• Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • NCERT Solutions
    • NCERT Books Free Download
  • TS Grewal
    • TS Grewal Class 12 Accountancy Solutions
    • TS Grewal Class 11 Accountancy Solutions
  • CBSE Sample Papers
  • NCERT Exemplar Problems
  • English Grammar
    • Wordfeud Cheat
  • MCQ Questions

CBSE Tuts

CBSE Maths notes, CBSE physics notes, CBSE chemistry notes

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – जनसंचार माध्यम और लेखन – जनसंचार माध्यम

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Core – जनसंचार माध्यम और लेखन – जनसंचार माध्यम

पाठ के इस खंड में हम  पढ़ेंगे और जानेंगे

  • संचार
    परिभाषा और महत्व
    संचार क्या है?
  • संचार के तत्त्व
    स्रोत, एनकोडिंग, संदेश, माध्यम, प्राप्तकर्ता, फ़ीडबैक
    और शोर
  • संचार के प्रकार
    सांकेतिक संचार
    मौखिक और अमौखिक संचार
    अंतःवैयक्ति संचार
    अंतरवैयक्ति संचार
    समूह संचार
    जनसंचार
  • जनसंचार की विशेषताएँ
  • संचार के कार्य
  • जनसंचार के कार्य
    सूचना देना, शिक्षित करना, मनोरंजन करना
    एजेंडा तय करना
    निगरानी करना
    विचार-विमर्श के मंच
  • भारत के जनसंचार माध्यमों का विकास
    समाचार-पत्र-पत्रिकाएँ
    रेडियो
    टेलिविज़न
    सिनेमा
    इंटरनेट
  • जनसंचार माध्यमों का प्रभाव

संचार एक परिचय
संचार के बिना जीवन संभव नहीं है। मानव सभ्यता के विकास में संचार की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। संचार दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान है। इस तरह संचार एक प्रक्रिया है जिसमें कई तत्व शामिल हैं। संचार के कई प्रकार हैं जिनमें मौखिक और अमौखिक संचार के अलावा अंत:वैयक्तिक, अंतरवैयक्तिक, समूह संचार और जनसंचार प्रमुख हैं।
जनसंचार कई मामलों में संचार के अन्य रूपों से अलग है। जनसंचार सूचना, शिक्षा और मनोरंजन के अलावा एजेंडा तय करने का काम भी करता है। भारत में जनसंचार के विभिन्न माध्यमों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। जनसंचार माध्यमों का लोगों पर सकारात्मक के साथ-साथ नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। इन नकारात्मक प्रभावों के प्रति लोगों का सचेत होना बहुत जरूरी है।

संचार-परिभाषा और महत्व
हम अधिकांश समय अपनी छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने या अपनी भावनाओं और विचारपों कों प्रकट करने के लिए एक-दूसरे से या समूह में बातचीत या संचार करने में लगा देते हैं। कई बार हम अकेले में खुद से बातें करने लगते हैं। यदि समाज में रहना है और उसके विभिन्न क्रियाकलापों में हिस्सा लेना है तो यह बिना बातचीत या संचार के संभव नहीं है। संचार यानी संदेशों का आदान-प्रदान।

संचार और हमारा जीवन
हम अपने दैनिक जीवन में संचार किए बिना नहीं रह सकते। वास्तव में संचार जीवन की निशानी है। मनुष्य जब तक जीवित है, वह संचार करता रहता है। यहाँ तक कि एक बच्चा भी संचार के बिना नहीं रह सकता। वह रोकर या चिल्लाकर अपनी माँ का ध्यान अपनी ओर खींचता है। एक तरह से संचार ख़त्म होने का अर्थ है-मृत्यु। वैसे तो प्रकृति में सभी जीव संचार करते हैं लेकिन मनुष्य की संचार करने की क्षमता और कौशल सबसे बेहतर है।अकसर यह कहा जाता है किमनुष्य एक समाजिक  प्राणी है और उसे सामाजिक प्राणी के रूप में विकसित करने में उसकी संचार क्षमता की सबसे बड़ी भूमिका रही है।

परिवार और समाज में एक व्यक्ति के रूप में हम अन्य लोगों सं संचार के जरिये ही संबंध स्थापित करते हैं और रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करते हैं। संचार ही हमें एक-दूसरे से जोड़ता है।
सभ्यता के विकास की कहानी संचार और उसके साधनों के विकास की कहानी है। मनुष्य ने चाहे भाषा का विकास किया हो या लिपि का या फिर छपाई का, इसके पीछे मूल इच्छा संदेशों के आदान-प्रदान की ही थी। दरअसल, संदेशों के आदान-प्रदान में लगने वाले समय और दूरी को पाटने के लिए ही मनुष्य ने संचार के माध्यमों की खोज की।

संचार और जनसंचार के विभिन्न माध्यमों-टेलीफ़ोन, इंटरनेट, फैक्स, समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविजन और सिनेमा आदि के जरिये मनुष्य संदेशों के आदान-प्रदान में एक-दूसरे के बीच की दूरी और समय को लगातार कम से कम करने की कोशिश कर रहा है। यही कारण है कि आज संचार माध्यमों के विकास के साथ न सिर्फ भौगोलिक दूरियाँ कम हो रही हैं बल्कि सांस्कृतिक और मानसिक रूप से भी हम एक-दूसरे के करीब आ रहे हैं। शायद यही कारण है कि कुछ लोग मानते हैं कि आज दुनिया एक गाँव में बदल गई है।

जनसंचार माध्यम कितने उपयोगी
दुनिया के किसी भी कोने में कोई घटना हो, जनसंचार माध्यमों के जरिये कुछ ही मिनटों में हमें खबर मिल जाती है। अगर वहाँ किसी टेलीविजन समाचार चैनल का संवाददाता मौजूद हो तो हमें वहाँ की तसवीरें भी तुरंत देखने को मिल जाती हैं। इसी तरह आज टेलीविजन के परदे पर हम दुनियाभर के अलग-अलग क्षेत्रों में घट रही घटनाओं को सीधे प्रसारण के जरिये ठीक उसी समय देख सकते हैं। हम क्रिकेट मैच देखने स्टेडियम भले न जाएँ लेकिन घर बैठे उस मैच का सीधा प्रसारण (लाइव) देख सकते हैं।

आज संचार और जनसंचार के माध्यम हमारी अनिवार्य आवश्यकता बन गए हैं। हमारे रोजमर्रा के जीवन में उनकी बहुत अहम भूमिका हो गई है। उनके बिना हम आज आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। वे हमारे लिए न सिर्फ सूचना के माध्यम हैं बल्कि वे हमें जागरूक बनाने और हमारा मनोरंजन करने में भी अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

मैगी की बिक्री पर रोक

नई देल्ली, विशेष संवाददाता
सरकार ने शुक्रवार को नेस्ले कंपनी के ब्रांड मैगी की सभी नौ किस्मों की बिक्री पर पूरे देश में पाबंदी लगा दी। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने कहा, ‘मैगी के नौ नूडल खाने के लिहाज से असुरक्षित और खतरनाक हैं। इसलिए कंपनी तुरंत इनकी बिक्री और उत्पादन पर रोक लगाए।’
कंपनी ने मैगी पर सफाई दी : नेस्ले के ग्लोबल सीईओ पॉल बुल्के ने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर मैगी पर सफाई दी। उन्होंने कहा, ‘मैगी पूरी तरह सुरक्षित है फिर भी हमने इसे भारतीय बाजार से हटाने का फैसला लिया है क्योंकि बेवजह भ्रम फैलने से ग्राहकों का भरोसा प्रभावित हो रहा है।’ पॉल स्विट्जरलैंड से आए थे।
15 दिन में जवाब दें : खाद्य नियामक एफएसएसएआई ने नेस्ले को कारण बताओ नोटिस जारी करके पंद्रह दिन के अंदर जवाब मांगा है। नियामक का कहना है कि नेस्ले ने उत्पाद मंजूरी लिए बगैर और बिना जोखिम एवं सुरक्षा आकलन के मैगी ओट्स मसाला नूडल्स पेश किया है। इसलिए मैगी की सभी नौ किस्में तुरंत बाजार से वापस लेने का आदेश दिया हैं। एफएसएसएआई के मुख्य कार्यकारी वाईएम मलिक ने बताया, कंपनी को तीन दिन में बाजार से मैगी हटाने के आदेश पर रिपोर्ट देने को कहा गया है। साथ ही यह प्रक्रिया पूरी होने तक रोज प्रगति रिपोर्ट सौंपने का भी निर्देश दिया गया है। भारत की जांच पर सवाल! : नेस्ले के ग्लोबल सीईओ पॉल से जब यह पूछा गया कि क्या वह भारतीय लैब में हुई जांच पर सवाल उठा रहें हैं तो उन्होंने इस बात स इनकार किया। पॉल ने कहा, ‘सबकी जांच का तरीका अलग-अलग हो सकता है। हम भारत का तरीका समझेंगे।’

उग्रवादियों की तलाशी का अभियान तेज

इंफाल एजेंसियों
सुरक्षाबलों ने गुरुवार को सेना के काफिले पर घात लगाकर हमला करने में शामिल उग्रवादियों को पकड़ने के लिए मणिपुर के चंदेल जिले में तलाशी अभियान तेज कर दिया है। इस हमले में डोगरा रेजीमेंट के 18 सैनिक शहीद हो गए थे। इस बीच, सेना प्रमुख दलबीर सिंह सुहाग ने स्वयं मणिपुर पहुँचकर स्थिति का जायजा लिया है। चंदेल के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस घटनास्थल से शहीदों के शवों को ला चुकी है। इनमें 17 शव छठी डोगरा रेजीमेंट के जवानों के हैं, जबकि एक शव उग्रवादी का है। हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं कि उग्रवादी किस सगठन से संबंधित है। पुलिस ने बताया कि तलाशी अभियान सेना और असम राइफल्स मिलकर चला रहे हैं। लेकिन अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं की गई है। उन्होंने बताया कि घटनास्थल जंगल के काफी अंदर एवं दुर्गम है।

