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हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।
वर्ण, वर्णमाला (Varnamala) परिभाषा, भेद और उदाहरण – Varn in Hindi Examples
वर्ण-विच्छेद (‘र’ के विभिन्न रूप, अनुस्वार, अनुनासिक, नुक्ता (आगम ध्वनियाँ))
वर्ण (Letter)
वर्ण किसे कहते हैं परिभाषा
वर्ण-विच्छेद को समझने से पहले, आइए जानें, वर्ण किसे कहते हैं?
परिभाषा-‘लिखित भाषा की उस छोटी-से-छोटी मूल ध्वनि को वर्ण कहते हैं, जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते।’ मूल रूप में वर्ण वे चिह्न होते हैं, जो हमारे मुख से निकली हुई ध्वनियों के लिखित रूप होते हैं। यह भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है और इसके खंड नहीं किए जा सकते। उदाहरण के लिए-‘राम बाजार गया।’ यदि इस वाक्य का विश्लेषण करें तो-(र् + आ, म् + अ) (ब् + आ, ज् + आ, र् + अ) (ग् + अ, य् + आ) प्राप्त होंगे। इससे आगे इसके खंड नहीं किए जा सकते। अतः इन्हें ही वर्ण कहा जाता है।
वर्णमाला (Alphabet)
वर्णों के क्रमबद्ध समूह को ‘वर्णमाला’ कहा जाता है। हिंदी भाषा में मुख्य रूप से निम्नलिखित वर्ण प्रयुक्त किए जा रहे हैं :
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। (स्वर)
अं, अँ, अः। (अनुस्वार, अनुनासिक, विसर्ग)
हल-चिह्न (,)-व्यंजनों के नीचे लगा हल-चिह्न स्वर के न होने का चिह्न है। सभी व्यंजन स्वर के बिना होते हैं। परंतु उनका उच्चारण स्वर की सहायता के बिना नहीं हो सकता। जब भी व्यंजन का उच्चारण होता है तो स्वर की सहायता से ही; जैसे-म् + अ = म, म् + आ = मा, म् + इ = मि। स्वरों का योग हो जाने के कारण ये व्यंजन अक्षर कहलाते हैं।
ऑ-अंग्रेजी भाषा के शब्दों के प्रयोग के लिए हिंदी भाषा ने ‘ऑ’ ध्वनि को भी हिंदी वर्णमाला में स्वीकार कर लिया है; जैसे-डॉक्टर, कॉलेज, कॉफ़ी।
ड़, ढ़-इन दो ध्वनियों का प्रयोग भी हिंदी भाषा में बहुतायत से होता है। इनका संबंध संस्कृत के ड और ढ से तो कदापि नहीं है। इसकी विशेषता यह है कि यह ध्वनि शब्द के आरंभ में नहीं आती; जैसे-बूढा, गढ़ा, पहाड़, चढ़ाई, साड़ी।
ड और ढ शब्द के प्रारंभ में आते हैं; जैसे-डाल, ढाल, डरपोक आदि। . कुछ पूर्णतया विदेशी ध्वनियाँ वर्ण के रूप में अपने शब्द भंडार के साथ हिंदी में प्रविष्ट हुई हैं; जैसे-क, ख, ग़, ज और फ़। ये ध्वनियाँ अरबी, फारसी, तुर्की आदि भाषाओं की हैं, परंतु हिंदी में फ़ारसी के द्वारा ही आई हैं; जैसे
क़ क़ौम, ख़-ख़ुदा, ग़-गरीब, ज-ज़रूरत, फ़-फ़न।
विद्वानों द्वारा क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को हिंदी वर्णमाला में सम्मिलित नहीं किया जाता, क्योंकि ये वर्ण नहीं ‘संयुक्त वर्ण’ कहलाते हैं। इन वर्गों की उत्पत्ति दो वर्णों के मेल से हुई है :
क्ष | क् + ष् + अ |
त्र | त् + र् + अ |
ज्ञ | ज् + ञ् + अ |
श्र | श् + र् + अ |
इसलिए सामान्य रूप से इनकी गणना वर्णमाला में करना युक्तिसंगत नहीं होगा।
