करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान संकेत बिंदु:
- अभ्यास का महत्व
- उदाहरण
- अभ्यास कैसे करें
- अभ्यास और सफलताएँ
साथ ही, कक्षा 1 से 10 तक के छात्र उदाहरणों के साथ इस पृष्ठ से विभिन्न हिंदी निबंध विषय पा सकते हैं।
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान पर निबंध | Practice Makes us Perfect Essay In Hindi
किसी भी कार्य में निपुण होने के लिए निरंतर अभ्यास करते रहने की आवश्यकता होती है। इसी से सफलता मिलती है। जीवन का कोई भी क्षेत्र क्यों न हो, अभ्यास के बिना मनुष्य सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। ज्ञान प्राप्त करना हो अथवा किसी कार्य में प्रवीण होना हो इसका एक ही मार्ग है-अभ्यास।
गुरु द्रोणाचार्य राजगुरु थे। वे कौरवों और पांडवों के शिक्षक थे। उनके पास एकलव्य धनुर्विद्या सीखने आया। उन्होंने उसे सिखाने से मना कर दिया। एकलव्य निराश नहीं हुआ। उसने वन में जाकर अपने लक्ष्यों पर निरंतर बाण चलाने का अभ्यास किया। इसका सुपरिण शाम सामने आया। वह उस समय के श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन से भी श्रेष्ठ धनुर्धर बन गया। निरंतर अभ्यास ने ही उसे सफलता दिलाई।
जा अभ्यास द्वारा किसी भी विषय में पारंगत हुआ जा सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन राष्ट्रपति बनने से पूर्व अपने कार्यों में निरंतर असफल होते रहे। उन्हें शिक्षा ग्रहण में असफलता मिली। वे व्यापार में असफल रहे। वे राजनीति में भी असफल रहे। वे निराश नहीं हुए। वे हार मानकर बैठ नहीं गए। इसी का फल सामने आया। निरंतर अभ्यास करके वे अंततः अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए। अभ्यास करने के लिए धैर्य अत्यंत आवश्यक होता है।
निरंतर परिश्रम करते रहना चाहिए। असफलताओं से निराश नहीं होना चाहिए। सड़क के किनारे बैठे हुए स्कूटर मकैनिक किसी इंजीनियरिंग कॉलेज से शिक्षा ग्रहण करके स्कूटर ठीक करना नहीं सीखते। वे अभ्यास से स्कूटर के एक-एक कल-पुर्जे का ज्ञान प्राप्त करते हैं। वे उनमें आने वाली खराबियों से परिचित होते हैं। इस प्रकार वे एक दिन स्कूटर की सभी खराबियों को ठीक करने का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं। छोटा-सा बालक जब विद्यालय में प्रवेश लेता है तो उसे किसी प्रकार का ज्ञान नहीं होता। वह अभ्यास के द्वारा अक्षरों को पहचानता है। वह धीरे-धीरे उनका उच्चारण करना सीखता है।
वह एक-एक कक्षा उत्तीर्ण करता जाता है और एक दिन सुशिक्षित हो जाता है। संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के लिए भी वर्षों के अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है। नृत्य भी एक ही दिन में नहीं सीख लिया जाता। वर्षों का अभ्यास संगीत और नृत्य में निपुणता प्रदान करता है। कुम्हार चाक पर मिट्टी के बर्तन बनाता है। अभ्यास द्वारा ही उसने बर्तन बनाना सीखा। लड़कियाँ अपनी माँ को भोजन बनाते देखती हैं। वे पहले आटा गूंथना सीखती हैं।
फिर चपाती बनाना सीखती हैं। आरंभ में चपातियाँ गोल नहीं बनती। अभ्यास द्वारा वे गोल चपातियाँ बनाने लगती हैं। खिलाड़ी अपने-अपने खेलों में वर्षों तक अभ्यास के पश्चात् ही उनमें कुशल होते हैं। साइकिल चलाना सीखने में भी समय लगता है। आरंभ में साइकिल नहीं सँभलती। अभ्यास के द्वारा ही साइकिल पर नियंत्रण करना आता है और एक दिन सड़क पर साइकिल दौड़ाना आ जाता है। अन्य वाहनों को भी अभ्यास के द्वारा ही सीखा जा सकता है। एक कुशल वक्ता निरंतर अभ्यास से ही इस कला में निपुण होता है।
विद्यार्थियों के लिए अभ्यास का सर्वाधिक महत्व होता है। विद्यालयों में उन्हें अनेक विषय पढ़ने पढ़ते हैं। जो विद्यार्थी धैर्यपूर्वक अभ्यास करते रहते हैं, वही सभी विषयों में अच्छे अंक लाते हैं। मूर्ख से मूर्ख विद्यार्थी भी यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो वह कठिन-से-कठिन विषयों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। इसके लिए उस विषय का बार-बार अध्ययन करना पड़ता है।
गणित जैसा विषय अनेक विद्यार्थियों को भयभीत करता रहता है। यदि गणित के प्रश्नों को हल करने का निरंतर अभ्यास किया जाए तो इस विषय में शत-प्रतिशत अंक प्राप्त किए जा सकते हैं। इस विषय में प्रसिद्ध दोहा है-
करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान॥
कुएँ से जल निकालने के लिए रस्सी बार-बार कुएँ की मज़बूत दीवार पर रगड़ खाती है। रस्सी कोमल होती है। उसकी बार-बार की रगड़ पत्थर पर निशान छोड़ देती है। इसी प्रकार मूर्ख से मूर्ख बुद्धि का मनुष्य भी बार-बार के अभ्यास द्वारा विद्वान बन जाता है।
विज्ञान के द्वारा मनुष्य नित नए आविष्कार करता आ रहा है। आधुनिक युग कंप्यूटर का युग है। कंप्यूटर को चलाने के लिए पहले प्रशिक्षण लेना पड़ता है। प्रशिक्षण के मध्य कंप्यूटर की विभिन्न प्रणालियों का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। इसके विभिन्न कार्यों का ज्ञान निरंतर अभ्यास द्वारा आता है। यही अभ्यास किसी भी व्यक्ति को कंप्यूटर-विशेषज्ञ बना देता है।
अभ्यास समस्त विद्याओं में पारंगत होने का सरलतम मार्ग है। निरंतर अभ्यास के लिए धैर्यवान होना आवश्यक होता है। इसके साथ-साथ दृढ़ निश्चयी भी होना आवश्यक होता है। मनुष्य अपने लक्ष्य का निर्धारण करके निरंतर अभ्यास करके उसे प्राप्त कर लेता है। इस संसार में सफलताएँ उन्हीं के चरण चूमती हैं जो अभ्यास करते रहते हैं।