Contents
‘विज्ञापन’ शब्द अंग्रेजी के Advertisement का हिंदी अनुवाद है, जिसका अर्थ सार्वजनिक सूचना, सार्वजनिक घोषणा या ध्यानाकर्षण है। उपयुक्त शब्दों में कहें तो विज्ञापन सूचना या अपील का ललित प्रस्तुतीकरण है।
हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।
विज्ञापन लेखन (Advertisement Making In Hindi) की परिभाषा और उदाहरण | Vigyapan Lekhan in Hindi Examples
विज्ञापन लेखन की परिभाषा
विज्ञापन शब्द दो शब्दों के योग से बना है-वि + ज्ञापन। ‘वि’ उपसर्ग है और उसका अर्थ होता है-‘विशेष’। ‘ज्ञापन’ शब्द का अर्थ है-‘सूचना का ज्ञान’। इसका मिश्रित अर्थ सामान्य रूप में ‘किसी वस्तु या तथ्य की विशेष जानकारी देना’ स्वीकार किया गया है। यद्यपि इसका पाश्चात्य भाषिक पर्याय लैटिन-भाषी ‘एडवर्टर’ से ग्रहण किया गया ‘एडवर्टाइजिंग है’ जिसका अर्थ उस भाषा में ‘टू टर्न टू’ यानी ‘किसी ओर मुड़ना है। दूसरे शब्दों में, कहें तो किसी के प्रति या किसी ओर आकर्षित होना या किसी को आकर्षित करना ही इसका अर्थ है वास्तव में विज्ञापन किसी समुदाय विशेष के लोगों को संबोधित करने का ऐसा अंग है, जो उन्हें वस्तुओं के क्रय करने या किसी वस्तु या सेवा की उपलब्धता या साख वृद्धि के लिए प्रेरित करता है।
“विज्ञापन प्रचार का ऐसा साधन है, जो बिना किसी राजनीतिक, धार्मिक या सांप्रदायिक दबावों के जनता या उपभोक्ता में अपने लिए आवश्यकता या रुझान उत्पन्न करता है तथा अपनी उत्तमता और उपयोगिता की बातें दुहराकर उपभोक्ता की क्रय सामर्थ्य का विकास करता है।
विज्ञापन का उद्देश्य उत्पादक को लाभ पहुँचाना, उपभोक्ता को शिक्षित करना, विक्रेता की मदद करना, प्रतिस्पर्धा को समाप्त कर व्यापारियों को अपनी ओर आकर्षित करना और सबसे अधिक तो उत्पादक और उपभोक्ता से संबंध अच्छे बनाना होता है। विज्ञापन अपने ज्ञान, विचार, उत्पाद, अनुसंधान खोज एवं आविष्कारों के प्रदर्शन का वह सार्थक मंच है जो न केवल उपभोक्ताओं, पाठकों, दर्शकों अथवा श्रोताओं को उस मूलभूत वस्तु, ज्ञान अथवा उत्पाद की जानकारी प्रस्तुत करता है अपितु उसे संबंधित बाज़ार में उपलब्ध अभी तक की श्रेष्ठतम कृति करार करते हुए बदले में भारी आर्थिक प्राप्ति अथवा खरीद हेतु भी पाठक, श्रोता अथवा उपभोक्ता को प्रेरित करता है।
विज्ञापन लेखन की उदाहरण
विज्ञापन की आवश्यकता निम्न प्रकार से प्रस्तुत की जा सकती है-
- नए उत्पादों या नए विचार को प्रोन्नत करना।
- अपने उत्पादों की विशेषताओं की ओर ग्राहकों को आकर्षित करना।
- अपने उत्पादों के संबंध में अपने मत की पुष्टि करना।
- अपने मत की पुष्टि के लिए उचित वातावरण तैयार करना।
- अपने विरोधियों के तर्कों को गलत बताना।
- जनमत जाग्रत करना।
- उत्पाद की बाज़ार में पूर्व-निर्मित छवि को सँभालकर रखना।
- कड़ी स्पर्धा के कारण बाज़ार में लुप्त होते उत्पाद को पुनः स्थापित करना।
- उपभोक्ताओं की आदतों को अपने उत्पाद के पक्ष में बनाए रखना।
