्यकार रांगेय राघव द्वारा रचित तथा राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास ‘कब तक पुकारूं’ अपने ढंग का विशिष्ट आँचलिक उपन्यास है। इसमें नटों के जीवन को संश्लिष्टता के साथ चित्रित करने का प्रयास किया गया है। नटों के जीवन, आचार-विचार, जनपदीय संस्कृति, मध्यकालीन विश्वास, शोषण एवं अन्याय, यौन स्वच्छंदता आदि सभी स्थितियों के बीच यह उपन्यास अपनी आँचलिकता में सजीव है। नैतिकता संबंधी मान्यताएँ यहाँ के अंधविश्वास पर टिकी हैं। इस उपन्यास के अनुसार प्रत्येक नट लड़की को युवा होने पर ठाकुरों के पास कुछ समय व्यतीत करना पड़ता था। यह उनके यहाँ नैतिकता के भीतर ही प्रचलित था। स्वभावतः ऐसी मान्यताएँ परिवेश के समूचे यथार्थ को आंदोलित करती हैं।
कथा नायक सुखराम अपने को अभिजात वर्ग का समझता है। वह बड़ी जाति के संस्कार बनाए रखने के लिए यथेष्ट संघर्ष करता है। वह पुलिस, उच्च समाज, गुंडों एवं डाकुओं से लड़ता है, पर कई बार टूटता भी है। उसके जीवन का यह त्रासद अनुभव है कि उसकी पत्नी प्यारी, सिपाही रुस्तम खाँ की रखैल बन जाती है। प्यारी के चरित्र की विसंगतियाँ उसी परिवेश एवं परिस्थिति की देन हैं, जिसमें उसका जन्म हुआ है।
‘कब तक पुकारूं’ का निहितार्थ यह है कि प्यारी चाहे जहाँ रहे, उसकी शुभाकांक्षा सुखराम के लिए ही है। ठाकुरों से बदला लेने के लिए वह रुस्तम खाँ की रखैल बनी है। अतः किसी भी तरह के पाप या अपराध बोध से वह मुक्त है। प्यारी और कजरी के बीच सुखराम का मानवीय पक्ष विशेष मार्मिकता प्राप्त कर लेता है। एक क्षण ऐसा आता है, जब कजरी अपने खून से जेठी के माथे पर लकीर खींचकर उसे अधूरे किले की रानी कहकर प्यारी को आलिंगन में बाँध लेती है। कब तक पुकारू’ उपन्यास की कथा संरचना चार पीढ़ियों की कथा को समेटती है तथा इसकी संवेदनशीलता लोगों को सामाजिक व्यवस्था की परिपाटी पर पुनर्विचार करने के लिए बाध्य करती है। यह एक पढ़ने योग्य रचना है।
उत्तर 7.
भारत: दुनिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था
वर्ष 2011 में क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर भारत जापान को पीछे छोड़कर तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, जबकि मात्रात्मक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) की दृष्टि से भारत सातवें स्थान पर है। क्रय शक्ति समता (PPP) के आधार पर विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन है, जबकि दूसरे स्थान पर संयुक्त राज्य अमेरिका है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में इसका विवरण दिया गया है। क्रय शक्ति समता की दृष्टि से भारत के सकल घरेलू उत्पाद का मूल्य वर्तमान में 73.84 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है, जबकि जापान का 46.55 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर है।
विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए आगामी समय अच्छा रहने का भी अनुमान व्यक्त किया है। विश्व बैंक के अनुसार भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.5% बनी रह सकती है। अधिकतर देशों; जैसे–चीन, जापान व यूरोपीय यूनियन के देशों की अर्थव्यवस्थाओं में आ रही शिथिलता के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की चमक उल्लेखनीय है। भारत इस वृद्धि दर से दक्षिण एशिया में सबसे तेज़ी से विकास करने वाला देश बन जाएगा। इस उपलब्धि से भारत इस पूरे क्षेत्र की आर्थिक विकास की गति तय करेगा। विश्व बैंक के अनुसार वर्ष 2016-17 में भारत की विकास दर 7.7% हो सकती है।