महज 20 किलोमीटर की दूरी पर म्यांमार सीमा है। इसलिए हमला कर उग्रवादी भागने में कामयाब रहे। सूत्रों ने बताया कि उग्रवादियों की धरपकड़ के लिए परालोंग, चरोंग, मोल्तुह और कुछ अन्य इलाकों में खोज अभियान चलाया जा रहा है। इस बीच, सुरक्षा का जायजा लेने पहुँचे सुहाग ने शुक्रवार को तीसरी कोर के कमांडर और शीर्ष पुलिस अधिकारियों के साथ बैठक की। उन्होंने घटना और मौजूदा सुरक्षा व्यवस्था की जानकारी ली। सुहाग ने कहा कि उग्रवादियों के खिलाफ दीर्घकालिक और लक्षित अभियानों के लिए एक विस्तृत अभियान योजना पर काम किया जा रहा है।

संचार क्या है?
संचार शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचना। संचार स हमारा तात्पर्य दो या दो से अधिक व्यक्तियों के बीच सूचनाओं, विचारों और भावनाओं का आदान-प्रदान है। मशहूर संचारशास्त्री विल्बर श्रैम के अनुसार “संचार अनुभवों की साझेदारी है।’ इस प्रकार  सुचनाओं, विचारों और भावनाओं को लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरीये सफलतापूर्वक एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना ही संचार है और इस प्रक्रिया को अंजाम देने में मदद करने वाले तरीके संचार माध्यम कहलाते हैं।

संचार के तत्व
संचार एक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया में कई तत्व शामिल हैं। इनमें से प्रमुख तत्व निम्नलिखित है-

  1. स्त्रोत या संचारक-संचार-प्रक्रिया की शुरुआत ‘स्रोत” या ‘संचारक’ से होती है। जब स्रोत या संचारक एक उद्देश्य के साथ अपने किसी विचार, संदेश या भावना को किसी और तक पहुँचाना चाहता है, तो संचार-प्रक्रिया की शुरुआत होती है। जैसे हमें किताब की जरूरत होने पर जैसे ही हम किताब माँगने की सोचते हैं, संचार की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। किताब माँगने के लिए हम अपने मित्र से बातचीत करेंगे या उसे लिखकर संदेश भेजेंगे। बातचीत या संदेश भेजने के लिए हम भाषा का सहारा लेते हैं।
  2. कूटीकृत या एनकोडिंग-यह संचार की प्रक्रिया का दूसरा चरण है। सफल संचार के लिए जरूरी है कि आपका मित्र भी उस भाषा यानी कोड से परिचित हो जिसमें आप अपना संदेश भेज रहे हैं। इसके साथ ही संचारक का एनकोडिंग की प्रक्रिया पर भी पूरा अधिकार होना चाहिए। इसका अर्थ यह हुआ कि सफल संचार के संचारक का भाषा पर पूरा अधिकार होना चाहिए। साथ ही उसे अपने संदेश के मुताबिक बोलना या लिखना भी आना चाहिए।
  3. संदेश-संचार-प्रक्रिया में संदेश का बहुत अधिक महत्व है। किसी भी संचारक का सबसे प्रमुख उद्देश्य अपने संदेश को उसी अर्थ के साथ प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना है। इसलिए सफल संचार के लिए जरूरी है कि संचारक अपने संदेश को लेकर खुद पूरी तरह से स्पष्ट हो। संदेश जितना ही स्पष्ट और सीधा होगा, संदेश के प्राप्तकर्ता को उसे समझना उतना ही आसान होगा।
  4. माध्यम (चैनल)-संदेश को किसी माध्यम (चैनल) के जरिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचाना होता है। जैसे हमारे बोले हुए शब्द ध्वनि तरंगों के जरिये प्राप्तकर्ता तक पहुँचते हैं, जबकि दृश्य संदेश प्रकाश तरंगों के जरिये। इसी तरह वायु तरंगों के जरिये भी संदेश पहुँचते हैं। जैसे खाने की खुशबू हम तक वायु तरंगों के जरिये पहुँचती है। स्पर्श या छूना भी एक तरह का माध्यम है। इसी तरह टेलीफ़ोन, समाचारपत्र, रेडियो, टेलीविजन, इंटरनेट और फ़िल्म आदि विभिन्न माध्यमों के जरिये भी संदेश प्राप्तकर्ता तक पहुँचाया जाता है।
  5. प्राप्तकर्ता या रिसीवर-यह प्राप्त संदेश का कूटवाचन यानी उसकी डीकोडिंग करता है। डीकोडिंग का अर्थ है प्राप्त संदेश में निहित अर्थ को समझने की कोशिश। यह एक तरह से एनकोडिंग की उलटी प्रक्रिया है। इसमें संदेश का प्राप्तकर्ता उन चिहनों और संकेतों के अर्थ निकालता है। जाहिर है कि संचारक और प्राप्तकर्ता दोनों का उस कोड से परिचित होना जरूरी है।
  6. फीडबैक-संचार-प्रक्रिया में प्राप्तकर्ता की इस प्रतिक्रिया को फीडबैक कहते हैं। संचार-प्रक्रिया की सफलता में फ़ीडबैक की अहम भूमिका होती है। फ़ीडबैक से ही पता चलता है कि संचार-प्रक्रिया में कहीं कोई बाधा तो नहीं आ रही है। इसके अलावा फ़ीडबैक से यह भी पता चलता है कि संचारक ने जिस अर्थ के साथ संदेश भेजा था वह उसी अर्थ में प्राप्तकर्ता को मिला है या नहीं? इस फ़ीडबैक के अनुसार ही संचारक अपने संदेश में सुधार करता है और इस तरह संचार की प्रक्रिया आगे बढ़ती है।
  7. शोर-संचार प्रक्रिया में कई बाधाएँ भी आती हैं। इन बाधाओं को शोर (नॉयज) कहते हैं। संचार की प्रक्रिया को शोर से बाधा पहुँचती है। यह शोर किसी भी किस्म का हो सकता है। यह मानसिक से लेकर तकनीकी और भौतिक शोर तक हो सकता है। शोर के कारण संदेश अपने मूल रूप में प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच पाता। सफल संचार के लिए संचार प्रक्रिया से शोर को हटाना या कम करना बहुत जरूरी है।

संचार के प्रकार
संचार विभिन्न प्रकार के होते हैं, पर वे परस्पर काफी मिले-जुले होते हैं। इन्हें अलग करके देखना कठिन होता है। संचार के निम्नलिखित रूप हैं-

  1. सांकेतिक संचार-जब हम किसी व्यक्ति को संकेत या इशारे से बुलाते हैं तो इसे सांकेतिक संचार कहते हैं। अपने से बड़ों को प्रणाम करते हुए हाथ जोड़कर प्रणाम करना मौखिक संचार का उदाहरण है। मौखिक संचार के समय चेहरे और शरीर के विभिन्न अंगों की मुद्राओं की मदद ली जाती है। खुशी, प्रेम, डर आदि अमौखिक संचार द्वारा व्यक्त किया जाता है।
  2. अंत:वैयक्तिक (इंटरपर्सनल) संचार-जब हम कुछ सोच रहे होते हैं, कुछ योजना बना रहे होते हैं या किसी को याद कर रहे होते हैं तो यह भी एक संचार है। इस संचार-प्रक्रिया में संचारक और प्राप्तकर्ता एक ही व्यक्ति होता है। यह संचार का सबसे बुनियादी रूप है। इसे अंत:वैयक्तिक (इंट्रपर्सनल) संचार कहते हैं। हम जब पूजा, इबादत या प्रार्थना करते वक्त ध्यान में होते हैं तो वह भी अंत:वैयक्तिक संचार का उदाहरण है। किसी भी संचार की शुरुआत यहीं से होती है।
  3. समूह संचार-इस संचार में हम जो कुछ भी कहते हैं, वह किसी एक या दो व्यक्ति के लिए न होकर पूरे समूह के लिए होता है। समूह संचार का उपयोग समाज और देश के सामने उपस्थित समस्याओं को बातचीत और बहस-मुबाहिसे के जरिये हल करने के लिए होता है। संसद में जब विभिन्न मुद्दों पर चर्चा होती है तो यह भी समूह संचार का ही एक उदाहरण है।
  4. जनसंचार-जब हम व्यक्तियों के समूह के साथ प्रत्यक्ष संवाद की बजाय किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम के जरिये समाज के एक विशाल वर्ग से संवाद कायम करने की कोशिश करते हैं तो इसे जनसंचार कहते हैं। इसमें एक संदेश को यांत्रिक माध्यम के जरिये बहुगुणित किया जाता है ताकि उसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके। इसके लिए हमें किसी उपकरण या माध्यम की मदद लेनी पड़ती है-मसलन अखबार, रेडियो, टी०वी०, सिनेमा या इंटरनेट। अखबार में प्रकाशित होने वाले समाचार वही होते हैं लेकिन प्रेस के जरिये उनकी हजारों-लाखों प्रतियाँ प्रकाशित करके विशाल पाठक वर्ग तक पहुँचाई जाती हैं।

