CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 2 are part of CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 2.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 2
Board | CBSE |
Class | XII |
Subject | Hindi |
Sample Paper Set | Paper 2 |
Category | CBSE Sample Papers |
Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 2 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.
समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100
सामान्य निर्देश
- इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं-क, ख और ग।
- तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (15)
शिक्षा जीवन के सर्वांगीण विकास हेतु अनिवार्य है। शिक्षा के बिना मनुष्य विवेकशील और शिष्ट नहीं बन सकता। विवेक से मनुष्य में सही और गलत का चयन करने की क्षमता उत्पन्न होती है। विवेक से ही मनुष्य के भीतर उसके चारों ओर घुटते घटनाक्रमों के प्रति एक उचित दृष्टिकोण उत्पन्न होता है। शिक्षा ही मानव-को-मानव के प्रति मानवीय भावनाओं से पोषित करती है।
शिक्षा से मनुष्य अपने परिवेश के प्रति जाग्रत होकर कर्तव्याभिमुख हो जाता है। ‘स्व’ से ‘पर’ की ओर अग्रसर होने लगता है। निर्बल की सहायता करना, दुखियों के दुःख दूर करने का प्रयास करना, दूसरों के दुःख से दु:खी हो जाना और दूसरों के सुख से स्वयं सुख का अनुभव करना जैसी बातें एक शिक्षित मानव में सरलता से देखने को मिल जाती हैं। इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र इत्यादि पढ़कर विद्यार्थी विद्वान् ही नहीं बुनता, वरन् उसमें एक विशिष्ट जीवन दृष्टि, रचनात्मकता और परिपक्वता का सृजन भी होता है। शिक्षित सामाजिक परिवेश में व्यक्ति अशिक्षित सामाजिक परिवेश की तुलना में सदैव ही उच्चस्तर पर जीवन-यापन करता है।
पुरंतु, आज आधुनिक युग में शिक्षा का अर्थ बदल रहा है। शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा रही है। व्यावसायिक शिक्षा के अंधानुकरण में छात्र सैद्धांतिक शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं, जिसके कारण रूस की क्रांति, फ्रांस की क्रांति, अमेरिकी क्रांति, समाजवाद, पूँजीवाद, राजनीतिक व्यवस्था, सांस्कृतिक मूल्यों आदि की सामान्य जानकारी भी व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को नहीं है। यह शिक्षा का विशुद्ध रोज़गारोन्मुखी रूप है। शिक्षा के प्रति इस प्रकार का संकुचित दृष्टिकोण अपनाकर विवेकशील नागरिकों का निर्माण नहीं किया जा सकता।
भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा रोज़गार का साधन न होकर साध्य हो गई है। इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आवश्यक है। जहाँ मानविकी के छात्रों को पत्रकारिता, साहित्य-सृजन, विज्ञापन, जनसंपर्क इत्यादि कोर्स भी कराए जाने चाहिए, ताकि उन्हें रोज़गार के लिए न भटकना पड़े, वहीं व्यावसायिक कोर्स करने वाले छात्रों को मानविकी के विषय; जैसे-इतिहास, साहित्य, राजनीतिशास्त्र, दर्शन आदि का थोड़ा-बहुत अध्ययन अवश्य करना चाहिए, ताकि समाज को विवेकशील नागरिक प्राप्त होते रहें, तभी समाज में संतुलन बना रह सकेगा।
(क) प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक बताइए। (1)
(ख) प्रस्तुत गद्यांश के केंद्रीय भाव को लगभग 20 शब्दों में लिखिए। (2)
(ग) शिक्षा से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है। तर्क के साथ इसकी पुष्टि कीजिए। (2)
(घ) समाज में एक शिक्षित व्यक्ति का व्यवहार किस तरह का होता है? स्पष्ट करें। (2)
(ङ) “शिक्षा भौतिक आकांक्षा की पूर्ति का साधन बनती जा रही है।” पंक्ति में निहित आशय को स्पष्ट कीजिए। (2)
(च) सिर्फ व्यावसायिक शिक्षा, पर ज़ोर देने से कौन-कौन से सामाजिक दोष उत्पन्न हो रहे हैं? (2)
(छ) भारत में शिक्षा रोज़गार का साध्य किस प्रकार हो गई है? स्पष्ट कीजिए। (2)
(ज) “व्यावसायिक’ तथा ‘विवेकशील’ शब्दों में प्रयुक्त प्रत्यय व मूल शब्द बताइए। (2)
प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (1 × 5= 5)
नए युग में विचारों की नई गंगा बहाओ तुम,
कि सब कुछ जो बदल दे, ऐसे तूफ़ाँ में नहाओ तुम।
अगर तुम ठान लो तो आँधियों को मोड़ सकते हो।
अगर तुम ठान लो तो गुगन के तारे तोड़ सकते हो,
अगर तुम ठान लो तो विश्व के इतिहास में अपने
सुयश का एक नव अध्याय भी तुम जोड़ सकते हो,
तुम्हारे बाहुबल पर विश्व को भारी भरोसा है
उसी विश्वास को फिर आज जुन-जन में जगाओ तुम।
पसीना तुम अगर इस भूमि में अपना मिला दोगे,
करोड़ों दीन-हीनों को नया जीवन दिला दोगे।
तुम्हारी देह के श्रम-सीकरों में शक्ति है इतनी
कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे।
नया जीवन तुम्हारे हाथ का हल्का इशारा है।।
इशारा कर वही इस देश को फिर लहलहाओ तुम।
(क) यदि भारतीय युवा वर्ग दृढ़ निश्चय कर लें, तो क्या-क्या कर सकते हैं?
(ख) युवा वर्ग से क्या-क्या करने का आग्रह किया जा रहा है?
(ग) युवा वर्ग यदि परिश्रम करें, तो इसके क्या परिणाम हो सकते हैं?
(घ) काव्यांश में प्रयुक्त काव्य-पंक्ति-“कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे”-का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ङ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त किसी मुहावरे का अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अनुच्छेद लिखिए (5)
(क) परहित सरिस धरम नहिं भाई
(ख) अंतरिक्ष में मानव
(ग) ई-मेल
(घ) बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता
प्रश्न 4.
खाद्य पदार्थों में मिलावट की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त करते हुए किसी प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के संपादक को पत्र लिखिए। इसके निराकरण के उपाय भी सुझाइए।
अथवा
अस्पताल के प्रबंधन पर असंतोष व्यक्त करते हुए अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को पत्र लिखिए। (5)
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए (1 × 5 = 5)
(क) भारत में पत्रकारिता की शुरुआत कब हुई?
(ख) संचार के तत्त्व कौन-कौन से हैं?
(ग) इंटरनेट पत्रकारिता के अन्य प्रचलित नाम बताइए।
(घ) ‘लाइव’ समाचार से क्या तात्पर्य है?
(ङ) अच्छे संपादकीय के क्या गुण होते हैं?
प्रश्न 6.
‘विद्यार्थी और राजनीति’ विषय पर आलेख लिखिए।
अथवा
हाल ही में पढ़ी गई किसी पुस्तक की समीक्षा लिखिए।
प्रश्न 7.
‘विद्यालय में अनुशासन की कमी’ अथवा ‘बाघों की घटती संख्या में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन तैयार कीजिए। (5)
प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)
बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान पुरों में चिड़ियों के
भुरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
(क) काव्यांश में ममता की शक्ति किस प्रकार उजागर हुई है?
(ख) चिड़िया के घोंसले में किस दृश्य की कल्पना की गई है?
(ग) चिड़िया के परों में आई चंचलता का क्या कारण है?
(घ) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव लिखिए।
अथवा
फिर हम परदे पर दिखलाएँगे
फूली हुई आँख की एक बड़ी तस्वीर
बहुत बड़ी तस्वीर
और उसके होंठों पर एक कुसमुसाहट भी
(आशा है आप उसे उसकी अपंगता की पीड़ा मानेंगे)
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए।
देखिए।
हमें दोनों एक संग रुलाने हैं।
आप और वह दोनों
(कैमुरा बस कुरो नहीं हुआ रहने दो पुरदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुस्कुराएँगे हम
(क) अपंगता की पीड़ा दर्शाने के लिए दूरदर्शन वाले क्या करते हैं? काव्यांश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ख) “हमें दोनों एक संग रुलाने हैं”-काव्य पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) “परदे पर वक्त की कीमत है-यह कथन किस बात की ओर संकेत करता है?
(घ) ‘सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम’ कहकर प्रस्तुतकर्ता क्या दर्शाना चाहता है?
प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3= 6)
हरषि राम भेंटेउ हनुमान। अति कृतज्ञ प्रभु परम सुजाना।।
तुरत बैद तुबु कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।।
हृदयें लाई प्रभु भेटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कुपि ब्राता।।
कुपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा।।
यह वृत्तांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि धुनेऊ।।
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जुगावा।।
(क) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश में किस छंद का प्रयोग हुआ है?
(ग) काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सबसे तेज़ बौछारें गईं भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शुरद आया पुलों को पार करते हुए।
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए
घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके
दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन चीज़ उड़ सके
दुनिया का सबसे पुतला कागज़ उड़ सके
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके
कि शुरू हो चुके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया
(क) प्रस्तुत काव्यांश की अलंकार योजना के बारे में बताइए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
(ग) काव्यांश में प्रस्तुत बिंबों को स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3= 6)
(क) रक्षाबंधन की तैयारी का वर्णन कवि (शायर) ने किस प्रकार किया है?
(ख) ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि ने कवि-कर्म और कृषि में किस प्रकार से साम्य स्थापित किया है?
(ग) ‘लक्ष्मण-मूच्र्छा और राम का विलाप’ पाठ के आधार पर कुंभकरण का चरित्र चित्रण कीजिए।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)
भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती, पर ‘नरो वा कुंजरो वा’ कहने में भी विश्वास नहीं करती। मेरे इधर-उधूर पड़े रुपये-पैसे, भंडार-घर की किसी मुटकी में कैसे अंतुरहित हो जाते हैं, यह रहस्य भी भक्तिनु जानती है। पर, उस संबंध में किसी के संकेत करते ही वह उसे शास्त्रार्थ के लिए चुनौती दे डालती है, जिसको स्वीकार कर लेना किसी तर्क-शिरोमणि के लिए संभव नहीं। यह उसका अपना घर ठहरा, रुपया-पैसा जो इधर-उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। यह क्या चोरी है। उसके जीवन का परम कर्तव्य मुझे प्रसन्न रखना है। जिस बात से मुझे क्रोध आ सकता है, उसे बदलकर इधर-उधर करके बताना, क्या झूठ है। इतनी चोरी और इतना झूठ तो धुर्मराज महाराज में भी होगा, नहीं तो वे भगवान जी को कैसे प्रसन्न रख सकते और संसार को कैसे चला सकते।
(क) लेखिका ने ‘नरो वा कुंजरो वा’ वाक्यांश किस संदर्भ में कहा था?
(ख) भक्तिन भंडार-घर की मटकी में छिपाकर रखे रुपयों को चोरी क्यों नहीं मानती?
(ग) लेखिका के क्रोध से बचने के लिए भक्तिन क्या करती थी?
(घ) भक्तिन के अनुसार, संसार चलाने के लिए धर्मराज को क्या करना पड़ा होगा?
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 4 = 12)
(क) डॉ. आंबेडकर अपनी कल्पना में समाज का कैसा रूप देखते हैं?
(ख) लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफ़ी कुछ कहा जाएगा?
(ग) जब सफ़िया अमृतसर के पुल पर चढ़ रही थी, तब कस्टम अधिकारी सबसे निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए खड़ा था। उस समय वह क्या सोच रहा होगा?
(घ) लुट्न सिंह ने अचानक बिना कुछ सोचे समझे दंगल में चाँद सिंह को कुश्ती के लिए चुनौती क्यों दे दी?
(ङ) इंदर सेना सबसे पहले ‘गंगा मैया की जय’ क्यों बोलती है? नदियों का भारतीय सांस्कृतिक परिवेश में क्या महत्त्व है?
प्रश्न 13.
कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति ‘जूझ’ कहानी के लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया? (5)
प्रश्न 14.
(क) ‘डायरी के पन्ने पाठ के आधार पर ऐन फ्रैंक द्वारा वर्णित सेंधमारी की घटना का अपने शब्दों में वर्णन कीजिए। (5)
(ख) ‘अतीत में दबे पाँव’ पाठ के आधार पर बताइए कि पर्यटक मुअनजो-दड़ो में कौन-कौन से तीन महत्त्वपूर्ण स्थल देख सकते हैं? (5)
उत्तर
उत्तर 1.
(क) प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उचित शीर्षक ‘शिक्षा का महत्त्व’ हो सकता है, क्योंकि प्रस्तुत गद्यांश में शिक्षा का जीवन में महत्त्व दर्शाते हुए उसके उपयोग से परिचित कराया गया है।
(ख) गद्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज के तौर-तरीकों को अपनाने के लिए सामाजिक क्रियाकलाप में भाग लेता है तथा शिक्षा के द्वारा ही उसमें सामाजिक गुण उत्पन्न होते हैं। शिक्षा से प्रेम, दया, परोपकार आदि मानवीय गुणों को विकसित किया जा सकता है, जिससे व्यक्ति एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर जीवन-यापन कर पाता है।
(ग) मानव जीवन विकास की विभिन्न अवस्थाओं से होकर गुज़रता है; जैसे-शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा प्रौढ़ावस्था। व्यक्ति विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को शिक्षा के द्वारा ही कुशलतापूर्वक संपूर्ण कर पाता है। शिक्षा से मनुष्य का बौद्धिक विकास, सांस्कृतिक विकास एवं सामाजिक विकास होता है। शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य नेतृत्व क्षमता, सदाचार, सहानुभूति, सहिष्णुता, अनुशासन आदि मानवीय गुणों का विकास कर सकता है।
(घ) एक शिक्षित व्यक्ति का अपने समाज के प्रति दृष्टिकोण एवं व्यवहार बदल जाता है। दूसरों की सहायता करना, सभी के प्रति स्नेह-दया का भाव रखना एवं देश के प्रति कर्तव्यपरायण होना, शिक्षा के द्वारा ही संभव है। शिक्षा से मनुष्य में ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना उत्पन्न हो जाती है। एक शिक्षित व्यक्ति अपने अनुभवों को बेहतर तरीके से समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ साझा करता है।
(ङ) व्यावसायिक शिक्षा वर्तमान में मात्र धन कमाने का साधन बनती जा रही है। भौतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए शिक्षा ने व्यावसायिक स्तर पर शोषण कर मनुष्य-मनुष्य के बीच आपसी मतभेद उत्पन्न कर दिए हैं। व्यावसायिक शिक्षा के कारण व्यक्ति में सैद्धांतिक शिक्षा का अभाव होने से मानवीय मूल्यों का अभाव हुआ है। इससे जीवन में विशिष्ट एवं व्यापक दृष्टिकोण का ह्रास होता जा रहा है।
(च) व्यक्ति व्यावसायिक शिक्षा ग्रहण कर रोज़गार प्राप्त करने के योग्य तो हो जाता है, लेकिन मानविकी विषयों का अध्ययन न करने से उसमें सैद्धांतिक एवं मानवीय गुणों का अभाव हो जाता है। व्यावसायीकरण से मुनाफ़ाखोरी एवं धनार्जन की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है, जिससे गरीब एवं प्रतिभावान छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण नहीं कर पाते।
(छ) भारत में शिक्षा रोज़गार का साध्य बन रही है। शिक्षा का दृष्टिकोण संकुचित होता जा रहा है। शिक्षा का यह रूप रोज़गारोन्मुखी होता जा रहा है। इस प्रकार शिक्षा का साध्य होना मनुष्य के जीवन, दृष्टि व रचनात्मकता को प्रभावित करता है। अतः इस कुप्रवृत्ति पर अंकुश लगाना अति आवश्यक है।
(ज) ‘व्यावसायिक’ में मूल शब्द ‘व्यवसाय’ तथा प्रत्यय ‘इक’ प्रयुक्त हुआ है और विवेकशील’ में मूल शब्द ‘विवेक’ तथा प्रत्यय ‘शील प्रयुक्त हुआ है।
उत्तर 2.