उच्चारण के आधार पर वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है :
- वर्ण (Letter)
- स्वर (Vowels)
- व्यंजन (Consonants)
स्वर (Vowels)
जिन वर्णों का उच्चारण करते समय हवा मुख विवर से बिना किसी रुकावट के निकल जाती है, वे स्वर कहलाते हैं। अतः स्वर स्वतंत्र ध्वनियाँ हैं। इनकी कुल संख्या ग्यारह है :
अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
उच्चारण में लगे समय के आधार पर स्वरों के तीन वर्ग बनते हैं :
1. ह्रस्व
2. दीर्घ
3. प्लुत।
- ह्रस्व स्वर (Short Vowels)-जिन स्वरों के उच्चारण में कम से कम समय लगता है, वे ‘ह्रस्व स्वर’ कहलाते हैं। हिंदी में अ, इ, उ, ऋ ये चार ह्रस्व स्वर हैं।
- दीर्घ स्वर (Long Vowels)-जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दुगुना समय लगता है, वे ‘दीर्घ स्वर’ कहलाते हैं। हिंदी में आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ ये सात दीर्घ स्वर हैं।
- प्लुत स्वर (Longer Vowels)-जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ से दुगुना तथा ह्रस्व से तिगुना समय लगता है, वे ‘प्लुत स्वर’ कहलाते हैं; जैसे-हे रा३म, ओ३म् आदि।।
उच्चारण-स्थान के आधार पर स्वरों के दो भेद किए जाते हैं-अनुनासिक तथा निरनुनासिक स्वर।
व्यंजन (Consonants)
‘व्यंजन उन वर्णों को कहते हैं, जिनका उच्चारण स्वर की सहायता से होता है। इनका उच्चारण करते समय फेफड़ों से निकली वायु को मुँह में विभिन्न स्थानों पर पूरा या आंशिक रूप से रोका जाता है। कुछ व्यंजनों के उच्चारण में वायु मार्ग इतना संकरा होता है कि हवा रगड़ खाकर बाहर निकलती है। उच्चारण करते समय हवा को किसी भी रूप में रोका जाता है तथा जिस स्थान पर हवा रगड़ खाती है, उस स्थान को व्यंजन विशेष का उच्चारण स्थान कहते हैं । व्यंजनों के निम्नलिखित तीन भेद हैं :
1. स्पर्श व्यंजन (Mutes-Consonants)-क् से लेकर म् तक के 25 वर्ण स्पर्श कहलाते हैं। इन वर्गों का उच्चारण करते समय जिह्वा मुख के भिन्न-भिन्न भागों का स्पर्श करती है। इसके कुल पाँच वर्ग हैं और प्रत्येक वर्ग अपने वर्ग के प्रथम वर्ण के नाम से जाना जाता है।
क् वर्ग | क्, ख्, ग, घ, ङ् |
च् वर्ग | च्, छ्, ज्, झ्, ब् |
ट् वर्ग | ट्, ठ्, ड्, द, ण् |
त् वर्ग | त्, थ्, द्, ध्, न् |
प् वर्ग | प्, फ्, ब्, भ्, म् |
2. अंतस्थ व्यंजन (Semi-Consonants)-इन वर्गों का उच्चारण करते समय जिह्वा मुख के किसी भी भाग को स्पर्श नहीं करती। इनका उच्चारण स्वर तथा व्यंजन का मध्यवर्ती-सा होता है। ये कुल चार हैं-य्, र, ल, व्।
3. ऊष्म व्यंजन (Sibiliants-Consonants)-इन वर्गों का उच्चारण करते समय हवा के रगड़ खाने से एक प्रकार की ऊष्मा-सी उत्पन्न होती है। ये कुल चार हैं-श्, ष्, स्, ह्।
संयुक्त और द्वित्व व्यंजन
संयुक्त व्यंजन- दो या दो से अधिक व्यंजनों के संयोग से संयुक्त ध्वनियाँ बनती हैं। हिंदी में स्वर रहित व्यंजन को आगे वाले व्यंजन से मिला दिया जाता है।
संयुक्त व्यंजन बनाने के कुछ नियम इस प्रकार हैं :