जनसंचार की विशेषताएँ
जनसंचार की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. जनसंचार माध्यमों के जरिये प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है। इसका अर्थ यह हुआ कि अंतरवैयक्तिक या समूह संचार की तुलना में जनसंचार के संदेश सबके लिए होते हैं।
  2. जनसंचार का संचार के अन्य रूपों से एक फ़र्क यह भी है कि इसमें संचारक और प्राप्तकर्ता के बीच कोई सीधा संबंध नहीं होता है।
  3. जनसंचार के लिए एक औपचारिक संगठन की भी जरूरत पड़ती है। औपचारिक संगठन के बिना जनसंचार माध्यमों को चलाना मुश्किल है। जैसे समाचारपत्र किसी न किसी संगठन से प्रकाशित होता है या रेडियो का प्रसारण किसी रेडियो संगठन की ओर से किया जाता है।
  4. जनसंचार माध्यमों ढेर सारे द्वारपाल (गेटकीपर) काम करते हैं। द्वारपाल वह व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह है जो जनसंचार माध्यमों से प्रकाशित या प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित और निर्धारित करता है।

जनसंचार माध्यमों में द्वारपाल की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह उनकी ही जिम्मेदारी है कि वे सार्वजानिक हित, पत्रकारिता के सिद्धांतों, मूल्यों और आचार संहिता के अनुसार सामग्री को संपादित करें और उसके बाद ही उनके प्रसारण या प्रकाशन की इजाजत दें।

जनसंचार के कार्य
जिस प्रकार संचार के कई कार्य हैं, उसी तरह जनसंचार माध्यमों के भी कई कार्य हैं। उनमें से कुछ प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं :

  1. सूचना देना-जनसंचार माध्यमों का प्रमुख कार्य सूचना देना है। हमें उनके जरिये ही दुनियाभर से सूचनाएँ प्राप्त होती हैं। हमारी जरूरतों का बड़ा हिस्सा जनसंचार माध्यमों के जरिये ही पूरा होता है।
  2. शिक्षित करना-जनसंचार माध्यम सूचनाओं के जरिये हमें जागरूक बनाते हैं। लोकतंत्र में जनसंचार माध्यमों की एक महत्वपूर्ण भूमिका जनता को शिक्षित करने की है। यहाँ शिक्षित करने से आशय है-उन्हें देश-दुनिया के हाल से परिचित कराना और उसके प्रति सजग बनाना।
  3. मनोरंजन करना-जनसंचार माध्यम मनोरंजन के भी प्रमुख साधन हैं। सिनेमा, टी०वी०, रेडियो, संगीत के टेप, वीडियो और किताबें आदि मनोरंजन के प्रमुख माध्यम हैं।
  4. एजेंडा तय करना-जनसंचार माध्यम सूचनाओं और विचारों के जरिये किसी देश और समाज का एजेंडा भी तय करते हैं। जब समाचार-पत्र और समाचार चैनल किसी खास घटना या मुद्दे को प्रमुखता से उठाते हैं या उन्हें व्यापक कवरेज देते हैं, तो वे घटनाएँ या मुद्दे आम लोगों में चर्चा के विषय बन जाते हैं। किसी घटना या मुद्दे को चर्चा का विषय बनाकर जनसंचार माध्यम सरकार और समाज को उस पर अनुकूल प्रतिक्रिया करने के लिए बाध्य कर देते हैं।
  5. निगरानी करना-किसी लोकतांत्रिक समाज में जनसंचार माध्यमों का एक और प्रमुख कार्य सरकार और संस्थाओं के कामकाज पर निगरानी रखना भी है। अगर सरकार कोई गलत कदम उठाती है या किसी संगठन/संस्था में कोई अनियमितता बरती जा रही है, तो उसे लोगों के सामने लाने की जिम्मेदारी जनसंचार माध्यमों पर है।
  6. विचार-विमर्श के मंच-जनसंचार माध्यमों का एक कार्य यह भी है कि वे लोकतंत्र में विभिन्न विचारों को अभिव्यक्ति का मंच उपलब्ध कराते हैं। इसके जरिये विभिन्न विचार लोगों के सामने पहुँचते हैं। जैसे किसी समाचार-पत्र के ‘संपादकीय’ पृष्ठ पर किसी घटना या मुद्दे पर विभिन्न विचार रखने वाले लेखक अपनी राय व्यक्त करते हैं। इसी तरह ‘संपादक के नाम चिट्ठी’ स्तंभ में आम लोगों को अपनी राय व्यक्त करने का मौका मिलता है। इस तरह जनसंचार माध्यम विचार-विमर्श के मंच के रूप में भी काम करते हैं।

भारत में जनसंचार माध्यमों का विकास
भारत में जनसंचार माध्यमों का इतिहास बहुत पुराना है। इसके बीज पौराणिक काल के मिथकीय पात्रों में मिल जाते हैं। देवर्षि नारद को भारत का पहला समाचार वाचक माना जाता है जो वीणा की मधुर झंकार के साथ धरती और देवलोक के बीच संवाद-सेतु थे। उन्हीं की तरह महाभारत काल में महाराज धृतराष्ट्र और रानी गांधारी को युद्ध की झलक दिखाने और उसका विवरण सुनाने के लिए जिस तरह संजय की परिकल्पना की गई है, वह एक अत्यंत समृद्ध संचार व्यवस्था की ओर इशारा करती है।

चंद्रगुप्त मौर्य, अशोक जैसे सम्राटों के शासन-काल में स्थायी महत्व के संदेशों के लिए शिलालेखों और सामयिक या तात्कालिक संदेशों के लिए कच्ची स्याही या रंगों से संदेश लिखकर प्रदर्शित करने की व्यवस्था और मजबूत हुई। तब बाकायदा रोजनामचा लिखने के लिए कर्मचारी नियुक्त किए जाने लगे और जनता के बीच संदेश भेजने के लिए भी सही व्यवस्था की गई।

भीमबेटका के गुफाचित्र इसके प्रमाण हैं। यह समानांतर व्यवस्था बाद में कठपुतली और लोकनाटकों की विविध शैलियों के रूप में दिखाई पड़ती है। देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विविध नाट्यरूपों-कथावाचन, बाउल, सांग, रागनी, तमाशा, लावनी, नौटंकी, जात्रा, गंगा-गौरी, यक्षगान आदि का विशेष महत्व है। इन विधाओं के कलाकार मनोरंजन तो करते ही थे, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक संदेश पहुँचाने और जनमत निर्माण करने का काम भी करते थे।

लेकिन जनसंचार के आधुनिक माध्यमों के जो रूप आज हमारे यहाँ हैं, वे निश्चय ही हमें अंग्रेजों से मिले हैं। चाहे समाचारपत्र हों या रेडियो, टेलीविजन या इंटरनेट, सभी माध्यम पश्चिम से ही आए। हमने शुरुआत में उन्हें उसी रूप में अपनाया लेकिन धीरे-धीरे वे हमारी सांस्कृतिक विरासत के अंग बनते चले गए। चाहे फ़िल्में हों या टी०वी० सीरियल, एक समय के बाद वे भारतीय नाट्य परंपरा से परिचालित होने लगते हैं। इसलिए आज के जनसंचार माध्यमों का खाका भले ही पश्चिमी हो. लेकिन उनकी विषयवस्तु और रंगरूप भारतीय ही हैं।

जनसंचार माध्यमों के वर्तमान प्रचलित रूपों में प्रमुख हैं-समाचारपत्र-पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा और इंटरनेट। इन माध्यमों के जरिये जो भी सामग्री आज जनता तक पहुँच रही है, राष्ट्र के मानस का निर्माण करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

समाचारपत्र-पत्रिकाएँ
जनसंचार की सबसे मजबूत कड़ी पत्र-पत्रिकाएँ या प्रिंट मीडिया ही है। हालाँकि अपने विशाल दर्शक वर्ग और तीव्रता के कारण रेडियो और टेलीविजन की ताकत ज्यादा मानी जा सकती है लेकिन वाणी को शब्दों के रूप में रिकॉर्ड करने वाला आरंभिक माध्यम होने की वजह से प्रिंट मीडिया का महत्व हमेशा बना रहेगा। आज भले ही प्रिंट, रेडियो, टेलीविजन या इंटरनेट, किसी भी माध्यम से खबरों के संचार को पत्रकारिता कहा जाता हो, लेकिन आरंभ में केवल प्रिंट माध्यमों के जरिये खबरों के आदान-प्रदान की ही पत्रकारिता कहा जाता था।

पत्रकारिता के सोपान
इसके निम्नलिखित तीन सोपान हैं-

  1. समाचारों को संकलित करना।
  2. उन्हें संपादित कर छापने लायक बनाना!
  3. पत्र या पत्रिका के रूप में छापकर पाठकों तक पहुँचाना।

यद्यपि ये तीनों काम परस्पर जुड़े हुए हैं पर पत्रकारिता के अंतर्गत पहले दो कामों को शामिल किया जाता है। जहाँ बाहर से खबरें लाने का काम संवाददाताओं का होता है, वहीं तमाम खबरों, लेखों, फ़ीचरों को व्यवस्थित तरीके से संपादित करने और सुरुचिपूर्ण ढंग से छापने का काम संपादकीय विभाग में काम करने वाले संपादकों का होता है। आज पत्रकारिता का क्षेत्र भी बहुत व्यापक हो चला है। खबर का संबंध किसी एक या दो विषयों से नहीं होता। दुनिया के किसी भी कोने की घटना समाचार बन सकती है बशर्त कि उसमें पाठकों की दिलचस्पी हो या उसमें सार्वजानिक हित निहित हो।