(क) भारतीय युवा वर्ग यदि दृढ़ निश्चय कर ले, तो वह करोड़ों दीन-हीन व्यक्तियों के जीवन को नई दिशा प्रदान कर सकते हैं।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कवि युवा वर्ग से यह आग्रह कर रहा है कि वह नए विचारों का प्रसार करे, वह समाज की दशा में परिवर्तन लाए तथा जन सामान्य में आत्मविश्वास की भावना उत्पन्न करे।
(ग) कवि का मानना है कि यदि युवा वर्ग परिश्रम करें, तो वे धरती की काया-पलट सकते हैं। वे भारत को विश्व का अग्रणी देश बना सकते हैं।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त काव्य-पंक्ति-”कहीं भी धूल में तुम फूल सोने के खिला दोगे”-का आशय यह है कि देश का युवा वर्ग यदि प्रयास करे, तो मिट्टी से सोना उत्पन्न कर सकता है अर्थात् राष्ट्र का सर्वांगीण विकास कर सकता है। वह देश को समृद्धि की दिशा में ले जा सकता है।
(ङ) प्रस्तुत काव्यांश में प्रयुक्त मुहावरा है-गगन के तारे तोड़ना अर्थात् कठिन कार्य करना। कोई व्यक्ति यदि मन में दृढ़ निश्चय कर ले, तो उसके लिए आकाश के तारे तोड़ना भी कठिन नहीं है।
उत्तर 3.
(क) परहित सरिस धरम नहिं भाई
गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है।
परहित सरिस धरम नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधुमाई।।”
अर्थात् परोपकार से बढ़कर कोई उत्तम धर्म नहीं और पर-पीड़ा से बढ़कर कोई नीच कर्म नहीं। परोपकार की भावना ही वास्तव में, व्यक्ति को मनुष्य बनाती है। कभी किसी भूखे व्यक्ति को खाना खिलाते समय चेहरे पर व्याप्त संतुष्टि के भाव से जिस असीम आनंद की प्राप्ति होती है, वह अवर्णनीय है। प्रकृति सृष्टि की नियामक है, जिसने अनेक प्रकार की प्रजातियों की रचना की है। सभी प्रजातियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य प्रजाति है, क्योंकि विवेकशील मनुष्य जाति सिर्फ अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह स्वयं से परे अन्य लोगों की आवश्यकताओं की भी उतनी ही चिंता करती है, जितनी स्वयं की। इसी का परिणाम मनुष्य की सतत विचारशील, मननशील, अग्रगामी दृष्टिकोण संबंधी मानसिकता के रूप में देखा जा सकता है।
मनुष्य में परोपकार की भावना अवश्य होनी चाहिए। परोपकार से ही मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास होता है। इसके कारण ही वह ‘स्व’ की सीमित एवं संकीर्ण भावनाओं से बाहर निकलता है, इससे ही उसकी आत्मा का विस्तार होता है। समाज के अनेक सदस्य अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति हेतु समाज की अनेक मर्यादाओं का उल्लंघन करते हैं, उनमें से एक उल्लंघन परहित की चिंता या परोपकार की भावना का त्याग करना भी है। मानव स्वभाव का तो हमेशा ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ का लक्ष्य होना चाहिए।
मनुष्य एक, सामाजिक प्राणी है, इसलिए कदम-कदम पर उसे एक-दूसरे के सहयोग एवं समर्थन की आवश्यकता पड़ती है। पारस्परिक सहयोग एवं समर्थन देना ही एक-दूसरे की सहायता करना, परोपकार करना एवं आपसी सुख-दुःख की भावनाओं में सम्मिलित होना है। ऐसा करने वाला मनुष्य ही सही अर्थों में मनुष्य है और मानव प्रजाति उस पर गर्व कर सकती है, क्योंकि इससे वह स्वयं एवं समाज दोनों को अर्थपूर्ण बनाता है।
(ख) अंतरिक्ष में मानव
अंतरिक्ष ने प्रारंभ से ही मानव को अपनी ओर आकर्षित किया है। पहले मनुष्य अपनी कल्पना और कहानियों के माध्यम से अंतरिक्ष की सैर किया करता था। अपनी इस कल्पना को साकार करने के संकल्प के साथ मानव ने अंतरिक्ष अनुसंधान प्रारंभ किया और उसे 20वीं सदी के मध्य के दशक में इस क्षेत्र में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हो ही गई। अंतरिक्ष में मानव के सफ़र की शुरुआत वर्ष 1957 में हुई।
अंतरिक्ष युग की शुरुआत के समय किसी ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि भविष्य में अंतरिक्ष पर्यटन भी प्रारंभ हो जाएगा। वर्ष 2002 में डेनिस टीटो ने दुनिया के प्रथम अंतरिक्ष पर्यटक बनने का गौरव हासिल किया। इसके बाद वर्ष 2006 में अनुशेह अंसारी विश्व की पहली महिला अंतरिक्ष पर्यटक बनीं। 23 जून, 2007 को भारतीय मूल की अमेरिकी वैज्ञानिक सुनीता विलियम्स अंतरिक्ष में सर्वाधिक दिनों (195 दिन) तक रहने वाली पहली महिला बनीं। उन्होंने 29 घंटे एवं 17 मिनट तक चार ‘स्पेस वाक’ कर विश्व रिकॉर्ड भी बनाया। अंतरिक्ष पर्यटन में सफलता के बाद अंतरिक्ष में मानव बस्तियाँ बनाने की परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। विश्व के बहुत कम देशों ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं।
भारत को अंतरिक्ष युग में ले जाने का श्रेय प्रख्यात वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को जाता है। भारत ने अब तक अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति की है। इसने अब तक कई उपग्रह अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए हैं। राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले प्रथम भारतीय थे।
अंतरिक्ष अनुसंधान से विश्व अत्यधिक लाभान्वित हुआ है। वैज्ञानिकों का यह भी मानना है कि मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाएँ हैं। अंतरिक्ष युग में प्रवेश करने के बाद से मानव ने इस क्षेत्र में अनेक अभूतपूर्व उपलब्धियाँ हासिल की हैं। जिस तरह से वह इस क्षेत्र में प्रगति के पथ पर अग्रसर है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वह दिन दूर नहीं जब मानव अंतरिक्ष में अपनी बस्तियाँ बनाने में भी कामयाब हो जाएगा।
