CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 4 are part of CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 4.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 4
Board | CBSE |
Class | XII |
Subject | Hindi |
Sample Paper Set | Paper 4 |
Category | CBSE Sample Papers |
Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 4 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.
समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100
सामान्य निर्देश
- इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं-क, ख और ग।
- तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
- यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (15)
कवियों, शायरों तथा आम आदमी को सम्मोहित करने वाला ‘पलाश’ आज संकट में है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर इसी तरह पलाश का विनाश जारी रहा, तो यह ‘ढाक के तीन पात’ वाली कहावतु में ही बचेगा। अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में जब पलाश वृक्ष चैत (वसंत) में फूलता था, तो लगता था कि वन में आग लग गई हो अथवा अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों। पलाश पर एक-दो दिन में ही संकट नहीं आ गया है। पिछले तीस-चालीस वर्षों में दोना-पत्तुल बनाने वालों, कारखाने बुढ़ने, गाँव-गाँव में चकबंदी होने तथा वन माफियाओं द्वारा अंधाधुंध कटान कराने के कारण उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र आदि प्रांतों में पलाश के वन घुटकर 10% से भी कम रह गए हैं। वैज्ञानिकों ने पुलाशु वनों को बचाने के लिए ऊतुक संवर्द्धन (टिशू कल्चर) द्वारा परखनली में पलाश के पौधों को विकसित कर एक अभियान चलाकर पलाश वन रोपने की योजना प्रस्तुत की है। हरियाणा तथा पुणे में ऐसी दो प्रयोगशालाएँ भी खोली गई हैं। एक समय था, जब बंगाल का पलाशी का मैदान, अरावली की पूर्वत-मालाएँ टेसू के फूलों के लिए दुनियाभर में मशहूर थीं। विदेशों से लोग पलाश के रक्तिम वर्ण के फूल देखने आते थे।
महाकवि पद्माकर ने छंद-“कहैं पद्माकर परागन में, पौन हूँ में, पानन में, पिक में, पलासन पुगंत है।” लिखकर पुलाश की महिमा बुखान की थी। ब्रज, अवधी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी लोक गीतों में पलाश के गुण गाए गए हैं। कबीर ने तो ‘खांखर भुया पलाश’ कहकर पलाश की तुलना एक ऐसे सुंदर-सजीले नवयुवक से की है, जो अपनी जवानी में । सबको आकर्षित कर लेता है, किंतु बुढ़ापे में अकेला रह जाता है। वसंत व ग्रीष्म ऋतु में जब तक टेसू में फूल व हरे-भरे पत्ते रहते हैं, उसे सभी निहारते हैं, किंतु शेष आठ महीने वह पतझड़ का शिकार होकर झाड़-झंखाड़ की तरह रह जाता है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक-पॉलीथीन पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई। जिसके पत्ते दोने, थैले, पत्तल, थाली, गिलास सहित न जाने कितने उपयोग में आ सकते हैं। पिछले तीस-चालीस वर्ष में 90% वन नष्ट कर डाले गए। बिना पानी के बंजर, ऊसर तक में उग आने वाले इस पेड़ की नई पीढ़ी तैयार नहीं हुई। यदि यही स्थिति रही और समाज जागरूक न हुआ, तो पलाश विलुप्त वृक्ष हो जाएगा।
(क) प्रस्तुत गद्यांश का उचित शीर्षक बताइए। (1)
(ख) अरावली और सतपुड़ा में पलाश के वृक्ष कैसे लगते थे? (2)
(ग) प्रस्तुत गद्यांश के अनुसार, पलाश के वन घटकर कितने रह गए हैं? पलाश के वृक्ष कम क्यों हो गए हैं? (2)
(घ) पलाश के वृक्षों को बचाने के लिए क्या किया जा रहा है? (2)
(ङ) लेखक ने पलाश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संबंध में क्या बताया है? (2)
(च) कबीर ने पलाश की तुलना किससे की है? (2)
(छ) पलाश की उपयोगिता कब महसूस की गई? कवियों, शायरों और आम आदमी को सम्मोहित करने वाला पलाश आज किस स्थिति में है? (2)
(ज) गद्यांश का केंद्रीय भाव लगभग 20 शब्दों में लिखिए। (2)
प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (1 × 5= 5)
पृथु बंद है पीछे अचूल है पीठ पर धक्का प्रबलु।
मृत सोच बढ़ चुल तू अभय, ले बाहु में उत्साह-बल।
जीवन-समर के सैनिकों संभव असंभव को करो
पृथ-पथ निमंत्रण दे रहा, आगे कदम,
ओ बैठने वाले तुझे देगा न कोई बैठने।
पल-पल सुमर, नूतन सुमन-शय्या न देगा लेटने।
आराम संभव है नहीं जीवन सतत संग्राम है।
बढ़ चुल मुसाफ़िर धर कदम, आगे कदम, आगे कदम्
ऊँचे हिमानी शृंग पर, अंगार के भु-भंग पर आगे कदम्।
तीखे करारे खंग पर आरंभ कर अद्भुत सफ़र
ओ नौजवाँ, निर्माण के पृथु मोड़ दे, पृथ खोल दे
जय-हार में बढ़ता रहे आगे कदम, आगे कदम्।
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि किसे संबोधित कर रहा है?
(ख) “आराम संभव है नहीं, जीवन सतत संग्राम है”-काव्य पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि ने सफ़र को अदभुत क्यों कहा है?
(घ) कौन-सा पथ बंद पड़ा है और उसे कौन खोलेगा?
(ङ) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अनुच्छेद लिखिए
(क) आज की बचत, कल का सुख
(ख) मिसाइल मैनः डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
(ग) भारत से प्रतिभा पलायन
(घ) विपत्ति कसौटी जे कसे, ते ही साँचे मीत
प्रश्न 4.
जल वितरण की अनियमितता और अपर्याप्तता की शिकायत करते हुए अपने क्षेत्र के जल बोर्ड के मुख्य अभियंता को पत्र लिखिए।
अथवा
किसी महत्त्वपूर्ण पत्र के प्राप्त न होने की शिकायत करते हुए अपने क्षेत्र के पोस्ट मास्टर को पत्र लिखिए। (5)
प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए (1 × 5 = 5)
(क) आधुनिक जनसंचार के माध्यम कौन-कौन से हैं?
(ख) भारत में टेलीविज़न प्रसारण कब प्रारंभ हुआ?
(ग) पत्रकारिता की भाषा में छः ‘ककार’ कौन-से हैं?
(घ) आमुख या इंट्रो की शब्द-सीमा कितनी होनी चाहिए?
(ङ) रेडियो समाचार की भाषा कैसी होनी चाहिए?
प्रश्न 6.
‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर आलेख लिखिए।
अथवा
हाल ही में पढ़ी गई किसी पुस्तक की समीक्षा लिखिए।
प्रश्न 7.
‘सोशल मीडिया का दुरुपयोग’ अथवा ‘गोदामों में सड़ता अनाज और भूख से तड़पते लोग’ में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन तैयार कीजिए। (5)
प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)
जो मुझको बदनाम कुरे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं।
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का ख़्याल भी है।
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।
(क) प्रस्तुत काव्यांश के अनुसार, बदनाम करने वाले क्या नहीं सोचते?
(ख) कवि किसकी कीमत अदा करता है और किस प्रकार?
(ग) काव्यांश का केंद्रीय भाव समझाइए।
(घ) “तेरे गम का पासे-अदब है”-पंक्ति से कवि का क्या आशय है?
अथवा
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज़ का एक पन्ना,
कोई अंधड़ कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अपने रचना कर्म की तुलना किससे की है?
(ख) काव्यांश के आधार पर बताइए कि कवि अपने छोटे चौकोने खेत में क्या बोता है?
(ग) “एक अंधड़ कहीं से आया”- काव्य पंक्ति से कवि का क्या आशय है?
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने खेती के रूपकों के माध्यम से क्या बताने का प्रयास किया है?
प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3 = 6)
तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंतु।
अस कहि आयसु पाई पद बंदि चलेउ हनुमंत्।
भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।
(क) काव्यांश के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ग) काव्यांश में किस छंद का प्रयोग मिलता है?
अथवा
सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूं मैं भूलूं मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधुकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतुर में पा हूँ मैं
झेलू मैं, उसी में नहा हूँ मैं।
(क) प्रस्तुत काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) अमावस्या के लिए प्रयुक्त विशेषणों से काव्यांश के अर्थ में क्या विशेषता आई है?
(ग) प्रस्तुत काव्यांश में रूपक अलंकार को दर्शाती काव्य पंक्ति को लिखिए।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 2 = 6)
(क) आसमान में रंग-बिरंगी पतंगों को देखकर आपके मन में कैस ख्याल आते हैं? लिखिए।
(ख) “दिन जल्दी-जल्दी ढलता है” कविता के आधार पर उन स्थितियों को स्पष्ट कीजिए जिनके कारण पथिक जल्दी चलता
(ग) ‘बात सीधी थी पर कविता के अंत में कवि ने बच्चे का ज़िक्र क्यों किया है? स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)
रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकार कर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख़्याल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्द्धमृत, औषधि-उपचार पथ्य-विहीन प्राणियों में यह संजीवनी शक्ति ही भुरती थी। बूढ़े-बच्चे, जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य, स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। अवश्य ही ढोलक की आवाज़ में न तो बुखार हटाने का कोई गुण था और न महामारी की सर्वनाशी शक्ति को रोकने की शक्ति थी, पर इसमें संदेह नहीं कि मरते हुए प्राणियों को आँख मूंदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी, मृत्यु से वे डरते नहीं थे।
(क) गाँव में रात्रि की विभीषिका को चुनौती कौन देता था?
(ख) गाँववासियों की विद्यमान परिस्थिति को स्पष्ट कीजिए।
(ग) गाँव वालों पर ढोलक का क्या प्रभाव पड़ता था?
(घ) पहलवान की ढोलक क्या करने में समर्थ नहीं थी?
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 4 = 12)
(क) “हाय, वह अवधूत आज कहाँ है?” ऐसा कहकर ‘शिरीष के फूल’ पाठ के माध्यम से लेखक ने आत्मबल पर देह-बल के वर्चस्व की वर्तमान सभ्यता के संकट की ओर संकेत किया है। कैसे?
(ख) डॉ. आंबेडकर के जीवन का क्या उद्देश्य था?
(ग) भक्तिन के पास लगान देने के लिए भी धन न होने का क्या कारण था?
(घ) पर्चेजिंग पावर से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
(ङ) “चार्ली चैप्लिन की फ़िल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्धि पर नहीं।” इस कथन को उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 13.
“मुअनजोदड़ो की नगर योजना आज के सेक्टर-मार्का कॉलोनियों के नीरस नियोजन की अपेक्षा अधिक रचनात्मक है”-टिप्पणी कीजिए। (5)
प्रश्न 14.
(क) “सिल्वर वैडिंग आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थ चित्रण है”-इस कथन की विवेचना कीजिए।
(ख) स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास ‘जूझ’ कहानी के लेखक के मन में कैसे पैदा हुआ?
उत्तर
उत्तर 1.
(क) प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक ‘पलाश पर संकट’ हो सकता है।
(ख) अरावली और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं में फूले हुए पलाश के वृक्ष ऐसे लगते थे, जैसे समूचे जंगल में आग लग गई हो या अग्नि देव फूलों के रूप में खिल उठे हों।
(ग) पलाश के वन घटकर 10% से भी कम रह गए हैं। पलाश के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, गाँवों में चकबंदी, औद्योगीकरण आदि के कारण इनकी संख्या बहुत कम रह गई है।
(घ) पलाश के वृक्षों को बचाने के लिए ऊतक संवर्द्धन (टीशू कल्चर) द्वारा परखनली में इन्हें विकसित करने का अभियान चलाया गया है। इस काम के लिए हरियाणा तथा पुणे में दो प्रयोगशालाएँ भी आरंभ की गई हैं।
(ङ) पलाश की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के संबंध में लेखक बताता है कि एक समय था जब बंगाल के पलाशी मैदान और अरावली की पर्वत श्रृंखला पलाश के फूलों से लदी रहती थी और जिन्हें देखने विदेशों से लोग आया करते थे। इसके अतिरिक्त विभिन्न कवियों की रचनाओं और लोक गीतों में भी पलाश के फूलों को स्थान मिला है।
(च) कबीर ने ‘खांखर भया पलाश’ कहकर सुंदर-सजीले नवयुवक से पलाश की तुलना की है, जो युवावस्था में अपने रूप-सौंदर्य से सभी को आकर्षित करता है, लेकिन वृद्धावस्था में अकेला रह जाता है।
(छ) पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से प्लास्टिक-पॉलीथीन की थैलियों पर रोक लगने के बाद पलाश की उपयोगिता महसूस की गई है। कवियों, शायरों और आम आदमी को सम्मोहित करने वाला पलाश आज विलुप्त होने के संकट से गुजर रहा है।
(ज) गद्यांश को केंद्रीय भाव पलाश के वृक्षों के घटते हुए स्तर पर चिंता व्यक्त करना है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि यदि पलाश के वृक्षों की अंधाधुंध कटाई का विनाश इसी तरह जारी रहा और समाज इसके प्रति जागरूक न हुआ, तो यह हमेशा के लिए विलुप्त हो सकता है।
उत्तर 2.