- उत्पाद के प्रति दीर्घ अवधि तक विश्वास पैदा करना एवं उसे लंबे समय तक बनाए रखना।
विज्ञापन में किन बातों पर ध्यान रखा जाना चाहिए-
अपने उद्देश्य के अनुरूप एक अच्छे विज्ञापन में इन बातों पर ध्यान दिया जाना चाहिए
- वह उपभोक्ताओं को आकर्षित कर सके। उन्हें प्रभावित कर सके। उन्हें किसी भी प्रकार अपने पक्ष में ले आए।
- जनमानस में अपने ब्रांडेड नेम की छाप बना सके।
- अपनी लोकप्रियता पा सके।
- लोगों को लंबे समय तक उत्पाद का नाम याद रह सके।
- वह सूचनाप्रद हो।
- उपभोक्ता को यह समझाने में सफल रहे कि इस उत्पाद को खरीदने में ही समझदारी है।
विज्ञापन (Objective) के उद्देश्य | Vigyapan Ka Uddeshya In Hindi
1. उत्पादों का व्यापक प्रचार-अत्यंत गुणवत्ता वाला उत्पाद भी तब तक उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित नहीं कर सकता जब तक उसकी गुणवत्ता एवं महत्ता को उपयुक्त तरीके से उपभोक्ताओं तक पहुंचाया न जाए। अतः आवश्यक पत्र-पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों आदि में स्थान क्रय करके विज्ञापन प्रकाशित करवाना जिससे अपने उत्पाद की विशेषताओं एवं गुणवत्ता से उपभोक्ताओं को परिचित करवाया जाए।
2. उत्पाद के प्रति व्यापक अभिरुचि जाग्रत करना-विज्ञापन का उद्देश्य, उत्पादित वस्तु, माल, अनुसंधान अथवा सामग्री के प्रति जनसमुदाय में व्यापक अभिरुचि का निर्माण करना। यदि कोई उत्पाद बाजार में उपलब्ध उत्पादों की तुलना में गुणवत्ता, मूल्य, लागत, स्तरीयता के कारण अत्यंत उपयोगी व महत्त्वपूर्ण हो तो इस सबकी जानकारी संबंधितों तक संप्रेषित करने में विज्ञापन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
3. वितरण और विक्रय में बढ़ावा-विज्ञापन का उद्देश्य महज उत्पादित वस्तु की जानकारी ही उपभोक्ता वर्ग तक पहुंचाना नहीं है बल्कि किए गए अथवा दिए गए विज्ञापन के तहत संबंधित उत्पाद के समुचित वितरण एवं इसकी खरीद में वृद्धि करवाना भी है।
4. उत्पाद के समानांतर संस्थागत प्रतिष्ठा में वृद्धि-विज्ञापन का उद्देश्य उपभोक्ता समाज को इस बात से भी अवगत कराना है कि संबंधित उत्पाद को उत्पादित करने वाली ऐसी प्रतिष्ठित संस्था है जो विश्व बाजार में अपनी अलग पहचान रखती है।
5. उत्पाद संबंधी तुलनात्मक ब्यौरा-विज्ञापन का उद्देश्य उत्पादों की संगत सूचना के साथ-साथ संबंधित उत्पाद के बाजार में पूर्व ही उपलब्ध उत्पादनों से प्रतिस्पर्धात्मक स्तरीयता घोषित करते हुए उपभोक्ताओं को संबंधित उत्पाद की उत्कृष्टता से भी अवगत कराना है।
6. वैज्ञानिक चेतना का विकास-विज्ञापनों का उद्देश्य निरक्षर व अशिक्षित समाज में फैल रहे बेबुनियादी अंध-विश्वासों का निराकरण करना, नई जानकारियाँ प्रस्तुत कर वैज्ञानिक चेतना का विकास करना भी है।