(ग) ई-मेल
ई-मेल में ‘ई’ का पूर्ण रूप है ‘इलेक्ट्रॉनिक’ एवं ‘मेल’ का अर्थ होता है ‘डाक’। इस तरह ई-मेल का तात्पर्य है- ‘इलेक्ट्रॉनिक डाक पारिभाषिक रूप से कहें तो ई-मेल संदेश भेजने का ऐसा इलेक्ट्रॉनिक तरीका है, जिसके माध्यम से न सिर्फ संदेशों को बल्कि कुछ डिजिटल दस्तावेज़ों को भी इसके साथ संलग्न कर सुरक्षित रखा जा सकता है।
इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग के साथ ई-मेल के प्रचलन में भी वृद्धि हुई है। यह भी कहा जा सकता है कि ई-मेल के प्रचलन ने इंटरनेट के प्रयोग को बढ़ावा दिया है। ई-मेल आज दुनियाभर में सर्वाधिक लोकप्रिय संचार के साधन का रूप ले चुका है। ई-मेल की लोकप्रियता एवं इसके बढ़ते प्रयोग का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पहले लोग व्यक्ति के घर या ऑफ़िस का पता पूछते थे, पर अब उसके ई-मेल का पता पूछते हैं।
ई-मेल के कई लाभ हैं। इसका प्रयोग करना अत्यधिक सरल होता है। इसके माध्यम से हर रोज़ काफ़ी संख्या में दस्तावेज़ों को व्यवस्थित कर प्रयोग में लाया एवं उन्हें सुरक्षित रखा जा सकता है। ई-मेल के माध्यम से भेजे गए संदेश सुरक्षित तो रहते ही हैं, साथ में भेजे गए समय एवं दिनांक को भी इसमें सुरक्षित रखा जाता है, जो बाद में बहुत उपयोगी साबित होता है।
ई-मेल से यदि कई प्रकार के लाभ हैं, तो इससे नुकसान होने की भी संभावना बनी रहती है। यदि किसी ई-मेल का पासवर्ड किसी अन्य व्यक्ति को पता चल जाए, तो वह इसका दुरुपयोग कर सकता है। इसलिए ई-मेल सुविधा का प्रयोग करने वाले व्यक्ति को इस संदर्भ में विशेष सावधानी की आवश्यकता पड़ती है। संचार के सभी माध्यमों एवं सुविधाओं का समाज पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। नई तकनीक के प्रचलन से कई प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त होती हैं, तो इससे कुछ नुकसान होने की संभावना भी बनी रहती है। ठीक यही बात ई-मेल के साथ भी है। यदि इसका प्रयोग सावधानी से किया जाए, तो निश्चित रूप से इससे होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है। अतः सूचना क्रांति में इंटरनेट एवं ई-मेल की मुख्य भूमिका है।
(घ) बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता
वैयक्तिक या सामाजिक जीवन में सफलता का रहस्य समय का सदुपयोग है। समय ही धन है, जिसका दुरुपयोग पछतावे के सिवाय और कुछ नहीं देता। अतः जीवन में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक है कि समय के महत्त्व को समझें। ऐसा नहीं करेंगे तो जीवन ठहर जाएगा, जबकि जीवन एक प्रवाहमान नदी के समान होना चाहिए।
जीवन की सफलता एवं सार्थकता सही समय पर किए गए सही कार्यों में ही निहित है। यह तब ही संभव है, जब समय के महत्त्व की पहचान हो। समय के महत्त्व को पहचानने का सबसे बेहतर ढंग है अपने समय का अधिकतम सार्थक उपयोग, क्योंकि खोया हुआ धन, जन एवं स्वास्थ्य यदि किसी प्रकार वापस भी लौट आए, लेकिन गुज़रा हुआ समय, कमान से निकला तीर एवं मुँह से निकले शब्द कभी वापस नहीं आते।
एक मिनट की सावधानी से विजय का सेहरा सिर पर बँधता है और एक मिनट की चूक से पराजय की कालिख हमेशा के लिए लग जाती है। पाँच मिनट की कीमत को ठीक से नहीं पहचानने के कारण ऑस्ट्रियन, नेपोलियन से पराजित हो गए और वही अपराजेय नेपोलियन अपने मित्र ग्रूफी के पाँच मिनट विलंब करने के कारण बंदी बनकर अपमान की मौत मरा।
गुज़रते हुए समय से विरत होकर कल्पना की दुनिया में मोती खोजने वालों के पास अकसर पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ नहीं होता। जीवन की सफलता का रहस्य समय के सदुपयोग में ही निहित है।
व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए अपना निश्चित कार्यक्रम बनाकर एवं मानसिक वृत्तियों को एकाग्रचित्त कर कार्य करना होगा, तब ही सफलता उसको वरण करेगी। एक बार समय व्यतीत हो जाने के बाद सृष्टि की कोई भी शक्ति उसे वापस लौटाने में असमर्थ है।
उत्तर 4.
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 15 सितंबर, 20××
सेवा में,
संपादक महोदय,
नवभारत टाइम्स,
नई दिल्ली।
विषय खाद्य पदार्थों में मिलावट की बढ़ती प्रवृत्ति के संबंध में।
महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय दैनिक समाचार-पत्र के माध्यम से सरकार का ध्यान खाद्य पदार्थों में मिलावट की बढ़ती प्रवृत्ति की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। आशा है कि आप जनहित में मेरा पत्र अवश्य प्रकाशित करेंगे।
इन दिनों खाद्य पदार्थों में मिलावट का धंधा खूब फल-फूल रहा है। दूध में पानी की मिलावट तो आम बात है, पर अब अन्य खाद्य पदार्थों; जैसे-खोया, पनीर, घी, मक्खन, मसालों आदि में भी अत्यधिक मिलावट की जा रही है और इन्हें कोई रोकने वाला नहीं है। यदि कभी शिकायत की भी जाती है, तो झूठी कार्यवाही करके दोषियों को छोड़ दिया जाता है। इनकी पहुँच ऊपर के अधिकारियों तक होती है।
इनके इस अनैतिक कार्य का आम जनता के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अब तो फल और सब्ज़ियाँ भी इनके दुष्प्रभाव से नहीं बची हैं। सरकार को इस दुष्प्रवृत्ति पर तुरंत अंकुश लगाने के लिए कठोर कदम उठाना चाहिए। इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं।
- खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियों के उत्पादों की समय-समय पर जाँच की जानी चाहिए।
- जाँच में दोषी पाए जाने वाले लोगों को सख़्त से सख़्त सज़ा दी जाए। सधन्यवाद! भवदीय क.ख.ग.
अथवा
सेवा में,
चिकित्सा अधीक्षक
लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल
नई दिल्ली।
दिनांक 15 सितंबर, 20××
विषय अस्पताल के प्रबंधन को और सुधारने की आवश्यकता के संदर्भ में।
महोदय,
अत्यंत दु:ख के साथ कहना पड़ रहा है कि आपके नियंत्रण एवं निगरानी में चलने वाले लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के प्रबंधन में अभी और सुधार करने की आवश्यकता है, क्योंकि मौजूदा प्रबंधन व्यवस्था जनसामान्य के हितों की ठीक तरह से पूर्ति कर पाने में असक्षम है। मैं अपने चाचाजी को बीमारी की अत्यंत गंभीर अवस्था में इलाज के लिए यहाँ लाया था। उन्हें दिल की बीमारी है और साँस लेने में अत्यधिक कठिनाई महसूस हो रही थी। यहाँ पर भर्ती करने के लिए प्रबंधन ने इतनी औपचारिकताएँ पूरी करवाईं और इतना अधिक समय लिया कि उनकी स्थिति और बिगड़ने लगी। उनके लिए ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम होते-होते शाम हो गई। यदि इतने लंबे समय तक कोई अन्य रोगी इसे सह नहीं पाया, तो उसकी मृत्यु तो निश्चित ही है। क्या यह उचित है कि अस्पताल में जिस रोगी को सबसे अधिक जिस चीज़ या उपकरण की आवश्यकता हो, वही उसे समय पर न मिल सके?
अतः आपसे निवेदन है कि अस्पताल के प्रबंधन को और चुस्त एवं सक्रिय बनाया जाए तथा उसे उत्तरदायीपूर्ण भूमिका के लिए प्रेरित किया जाए। मैं आशा करता हूँ कि आप इस पर उचित ध्यान देंगे और अस्पताल प्रबंधन को अधिक उत्तरदायी एवं मरीजों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण बनाने के लिए आवश्यक निर्देश जारी करेंगे।
सधन्यवाद!
भवदीय
राम किशोर शर्मा
डी-23, सेक्टर-
1 द्वारका,
नई दिल्ली।
उत्तर 5.
(क) भारत में पत्रकारिता की शुरुआत 1780 ई. में जेम्स ऑगस्टस हिक्की के बंगाल गजट’ (अंग्रेज़ी में) से हुई।
(ख) संचार के प्रमुख तत्त्व हैं-स्रोत, डीकोडिंग, संदेश, फीडबैक और शोर।
(ग) इंटरनेट पत्रकारिता के अन्य प्रचलित नाम हैं-ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता तथा वेब पत्रकारिता
(घ) जब किसी समाचार या घटना का सीधे घटना स्थल से ही प्रसारण किया जाता है, तो उसे ‘लाइव’ समाचार अथवा सीधा प्रसारण कहते हैं।
(ङ) संक्षिप्तता, विश्वसनीयता, तथ्यपरकता, निष्पक्षता एवं रोचकता एक अच्छे संपादकीय के गुण हैं। वास्तव में, एक अच्छा संपादकीय | किसी विषय या मुद्दे पर संपादक द्वारा प्रस्तुत उसकी अपने विचारों की सजग एवं ईमानदार प्रस्तुति है।
उत्तर 6.
विद्यार्थी और राजनीति
विद्यार्थी जीवन मानव जीवन का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समय होता है। राजनीति पढ़ना और राजनीति में भागीदारी करना दो अलग-अलग बातें हैं। राजनीति का अध्ययन करने से विद्यार्थियों में विवेक जाग्रत होगा और वे सही-गलत के विषय में ठीक ढंग से सोच सकेंगे। इसके विपरीत, यदि वे राजनीति में सक्रिय भाग लेंगे, तो पक्षपात से परे नहीं रह सकेंगे। शिक्षण संस्थानों में राजनीति के बीज़ बोने का काम राजनीतिक दल करते हैं। ये राजनीतिज्ञ छात्रों की विशेषताओं से भली-भाँति परिचित होते हैं। वे जानते हैं कि युवा विद्यार्थी प्रायः आदर्शवादी होते हैं और उन्हें आदर्श से ही प्रेरित किया जा सकता है। राजनीति को स्तरीय एवं पारदर्शी बनाने के लिए एक आचार-संहिता बनानी चाहिए, जिसका पालन देश के सभी राजनीतिक दल करें। इस आचार-संहिता का मुख्य बिंदु यह हो कि विद्यार्थियों को किसी भी दलगत संकीर्ण राजनीति के हथियार की तरह प्रयोग न किया जाए। यदि ऐसा हो जाए, तो देश की युवा छात्र शक्ति राष्ट्रीय राजनीति को न केवल स्वच्छ रूप प्रदान करने में सहायक होगी, अपितु देश की रक्षा, उसके निर्माण और प्रगति की दिशा में बेहतरीन योगदान कर सकेगी।
किसी भी देश या समाज की युवा शक्ति एक ऐसी सक्रिय शक्ति होती है, जिसे देश या समाज जैसा स्वरूप प्रदान करना चाहे, कर सकता है। किसी भी देश या समाज को अधिकतम रचनात्मक कार्यों में युवा शक्ति का प्रयोग करना चाहिए। विद्यार्थी युवा वर्ग शक्ति का आधार हैं। इसे यदि नकारात्मक दिशा में सिद्धांतविहीन राजनीति में इस्तेमाल किया जाए, तो यह देश के सक्रिय मानव संसाधन का अपव्यय है और इससे देश की प्रगति भी दुष्प्रभावित होगी, लेकिन यदि इसे सिद्धांत आधारित सकारात्मक राजनीति का हिस्सा बनाया जाए, तो देश एवं समाज का चतुर्दिक विकास होगा, क्योंकि राजनीति हमारे जीवन के सभी पक्षों से जुड़ी होती है।
अथवा
धर्मवीर भारती द्वारा लिखित उपन्यास ‘गुनाहों का देवता की समीक्षा
धर्मवीर भारती कृत कालजयी उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ वर्तमान समय में सर्वाधिक बिकने वाले हिंदी उपन्यासों में से एक है। इस उपन्यास का प्रथम प्रकाशन वर्ष 1949 में हुआ, पर यह आज इतने वर्षों के पश्चात् भी पाठकों के एक बड़े समूह को अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम है। इसकी गिनती हिंदी के 10 सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में की जाती है।
यह उपन्यास इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक रिसर्च स्कॉलर के आरंभ से अंत तक जीवन की वास्तविक कथा को आधार बनाकर लिखा गया है। उपन्यास के नायक चंदर एवं नायिका सुधा के बीच अनोखे संबंध को लेखक ने आरंभ से अंत तक इतने आकर्षक ढंग से शब्दों के माध्यम से सजीव रखा है कि इसे पढ़ने वालों के मुख पर बरबस ही ये शब्द चले आते हैं-काश! यह न होता! पात्रों के मन की उलझन, उनके सुख-दुःख का पाठक वर्ग पर ऐसा प्रभाव पड़ता है, जैसे वे उन्हें स्वयं झेल रहे हों। इस साहित्यिक रचना के माध्यम से लेखक ने इलाहाबाद के लोगों की जीवन-शैली, वहाँ की प्रकृति आदि का सजीव चित्रण किया है। इसमें दर्शाया गया है कि इलाहाबाद के लोगों के रहन-सहन, उनके सोच-विचार के साथ-साथ शहर की बनावट में भी कहीं कसाव अथवा बंधन नहीं है। हर जगह स्वच्छंदता व खुलापन है। यहाँ तक की यहाँ के मौसम में भी संतुलन या सम का अभाव है। उपन्यास की भाषा सहज और प्रभावोत्पादक है। इस प्रकार यह प्रसिद्ध उपन्यास हर तरह से पठनीय है। अतः हिंदी साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों को इसे अवश्य ही पढ़ना चाहिए।
उत्तर 7.