(क) खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप बनाने के लिए पाई को हटा दिया जाता है; जैसे:
बच्चा | (च् + च = च्च) |
सज्जा | (ज् + ज = ज्ज) |
प्रख्यात | (रु + य = ख्य) |
मग्न | (ग + न = ग्न) |
विघ्न | (८ + न = घ्न) |
पत्ता | (२ + त = त्त) |
पथ्य | (१ + य = थ्य) |
ध्वस्त | (६ + व = ध्व, स् + त स्त) |
न्याय | (न + य = न्य) |
प्याला | (८ + य = प्य) |
लम्ब | (म + ब = म्ब) |
सभ्यता | (स + य = भ्य) |
स्वस्थ | (स् + व = स्व, स् + थ = स्थ) |
व्यवहार | (व् + य = व्य) |
(ख) क और फ के संयुक्ताक्षर बनाते समय इनका पीछे वाला भाग हटा दिया जाता है; जैसेः
- पक्का (क + क = क्क)
- रफ्तार (फ + त = फ्त)
नई मानक वर्तनी के अनुसार ‘पक्का’ का स्वरूप ‘पक्का’ मान्य नहीं है।
(ग) बिना पाई वाले व्यंजनों (ट्, ठ्, ड्, द, द्, ह्, ङ्) के संयुक्ताक्षरों में हल् चिह्न का प्रयोग होना चाहिए; जैसे
- वाड्मय = ङ् + म
- लटू = ट् + ट
- पाठ्य = ठ् + य
- बुड्ढा = ड् + ढ
- विद्या = द् + य
- ब्राह्मण = ह् + म
(घ) हिंदी में ‘र’ वर्ण के भी अनेक रूप हैं।
ऋ शब्द का प्रयोग केवल संस्कृत से लिए गए तत्सम शब्दों में ही होता है अन्यत्र नहीं। इस प्रकार के प्रयोग में विद्यार्थी विशेष रूप से भूल कर डालते हैं। इन भूलों का निराकरण अभ्यास पर ही आधारित है। फिर भी कुछ नियमों की जानकारी हम आगे लेंगे।
‘र’ के विभिन्न रूप
हिंदी वर्णमाला में र् की स्थिति दूसरे वर्गों से भिन्न है। इसकी स्थिति वर्णमाला में विशेष है, क्योंकि इसके लेखन में विविधता है।
रेफ (-) लेखन की स्थिति :
र जब हलंत अर्थात् स्वर रहित होता है तो उसके नीचे हल्-चिह्न नहीं लगता। ऐसी स्थिति में ‘र’ रेफ (‘) बनकर अगले व्यंजन के सिर पर लगता है।
अशुद्ध रूप | शुद्ध रूप |
पर्व | पर्व |
वर्ष | वर्ष |
गर्व | गर्व |
अय | अय |
सर्व | सर्व |
धर्मार्थ | धर्मार्थ |
पर्व शब्द में ‘व’ वर्ण के पहले आने के कारण यह ‘व’ के शीर्ष पर लगेगा; जैसे-पर्व।
अय में चूँकि र् के बाद ध भी हलंत सहित है, अतः यह ध् के बाद आने वाले वर्ण य के शीर्ष पर लगेगा; जैसे-अर्ध्य। धर्मार्थ में ‘र’ अगले वर्ण ‘मा’ तथा ‘थ’ पर लगा है; जैसे-धर्मार्थ।
रेफ (-) के अन्य उदाहरण :
अशुद्ध रूप | शुद्ध रूप |
कर्म | कर्म |
चर्म | चर्म |
फॉर्म | फॉर्म |
दीर्घ | दीर्घ |
कीर्ति | कीर्ति |
कोर्ट | कोर्ट |
फर्क | फर्क |
कार्ड | कार्ड |
वर्ण | वर्ण |
चर्म | चर्म |
कर्तव्य | कर्तव्य |
पदार्थ | पदार्थ |
विद्यार्थी | विद्यार्थी |
दुर्गा | दुर्गा |
मार्ग | मार्ग |
अर्थ | अर्थ |
कार्य | कार्य |
कर्म | कर्म |
आर्शीवाद | आशीर्वाद |
वार्षिक | वार्षिक |
धर्म | धर्म |
पर्दा | पर्दा |
धार्मिक | धार्मिक |
चार्ट | चार्ट |
वर्ग | वर्ग |
वर्णित | वर्णित |
जब ‘र’ से पहला व्यंजन हलंत होता है और इसका उच्चारण प्रयुक्त वर्ण के बाद होता है तो ‘र’ से पहला वर्ण पूरा लिखा जाता है और ‘र’ का रूप विकृत हो जाता है।
-पाई वाले व्यंजनों के बाद प्रयुक्त ‘र’ पाई के नीचे तिरछा होकर प्रयुक्त हो जाता है; जैसे :
