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हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।
क्रिया (Kriya) की परिभाषा भेद और उदाहरण – Verb in Hindi Grammar Examples
जिस शब्द से कार्य का करना या होना पाया जाए, उसे क्रिया कहते हैं; जैसे :
(क) राम खाना खा रहा है।
(ख) बच्चे खेल रहे हैं।
यदि इन वाक्यों के साथ हम क्या करता है?’ या ‘क्या कर रहा है?’ आदि प्रश्नों को जोड़कर उनका उत्तर ढूँढें तो क्रमशः ‘खाना खा रहा है’ तथा ‘खेल रहे हैं उत्तर प्राप्त होंगे। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि वाक्य का जो अंश इन प्रश्नों का उत्तर देता है, उसे ‘क्रिया’ कहते हैं। बिना क्रिया के कोई भी वाक्य पूर्ण नहीं होता। क्रिया को देखकर ही कर्ता या कर्म का अनुमान लगाया जा सकता है। कर्ता एकवचन है या बहुवचन, पुल्लिग है या स्त्रीलिंग, सजीव है या निर्जीव, उत्तम पुरुष में ,मध्यम पुरुष में या अन्य पुरुष में है, इसकी जानकारी भी क्रिया के द्वारा ही होती है। काल का ज्ञान भी क्रिया से ही होता है।
धातु क्रिया किसे कहते हैं:
धातु (Root)-धातु का अर्थ है : मूल या बीजाक्षर। किसी क्रिया के विभिन्न रूपों में जो अंश समान रूप से मिलता है, उसे उस क्रिया की धातु कहा जाता है। इस प्रकार “क्रिया के मूल रूप को धातु’ कहते हैं।” जिस प्रकार सोना, चाँदी आदि धातुओं से हार, कंगन, झुमके, बालियाँ, नथ इत्यादि आभूषण बनाए जाते हैं, उसी प्रकार ‘चल’ धातु से चलना, चला, चले, चलो, चलेंगे; ‘पढ़’ धातु से पढ़ना, पढ़े, पढ़ेगा इत्यादि क्रिया पद रूप बनाए जाते हैं। आ, जा, खा, पी, चल, सुन, देख, पढ़ आदि प्रत्येक धातु के मूल रूप में ‘ना’ जोड़कर क्रिया का सामान्य रूप बनाया जाता है; जैसे-आना, जाना, खाना, पीना, चलना, सुनना, देखना, पढ़ना आदि। ये क्रियाएँ संज्ञा का भी काम करती हैं और कर्म का भी। ऐसे रूपों को ‘क्रियार्थक संज्ञा’ कहा जाता है। इन क्रियाओं में से ‘ना’ निकाल देने से क्रिया पुनः धातु’ में परिवर्तित हो जाती है।
- पढ़ + ना = पढ़ना,
- मार + ना = मारना,
- उठ + ना = उठना।
मूल धातु का प्रयोग मात्र ‘तू’ के साथ आज्ञार्थक क्रिया के रूप में ही किया जाता है; जैसे-तू मेरे साथ चल; तू खाना खा; तू कहानी सुन। कुछ धातुओं का प्रयोग शुद्ध भाववाचक संज्ञा की तरह होता है; जैसे-समझ, लूट, डर, मार, माँग आदि। उदाहरण:
(क) यह बात उसकी समझ में नहीं आई।
(ख) चोर घर को लूटकर चले गए।
क्रिया की रचना
क्रिया की रचना मुख्य तीन प्रकार के शब्दों से होती है :
- धातु से: पढ़ = पढ़ना, पढ़ता।, खा = खाना, खाता, खाया।
- संज्ञा से: आलस्य = अलसाना, अलसाता।, फटकार = फटकारना, फटकारता।
- विशेषण से: टिमटिम = टिमटिमाता, टिमटिमाना।, भिनभिन = भिनभिनाना, भिनभिनाता।
प्रयोग के आधार पर क्रिया के भेद
प्रयोग के आधार पर क्रिया के मुख्य दो भेद हैं :
- सकर्मक
- अकर्मक।
1. सकर्मक (Transitive)- सकर्मक का अर्थ है-कर्म के साथ। जिस क्रिया का फल कर्ता को छोड़कर कर्म पर पड़े, वह क्रिया सकर्मक क्रिया’ कहलाती है; जैसे-बच्चा दूध पी रहा है, राधा किताब पढ़ रही है। इन वाक्यों र क्रिया के बीच यदि ‘क्या’ प्रश्न किया जाए तो उत्तरस्वरूप क्रमशः दध तथा किताब आते हैं: जैसे : बच्चा क्या पी रहा है, ‘दूध’; राधा क्या पढ़ रही है, ‘किताब’। सकर्मक क्रिया की सबसे बड़ी पहचान यही है।