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि जीवन-समर के सैनिकों अर्थात् जीवन जीने वाले उत्साही युवाओं को संबोधित कर रहा है, जो अपने जीवन में कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य करने, कुछ हासिल करने की आकांक्षा रखते हैं।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश की काव्य पंक्ति-“आराम संभव है नहीं, जीवन सतत संग्राम है”-पंक्ति का आशय यह है कि यह जीवन एक संघर्ष है, जहाँ प्रत्येक दिन आने वाली अनेक समस्याओं से जूझना पड़ता है। अतः यहाँ जीवन जीते हुए आराम करना संभव नहीं है, जीवन में हमेशा संघर्षरत रहना पड़ता है।
(ग) कवि जीवनरूपी सफ़र को अद्भुत मानता है, क्योंकि इस पर चलने वालों को ऊँची बर्फीली चोटियों, दहकते अंगारों एवं तेज़ धार वाली तलवारों से होकर गुज़रना पड़ता है अर्थात् विविध प्रकार की समस्याओं से जूझते हुए आगे बढ़ना पड़ता है।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश के अनुसार, निर्माण का पथ बंद पड़ा है जिसे खोलने के लिए नौजवान वर्ग को आगे बढ़ना होगा। युवा वर्ग अपने संघर्ष से ही इस कर्म क्षेत्र में आगे बढ़ेंगे।
(ङ) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि जीवन एक समर है, एक सतत संग्राम है, जिस पर प्रत्येक व्यक्ति को हमेशा अपना कदम आगे बढ़ाते रहना चाहिए। चाहे जय मिले यो पराजय, मनुष्य को कभी थककर विश्राम नहीं करना चाहिए।
उत्तर 3.
(क) आज की बचत कृल का मुख
वर्तमान आय का वह हिस्सा, जो तत्काल व्यय (खर्च) नहीं किया गया और भविष्य के लिए सुरक्षित कर लिया गया ‘बचत’ कहलाता है। पैसा सब कुछ नहीं रहा, परंतु इसकी जरूरत हमेशा सबको रहती है। आज हर तरफ़ पैसों का बोलबाला है, क्योंकि पैसों के बिना कुछ भी नहीं। आज जिंदगी और परिवार चलाने के लिए पैसे की ही अहम भूमिका होती है। आज के समय में पैसा कमाना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक कठिन है पैसे को अपने भविष्य के लिए सुरक्षित बचाकर रखना, क्योंकि अनाप-शनाप खर्च और बढ़ती महँगाई के अनुपात में कमाई के स्रोतों में कमी होती जा रही है, इसलिए हमारी आज की बचत ही कल हमारे भविष्य को सुखी और समृद्ध बना सकने में अहम भूमिका निभाएगी।
जीवन में अनेक बार ऐसे अवसर आ जाते हैं, जैसे आकस्मिक दुर्घटनाएँ हो जाती हैं, रोग या अन्य शारीरिक पीड़ाएँ घेर लेती हैं, तब हमें पैसों की बहुत आवश्यकता होती है। यदि पहले से बचत न की गई, तो विपत्ति के समय हमें दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ सकते हैं। हमारी आज की छोटी-छोटी बचत या धन निवेश ही हमें भविष्य में आने वाले तमाम खर्चे का मुफ्त समाधान कर देती हैं। आज की थोड़ी-सी समझदारी आने वाले भविष्य को सुखद बना सकती है। बेचत करना एक अच्छी आदत है, जो हमारे वर्तमान के साथ-साथ भविष्य के लिए भी लाभदायक सिद्ध होती है। किसी जरूरत या आकस्मिक समस्या के आ जाने पर बचाया गया पैसा ही हमारे काम आता है। संक्षेप में कह सकते हैं कि बचत करके हम अपने भविष्य को सँवार सकते हैं।
(ख) मिसाइल मैन: डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
डॉ. कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु राज्य के रामेश्वरम् स्थित धनुषकोड़ी गाँव में मध्यमवर्ग के संयुक्त मुस्लिम परिवार में हुआ। संयुक्त परिवार में उन्हें धैर्य, अनुशासन, सामंजस्य, प्यार सभी कुछ प्राप्त हुआ। स्नातक की पढ़ाई पूरी कर लेने के पश्चात् डॉ. कलाम ने भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थान में प्रवेश लिया। परियोजना निदेशक के रूप में मिसाइलमैन डॉ. कलाम ने त्रिशूल, अग्नि, पृथ्वी, आकाश, नाग आदि अनेक मिसाइलों का विकास किया। डॉ. कलाम भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में विश्व का सिरमौर राष्ट्र बनते देखना चाहते थे और इसके लिए उनके पास कार्य-योजना भी थी।
इस दृष्टिकोण को उन्होंने अपनी पुस्तक ‘इंडिया 2020 में भी स्पष्ट किया है। ‘विजन 2020’ को प्रारंभ करने का श्रेय डॉ. कलाम को ही जाता है। शिक्षकों के प्रति डॉ. कलाम के हृदय में बहुत सम्मान था। डॉ. कलाम हम सभी के लिए प्रेरक रहे हैं। उन्हें कई पुरस्कार, सम्मान एवं मानद उपाधियाँ प्राप्त हुईं। वर्ष 1981 में ‘पद्मभूषण’, वर्ष 1990 में ‘पद्म विभूषण’ तथा वर्ष 1997 में कलाम को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया। डॉ. कलाम ने स्वदेशी लक्ष्यभेदी गाइडेड मिसाइल्स को डिजाइन किया एवं उन्होंने अग्नि, पृथ्वी मिसाइल्स को स्वदेशी तकनीक से बनाया। वर्ष 1998 का पोखरण परीक्षण भारत की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि रही, जिसमें डॉ. कलाम का विशिष्ट योगदान रहा। वर्ष 2014 में उन्हें एडिनबर्ग विश्वविद्यालय, यूनाइटेड द्वारा ‘डॉक्टर ऑफ साइंस’ की मानद उपाधि प्रदान की गई।
डॉ. कलाम भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति निर्वाचित हुए थे। 90% बहुमत से विजयी डॉ. कलाम को 25 जुलाई, 2002 को शपथ दिलवाई गई। उन्होंने राष्ट्रपति पद की ज़िम्मेदारी निष्ठा से निभाई। राष्ट्रपति के पद से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् देशभर में अनेक शिक्षण संस्थानों में ज्ञान बाँटते रहे, यहाँ तक कि 27 जुलाई, 2015 की शाम को भी उन्होंने अपनी अंतिम साँस शिलांग में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के विद्यार्थियों से बात करते ली अर्थात् अंतिम साँस में भी वह शिक्षक के रूप में ही रहे। 30 जुलाई, 2015 को उन्हें पूरे सम्मान के साथ रामेश्वरम् के पी. करुम्बु ग्राउंड में दफना दिया गया। डॉ. कलाम के विचार एवं कार्य सभी के लिए प्रेरणास्पद हैं।
(ग) भारत में प्रतिभा पलायन
प्रतिभा पलायन का अर्थ है-एक देश की प्रतिभाओं; जैसे-डॉक्टरों, इंजीनियरों, वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, खिलाड़ियों अथवा अन्य प्रतिभा संपन्न लोगों का रोज़गार एवं शिक्षा के बेहतर अवसरों तथा अन्य सुविधाओं के कारण विश्व के दूसरे देशों में चले जाना। बड़ी संख्या में हमारे इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक, व्यवसाय प्रबंधक, कलाकार इत्यादि आकर्षक नौकरियाँ पाने के लिए या बेहतर जीवन-शैली के लोभ में या अन्य कारणों से विदेश चले गए। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य से विकसित देशों में गए लोगों को भी शिक्षा समाप्ति के बाद वहीं बस जाते हुए देखना आज एक आम बात हो गई है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान एवं भारतीय प्रबंधन संस्थान विश्वस्तरीय शिक्षा के माध्यम से अपने विद्यार्थियों को श्रेष्ठ तकनीशियन एवं उद्यमी के रूप में विकसित करते हैं। इन्हें बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ भारतीय कंपनियों एवं भारत सरकार की तुलना में बहुत अधिक वेतनमान पर रखने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं।
प्रतिभा पलायन का एक और कारण यह है कि भारत में पिछले कुछ दशकों में बड़ी संख्या में इंजीनियर, डॉक्टर, कंप्यूटर विशेषज्ञ एवं अन्य क्षेत्रों के विशेषज्ञ बनें। औद्योगीकरण की मंद प्रक्रिया के कारण इन सभी लोगों को रोज़गार प्रदान करना संभव न हो सका, जिसके कारण इनमें से अधिकतर लोगों ने अंततः विदेश का रुख किया। शोध करने के इच्छुक अधिकतर लोगों को भी विकसित देशों का रुख करना पड़ता है। प्रतिभा पलायन से हमेशा देश को हानि ही नहीं होती, बल्कि पिछले कुछ वर्षों के शोधों से पता चला है कि इससे देश को कई प्रकार के लाभ भी मिलते हैं। विदेश में नौकरी कर रहे लोग अपनी आमदनी का कुछ हिस्सा अपने देश के विकास में भी खर्च करते हैं तथा विदेशों में प्राप्त अनुभव एवं शिक्षा को वह अपने वतन के लोगों से साझा करते हैं, जिससे देश के आर्थिक एवं शैक्षिक विकास में मदद मिलती है।
प्रतिभा पलायन को तब ही रोका जा सकता है, जब यहाँ उच्च शिक्षित लोगों के लिए शिक्षा, रोज़गार एवं शोध के बेहतर अवसर उपलब्ध कराए जाएँ। यदि प्रतिभा पलायन पर शीघ्र नियंत्रण नहीं रखा गया, तो देश में अच्छे तकनीशियनों, डॉक्टरों एवं उद्यमियों के अभाव के कारण हमारी प्रगति निश्चित रूप से बाधित हो जाएगी।
(घ) विपत्ति कसौटी जे से, ते ही आँचे मीत
सच्ची मित्रता किसी भी तरह की औपचारिकता, किसी भी तरह का संकोच एवं किसी भी तरह का कपट नहीं जानती। माँ के आँचल के बाद सच्चे मित्र का सान्निध्य ही होता है, जहाँ व्यक्ति स्वयं को विश्रांति, सच्चा आश्वासन एवं आत्मीयता के निकट महसूस करता है। सच्चा मित्र निःस्वार्थी होता है, जो अपने मित्र के कष्टों को देखकर अत्यधिक व्यग्र हो उठता है। वह दूध में मिले उस पानी की तरह होता है, जो दूध जलने से पहले स्वयं ही जलने लगता है। मित्रता जितनी बहुमूल्य है, उसे बनाए रखना उतना ही कठिन है।
मित्रता को स्थिर एवं दृढ़ बनाए रखने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है-सहिष्णुता और उदारता की। पूर्ण रूप से निर्दोष एवं सर्वगुण संपन्न व्यक्ति कोई भी नहीं होता, प्रत्येक व्यक्ति में कुछ-न-कुछ कमी रहती ही है। इसलिए सोच-समझकर, जाँच-परखकर एक बार सच्चे मित्र को सुनिश्चित कर लेने के बाद व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने मित्र को गलत मार्ग पर जाने से रोके।
सच्चे मित्र आलोचक की तरह होते हैं। सच्चे मित्र हमेशा सही मार्ग पर चलने की ही सलाह देते हैं, चाहे वह कितना ही कष्टपूर्ण क्यों न हो, जो मनुष्य अपनी त्रुटियों से परिचित नहीं रहता, अपनी दुर्बलताओं का साक्षात्कार नहीं करता, जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। दुर्बलताओं को साक्षात्कार एवं त्रुटियों से परिचित कराने का गंभीर कार्य सिर्फ सच्चा मित्र ही कर सकता है। भारतीय इतिहास आदर्श मित्रों के उदाहरणों से भरा पड़ा है; जैसे-कृष्ण-सुदामा, कृष्ण-अर्जुन, कर्ण-दुर्योधन, राम्-सुग्रीव, राम-विभीषण आदि की मित्रता इतिहास प्रसिद्ध है, लेकिन आज के भौतिकतावादी युग में सच्चे मित्र का मिलना दुर्लभ है। अधिकतर मित्र अपना उल्लू सीधा करने के लिए मित्रता का स्वांग रचते हैं और अपने स्वार्थ की पूर्ति होते ही अँगूठा दिखा देते हैं। जब कोई व्यक्ति विपत्ति में पड़ता है, तब उसके सच्चे मित्र की पहचान होती है। इस भौतिकवादी दुनिया में सच्चा मित्र प्राप्त करना एक महान् ईश्वरीय वरदान के समान है। ऐसे व्यक्ति को अपने भाग्य पर गर्व करना चाहिए।
उत्तर 4.
परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 24 सितंबर, 20××
सेवा में,
मुख्य अभियंता,
“दिल्ली जल बोर्ड,
नई दिल्ली।
विषय जल वितरण की अनियमितता एवं अपर्याप्तता संबंधी।
महोदय,
मैं आपका ध्यान पालम गाँव क्षेत्र में जल वितरण की समस्या की ओर आकर्षित कराना चाहता हूँ। इस क्षेत्र में केवल 15-20 मिनट ही नलों में पानी आता है। उसके आने का भी कोई समय निश्चित नहीं है। पानी की यह आपूर्ति अपर्याप्त रहती है। इसी कारण यहाँ के निवासी पेयजल के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं। पानी के टैंकरों पर माफ़ियाओं का कब्ज़ा रहता है। जैसे ही कोई पानी का टैंकर आता है, लोगों की इतनी अधिक भीड़ जमा हो जाती है कि कई बार तो मार-पीट तक की नौबत आ जाती है। यह सारी समस्या जल की अपर्याप्त और अनियमित आपूर्ति के कारण उत्पन्न हो रही है।
अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि इस क्षेत्र में जल वितरण को नियमित किया जाए तथा पर्याप्त जल आपूर्ति की व्यवस्था की जाए।
सधन्यवाद!