विद्यालयों में अनुशासन की कमी
अनुशासन है जीवन-आधार
इसके बिना जीवन बेकार।
अनुशासन का अर्थ होता है–नियम, सिद्धांत तथा आदेशों का पालन करना। अनुशासन का महत्त्व जीवन की सभी अवस्थाओं में होता है, जिसमें विद्यार्थी जीवन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। इस समय सोची गई बातें आगे भविष्य में बहुत काम आती हैं। आज के विद्यार्थी पहले के भारतीय शिष्यों के बिलकुल विपरीत हैं। वे पर्याप्त आज्ञाकारी व अनुशासन प्रिय नहीं हैं। वे खुलकर जीना और स्वच्छंद घूमना चाहते हैं। वे अपने जीवन में किसी भी तरह की रोक-टोक बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। वे हर नियम को तोड़ने में विश्वास करते हैं। विद्यार्थियों में यह अनुशासनहीनता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। इसे हम प्रेम और सहानुभूति से नियंत्रण में ला सकते हैं। अध्यापक, छात्रों के प्रति सहानुभूति का व्यवहार करें तथा छात्र अध्यापकों के प्रति आदर की दृष्टि रखें। दोनों पक्षों के सहयोग से अनुशासन बनाए रखने में मदद मिल सकती है। छात्र-छात्राएँ स्वभाव से अनुकरणीय प्रवृत्ति के होते हैं। वे केवल अपने साथियों का ही नहीं, बल्कि शिक्षकों का भी अनुकरण करते हैं, इसलिए शिक्षकों का भी यह दायित्व बन जाता है कि वे उन्हें अच्छी बातें ही सिखाएँ। विद्यालयों में ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाए, जिससे विद्यार्थी दैनिक जीवन में स्वयं ही अनुशासनबद्ध होने लगे।
अथवा
बाघों की घटती संख्या
बाघ हमारे देश की राष्ट्रीय संपत्ति हैं तथा भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय पशु घोषित किया है। 20वीं शताब्दी के आरंभ में भारत में हज़ारों की संख्या में बाघ मौजूद थे, जो कि वर्तमान में लगातार कम होते जा रहे हैं। बाघों की गिरती संख्या को रोकने तथा पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने एवं बाघों की जनसंख्या में वृद्धि करने के उद्देश्य से 1 अप्रैल, 1973 को भारत में बाघ परियोजना का शुभारंभ किया गया। वैश्विक रूप से बाघों की संख्या में लगातार गिरावट हो रही है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ के अनुसार, हमने एक शताब्दी में लगभग बाघ संरक्षित क्षेत्र में बाघों की 97% बाघ संख्या गॅवा दी है। बाघ को संकटापन्न एवं विलुप्त जीव की श्रेणी में रखा गया है। वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ के अनुसार, विश्व में लगभग 3,890 बाघ ही बचे हैं। भारत में विश्व के सर्वाधिक बाघों (लगभग 57%) का निवास है।
वर्ल्ड वाइल्ड फंड के अनुसार, बाघों की संख्या घटने का मुख्य कारण मानवीय हस्तक्षेप है, न कि प्राकृतिक क्रियाकलाप। अब प्रश्न उठता है कि क्या मनुष्य की आर्थिक लालसा की पूर्ति हेतु बाघों के शिकार एवं अवैध व्यापार आदि को सही ठहराया जा सकता है? निश्चित रूप से नहीं, क्योंकि प्रकृति ने सभी को जीवन जीने का अधिकार दिया है तथा इस धरती पर सर्वाधिक विवेकशील प्राणी होने के कारण मनुष्य का नैतिक दायित्व समाज तथा पर्यावरण के प्रति बढ़ जाता है। अत: पर्यावरण अस्थिरता को रोकने के लिए बाघों का उचित संरक्षण आवश्यक है। यद्यपि वैश्विक रूप से बाघों के संरक्षण हेतु प्रयास किए जा रहे हैं, जिसकी झलक हमें पीटर्सबर्ग में आयोजित विश्व बाघ सम्मेलन में मिली थी, तथापि वैश्विक रूप से एक समन्वित कार्यरूप और प्रोत्साहन की आवश्यकता है।
उत्तर 8.
(क) कवि ने काव्यांश में स्पष्ट रूप से दर्शाया है कि माँ की ममता में अद्भुत शक्ति होती है। चिड़िया जब बच्चों के लिए भोजन लेने दूर निकल जाती है, तो वापसी में उसके पंख जल्दी-जल्दी चलते हैं, बच्चों के प्रति ममता के कारण उसकी उड़ाने की गति और व्यग्रता बढ़ जाती है।
(ख) चिड़िया के घोंसले में चिड़िया के बच्चे अपनी माँ की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे बार-बार घोंसले से बाहर झाँकते हैं। वे माँ से मिलने कोबेचैन हैं।
(ग) चिड़िया के परों में आई चंचलता का कारण यह है कि वह अपने बच्चों के लिए अत्यंत चिंतित है। वह जल्दी-से-जल्दी अपने बच्चों के पास पहुँच उन्हें भोजन, स्नेह और सुरक्षा देना चाहती है।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि जिस प्रकार पथिक थकने के बावजूद बिना रुके निरंतर अपनी मंजिल की ओर बढ़ता जाता है, उसी प्रकार चिड़िया भी दिन ढलते ही अपने बच्चों के बारे में सोचते हुए तेज़ी से पर फड़फड़ाती उड़ती है।
अथवा
(क) अपंगता की पीड़ा दर्शाने के लिए दूरदर्शन वाले, दूरदर्शन के परदे पर अपाहिज व्यक्ति की एक फूली हुई आँख की बड़ी तस्वीर तथा उसके होंठों की कसमसाहट अर्थात् कहने और न कहने की पीड़ा से उत्पन्न उस व्यक्ति के चेहरे की स्थिति को दिखाते हैं। वस्तुतः वे ऐसा, पीड़ा को अधिक मार्मिक ढंग से प्रदर्शित करने के लिए करते हैं।
(ख) यह कथन कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता का है, जो तकनीकी निर्देश देते हुए कहता है कि उसे अपाहिज व्यक्ति और दर्शकों, दोनों को ही एक साथ रुला देना है। अपाहिज व्यक्ति अपनी पीड़ा के कारण और दर्शक उसकी पीड़ा से प्रभावित होकर रो देंगे, तभी कार्यक्रम को व्यावसायिक दृष्टि से सफल माना जाएगा।
(ग) ‘परदे पर वक्त की कीमत है’, ऐसा कहकर कार्यक्रम को प्रस्तुत करने वाला यह बताना चाहता है कि वह कितने महत्त्वपूर्ण संचार माध्यम में कार्य कर रहा है। समय की कमी टेलीविज़न या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के महत्त्व को सूचित करती है। यह भी अपाहिज व्यक्ति और दर्शकों, दोनों को ही उस क्रूरता से अनजान रखने का एक आकर्षक ढंग है, जो कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता अर्थात् दूरदर्शन वालों द्वारा अपाहिज व्यक्ति के साथ परदे की आड़ में बरती जा रही है।
(घ) ‘सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम’ कहकर प्रस्तुतकर्ता यह साबित करना चाहता है कि उसे शारीरिक अक्षमता से ग्रस्त अपाहिज व्यक्ति के प्रति गहरी संवेदना है। उसकी पीड़ा को सामान्य दर्शकों को बताकर उसने बेहद मानवीय एवं सामाजिक कार्य किया है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है। उसका उद्देश्य तो दर्शकों को किसी भी तरह प्रभावित करके केवल व्यावसायिक लाभ प्राप्त करना है।
उत्तर 9.