कर्म के आधार पर सकर्मक क्रिया के निम्नलिखित दो भेद हैं :
(क) एककर्मक : जिस क्रिया का मात्र एक ही कर्म होता है, वह ‘एककर्मक क्रिया’ कहलाती है; जैसे : राधा कपड़े धो रही है। माँ खाना बना रही है।
(ख) द्विकर्मक : जिस क्रिया के दो कर्म होते हैं, वह ‘द्विकर्मक क्रिया कहलाती है। इन दो कर्मों में प्रथम कर्म प्राणीवाचक तथा द्वितीय कर्म अप्राणीवाचक होता है। प्राणीवाचक कर्म गौण कर्म तथा अप्राणीवाचक कर्म प्रायः मुख्य कर्म होता है। मुख्य कर्म विभक्ति चिह्न रहित तथा गौण कर्म विभक्ति चिह्न सहित होता है; जैसे :
माला ने राधा को पुस्तक दी।
पिता ने पुत्र को पैसे दिए।
इन वाक्यों की क्रिया के साथ यदि ‘क्या’, ‘किसे’ और ‘किसको’ प्रश्नों को किया जाए तो उत्तर क्रमशः ‘पुस्तक और राधा तथा ‘पैसे’ और ‘पुत्र’ आते हैं; जैसे : माला ने राधा को पुस्तक दी। क्या दी? पुस्तक दी। किसे दी? राधा को दी। द्विकर्मक क्रिया की सबसे बड़ी पहचान यही है।
2. अकर्मक (Intransitive)- कर्म रहित क्रिया अकर्मक कहलाती है। जिस वाक्य में क्रिया का सीधा फल कर्ता पर ‘पड़े वे क्रियाएँ ‘अकर्मक’ कहलाती हैं; जैसे : बच्चा रोता है, रमा पढ़ती है, दिनेश हँसता है।
इन वाक्यों की क्रिया के साथ यदि कौन’ प्रश्न किया जाए तो क्रमशः, बच्चा, रमा, दिनेश आते हैं; जैसे : बच्चा रोता है, कौन रोता है? ‘बच्चा’। अकर्मक क्रिया की सबसे बड़ी पहचान यही है।
कुछ प्रमुख अकर्मक क्रियाएँ :
अकड़ना, डूबना, आना, जाना, उगना, उछलना, कूदना, खाना, पीना, उठना, गिरना, बैठना, दौड़ना, ठहरना, बरसना, मरना, सोना, जागना, बढ़ना आदि।
अकर्मक सकर्मक क्रिया के उदाहरण
अकर्मक से सकर्मक क्रिया बनाना :
अकर्मक | सकर्मक |
ठहरना | ठहराव |
कूदना | कूदा |
लेटना | लेटाना |
हँसना | हसाना |
गिरना | गिराना, गिरावट |
तड़पना | तड़पाना |
बढ़ना | बढ़त |
पलना | पालना |
उबलना | उबाल |
जुड़ना | जोड़ना |
छूटना | छोड़ना |
टूटना | तोड़ना |
घिरना | घेरना |
खुलना | खोलना |
गड़ना | गाड़ना |
उजड़ना | उजाड़ना |
पिघलना | पिघलाना |
मुड़ना | मोड़ना |
संरचना की दृष्टि से क्रिया के अन्य भेद
संरचना की दृष्टि से क्रिया के मुख्य चार भेद हैं :
- संयुक्त क्रिया
- नामधातु क्रिया
- प्रेरणार्थक क्रिया
- पूर्वकालिक क्रिया।
1. संयुक्त क्रिया (Compound Verb)- जब दो या दो से अधिक क्रियाएँ आपस में मिलकर एक पूर्ण क्रिया बनाती हैं, तो वह ‘संयुक्त क्रिया कहलाती है। इन भिन्न क्रियाओं के मिलने से निर्मित क्रिया के अर्थ में विशेषता आ जाती है। वह अपना काम कर चुका। तुम प्रतिदिन पढ़ने आया करो।
इन वाक्यों में ‘कर चुका’ तथा ‘आया करो’ संयुक्त क्रियाएँ हैं। इनकी रचना दो क्रियाओं के योग से हुई हैं, जिसमें एक मुख्य क्रिया है तथा दूसरी सहायक क्रिया।
