हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।
समुच्चयबोधक (Samuchchay Bodhak) की परिभाषा भेद और उदाहरण | Conjunction in Hindi Examples
समुच्चयबोधक अव्यय का अर्थ
समुच्चयबोधक (Conjunction) जो अव्यय पद एक शब्द का दूसरे शब्द से, एक वाक्य का दूसरे वाक्य से अथवा एक वाक्यांश का दूसरे वाक्यांश से संबंध जोड़ते हैं, वे ‘समुच्चयबोधक’ या ‘योजक’ कहलाते हैं; जैसे :
राधा आज आएगी और कल चली जाएगी। समुच्चयबोधक के दो प्रमुख भेद हैं :
- समानाधिकरण समुच्चयबोधक (Coordinate Conjunction)
- व्यधिकरण समुच्चयबोधक (Subordinate Conjunction)
समुच्चयबोधक अव्यय के भेद और उदाहरण
1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक-समानाधिकरण समुच्चयबोधक के निम्नलिखित चार भेद हैं :
(क) संयोजक
(ख) विभाजक
(ग) विरोधसूचक
(घ) परिणामसूचक।
(क) संयोजक-जो अव्यय पद दो शब्दों, वाक्यांशों या समान वर्ग के दो उपवाक्यों में संयोग प्रकट करते हैं, वे ‘संयोजक’ कहलाते हैं; जैसे : और, एवं, तथा आदि।
- राम और श्याम भाई-भाई हैं।
- इतिहास एवं भूगोल दोनों का अध्ययन करो।
- फुटबॉल तथा हॉकी दोनों मैच खेलूंगा।
(ख) विभाजक या विकल्प-जो अव्यय पद शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों में विकल्प प्रकट करते हैं, वे ‘विकल्प’ या ‘विभाजक’ कहलाते हैं; जैसे : कि, चाहे, अथवा, अन्यथा, या, नहीं, तो आदि।
- तुम ढंग से पढ़ो अन्यथा फेल हो जाओगे।
- चाहे ये दे दो चाहे वो।
(ग) विरोधसूचक-जो अव्यय पद पहले वाक्य के अर्थ से विरोध प्रकट करें, वे ‘विरोधसूचक’ कहलाते हैं; जैसे : परंतु, लेकिन, किंतु आदि।
- रोटियाँ मोटी किंतु स्वादिष्ट थीं।
- वह आया परंतु देर से।
- मैं तो चला जाऊँगा, लेकिन तुम्हें भी आना पड़ेगा।
(घ) परिणामसूचक-जब अव्यय पद किसी परिणाम की ओर संकेत करता है, तो ‘परिणामसूचक’ कहलाता है; जैसे : इसलिए, अतएव, अतः, जिससे, जिस कारण आदि।
- तुमने मना किया था इसलिए मैं नहीं आया।
- मैंने यह काम खत्म कर दिया जिससे कि तुम्हें आराम मिल सके।
2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक-वे संयोजक जो एक मुख्य वाक्य में एक या अनेक आश्रित उपवाक्यों को जोड़ते हैं, ‘व्यधिकरण समुच्चयबोधक’ कहलाते हैं; जैसे : यदि मेहनत करोगे तो फल पाओगे। व्यधिकरण समुच्चयबोधक के मुख्य चार भेद हैं :
(क) हेतुबोधक या कारणबोधक,
(ख) संकेतबोधक,
(ग) स्वरूपबोधक,
(घ) उद्देश्यबोधक।
(क) हेतुबोधक या कारणबोधक-इस अव्यय के द्वारा वाक्य में कार्य-कारण का बोध स्पष्ट होता है; जैसे : क्योंकि, चूँकि, इसलिए , कि आदि।
- वह असमर्थ है, क्योंकि वह लंगड़ा है।
- चूँकि मुझे वहाँ जल्दी पहुँचना है, इसलिए जल्दी जाना होगा।
(ख) संकेतबोधक-प्रथम उपवाक्य के योजक का संकेत अगले उपवाक्य में पाया जाता है। ये प्रायः जोड़े में प्रयुक्त होते हैं; जैसे : जो……..”तो, यद्यपि …….. तथापि, चाहे…….. पर, जैसे……..”तैसे।
- ज्योंही मैंने दरवाजा खोला त्योंही बिल्ली अंदर घुस आई।
- यद्यपि वह बुद्धिमान है तथापि आलसी भी।
(ग) स्वरूपबोधक-जिन अव्यय पदों को पहले उपवाक्य में प्रयुक्त शब्द, वाक्यांश या वाक्य को स्पष्ट करने हेतु प्रयोग में लाया जाए, उसे ‘स्वरूपबोधक’ कहते हैं; जैसे : यानी, अर्थात् यहाँ तक कि, मानो आदि।
- वह इतनी सुंदर है मानो अप्सरा हो।
- ‘असतो मा सद्गमय’ अर्थात् (हे प्रभु) असत्य से सत्य की ओर ले चलो।
(घ) उद्देश्यबोधक-जिन अव्यय पदों से कार्य करने का उद्देश्य प्रकट हो, वे उद्देश्यबोधक’ कहलाते हैं; जैसे : जिससे कि, की, ताकि आदि।
- वह बहुत मेहनत कर रहा है ताकि सफल हो सके।
- मेहनत करो जिससे कि प्रथम आ सको।