गूदड़साई – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
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लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘गुदड़ साईं’पाठ से लिया गया है जिसके लेखक जयशंकर प्रसाद हैं। यहाँ पर साईं के प्रति बालक के मन में उपजे प्रेम और दयाभाव को दर्शाया है।
आठ वर्ष का बालक साईं को पुकारकर अपने घर ले जाता। साईं भी बालक के इस आग्रह को ठुकरा न पाता और बालक के घर चला जाता वहाँ जाकर साईं अपने गुदड़ डालकर बैठ जाता और बालक से बातें करने लगता बालक भी उसे गरीब और भिखमंगा समझकर माँ से अभिमान करके पिता की नज़र बचाकर कुछ साग-रोटी लाकर देता।
इस प्रकार एक आठ वर्षीय बालक बड़े प्रेम से साईं को भोजन खिलाता है।
Solution 2:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘गुदड़ साईं’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक जयशंकर प्रसाद हैं।
गुदड़ साईं बालक मोहन के आग्रह पर गुदड़ डालकर उसके घर में बैठ जाता और बालक मोहन उसे बड़े प्यार से साग-रोटी लाकर देता था। तब साईं के मुख पर पवित्र मैत्री के भावों का साम्राज्य हो जाता। गुदड़ साईं उस समय 10 बरस के बालक के समान अभिमान, सरहाना और उलाहना के आदान-प्रदान के बाद उस खाने को बड़े चाव से खा लेता था। मोहन की दी हुई रोटी उसकी तृप्ति का कारण बनती।
इस प्रकार बालक मोहन से मिली रोटी को साईं बड़े प्रेम से खाता था।
Solution 3:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘गुदड़ साईं’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक जयशंकर प्रसाद हैं।
मोहन के पिता पढ़े-लिखे और आधुनिक विचार धाराओं को मानने के कारण साधु-संतों को ढोंगी और पाखंडी समझते थे। एक बार उन्होंने अपने बेटे को मोहन को गुदड़ साईं को खाना खिलाते देख लिया। जिससे उन्हें बहुत क्रोध आया। उन्होंने मोहन को डाँटते हुए गुदड़ से मेलजोल न बढ़ाने की चेतावनी दी।
इस प्रकार मोहन के पिता साधु फकीरों को ढोंगी समझने के कारण अपने बेटे को साईं से दूर रहने की चेतावनी दी।
Solution 4:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘गुदड़ साईं’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक जयशंकर प्रसाद हैं। यहाँ पर लेखक द्वारा यह बताया गया है कि साईं भावनाओं की कद्र करने वाला फ़क़ीर था।
एक बार जब मोहन के पिता ने साईं के सामने मोहन को डाँटा तो साईं को यह बात अपमानजनक लगी परंतु साईं ने उस दिन तो उस बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त की। पर उसके कारण बालक मोहन को कष्ट न उठाना पड़े साईं ने मोहन के मकान की ओर जाना छोड़ दिया।
इस प्रकार मोहन के पिता के अपमानजनक व्यवहार के कारण और मोहन को कष्ट से बचाने के उद्देश्य से साईं ने मोहन के मकान की ओर जाना छोड़ दिया।
Solution 5:
प्रस्तुत प्रश्न लेखक जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘गुदड़ साईं’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक जयशंकर प्रसाद हैं। यहाँ पर साईं को अलग किस्म के बैरागी के रूप में बताया गया है।
साईं बच्चों के मनोविनोद के लिए हमेशा अपने पास गुदड़ रखता था। एक दिन एक बच्चे को एक शरारत सूझी। वह साईं का गुदड़ लेकर भागा।अपना गुदड़ उस बच्चे से वापस लेने के लिए साईं भी उस बच्चे के पीछे भागने लगे परंतु भागते-भागते ठोकर लगने पर साईं गिर पड़े।
इस प्रकार साईं गुदड़ वापस पाने की कोशिश में गिर पड़े।
हेतुलक्ष्यी प्रश्न
Solution 1:
- साईं बैरागी था, माया नहीं, मोह नहीं।
- मोहन की दी गई एक रोटी उसकी अक्षय तृप्ति का करण होती।
- ढोंगी फकीरों पर उनकी साधारण और स्वाभाविक चिढ़ थी।
- खिझाने के लिए जो लड़का उसका गुदड़ लेकर भाग भागा था, वह डर से ठिठका रहा।
- नटखट लड़के के सर चपत पड़ने लगी।
- सोने का खिलौना तो उचक्के भी छीनते हैं।
Solution 2:
- यह वाक्य साईं ने मोहन के पिताजी से कहा।
- यह वाक्य मोहन ने साईं से कहा।
- यह वाक्य मोहन के पिताजी ने साईं से कहा।
- यह वाक्य मोहन के पिताजी ने साईं से कहा।
Solution 3:
- मोहन साईं को रोटी-साग अपनी माँ से अभिमान करके और पिता से नज़र बचाकर लाकर देता था।
- मोहन की उम्र आठ वर्ष की थी।
- दूसरे लड़के ने साईं का गुदड़ छीन लिया था इसलिए अपना गुदड़ प्राप्त करने के लिए साईं दूसरे लड़के के पीछे दौड़ा।
- बच्चों को रामस्वरूप समझने वाला साईं बच्चों के मनोविनोद के लिए गुदड़ रखता था।
- मोहन के पिता पढ़े-लिखे अग्रसर विचारों के व्यक्ति थे।
भाषा अध्ययन
Solution 1:
Solution 2: