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क्या निराश हुआ जाए NCERT Solutions for Class 8 Hindi Vasant Chapter 7
प्रश्न-अभ्यास
आपके विचार से
प्रश्न 1.
लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है फिर भी वह निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर:
लेखक को लोगों ने धोखा दिया है, फिर भी वह निराश नहीं है। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं –
- लेखक केवल उन्हीं बातों का हिसाब नहीं रखता है, जिनमें उसने धोखा खाया है।
- लेखक को बहुत-सी वे घटनाएँ याद हैं, जब लोगों ने अकारण ही उसकी मदद की और निराश मन को सांत्वना दी।
- लेखक आशावादी विचार रखने वाला व्यक्ति है।
- लेखक के साथ कम ही विश्वासघात हुआ है।
प्रश्न 2.
समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविज़न पर आपने ऐसी अनेक घटनाएँ देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया हो। ऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम-से-कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
छात्र ऐसे समाचार या लेख एकत्र कर स्वयं टिप्पणी करें।
प्रश्न 3.
लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। आप भी अपने या अपने किसी परिचित के साथ हुई किसी घटना के बारे में बताइए जिसमें किसी ने बिना किसी स्वार्थ के भलाई, ईमानदारी और अच्छाई के कार्य किए हों।
उत्तर:
बिना किसी स्वार्थ भलाई के लिए किया गया कार्य-यह घटना उस समय की है जब दिल्ली में प्राथमिक अध्यापकों की नियुक्ति कर्मचारी चयन आयोग द्वारा की जाती थी। मेरे एक मित्र ने भी समय से आवेदन-पत्र भरकर भेज दिया। परीक्षा की तिथि की सूचना पहले से ही ज्ञात थी। परीक्षा-तिथि निकट आने पर जब उसे प्रवेश-पत्र (लिखित परीक्षा हेतु) न मिला, तो वह अपने सभी प्रमाण-पत्र और फोटो सहित दो दिन पूर्व दिल्ली आ गया।
कर्मचारी चयन आयोग के कार्यालय जाने पर उसे पता चला कि उसका आवेदन-पत्र इस कार्यालय को नहीं मिला है। सात सौ किलोमीटर दूर से आया मेरा मित्र बहुत निराश हुआ, पर हिम्मत नहीं हारी। उसने अन्य क्लकों से इस विषय में जानना चाहा, तो कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। हाँ, एक क्लर्क ने उसे कोने में बने कमरे की ओर जाने को कह दिया। वह कमरा क्षेत्रीय निदेशक का था। शिष्यचारपूर्वक जब मेरे मित्र ने अपनी व्यथा क्षेत्रीय निदेशक महोदय को बताई तो उन्होंने पूछा, “क्या प्रमाण है तुम्हारे पास फार्म भरने का ?” साधारण डाक से तथा भर्ती शुल्क लगे फार्म को भेजने का उसके पास कोई प्रमाण न था। फिर भी उसने कहा कि मेरे पास सात सौ किलोमीटर दूर से आने का यह टिकट ही एकमात्र प्रमाण है।
क्षेत्रीय निदेशक जी ने बात में सत्यता महसूस करते हुए उसे प्रार्थना-पत्र लिखने को कहा और उस पर हस्ताक्षर कर कमरा संख्या 312 में जाने को कहा, जहाँ उससे उसी समय आवेदन भरवाकर उसी भवन के तृतीय तल पर परीक्षा-तिथि को समयानुसार परीक्षा देने के लिए कहा गया। नियत समय पर साक्षात्कार हुआ और मेरा मित्र आज शिक्षक है। क्षेत्रीय निदेशक महोदय के इस नि:स्वार्थ, भलाई, ईमानदारी और अच्छाई के कार्य के लिए वह आज भी कृतज्ञतापूर्वक उन्हें याद करता है।
पर्दाफाश
प्रश्न 1.
दोषों का पर्दाफ़ाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
उत्तर:
दोषों का पर्दाफाश करना निम्नलिखित परिस्थितियों में बुरा रूप ले सकता है –
- पर्दाफ़ाश का उद्देश्य किसी भलाई के कार्य से संबंधित न हो।
- इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति या संस्थान को बदनाम करना हो।
- सत्यता को जाने-समझे बिना ही पर्दाफाश करने की कोशिश करना।
- जब अपनी निजी वैमनस्यता का बदला लेने का उद्देश्य छिपा हो।
- जब प्रसिद्धि पाने की आकांक्षा छिपी हो।
प्रश्न 2.
आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार के समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए।
उत्तर:
आजकल बहुत से समाचार-पत्र या चैनल ‘दोषों का पर्दाफाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार के कार्यक्रमों की सार्थकता तो है, किंतु इनके पीछे समाचार-पत्र संपादक, रिपोर्टर या चैनल का उद्देश्य नेक हो। यदि इनके पीछे छिपे उद्देश्य नेक हैं, तो ये कार्यक्रम सार्थक हैं।
कारण बताइए
(क) निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं? आपस में चर्चा कीजिए, जैसे-“ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।” परिणाम-भ्रष्टाचार बढ़ेगा।
1. “सचाई केवल भीरु और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।
2. “झूठ और फरेब का रोजगार करनेवाले फल-फूल
3. “हर आदमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कमा”
उत्तर:
1. परिणाम – लोगों का सच्चाई से विश्वास उठ जाएगा तथा झूठ और फरेब का कारोबार फले-फूलेगा।
2. परिणाम – लोगों की मानवीय मूल्यों से आस्था उठ जाएगी।
3. परिणाम – लोगों द्वारा एक-दूसरे को शक की दृष्टि से देखा जाएगा तथा किसी पर भी विश्वास करना मुश्किल हो जाएगा।
दो लेखक और बस यात्रा।
(ख) आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पढ़ा। इससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पढ़ चुके हैं। यदि दोनों बस-यात्राओं के लेखक आपस में मिलते तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी बातें बताते? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए।
उत्तर:
इस लेख से पहले हमने एक और बस यात्रा के बारे में पड़ा था। उस पहली बस का चालक यदि इस बस के चालक से मिलता है, तो दोनों चालक निम्नलिखित बातें करेंगे –
पहली बस का चालक (I) – अरे भाई! आज डिपो में आते ही सुना. तुम्हारी बस रास्ते में खराब हो गई थी।
दूसरी बस का चालक (II) – हाँ भाई. तुमने ठीक ही सुना।
चालक I – तो तुम अपने गंतव्य तक कैसे पहुँचे?
चालक II – मत पूछो यार कैसे पहुँचा! भगवान का शुक्र है कि यात्रियों से पिटते-पिटते बचा।
चालक I – क्यों, ऐसा क्या हुआ था?
चालक II – मैं बस लेकर अपने गंतव्य से आठ किलोमीटर दूर था कि तभी बस सुनसान स्थान पर खराब हो गई। मेरा कंडक्टर दूसरी बस लेने चला गया। इस बीच यात्रियों में अफवाह फैल गई कि वह डाकू बुलाने गया है। बस कुछ नौजवानों ने मुझे पीटना चाहा पर एक बुजुर्ग यात्री ने उन्हें ऐसा करने से रोका। उनमें से कुछ नौजवानों ने मुझे थोड़ी दूर ले जाकर बंधक बना लिया कि ऐसी कोई घटना होती है, तो पहले इस ड्राइवर को मार दिया जाए।
चालक I – तो तुम मुक्त कैसे हुए? क्या डाकू नहीं आए?
चालक II – मित्र, वह तो अच्छा हुआ कि हमारा कंडक्टर दूसरी बस लेकर आ गया। यात्रियों ने उसे धन्यवाद दिया और मुझसे माफी माँगी। फिर हम आधी रात से पहले ही बस अड्डे पहुंच गए।
चालक I – पता चला कि उस दिन तुम बड़ी पुरानी-सी बस लेकर यहाँ से गए थे। समय पर गंतव्य तक पहुंच गए थे या नहीं?
चालक II – तुम तो समय से गंतव्य पर पहुंच गए थे, पर मैं नहीं पहुंच सका था।
चालक I – क्यों, क्या बात हो गई थी?
चालक II – हुआ यूं कि मैं उस बस को ले जाने का इच्छुक नहीं था, पर जब यात्रियों ने शोर मचाना शुरू किया और कोई दूसरा ड्राइवर भी न दिखा, तो मुझे ही बस ले जानी पड़ी। मेरे साथ बस की सहयोगी कंपनी का सदस्य भी था। मैंने जब बस स्टार्ट की, तो लगा जैसे बस में भूचाल आ गया हो। समूचे बस की बॉडी हिलने लगी। बस जब चली, तो उसके शीशे बुरी तरह हिल रहे थे। यात्री खिड़कियों के पास से हटकर बैठ गए। थोड़ी देर में पता ही नहीं लग रहा था कि यात्री सीट पर बैठे हैं या सीटें ‘यात्रियों पर हैं। थोड़ी देर चलकर हमारी बस रुक गई।
चालक I – फिर क्या बस अड्डे से दूसरी बस आई?
चालक II – नहीं यार, बस की सहयोगी कंपनी के आदमी ने बताया कि यह तो इत्तफाक की बात है। बस तो बिल्कुल परफेक्ट है। तब मैंने देखा कि बस की टंकी में छेद हो गया है। मैं टंकी का पेट्रोल बाल्टी में निकालकर नली से इंजन में भेजने लगा। थोड़ी दूर जाने पर बस की लाइट खराब हो गई।
चालक I – तो तुम अंधेरी रात में कैसे ले गए ऐसी बस को?
