Contents
- 1 समास (Samas) की परिभाषा भेद और उदाहरण – Compound in Hindi Grammar Examples
- 1.1 समास की परिभाषा
- 1.2 समास के भेद (Kinds of Compound)
- 1.3 तत्पुरुष समास के कितने भेद और उदाहरण
- 1.4 2. कर्मधारय समास (Oppositional Determinative Compound)
- 1.5 3. द्विगु समास (Numeral Determinative Compound)
- 1.6 4. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
- 1.7 अव्ययीभाव समास के अन्य उदाहरण :
- 1.8 5. वंद्व समास (Copulative Compound)
- 1.9 6. बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
- 1.10 विभिन्न समासों में अंतर
- 1.11 समास (पाठ्यपुस्तक पर आधारित)
- 1.12 संधि और समास में अंतर (Difference between Joining and Compound)
हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।
समास (Samas) की परिभाषा भेद और उदाहरण – Compound in Hindi Grammar Examples
समास की परिभाषा
“परस्पर संबंध रखने वाले दो या दो से अधिक शब्दों को मिलाकर जब नया सार्थक शब्द बनाया जाता है तो, उस मेल को ‘समास’ कहते हैं।”
संस्कृत धातु अस् ‘संक्षेप करना’ में सम् उपसर्ग जोड़कर समास शब्द निष्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है समाहार या मिलाप। इस प्रकार हम पाते हैं कि समास का वास्तविक अर्थ ‘संक्षेपीकरण’ हुआ; जैसे – चंद्र के समान मुख को हम चंद्रमुख भी कह सकते हैं।
समास रचना में दो शब्द (पद) होते हैं। पहला पद ‘पूर्वपद’ कहा जाता है और दूसरा पद ‘उत्तरपद’ तथा इन दोनों के समास से बना नया शब्द समस्तपद; जैसे :
पूर्वपद + उत्तरपद | समस्तपद | पूर्वपद + उत्तरपद | समस्तपद |
दश + आनन (हैं जिसके) | दशानन | राजा + (का) पुत्र | राजपुत्र |
घोड़ा + सवार (घोड़े पर सवार) | घुड़सवार | यश + (को) प्राप्त | यशप्राप्त |
समास – विग्रह
जब समस्तपद के सभी पद अलग – अलग किए जाते हैं, तब उस प्रक्रिया को ‘समास – विग्रह’ कहते हैं; जैसे – ‘सीता – राम’ समस्तपद का विग्रह होगा सीता और राम।
समास के भेद (Kinds of Compound)
- तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
- कर्मधारय समास (Oppositional Determinative Compound)
- द्विगु समास (Numeral Compound)
- अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
- वंद्व समास (Copulative Compound)
- बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
1. तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
समस्त पद बनाते समय बीच की विभक्तियों का लोप हो जाता है। जैसे – गुरुदक्षिणा का विग्रह है – ‘गुरु के लिए दक्षिणा’। समस्त पद बनाने पर (गुरुदक्षिणा) ‘के लिए’ विभक्ति का लोप हो गया है।
तत्पुरुष समास के कितने भेद और उदाहरण
तत्पुरुष समास के निम्नलिखित भेद हैं
1. कर्म तत्पुरुष–जहाँ कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप हो; जैसे :
समस्तपद | विग्रह |
सुखप्राप्त | सुख को प्राप्त |
शरणागत | शरण को आगत |
यशप्राप्त | यश को प्राप्त |
ग्रामगत | ग्राम को गत |
स्वर्गगत | स्वर्ग को आगत |
जेबकतरा | जेब को कतरने वाला |
परलोगमन | परलोक को गमन |
2. कर्मधारय समास (Oppositional Determinative Compound)
जिसका पहला पद विशेषण और दूसरा पद विशेष्य अथवा एक पद उपमान तथा दूसरा पद उपमेय हो तो, वह ‘कर्मधारय समास’ कहलाता है।
विशेषण | विशेष्य : |
नीलकमल | नीला है जो कमल |
महादेव | महान है जो देव |
पुरुषोत्तम | पुरुषों में है जो उत्तम |
श्वेतांबर | श्वेत है जो अंबर (वस्त्र) |
3. द्विगु समास (Numeral Determinative Compound)
इसमें पहला पद संख्यावाचक होता है तथा किसी समूह विशेष का बोध कराता है; जैसे :
द्विगु | दो गायों का समाहार |
सतसई | सात सौ (दोहों) का समाहार |
त्रिलोक | तीन लोकों का समाहार |