(क) काव्यांश में हनुमान के संजीवनी लेकर लौटने तथा लक्ष्मण के स्वस्थ होने पर राम की सेना में फैली प्रसन्नता को व्यक्त किया है, साथ ही इस समाचार के मिलने पर रावण द्वारा व्याकुल होकर सिर पीटने अर्थात् दुःखी होने और व्यग्रता की स्थिति में अपने भाई कुंभकरण के पास जाकर उसे जगाने का भावपूर्ण वर्णन हुआ है। राम को हनुमान के महान कार्य के प्रति कृतज्ञ दिखाया गया है।
(ख) काव्यांश में 16 मात्राओं वाले चौपाई छंद का प्रयोग हुआ है। चौपाई छंद के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। प्रथम एवं द्वितीय तथा तृतीय एवं चतुर्थ की तुक आपस में मिलती है।
(ग) काव्यांश में कवि ने अवधी भाषा का प्रयोग किया है। चौपाई छंद होने से काव्यांश में संगीतात्मकता एवं गेयता का गुण विद्यमान हो गया है। पुनि-पुनि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार और ‘सिर धुनेऊ’ जैसे मुहावरों का प्रयोग करके कवि ने काव्यांश में कथ्य को रोचकता के साथ प्रस्तुत करने का सार्थक प्रयास किया है।
अथवा
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने मानवीकरण अलंकार का बहुत ही सुंदर प्रयोग किया है, जो इन पंक्तियों में देखने लायक है; जैसे–’भादो गया’ ‘शरद आया पुलों को पार करते हुए अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज़ चलाते हुए’ आदि। प्रातः काल की • उपमा खरगोश की आँखों के लाल रंग से दी गई है।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश की भाषा बिंब प्रधान होते हुए भी सहज भाव-ग्राह्य है। कवि ने भावाभिव्यक्ति के लिए साहित्यिक खड़ी बोली का प्रयोग किया है। भाषा में प्रवाह एवं सजीवता है।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने दृश्य, श्रव्य एवं स्पर्श बिंबों की योजना की है। ‘खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा’, ‘शरद आया पुलों को पार करते हुए’, ‘साइकिल तेज़ चलाते हुए’, ‘इशारों से बुलाते हुए’, ‘पतंग ऊपर उठ’ आदि में दृश्य बिंब तथा ‘घंटी बजाते हुए ज़ोर-ज़ोर से’ में श्रव्य बिंब, ‘मुलायम बनाते हुए में स्पर्श बिंब देखा जा सकता है।
उत्तर 10.
(क) रक्षाबंधन के दिन सुबह-सुबह जब आकाश पर काले बादल छाए होते हैं, तो एक नन्ही-सी बच्ची अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधने को तैयार होती है। वह नन्ही-सी बच्ची बड़े उत्साह में है। वह उमंग के साथ हाथ में राखी लेकर खड़ी है। राखी के लच्छे में बिजली-सी चमक है, वैसी ही चमक व चपलता बच्ची में अपने भाई को राखी बाँधने के लिए है।
(ख) ‘छोटा मेरा खेत’ कविता में कवि, कवि-कर्म और कृषि में साम्य स्थापित करते हुए कहता है कि कृषक खेत में बीज बोता है, जबकि कवि कागज के पन्ने रूपी खेत में शब्द रूपी बीज बोता है। कृषक द्वारा खेत में बीज बोने से फसल उपजती है, जबकि कागज़ रूपी खेत पर कवि द्वारा बोए गए शब्द-बीज से कविता की सृष्टि होती है।
(ग) कुंभकरण लंकापति रावण का छोटा भाई था। वह वीर, साहसी, बुद्धिमान, विवेकी, धैर्यवान, दूरदर्शी होने के साथ-साथ नारियों का भी सम्मान करता था। धर्म, नीति, राजनीति आदि क्षेत्रों पर भी उसकी अच्छी पकड़ थी। उसे अच्छे-बुरे कर्मों में विभेद करने की शक्ति थी। कुंभकरण द्वारा सीता हरण को गलत बताना और रावण को उन्हें ससम्मान राम को सौंप देने का सुझाव देना निश्चय ही उसके चरित्रवान् व समझदार होने को दर्शाता है।
उत्तर 11.
(क) लेखिका ने ‘नरो वा कुंजरो वा’ वाक्यांश भक्तिन के चरित्र की विशेषता बताने के संदर्भ में प्रस्तुत किया था। लेखिका ने भक्तिन के चरित्र के विषय में बताया है कि न तो वह राजा हरिश्चंद्र की भाँति सत्यवादी है और न ही धर्मराज युधिष्ठिर की भाँति अर्द्ध सत्य बोलने वाली।
(ख) लेखिका अपने रुपये इधर-उधर रख देती है और भक्तिन उन्हीं रुपयों को उठाकरे मटकी में सँभालकर रख देती है, भक्तिन द्वारा उन पैसों को उठाना चोरी न होकर उसका एक स्थान पर संचयन कहा जाना चाहिए।
(ग) भक्तिन के जीवन का परम कर्तव्य लेखिका को प्रसन्न रखना था। जब किसी बात से लेखिका को गुस्सा आता, तब भक्तिन उस बात को ही बदलकर इधर-उधर करके बता देती, जिससे लेखिका का क्रोध शांत हो जाए।
(घ) भक्तिन के अनुसार, इतना झूठ तो धर्मराज महाराज में भी होगा, नहीं तो वे भगवान को कैसे खुश रख सकते और संसार को कैसे चला पाते। यह सत्य है कि महाभारत के युद्ध में धर्मराज ने भी अर्द्धसत्य का सहारा लेकर युद्ध जीता था।
उत्तर 12.