भारत में अखबारी पत्रकारिता का आरंभ
भारत में अखबारी पत्रिका की शुरुआत सन् 1780 में जेम्स ऑगस्ट हिकी के ‘बंगाल गजट’ से हुई जो कलकत्ता (कोलकाता) से निकला था जबकि हिंदी का पहला साप्ताहिक पत्र ‘उदत मार्तड’ भी कलकत्ता से ही सन् 1826 में पंडित जुगल किशोर शुक्ल के संपादन में निकला था। हिंदी भाषा के विकास में शुरुआती अखबारों और पत्रिकाओं ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस लिहाज से भारतेंदु हरिश्चंद्र का नाम हमेशा सम्मान के साथ लिया जाएगा जिन्होंने कई पत्रिकाएँ निकालीं। आजादी के आंदोलन में भारतीय पत्रों ने अहम भूमिका निभाई। महात्मा गांधी, लोकभान्य तिलक और मदनमोहन मालवीय जैसे नेताओं ने लोगों को जागरूक बनाने के लिए पत्रकार की भी भूमिका निभाई।

गांधी जी को हम समकालीन भारत का सबसे बड़ा पत्रकार कह सकते हैं, क्योंकि आजादी दिलाने में उनके पत्रों न महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आजादी के पहल के प्रमुख पत्रकारों में गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, महावीर प्रसाद दविवेदी, बाबुराव  बिष्णुराव पराड़कर, प्रताप नारायण मिश्र, शिवपूजन सहाय. रामवृक्ष बेनीपुरी और बालमुकुंद गुप्त हैं। उस समय के महत्वपूर्ण अखबारों और पत्रिकाओं में ‘केसरी’, हिंदुस्तान’ ‘सरस्वती’ ‘हंस’ ‘कर्मवीर’, ‘ आज’,’ प्रताप ‘,’प्रदीप’ और ‘विशाल भारत’ आदि प्रमुख हैं।

स्वतंत्र भारत के प्रमुख समाचार पत्र
आजादी के बाद के प्रमुख हिंदी अखबारों में ‘नवभारत टाइम्स’, ‘जनसत्ता’, ‘नई दुनिया’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘अमर उजाला’ , ‘दैनिक भास्कर’, “दैनिक जागरण और पत्रिकाओं में ‘धर्मयुग’, ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’, ‘ दिनमान’ , ‘रविवार’ , ‘इंडिया टुडे’ और ‘आउटलुक’ का नाम लिया जा सकता है। इनमें से कई पत्रिकाएँ बंद हो चुकी हैं। आजादी के बाद के हिंदी के प्रमुख पत्रकारों में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यानन ‘अज्ञेय’, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, मनोहर श्याम जोशी, राजेन्द्र माथुर, प्रभाष जोशी, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सुरेन्द्र प्रताप सिंह का नाम लिया जात सकता है।
ncert-solutions-for-class-11-hindi-core-janasanchaar-maadhyam-aur-lekhan-janasanchaar-maadhyam-(185-1)

रेडियो
पत्र-पत्रिकाओं के बाद जिस माध्यम ने दुनिया को सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह रेडियो है। सन् 1895 में जब इटली के इलेक्ट्रिकल इंजीनियर जी० माकनी ने वायरलेस के जरिये ध्वनियों और संकेतों को एक जगह से दूसरी जगह भेजने में कामयाबी हासिल की, तब रेडियो जैसा माध्यम अस्तित्व में आया। पहले विश्वयुद्ध तक यह सूचनाओं के आदान-प्रदान का एक महत्वपूर्ण औजार बन चुका था। भारत में 1892 में रेडियो की शुरुआत हुई। 1921 में मुंबई में ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ ने डाक-तार विभाग के सहयोग से संगीत कार्यक्रम प्रसारित किया। 1936 में विधिवत् ऑल इडिया रेडियो की स्थापना हुई और आजादी के समय तक देश में कुल में रेडियो स्टेशन खुल चुके थे-लखनऊ, दिल्ली, बंबई (मुंबई), कलकत्ता (कोलकाता), मद्रास (चेन्नई) तिरुचिरापल्ली, ढाका, लाहौर और पेशावर। इनमें से तीन रेडियो स्टेशन विभाजन के साथ पाकिस्तान के हिस्से में चले गए।

आजादी के बाद भारत में रेडियो एक बेहद ताकतवर माध्यम के रूप में विकसित हुआ। आज आकाशवाणी देश की 24 भाषाओं और 146 बोलियों में कार्यक्रम प्रस्तुत करती है। देश की 96 प्रतिशत आबादी तक इसकी पहुँच है। 1993 में एकएम (फ्रिक्वेंसी मॉडयूलेशन) की शुरुआत के बाद रेडियो के क्षेत्र में कई निजी कंपनियाँ भी आगे आई ह। लेकिन अभी उन्हें समाचार और सम-सामयिक कार्यक्रमों के प्रसारण की अनुमति नहीं है।

रेडियो एक ध्वनि पाध्यम है। इसकी तात्कालिकता, घनिष्ठता और प्रभाव के कारण गांधी जी ने रेडियो को एक अद्भुत श न कहा था। ध्वनि-तरंगों के जरिये यह देश के कोने-कोने तक पहुँचता है। दूर-दराज के गाँवों में, जहाँ संचार और मनोरंजन के अन्य साधन नहीं होते, वहाँ रेडियो ही एकमात्र साधन है. बाहरी दुनिया से जुड़ने का। फिर अखबार और टेलीविजन की तुलना में यह बहु ‘ सस्: भी है।

इसलिए भारत के दूरदराज के हलाकों में लोगों ने रेडियो क्लब बना लिए हैं। आकाशवाणी के अलावा सैकड़ों निजी एफएम स्टेशनों और बीबीसी, वायस आँफ अमेरिका, डोयचे वेले (रेडियों जर्मनी), मास्को रेडियो, रेडियों पेइचिंग, रेडियो आस्ट्रेलिया जैसे कई विदेशी प्रसारण और हैम अमेच्योर रेडियो क्लबों (स्वतंत्र समूह द्वारा संचालित पंजीकृत रेडियो स्टेशन) का जाल बिछा हुआ है।

टेलीविजन
आज टेलीविज़न जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और ताकतवर माध्यम बन गया है। प्रिंट मीडिया के शब्द और रेडियो की ध्वनियों के साथ जब टेलीविज़न के दृश्य मिल जाते हैं, तो सूचना की विश्वसनीयता कई गुना बढ़ जाती है।

भारत में टेलीविजन की शुरुआत यूनेस्को की एक शैक्षिक परियोजना के अंतर्गत 15 सितंबर, 1959 को हुई थी। इसका मकसद टेलीविजन के जरिये शिक्षा और सामुदायिक विकास को प्रोत्साहित करना था। इसके तहत दिल्ली के आसपास के गाँवों में 2 टी०वी० सेट लगाए गए जिन्हें 200 लोगों ने देखा। यह हफ्ते में दो बार एक-एक घंटे के लिए दिखाया जाता था। लेकिन 1965 में स्वतंत्रता दिवस से भारत में विधिवत टी०वी० सेवा का आरंभ हुआ। तब रोज एक घंटे के लिए टी०वी० कार्यक्रम दिखाया जाने लगा। 1975 तक दिल्ली, मुंबई, श्रीनगर, अमृतसर, कोलकाता, मद्रास और लखनऊ में टी०वी० सेंटर खुल गए। लेकिन 1976 तक टी०वी० सेवा आकाशवाणी का हिस्सा थी। 1 अप्रैल, 1976 से इसे अलग कर दिया गया। इसे दूरदर्शन नाम दिया गया। 1984 में इसकी रजत जयंती मनाई गई।

स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दूरदर्शन की ताकत का एकसास था। वे देशभर में टेलीविजन केंद्रों का जाल बिछाना चाहती थीं। 1980 में इंदिरा गांधी ने प्रोफेसर पी०सी० जोशी की अध्यक्षता में दूरदर्शन के कार्यक्रमों की गुणवत्ता में सुधार के लिए एक समिति गठित की। जोशी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, हमारे जैसे समाज में जहाँ पुराने मूल्य टूट रहे हों और नए न बन रहे हों, वहाँ दूरदर्शन बड़ी भूमिका निभाते हुए जनतंत्र को मजबूत बना सकता है।

दूरदर्शन कार्यक्रमों की गुणवत्ता के सुधार में प्रो० पी०सी० जोशी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसने अपनी रिपोर्ट में लिखा-‘हमारे जैसे समाज में जहाँ पुराने मूल्य टूट रहे हों और नए न बन रहे हों, वहाँ दूरदर्शन बड़ी भूमिका निभाते हुए जनतंत्र को मजबूत बना सकता है।’

टेलीविजन के उद्देश्य
टेलीविजन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

  • सामाजिक परिवर्तन
  • राष्ट्रीय एकता
  • वैज्ञानिक चेतना का विकास
  • परिवार-कल्याण को प्रोत्साहन
  • कृषि-विकास
  • पर्यावरण-संरक्षण
  • सामाजिक विकास
  • खेल–संस्कृति का विकास
  • सांस्कृतिक धरोहर को प्रोत्साहन

दूरदर्शन ने देश की सूचना, शिक्षा और मनोरंजन की ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में उल्लेखनीय सेवा की है, लेकिन लंबे समय तक सरकारी नियंत्रण में रहने के कारण इसमें ताज़गी का अभाव खटकने लगा और पत्रकारिता के निष्पक्ष माध्यम के तौर पर यह अपनी जगह नहीं बना पाया। अलबत्ता मनोरंजन के एक लोकप्रिय माध्यम के तौर पर इसने अपनी एक खास जगह बना ली है।

