विसर्ग के बाद किसी स्वर अथवा व्यंजन के आने से विसर्ग में जो परिवर्तन होता है, वह ‘विसर्ग संधि‘ कहलाता है। विसर्ग संधि की निम्नलिखित स्थितियाँ दिखाई देती हैं :
हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।
विसर्ग संधि परिभाषा और उदाहरण – Visarg Sandhi Examples
1. विसर्ग का श, ष, स्
यदि विसर्ग के बाद ‘च/छ’ व्यंजन हों तो विसर्ग का ‘श्’, ट/ठ व्यंजन हों तो ‘ए’ तथा त/थ व्यंजन हों तो ‘स्’ हो जाता है; जैसे:
निः | + | चल | = | निश्चल |
निः | + | तुर | = | निष्ठुर |
धनुः | + | टंकार | = | धनुष्टंकार |
निः | + | छल | = | निश्छल |
मनः | + | ताप | = | मनस्ताप |
निः | + | चिंत | = | निश्चित |
निश | + | चय | = | निश्चय |
दुः | + | चरित्र | = | दुश्चरित्र |
दुः | + | चक्र | = | दुश्चक्र |
हरिः | + | चंद्र | = | हरिश्चंद्र |
दुः | + | तर | = | दुस्तर |
निः | + | तेज | = | निस्तेज |
निः | + | तार | = | निस्तार |
नमः | + | ते | = | नमस्ते |
2. विसर्ग में कोई परिवर्तन न होना
(i) यदि विसर्ग के बाद ‘श/ष/स’ में से कोई व्यंजन आए तो विसर्ग यथावत बना रहता है अथवा विसर्ग आगे के व्यंजन का रूप ले लेता है; जैसे :
दुः | + | शासन | = | दुःशासन (दुश्शासन) |
निः | + | संदेह | = | निसंदेह (नि:स्संदेह) |
दु: | + | साहस | = | दुस्साहस |
दुः | + | सह | = | दुस्सह |
निः | + | संतान | = | निस्संतान |
निः | + | संग | = | निस्संग |
निः | + | संकोच | = | निस्संकोच |
(ii) विसर्ग के बाद यदिक/ख अथवा प/फ व्यंजन आएँ तो विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता; जैसे :
रजः | + | कण | = | रजःकण, |
अंतः | + | करण | = | अंत:करण, |
पयः | + | पान | = | पयःपान, |
प्रातः | + | काल | = | प्रातःकाल |
लेकिन यदि विसर्ग के पहले ‘इ/उ’ स्वर हों तो विसर्ग का ‘ए’ हो जाता है; जैसे :
निः | + | कपट | = | निष्कपट |
निः | + | फल | = | निष्फल |
दुः | + | कर्म | = | दुष्कर्म |
निः | + | पाप | = | निष्पाप |
चतुः | + | पाद | = | चतुष्पाद |
निः | + | कलंक | = | निष्कलंक |
दुः | + | कर | = | दुष्कर। |
3. विसर्ग को र
यदि विसर्ग से पहले अ/आ’ से भिन्न कोई स्वर आए और विसर्ग के बाद किसी स्वर, किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण या य, र, ल, व,ह में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ‘र’ में परिवर्तन हो जाता है; जैसे:
दुः | + | उपयोग | = | दुरुपयोग |
दुः | + | लभ | = | दुर्लभ |
निः | + | आशा | = | निराशा |
दुः | + | वासना | = | दुर्वासना |
दुः | + | गुण | = | दुर्गण |
निः | + | भय | = | निर्भय |
निः | + | अर्थक | = | निरर्थक |
निः | + | धन | = | निर्धन |
निः | + | मल | = | निर्मल |
निः | + | गुण | = | निर्गुण |
दुः | + | बल | = | दुर्बल |
दुः | + | जन | = | दुर्जन |
