हिला हुआ आदमी – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
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लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं। प्रस्तुत पाठ में सुधाकर ने ने अपने जीवन के कड़वे और तीखे अनुभवों को बड़ी ही सच्चाई के साथ पेश किया है।
एक दिन लेखक अपने मित्र सुधाकर को मिलने उसके घर गया। उस समय सुधाकर कुछ लिखने में व्यस्त था। लेखक को सुधाकर को पूछने पर ज्ञात हुआ कि वह डायरी लिखता है। अपने मित्र की डायरी लेखन की बात सुनकर लेखक को मित्र की डायरी के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हुई। सुधाकर चाहता था कि लेखक होने के नाते वे उसकी डायरी पढ़ें और अपनी राय प्रकट करें।
इस प्रकार लेखक को सुधाकर की डायरी पढ़ने के लिए मिली।
Solution 2:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं। यहाँ पर सुधाकर ने हमारे समाज में व्याप्त विसंगतियों को व्यक्त किया है।
लेखक ने जब सुधाकर की डायरी पढ़ी तो उन्हें उसमें कई विचित्रता नज़र आईं। डायरी में विचित्र बातें लिखीं गई थी। डायरी में कहीं पर भी तिथियों का जिक्र नहीं किया गया था। केवल अलग-अलग रंगों की बॉल पेन के इस्तेमाल से ही यह पता चलता था कि उसने यह बातें अलग-अलग दिन लिखी होंगी। सुधाकर ने शुरू से अंत तक जीवन के कटु अनुभवों को अपनी डायरी में उकेरा था। अपनी डायरी के माध्यम से सुधाकर ने समाज में व्याप्त अमानवीयता, राजनीति, अवसरवाद, प्रांतीयता आदि पर अपना आक्रोश प्रकट किया था।
इस तरह तिथियों का न होना और अलग रंगों की पेनों इस्तेमाल और समाज में व्याप्त विसंगतियाँ सुधाकर की डायरी की विशेषता थी।
Solution 3:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं। यहाँ पर लेखक ने गरीब की संकल्पना बताई है कि वह वाकई में गरीब है जिसके पास सपने भी अपने नहीं होते हैं।
एक दिन सुधाकर के घर चोर आए। उन्हें लगा सुधाकर कोई धनवान व्यक्ति है उन्होंने सारा घर तलाशा, पर उन्हें घर से ले जाने लायक एक भी चीज नहीं मिली उल्टा चोरों को सुधाकर के प्रति सहानुभूति होने लगी कि इस बेचारे के पास तो सपने भी अपने नहीं है। अंत में चोर सुधाकर के घर से खाली लौट गए।
Solution 4:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं। यहाँ पर लेखक ने प्रतिदिन मारे जा रहे लोगों के प्रति अपनी संवेदना दर्ज की है।
समाज में मनुष्य, इंसानी जंगल की सड़कों पर नरभक्षी भेड़िये की तरह घूम रहे हैं। एक इंसान दूसरे इंसान के खून का प्यासा है। धरती खून से सनी हुई है। वह इंसानियत की चिता जलते हुए देख रहा है। मानव की इस बात को पेड़ भी प्रकट कर रहे है की इंसान कितना एहसानफरामोश है। वे उसकी ही छाया और फलों को उपयोग करते हैं और फिर भी उसे काट देते हैं।
इस प्रकार लेखक ने अपनी संवेदना व्यक्त की है।
Solution 5:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं। यहाँ पर लेखक ने सुधाकर की परेशानियों का उल्लेख किया है।
सुधाकर कहता है कि आजकल उसके साथ अजीब बातें हो रही है। खटमल, मच्छर भी काटने से पहले धर्म पूछने लगे हैं। हवा भी आँगन में बहने से पहले जाति पूछने लगी है। धूप घर के दालान में उतरने से पहले सुधाकर की नस्ल जानना चाहती है। आकाश में घिर आईं काली घटाएँ उससे भाषा, राज्य और बोली की बातें करने लगी है। आईना भी सुधाकर को देखकर मुँह मोड़ लेता है और एक घोर अँधेरा उसे ढँक लेता है यहाँ पर लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि इंसान की जातीयता, धर्म, भाषाद्वेष ने इंसान तो इंसान प्रकृति को भी अपने वश में कर रखा है।
Solution 6:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं। यहाँ पर लेखक ने बताया है कि किस-प्रकार ईश्वर द्वारा प्रदत्त अंगों का मानव दुरुपयोग कर रहा है।
डायरी लेखक को आश्चर्य होता है कि आँखें होने पर भी लोग असलियत नहीं देख पा रहे हैं। लोगों के पास कान हैं फिर भी बहरे बने हुए हैं। दिमाग हैं पर लोग सोचने समझने में असमर्थ नज़र आ रहे हैं। यहाँ पर लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि आजकल लोग आँखों के सामने गलत होने पर भी नजरअंदाज कर देते हैं। अनुचित बातों को भी अनसुना कर रहे हैं। दिमाग होते हुए भी वास्तविकता से मुँह मोड़ रहे हैं और यही बात लेखक के लिए हैरानी का विषय है।
Solution 7:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं।
