मनोरंजन संकेत बिंदु:
- मनोरंजन की आवश्यकता
- मनोरंजन के साधन
- खेल-कूद
- प्राचीन काल के साधन
- आधुनिक साधन
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
मनोरंजन पर निबंध | Essay on Entertainment In Hindi
संसार एक कर्मभूमि है। एक कवि ने सत्य ही कहा है-‘कर्मक्षेत्र है यह पृथ्वीतल, व्यर्थ यहाँ आलस आराम’ अर्थात् मानव-जीवन कर्म करने का एक सशक्त साधन (माध्यम) है। कर्म करना ही जीवन का लक्ष्य है। जो व्यक्ति जैसा कर्म करता है वह वैसा ही फल भोगने का अधिकारी होता है। कर्म का ही दूसरा नाम जीवन है। किंतु सूर्योदय से सूर्यास्त तक अनवरत रूप से काम में संलग्न रहकर जीवन निर्वाह करना बहुत कठिन काम है।
मनुष्य काम करते-करते जब थक जाता है तो आवश्यक है कि थोड़ा आराम करे या कुछ समय मनोविनोद या मनोरंजन करके अपनी थकान दूर करे। इस प्रकार उसे आगे काम करने के लिए नया बल मिलता है। मनोरंजन की जीवन में उतनी ही आवश्यकता है जितनी साँस लेने के लिए हवा की। मनोरंजन से मन-मस्तिष्क भारहीन और तनावमुक्त हो जा आनंदमग्न हो जाता है।
थके-हारे मन रूपी आकाश से निराशा के बादल छंट जाते हैं तथा जीवन में उत्साह व आशा का संचार हो जाता है। मनोविनोद के साधन अनेक प्रकार के हैं। मनोविनोद का सर्वप्रथम साधन है-खेलकूद। क्रिकेट, टेनिस, बैडमिंटन, हॉकी, फुटबॉल आदि बहुत लोकप्रिय खेल माने जाते हैं। ये खेल मैदान में खेले जाते हैं। इनको अंतर्राष्ट्रीय ख्याति मिल चुकी है। प्रायः इन खेलों का आँखों देखा हाल रेडियो से प्रसारित होता है तथा दूरदर्शन द्वारा भी इनका सीधा प्रसारण होता है। कुछ खेल घर के अंदर भी खेले जाते हैं, जिन्हें इनडोर गेम्ज़ कहते हैं। इनमें कैरम, लूडो, ताश, शतरंज आदि खेल आते हैं।
लोकप्रियता में शतरंज को बहुत ऊँचा स्थान दिया जाता है। शतरंज को बुद्धिमानों का खेल माना जाता है। भारतीय या देशी खेलों में कबड्डी, खो-खो, रस्साकशी, गुल्ली-डंडा, पतंग उड़ाना आदि की गिनती होती है। इन खेलों की प्रमुख विशेषता यह है कि ये विदेशी खेलों की भाँति मँहगे नहीं हैं। दूसरे इनमें अधिक खिलाड़ियों की भी आवश्यकता नहीं होती। साथ ही स्थान की भी कोई समस्या नहीं होती। इन्हें कहीं भी खेला जा सकता है।
कबड्डी को तो अब ओलम्पिक खेलों में स्थान प्राप्त हो गया है। खो-खो और रस्साकशी भी लोकप्रिय होते जा रहे हैं। विद्यालयों में खेल शिक्षा के एक अंग के रूप में माने जाते हैं। समयसारिणी के अनुसार प्रत्येक कक्षा के लिए खेलों का व्याकरण संधान एक घंटा निर्धारित किया जाता है। प्रत्येक विद्यालय में नियमित रूप से खेलकूद की प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं। अच्छे खिलाड़ियों को पुरस्कार दिए जाते हैं और उनका उत्साहवर्धन किया जाता है।
खेल मनोरंजन के साथ ही स्वास्थ्यवर्धक भी होते हैं। इनसे स्पर्धा की प्रवृत्ति भी बढ़ती है। प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं के मनोरंजन का मुख्य साधन शिकार था। यह साहस और शौर्य की पहचान भी था। राजा अपने सेनापति व सैनिकों के साथ जंगल में जाते थे और सिंह आदि भयंकर जीवों का शिकार करते थे। शतरंज व पासों का खेल भी राजाओं तथा राज-दरबारियों के मनोरंजन का साधन था। महाभारत में महाराज यधिष्ठिर दर्योधन के निमंत्रण पर दयत क्रीडा (पासों का खेल) खेलने गए। हार जाने पर उन्हें वनवास व अज्ञातवास भोगने पड़े। पशु-युद्ध भी मनोरंजन का एक साधन माना जाता था।
स्पेन में तो आज भी साँडों की लड़ाई मनोविनोद का प्रमुख स्रोत माना जाता है। मध्ययुग में तीतर, बटेर, मुर्गों की लड़ाई धनी व निर्धन सभी के लिए आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र थी। मनोरंजन के इन साधनों के साथ लखनऊ के नवाबों का नाम विशेष रूप से जुड़ा हुआ है।
आधुनिक युग में सिनेमा, रेडियो, वीडियो, दूरदर्शन, कैमरा आदि मनोरंजन के मुख्य साधन हैं। सिनेमा का तो इतना गहरा प्रभाव होता है कि मनुष्य अपने आवश्यक कार्यों को भी भुला बैठता है। आज तो दूरदर्शन हमारे घर-परिवार का सदस्य बन चुका है। सभी आयुवर्ग के लोग घर बैठे ही इस माध्यम द्वारा अपना मनोरंजन करते हैं। इन साधनों के द्वारा मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्धक व शिक्षा देने वाले कार्यक्रमों का आनंद प्राप्त किया जा सकता है। नाटक देखकर, कथा-कहानी व उपन्यास पढ़कर, कवियों के मुख से कविताएँ सुनकर बुद्धिजीवी तथा शिक्षित व्यक्ति मनोविनोद करते हैं।
लोकगीत, लोकनृत्य, कठपुतली का खेल आदि भी मनोरंजन करके आनंद और नवस्फूर्ति प्राप्त करता है। मनोरंजन भोजन के समान मनुष्य के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।