अथवा
बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति
उपभोक्ता तो हम सभी होते हैं, परंतु प्रश्न यह उठता है कि उपभोक्तावादी कौन है? अपनी रोज़मर्रा की आवश्यकतानुसार बाज़ार से खरीददारी तो हम सभी करते हैं, लेकिन महानगरों में यह आवश्यकता न रहकर एक शौक बन गया है। पिछले ही दिनों एक प्रसिद्ध शख्सियत को यह कहते सुना कि मैं स्ट्रेस फ्री (तनाव मुक्त) होने के लिए शॉपिंग करती हूँ। मुझे जो पसंद आए, उसे मैं खरीद लेती हूँ, फिर चाहे वह चीज़ भले ही मेरे काम की न हो। वास्तव में, यही उपभोक्तावाद है। अमेरिका में तो ऐसे लोग स्वयं को शॉपेहॉलिक कहकर गर्व का अनुभव करते हैं।
ऐसी बात नहीं है कि यह सिर्फ अमीर देशों में ही है। हमारे देश में भी यह संस्कृति तेज़ी से पाँव पसार रही है। हममें से बहुत से व्यक्तियों ने अपने किसी चिर-परिचित दोस्त या रिश्तेदार को यह कहते अवश्य सुना होगा कि शॉपिंग करना उनका शौक है। महानगरों में बढ़ती आय, फैशन का प्रचार-प्रसार, एक-दूसरे की नकल करने की प्रवृत्ति, झूठी शान प्रदर्शित करना आदि कुछ ऐसे कारण हैं, जिनसे ऐसे लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, विशेषकर युवाओं की। इससे भी हैरान कर देने वाली बात यह है कि बहुत सारे लोगों ने यह स्वीकार किया है कि मॅहगाई और मंदी के इस दौर में उन्होंने अपने स्वास्थ्य के साथ समझौता करके खाने-पीने की चीज़ों में कमी कर दी, किंतु अपने अनावश्यक खर्चे में कटौती नहीं की। हमें चाहिए कि भ्रामक विज्ञापनों के बहकावे में न आकर, एक समझदार उपभोक्ता बनें। अपने घर को अनावश्यक चीज़ों से भरकर, हम केवल अपने धन व श्रम को नष्ट कर रहे हैं। इस सारी प्रक्रिया में केवल पूँजीपतियों का फायदा होता है।
उत्तर 8.
(क) ‘आँखें रक्खो’ से कवि का अभिप्राय पूरी समझ रखने से है। कवि मानता है कि केवल कविता की कलाकारी या सौंदर्य पर फ़िदा न होकर उसके मर्म को जानने की चेष्टा भी करनी चाहिए। कवि कह रहा है कि कोई मुझसे विरह वेदना के कारण आँखों से रुदन के रूप में निकले मोती रूपी अश्रु के बारे में न पूछे, क्योंकि आँखें तो सभी के पास हैं।
(ख) ‘अंजुमने-मय में रिंदों को’ काव्य-पंक्ति से महफ़िल में शराब पीने का दृश्य उभरता है। रचनाकार कहता है कि जब ईश्वर गुनाहों का लेखा-जोखा कर रहा है, तब भी मैं शराब के साथ तुझे अर्थात् अपनी प्रेमिका को याद कर रहा हूँ।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में रचनाकार प्रकृति के मूलभूत स्वभाव (फ़ितरत) की बात कर रहा है। साथ ही वह मानवीय-प्रकृति की भी बात कर रहा है। प्रकृति का नियम है कि किसी चीज़ को पाने के लिए बराबर का मोल देना पड़ता है। कवि कहता है कि प्रेम व सौंदर्य में एक प्रकार का नैसर्गिक संतुलन है। इन दोनों क्षेत्रों में स्वयं को खोकर ही ज्यादा से ज्यादा प्राप्त किया जा सकता है।
(घ) काव्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि रचनाकार स्वयं को खोने की बात करता है। ‘खुद को खोने से अभिप्राय अपने अहं के विलीन होने की प्रक्रिया से है। कवि स्वयं के अस्तित्व में निहित अहंकार को समाप्त कर देना चाहता है। रचनाकार स्वयं को प्रकृति के विभिन्न आयामों में विलीन कर देना चाहता है।