त्रिभुवन | तीन भुवनों (लोकों) का समूह |
नवरत्न | नव रत्नों का समाहार |
4. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
इसमें पहला शब्द प्रधान होता है और समास से जो शब्द बनता है, वह अव्यय होता है। समस्त शब्द के अव्यय रूप में उपस्थित होने के कारण इस समास का नाम अव्ययीभाव पड़ा है। संस्कृत में अव्ययीभाव समास में पूर्वपद अव्यय होता है और उत्तरपद संज्ञा या विशेषण; जैसे : भरपेट, यथासंभव, यथास्थान, यथायोग्य आदि। लेकिन हिंदी समासों में इसके अपवाद स्वरूप पहला पद संज्ञा तथा विशेषण भी देखा गया है; जैसे : हाथों – हाथ (हाथ संज्ञा), हर घड़ी (हर विशेषण)।
अव्ययीभाव समास के अन्य उदाहरण :
आसमुद्र | समुद्रपर्यंत |
आमरण | मरण – पर्यंत |
आजन्म | जन्म से लेकर |
आजानु | जानुओं (घुटनों) तक |
आज्ञानुसार | आज्ञा के अनुसार |
5. वंद्व समास (Copulative Compound)
जिस समस्तपद में दोनों पद प्रधान हों तथा विग्रह करने में दोनों पदों के बीच ‘और’, ‘या’,’तथा’, ‘अथवा’ जैसे योजक शब्दों का प्रयोग हो तो, उसे ‘वंद्व समास’ कहते हैं। द्वंद्व का अर्थ दो या दो से अधिक वस्तुओं का युग्म अर्थात् जोड़ा होता है; जैसे:
राधा–कृष्ण | राधा और कृष्ण |
राजा–रंक | राजा और रंक |
दाल–रोटी | दाल और रोटी |
राम–लक्ष्मण | राम और लक्ष्मण |
आटा–दाल | आटा और दाल |
6. बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
जिस समास में दोनों खंड प्रधान न हों और समस्तपद अपने पदों से भिन्न किसी अन्य संज्ञा का बोध करवाते हों, तो उसे ‘बहुव्रीहि समास’ कहते हैं। इनका विग्रह करने पर विशेष रूप से ‘वाला’, ‘वाली’, ‘जिसका’, ‘जिसकी’, ‘जिससे’ आदि शब्द पाए जाते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि विग्रह पद संज्ञा पद का विशेषण रूप ही होता है; जैसे :
विषधर | विष को धारण करने वाला अर्थात् शंकर |
त्रिलोचन | तीन हैं लोचन जिसके अर्थात् शंकर |
चारपाई | चार हैं पाए जिसके अर्थात चारपाई |
दिगंबर | दिशाएँ ही हैं अंबर (वस्त्र) जिसका वह (शंकर या जैन मुनि) |
नीलकंठ | नीला है कंठ जिसका अर्थात् शंकर |
विभिन्न समासों में अंतर
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में अंतर (Difference between Oppositional and Attributive Compound)
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास में सूक्ष्म अंतर पाया जाता है। कर्मधारय समास, विशेषण और विशेष्य अथवा उपमान और उपमेय पदों से मिलकर बना होता है, जबकि बहुव्रीहि समास में समस्तपद किसी संज्ञा के लिए विशेषण का कार्य करता है। कमल के समान नयन (उपमेय – उपमान) या कुत्सित है जो मति (विशेषण – विशेष्य) ये कर्मधारय के उदाहरण हैं, क्योंकि इसमें उपमान – उपमेय तथा विशेषण – विशेष्य का संबंध है; लेकिन बहुव्रीहि में ऐसा नहीं होता। बहुव्रीहि का विग्रह इस प्रकार होगा – कमल जैसे नयनों वाला अर्थात् विष्णु तथा कुत्सित मति है जिसकी अर्थात् व्यक्ति – विशेष। इसी तरह के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं :
पीतांबर | पीत के समान अंबर (कर्मधारय), पीत हैं अंबर जिसका अर्थात् श्रीकृष्ण (बहुव्रीहि) |
नीलकंठ | नीला है कंठ (कर्मधारय), नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव (बहुव्रीहि) |
दिव्यदृष्टि | दिव्य है जो दृष्टि (कर्मधारय), दिव्य है दृष्टि जिसकी वह व्यक्ति विशेष (बहुव्रीहि) |
मृगनयन | मृग के नयन के समान नयन (कर्मधारय), मृग के नयन के समान नयन हैं जिसके अर्थात् स्त्री विशेष (बहुव्रीहि) |
द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर (Difference between Numeral and Attributive Compound)