- क् + र = क्र = क्रोध, क्रम, चक्र
- प् + र = प्र = प्रकाश, प्रथम, प्रकार
- ग् + र = ग्र = ग्रस्त, ग्राम, ग्रंथ
- स् + र = स्त्र = हिस्त्र, मिस्र
- ब् + र = ब्र = कब्र, सब्र
पाई रहित व्यंजनों के बाद ‘र’ का लेखन : -बिना पाई वाले व्यंजनों के बाद प्रयुक्त ‘र’ व्यंजन के नीचे (.) के रूप में प्रयुक्त हो जाता है; जैसे :
- ट् + र = ट्र = ट्रक, ट्राम, ट्रस्ट
- ड् + र = ड्र = ड्रामा, ड्रम
द् तथा ह् के बाद ‘र’ का लेखन :
द् के बाद आने वाले ‘र’ का संयुक्त रूप पाई वाले व्यंजनों के समान ही होता है : द् + र = द्र = दरिद्र, कद्र
ह के बाद आने वाला ‘र’ का रूप इस प्रकार होता है : ह् + र = हू = ह्रस्व, ह्रास
त् और श के बाद ‘र’का लेखन :
त् के बाद ‘र’ आने पर संयुक्ताक्षर त्र बनता है : त् + र = त्र = त्रिभुज, त्रिशूल, त्रिकाल
श् के बाद ‘र’ आने पर संयुक्ताक्षर श्र बनता है : श् + र = श्र = श्रम, श्राप, श्रमिक
ध्यान रहे श् + र को श लिखना अशुद्ध होगा।
र के साथ उया ऊ की मात्रा :
र के साथ उ की मात्रा लगने पर रु बनता है : र् + उ = रु = गुरु, शुरुआत, रुपया
र के साथ ऊ की मात्रा लगने पर रू बनता है : र् + ऊ = रू = शुरू, रूप, रूढ़
‘र’ और ‘ऋ’ की मात्राओं में अंतर :
पदेन र् ( ) और ऋ (.) की मात्रा में स्पष्ट अंतर देखा जा सकता है। दोनों के प्रयोग पूर्ण रूप से भिन्न हैं तथा इनके प्रयोग से शब्दों के अर्थ में भी अंतर हो जाता है जैसे :
- ग् + र = ग्र = ग्राम, ग्रसित,
- ग्रह ग् + ऋ = गृ = गृहणी, गृह
- ग्रह-आकाश में घूमने वाला एक पिंड
- गृह-घर
ग्रह की जगह गृह का प्रयोग अशुद्ध होता है। उसी प्रकार जाग्रत की जगह जागृत, क्रम की जगह कृम, कृपा की जगह क्रपा या श्रृंगार की जगह अंगार।
वर्ण, वर्णमाला के अभ्यास प्रश्न
1. निम्नलिखित शब्दों में ‘र’ की अशुद्धियों को दूर कर शब्द फिर से लिखिए : …
1. कर्मधार्य …………………………………..
2. कबर …………………………………..
3. सार्मथ्य …………………………………..
4. तीवर …………………………………..
5. दरव्य …………………………………..
6. पर्दा …………………………………..
7. सहस्त्र …………………………………..
8. अस्थ …………………………………..
9. परसन्न …………………………………..
10. फरक …………………………………..
11. पवित्तर …………………………………..
12. करमठ …………………………………..
13. ब्रह्मा …………………………………..
14. वर्णन …………………………………..
15. स्रोत …………………………………..
16. श्रेय …………………………………..
17. मूरख …………………………………..
18. आर्शीवाद …………………………………..
19. परसाद …………………………………..
20. किरया …………………………………..
21. मरतबान …………………………………..
22. कार्यकर्म …………………………………..
23. कर्मशः …………………………………..
24. समुन्दर …………………………………..
25. उत्तीरण …………………………………..
26. प्रीक्षा …………………………………..
27. करिपा …………………………………..
28. कायार्लय …………………………………..
29. परणाम …………………………………..
30. चन्दर …………………………………..
2. निम्नलिखित वाक्यों में ‘र’ से संबंधित वर्तनी की अशुद्धियों को छाँटकर उन्हें शुद्ध कीजिए :
(क) बच्चों की आत्मा पवित्तर होती है। …………………………………..