डायरी के लेखक को टुच्ची राजनीति करने वाले अवसरवादी नेताओं, मिलावट करनेवाले दुकानदारों, लालची डॉक्टरों-इंजीनियरों और मुखौटे लगाए मध्यम-वर्ग-सब में दुर्गंध से आ रही है।
इस प्रकार डायरी के लेखक को भ्रष्टाचार, बेईमानी, मक्कारी, बदनीयत, जालसाजी आदि अनेक गंध सताती है।
Solution 8:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं।
आज समाज में छल-कपट, बेईमानी, धोखेबाजी की दुर्गंध व्याप्त होने के कारण डायरी वाला चाहता है कि उसे इंसानियत, मानवीय दृष्टिकोण रूपी हवा मिले।
इस प्रकार लेखक वर्तमान समाज को संबोधित करते हुए कहता है कि मानव अपनी खोई हुई मनुष्यता को जगाएँ जिससे की बचे हुए निर्दोष लोग जी पाएँ।
Solution 9:
प्रस्तुत प्रश्न ‘हिला हुआ आदमी’ पाठ से लिया गया है जिसके लेखक सुशांत जी हैं। यहाँ पर लेखक ने अनेकों हैरानी में डाल देने वाली बातों का उल्लेख किया है।
इंसान मानवता का ढोंग कर मौका मिलने पर विश्वासघात करता है। धार्मिक भेदभाव, प्रांतीयता तथा भाषाद्वेष के कारण मानव का व्यवहार पक्षपातपूर्ण हो गया है। आगे बढ़ने की होड़ में लोग किसी भी हद तक गुजरने के लिए तैयार हैं। यहाँ कोई भी अपनी स्थिति से संतुष्ट नहीं है।
इस तरह डायरी वाले ने कुछ हैरान कर देने वाली बातों का जिक्र किया है।
हेतुलक्ष्यी प्रश्न
Solution 1:
- सुधाकर संवेदनशील व्यक्ति है।
- सुधाकर की डायरी में लेखक ने यह अजीब-सी बात बात देखी कि कहीं भी तिथियों का कोई जिक्र नहीं था।
- लेखक को दुनिया लाल रंग की दिखाई दे रही है?
- लोग दूसरों की शक्ल में अपनी शक्ल देखने के लिए आईना ढूँढ रहे हैं।
- लेखक के फेफड़ों में सड़ रही इंसानियत की दुर्गंध घुसती जा रही है।
Solution 2:
- चारों ओर घुप्प अँधेरा छाया रहता है।
- इन इंसानी जंगल की सडकों पर नरभक्षी भेड़िए घूम रहे हैं।
- दिशाओं में चीखें हैं और सायरन की आवाज़ें हैं।
- लोगों के पास निगाहें हैं पर असलियत नहीं देख पा रहे हैं।
- लोग भाषा का इस्तेमाल करके एक-दूसरे को ठग रहे हैं।
भाषा अध्ययन
Solution 1:
फेफड़ा, खटमल, इस्तेमाल, रेफरी, अंपायर।
Solution 2:
बदबू, निगाह, हरकत, शैतानियत, सड़ाँध, चेतावनी, राजनीति, हैरानी, उड़नतश्तरी, इंसानियत, मक्कारी।
Solution 3:
Solution 4:
Solution 5:
- सामान्य भूतकाल
- पूर्ण वर्तमान काल
- अपूर्ण वर्तमान काल
- सामान्य भविष्यकाल
Solution 6:
- आज का दिन बेकार लग रहा था।
- घर जाकर मैंने उसकी डायरी पढ़ी है।
- वे मेरे मन की तलाशी लेते हैं।
- उन्होंने मुस्कुराकर आपसे हाथ मिलाया था।
- मेरी आँखों से खून गिर रहा है।
Solution 7:
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय समाज से दूर होती मानवता और व्याप्त अथाह दुखों से है। यहाँ पर लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि अथाह दुखों से भरी दुनिया में बड़ी खुशियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय आज की ओछी राजनीति से है। आज के नेता अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए सांप्रदायिकता का जहर कुछ इस कदर फैला रहे हैं कि जिससे धरती इन्सानी खून से रक्तरंजित हुई जा रही है।
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय निर्दोषों की मौत से है। दुनिया में निर्दोष लोग मारे जा रहे हैं। इनके खून से सारी धरती भी लाल रंग की हो गई है।
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय मानवीय मूल्यों के नष्ट हो जाने से है। आज अमानवीयता इतनी बढ़ गई है कि मानवता नष्ट हो गई है और इन्सानियत की चिता धू-धूकर जल रही है।
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय असंतुष्टि के भाव से है। मानव में असंतुष्टि का भाव होने के कारण सभी अपने आप को दूसरों से बेहतर, अलग और श्रेष्ठ साबित करने में जुटे हुए हैं।
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय लोगों की स्वार्थपरता से है। आज हर कोई सच को झूठ और झूठ को सच साबितकर अपना स्वार्थ साधने में लगा है।
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय समाज में व्याप्त विसंगतियों से है। आज समाज में हर जगह अमानवीयता, स्वार्थपरकता की दुर्गंध भरी हुई है।
- प्रस्तुत पंक्ति का आशय सुधाकर के संवेदनशील होने से है।यहाँ पर लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि डायरी का लेखक हिला हुआ आदमी न होकर अपने समाज की बदलती स्थितियों के प्रति संवेदनशील है।