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Avyay in Hindi – अव्यय (Indeclinable Words) की परिभाषा एवं उनके भेद और उदाहरण (हिन्दी व्याकरण)

Avyay in Hindi - अव्यय (Indeclinable Words) की परिभाषा एवं उनके भेद और उदाहरण (हिन्दी व्याकरण)

‘अव्यय’ शब्द का अर्थ है, जिस शब्द का कुछ भी व्यय न होता हो। अत: अव्यय वे शब्द हैं जिनके रूप में लिंग-वचन पुरुष-काल आदि व्याकरणिक कोटियों के प्रभाव से कोई परिवर्तन नहीं होता। अतः अव्यय शब्दों को अविकारी शब्द भी कहा जाता है। आज, कल, तेज़, धीरे, अरे, ओह, किंतु, पर, ताकि आदि अव्यय शब्दों के उदाहरण हैं।

अव्यय (Avyay in Hindi Words) की परिभाषा भेद और उदाहरण – Indeclinable Words in Hindi Examples

हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।

अव्यय शब्दों के भेद (Kinds of Indeclinable Words)

Avyay in Hindi - अव्यय (Indeclinable Words) की परिभाषा एवं उनके भेद और उदाहरण (हिन्दी व्याकरण) 1 1. क्रियाविशेषण (Adverb) निम्नलिखित वाक्यों में रंगीन शब्दों पर ध्यान दीजिए :
(क) बच्चे धीरे-धीरे चल रहे थे।
(ख) वे लोग रात को पहुँचे।
(ग) आप यहाँ बैठिए।
(घ) बच्चा बहुत रोया।

रंगीन शब्द, क्रिया के पहले लगकर उसकी विशेषता प्रकट कर रहे हैं। अतः कहा जा सकता है कि :

वे अविकारी (अव्यय)शब्द जो क्रिया की विशेषता प्रकट करते हैं, क्रियाविशेषण कहे जाते हैं। क्रिया की विशेषता प्रायः चार प्रकार से बताई जाती है। क्रिया किस रीति से संपन्न हो रही है; जैसे-धीरे-धीरे; तेजी से; कहाँ घटित हो रही है; जैसे-यहाँ, वहाँ; कब घटित हो रही है; जैसे- शाम को, सुबह को, रात को। इसके अलावा क्रिया की मात्रागत विशेषता भी थोड़ा, बहत, काफ़ी आदि शब्दों से बताई जा सकती है। इन्हीं आधारों पर क्रियाविशेषण के चार भेद हो जाते हैं :
Avyay in Hindi - अव्यय (Indeclinable Words) की परिभाषा एवं उनके भेद और उदाहरण (हिन्दी व्याकरण) 2

(i) रीतिवाचक क्रियाविशेषण (Adverb of Manner)
(ii) स्थानवाचक क्रियाविशेषण (Adverb of Place)
(iii) कालवाचक क्रियाविशेषण (Adverb of Time)
(iv) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण (Adverb of Quantity)।

(i) रीतिवाचक क्रियाविशेषण (Adverbof Manner)- जिन क्रियाविशेषणों से क्रिया के घटित होने की विधिया रीति (Manner) से संबंधित विशेषता का पता चलता है, वे रीतिवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं। इसकी पहचान के लिए क्रिया पर कैसे/किस प्रकार के प्रश्न करने चाहिए। इनके उत्तर में जो शब्द प्राप्त होता है वह ‘रीतिवाचक क्रियाविशेषण’ है; जैसे-‘गाड़ी तेज़ चल रही है’ वाक्य में यदि पूछा जाए कैसे चल रही है? तो उत्तर मिलेगा ‘तेज़।

अतः ‘तेज़’ रीतिवाचक क्रियाविशेषण है; जैसे-रीतिवाचक क्रियाविशेषण शब्दों के अन्य उदाहरण हैं-अचानक, तेज़ी से, भली-भाँति, जल्दी से आदि। देखिए कुछ वाक्य:
(क) गाड़ी प्लेटफार्म पर अचानक आ गई।
(ख) मैं उनसे भली-भाँति परिचित हूँ।
(ग) तुम तो झटपट काम करो।