भवदीय
क.ख.ग.
अथवा
परीक्षा भवन, दिल्ली।
दिनांक 17 अप्रैल, 20××
सेवा में,
डाकपाल महोदय,
केंद्रीय डाकघर, गोल मार्केट,
नई दिल्ली
विषय डाक की अनुचित एवं अनियमित व्यवस्था के संदर्भ में।
महोदय,
इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ कि हमारे क्षेत्र ‘गोल मार्केट’ के निवासियों को पिछले कुछ दिनों से डाक नियमित रूप से नहीं मिल रही है। डाकिया या तो डाक देता ही नहीं या फिर वह कहीं भी फेंककर चला जाता है। जहाँ-तहाँ डाक फेंक देने से कोई भी बच्चा या व्यक्ति उसका दुरुपयोग करता है या फाड़कर फेंक देता है, जिससे डाक प्राप्त करने वाले व्यक्ति को भारी नुकसान होता है।
डाकिए के आने का कोई निश्चित समय भी नहीं है और वह ठीक से बात भी नहीं करता। उसकी लापरवाही के कारण क्षेत्र के लोगों को अत्यधिक नुकसान हो रहा है, जिसकी क्षतिपूर्ति होनी असंभव है। अतः आपसे निवेदन है कि इस क्षेत्र के डाकिए को आप उचित निर्देश दें, ताकि वह नियमित एवं व्यवस्थित तरीके से डाक का वितरण करे।
धन्यवाद!
भवदीय
क. ख. ग.
उत्तर 5.
(क) आधुनिक जनसंचार माध्यम हैं-डाक-तार प्रणाली, प्रिंट या मुद्रण माध्यम (अख़बार, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि) तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (रेडियो, टेलीविज़न, फिल्म एवं इंटरनेट)।
(ख) भारत में टेलीविजन प्रसारण 15 सितंबर, 1959 को प्रारंभ हुआ।
(ग) समाचार के छह ‘ककार’ निम्नलिखित हैं।
‘क्या-क्या घटित हुआ?
“कहाँ-कहाँ घटित हुआ?
‘क्यों’–क्यों घटित हुआ?
‘कब-कब घटित हुआ?
‘कौन-कौन संबंधित था?
‘कैसे’–घटना कैसे हुई?
(घ) आमुख या इंट्रो की शब्द-सीमा 30-35 शब्दों की होनी चाहिए।
(ङ) रेडियो समाचार की भाषा व्याकरण शुद्धि की अपेक्षा उच्चारण और श्रवण की शुद्धि से युक्त तथा समाचार के क्रम पर अधिक केंद्रित होनी चाहिए।
उत्तर 6.
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस
योग मानव की शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को पुनर्जागृत करने वाली एक प्राचीन भारतीय विद्या है। हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में भाषण देने के क्रम में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित करने की माँग की थी और उनकी इसी माँग के पश्चात् 11 दिसंबर, 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित कर दिया गया। इस प्रस्ताव के समर्थन में 46 मुस्लिम देशों सहित कुल 175 देश थे।
खगोलशास्त्र की दृष्टि से 21 जून वर्ष का सबसे बड़ा दिन होता है। भारतीय परंपरा में इसी दिन ग्रीष्म संक्रांति मनाए जाने से इस तिथि का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। पूर्व वैदिककाल से चली आ रही योग विद्या एवं इसके अभ्यास को सर्वप्रथम महर्षि पतंजलि ने ‘पतंजलि योगसूत्र’ के माध्यम से व्यवस्थित किया था। तत्पश्चात् अन्य ऋषियों ने इसे पूरे जगत में जन-जन तक पहुँचाया। योग को व्यापक स्तर पर सिंधु घाटी सभ्यता के सांस्कृतिक प्रतिफल के रूप में देखा जाता है। पूरे विश्व द्वारा 21 जून, 2015 को एक साथ योगासन करके इसे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाना भारतीय संस्कृति को विश्व पटल पर मिली पहचान के रूप में देखा जा सकता है। निश्चय ही यह भारत की जीत है।
अथवा
प्रसिद्ध साहित्यकार अज्ञेय द्धारा लिखित
उपन्यास ‘शखर: एक जीवनी’ की समीक्षा
नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर तथा प्रेमचंदोत्तर उपन्यासकार सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ द्वारा रचित तथा राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास ‘शेखर : एक जीवनी’ (वर्ष 1941) ने हिंदी उपन्यास की दिशा को एक नया मोड़ दिया। सच्चे अर्थों में आधुनिकता का सर्वप्रथम समावेश इसी उपन्यास में दिखाई देता है। इसका मूल मंतव्य है स्वतंत्रता की खोज। इसी की खोज में कथा नायक शेखर अनेक प्रकार के आंतरिक संघर्षों से जूझता और भीतरी तनाव से गुज़रता है, किंतु अपने कल्पित विद्रोह को लेकर वह बहिर्मुखी नहीं हो पाता। शेखर के विद्रोह के पीछे आज की पीढ़ी का विद्रोही स्वर है। दो खंडों में लिखे गए इस उपन्यास का दूसरा खंड अधिक व्यवस्थित है। शशि के साथ शेखर का संबंध उसकी विद्रोही भावना की तीव्र अभिव्यक्ति है। शेखर अपनी अनुभूतियों को निश्छल अभिव्यक्ति देता है। इसकी कथावस्तु भारतीय समाज एवं संस्कृति के लिहाज से न केवल प्रयोगधर्मी है, बल्कि पारंपरिक नैतिकता संबंधी प्रतिमानों को भी तोड़ती है। शशि-शेखर संबंध हिंदी उपन्यास का एक नया एवं आधुनिक फलक है, जिसे परंपरावादी व्यक्तियों द्वारा सहानुभूति प्राप्त नहीं होती।
यह उपन्यास कला की दृष्टि से भी प्रयोगधर्मी है। इसमें एक रात में देखे गए विजन को शब्दबद्ध करने का प्रयास किया गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि चेतना-प्रवाह, प्रतीकात्मकता और भाषा की आंतरिकता के कारण यह उपन्यास अपने में अप्रतिम है। हिंदी के पाठकों को व्यापक संवेदनशील फलक में लिखे गए इस उपन्यास को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह उपन्यास बने-बनाए ढर्रे को तोड़ता है, क्योंकि अज्ञेय जी का मानना था-”जब ध्वंस होगा, तभी तो सृजन होगा और यह उपन्यास एक नए एवं आधुनिक फलक को सृजित करने के प्रयास में पूरी तरह सार्थक एवं समर्थ सिद्ध हुआ है।
उत्तर 7.