(ख) फारम पर हस्ताक्षर कर दो। …………………………………..
(ग) हमें अपनी संस्कृति पर गरव है। …………………………………..
(घ) अचार मरतबान में रखा है। …………………………………..
(ङ) सानिया मिरज़ा की कीर्ति चारों ओर फैल गई है। …………………………………..
(च) विद्यार्थी को संयम के साथ जीवन जीना चाहिए। …………………………………..
(छ) चितर् का वर्णन करो। …………………………………..
(ज) यह कार्यालय कल खुला रहेगा। …………………………………..
(झ) हमें जागरुक होकर जीवन जीना चाहिए। …………………………………..
(ब) मेरा मितर कल मेरे घर आएगा।
अनुस्वार और अनुनासिक worksheet
इन स्वरों के उच्चारण में ध्वनि मुख के साथ-साथ नासिका-द्वार से भी निकलती है। अतः अनुनासिकता को प्रकट करने के लिए शिरोरेखा के ऊपर चंद्रबिंदु (–) का प्रयोग किया जाता है, परंतु जब शिरोरेखा के ऊपर स्वर की मात्रा भी लगी हो तो सुविधा के लिए (स्थानाभाव के कारण) चंद्रबिंदु (–) की जगह मात्र बिंदु (-) लगा दिया जाता है; जैसे-हैं, क्योंकि, गेंद, मैं आदि।
अनुनासिक स्वर(-) और अनुस्वार ( -) में अंतर अनुनासिक और अनुस्वार में मूल अंतर यह है कि अनुनासिक स्वर ‘स्वर’ है, जबकि अनुस्वार मूलतः व्यंजन है। अनुस्वार और अनुनासिक के प्रयोग में कहीं-कहीं अर्थ भेद पाया जाता है; जैसे- हँस – हँसना हंस – एक पक्षी इसलिए अनुस्वार और अनुनासिक के प्रयोग में सावधानी की आवश्यकता है।
बिंदु और चंद्रबिंदु
हिंदी भाषा के लेखन में बिंदु (-) अनुस्वार का प्रयोग बहुत महत्त्वपूर्ण है। बिंदु का प्रयोग विभिन्न रूपों में होता है। हम निम्नलिखित तीन स्थितियों पर विशेष ध्यान देंगे:
1. अं’-अनुस्वार के रूप में बिंदु का प्रयोग
2. नासिक्य व्यंजनों के स्थान पर बिंदु का प्रयोग
3. अनुनासिक के स्थान पर बिंदु का प्रयोग
1. अनुस्वार के रूप में बिंदु का प्रयोग :
हिंदी की वर्णमाला में स्वरों के पश्चात् दो अयोगवाह आते हैं :
(1) अं (अनुस्वार)
(2) अः (विसर्ग)
अनुस्वार व विसर्ग का प्रयोग ‘अ’ आदि स्वरों की सहायता से ही संभव हो सकता है जैसे-संताप
इस शब्द का यदि वर्ण-विच्छेद करें तो इसमें स् +अं + त् + आ + प् + अ वर्ण आते हैं। उच्चारण से यह स्पष्ट होता है कि इस शब्द में अनुस्वार ‘अं’ का उच्चारण (अ + न्) की तरह हुआ है, लेकिन भिन्न-भिन्न शब्दों में ‘अं’ के उच्चारण के बदलते रूपों को देखा जा सकता है; जैसे
संरचना | स् + अं (अ + न्) + र् + अ + च् + अ + न् + आ |
संवाद | स् + अं (अ + म्) + व् + आ + द् + अ |
संचार | स् + अं (अ + न्) + च् + आ + र् + अ |
संहार | स् + अं (अ + ङ्) + ह् + आ + र् + अ |
संचय | स् + अं (अ + न्) + च् + अ + य् + अ |
संगम | स् + अं (अ + म्) + ग् + अ + म् + अ |
‘अं’ की इस विविधता के कारण ही यह नियम बना है कि अंतस्थ (य, र, ल, व) और ऊष्म (श, ष, स, ह) व्यंजनों से पूर्व आने वाले अनुस्वार में बिंदु का प्रयोग होगा।
बिंदु के प्रयोग के अन्य उदाहरण :
कंगाल | कंठ | कंकाल | चंद | गंदा |
संवेदना | संवाद | चंपा | चंचल | जंजाल |
