साँच बराबर तप नहीं संकेत बिंदु:
- सत्य और सफलता का संबंध
- सत्य और इतिहास .सत्य का महत्त्व।
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साँच बराबर तप नहीं पर निबंध | Essay on Sanch Barabar Tap Nahi in Hindi
संस्कृत की एक प्रसिद्ध उक्ति है- ‘सत्येन धारयते जगत’ अर्थात् सत्य ही जगत को धारण करता है। व्यवहार में हम देखते हैं कि यदि कोई व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र बार-बार असत्य का सहारा लेता है तो वह अंततः अवनति को ही प्राप्त करता है; उसकी साख गिर जाती है और वह सार्वजनिक अवमानना का पात्र बनता है। असत्यवादी व्यक्ति यदि कभी-कभार सत्य-वचन भी कहे तो लोग उस पर विश्वास नहीं कर पाते।
संसार के सभी धर्मोपदेशक और महापुरुष सत्य का गुणगान करते आए हैं। हमारे पौराणिक साहित्य में राजा हरिश्चंद्र की कथा आई है जिन्होंने सत्य की रक्षा के लिए पत्नी, पुत्र और स्वयं को भी बेचने में संकोच नहीं किया था। महाभारत में सत्यवादी युधिष्ठिर के पुण्य प्रताप का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि उनका रथ पृथ्वी का स्पर्श नहीं करता था। महात्मा गाँधी ने सत्य पर जोर दिया। सत्य को एक महान तप माना गया है। जिस प्रकार तपस्वी को महान कष्ट झेलने पड़ते हैं, उसी प्रकार एक सत्यवादी भी विभिन्न शारीरिक-मानसिक कष्टों को झेलता है। झूठ एक बड़ा पाप है।
संभव है कि इससे क्षणिक या तात्कालिक लाभ मिल जाएँ परंतु इसका परिणाम भयानक होता है। सत्यवादी व्यक्ति किसी अन्य प्रकार के साधन के बिना भी लोक में पूज्य और परलोक में मोक्ष का अधिकारी होता है, क्योंकि :
साँच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदय साँच है, ताके हिरदय आप॥