सोशल मीडिया का दुरुपयोग
मुजफ़्फ़रनगर में कुछ वर्ष पूर्व हुए दंगों और इससे पहले पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ़ हुए हमलों की अफवाह फैलाने में सोशल मीडिया का दुरुपयोग किया गया। इतना ही नहीं, अभी हाल ही में हुए एक स्टिग ऑपरेशन से यह खुलासा हुआ है कि राजनीतिक नेता अपनी छवि चमकाने और विरोधियों पर कीचड़ उछालने के लिए आई टी कंपनियों को लाखों से लेकर करोड़ों रुपये तक दे रहे हैं। नेताओं के अतिरिक्त इन कंपनियों के ग्राहकों में व्यावसायिक घराने, गैर-सरकारी संगठन और दागी सरकारी अधिकारी भी शामिल हैं। कई आई टी कंपनियाँ नेताओं की लोकप्रियता को फर्जी तरीके से बढ़ाने या छवि खराब करने के लिए फेसबुक, यू-ट्यूब और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंचों का दुरुपयोग कर रही हैं। ये कंपनियाँ ढेर सारे फर्जी फेसबुक पेज बनाती हैं और इसके बाद अपने ग्राहक के लाइक बटन पर क्लिक करती हैं। इसके अलावा, ये कंपनियाँ ट्विटर पर फॉलोअर बढ़ाने वाला वायरस उपलब्ध कराती हैं और अपने ग्राहकों को फॉलोअरों का पैकेज खरीदने का विकल्प देती हैं। ये कंपनियाँ छवि चमकाने के लिए पैसा देने वाले ग्राहकों के खिलाफ़ कोई भी टिप्पणी नहीं दिखातीं और अपने ग्राहकों के लिए थोक एसएमएस या ई-मेल भेजती हैं। यहाँ तक कि अपने ग्राहकों का प्रोमोशनल वीडियो बनाकर यू-ट्यूब पर खूब प्रचार करती हैं और आवश्यकता पड़ने पर संबंधित साइट के संचालकों पर दबाव बनाने को भी तैयार रहती हैं। ये आई टी कंपनियाँ पैसे के लोभ में किसी की छवि को धूमिल करने के लिए भी तैयार रहती हैं। यह सोशल मीडिया का खतरनाक दुरुपयोग है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी कंपनियों की पहचान करके उनके विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्रवाई की जाए तथा सोशल मीडिया के होने वाले दुरुपयोग को रोका जाए।
अथवा
गोदामों में अड़ता अनाज और भूख से तड़पते लोग
भारत विशाल जनसंख्या वाला देश है, जिसमें दिनों-दिन बढ़ोतरी होती जा रही है। व्यापारी वर्ग अपनी मनमानी में लगा हुआ है। वह जब चाहे बाज़ार का ग्राफ़ ऊपर-नीचे कर दे और उसका परिणाम आम जनता को भुगतना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि उत्पादन में ज़्यादा कमी आई है, बल्कि यह व्यवस्था का ही खेल है कि सरकारी गोदामों में अनाज भरा पड़ा है और उसे वितरित करने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
फलतः अनाज सड़ रहा है या खुले आकाश के नीचे पड़ा-पड़ा बारिश का इंतजार कर रहा है। लाखों बोरियाँ पड़े-पड़े सड़ रही हैं या चूहों की क्षुधापूर्ति का साधन बन रही हैं और इधर लोग भूख से बेहाल एक-एक दाने को तरस रहे हैं। सरकार अनाज को सँभाल सकने में असमर्थ हो रही है। देश की बहुत बड़ी आबादी भुखमरी की शिकार है। करोड़ों लोग अन्न के अभाव में मरणासन्न हो रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, आज 20 करोड़ लोगों को भर पेट अन्न नहीं मिलता। 99% आदिवासियों को दिन में केवल एक बार ही भोजन मिल पाता है। विश्व में लगभग 7,000 लोग रोज़ और 25 लाख लोग सालाना भूख से मर जाते हैं और सबसे बड़ी विडंबना यह है कि आज भी भूख-पीड़ित लोगों में से एक तिहाई लोग भारत में रहते हैं। भूख के कारण मरने वालों की कहानियाँ यहाँ आम बात है।
भारत की एक विसंगति यह भी है कि जो किसान दिन-रात श्रम कर अन्न उगाता है, वही भूखा या अधखाया रह जाता है। सरकारी तंत्र को अनाज को गोदामों में सड़ाना ज़्यादा नीतियुक्त लगता है, बजाय इसके कि भूखे की भूख मिटे। यहाँ के कृषि मंत्री यह गवारा नहीं करते कि सड़ा हुआ अनाज भी भुखमरों में बाँट दिया जाए। यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है।
उत्तर 8.
(क) प्रस्तुत काव्यांश के अनुसार, दूसरों को बदनाम करने वाले अपनी बदनामी की बात नहीं सोचते। ऐसे लोगों को यह पता नहीं होता कि वे जो कर रहे हैं, उसका असर उनके व्यक्तित्व पर भी पड़ रहा है।
(ख) कवि अपने प्रेम की कीमत अपनी दीवानगी से अदा करता है। कवि मानता है कि वह पूरे होश में यह सौदा कर रहा है। उसने स्वयं को इश्क के हाथों पूरी तरह समर्पित कर दिया है।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि इन पंक्तियों में कवि अपने प्रिय को याद करते हुए उसके वियोग से उत्पन्न मर्म (दुःख) को बयाँ कर रहा है। कवि ने उन लोगों पर व्यंग्य भी किया है, जिन्हें दूसरों की निंदा करने और उनका उपहास यानी हँसी उड़ाने में आनंद आता है।
(घ) कवि अर्थात् शायर मानता है कि उसे अपनी प्रेमिका के दुःखों की चिंता है और वह उसकी दुःखभरी भावना का सम्मान करता है। यह दुःख उसे दुनिया की असहज प्रवृत्तियों के कारण मिला है।
अथवा
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने अपने रचना-कर्म की तुलना खेती के कार्य (कृषि-कर्म) से की है। खेती में फ़सल उपजाने के लिए विभिन्न चरणों में किए गए कार्यों से वह अपने रचना-कर्म को व्याख्यायित करती है।
(ख) कवि अपने छोटे चौकोने खेत में, जो कागज़ का एक पन्ना है, क्षण के बीज बोने की बात करता है। ‘क्षण का बीज’ वह विशेष परिस्थिति है, जब कवि को रचना करने की अनुकूल स्थितियाँ प्राप्त होती हैं।
(ग) अंधड़’ वास्तव में कवि के मन के मनोभाव हैं; जैसे-आँधी, पानी खेती के कार्यों में वर्षा के मौसम के सूचक हैं, वैसे ही मन में मनोभावों के वेग के उमड़ने से अंधड़ जैसी स्थिति पैदा होती है, जो कृति के रूप में बदल जाने पर शांत होती है अर्थात् मनोभावों की प्रबलता ही वस्तुत: ‘अंधड़’ है, जिसके आने पर सृजन के लिए आवश्यक वातावरण निर्मित होता है।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने खेती के रूपकों अर्थात् बीज बोने, अंकुरित होने, फलने-फूलने और अंततः फसल काटने का वर्णन करते हुए यह बताना चाहा है कि कोई भी कृति या रचना ठीक खेती की फसल की भाँति होती है; जैसे- फसल के लिए बीज़ को बोया जाता है, वैसे ही कवि भोगे गए क्षणों को कागज़ पर उतारता है।
उत्तर 9.