कुछ शब्द ऐसे भी होते हैं, जिन्हें द्विगु और बहुव्रीहि दोनों समासों के अंतर्गत रखा जा सकता है। दोनों में अंतर केवल इतना है कि द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है तथा शेष पद उसका विशेष्य, लेकिन बहुव्रीहि समास में समस्त पद किसी संज्ञा के लिए विशेषण का कार्य करता है; जैसे :
अष्टाध्यायी | अष्ट (आठ) अध्यायों का समूह (द्विगु), आठ हैं अध्याय जिसके, पाणिनि का व्याकरण (बहुव्रीहि) |
चारपाई | चार पायों का समूह (द्विगु), चार हैं पाए जिसके अर्थात् चारपाई (बहुव्रीहि) |
त्रिफला | तीन फलों का समाहार (द्विगु), तीन हैं फल जिसमें अर्थात् औषधि विशेष (बहुव्रीहि) |
त्रिनेत्र | तीन नेत्रों का समूह (दविग), तीन हैं नेत्र जिसके अर्थात् शंकर (बहुव्रीहि) |
तिरंगा | तीन रंगों का समाहार (द्विगु), तीन रंगों वाला अर्थात् भारत का राष्ट्रध्वज (बहुव्रीहि) |
समास (पाठ्यपुस्तक पर आधारित)
समस्तपद | विग्रह | भे्द |
विश्वविजयी | विश्व का विजयी | तत्पुरुष समास |
देशभक्ति | देश की भक्ति | तत्पुरुष समास |
दुर्भाग्य | बुरा भाग्य | अव्ययीभाव समास |
परलोक | दूसरा लोक | अव्ययीभाव समास |
वियोगिनी | वियोग में डूबी है जो | बहुव्रीहि समास |
हिमपात | हिम का पात | तत्पुरुष समास |
रेलगाड़ी | रेल की गाड़ी | तत्पुरुष समास |
पर्वतारोही | पर्वत का अरोही | तत्पुरुष समास |
श्रमसाध्य | श्रम से साध्य | तत्पुरुष समास |
आश्चर्यचकित | आश्चर्य से चकित | तत्पुरुष समास |
निस्संकोच | बिना संकोच के | अव्ययीभाव समास |
मार्मिक | मर्म को छूने वाली | बहुव्रीहि समास |
सपरिवार | परिवार सहित | अव्ययीभाव समास |
विश्वविख्यात | विश्व में विख्यात | तत्पुरुष समास |
सुयोग्य | योग्य है जो | बहुव्रीहि समास |
प्रयोगशाला | प्रयोग की शाला | तत्पुरुष समास |
शोधकार्य | शोध का कार्य | तत्पुरुष समास |
भारतीय | भारत में रहने वाले | बहुव्रीहि समास |
मदमस्त | मद से मस्त | तत्पुरुष समास |
क्रांतिकारी | क्रांति लाने वाला | बहुव्रीहि समास |
राजपुरुष | राजा का पुरुष | तत्पुरुष समास |
महादेव | देवों में महान है जो देव | कर्मधारय समास |
उलटना | पुलटना उलटना और पुलटना | वंद्व समास |
संधि और समास में अंतर (Difference between Joining and Compound)
संधि और समास परस्पर मिलती – जुलती प्रक्रियाएँ लगती हैं लेकिन संधि में शब्दों का मेल होता है, जबकि समास में पदों का। परंपरागत संधि के स्थल प्रायः निश्चित हैं अर्थात् संधि में जिन दो शब्दों का योग होता है, उनमें पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की आरंभिक ध्वनि में परिवर्तन होता है। समास में आवश्यक नहीं कि जिन पदों का समाहार हो उनमें ध्वनिगत विकार भी लक्षित हों; जैसे – ‘विद्या के लिए आलय’ से विद्यालय। समास बनाने में विद्या तथा आलय में कोई ध्वनि परिवर्तन नहीं हुआ; केवल इनके बीच प्रयुक्त परसर्ग के लिए’ का लोप हुआ।
समास रचना में भी कहीं – कहीं ध्वनि परिवर्तन होता है; किंतु उसका स्थल संधि की भाँति सीमित या निश्चित न होकर उससे व्यापक होता है अर्थात् उसमें ध्वनि परिवर्तन संधि स्थल से परे पहले शब्द की आरंभिक ध्वनि में भी हो सकता है। जैसे – ‘घोड़ों की दौड़ से घुड़दौड़। समास बनने में पूर्व पद घोड़ों का अंत्य – ओं तो लुप्त हुआ ही, साथ ही उसका आरंभिक वर्ण दीर्घ से ह्रस्व हो गया।
संधि और समास में अर्थ के स्तर पर एक मुख्य अंतर यह है कि संधि में जिन शब्दों का योग रहता है, उनका मूल अर्थ परिवूतत नहीं होता, जैसे – विद्यालय में विद्या और आलय दोनों शब्दों का मूल अर्थ सुरक्षित है; जबकि समास से बने शब्दों का मूल अर्थ सुरक्षित रह भी सकता है (जैसे : देशभक्ति, सेनापति) और नहीं भी (जैसे – जलपान)। जलपान का अर्थ जल का पान नहीं, अपितु नाश्ता, चाय आदि है। ऐसे ही जलवायु, हथकड़ी, कालापानी, आबोहवा पदों का मूल अर्थ बदल गया है।