निः | + | आहार | = | निराहार |
दुः | + | आचार | = | दुराचार |
बहिः | + | मुख | = | बहिर्मुख |
दुः | + | बुद्धि | = | दुर्बुद्धि |
निः | + | उपमा | = | निरुपमा |
निः | + | यात | = | निर्यात |
दुः | + | आशा | = | दुराशा |
आशी: | + | वाद | = | आशीर्वाद |
निः | + | उत्साह | = | निरुत्साह |
निः | + | जन | = | निर्जन |
पुनः | + | जन्म | = | पुनर्जन्म |
निः | + | उत्तर | = | निरुत्तर |
निः | + | विघ्न | = | निर्विघ्न |
निः | + | आमिष | = | निरामिष |
निः | + | बल | = | निर्बल |
अंतः | + | गत | = | अंतर्गत |
4. ‘अ’, ‘अ’ के स्थान पर ओ
यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ स्वर और आगे ‘अ’ अथवा कोई सघोष व्यंजन (किसी वर्ग का तीसरा, चौथा, पाँचवाँ वर्ण) अथवा य, र, ल, व, ह में से कोई वर्ण हो तो ‘अ’ और विसर्ग
(अ:) के बदले ‘ओ’ हो जाता है; जैसे :
मनः | + | योग | = | मनोयोग |
अधः | + | गति | = | अधोगति |
मनः | + | हर | = | मनोहर |
तमः | + | गुण | = | तमोगुण |
अधः | + | पतन | = | अधोपतन |
तपः | + | बल | = | तपोबल |
वयः | + | वृद्ध | = | वयोवृद्ध |
यशः | + | दा | = | यशोदा |
रजः | + | गुण | = | रजोगुण |
मनः | + | विकार | = | मनोविकार |
मनः | + | विज्ञान | = | मनोविज्ञान |
पयः | + | द | = | पयोद |
मनः | + | रथ | = | मनोरथ |
मनः | + | विनोद | = | मनोविनोद |
मनः | + | रंजन | = | मनोरंजन |
मनः | + | बल | = | मनोबल |
तपः | + | वन | = | तपोवन |
अधः | + | भाग | = | अधोभाग |
पुनः | + | मिलन | = | पुनर्मिलन, |
अंतः | + | गत | = | अंतर्गत। |
मनः | + | अनुकूल | = | मनोनुकूल |
तेजः | + | राशि | = | तेजोराशि |
मनः | + | कामना | = | मनोकामना |
5. विसर्ग का लोप और पूर्व स्वर दीर्घ
(i) यदि विसर्ग के आगे ‘र’ व्यंजन हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है और उसके पहले का हस्व स्वर दीर्घ हो जाता है; जैसे:
निः | + | रोग | = | नीरोग |
निः | + | रज | = | नीरज |
निः | + | रस | = | नीरस |
निः | + | रव | = | नीरव। |
पहले ‘अ’ या ‘आ’ स्वर हों और बाद में कोई भिन्न स्वर आए तो विसर्ग कालोप हो जाता है: जैसे : अतः + एव = अतएव।
(iii) कुछ शब्दों में विसर्ग का ‘स्’ हो जाता है; जैसे :
नमः | + | कार | = | नमस्कार |
भाः | + | कर | = | भास्कर |
पुरः | + | कार | = | पुरस्कार। |
हिंदी की संधियाँ
हिंदी के अपने तद्भव तथा आगत दोनों ही प्रकार के शब्दों पर संस्कृत के संधि नियम लागू नहीं होते। हिंदी में अपने कुछ संधि नियम विकसित हुए हैं, जो इस प्रकार हैं :
1. महाप्राणीकरण तथा अल्पप्राणीकरण : यदि किसी शब्द के अंत में अल्पप्राण ध्वनि हो और उसके आगे ‘ह’ ध्वनि आ रही हो तो अल्पप्राण ध्वनि महाप्राण हो जाती है। जैसे :
सब | + | ही | = | सभी |
अब | + | ही | = | अभी |