कांच | संन्यासी | संहार | संशोधन | संस्कार |
संभव | रंक | संशय | ङ्केसंयुक्त | संसार |
संबंध | सुंदर | जंगल |
2. नासिक्य व्यंजनों के स्थान पर बिंदु का प्रयोग :
नासिक्य व्यंजनों का उच्चारण भिन्न-भिन्न स्थितियों में भिन्न-भिन्न तरह से किया जाता है। यही कारण है कि इनके लिपि चिहन भी भिन्न ही हैं; जैसे
अङ्क, शङ्ख, गङ्गा | (क वर्ग से पहले ‘ङ्) |
चञ्चल, मञ्जू | (च वर्ग से पहले ”) |
ठण्डा, कण्ठ, मण्डल | (ट वर्ग से पहले ‘ण’) |
पन्त, पन्थ, चन्द, धन्धा | (त वर्ग से पहले ‘न्’) |
कम्पन, गुम्फ, चम्बा, गम्भीर | (प वर्ग से पहले ‘म्’) |
हिंदी के बदलते रूप व सरलीकरण के उद्देश्य से अब यह नियम बन गया है कि उपर्युक्त भिन्न-भिन्न नासिक्य व्यंजनों की जगह बिंदु प्रयोग किया जाए। संस्कृत में इनका रूप इसी तरह बना रहे, किंतु हिंदी में इनकी जगह बिंदु प्रयोग को मान्यता दी जाए। अब उपर्युक्त शब्दों का रूप इस प्रकार होगा :
- अंक, शंख, गंगा
- चंचल, मंजू
- ठंडा, कंठ, मंडल
- पंत, पंथ, चंद, धंधा
- कंपन, गुंफ, चंबा, गंभीर
3. अनुनासिक के स्थान पर बिंदु का प्रयोग :
हिंदी में अनुनासिकता को प्रकट करने के लिए शिरोरेखा के ऊपर चंद्रबिंदु (-) का प्रयोग किया जाता है, परंतु जब शिरोरेखा के ऊपर स्वर की मात्रा भी लगी हो तो सुविधा के लिए (स्थानाभाव के कारण) चंद्रबिंदु की (-) जगह मात्र बिंदु (-) लगा दिया जाता है; जैसे : बिंदू, कहीं, गोंद, छौँक, मैं, में ऊपर दिए गए शब्दों में इँ, ई, औं, औं,एँ,एँ की मात्राएँ हैं।
बिंदू | ब् + इ + द् + ऊ |
छौँक | छ् + औं + क् + अ |
कहीं | क् + अ + ह् + ई |
मैं | म् + ऐं |
गोंद | ग् + औं + द् + अ |
में | म् + एँ |
ऐसे स्थलों पर चंद्रबिंदु का प्रयोग अटपटा लगता है। अतः केवल बिंदु का प्रयोग शुद्ध माना जाने लगा है। ऊपर के शब्दों को यों लिखा जाना मान्य है : बिंदू, कहीं, गोंद, छौंक, मैं, में
परंतु अ, आ, उ, ऊ तथा ऋ स्वर वाले शब्दों में अनुनासिक अर्थात् चंद्रबिंदु का ही प्रयोग होगा (-); जैसे
शुद्ध (मानक) | अशुद्ध (अमानक) | शुद्ध (मानक) | अशुद्ध (अमानक) |
हँस (हँसने की क्रिया) | हस | कुँवारा | कुंवारा |
अँग | अंग | खूटा | खूटा |
आँगन | आंगन | घूघट | बूंघट |
अनुस्वार का निषेध
जिन शब्दों में अनुस्वार के पश्चात्, य, र, ल, व, ह आता है, वहाँ अनुस्वार अपने मूल रूप में ही रहता है; जैसे
शुद्ध | अशुद्ध |
पुण्य | पुंय |
कण्व | कंव |
अन्य | अंय |
समन्वय | समंवय |
कन्हैया | कंहैया |
मान्यता | मांयता |
तुम्हें | तुंहे |
यदि अनुस्वार के पश्चात् कोई पंचम वर्ण (ङ्, ज्, ण, न्, म्) आ जाए तो अनुस्वार अपने मूल रूप में ही प्रयुक्त होता है। यहाँ बिंदु का प्रयोग अमान्य होता है; जैसे
शुद्ध | अशुद्ध |
वाङ्मय | वांमय |
उन्मुख | उंमुख |
जन्म | जंम |
तन्मय | तंमय |
सम्मान | समान |
उन्नति | उनति |
सम्मिलित | संमिलित |
अपवाद-‘सम्’ उपसर्ग का ‘सं’ हो जाता है; जैसे
सम् + योग | संयोग |
