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Chhand in Hindi | छन्द की परिभाषा एवं उनके भेद और उदाहरण (हिन्दी व्याकरण)

Contents

हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।

छन्द की परिभाषा भेद और उदाहरण | Chhand in Hindi Examples

छन्द की परिभाषा

छन्द का अर्थ है-‘बन्धन’। ‘बन्धनमुक्त’ रचना को गद्य कहते हैं और बन्धनयुक्त को पद्य। छन्द प्रयोग के कारण ही रचना पद्य कहलाती है और इसी कारण उसमें अद्भुत संगीतात्मकता उत्पन्न हो जाती है। दूसरे शब्दों में, मात्रा, वर्ण, यति (विराम), गति (लय), तुक आदि के नियमों से बँधी पंक्तियों को छन्द कहते हैं।

छन्द के छः अंग हैं-

1. वर्ण,
2. मात्रा,
3. पाद या चरण,
4. यति,
5. गति तथा
6. तुक

(1) वर्ण-वर्ण दो प्रकार के होते हैं-(क) लघु और (ख) गुरु। ह्रस्व वर्ण | अ, इ, उ, ऋ, चन्द्रबिन्दु UP Board Solutions for Class 12 Samanya Hindi छन्द 1] को लघु और दीर्घ वर्ण ( आ, ई, ऊ, अनुस्वार (.), विसर्ग (:)] को गुरु कहते हैं। इनके अतिरिक्त संयुक्त वर्ण से पूर्व का और हलन्त वर्ण से पूर्व का वर्ण गुरु माना जाता है। हलन्त वर्ण की गणना नहीं की जाती। कभी-कभी लय में पढ़ने पर गुरु वर्ण भी लघु ही प्रतीत होता है। ऐसी स्थिति में उसे लघु ही माना जाता है। कभी-कभी पाद की पूर्ति के लिए अन्त के वर्ण को गुरु मान लिया जाता है। लघु वर्ण का चिह्न खड़ी रेखा I’ और दीर्घ वर्ण का चिह्न अवग्रह ‘δ’ होता है।

(2) मात्रा–मात्राएँ दो हैं- ह्रस्व और दीर्घ। किसी वर्ण के उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर मात्रा का निर्धारण होता है। ह्रस्व वर्ण (अ, इ, उ आदि) के उच्चारण में लगने वाले समय को एक मात्राकाल तथा दीर्घ वर्ण आदि के उच्चारण में लगने वाले समय को दो मात्राकाल कहते हैं। मात्रिक छन्दों में ह्रस्व वर्ण की एक और दीर्घ वर्ण की दो मात्राएँ गिनकर मात्राओं की गणना की जाती है।

(3) पाद या चरण-प्रत्येक छन्द में कम-से-कम चार भाग होते हैं, जिन्हें चरण या पाद कहते हैं। कुछ ऐसे छन्द भी होते हैं, जिनमें चरण तो चार ही होते हैं, पर लिखे वे दो ही पंक्तियों में जाते हैं; जैसे—दोहा, सोरठा, बरवै आदि। कुछ छन्दों में छ: चरण भी होते हैं; जैसे-कुण्डलिया और छप्पय।

(4) यति ( विराम)-कभी-कभी छन्द का पाठ करते समय कहीं-कहीं क्षणभर को रुकना पड़ता है, उसे यति कहते हैं। उसके चिह्न ‘,’ ‘I’ ‘II’, ‘?’ और कहीं-कहीं विस्मयादिबोधक चिह्न !’ होते हैं।

(5) गति (लय)-पढ़ते समय कविता के कर्णमधुर प्रवाह को गति कहते हैं।

(6) तुक-कविता के चरणों के अन्त में आने वाले समान वर्गों को तुक कहते हैं, यही अन्त्यानुप्रास होता है।
गण-लघु-गुरु क्रम से तीन वर्षों के समुदाय को गण कहते हैं। गण आठ हैं-यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, संगण। ‘यमाताराजभानसलगा’ इन गणों को याद करने का सूत्र है। इनका स्पष्टीकरण अग्रलिखित है-

यमाता  यगण  । ऽ ऽ  यशोदा
मातारा  मगण  ऽ ऽ ऽ  मायावी
ताराज  तगण  ऽ ऽ ।  तालाब
राजभा  रगण  ऽ । ऽ  रामजी
जभान  जगण  । ऽ ।  जलेश
भानस  भगण  ऽ । ।  भारत
नसल  नगण  । । ।  नगर
सलगा  सगण  । । ऽ  सरिता