तब | + | ही | = | तभी |
इन | + | ही | = | इन्ही। |
2. अनेक शब्दों में शब्दांत में आने वाली महाप्राण ध्वनि उच्चारण में अल्पप्राण हो जाती है; जैसे :
पढ़ | = | पड़ |
कभी | = | कबी |
दूध | = | दूद |
छठा | = | छटा। |
3. लोप : (क) कभी-कभी कुछ शब्दों में संधि होने पर किसी एक ध्वनि का लोप हो जाता है; जैसे:
‘ही’ में ‘ह’ व्यंजन का लोप :
यह | + | ही | = | यही (ह → ϕ) |
किस | + | ही | = | किसी |
वह | + | ही | = | वही |
उस | + | ही | = | उसी। |
(ख) कभी-कभी यह लोप दोनों शब्दों की ध्वनियों में भी हो सकता है; जैसे :
कहाँ | + | ही | = | कहीं |
यहाँ | + | ही | = | यहीं |
वहाँ | + | ही | = | वहीं। |
यहाँ पहले शब्द से ‘आ’ स्वर का लोप तथा दूसरे से ‘ह’ व्यंजन का लोप हो रहा है तथा पहले स्वर की अनुनासिकता दूसरे स्वर पर पहुँच जाती है।
4. आगम : हिंदी में प्रायः एक साथ दो स्वर उच्चरित नहीं होते। यदि किसी शब्द में दो स्वर एक साथ आ जाते हैं तो दोनों के बीच एक व्यंजन ‘य’ का आगम हो जाता है; जैसे :
ला | + | आ | = | लाया |
कवि | + | ओं | = | कवियों |
पी | + | आ | = | पिया |
लड़की | + | ओं | = | लड़कियों। |
5. ह्रस्वीकरण : समस्त पदों में पहले पद का दीर्घ स्वर अधिकतर शब्दों में ह्रस्व हो जाता है; जैसे :
हाथ | + | कड़ी | = | हथकड़ी |
आधा | + | खिला | = | अधखिला |
बच्चा | + | पन | = | बचपन |
लड़का | + | पन | = | लड़कपन |
कान | + | कटा | = | कनकटा |
काठ | + | पुतली | = | कठपुतली |
लकड़ी | + | आँ | = | लकड़ियाँ |
मीठा | + | बोला | = | मिठबोला |
बहू | + | एं | = | बहूएं |
डाकू | + | ओं | = | डाकुओं |
हिंदू | + | ओं | = | हिंदुओं |
दवाई | + | याँ | = | दवाइयाँ |
6. स्वरों में परिवर्तन : समस्त पदों में भी प्रायः स्वरों में परिवर्तन हो जाता है; जैसे :
घोड़ा | + | सवार | = | घुड़सवार |
छोटा | + | भैया | = | छुटभैया |
मोटा | + | पा | = | मुटापा |
लकड़ी | + | हारा | = | लकड़हारा |
पानी | + | घाट | = | पनघट |
लोटा | + | इया | = | लुटिया |
विसर्ग संधि पाठ्यपुस्तक (स्पर्श-1) में प्रयुक्त संधि शब्द:
प्रति | + | एक | = | प्रत्येक |
सम् | + | कृति | = | संस्कृति |
सर्व | + | अधिक | = | सर्वाधिक |
अधिक | + | अंश | = | अधिकांश |
पर्वत | + | आरोही | = | पर्वतारोही |
सु | + | आगत | = | स्वागत |
गोल | + | अकार | = | गोलाकार |
दु: | + | गम | = | दुर्गम |
कठिन | + | आई | = | कठिनाई |
दुः | + | लभ | = | दुर्लभ |
सम् | + | भव | = | संभव |
सम् | + | सार | = | संसार |
परम् | + | तु | = | परंतु |
सम् | + | बंध | = | संबंध |
अति | + | अंत | = | अत्यंत |
सदा | + | एव | = | सदैव |
सम् | + | मान | = | सम्मान |
निः | + | संकोच | = | निस्संकोच |
सम् | + | भावना | = | संभावना |
सम् | + | पूर्ण | = | संपूर्ण |