टेलीविजन का असली विस्तार तब हुआ, जब भारत में देशी निजी चैनलों की बाढ़ आने लगी। अक्टूबर, 1993 में जी टी०वी० और स्टार टी०वी० के बीच अनुबंध हुआ। इसके बाद समाचार के क्षेत्र में भी जी न्यूज और स्टार न्यूज नामक चैनल आए और सन् 2002 में आजतक के स्वतंत्र चैनरल के रूप में आने के बाद तो जैसे समाचार चैनलों की बाढ़ ही आ गई। जहाँ पहले हमारे सार्वजनिक प्रसारक दूरदर्शक का उद्देश्य राष्ट्र-निर्माण और सामाजिक उन्नयन था, वहीं इन निजी चैनलों का मकसद व्यावसायिक लाभ कमाना रह गया। इससे जहाँ टेलीविजन समाचार को निष्पक्षता की पहचान मिली, उसमें ताजगी आई और वह पेशेवर हुआ, वहीं एक अंधी होड़ के कारण अनेक बार पत्रकारिता के मूल्यों और उसकी नैतिकता का भी हनन हुआ। इसके बावजूद आज पूरे भारत में 200 से अधिक चैनल प्रसारित हो रहे हैं और रोज नए-नए चैनलों की बाढ़ आ रही है।

सिनेमा
जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और प्रभावशाली माध्यम है-सिनेमा। हालाँकि यह जनसंचार के अन्य माध्यमों की तरह सीधे तौर पर सूचना देने के अन्य
नहीं करता, लेकिन परोक्ष रूप में सूचना, ज्ञान और संदेश देने का काम करता है। सिनेमा को मनोरंजन के एक सशक्त माध्यम के तौर पर देखा जाता रहा है। सिनेमा के आविष्कार का श्रेय थॉमस अल्वा एडिसन को जाता है और यह 1883 में मिनेटिस्कोप की खोज के साथ जुड़ा हुआ है। 1894 में फ्रांस में पहली फ़िल्म बनी ‘द अराइवल ऑफ़ ट्रेन’। सिनेमा की तकनीक में नेजी से विकास हुआ और जल्दी ही यूरोप और अमेरिका में कई अच्छी फ़िल्में बनने लगीं।
ncert-solutions-for-class-11-hindi-core-janasanchaar-maadhyam-aur-lekhan-janasanchaar-maadhyam-(187-1)
भारत में पहली मूक फ़िल्म बनाने का श्रेय दादा साहेब फ़ाल्के को जाता है। यह फ़िल्म थी 1913 में बनी-‘राजा हरिश्चंद्र’। इसके बाद के दो दशकों में कई और मूक फ़िल्में बनीं। इनके कथानक धर्म, इतिहास और लोक-गाथाओं के इर्द-गिर्द बुने जाते रहे। 1931 में पहली बोलती फिल्म बनी-‘ आलम आरा’। इसके बाद कि बोलती फ़िल्मों का दौर शुरू हुआ। आज़ादी मिलने के बाद जहाँ एक तरफ़ भारतीय सिनेमा ने देश के सामाजिक यथार्थ को गहराई से पकड़कर आवाज़ देने की कोशिश की, वहीं लोकप्रिय सिनेमा ने व्यावसायिकता का रास्ता अपनाया। एक तरफ़ पृथ्वीराज कपूर, महबूब खान, सोहराब मोदी, गुरुदत्त जैसे फ़िल्मकार थे, तो दूसरी तरफ़ सत्यजित राय जैसे फ़िल्मकार। सिनेमा जनसंचार के एक बेहतरीन और सबसे ताकतवर माध्यमों में से एक है। इसके कई और आयाम भी हैं। यह मनोरंजन के साथ-साथ समाज को बदलने का, लोगों में नई सोच विकसित करने का और अत्याधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से लोगों को सपनों की दुनिया में ले जाने का माध्यम भी है।

मौजूदा समय में भारत हर साल लगभग 800 फ़िल्मों का निर्माण करता है और दुनिया का सबसे बड़ा फ़िल्म-निर्माता देश बन गया है। यहाँ हिंदी के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं और बालियों में भी फ़िल्में बनती हैं और खूब चलती हैं।

इंटरनेट
इंटरनेट जनसंचार का सबसे नया, लेकिन तेजी से लोकप्रिय हो रहा माध्यम है। एक ऐसा माध्यम, जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविजन, किताब, सिनेमा यहाँ तक कि पुस्तकालय के सारे गुण मौजूद हैं। उसकी पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक है और उसकी रफ़्तार का कोई जवाब नहीं है। उसमें सारे माध्यमों का समागम है। इंटरनेट पर आप दुनिया के किसी भी कोने से छपनेवाले अखबार या पत्रिका में छपी सामग्री पढ़ सकते हैं। रेडियो सुन सकते हैं। सिनेमा देख सकते हैं। किताब पढ़ सकते हैं और विश्वव्यापी जाल के भीतर जमा करोड़ों पन्नों में से पलभर में अपने मतलब की सामग्री खोज सकते हैं।

यह एक अंतरक्रियात्मक माध्यम है यानी आप इसमें मूक दर्शक नहीं है। आप सवाल-जवाब, बहस-मुबाहिसों में भाग लेते हैं, आप चैट कर सकते हैं और मन हो तो अपना ब्लाग बनाकर पत्रकारिता की किसी बहस के सूत्रधार बन सकते हैं। इंटरनेट ने हमें मीडिया समागम यानी कंवर्जेस के युग में पहुँचा दिया है और संचार की नई संभावनाएँ जगा दी हैं।

हर माध्यम में कुछ गुण और कुछ अवगुण होते हैं। इंटरनेट ने जहाँ पढ़ने-लिखने वालों के लिए, शोधकर्ताओं के लिए संभावनाओं के नए कपाट खोले हैं, हमें विश्वग्राम का सदस्य बना दिया है, वहीं इसमें कुछ खामियाँ भी हैं। पहली खामी तो यही है कि इसमें लाखों अश्लील पन्ने भर दिए गए हैं, जिसका बच्चों के कोमल मन पर बुरा असर पड़ सकता है। दूसरी खामी यह है कि इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। हाल के वर्षों में इंटरनेट के दुरुपयोग की कई घटनाएँ सामने आई हैं।

जनसंचार माध्यमों का प्रभाव
आज के संचार प्रधान समाज में जनसंचार माध्यमों के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। हमारी जीवन-शैली पर संचार माध्यमों का जबरदस्त असर है। अखबार पढ़े बिना हमारी सुबह नहीं होती। जो अखबार नहीं पढ़ते, वे रोजमर्रा की खबरों के लिए रेडियो या टी०वी० पर निर्भर रहते हैं। हमारी महानगरीय युवा पीढ़ी समाचारों और सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इंटरनेट का उपयोग करने लगी है। खरीद-फ़राख्त के हमारे फ़ैसलों तक पर विज्ञापनों का असर साफ़ देखा जा सकता है। यहाँ तक कि शादी-ब्याह के लिए भी लोगों की अखबार या इंटरनेट के मैट्रिमोनियल पर निर्भरता बढ़ने लगी है। टिकट बुक कराने और टेलीफ़ोन का बिल जमा कराने से लेकर सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ा है। इसी तरह फुरसत के क्षणों में टी०वी०-सिनेमा पर दिखाए जाने वाले धारावाहिकों और फ़िल्मों के जरिये हम अपना मनोरंजन करते हैं।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि जनसंचार माध्यमों ने जहाँ एक ओर लोगों को सचेत और जागरूक बनाने में अहम भूमिका निभाई है, वहीं उसके नकारात्मक प्रभावों से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यह भी स्पष्ट है कि जनसंचार माध्यमों के बिना आज सामाजिक जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। ऐसे में यह जरूरी है कि हम जनसंचार माध्यमों से प्रसारित और प्रकाशित सामग्री को निष्क्रिय तरीके से ग्रहण करने के बजाय उसे सक्रिय तरीके से सोच-विचार करके और आलोचनात्मक विश्लेषण के बाद ही स्वीकार करें। एक जागरूक पाठक, दर्शक और श्रोता के बतौर हमें अपनी आँखें, कान और दिमाग हमेशा खुले रखने चाहिए। V

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

प्रश्न 1:
इस पाठ में विभिन्न लोक-माध्यमों की चर्चा हुई है। आप पता लगाइए कि वे कौन-कौन से क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। अपने क्षेत्र में प्रचलित किसी लोकनाट्य या लोकमाध्यम के किसी प्रसंग के बारे में जानकारी हासिल करके उसकी प्रस्तुति के खास अंदाज़ के बारे में भी लिखिए।
उत्तर –
इस पाठ में जिन लोकमाध्यमों की चर्चा हुई है, वे हैं-लोक-नृत्य, लोक-संगीत और लोक-नाट्य। ये देश के विभिन्न भागों में विविध नाट्य रूपों-कथावाचन, बाउल, सांग, रागिनी तमाशा, लावनी, नौटंकी, जात्रा, गंगा-गौरी, यक्ष-गान, कठपुतली लोक-नाटक आदि में प्रचलित हैं। इनमें स्वाँग उत्तरी भारत, नौटंकी उत्तर प्रदेश, बिहार, रागिनी हरियाणा तथा यक्ष-गान कर्नाटक क्षेत्रों से संबंधित हैं। हमारे क्षेत्र में नौटंकी का प्रयोग खूब होता है। यह ग्रामीण नाट्य-शैली का एक रूप है। इसमें प्राय: रात्रि के समय मंच पर किसी लोक-कथा या कहानी को नाट्य-शैली में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें स्त्री-पात्रों की भूमिका भी प्राय: पुरुष-पात्र करते हैं। हारमोनियम, नगाड़ा, ढोलक आदि वाद्य-यंत्रों के साथ यह संगीतमय प्रस्तुति लोक-लुभावन होती है।