(क) प्रस्तुत काव्यांश में एक ओर जहाँ भरत के बाहुबल, शील एवं चरित्र की विशेषता का वर्णन कवि ने किया है, वहीं दूसरी ओर हनुमान के चरित्र की उदारती एवं राम के प्रति हनुमान तथा भरत की अखंड भक्ति का भी चित्रण हुआ है।
(ख) काव्यांश की भाषा अवधी है। काव्यांश में अनुप्रास अलंकार का सुंदर प्रयोग सर्वत्र दिखाई देता है; जैसे-‘पाइ पद’, ‘प्रभु पद प्रीति अपार’, ‘मन महुँ जात सराहत पुनि-पुनि पवन कुमार’ में ‘प’, ‘म’ एवं ‘त’ वर्गों की आवृत्ति के कारण उत्पन्न अनुप्रास अलंकार का सौंदर्य देखने योग्य है। ‘पुनि-पुनि’ पद में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का भी प्रयोग है।
(ग) इसमें दोहा छंद का प्रयोग हुआ है। दोहा एक प्रकार का मात्रिक छंद होता है। इसकी पहली और तीसरी पंक्ति में 13 मात्राएँ जबकि दूसरी और चौथी पंक्ति में 11 मात्राएँ होती हैं।
अथवा
(क) प्रस्तुत काव्यांश आत्मानुभूति एवं संबोधन शैली के कारण अत्यंत प्रभावपूर्ण बन पड़ा है, जिसकी भाषा किसी भी प्रकार के बंधन से मुक्त है। इसमें कई जगहों पर, जैसे-अंधकार-अमावस्या आदि में अनुप्रास अलंकार विद्यमान है। भूलूं मैं भूलूं मैं में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार की छटा है।
(ख) अमावस्या के लिए प्रयुक्त ‘दक्षिण ध्रुवी अंधकार’ विशेषण बहुत ही अर्थवान और प्रभावोत्पादक है। इससे अँधेरे की सघनता साकार हो उठी है।
(ग) “तुम्हें भूल जाने की, दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या’ पंक्ति में रूपक अलंकार है।
उत्तर 10.
(क) शरद ऋतु की खिलखिलाती सुहावनी सुबह से ही आकाश में पतंगें उड़ने लगती हैं। ये पतंगें हल्की, रंगीन और पतली कमानी वाली होती हैं। इन पतंगों को आकाश में उड़ता हुआ देखकर ऐसा लगता है कि यह आकाश एक उद्यान है, जिसमें उड़ती रंग-बिरंगी पतंगें तितलियों के समान आकर्षक दिखाई देती हैं और संपूर्ण आकाश पुष्पों के गुलदस्ते के समान मनमोहक दिखाई देता है।
(ख) पंथी दिनभर चलता रहता है। वह अपना लक्ष्य जानता है। लक्ष्य को पाने के लिए ही वह दिनभर चलता है। थक जाता है, परंतु फिर भी चलता रहता है। उसे यह भय है कि यदि वह रुक गया, तो दिन ढल जाएगा। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो व्यक्ति का जीवन क्षणिक है और व्यक्ति की इच्छाएँ अनगिनत। वह उन्हें पूरा करने के लिए जुटा रहता है। दिन के ढल जाने या अँधेरा होने से पूर्व ही वह अपनी मंजिल पर पहुँच जाना चाहती है।
(ग) प्रस्तुत कविता के अंत में कवि ने सारतत्त्व प्रस्तुत करते हुए बात को शरारती बच्चों के समान बताया है। बात को बच्चे के रूप में प्रकट करने के पीछे कवि का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि जिस प्रकार एक बच्चे में सरलता, सहजता होती है व उसमें दिखावटीपन नहीं होता, उसी प्रकार भाषा में भी सरलता एवं सहजता होनी चाहिए। यदि भाषा को अनावश्यक रूप से अधिक घुमावदार व जटिल बना दिया जाता है, तो बात का मर्म बिखर जाता है। इस प्रकार बिगड़ी बात की तुलना नटखट बच्चे से करके, कवि ने गंभीर बातों को सहज रूप से समझाने का प्रयास किया है।
उत्तर 11.
(क) पहलवान की ढोलक, जो संध्या से सुबह होने तक पहलवान के द्वारा बजाई जाती थी। केवल यह ढोलक ही रात्रि की विभीषिका को ललकार कर चुनौती देती थी।
(ख) गाँववासियों के लिए पहलवान की ढोलक संजीवनी शक्ति को काम करती थी; अन्यथा न तो उनके पास धन था, जिससे वे अपना इलाज करवा सकें और न ही खाने के लिए भोजन था, जो उनमें रोग से लड़ने की शक्ति दे सके।
(ग) गाँव के बड़े-बूढ़ों, बच्चों-जवानों को ढोलक की आवाज़ सुनते ही सभी निवासियों को ऐसा महसूस होता था जैसे उनके शरीर में बिजली का प्रवाह दौड़ रही हो। ढोलक की आवाज़ को सुनते-सुनते मरता हुआ बीमार व्यक्ति भी अपने प्राण बिना किसी तकलीफ़ के त्याग देता था। ढोलक की आवाज़ उसे मृत्यु के भय से दूर कर देती थी।
(घ) पहलवान की ढोलक केवल मन की शक्ति को प्रोत्साहित एवं प्रेरित करने की शक्ति रखती थी। उसमें अपने आप में बुखार और महामारी को समाप्त करने की कोई शक्ति नहीं थी। इसलिए पहलवान पूरी रात ढोल बजाने पर भी गाँव को इस विषम परिस्थिति से नहीं निकाल पाया।
उत्तर 12.