सम् + कल्प | संकल्प |
सम् + यंत्र | संयंत्र |
सम् + चय | संचय |
सम् + रचना | संरचना |
सम् + बंध | संबंध |
सम् + वाद | संवाद |
सम् + सार | संसार |
यदि अनुस्वार के द्वित्व (एक जैसे दो अनुस्वार) वर्णों का प्रयोग हो तो ऐसे स्थलों पर अनुस्वार का बिंदु नहीं बनता; जैसे –
शुद्ध | अशुद्ध |
अशुद्ध सम् + मान | सम्मान समान |
उत् + नति | उन्नति उनति |
सम् + मेलन | सम्मेलन संमेलन |
उत् + नायक | उन्नायक |
नायक ऊष्म व्यंजनों (श, ष, स) से पहले अनुस्वार की जगह बिंदु का प्रयोग किया जाता है; जैसे वंश, दंश, हंस, बांसुरी, विध्वंस।
पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श-1’ में प्रयुक्त अनुस्वार शब्द
परंतु | शृंगार | निमंत्रण | बंधन | अंदाजा |
अधिकांश | उन्हें | ठंडी | हिमपुंज | संतुलन |
अत्यंत | घुटनों | बिंदु | अंकित | आशंका |
संभावना | संक्रमण |
अर्धचंद्राकार ( ) (आगत ध्वनि)
हिंदी की आगत ध्वनियों में से एक है अर्धचंद्राकार ()। हिंदी में स्थान पाने वाले अंग्रेजी शब्दों में यह ध्वनि प्रयुक्त की जाती है; जैसे-कॉलेज, डॉक्टर, फॉर्म
उपर्युक्त शब्दों में प्रयुक्त ध्वनियाँ कॉ, डॉ तथा फॉ का उच्चारण का, डा या फो के समान नहीं है। इन ध्वनियों का उच्चारण आ तथा ओ के बीच का है। इनका उच्चारण करते समय मुँह आधा खुलता है। अतः हिंदी में इनके उच्चारण को ठीक से व्यक्त करने के लिए अर्धचंद्राकार का प्रयोग किया जाता है।
अर्धचंद्राकार के अन्य उदाहरण :
हॉट | (Hot) |
हॉल | (Hall) |
गॉड | (God) |
फ़ॉर्म | (Form) |
कॉटेज | (Cottage) |
क्लॉक | (Clock) |
कॉमन | (Common) |
कॉलम | (Column) |
कॉटन | (Cotton) |
डॉलर | (Dollar) |
अर्धचंद्राकार (-) और चंद्रबिंदु (-) में अंतर-अर्धचंद्राकार व चंद्रबिंदु दोनों ही भिन्न-भिन्न ध्वनियाँ हैं।
– अर्धचंद्राकार अंग्रेजी शब्दों के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि चंद्रबिंदु हिंदी की अनुनासिक ध्वनि है।
– अर्धचंद्राकार का उच्चारण करते समय होठ गोल हो जाते हैं, जबकि अनुनासिक का उच्चारण नाक से होता है।
– दोनों बिल्कुल भिन्न ध्वनियाँ हैं।
– अर्धचंद्राकार केवल ‘आ’ स्वर के ऊपर लगता है, जबकि चंद्रबिंदु केवल उन्हीं स्वरों में लगता है, जिसकी मात्रा शिरोरेखा के ऊपर नहीं होती है।
शब्दों में अंतर को निम्न उदाहरणों द्वारा समझें :
- अर्धचंद्राकार वाले शब्द – कॉलेज, गॉड, फॉर, फॉर्म, पॉप
- चंद्रबिंदु वाले शब्द – कॉटन, काँटा, मुँह, गाँव, फाँदना, फाँटा, पूँछ
पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श-1’ में प्रयुक्त अनुनासिक शब्द
गाँव | मुँह | धुंधले | चाँद | फूंकना |
पहुँचे | बाँधना | ऊँचाई | साँस | जाएँगे |
कहाँ | यहाँ | भावनाएँ | सकूँगा | वहाँ |
अर्धचंद्राकार अभ्यास प्रश्न
1. निम्नलिखित शब्दों में उचित स्थान पर बिंदु (अनुस्वार) व चंद्रबिंदु (अनुनासिक) लगाकर शब्द फिर से लिखिए:
1. बद …………………………………….
