मदर टेरेसा संकेत बिंदु:
- जन्म व शिक्षा
- नन बनना
- मदर टेरेसा भारत में
- मानव सेवा व निधन।
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मदर टेरेसा पर अनुच्छेद लेखन | Paragraph on Mother Teresa in Hindi
मदर टेरेसा पर निबंध – Essay on Mother Teresa in Hindi
मदर टेरेसा (26 अगस्त 1910 – 5 सितम्बर 1997) जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से नवाज़ा गया है, का जन्म आन्येज़े गोंजा बोयाजियू के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य (वर्त्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने 1948 में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। इन्होंने 1950 में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की। ४५ सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की इन्होंने मदद की और साथ ही मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया।
1970 तक वे गरीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्द हो गयीं, माल्कोम मुगेरिज के कई वृत्तचित्र और पुस्तक जैसे समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड में इसका उल्लेख किया गया। इन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया। मदर टेरेसा के जीवनकाल में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का कार्य लगातार विस्तृत होता रहा और उनकी मृत्यु के समय तक यह 123 देशों में 610 मिशन नियंत्रित कर रही थीं। इसमें एचआईवी/एड्स, कुष्ठ और तपेदिक के रोगियों के लिए धर्मशालाएं/ घर शामिल थे और साथ ही सूप, रसोई, बच्चों और परिवार के लिए परामर्श कार्यक्रम, अनाथालय और विद्यालय भी थे। मदर टेरसा की मृत्यु के बाद इन्हें पोप जॉन पॉल द्वितीय ने धन्य घोषित किया और इन्हें कोलकाता की धन्य की उपाधि प्रदान की।
दिल के दौरे के कारण 5 सितंबर 1997 के दिन मदर टैरेसा की मृत्यु हुई थी।
प्रेम मनुष्य को ईश्वर के द्वारा दिया हुआ वह वरदान है जिसके सहारे उसके कठिन-से-कठिन समय को भी बिताने में परेशानी नहीं होती। प्रेम भावना मानव को सच्चा मानव बताती है। मानवता के प्रति प्रेम को किसी देश, जाति या धर्म की संकुचित परिधि में नहीं बाँधा जा सकता। विश्व में मानव की नि:स्वार्थ भाव से सेवा करने वाली अनेक विभूतियों में से मदर टेरेसा सर्वोच्च थीं। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को यूगोस्लाविया के स्कोपजे नामक एक छोटे-से नगर में हुआ था। बारह वर्ष की आयु में अपने जीवन का उद्देश्य निश्चित कर अठारह वर्ष की आयु में नन बन गई।
इसके लिए ये आयरलैंड के लोरेटो ननों के केंद्र में सम्मिलित हो गई। वहाँ से उन्हें भारत जाने का संदेश मिला। सन् 1929 में वे एग्नेस लोरेटो एटेली स्कूल में अध्यापिका बनने कोलकाता पहुँची। आरंभ में अध्यापिका के रूप में सेवा कार्य किया। अपनी योग्यता, कार्यनिष्ठा तथा सेवाभाव के कारण प्रधानाध्यापिका बन गईं।
10 दिसंबर, 1946 को रेल से ये दार्जिलिंग जा रही थीं तो इन्हें भीतर से पुकार पर पुकार सुनाई पड़ रही थी। इन्हें लगा कि स्कूल छोड़कर गरीबों के बीच रहकर उनकी सेवा करनी होगी। इन्होंने स्कूल छोड़कर सन् 1950 में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की। ये दो पतली नीली किनारी वाली सफेद साड़ियाँ लेकर पीड़ित मानवता की सेवा के क्षेत्र में जुट गई। सन् 1948 में इन्होंने कोलकाता में झुग्गी-झोंपड़ी में रहने वालों के लिए स्कूल खोला तथा असहाय लोगों के लिए काली मंदिर के पास ‘निर्मल हृदय’ नामक धर्मशाला की स्थापना की।
मदर टेरेसा अत्यंत सहनशील और असाधारण करुणामयी थीं। रोगियों, वृद्धों, भूखे, नंगे गरीबों के प्रति इनके मन में असीम ममता थी। इन्होंने अपना सारा जीवन पीड़ितों की सेवा में समर्पित कर दिया। पीड़ित मानवता की तन-मन से सेवा करने वाली मदर टेरेसा सितंबर, 1997 को यह संसार छोड़कर हमेशा के लिए चली गईं।