संत कवि भारती – Maharashtra Board Class 9 Solutions for हिन्दी लोकभारती
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लघु उत्तरीय प्रश्न
Solution 1:
संत कबीर जी ने ‘मैं’ का अर्थ अहंकार बताया है। और उसके रहने से हम ईश्वर को नहीं पा सकते। क्योंकि अहंकार तथा मिथ्या अभिमान के कारण मनुष्य ईश्वर को पाने के मार्ग से भटक जाता है। ईश्वर प्राप्ति के लिए मन निर्मल होना चाहिए। ‘मैं’ यानि अहंकार के मन में रहने से हम ईश्वर की भक्ति नहीं पा सकते।
ईश्वर को पाने के लिए अहंकार का त्याग करना आवश्यक है।
Solution 2:
कबीरदास जी के अनुसार ईश्वरीय प्रेम अलौकिक होता है। यह दुर्लभ होता है। यह हर कहीं नहीं मिलता। यह तो किसी क्यारी में उत्पन्न होता है और न ही किसी बाजार में बिकता है। इस विलक्षण अनुभूति को वही प्राप्त कर सकता है जो ईश्वर के प्रति समर्पित हो। चाहे राजा हो या रंक ईश्वर प्रेम पाने के लिए उसे मिथ्या अभिमान तथा झूठी मान-मर्यादाओं का त्याग करना होगा।
इस प्रकार समर्पण की भावना आने पर भक्त के हृदय में यह प्रेम प्रकट होता है।
Solution 3:
कबीरदास जी के ईश्वर को पाने के लिए अहंकार का त्याग करना आवश्यक है।
अहंकार तथा मिथ्या अभिमान के कारण मनुष्य ईश्वर को पाने के मार्ग से भटक जाता है। ईश्वर प्राप्ति के लिए मन निर्मल होना चाहिए। ‘मैं’ यानि अहंकार के मन में रहने से हम ईश्वर की भक्ति नहीं पा सकते।
क्योंकि प्रेम का मार्ग अति सँकरा है। इस मार्ग पर अहंकार और प्रेम दोनों एक साथ नहीं चल सकते। हमें यदि ईश्वर का प्रेम पाना है तो अहंकार को छोड़ना होगा। ईश्वर प्रेम पाने के लिए उसे मिथ्या अभिमान तथा झूठी मान-मर्यादाओं का त्याग करना होगा।
Solution 4:
कबीर की रचनाओं में अनेक भाषाओं के शब्द मिलते हैं यथा – अरबी, फ़ारसी, पंजाबी, बुन्देलखंडी, ब्रजभाषा, खड़ीबोली आदि के शब्द मिलते हैं इसलिए इनकी भाषा को ‘पंचमेल खिचड़ी’ या ‘सधुक्कड़ी’ भाषा कहा जाता है। उनकी प्रमुख रचनाएँ साखी, सबद और रमैनी हैं।
कबीरदास ने हिन्दू-मुसलमान का भेद मिटा कर हिन्दू-भक्तों तथा मुसलमान फ़कीरों का संग किया। वे एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। अवतार, मूर्तिपूजा, रोज़ा, ईद, मस्जिद, मंदिर आदि को वे नहीं मानते थे। कबीरदास जी की रचनाओं की विशेषताएँ यह हैं कि वे अहंकार, आडंबर और रूढ़ियों का खुलकर विरोध करते हैं। वे मानवता एवं समता के प्रबल पक्षधर थे। उनका धर्म मानवतावाद के व्यापक स्तर पर खड़ा है। उनकी कविता मानव के प्रति सहज प्रेम को अभिव्यक्त करती है।
हेतुलक्ष्यी प्रश्न
Solution 1:
- जब मैं था तब हरि नाँहि।
- खाला का घर नाँहि।
- प्रेम न हाटि बिकाइ।
- सीस देइ लै जाइ।
Solution 2:
- कबीरदास जी द्वारा रचित तीन रचनाओं के नाम हैं –
‘साखी, सबद और रमैनी’।
- ‘मैं’ के रहने से ईश्वर नहीं रहता।
- कवि के अनुसार प्रेम की गली बहुत पतली है।
- राजा हो या प्रजा प्रेम पाने के लिए उन्हें अहंकार त्यागना पड़ता है।