7. उपभोक्ताओं का ध्यानाकर्षण-यह बात अत्यंत सावधानीपूर्वक देखे जाने की होती है कि जिस उत्पाद के संबंध में विज्ञापन जारी किया जा रहा है क्या वह उपभोक्ताओं का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर पाने में सक्षम है या नहीं। इसमें विज्ञापन की भाषा, मौलिक रंगीन चित्र इस प्रकार के हों कि तपाक से उपभोक्ता को अपनी ओर आकर्षित कर ले।
8. आकर्षक नारे व शीर्षक-उत्पाद का विस्तृत विवरण वह प्रभाव नहीं छोड़ पाता जो न्यूनतम शब्दावली सहित प्रयुक्त छंदोबद्ध नए नारे कर पाते हैं। एक छोटी-सी आकर्षक व मन को छू लेने वाली भाषिक प्रयुक्ति भी बड़े-से-बड़े उत्पाद को खरीदने के लिए उपभोक्ता अथवा पाठक को प्रेरित कर देती है।
9. उपभोक्ताओं में विश्वास जगाना-उत्पाद के प्रति उपभोक्ताओं में भरपूर विश्वास निर्मित करने का जिम्मा भी विज्ञापन का ही होता है। उत्पाद की गुणवत्ता के साथ-साथ यह भी विश्वास दिलाना कि यदि संबंधित उत्पाद त्रुटिपूर्ण सिद्ध होता है, जो बिना किसी अतिरिक्त आर्थिक भार के उसी स्तर का नया उत्पाद निशुल्क रूप से विक्रेता कंपनी उनके घर पहुंचाएगी, उपभोक्ताओं में उत्पाद के प्रति निश्चिंतता पैदा करती है।
10. उत्पाद-विक्रय संबंधी आकर्षक योजनाएँ-उपभोक्ताओं तक उत्पाद संबंधी विज्ञापन’ को पहुँचाने तथा आर्थिक रूप में उन्हें उत्पाद को खरीदने हेतु प्रेरित करने में तत्संबंधी उत्पाद के विक्रय की आकर्षक प्रोत्साहन योजनाओं का भी प्रमुख स्थान होता है। निश्चित रूप से उपभोक्ता नई सुझाई गई योजना की ओर ही तीव्रता से आकर्षित होता है।
विज्ञापन के विविध माध्यम
जो संचार माध्यम हैं, वही विज्ञापन के भी माध्यम हैं। विज्ञापन संचार के लिए ही होते हैं। इसलिए विज्ञापन के लिए सूचना-संचार के सभी तरह के माध्यम अपनाए जाते हैं। जैसा कि हम सब जानते हैं, ये माध्यम इस प्रकार हैं
- मुद्रण माध्यम – समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ।
- इलैक्ट्रॉनिक माध्यम
(क) श्रव्य माध्यम – रेडियो, मुनादी आदि।
(ख) श्रव्य दृश्य माध्यम – टेलीविज़न इंटरनेट। - चलचित्र माध्यम -फिल्म।
- अन्य माध्यम – आउट डोर, होर्डिंग, पर्चे, पोस्टर, बैनर, प्रदर्शनी, स्टीकर, उपहार, डायरी, कलैंडर आदि।
विज्ञापन के प्रकार (Vigyapan ke Prakar) Type of advertisement
विज्ञापन कई प्रकार के हो सकते हैं। कुछ निम्नलिखित हैं
1. अनुनय विज्ञापन (Persuasive Advertisement)- ये विज्ञापन उपभोक्ताओं के मन में आकर्षण पैदा कर, अपनी पैठ बनाने के लिए होते हैं।
2. सूचनाप्रद विज्ञापन (Informative Advertisement)- ये विज्ञापन शिक्षाप्रद, सूचनाप्रद, उपभोक्ता समाज के जीवन-स्तर को ऊँचा उठाने अथवा बौद्धिक-आध्यात्मिक उन्नति से संबंधित होते हैं।
3. संस्थानिक विज्ञापन (Institutional Advertisement)-ये विज्ञापन व्यावसायिक अथवा अन्य संस्थाओं द्वारा अपनी गति-प्रगति अथवा साख बढ़ाने के उद्देश्य से प्रसारित-प्रकाशित किए जाते हैं।
4. औद्योगिक विज्ञापन (Industrial Advertisement)- जो कच्चे माल, उपकरण आदि की क्रय में वृद्धि के उद्देश्य से किए जाते हैं।