अथवा
(क) लक्ष्मण के बिना राम अपनी स्थिति की तुलना पंखविहीन पक्षी, मणिविहीन सर्प और सँड़विहीन हाथी से करते हैं। जिस प्रकार ये जीव वर्णित अंगों के अभाव में महत्त्वहीन एवं निस्तेज हो जाते हैं, वैसे ही लक्ष्मण के बिना राम स्वयं को दीन, शक्तिहीन एवं निस्तेज महसूस करते हैं।
(ख) ‘मिलइ न जगत सहोदर भ्राता’ के माध्यम से राम यह कहना चाहते हैं कि संसार में स्नेह करने वाला लक्ष्मण के समान भाई मिलना दुर्लभ है। वास्तव में, इस पंक्ति के माध्यम से राम ने भ्रातृप्रेम का आदर्श प्रस्तुत किया है।
(ग) ‘जैहऊँ अवध कवन मुहुँ लाई’ राम के इस विलाप कथन का अर्थ यह है कि यदि लक्ष्मण की मृत्यु हो जाती है, तो राम समाज में, अयोध्या में कौन-सा मुख लेकर जाएँगे, क्योंकि लोक मान्यता तो यह है कि बड़ा भाई छोटे भाई की रक्षा करता है, जो वे नहीं कर सके। लोगों के प्रश्नों का वे कैसे और क्या उत्तर देंगे? वस्तुत: राम लक्ष्मण की मूच्र्छा को स्वयं के लिए अत्यंत दयनीय एवं लज्जाजनक स्थिति मानते हैं।
(घ) प्रस्तुत कथन किसी प्रिय के वियोग से उत्पन्न शोक और करुणा की स्थिति में कहा गया स्वाभाविक वार्तालाप है। दुःख की स्थिति में बिछड़ने वाला ही मनुष्य के लिए तात्कालिक रूप से सबसे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण हो जाता है। अतः इससे नारी के प्रति राम का दृष्टिकोण नहीं, अपितु लक्ष्मण का उनके लिए महत्त्व प्रदर्शित होता है।
उत्तर 9.
(क) काव्यांश की भाषा तत्सम प्रधान यानी संस्कृतनिष्ठ है। भाषा में प्रवाह एवं छायावादी काव्य-शैली के अनुरूप लाक्षणिकता है, लेकिन उसका भाव-बोध प्रगतिशील चेतना से युक्त है। कवि ने बादल को धनी वर्ग के लिए त्रासदीदायक तथा कृषक एवं वंचित वर्ग के लिए उल्लासदायक रूप में चित्रित किया है। बादल सृजन एवं विनाश दोनों के संवाहक बनकर कविता में आए हैं।
(ख) ‘अंगना अंग’, ‘रुद्र कोष’, ‘क्षुब्ध तोष’, ‘त्रस्त’, ‘जीर्ण बाहु’, ‘शीर्ण शरीर’, ‘विप्लव’, ‘पारावार’ आदि शब्द काव्यांश में प्रयुक्त होने वाले तत्सम शब्द हैं।
(ग) यहाँ बादलों को विनाशकारी योद्धा के रूप में प्रस्तुत कर उनका ‘मानवीकरण किया गया है। बादल सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनता है। वह तड़ितों से क्षत-विक्षत होने के बाद भी एक योद्धा की तरह गर्जन-वर्षण के माध्यम से प्रकृति में नवसंचार करता है।
अथवा
(क) इस काव्यांश में कवि ने व्यंग्यात्मक ढंग से दूरदर्शन और मीडिया के चमक भरे वातावरण के पीछे काम कर रही व्यावसायिकता और अमानवीयता से पूर्ण मानसिकता को प्रदर्शित किया है। अपाहिज व्यक्ति के माध्यम से कवि स्पष्ट करना चाहता है कि दुःख और उससे उत्पन्न स्थितियाँ आदमी को किस प्रकार असहाय कर देती हैं, वहीं कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि समाज में ऐसे भी लोग हैं, जो पीड़ा के सौदागर हैं तथा दुःख का भी व्यावसायीकरण करके लाभ और लोकप्रियता हासिल करने से परहेज नहीं करते।
(ख) कविता की भाषा सहज, सरल एवं संप्रेषणीय है, कवि अपनी बात को स्पष्ट करने में सफल हुआ है। मितकथन का गुण भी भाषा में विद्यमान है। शैली व्यंग्य प्रधान है। काव्य की लक्षणा शब्द शक्ति का प्रयोग किया गया है। कोष्ठक में कवि ने जो कथन लिखा है, वे पूरे विवरण क्रम को एक नाटकीय पुट देते हैं।
(ग) कविता में कवि ने मुक्त छंद का प्रयोग किया है, किंतु कविता में प्रवाह कायम है।
उत्तर 10.