(ii) स्थानवाचक क्रियाविशेषण (Adverb of Place)- क्रिया के घटित होने के स्थान के विषय में बोध कराने वाले क्रियाविशेषण शब्द स्थानवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं; जैसे-यहाँ, वहाँ, इधर, उधर, नीचे, ऊपर, बाहर, भीतर, आसपास, घर में, स्टेशन पर आदि। ये दो प्रकार के होते हैं :
(क) स्थितिबोधक; जैसे : आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, आर-पार, भीतर, बाहर, सर्वत्र, पास, दूर, यहाँ, वहाँ आदि।
(ख) दिशाबोधक; जैसे : ऊपर की ओर, नीचे की तरफ़, इधर-उधर, चारों ओर आदि।

स्थानवाचक क्रियाविशेषणों की पहचान के लिए क्रिया पर कहाँ’ प्रश्न करना चाहिए। इसके उत्तर में जो शब्द प्राप्त होता है, वह स्थानवाचक क्रियाविशेषण है; जैसे : ‘कमला ऊपर बैठी है’-वाक्य में यदि पूछा जाए-कहाँ बैठी है? तो उत्तर मिलेगा ऊपर’। अतः ‘ऊपर’ स्थानवाचक क्रियाविशेषण है।

(iii) कालवाचक क्रियाविशेषण (Adverb of Time)- वे शब्द जो क्रिया के घटित होने के समय से संबद्ध विशेषता को बताते हैं कालवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं; जैसे : आजकल, कभी, प्रतिदिन, रोज़, सुबह, अकसर, रात को, चार बजे, हर साल आदि। इनकी पहचान के लिए क्रिया पर कब’ प्रश्न करना चाहिए। इसके उत्तर में जो शब्द प्राप्त होगा, वह कालवाचक क्रियाविशेषण है; जैसे : ‘गुरु जी अभी आए हैं’-वाक्य में यदि पूछा जाए-कब आए हैं? तो उत्तर मिलेगा अभी’। अतः ‘अभी’ कालवाचक क्रियाविशेषण है। कालवाचक क्रियाविशेषण तीन प्रकार के होते हैं :

(i) कालबिंदुवाचक : प्रातः, सायं, आज, अभी, अब, जब, कभी, कल आदि।
(ii) अवधिवाचक : हमेशा, लगातार, आजकल, सदैव, दिनभर, नित्य आदि।
(iii) बारंबारतावाचक : नित्य, रोज़, हर बार, बहुधा, प्रतिदिन आदि।

(iv) परिमाणवाचक क्रियाविशेषण (Adverb of Quantity)- जिन क्रियाविशेषणों से क्रिया के परिमाण या मात्रा से संबंधित विशेषता का पता चलता है वे परिमाणवाचक क्रियाविशेषण कहलाते हैं। इन शब्दों से यह पता चलता है कि क्रिया किस मात्रा में हुई। अतः इनकी पहचान के लिए क्रिया पर कितना/कितनी’ प्रश्न करना चाहिए। कुछ उदाहरण देखिए :

  • वह दूध बहुत पीता है।
  • मैं जितना खाता हूँ, उतना मोटा होता हूँ।
  • वह थोड़ा ही चल सकी।

इन वाक्यों में रंगीन शब्द परिमाणवाचक क्रियाविशेषण हैं। क्रियाविशेषणों की रचना-क्रियाविशेषणों की रचना दो प्रकार से होती है :
(क) मूल क्रियाविशेषण-कुछ शब्द मूलतः क्रियाविशेषण ही होते हैं अर्थात् किसी अन्य शब्द अथवा प्रत्यय के योग के बिना ही प्रयोग में लाए जाते हैं; जैसे : आज, कल, यहीं, इधर, ऊपर, नीचे, ठीक, चाहे आदि।