5. वित्तीय विज्ञापन ( Financial Advertisement)-जिनका संबंध मुख्य रूप से आर्थिक गतिविधियों से होता है; जैसे-शेयर खरीदने आदि के विज्ञापन।
6. वर्गीकृत विज्ञापन (Classified Advertisement)-ये विज्ञापन संक्षिप्त, सज्जारहित तथा अल्प व्ययकारी होते हैं। शोक संवेदना, विवाह, बधाई, खोया-पाया, क्रय-विक्रय, आवश्यकता, नौकरी, वर-वधू आदि से संबंधित विज्ञापन इसी श्रेणी में आते हैं।
7. राजनैतिक विज्ञापन (Political Advertisement)-प्रजातांत्रिक गणराज्यों में राजनैतिक विज्ञापन अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। अपने दल के प्रचारार्थ भिन्न-भिन्न तरह के आकर्षण नारें बनाकर तथा प्रलोभनों का पिटारा खोलकर प्रत्येक नेता जनता का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करती है। लोगों को लुभाने वाले वादे तथा अपने दल की झूठी छवि इन विज्ञापनों का मुख्य आधार होती है।
इनके अतिरिक्त स्मारिका आदि के विज्ञापन, जनमत तैयार करने वाले शिक्षाप्रद विज्ञापन, सरकार की उपलब्धियों, जैसे प्रचारात्मक विज्ञापन भी होते हैं।
समाचार-पत्रों में जिस प्रकार विज्ञापन छपते हैं, उन्हें चार भागों में बाँटा जाता है
- वर्गीकृत विज्ञापन
- सजावटी या डिस्प्ले विज्ञापन
- वर्गीकृत डिस्पले विज्ञापन
- समाचार विज्ञापन
टेलीविज़न विज्ञापन के प्रकार
टेलीविज़न से विज्ञापन दो प्रकार के प्रसारित होते हैं
- प्रायोजित कार्यक्रम
- समय विज्ञापन
टेलीविज़न मीडिया का एक ऐसा सशक्त माध्यम है, जो सभी आयुवर्ग को एक साथ प्रभावित करता है। आज टी०वी० विज्ञापन प्रत्येक वर्ग, लिंग और आयु संवर्ग के लिए प्रसारित होते हैं।
1. प्रायोजित कार्यक्रम-इसके अंतर्गत कार्यक्रम के पूर्व तथा पश्चात् प्रायोजक का नाम तथा अन्य विवरण प्रसारित किए जाते हैं। अधिकांश व्यावसायिक संस्थान मनोरंजन युक्त कार्यक्रमों या धारावाहिकों के लिए प्रायोजना कार्य करके अपने एकाधिकार प्रसारण का अधिकार प्राप्त कर लेते हैं। अनेक बार कार्यक्रम के प्रायोजक सामूहिक रूप से एकत्र होते हैं। इससे यह लाभ रहता है कि कार्यक्रम के आरंभ, मध्य और अंत तक सभी के विज्ञापन क्रमबद्ध रूप से प्रसारित हो जाते हैं। इससे टेलीविज़न संस्थान और प्रायोजक दोनों को आर्थिक दृष्टि से लाभ ही रहता है।
2. समय विज्ञापन-इस प्रकार के विज्ञापनों में वस्तु के गुणों, मूल्य तथा आवश्यक जानकारी दी जाती है।
टेलीविज़न में समय विज्ञापन की अवधि 10-15 सेकेंड ही होनी है। विज्ञापन में निम्न बिंदुओं पर विशेष ध्यान दिया जाता है-
- प्रस्तुतीकरण
- नाटकीयता
- प्रदर्शन
- स्लाइड विज्ञापन
- विश्वसनीयता
- संगीतमयता
विज्ञापन कॉपी लेखन – Vigyapan Copy Lekhan
कॉपी लेखक को विज्ञापन कॉपी बनाते समय निम्न बातों का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि उपभोक्ता को यह पता चल सके कि-
- विज्ञापन वस्तु कहाँ मिल सकेगी?