(क) प्रस्तुत कविता में कवि कहता है कि कवि-कर्म के पश्चात् जो कृति रूपी फसल उसने उपजाई, उसमें बोया तो उसने क्षण को, लेकिन काटने के बाद पाया अनंत को। अनंत को काटने का अर्थ है कवि की रचना या कृति का कालजयी होना। साहित्य में अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जब रचना अपने समय को लाँघकर आगे के समय के लिए भी संदर्भवान एवं प्रासंगिक बनी रहती है। यही ‘अनंतता की कटाई’ है। इसका सबसे उत्तम उदाहरण भक्तिकाल के कवियों की रचनाएँ हैं, जो आज भी मूल्यवान तथा प्रासंगिक बनी हुई हैं।
(ख) कवि ने प्रस्तुत कविता में प्रातःकालीन आकाश में होने वाले सूर्योदय का गतिशील चित्रण किया है। कवि आकाश में हो रहे परिवर्तनों को ग्रामीण उपमानों के ज़रिए प्रस्तुत करता हुआ गतिशील शब्द-चित्र उपस्थित करता है। अंधकार के समाप्त होने पर भोर के नभ के नीले रंग में वैसी ही नमी होती है, जैसे राख से लीपा हुआ चौका (चूल्हा) अभी तक गीला हो। कालिमा के छंटने पर क्षितिज की लालिमा ऐसी लगती है, मानो किसी काली सिल (पत्थर) पर लाल केसर का लेप लगा दिया गया हो। इस प्रकार सूर्योदय से पहले का आकाश परिवर्तित हो रहा है।
(ग) कवि को यह संसार अपनी अपूर्णता के कारण प्रिय नहीं है और यह संसार अपूर्ण इसलिए है, क्योंकि यह प्रेमरहित है। अमूल्य प्रेम भावना से शून्य होने के कारण ही यह संसार अपूर्ण भी है और कवि के लिए अप्रिय भी। इस संसार में मौजूद अनगिनत आशाएँ एवं आकांक्षाएँ कभी पूरी नहीं हो पातीं, इस संदर्भ में भी यह संसार अपूर्ण है और इसे पूर्ण करने का एकमात्र उपाय सर्वत्र प्रेम की स्थापना करना ही हो सकता है, जिसका यहाँ अत्यंत अभाव है। इन्हीं कारणों से कवि को यह संसार प्रिय नहीं है।
उत्तर 11.
(क) जाति प्रथा पेशे का दोषपूर्ण पूर्व निर्धारण ही नहीं करती, बल्कि मनुष्य को जीवनभर के लिए एक अनचाहे पेशे में बाँध भी देती है। भले ही वह पेशा उसके लिए अनुपयुक्त हो, इसलिए जाति प्रथा के आधार पर पेशे का पूर्व निर्धारण उचित नहीं है।
(ख) जाति प्रथा में व्यक्ति को मजबूर होकर अपनी इच्छा के विरुद्ध काम करना पड़ता है और वह चाहकर भी जाति प्रथा के तहत अपना व्यवसाय नहीं बदल सकता, जिसके कारण वह जीवनभर दुःखी रहता है। यही सबसे बड़ा दोष लेखक को जाति प्रथा में दिखाई देता है।
(ग) वर्तमान युग में यह स्थिति प्रायः आती है कि उद्योग-धंधों की प्रक्रिया व तकनीक में निरंतर विकास और कभी-कभी अकस्मात् परिवर्तन भी हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य को अपना पेशा बदलने की आवश्यकता पड़ जाती है।
(घ) जाति प्रथा किसी भी व्यक्ति को व्यवसाय चुनने की अनुमति नहीं देती, जो उसका पैतृक पेशा नहीं है, जाति प्रथा उस पेशे को अपनाने की अनुमति नहीं देती, भले ही वह उसमें पारंगत हो। इस प्रकार पेशा परिवर्तन की अनुमति न देकर जाति प्रथा भारत में बेरोज़गारी का एक प्रमुख व प्रत्यक्ष कारण बनी हुई है।
उत्तर 12.