(ख) क्रियाविशेषण-कछ क्रियाविशेषण की रचना किसी दसरे शब्द में प्रत्यय लगाकर होती है। इन्हें यौगिक क्रियाविशेषण कहते हैं; जैसे-यथा + शक्ति = यथाशक्ति, प्रेम + पूर्वक = प्रेमपूर्वक, स्वभाव + तः = स्वभावतः, अन + जाने = अनजाने, दिन + रात = दिनरात, धीरे-धीरे, रात + भर आदि।

विशेष- यद्यपि क्रियाविशेषण अविकारी शब्द हैं, तथापि कभी-कभी क्रियाविशेषण शब्दों में भी कुछ परिवर्तन आ जाता है; जैसे-
(क) आम अच्छा पका है। लीची अच्छी पकी है।
(ख) कोट अच्छा धुला है। साड़ी अच्छी धुली है।

क्रियाविशेषण संबंधी कुछ महत्त्वपूर्ण बिंदु

कुछ शब्द तो मूलतः क्रियाविशेषण ही होते हैं; जैसे : कल, आज, अब, तब, यहाँ, वहाँ, ऊपर, नीचे, हमेशा आदि। परंतु कुछ शब्द अन्य शब्दों में प्रत्यय लगाकर या समास द्वारा भी बनाए जाते हैं; जैसे : अनजाने, ध्यानपूर्वक आदि। ऐसे क्रियाविशेषण यौगिक क्रियाविशेषण कहलाते हैं।

अनेक शब्द ऐसे हैं, जो विशेषण तथा क्रियाविशेषण दोनों ही रूपों में प्रयुक्त होते हैं। अतः प्रयोग के आधार पर ही यह निर्णय करना चाहिए कि अमुक शब्द विशेषण है या क्रियाविशेषण; जैसे :

  • मुझे मीठा केला बहुत पसंद है। (विशेषण)
  • वह बहुत मीठा गाती है। (क्रियाविशेषण)
  • वह एक अच्छी लड़की है। (विशेषण)
  • वह मुझे अच्छी लगती है। (क्रियाविशेषण)

जिस प्रकार विशेषणों की विशेषता बताने वाले प्रविशेषण शब्द विशेषणों के पहले लगते हैं, उसी तरह से प्रविशेषणों का प्रयोग भी क्रियाविशेषणों के पहले किया जाता है; जैसे :

  • बच्चा बहुत तेजी से दौड़ रहा था।
  • आज उसने थोड़ा कम खाया।

हिंदी में कालवाचक, रीतिवाचक तथा स्थानवाचक क्रियाविशेषणों का प्रयोग एक ही वाक्य में संभव है; जैसे :
Avyay in Hindi - अव्यय (Indeclinable Words) की परिभाषा एवं उनके भेद और उदाहरण (हिन्दी व्याकरण) 3

2. संबंधबोधक (Preposition) जो अव्यय शब्द संज्ञा या सर्वनाम के बाद प्रयुक्त होकर वाक्य में दूसरे शब्दों से उसका संबंध बताते हैं, उन्हें ‘संबंधबोधक’ या ‘परसर्ग’ कहते हैं; जैसे :

  • सीता घर के भीतर बैठी है।
  • शीत के कारण गरीब का बुरा हाल था।

यहाँ हम पाते हैं कि इन वाक्यों में के भीतर’ तथा ‘के कारण’ शब्द संबंधबोधक अव्यय हैं। इन्हें परसर्गीय शब्द भी कहा जा सकता है, लेकिन संबंधबोधक अव्यय परसर्ग रहित भी होते हैं; जैसे-मैं रातभर जागता रहा। इस प्रकार संबंधबोधक अव्यय के दो रूप हमारे सामने आते हैं :
(क) परसर्ग सहित-के बारे, के समान, के सिवा।
(ख) परसर्ग रहित-भर, बिना, पहले, मात्र, अपेक्षा।