- आश्वस्त हो सके कि उत्पादक उसके लिए लाभप्रद होगा।
- विज्ञापन अपनी रुचि और विचार के अनुरूप लगे।
- उत्पाद क्रय करने की इच्छा या चाह अनुभव करने लगे।
- विज्ञापन सहज और बोधगम्य लगे, दावे पर अविश्वास न हो।
- विज्ञापन का प्रत्येक वाक्य एवं शब्द रुचि के अनुकूल प्रतीत हो।
- विज्ञापन की भाषा अपने परिवेश के प्रतीक लगे।
- विज्ञापन का मूल कथ्य या वस्तु उसे संतुष्टि की गारंटी देता है।
- विज्ञापन पारस्परिक एवं सांप्रदायिक सौमनस्य पर स्वाभाविक प्रभाव उत्पन्न करे।
- प्रतिस्पर्धी वस्तुओं के अवगुणों के उल्लेख के स्थान पर अपने गुण-वैशिष्टय तथा विज्ञापन अपने उत्पाद की श्रेष्ठता सिद्ध करता हो।
इसके अतिरिक्त कॉपी लेखक को निम्न बिंदुओं पर भी अपना ध्यान केंद्रित करना आवश्यक है-
1. शीर्षक-शीर्षक के बिना किसी भी विज्ञापन की सज्जा या ले-आउट की कल्पना नहीं की जा सकती। शीर्षक विज्ञापन का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग है। कॉपी लेखक को विज्ञापन का प्रथम प्रारूप (ड्राफ्ट) तैयार करते समय यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि जो भी शीर्षक लिखा जाए वह उपभोक्ता, पाठक का ध्यान आकर्षित कर सके। शीर्षक सरल एवं प्रभावपूर्ण तरीके से कम-से-कम शब्दों में संदेश की ओर संकेत करने वाला होना चाहिए।
जैसे- Glucose – Parle Product
50-50 – Britania
नवरत्न तेल
झंडू केसरी जीवन
2. उपशीर्षक-विज्ञापन में मात्र शीर्षक लेखन से ही काम नहीं चलता है। कॉपी – राइटर इस बात पर विशेष ध्यान देता है कि शीर्ष पंक्ति में जो कहा जा चुका है, उसके बाद भी उपभोक्ता को विज्ञापन से पुनः कुछ और भी अवगत कराया जाए। यह उपशीर्षक वास्तव में शीर्षक और कायाकथ्य के बीच सेतु या पुल का कार्य करता है। शीर्षक पढ़ने के उपरांत पाठक या उपभोक्ता के मन में उठने वाले प्रश्नों का उत्तर उपशीर्षक में निहित होता है।
3. काया कथ्य (बॉडी कॉपी)-कॉपी लेखक शीर्षक एवं उपशीर्षक लिखने के बाद वस्तु या उत्पाद के संबंध में विस्तार से बताने के लिए काया कथ्य का प्रयोग करता है। काया कथ्य के द्वारा लेखक उपभोक्ता के मन में इच्छा शक्ति और क्रय-शक्ति जगाता है। यह कथ्य आर्थिक मनोवैज्ञानिक एवं तुलनात्मक दृष्टि से युक्त होता है। लेखक इस बात का ध्यान रखे कि बॉडी कॉपी इतनी छोटी न हो कि ग्राहक की जिज्ञासा को अधूरा छोड़ दे या इतनी बड़ी भी न हो कि पाठक पढ़ते-पढ़ते ऊब जाएँ। बॉडी कॉपी के अंत में पाठक को कुछ करने की सलाह दी गई हो, जैसे-आज ही खरीदें, मुफ्त सेम्पल के लिए लिखें, अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें, तुरंत संपर्क करें आदि।