(क) बाज़ार का जादू चढ़ने पर प्रभाव जिस प्रकार चुंबक लोहे को अपनी ओर खींचता है, उसी प्रकार बाज़ार का जादू चढ़ने पर मनुष्य उसकी ओर आकर्षित होता है। उसे लगता है कि यह समान भी हूँ, वह सामान भी लँ। उसे सभी वस्तुएँ अनिवार्य तथा आराम देने वाली लगती हैं।
बाज़ार का जादू उतरने पर प्रभाव मनुष्य पर बाज़ार का जादू उतरने का प्रभाव यह पड़ता है कि फैंसी चीज़ों की अधिकता उसके आराम में मदद नहीं देतीं, बल्कि खलल ही डालती हैं। उसे लगने लगता है कि इससे थोड़ी देर के लिए गर्व ज़रूर महसूस होता है, पर अंततः यह सुविधाजनक नहीं है। इससे उसके अभिमान की भावना को और खुराक़ ही मिलती है।
(ख) युद्ध को देश की सीमा में बढ़ते हुए देखकर जब लोग परेशान हो उठे, तब भक्तिन के बेटी-दामाद उसके नाती को लेकर भक्तिन को बुलाने आ गए। भक्तिन उन सबको देख आती है और रुपया भेज देती है, पर वह उनके साथ नहीं गई, क्योंकि उनके साथ जाने के लिए उसे लेखिका का साथ छोड़ना पड़ता, जो शायद भक्तिन के लिए जीवन के अंतिम समय तक संभव न था। इस घटना के बाद ही लेखिका को लगा कि भक्तिन उसका साथ नहीं छोड़ना चाहती है।
(ग) दंगल में विजयी होने के पश्चात् लुट्टन सिंह राज पहलवान हो गया तथा राजदरबार का दर्शनीय प्राणी बन गया। मेलों में वह घुटने तक लंबा चोला पहने, मतवाले हाथी की तरह झूमता हुआ घूमता। दुकानदार उससे चुहलबाज़ी करते रहते थे। उसकी बुद्धि बच्चों जैसी हो गई थी। सीटी बजाता, आँखों पर रंगीन चश्मा लगाए और खिलौने से खेलता हुआ वह राजदरबार में आता। राजा साहब उसका बहुत ध्यान रखते थे और अब किसी को भी उससे लड़ने की आज्ञा नहीं देते थे।
(घ) भारतीय संस्कृति में अवधूत, वज्र से भी अधिक कठोर तथा पुष्प से भी अधिक कोमल होते हैं। लेखक भी शिरीष के पेड़ को अवधूत की तरह ही मानता है। कालिदास के अनुसार, शिरीष के फूल सिर्फ भौरों के पैरों का ही वज़न सहन कर सकते हैं, लेकिन लेखक ने महसूस किया कि शिरीष का फूल इतना मज़बूत होता है कि नए फूलों के निकल आने पर भी स्थान नहीं छोड़ता तथा बाह्य रूप से कालजयी अवधूत कहलाता है। शिरीष की इस विशेषता के आधार पर यह कहना उचित ही है कि हृदय की कोमलता को बचाने के लिए व्यवहार की कठोरता को बनाए रखना भी ज़रूरी है।
(ङ) लेखिका के अनुसार, सफ़िया सर्वधर्म प्रेमी, दृढ़ संकल्पी, स्पष्टवादिनी और साहसी महिला है। वह सिख बीबी के अंतर्मन की इच्छा को पूरा करने के लिए अपने भाई तक से कानून के विषय में बहस कर बैठती है। अपना वादा पूरा करने के लिए वह किसी भी प्रकार का कष्ट या परेशानी सहन करने के लिए तैयार है। उसमें कस्टम अधिकारी से बात करने का साहस है। उसे विश्वास है कि वह अपनी नमक की बात को स्पष्ट रूप से अधिकारी को बताकर, उनकी इंसानियत को झकझोर कर सीमा पार कर लेगी। वह कोमल हृदय वाली, प्रेममयी, भावुक महिला है। वह जाति-धर्म आदि को महत्त्व नहीं देती, बल्कि प्यार और इंसानियत को महत्त्व देती है। वह कस्टम अधिकारी से अपनी प्रेम की शक्ति व बुद्धिचातुर्य के कारण ही सब कुछ स्पष्ट रूप से कह पाती है।
उत्तर 13.