(क) डॉ. आंबेडकर का आदर्श समाज स्वतंत्रता, समता और भ्रातृत्व अर्थात् भाईचारे पर आधारित है। उनके अनुसार, ऐसे समाज में सभी के लिए एक जैसा मापदंड तथा उनकी रुचि के अनुसार कार्यों की उपलब्धता होनी चाहिए। उनके आदर्श समाज में जातीय भेद-भाव का तो नामोनिशान ही नहीं है। इस आदर्श समाज में करनी पर बल दिया जाता है, कथनी पर नहीं।
(ख) लेखक यह कहना चाह रहा है कि आने वाले 50 वर्षों तक चार्ली चैप्लिन जैसा महान् हास्य कलाकार और कोई नहीं हो सकेगा। चैप्लिन द्वारा अभिनीत कुछ फ़िल्में जो प्रयोग में नहीं लाई गईं, कुछ रीलें हाल ही में मिली हैं, जिनके बारे में कोई नहीं जानता था। उन रीलों द्वारा दर्शकों का मनोरंजन हो पाएगा तथा समीक्षक समीक्षा करेंगे। चार्ली चैप्लिन का अभिनय उन्हें लंबे समय तक प्रासंगिक एवं लोकप्रिय बनाए रखेगा अर्थात् बहुत दिनों तक चार्ली चैप्लिन पर चर्चा होगी। इसी कारण लेखक ने ऐसा कहा है।
(ग) कस्टम अधिकारी का हृदय मानवीय भावनाओं से भरपूर था। जब सफ़िया अमृतसर के पुल पर चढ़ रही थी, तब वह सबसे निचली सीढ़ी पर सिर झुकाए चुपचाप खड़ा था। शायद वह सोच रहा होगा कि भारत पाकिस्तान का विभाजन लोगों के दिलों को नहीं बाँट पाया। एक भाषा, संस्कृति, विचार रहते हुए भला इस विभाजन की आवश्यकता ही क्या थी? विभाजन ने सीमा के दोनों तरफ़ के विस्थापितों को राजनीतिक बाधा के कारण अलग तो कर दिया, किंतु उनके दिल आज भी जुदा नहीं हो पाए हैं।
(घ) लुट्टन सिंह बचपन से अनाथ की तरह पला था। जिस माँ समान सास के यहाँ उसने अपना सारा बचपन बिताया था, उसको गाँववासी किसी-न-किसी बात पर परेशान किया करते थे। उन सभी को उसने कसरत के द्वारा कसे हुए शरीर से भयभीत कर दिया था। इसके अलावा वह एक दृढ़ निश्चयी व्यक्तित्व वाला व्यक्ति था। उसी जवानी व निश्चयी व्यक्तित्व की हिम्मत और ढोलक की ललकारती हुई थाप ने उसकी सोचने की शक्ति को बिजली की शक्ति में परिवर्तित कर दिया था। अतः उसने चाँद सिंह को कुश्ती में चुनौती दे दी।
(ग) इंदर सेना सबसे गंगा मैया की जय बोलती है, इसके दो कारण हैं।
- गंगा नदी को हमारे भारतीय जन-जीवन में विशेष आदर-सम्मान प्राप्त है। प्रत्येक शुभ कार्य करने से पहले सब गंगा मैया का स्मरण करते हैं।
- गंगा पवित्र जल का भंडार है। इंद्र से भी यह कहकर जल बरसाने की प्रार्थना की जा रही है-”काले मेघा पानी दे।” इस प्रकार दोनों का संबंध जल से है।
भारतीय सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन में नदियों को पूज्य माना जाता है, उन्हें माँ का स्थान दिया गया है। प्रमुख औद्योगिक बस्तियाँ, धार्मिक नगर आदि इन नदियों के तट पर ही बसे हुए होते हैं। नदियों को हमारे यहाँ मोक्षदायिनी भी माना गया है। नदियों में गंगा का स्थान सर्वोपरि है।
उत्तर 13.
प्रस्तुत कहानी में बताया गया है कि जब तक लेखक के जीवन में कविता के प्रति लगाव उत्पन्न नहीं हुआ था, तब तक उसे अकेलापन सताता था। उसे अपने जीवन से विशेष मोह नहीं रह गया था। जब उसे कविता लिखने और पढ़ने में रुचि आने लगी, तभी से उसके जीवन में रंग भर गए। अब उसे अकेलापन अच्छा लगने लगा, क्योंकि उसी समय वह कविताएँ लिखने या गाने लगता। अब वह चाहता था कि कविता लिखने में उसे कोई रोके-टोके नहीं। कविता के प्रति उसका लगाव बढ़ने का ही परिणाम था कि वह अधिक समय तक अकेला रहने की सोचता, ताकि कविता रचे सके, कविताओं पर मनन कर सके। उसे सृजन के लिए अकेलापन भाने लगा था।
उत्तर 14.
(क) ऐन फ्रैंक अपनी डायरी में अज्ञातवास में रहते हुए कष्टदायी परिस्थितियों के साथ-साथ सेंधमारों से भी संघर्ष करने के बारे में बताती है। सेंधमारों ने जब परेशान करना शुरू किया, तब ऐन के पिता, मिस्टर वानदान और पीटर जल्दी से नीचे गए। ऐन, मार्गोट, उनकी माँ और मिसेज वानदान ऊपर सहमे हुए इंतजार कर रहे थे। एक तेज़ धमाके से इन लोगों के होश उड़ गए। नीचे सन्नाटा था और पुरुष लोग वहीं सेंधमारों के साथ जूझ रहे थे। डर से काँपने के बाद भी सभी लोग शांति से बैठे रहे। लगभग 15 मिनट के बाद ऐन के पिता ने ऊपर आकर कहा कि तुम सब यहाँ की बत्तियाँ बंद करके छत पर चले जाओ। सीढ़ियों के बीच वाले दरवाजे पर ताला लगा दिया गया। पीटर अभी सीढियों पर ही था कि दूसरे धमाके की आवाज सुनाई दी। उसने नीचे जाकर देखा, तो गोदाम की तरफ़ का आधा भाग नहीं था। वह जल्दी से होमगार्ड को सचेत करने के लिए भागा। मिस्टर वान ने जल्दी से ‘पुलिस! पुलिस!’ शोर मचाया तो सेंधमार डर के भाग गए और गोदाम के फट्टे फिर से लगा दिए गए, परंतु कुछ ही देर बाद वे फिर से वापस आकर तोड़-फोड़ करने लगे। उस भयानक रात में परिवार के पुरुषों ने संघर्ष करके बड़ी मुश्किल से जान बचाई।
(ख) पर्यटक मुअनजोदड़ो में निम्न चीजें देख सकते हैं।
(i) बौद्ध स्तूप यह सबसे ऊँचे चबूतरे पर निर्मित बड़ा बौद्ध स्तूप है। वर्ष 1922 में राखालदास बनर्जी ने इसी बौद्ध स्तूप की खुदाई करते हुए सिंधु सभ्यता के बारे में पहली बार जाना था। स्तूप वाले चबूतरे को विद्वान् ‘गढ़’ कहते हैं। लेखक वहाँ की धूप की विशेषता भी बतलाता है।
(ii) विशाल स्नानागार और कुंड यहाँ सामूहिक स्नानागार का स्थान महाकुंड नाम से जाना जाता है। एक पंक्ति में आठ स्नानघर हैं, जिनमें किसी के द्वार एक-दूसरे के सामने नहीं खुलते। कुंड के तल में और दीवारों पर ईंटों के बीच चूने और चिराड़ी के गारे का प्रयोग हुआ है, जिससे कुंड का पानी रिस न सके और बाहर का अशुद्ध पानी कुंड में न आ पाए।
(iii) अजायबघर अजायबघर में काला पड़ गया गेहूँ, बर्तन, मुहरे, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, ताँबे का आईना आदि दिखाई देते हैं। अजायबघर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वहाँ औज़ार तो हैं, पर हथियार नहीं हैं।
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