4. उपसंहार-विज्ञापन में उपसंहार या बेसलाइन का महत्त्व कम नहीं है। कॉपी लेखक विज्ञापन के अंतिम चरण में काया कथ्य समाप्त करते समय प्रेरणादायक वाक्य संरचना से विज्ञापन का सार या निचोड़ प्रस्तुत करता है। जैसे-
सर्वो डालो जान डालो इंडियन आयल
5. विज्ञापन सज्जा (ले-आउट, चित्र)-विज्ञापन में सज्जा (ले-आउट, चित्र, रंगों का चुनाव, खाली जगह, टाइप सेटिंग आदि) का विशेष महत्त्व है। विज्ञापन सज्जा के अंतर्गत चित्र किसी भी कलाकार से बनवा सकते हैं। विज्ञापन में संतुलित, प्रभावशाली रंगों का चुनाव किया जाना चाहिए। विज्ञापन की प्रस्तुति उसके आकर्षक-मुद्रण एवं टाइप-सेटिंग पर निर्भर होती है।
6. ट्रेडमार्क एवं लोगो-सभी विज्ञापनों में ट्रेडमार्क या संस्थान का पहचान चिह्न लोगो लगाया जाता है। इसी से विज्ञापन पर दृष्टि जाती है। विज्ञापन के स्वरूप में परिवर्तन होता जाता है; परंतु उसके ट्रेडमार्क एवं लोगो से उपभोक्ता तुरंत पहचान लेते हैं; जैसे-
निरमा – नाचती हुई लड़की
जगवार कार – चिह्न
ट्रेडमार्क पंजीयन करा लिए जाते हैं और किसी कंपनी की अपनी संपत्ति होते हैं। इसी प्रकार लोगों में कंपनी का नाम इस ढंग या शैली से लिखा या तैयार किया जाता है, जो कंपनी के चरित्र एवं कार्यकलाप या उसके उद्देश्य से मिलता-जुलता होता है।
ट्रेडमार्क या ट्रेड नाम अथवा ब्रांड नाम भी होते हैं-बाटा, टाटा, बिरला, जे०के०, एच०एम०टी०, इसके साथ ही नामपरक-अशोक मसाले, रामदेव हींग, एम०डी०एच० मसाले, महेंद्र ट्रैक्टर्स, एटलस साइकिल, हीरो मोपेड, लखानी चप्पल, हेरीसन ताले, गोदरेज अलमारी आदि-
ध्यान रहे ट्रेडमार्क या ट्रेड नाम कभी दूसरे की कॉपी नहीं किए जा सकते।
7. नारा (स्लोगन )-एक योग्य विज्ञापन कॉपी लेखक सुंदर, प्रभावशाली और सटीक नारा (Slogan) उत्पादों के लिए लिखता है। आकर्षक वायदों एवं आकर्षक ‘जुमलों’ का प्रयोग कर वह उपभोक्ता को आकर्षित करता है। कभी-कभी स्लोगन पढ़कर ही वस्तुएँ खरीदी जाती हैं; जैसे-
हिंदी विज्ञापन कॉपी की भाषा
विज्ञापन कॉपी लेखक को संबंधित वस्तु या लक्ष्य का पूरा ज्ञान होना चाहिए। कॉपी लेखक को निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है-
- विज्ञापित वस्तु की संपूर्ण जानकारी
- उपभोक्ता वर्ग की क्रय-शक्ति
- विज्ञापन निर्माता का बजट
- विज्ञापन का माध्यम (समाचार पत्र/टेलीविज़न)