प्रश्न 2:
आजादी के बाद भी हमारे देश के सामने बहुत सारी चुनौतियाँ हैं। आप समाचार-पत्रों को उनके प्रति किस हद तक संवेदनशील पाते हैं?
उत्तर –
आजादी के बाद भी हमारे देश में बहुत-सी चुनौतियाँ हैं। ये चुनौतियाँ हैं :

  1. निर्धनता से निपटने की चुनौती।
  2. बेरोजगारी से निपटने की चुनौती।
  3. भ्रष्टाचार की चुनौती।
  4. देश की एकता बनाए रखने की चुनौती।
  5. आतंकवाद का मुकाबला करने की चुनौती।
  6. सांप्रदायिकता से निपटने की चुनौती।

हम समाचार-पत्रों को इन चुनौतियों के प्रति काफी हद तक संवेदनशील पाते हैं। वे अपने दायित्व का निर्वहन, इनसे पीडित लोगों की आवाज सरकार तक पहुंचाकर कर रहे हैं, जिससे सरकार और अन्य स्वयंसेवी संस्थाएँ इनको हल करने के लिए आगे आती हैं। हाँ, छोटे समाचार-पत्र अपनी सीमा निश्चित होने के कारण कई बार दबाव में आकर उतने संवेदनशील नहीं हो पाते हैं।

प्रश्न 3:
टी०वी० के निजी चैनल अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए कौन-कौन से तरीके अपनाते हैं? टी०वी० के कार्यक्रमों से उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर –
टी०वी० के निजी चैनल अपनी व्यावसायिक सफलता के लिए लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने वाले कार्यक्रम दिखाते हैं। लोग ऐसे कार्यक्रमों की ओर आकर्षित होते हैं। ये चैनल कई बार लोगों की आस्था को भी निशाना बनाने से नहीं चूकते। इन कार्यक्रमों को टुकड़ों में दिखाते हुए ऐसे मोड़ पर समाप्त करते हैं, जिससे लोगों की उत्सुकता अगले कार्यक्रम के लिए बनी रहे। गत दिनों जम्मू-कश्मीर में आई बाढ़ की खबरों तथा उनमें फैंसे नागरिकों को बचाने संबंधी खबरों को कई दिनों तक टी०वी० पर दिखाया जाता रहा। इसी प्रकार अमेठी (उत्तर प्रदेश) के भूपति भवन पर अधिकार को लेकर संजय सिंह (राज्य सभा सांसद) और उनकी पहली पत्नी गरिमा सिंह, पुत्र अनंत विक्रम सिंह के मध्य हुए झगड़े एवं विवाद को कई बार दिखाया गया।

प्रश्न 4:
इंटरनेट पत्रकारिता ने दुनिया को किस प्रकार समेट लिया है? उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
इंटरनेट पत्रकारिता के कारण अब दूरियाँ सिमटकर रह गई हैं; इंटरनेट की पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक हो गई है। इसकी रफ्तार बहुत तेज है। इसका असर पत्रकारिता पर भी हुआ है। इसकी मदद से स्टूडियो में बैठा संचालक किसी भी मुद्दे पर देश-विदेश में बैठे व्यक्ति से बातें कर लेता है और करा देता है। इसकी मदद से गोष्ठियाँ, वार्ताएँ आयोजित की जाती हैं। इससे विश्व की किसी भी घटना की जानकारी अब आसान हो गई है।

प्रश्न 5:
किन्हीं दो हिंदी पत्रिकाओं के समान अंकों को (समान अवधि के) पढ़िए और उनमें निम्न बिंदुओं के आधार पर तुलना कीजिए :

  • आवरण पृष्ठ
  • अंदर के पृष्ठों की साज-सज्जा
  • सूचनाओं का क्रम
  • भाषा–शैली

उत्तर –
हम ‘सरिता’ और ‘हंडिया टुडे’ पत्रिकाओं के समान अंकों को लेते हैं और तुलना करते हैं :
आवरण पृष्ठ-‘सरिता’ पत्रिका का आवरण पृष्ठ अधिक रंग-बिरंगा. चित्रमय, आकर्षक और सुंदर है, जबकि ‘इंडिया टुडे’ का आवरण पृष्ठ अच्छा है, पर उतना आकर्षक नहीं।
अंदर के पृष्ठों की साज-सज्जा-‘सरिता’ के पृष्ठों की साज-सज्जा पर अधिक ध्यान दिया गया है, जबकि ‘इंडिया टुडे’ के पृष्ठों पर कम। ‘सरिता’ के पृष्ठों पर चित्र अधिक हैं, जबकि ‘इंडिया टुडे’ के पृष्ठों पर कम।
सूचनाओं का क्रम-‘सरिता’ में सूचनाएँ किसी क्षेत्र-विशेष से संबंधित न होकर विविध क्षेत्रों से संबंधित हैं, जबकि ‘इंडिया टुडे” में मुख्यत: राजनीतिक खबरें एवं सूचनाएँ हैं।
भाषा-शैली– सरिता’ की भाषा सरल तथा बोधगम्य है, जबकि ‘इंडिया टुडे’ की भाषा-शैली अधिक उच्च-स्तरीय है।

प्रश्न 6:
निजी चैनलों पर सरकारी नियंत्रण होना चाहिए अथवा नहीं? पक्ष-विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर –
निजी चैनलों पर नियंत्रण होने से उनका काम करने का दायरा एवं ढंग प्रभावित होगा। इससे उनकी निष्पक्षता पर भी असर पड़ेगा। उन्हें सरकारी दबाव में काम करना होगा, अत: हमारे विचार में निजी चैनलों पर सरकारी नियंत्रण नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 7:
नीचे कुछ कथन दिए गए हैं। उनके सामने ✓ या × का निशान लगाते हुए उसकी पुष्टि के लिए उदाहरण भी दीजिए :

(क) संचार माध्यम केवल मनोरंजन के साधन हैं। ×
(ख) केवल तकनीकी विकास के कारण संचार संभव हुआ, इससे पहले संचार संभव नहीं था। ×
(ग) समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ इतने सशक्त संचार माध्यम हैं कि वे राष्ट्र का स्वरूप बदल सकते हैं । ✓
(घ) टेलीविजन सबसे प्रभावशाली एवं सशक्त संचार माध्यम है। ✓
(ड) इंटरनेट सभी संचार माध्यमों का मिला-जुला रूप या समागम है। ✓
(च) कई बार संचार माध्यमों का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है। ✓

उत्तर –

(क) उदाहरण-संचार माध्यमों से हमें तरह-तरह का ज्ञान प्राप्त होता है, अत: ये केवल मनोरंजन के साधन नहीं हैं।
(ख) उदाहरण-संचार दो व्यक्तियों के बीच यहाँ तक अकेले भी होता है। इसके लिए तकनीकी विकास की आवश्यकता अनिवार्य नहीं थी। तकनीकी विकास बाद में सहायक बने हैं।
(ग) उदाहरण-समाचार-पत्र-पत्रिकाएँ घोटाले, भ्रष्टाचार, अनैतिकता, सांप्रदायिकता आदि के विरुद्ध आवाज उठाकर राज्ट्र का स्वरूप बदल सकते हैं।
(घ) उदाहरण-टेलीविजन आवाज और चित्र का संगम होने के कारण अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण, युवा-वृद्ध सभी की पसंद बन गया है।
(ड) उदाहरण-इंटरनेट पर समाचार-पठन, गीत-संगीत, फ़िल्म, बैठक, गोष्ठी आदि देखा-सुना जा सकता है।
(च) उदाहरण-इंटरनेट और टेलीविजन अपने कार्यक्रमों से समाज में अश्लीलता परोसने का काम कर रहे हैं।

पाठ पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1:
संचार जीवन की निशानी है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
मनुष्य सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के कारण वह संचार करता है। दैनिक जीवन में संचार के बिना हम जीवित नहीं रह सकते। मनुष्य जब तक जीवित है, वह संचार करता रहता है। संचार खत्म होने का मतलब है-मृत्यु। संचार ही मनुष्य को एक-दूसरे से जोड़ता है। अत: कहा जा सकता है कि संचार जीवन की निशानी है।

प्रश्न 2:
संचार के साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर –
टेलीफोन, इंटरनेट, समाचार-पत्र, फैक्स, रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा आदि।

प्रश्न 3:
दुनिया एक गाँव में बदल गई है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
आज संचार के अनेक साधन विकसित हो गए हैं जिसके कारण भौतिक दूरियाँ कम हो रही हैं। इन साधनों के कारण मनुष्य सांस्कृतिक व मानसिक रूप से भी एक-दूसरे के करीब आ रहा है। जनसंचार के माध्यमों से कुछ ही क्षण में दुनिया के हर कोने की खबर मिल जाती है। इसी कारण आज दुनिया एक गाँव जैसी लगने लगी है।

प्रश्न 4:
संचार किसे कहते हैं?
उत्तर –
‘संचार’ शब्द की उत्पत्ति ‘चर’ धातु से हुई है, जिसका अर्थ है-चलना या एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचना। सूचनाओं, विचारों और भावनाओं को लिखित, मौखिक या दृश्य-श्रव्य माध्यमों के जरिए सफलतापूर्वक एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना ही संचार है।

प्रश्न 5:
संचार की प्रक्रिया के तत्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर –
संचार की प्रक्रिया के तत्व निम्नलिखित हैं-