छन्दों के प्रकार

छन्द दो प्रकार के होते हैं—(1) मात्रिक तथा (2) वर्णिक। जिस छन्द में मात्राओं की संख्या का विचार होता है वह मात्रिक और जिसमें वर्गों की संख्या का विचार होता है, वह वर्णिक कहलाता है। वर्णिक छन्दों में वर्गों की गिनती करते समय मात्रा-विचार (ह्रस्व-दीर्घ का विचार) नहीं होता, अपितु वर्गों की संख्या-भर गिनी जाती है, फिर चाहे वे ह्रस्व वर्ण हों या दीर्घ; जैसे-रम, राम, रामा, रमा में मात्रा के हिसाब से क्रमश: 2, 3, 4, 3 मात्राएँ हैं, पर वर्ण के हिसाब से प्रत्येक शब्द में दो ही वर्ण हैं।

मात्रिक छन्द

1. चौपाई
लक्षण (परिभाषा)-चौपाई एक सम-मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। अन्त में जगण (I δ I) और तगण (δ δ I) के प्रयोग का निषेध है; अर्थात् चरण के अन्त में गुरु लघु (δ I) नहीं होने चाहिए। दो गुरु (δ δ), दो लघु (I I), लघु-गुरु (I δ) हो सकते हैं।

ऽ।।  ।।  ।।  ।।।  ।ऽऽ  ।।।  ।ऽ।  ।।।  ।। ऽऽ
बंदउँ  गुरु  पद  पदुम  परागा।  सुरुचि  सुबास  सरस  अनुरागा।
।।।  ऽ।।।  ऽ।।  ऽऽ  ।।।  ।।।  ।।  ।।  ।।ऽऽ
अमिय  मूरिमय  चूरन  चारू।  समन  सकल  भव  रुज  परियारू।।

2. दोहा
लक्षण (परिभाषा)—यह अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे (विषम) चरणों में 13, 13 मात्राएँ और दूसरे तथा चौथे (सम) चरणों में 11, 11 मात्राएँ होती हैं। अन्त के वर्ण गुरु और लघु होते हैं; यथा–

ऽऽ  ।।  ऽऽ  ।ऽ  ऽऽ  ऽ।।  ऽ।
मेरी  भव  बाधा  हरौ,  राधा  नागरि  सोइ। 13 +11 = 24
ऽ  ।।  ऽ  ऽऽ  ।ऽ  ऽ।  ।।।  ।।  ऽ।
जा  तन  की  झाई  परै,  स्यामु  हरित  दुति  होइ।।  13 + 11 = 24

3. सोरठा
लक्षण (परिभाषा)-यह भी अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके पहले और तीसरे चरण में 11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13 मात्राएँ होती हैं। यह दोहे का उल्टा होता है; यथा—

।।।  ।ऽ।।  ऽ।  ।।  ।ऽ।  ।।  ।।।  ।।
सुनत  सुमंगल  बैन,  मन  प्रमोद  तन  पुलक  भर।  11 + 13 = 24
।।।  ।ऽ।।  ऽ।  ।।ऽ  ।ऽ  ।ऽ।  ।।
सरद  सरोरुह  नैन,  तुलसी  भरे  सनेह  जल ।। 11 +13 = 24

4. कुण्डलिया
लक्षण (परिभाषा)-कुण्डलिया एक विषम मात्रिक छन्द है जो छ: चरणों का होता है। दोहे और रोले को क्रम से मिलाने पर कुण्डलिया बन जाता है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रथम चरण के प्रथम शब्द की अन्तिम चरण के अन्तिम शब्द के रूप में तथा द्वितीय चरण के अन्तिम अर्द्ध-चरण की तृतीय चरण के प्रारम्भिक अर्द्ध-चरण के रूप में आवृत्ति होती है; यथा-

।।।।  ।।।  ।ऽ। ऽ ऽ। ।ऽ ऽ ऽ।
कृतघन कतहुँ न मानहीं कोटि करौ जो कोय। 13 +11 = 24
सरबस आगे राखिये तऊ न अपनो होय।।
तऊ न अपनो होय भले की भली न मानै। 11 +13 = 24
काम काढ़ि चुपि रहे फेरि तिहि नहिं पहचान।।
कह ‘गिरधर कविराय’ रहत नित ही निर्भय मन।
मित्र शत्रु ना एक दाम के लालच कृतघन।।

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