सहायक क्रिया मुख्य क्रिया की पूर्णता में सहायक होती है; जैसे- वे जा रहे हैं, मोहन चला जाएगा, वह खाना खा रहा है आदि सभी सहायक क्रियाएँ हैं। इस प्रकार वाक्य में कभी एक व कभी एक से अधिक सहायक क्रियाएँ होती हैं। वह वहाँ रोज़ जाया करता होगा। इस वाक्य के अंतर्गत जाना + करना + होना-ये तीन क्रियाएँ आई हैं। भाव को पूर्ण करने वाली इन क्रियाओं को सहायक क्रिया’ या रंजक क्रिया’ भी कहते हैं।
2. नामधातु क्रिया (Nominal Verb)- क्रिया को छोड़कर अन्य शब्दों में प्रत्यय जोड़ने से जो धातुएँ बनती हैं, उन्हें ‘नामधातु’ कहते हैं। इस प्रकार संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्द जो धातु की तरह प्रयुक्त होते हैं, वे नामधातु कहलाते हैं। इन नामधातुओं में ‘ना’ प्रत्यय जोड़कर नामधातु क्रिया का निर्माण किया जाता है।
संज्ञा | नामधातु | नामधातु क्रिया | |
संज्ञा से: | बात | बता | बताना |
लज्जा | लजा | लजाना | |
हाथ | हथिया | हथियाना | |
विशेषण से: | चिकना | चिकना | चिकनाना |
सुखा | सुखा | सुखाना | |
साठ | सठिया | सठियाना | |
नरम | नरम | नरमाना | |
सर्वनाम से : | अपना | अपना | अपनाना |
क्रिया से : | थपथप | थपथपा | थपथपाना |
भिनभिन | भिनभिन | भिनभिनाना |
3. प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb)- जिस क्रिया से यह जान पड़े कि कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को उस कार्य के करने की प्रेरणा देता है या किसी अन्य से उस कार्य को करवाता है, तो उस क्रिया को ‘प्रेरणार्थक क्रिया’ कहते हैं।
“मालिक नौकर से काम करवाता है।”
इस वाक्य को पढ़ने पर हमें ज्ञात होता है कि मालिक स्वयं काम न करके नौकर को काम करने की प्रेरणा देता है। इसलिए ‘करवाता है’ प्रेरणार्थक क्रिया है। इसके अलावा प्रेरणा देने वाला मालिक ‘प्रेरक कर्ता तथा जिसे प्रेरणा दी जाती है वह ‘प्रेरित कर्ता’ कहलाता है। प्रेरणार्थक क्रिया के अन्य उदाहरण :
राम ने एक महल बनवाया।
ज़मींदार ने हलवाहों से खेत जुतवाया।
4. पूर्वकालिक क्रिया (Incomplete Verb)- जिस क्रिया का पूरा होना दूसरी क्रिया के पूरे होने से पूर्व पाया जाए, उसे ‘पूर्वकालिक क्रिया’ कहते हैं; जैसे :
(क) वह नहाकर स्कूल जाएगा।
(ख) खाना खाकर वह पढ़ने बैठेगा।’
(ग) बाज़ार से आकर वह खाना पकाएगी।
इन तीनों वाक्यों में क्रमशः जाएगा, बैठेगा, पकाएगी क्रिया के पूर्व नहाकर, खाकर तथा आकर क्रियाएँ प्रयुक्त हुई हैं । इसलिए पूर्व आने वाली ये क्रियाएँ, पूर्वकालिक क्रियाएँ कहलाती हैं। इन क्रियाओं पर लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह अव्यय रूप में प्रयुक्त होती हैं और क्रियाविशेषण का भी कार्य करती हैं। मूल धातु में ‘कर’ लगाने से सामान्य क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया का रूप दिया जा सकता है; जैसे :
नहा | नहाकर |
खा | खाकर |
जा | जाकर |
पढ़ | पढ़कर |
सो | सोकर |
पूर्वकालिक क्रिया का एक भेद है, तात्कालिक क्रिया।
5. तात्कालिक क्रिया-इसमें एक क्रिया की समाप्ति के बाद ही दूसरी पूर्ण क्रिया का संपन्न होना पाया जाता है; जैसे : उसके वहाँ पहुँचते ही, वह वहाँ से चला गया। स्कूल से वापस आते ही, वह खेलने चला गया। यह क्रिया धातु के अंत में ‘ते’ प्रत्यय लगाकर उसके आगे ‘ही’ जोड़ने से बनती है; जैसे-वह ज़हर खाते ही मर गया।