2. चाद …………………………………….
3. बासुरी …………………………………….
4. सिचाई …………………………………….
5. ऊट …………………………………….
6. फेक …………………………………….
7. अश …………………………………….
8. बिदु …………………………………….
9. कगाल …………………………………….
10. अधेरा …………………………………….
11. हीग …………………………………….
12. पाचवा …………………………………….
13. सैतीस …………………………………….
14. चद्रिका …………………………………….
15. फस …………………………………….
16. हसमुख …………………………………….
17. अगुली …………………………………….
18. नीव …………………………………….
19. दूगा …………………………………….
20. बिब …………………………………….
21. आतक …………………………………….
22. साप …………………………………….
23. सन्यासी …………………………………….
24. सीग …………………………………….
25. ठडा …………………………………….
26. काच …………………………………….
27. साय …………………………………….
नुक्ता क्या होता है
अंग्रेजी भाषा की तरह उर्दू भाषा से अरबी, फ़ारसी शब्दों का भी हिंदी भाषा में समावेश किया गया है। अरबी, फ़ारसी के इन शब्दों के शुद्ध उच्चारण के लिए व्यंजनों के नीचे बिंदी लगाई जाती है। व्यंजनों के नीचे लगने वाली यह बिंदी ‘नुक्ता’ कहलाती है; जैसे-
दरवाज़ा | इस्तीफ़ा | तूफ़ान | मर्ज़ | फ़तवा |
फ़रमान | ज़रूर | क़ौम | ख़ुदा | फ़कीर |
फ़ाका | फ़र्श | फ़र्ज़ | फ़ारसी | फ़िदा |
मजदूर | जुल्म | फ़ीता | जाफ़रानी | फ़िलहाल |
मरीज़ | ज़मींदार | ज़ोर | फ़रमाइश | मारफत |
फ़ायदा | जेवर | फ़रेबी | फ़रियादी | फ़रामोश |
जुल्म | जोरदार | जमानत |
विशेष- ‘क’, ‘ख’, और ‘ग’ में नुक्ता का प्रयोग ऐच्छिक है। इसे हिंदी में अनिवार्य नहीं माना जाता है। हाँ ज़’ और ‘फ़’ में नुक्ता लगाना आवश्यक है। इसका लेखन और उच्चारण आवश्यक है।
पाठ्यपुस्तक ‘स्पर्श-1’ में प्रयुक्त नुक्ते वाले शब्द
साफ़ | जमाना | खरबूजों | दर्जा | साफ़ | जिंदा |
काफ़ी | मज़बूत | तरफ़ | बफ़ीली | जोरदार | नज़दीक |
मेहमाननवाजी | चीज़ | शराफ़त | ज्यादा |
नुक्ता के अभ्यास-प्रश्न
1. निम्नलिखित शब्दों में उपयुक्त स्थानों पर नुक्ते का प्रयोग कीजिए :
1. जोर ……………………………………….
2. मजदूर ……………………………………….
3. जमानत ……………………………………….
4. फायदा ……………………………………….
5. रफ्तार ……………………………………….
6. जिंदगी ……………………………………….
7. जबान ……………………………………….
8. रिवीजन ……………………………………….
9. जुल्फ ……………………………………….
10. मजबूर ……………………………………….
11. जिला ……………………………………….
12. फौरन ……………………………………….
13. फारसी ……………………………………….
14. जरी ……………………………………….
15. जहर ……………………………………….
16. पीजा ……………………………………….
17. फलसफा ……………………………………….
18. फरेबी ……………………………………….
19. मेजर ……………………………………….
20. फौज ……………………………………….
21. फैसला ……………………………………….
22. जिल्लत ……………………………………….
23. जरूरत ……………………………………….
24. फरमाइश ……………………………………….
25. जोरदार ……………………………………….
26. जमींदार ……………………………………….
27. रफू ……………………………………….
28. फाका ……………………………………….
29. जमीन ……………………………………….
30. फ्रिज ……………………………………….