  1. स्त्रोत
  2. एनकोडिग
  3. भाध्यम
  4. प्राप्तकर्ता

प्रश्न 6:
सफल संचार के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर –
सफल संचार के लिए भाषा के कोड का ज्ञान होना जरूरी है।

प्रश्न 7:
डीकोडिंग का अर्थ बताइए।
उत्तर –
इसका अर्थ है-प्राप्त संदेश में निहित अर्थ को समझने की कोशिश। यह एनकोडिंग से उलटी प्रकिया है। इसमें संदेश प्राप्तकर्ता प्राप्त चिहनों व संकेतों के अर्थ निकालता है।

प्रश्न 8:
फीडबैक किसे कहते हैं?
उत्तर –
संचार प्रक्रिया में संदेश प्राप्तकर्ता द्वारा दर्शाई गई प्रतिक्रिया को फीडबैक कहते हैं। यह सकारात्मक या नकारात्मक दोनों ही हो सकती है।

प्रश्न 9:
शोर क्या है?
उत्तर –
संचार प्रक्रिया में आने वाली बाधाओं को शोर कहते हैं। यह शोर मानसिक से लेकर तकनीकी और भौतिक हो सकता है। इसके कारण संदेश अपने मूल रूप में प्राप्तकर्ता तक नहीं पहुँच पाता।

प्रश्न 10:
संचार के प्रकार बताइए।
उत्तर –
संचार के अनेक प्रकार हैं-सांकेतिक संचार, मौखिक संचार. अमौखिक संचार, अंत: वैयक्तिक संचार, अंतर वैयक्तिक संचार, समूह संचार व जनसंचारा।

प्रश्न 11:
अंत: वैयक्तिक संचार किसे कहते हैं?
उत्तर –
वह संचार जिसमें संचारक और प्राप्तकर्ता एक हि व्यक्ति होता है, वह अंत: वैयक्तिक संचार कहलाता है। पूजा करना, ध्यान लगाना आदि इसके रूप है।

प्रश्न 12:
अंतर वैयक्तिक संचार का क्या महत्त्व है?
उत्तर –
जब दो व्यक्ति आपस में और आमने-सामने संचार करते हैं तो इसे अंतर वैयक्तिक संचार कहते हैं। इसमें फीडबैक तत्काल मिलता है। इस तरीके से संबंध विकसित होते हैं। यह रूप पारिवारिक तथा सामाजिक रिश्तों की बुनियाद है। व्यक्तिगत जीवन में सफलता के लिए हमारा अंतर वैयक्तिक संचार का कौशल उन्नत और प्रभावी होना चाहिए।

प्रश्न 13:
समूह संचार का उपयोग कहाँ होता है?
उत्तर –
समूह संचार का उपयोग समाज और देश के सामने उपस्थित समस्याओं को बातचीत और बहस के जरिए हल करने के लिए होता है।

प्रश्न 14:
जनसंचार किसे कहते हैं?
उत्तर –
जब संचार किसी तकनीकी या यांत्रिक माध्यम के जरिए समाज के विशाल वर्ग से संवाद करने की कोशिश की जाती है तो उसे जनसंचार कहते हैं। इसमें एक संदेश की यांत्रिक माध्यम के जरिए बहुगुणित किया जाता है ताकि उसे अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुँचाया जा सके।

प्रश्न 15:
जनंसचार की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर –
जनसंचार की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  1. जनसंचार माध्यमों के जरिए प्रकाशित या प्रसारित संदेशों की प्रकृति सार्वजनिक होती है।
  2. इसमें संचारक और प्राप्तकर्ता के बीच प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता।
  3. इस माध्यम में अनेक द्वारपाल होते हैं जो इन माध्यमों से प्रकाशित/प्रसारित होने वाली सामग्री को नियंत्रित तथा निर्धरित करते हैं।

प्रश्न 16:
जनसंचार माध्यमों में दवारपालों की भूमिका क्या है?
उत्तर –
जनसंचार माध्यमों में द्वारपालों की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह उनकी जिम्मेदारी है कि सार्वजनिक हित, पत्रकारिता के सिद्धांतों, मूल्यों और आचार संहिता के अनुसार सामग्री को संपादित करें तथा उसके बाद ही उनके प्रसारण या प्रकाशन की इजाजत दें।

प्रश्न 17:
संचार के कार्य बताइए।
उत्तर –
संचार के निम्नलिखित कार्य हैं-

  1. संचार से कुछ हासिल किया जाता है।
  2. यह किसी के व्यवहार को नियंत्रित करता है।
  3. यह सूचना देने या लेने का कार्य करता है।
  4. यह मानवीय भावनाओं की अभिव्यक्ति एक खास तरह से प्रस्तुत करता है।
  5. यह प्रतिक्रिया को व्यक्त करता है।

प्रश्न 18:
जनसंचार के कौन-कौन से कार्य हैं? स्पष्ट करें।
उत्तर –
जनसंचार के निम्नलिखित कार्य हैं-

  1. सूचना देना-जनसंचार माध्यमों का प्रमुख कार्य सूचना देना है। ये दुनिया भर में सूचनाएँ प्रसारित करते हैं।
  2. मनोरंजन-जनसंचार माध्यम-सिनेमा, रेडियो, टी.वी. आदि मनोरंजन के भी प्रमुख साधन हैं।
  3. जागरूकता-जनसंचार माध्यम लोगों को जागरूक बनाते हैं। वे जनता को शिक्षित करते हैं।”
  4. निगरानी-जनसंचार माध्यम सरकार और संस्थाओं के कामकाज पर निगरानी रखते हैं।
  5. विचार-विमर्श के मंच-ये माध्यम लोकतंत्र में विभिन्न विचारों की अभिव्यक्ति का मंच उपलब्ध कराते हैं।
    इनके जरिए विभिन्न विचार लोगों के सामने पहुँचते हैं।

प्रश्न 19:
भारत का पहला समाचारवाचक किसे माना जाता है?
उत्तर –
देवर्षि नारद।

प्रश्न 20:
भारत में जनसंचार का इतिहास किस काल में मिल सकता है?
उत्तर –
पौराणिक काल में।

प्रश्न 21:
प्राचीन काल में संदेश किस तरह दिए जाते थे?
उत्तर –
शिलालेखों पर लेख अंकित करके।

प्रश्न 22:
भारतीय संचार के लोक माध्यम बताइए।
उत्तर –
भीमवेटका के गुफाचित्र, कठपुतली, लोकनाटक आदि।

प्रश्न 23:
लोकनाटकों के प्रकार बताइए।
उत्तर –
कथावाचन, बाउल, सांग, रागनी, तमाशा, लावनी, नौटंकी, जात्रा, गंगा-गौरी, यक्षगान।

प्रश्न 24:
जनसंचार के आधुनिक माध्यम कौन-कौन से हैं?
उत्तर –
रेडियो, टी.वी. समाचार-पत्र, सिनेमा इंटरनेट आदि।

समाचार-पत्र-पत्रिकाएँ
प्रश्न 25:

जनसंचार में प्रिंट मीडिया का क्या महत्व है?
उत्तर –
जनसंचार की सबसे मजबूत कड़ी प्रिंट मीड़िया है। यह माध्यम वाणी को शब्दों के रूप में रिकार्ड करता है जो स्थायी होते हैं।

प्रश्न 26:
पत्रकारिता के पहलुओं के बारे में बताइए।
उत्तर –
पत्रकारिता के तीन पहलू हैं-पहला-समाचारों को संकलित करना, दूसरा उन्हें संपादित कर छपने लायक बनाना तथा तीसरा उसे पत्र या पत्रिका के रूप में छापकर पाटक तक पहुँचाना।

प्रश्न 27:
भारत में छपने वाला पहला अखबार कौन-सा था?
उत्तर –
बगाल गजट ( 1780)।

प्रश्न 28:
हिदी का पहला साप्ताहिक-पत्र कौन-सा था?
उत्तर –
पं० जुगल किशोर शुक्ल द्वारा संपादित उदत मातंट्ट (1876-80);

प्रश्न 29:
हिंदी भाषा के प्रारंभिक दौर में किन विदवानों ने योगदान दिया।
उत्तर –
भारतेंदु हरिश्चंद्र, महात्मा गाँधी, तिलक. मदनमंहिन मारुवीय, गणेश शंकर विद्यार्थी, माखनलाल चतुर्वेदी, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा बालमुकुंद गुप्त आदि।

प्रश्न 30:
स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान छपने वाले प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं के नाम बताइए।
उत्तर –
केसरी, हिंदुस्तान, सरस्वती, हंस, कर्मवीर, आज, प्रताप, प्रदीप, विशाल भारत आदि।

प्रश्न 31:
भारत की आजादी से पूर्व प्:कारिता का क्या लक्ष्य था?
उत्तर –
स्वाधीनत्वा कीं प्राप्ति।

प्रश्न 32:
आजादी के बाद पत्रकारिता के चरित्र में क्या परिवर्तन आया?
उत्तर –
पत्रकारिता विशुद्ध व्यवसाय बन गया।

प्रश्न 33:
आजादी के बाद के प्रमुख पत्रकारों के नाम बताइए।
उत्तर –
अज्ञेय, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती, राजेंद्र माथुर, प्रमाण जोशी, सुरेंद्र प्रताप सिंह आदि।

प्रश्न 34:
किन्ही दो प्रमुख हिंदी अखबारों के नाम बताइए।
उत्तर –
जनसत्ता, पंजाब केसरी!