(क) “हाय, वह अवधूत आज कहाँ है?” यह निबंध की अंतिम पंक्ति है। इस पंक्ति के माध्यम से लेखक कहता है कि महात्मा गाँधी ‘शिरीष के फूल’ की भाँति थे। लेखक के अनुसार, प्रेरणादायी और आत्मविश्वास रखने वाले लोग अब रहे ही नहीं। अब केवल शरीर को प्राथमिकता देने वाले लोग ही रह गए हैं। ऐसे लोगों में आत्मविश्वास बिलकुल नहीं होता। ऐसे लोग मन की सुंदरता पर ” ध्यान नहीं देते। लेखक ने शिरीष के फूल के माध्यम से वर्तमान सभ्यता के भौतिकतावादी दृष्टिकोण को प्रमुखता दिए जाने के बारे में बताया है।
(ख) डॉ. आंबेडकर का जन्म एक दलित परिवार में होने के कारण उन्हें जीवनभर शोषण एवं प्रताड़ना झेलनी पड़ी। उन्होंने विदेश में उच्च शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने दलितों का उद्धार करना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया| जीवन की अंतिम साँस तक वे दलितों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे। उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
(ग) भक्तिन की बड़ी बेटी जब विधवा हो गई, तो जेठ के लड़के ने अपने तीतरबाज़ साले को केवल इसलिए बुलाया, जिससे वह भक्तिन की बेटी से विवाह कर ले और उसकी सारी संपत्ति उनके कब्जे में आ जाए। जब भक्तिन की बेटी ने उससे विवाह करने से मना कर दिया, तो उस लड़के ने अपने सहयोगियों के साथ मिलकर भक्तिन की बेटी को बदनाम कर दिया। उनके इस बहकावे में आकर पंचायत ने ये आदेश दिए कि ये दोनों विवाह करेंगे। पंचायत के आगे माँ-बेटी की एक न चल सकी और विवाह हो गया। दामाद अब निश्चित होकर मटरगस्तियाँ करता था और इतने यत्न से सँभाले हुए गाय-ढोर, खेती-बाड़ी आदि पारिवारिक द्वेष में ऐसे झुलस गए कि भक्तिन ज़मींदार को लगान के पैसे भी न दे पाई।
(घ) ‘पर्चेजिंग पावर’ का अर्थ है पैसे की वह पावर, जिससे आप कभी भी महँगी-से-महँगी वस्तुएँ खरीद सकते हैं। मॉल की संस्कृति, सामान्य बाज़ार और हाट की संस्कृति आदि सभी ‘पर्चेजिंग पावर’ से चलते हैं। मॉल की संस्कृति में लगभग सभी प्रकार की वस्तुएँ एक ही स्थान पर ऊँची कीमतों में मिल जाती हैं। ग्राहक भी धनाढ्य वर्ग के होते हैं। अतः वे महँगी कीमत पर भी सामान खरीदने को तैयार हो जाते हैं। इसलिए पर्चेजिंग पावर का असली रूप तो मॉल में ही दिखाई देता है।
(ङ) चार्ली की फ़िल्में इतनी लोकप्रिय हैं कि इन्हें सभी आयु, वर्ग, धर्म-संप्रदाय के लोग समान रूप से देखते हैं। उनकी फिल्में पागलखाने के मरीज़, विकल मस्तिष्क के लोगों से लेकर आइन्स्टाइन जैसे महान् प्रतिभा वाले लोग भी देखते हैं। चार्ली चैप्लिन ने अपनी फ़िल्म कला को लोकतांत्रिक बनाने के साथ ही दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण संबंधी व्यवस्था को भी तोड़ा। इससे सिद्ध होता है कि ”चार्ली की फ़िल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्धि पर नहीं।”
उत्तर 13.
मुअनजोदड़ो की सड़कों और गलियों के विस्तार का अनुमान खंडहरों को देखकर लगाया जा सकता है। यहाँ हर सड़क सीधी है। या फिर आड़ी। चबूतरे के पीछे ‘गढ’ उच्चवर्ग की बस्ती, महाकुंड, स्नानागार, ढकी नालियाँ, अन्न का कोठार, सभा भवन, घरों की बनावट, भव्य राजप्रासाद, समाधियाँ आदि संरचनाएँ ऐसे सुव्यवस्थित हैं कि कहा जा सकता है कि शहर नियोजन से लेकर सामाजिक संबंधों तक में इसकी कोई तुलना नहीं है। आज के सेक्टर-मार्का नगनियोजन वस्तुतः कंक्रीट के जंगल सरीखे लगते हैं। उनमें किसी तरह की जीवंतता के लक्षण प्राप्त नहीं होते। ईंटों के ऊपर ईंटें रखकर विशाल इमारतें तो बन जाती हैं, लेकिन उन इमारतों में रहने वालों की नैसर्गिक सुविधाओं का भी ध्यान इनमें नहीं रखा जाता है। इसके विपरीत, सिंधु सभ्यता के नगर-नियोजन में एक दूरदर्शिता एवं मानवीय भावनाओं से परिपूर्ण जीवंतता व्याप्त है। उसमें लोगों की मौलिक सुविधाओं के साथ-साथ उनकी निजता एवं सामाजिकता का भी पर्याप्त ध्यान रखा गया है। हम कह सकते हैं कि वर्तमान के सेक्टर-मार्का कॉलोनियों के नियोजन इनके सामने बिलकुल फीके हैं।
उत्तर 14.
(क) यशोधर बाबू पाश्चात्य सभ्यता से विरक्ति रखते हैं। उनका व्यवहार अपनी पत्नी और बच्चों के प्रति विरोध की भावना दर्शाता है, क्योंकि वे प्राचीन विचारों का समर्थन करते हैं, जबकि उनका परिवार आधुनिक विचारों के पक्ष में रहता है। वर्तमान समय वस्तुतः अर्थ पर आधारित हो गया है। आजकल यदि परिवार में धन की अधिकता है, तभी पारिवारिक संबंध निभ एवं टिक पाते हैं अन्यथा परिवार को बिखरते देर नहीं लगती। यशोधर बाबू को धन से विशेष लगाव नहीं है। इसलिए वे अधिक कमाने पर ध्यान नहीं देते। उनका बड़ा बेटा भूषण विज्ञापन कंपनी में 1500 प्रतिमाह पर काम करता है और उन दोनों के बीच वैचारिक अंतर बहुत गहरा है। पैसे के कारण उनके घर में तनाव भी बना रहता था। इसलिए कहा जा सकता है कि ”सिल्वर वैडिंग आधुनिक पारिवारिक मूल्यों के विघटन का यथार्थ चित्रण है।”
(ख) लेखक को कविता लिखने की रुचि मराठी भाषा के अध्यापक श्री सौंदलगेकर जी के माध्यम से पनपी। लेखक के मराठी अध्यापक बच्चों को बहुत ही रुचि के साथ पढ़ाते थे। वे भाव, छंद, लय के जानकार थे। वे बहुत ही लगन के साथ लेखक को सिखाते थे। उनकी लगन को देखकर ही लेखक ने कविता लेखन शुरू किया। लेखक को कविता लिखने की ऐसी लगन लगी कि जब उसके पास कागज़, पेंसिल न होती तो वह लकड़ी के छोटे टुकड़े से भैंस की पीठ पर रेखा खींचकर लिखता या पत्थर की शिला पर कंकड़ से लिख लेता था। कभी कभी कविता रविवार के दिन लिख लेने के पश्चात् वह सोमवार का भी इंतजार नहीं कर पाता था और रविवार की रात्रि में सौंदलगेकर जी के घर जाकर कविता दिखा देता था। कविता में जो कुछ त्रुटियाँ होती थीं, वह अध्यापक जी लेखक को बता दिया करते थे और लेखक उसमें सुधार कर लेता था। इसी कारण से लेखक की मराठी भाषा में भी सुधार आया था।
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