चालक II – जब सामने या पीछे से कोई गाड़ी आए, तो मैं बस को किनारे खड़ी करके कह देता कि जिसे ज्यादा जल्दी है, वे आगे निकल जाओ।
चालक I – क्या बस के यात्रियों ने जल्दी पहुँचने के लिए शोर नहीं मचाया?
चालक II – ऐसी बस की यात्रा में वे अपने गंतव्य पर समय से पहुँचने की उम्मीद छोड़कर आराम से बस चलने का इंतजार कर रहे थे। यात्रियों ने हमें तनिक भी परेशान नहीं किया।
चालक I – अच्छा यार, मेरी बस का समय हो गया है। मुझे बस लेकर जाना है। चलता हूँ। नमस्कार।
चालक II – नमस्कार। फिर मिलेंगे।
सार्थक शीर्षक
प्रश्न 1.
लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
उत्तर:
लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ इसलिए रखा होगा जिससे कि –
- लोगों को यह न लगे कि लेखक अपने विचार पाठकों पर थोप रहा है।
- स्वयं लेखक की आशावादिता का पता चलता है कि वह ऐसे वातावरण से भी निराश नहीं है।
इस लेख का एक अन्य शीर्षक ‘इस रात की भी सुबह होगी’ हो सकता है।
प्रश्न 2.
यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए, तो आप विए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएँगे? अपने चुनाव का कारण भी बताइए। -, ।, !, ? . ; – , ….. ।
उत्तर:
‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो मैं ?’ (प्रश्नवाचक चिह्न) लगाऊँगा। इसका कारण यह है कि इस शीर्षक से | लेखक की जिज्ञासा की भावना का पता चलता है।
(क) “आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
मैं इस बात से पूर्णतया सहमत हूँ कि आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है, पर उन पर चलना बहुत कठिन है। इसका तर्क यह है कि हम सभी आदर्शों की बातें तो करते हैं, पर उनके पालन में हमारे सामने नाना प्रकार की संभवनाएँ तथा हमारी स्वार्थपूर्ण मनोवृत्ति आ जाती है।
सपनों का भारत
“हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।”
प्रश्न 1.
आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे? लिखिए।
उत्तर:
मेरे विचार में हमारे महान विद्वानों ने भारत के लिए सपना देखा था कि भारत में कोई गरीब, दुखी, निरक्षर न रहे। सभी स्वस्थ हों। देश भ्रष्टाचार, हिंसा, आतंकवाद, घृणा, चोरी, लूटखसोट आदि से मुक्त हो। लोगों के बीच समरसता हो। सभी प्रसन्न हों।
प्रश्न 2.
आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए? लिखिए।
उत्तर:
हमारे सपनों का भारत-हमारे सपनों का भारत प्रदूषणमुक्त, हरा-भरा तथा विकसित देश के रूप में हो, जिसमें हर हाथ को काम, सभी को शिक्षा, स्वास्थ्य तथा पेट भर भोजन मिले। लोगों में परस्पर भाईचारा तथा एक-दूसरे के लिए प्यार एवं सम्मान हो। भारत एक बार पुनः ज्ञान के क्षेत्र में विश्व गुरु की संज्ञा से विभूषित हो जाए।
भाषा की बात
प्रश्न 1.
दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है-द्वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता; जैसे-चरम और परम = चरम-परम, भीरू और बेबस = भीरू-बेबस। विन और रात = दिन-रात। ‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर:
द्वंद्व समास के बारह उदाहरण –
- आरोप-प्रत्यारोप
- लोभ-मोह
- कायदे-कानून
- मार-पीट
- दया-माया
- मारने-पीटने
- फल-फूल
- काम-क्रोध
- सुख-सुविधा
- भोजन-पानी
- सच्चाई-ईमानदारी
- ठगी-वंचना
प्रश्न 2.
पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर:
पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण – व्यक्तिवाचक संज्ञा – भारतवर्ष, तिलक, गांधी, रवींद्रनाथ ठाकुर, मदनमोहन मालवीय, कृषि, वाणिज्य।
जातिवाचक संज्ञा – समाचार-पत्र, समाचार, देश, आदमी, व्यक्ति, गह्वर, आर्य, द्रविड़, हिंदू, मुसलमान, मनीषी, जीविका, श्रमजीवी, दवा, धर्म, कानून, समाज, महिला, रेलवे स्टेशन, टिकट, टिकट बाबू, पत्नी, बच्चे, यात्री, कंडक्टर, ड्राइवर, नौजवान, डाकुओं, पंडितजी, दूध, बस अड्डा, गीत, भगवान, प्रभु, लोटा, बस।
भाववाचक संज्ञा – ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी, चिंता, ईमानदारी, मूर्खता, सच्चाई, आस्था, भ्रष्टाचार, लोभ, मोह, काम, क्रोध, भूख, स्वास्थ्य, आध्यात्मिकता, प्रेम, चोरी, बुराई, अच्छाई, भावना, गलती, संतोष, वंचना, खराबी, मनुष्यता, दया, माया, धोखा, विश्वासघात, संयम।