विज्ञापन लेखक स्वयं को ग्राहक मानकर विज्ञापन-लेखक का कार्य करता है, जिससे यह समझ सकता है कि ग्राहक को कैसी वस्तु की ज़रूरत है, वस्तु कब कहाँ और कितने में मिलेगी? उपभोक्ता की उसमें रुचि जगाए। कॉपी लेखन में कल्पनाशीलता एवं रचनाशीलता का होना जरूरी है। जैसे-
शृंगारिक भाषा का प्रयोग
विज्ञापन की भाषा में शृंगारिक भाषा का विशेष प्रयोग किया जाता है। मनुष्य आज के तनावपूर्ण वातावरण में जिस प्रकार जीवन व्यतीत कर रहा है उसमें यदि कोई काव्यमय पंक्ति सुंदर शब्दावली सहित कोमल भावनाओं को स्पर्श करती है तो वह विज्ञापन कितना सुखद अनुभव देता है। उपभोक्ता क्षणभर के लिए आनंदमय सतरंगी संसार में पहुँच जाता है। इस प्रकार विज्ञापनदाता अपने विज्ञापनों को और अधिक प्रभावक बनाने के लिए इस शृंगारिक वातावरण को उत्पन्न करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार के कुछ विज्ञापन देखिए
1. कल को नन्हीं पिया घर जाए
क्राउन आज भी साथ निभाए
क्राउन टी०वी०
2. अपना सनहरा सपना साकार कीजिए।
ताजे फूलों की महक वाली पॉन्ड्स क्रीम अपनाइए।
3. पल-पल महके ऐसे
पहला प्यार हो जैसे
नया जय सौंदर्य साबुन
4. एक बार हो जाए शौक जिस अंदाज का
सदा साथ रहे जिंदगी का वो जायका
लिप्टन ग्रीन लेवल चाय।
5. नशीला साथ और ताजमहल है हाथ
फिर तो ज़रूर बनेगी
आप दोनों की बात….
ताजमहल पान मसाला
विशेषण worksheet
विशेषणों का प्रयोग
विज्ञापन की भाषा में जहाँ शृंगारिक भाषा का प्रयोग होता है। वहीं विशेषणों का भी काफी प्रयोग किया जाता है। वस्तु की विशेषता को एक अथवा अधिक विशेषणों द्वारा वर्णित किया जाता है। जैसे-
1. केवल एक विशेषण का प्रयोग
– त्वचा में ज्योति जगाए – रेक्सोना।
– गोरेपन की क्रीम – फेयर एंड लवली।
– एक टूथपेस्ट मसूड़ों के लिए – फॉर्हेन्स
– मजेदार भोजन का राज – डालडा
– ताजगी का साबुन – लिरिल
– सुपररिन की चमकार ज्यादा सफ़ेद
2. दो विशेषणों का प्रयोग
– खून को साफ़ करके त्वचा को निखारे-हमदर्द की साफी
– पाँच औषधियों वाला पाचन टॉनिक-झंडु पंचारिष्ट
– बेजोड़ चाय, किफ़ायती दाम-रेड लेबल चाय
– ताजगी व फुर्ती के लिए हॉर्लिक्स
– आप अपना वक्त और ईंधन बचाइए, युनाइटेड प्रेशर कुकर लाइए।
– दूध की सफ़ेदी निरमा से आए,
– रंगीन कपड़ा भी खिल-खिल जाए।
3. तीन या अधिक विशेषणों का प्रयोग
– मुझे चाहिए एक साफ, स्वच्छ स्नान-100% संपूर्ण नया डैटॉल सोप।
– अलबेली और निराली, ज्यादा गारंटी वाली-टाइमस्टार घड़ी।
– डबल डायमंड चाय
– स्वाद में, तेज़ी में, आपके ख्यालों सी ताजगी।
– भीनी-भीनी सुगंध युक्त
– चिपचिपाहिट रहित केश तेल
– स्वस्थ केश-सुंदर केश (केयो कार्पिन केश)