यशोधर बाबू पुराने रीति-रिवाज़ों को मानने वाले एक आदर्श व्यक्ति हैं। आधुनिक युग का प्रभाव उन्होंने अपने ऊपर पड़ने ही नहीं दिया। वे अपने ही सिद्धांतों के साथ चलना चाहते हैं, चाहे दूसरा उनसे नाराज़ रहे या प्रसन्न हम यशोधर बाबू के स्वभाव में बस यही परिवर्तन चाहेंगे कि वे नए युग के कुछ परिवर्तनों को अपना लें; जैसे-वेशभूषा, लड़कियों का बाहर काम करना, मोबाइल, कंप्यूटर इत्यादि का प्रयोग करना आदि। वे बस उन नए विचारों को अपना लें, जिससे पारिवारिक जीवन सुचारु रूप से चल सके। इसके अतिरिक्त, उन्हें अपने विचारों में अधिक कठोरता नहीं रखनी चाहिए तथा समय एवं परिस्थिति के अनुसार, उसमें आवश्यक संशोधन करते रहना चाहिए। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। अतः उसे अपने साथ अन्य लोगों की भावनाओं का भी ध्यान रखना पड़ता है। व्यक्ति को अपने सिद्धांतों में इतना कठोर नहीं होना चाहिए कि साथ के अन्य व्यक्तियों को इससे दुःख या कष्ट हो। अतः यशोधर बाबू को इस बिंदु को भी ध्यान में रखना चाहिए।
उत्तर 14.
(क) ऐन फ्रैंक के अनुसार, पुरुष शुरू से ही नारियों का शोषण करता आया है। वह स्त्री को घर की चारदीवारी में बंद रखना चाहता है, जिससे वह समाज में पुरुषों से बराबरी न कर सकें। स्त्रियाँ शारीरिक दृष्टि से पुरुषों से कमज़ोर होती हैं। अतः वह उस पर शासन करना अपना अधिकार समझने लगता है। वास्तव में, समाज के निर्माण में जो योगदान स्त्रियों का है, वह अत्यंत ही सराहनीय है। वर्तमान युग में स्त्रियों की स्थिति में बहुत परिवर्तन आ चुका है। स्त्रियों को समाज में पुरुषों के बराबर सम्मान मिलने लगा है। अब स्त्रियाँ समाज में पुरुषों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चलने लगी हैं। अब वह पुरुष की दासी न रहकर उसकी सहयोगिनी बन गई है। आजकल स्त्रियाँ प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति जैसे पदों पर भी अपनी जगह बना लेती हैं। अब पुरुषों को भी समझ में आ गया है कि स्त्रियों के साथ मिलकर वे इस समाज को ऊँचाइयों पर ले जा सकते हैं।
(ख) सर्वप्रथम लेखक के पिता चाहते ही नहीं थे कि लेखक आगे की पढ़ाई कर सके। दत्ता जी राव के कहने से उन्होंने लेखक को पढ़ने की अनुमति तो दे दी, लेकिन बहुत सारी शर्तों के साथ। वे चाहते थे कि लेखक सुबह पाठशाला जाने से पहले खेत में जाकर ग्यारह बजे तक पानी लगाए, उसके बाद पाठशाला जाए और फिर पाठशाला से आकर घर में बस्ता रखकर खेत में जाए और एक घंटा पशुओं को चराए। अगर किसी दिन खेत में अधिक काम हो, तो उस दिन पाठशाला से छुट्टी ले और खेत का सारा काम खत्म करे। लेखक ने अपने पिता की सभी शर्तों को मान लिया। अब वह पढ़ाई के साथ-साथ खेत का भी काम करता था। इस प्रकार लेखक ने अपने पिता को सम्मान देते हुए अपनी पढ़ाई की इच्छा भी पूरी की।
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