रेडियो
प्रश्न 35:
रेडियो का आविष्कार कब हुआ?
उत्तर –
1895 में इटली के इंजीनियर जी. माकनी द्वारा।

प्रश्न 36:
विश्व का पहला रेडियो स्टेशन कब व कहाँ खुला?
उत्तर –
1892 में अमेरिकी शहर पिट्सबर्ग, न्यूयार्क व शिकागो में विश्व के शुरुआती रेडियो स्टेशन खुले।

प्रश्न 37:
ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना कब हुई?
उत्तर –
1936 ई. में। 192 = हिंदी (केंद्रिक)-XI

प्रश्न 38:
रेडियो का माध्यम क्या है?
उत्तर – ध्वनि।

प्रश्न 39:
एफ. एम. रेडियो की शुरुआत कब हुई?
उत्तर –
1993 में।

प्रश्न 40:
रेडियो की पहुँच कितने प्रतिशत आबादी तक है?
उत्तर –
96 प्रतिशत।

प्रश्न 41:
गाँधी जी ने रेडियो को अदभुत शक्ति क्यों कहा था?
उत्तर –
रेडियो की तात्कालिकता, घनिष्ठता व प्रभाव के कारण गाँधी जी ने इसे अद्भुत शक्ति कहा था।

टेलीविजन
प्रश्न 42:
टेलीविजन में किन-किन माध्यमों का मिलन होता है?
उत्तर –
शब्द, ध्वनि व दृश्य।

प्रश्न 43:
विश्व में टेलीविजन कार्यक्रम कब शुरू हुए?
उत्तर –
1927 ई. में, अमेरिका।

प्रश्न 44:
भारत में टी. वी. की शुरूआत कब हुई तथा इसका उददेश्य क्या था?
उत्तर –
भारत में टी.वी. की शुरूआत 15 सितंबर, 1959 को हुई। इसका उद्देश्य शिक्षा और सामुदायिक विकास को प्रोत्साहित करना था।

प्रश्न 45:
दूरदर्शन आकाशवाणी से कब अलग हुआ?
उत्तर –
1 अप्रैल, 1976 से।

प्रश्न 46:
पी. सी. जोशी समिति ने दूरदर्शन के कौन-कौन से उददेश्य बताए?
उत्तर –
पी. सी. जोशी समिति का गठन 1980 में इंदिरा गाँधी ने दूरदर्शन के कार्यक्रमों की गुणवत्ता को सुधारने के लिए किया था। इस कमेटी ने दूरदर्शन के निम्नलिखित उद्देश्य बताए

  1. सामाजिक परिवर्तन
  2. राष्ट्रीय एकता
  3. वैज्ञानिक चेतना का विकास
  4. परिवार कल्याण
  5. कृषि विकास
  6. पर्यावरण संरक्षण
  7. सामाजिक विकास

प्रश्न 47:
आधुनिक टी.वी. चैनलों के नाम बताइए।
उत्तर –
सी.एन.एन. बी.बी.सी., आज तक, जी न्यूज आदि।

प्रश्न 48:
अत्यधिक चैनलों के आने से क्या परिणाम हुआ?
उत्तर –
अत्यधिक चैनलों के आने से टेलीविजन समाचार को निष्पक्षता व ताजगी मिली, परंतु पत्रकारिता मूल्यों व नैतिकता का पतन हुआ।

सिनेमा
प्रश्न 49:
सिनेमा का आविष्कार किसने किया?
उत्तर –
सिनेमा का आविष्कार थॉमस अल्वा एडिसन ने 1883 में किथा।

प्रश्न 50:
विश्व की सबसे पहली फिल्म कौन-सी थी?
उत्तर –
द अराइवल ऑफ ट्रेन (1894, फ्रांस)।

प्रश्न 51:
भारत में पहली मूक फिल्म किसने बनाई?
उत्तर –
भारत में पहली मूक फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ (1913) दादा साहब फाल्के ने बनाई।

प्रश्न 52:
भारत की पहली बोलती फिल्म कौन-सी थी?
उत्तर –
आलम आरा (1931)।

प्रश्न 53:
हिंदी के प्रसिदध फिल्मकार बताइए।
उत्तर –
पृथ्वीराज कपूर, महबूब खान, गुरुदत्त, सत्यजीत राय आदि।

प्रश्न 54:
सत्तर के दशक तक भारतीय सिनेमा की विचारधारा। कैसी थी?
उत्तर –
प्रेम, फंतासी व कभी न हारने वाले सुपर नैचुरल हीरो की परिकल्पना।

प्रश्न 55:
समानांतर सिनेमा वक्या था?
उत्तर –
आठवें दशक में लोगों में जागरूकता फैलाने व यथार्थपरक जीवन को व्यक्त करने वाले सिनेमा को समानांतर सिनेमा कहा जाता था।

प्रश्न 56:
समानांतर सिनेमा के प्रमुख फिल्मकार कौन-से थे?
उत्तर –
सत्यजित राय, श्याम बेनेगल, मृणाल सेन, एम. एस. संधू आदि।

प्रश्न 57:
नवें दशक से हिंदी फिल्मों में कैसा स्वरूप ग्रहण किया?
उत्तर –
नवें दशक से हिंदी फिल्मों का केंद्र रोमांस, हिंसा, सेक्स व एक्शन हो गया। मुनाफा कमाना फिल्मकार का मुख्य उद्देश्य बन गया है।

प्रश्न 58:
इंटरनेट क्या है?
उत्तर –
यह एक ऐसा माध्यम है जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टी.वी., सिनेमा आदि सभी के गुण विद्यमान हैं।

प्रश्न 59:
इंटरनेट से लाभ व हानियाँ बताइए।
उत्तर –
इंटरनेट से लाभ-

  1. इससे विश्वग्राम की अवधारणा मजबूत हुई है।
  2. इंटरनेट से संचार की नई संभावनाएँ जगी हैं।
  3. इससे शोधकर्ताओं व पढ़ने वालों के लिए अपार संसाधन उपलब्ध हुए हैं।

इंटरनेट से हानियाँ-

  1. इससे अश्लीलता को बढ़ावा मिला है।
  2. इसका दुरुपयोग किया जा रहा है।
  3. बच्चों व युवाओं में अकेलापन बढ़ता जा रहा है।

जनसंचार माध्यमों के प्रभाव
प्रश्न 60:
जनसंचार माध्यमों का आम जीवन पर क्या प्रभाव है?
उत्तर –
जनसंचार माध्यमों का आम जीवन पर बहुत प्रभाव है। इनसे सेहत, अध्यात्म, दैनिक जीवन की जरूरतें आदि पूरी होने लगी हैं। ये हमारी जीवन शैली को प्रभावित कर रहे हैं।

प्रश्न 61:
लोकतंत्र में जनसंचार माध्यमों का प्रभाव बताइए।
उत्तर –
लोकतंत्र में जनसंचार माध्यमों ने जीवन को गतिशील व पारदर्शी बनाया है। इनके माध्यम से सूचनाओं व जानकारियों का आदान-प्रदान किया जाता है। इसके माध्यम से विभिन्न मुद्दों पर बहस या विचार-विमर्श होती है, जो सरकार की कार्य शैली पर कुछ हद तक अंकुश लगाने का काम करता है।

प्रश्न 62:
जनसंचार के दुष्प्रभाव बताइए।
उत्तर –

  1. जनसंचार के माध्यम खासतौर पर टी.वी. व सिनेमा ने लोगों को काल्पनिक दुनिया’ की सैर कराई है। फलस्वरूप लोग आम जीवन से दूर हो जाते हैं तथा व्यसनी हो जाते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि जनसंचार के माध्यम पलायनवादी प्रवृत्ति को बढ़ावा देते हैं।
  2. ये समाज में अश्लीलता व असामाजिक व्यवहार को बढ़ावा देते हैं।
  3. समाज के कमजोर वर्गों को कम महत्त्व दिया जाता है।
  4. अनावश्यक मुद्दों को उछाला जाता है।

NCERT SolutionsHindiEnglishHumanitiesCommerceScience

Primary Sidebar

NCERT Exemplar problems With Solutions CBSE Previous Year Questions with Solutoins CBSE Sample Papers

Recent Posts

  • Structure of Cell – Plant and Animal
  • Heating Effect of Current
  • Commercial Unit of Electrical Energy
  • Morphology of a Cell | Cells – Size, Shape and Count
  • Prokaryotic and Eukaryotic Cells
  • Electric Power – Definition, Units and Formula
  • Instruments for Studying Cells
  • Discovery of Cells
  • Domestic Electric Circuits : Series or Parallel
  • What are Living Organisms Made Up of?
  • Resistors in Series and Parallel Combinations
  • Beekeeping – Definition, Equipment, & Facts
  • Resistivity of Materials
  • Factors Affecting the Resistance of a Conductor
  • Fish Production and Fish Farming

Footer

Maths NCERT Solutions

NCERT Solutions for Class 12 Maths
NCERT Solutions for Class 11 Maths
NCERT Solutions for Class 10 Maths
NCERT Solutions for Class 9 Maths
NCERT Solutions for Class 8 Maths
NCERT Solutions for Class 7 Maths
NCERT Solutions for Class 6 Maths

SCIENCE NCERT SOLUTIONS

NCERT Solutions for Class 12 Physics
NCERT Solutions for Class 12 Chemistry
NCERT Solutions for Class 11 Physics
NCERT Solutions for Class 11 Chemistry
NCERT Solutions for Class 10 Science
NCERT Solutions for Class 9 Science
NCERT Solutions for Class 7 Science
MCQ Questions NCERT Solutions
CBSE Sample Papers
NCERT Exemplar Solutions LCM and GCF Calculator
TS Grewal Accountancy Class 12 Solutions
TS Grewal Accountancy Class 11 Solutions