इस प्रकार-पहले, सामने, आगे, पास, परे, द्वारा, बिना, ऊपर, नीचे, भीतर, अंदर, ओर, मध्य, बीच में, बाद, निकट, कारण, साथ, समेत, विरुद्ध, पश्चात्, सरीखा, तक, सदृश, प्रतिकूल, मात्र, अपेक्षा, मार्फत आदि संबंधबोधक अव्यय की कोटि में आते हैं।

अर्थ के अनुसार संबंधबोधक अव्यय के कुल आठ भेद हैं :

  1. कालबोधक अव्यय,
  2. स्थानबोधक अव्यय,
  3. दिशाबोधक अव्यय,
  4. साधनबोधक अव्यय,
  5. विषयबोधक अव्यय,
  6. सादृश्यबोधक अव्यय,
  7. मित्रताबोधक अव्यय,
  8. विरोधबोधक अव्यय।

1. कालबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों से काल का बोध हो, वे ‘कालबोधक अव्यय’ कहलाते हैं; जैसे-से पहले, के लगभग, के पश्चात्।

  • ट्रेन समय से पहले आ गई।
  • उसके जाने के लगभग एक घंटे बाद जाऊँगा।

2. स्थानबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों से स्थान का बोध हो, वे ‘स्थानबोधक अव्यय’ कहलाते हैं; जैसे-के पास, के किनारे, से दूर।

  • स्कूल के पास ही राजू का घर है।
  • तालाब के किनारे ही बगीचा है।

3. दिशाबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों से दिशा का बोध हो, उसे ‘दिशाबोधक अव्यय’ कहते हैं; जैसे-की ओर, के आस-पास।

  • आग की ओर मत जाना।
  • घर के आस-पास ही रहना।

4. साधनबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों से साधन का बोध हो, उन्हें ‘साधनबोधक अव्यय’ कहते हैं; जैसे-के द्वारा, के जरिए , के मार्फत।

  • आपके आने की सूचना श्याम के द्वारा मिली।
  • उसके जरिए यह काम होगा।

5. विषयबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों से विषय की जानकारी प्राप्त हो, वे ‘विषयबोधक अव्यय’ कहलाते हैं; जैसे-के बारे, की बाबत आदि।

  • गांधी जी के बारे में बहुत कहा गया है।
  • मोहन की बाबत बात करने आया हूँ।

6. सादृशबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों से सादृश्यता का बोध हो, वे सादृशबोधक अव्यय’ कहलाते हैं; जैसे के समान, की भाँति, के योग्य, की तरह, के अनुरूप आदि।

  • गांधी जी के समान सत्यवादी बनो।
  • सीता, सावित्री की भाँति जीवन जियो।

7. मित्रताबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों से मित्रता का बोध प्रकट हो, वे ‘मित्रताबोधक अव्यय’ कहलाते हैं; जैसे-के अलावा, के सिवा, के अतिरिक्त, के बिना आदि।

  • मोहन के सिवा मेरा कौन है।
  • रामू के बिना मैं नहीं जाऊँगा।

8. विरोधबोधक अव्यय-जिन अव्यय शब्दों से विरोध व्यक्त होता है, वे ‘विरोधबोधक अव्यय’ कहलाते हैं; जैसे के विरुद्ध, के खिलाफ़, के उलटा।

  • उसके विरुद्ध मत बोलो।
  • मेरे खिलाफ़ कोई चुनाव नहीं लड़ेगा।

3. समुच्चयबोधक (Conjunction) जो अव्यय पद एक शब्द का दूसरे शब्द से, एक वाक्य का दूसरे वाक्य से अथवा एक वाक्यांश का दूसरे वाक्यांश से संबंध जोड़ते हैं, वे ‘समुच्चयबोधक’ या ‘योजक’ कहलाते हैं; जैसे :

राधा आज आएगी और कल चली जाएगी। समुच्चयबोधक के दो प्रमुख भेद हैं :

  1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक (Coordinate Conjunction)
  2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक (Subordinate Conjunction)
    Avyay in Hindi - अव्यय (Indeclinable Words) की परिभाषा एवं उनके भेद और उदाहरण (हिन्दी व्याकरण) 4

1. समानाधिकरण समुच्चयबोधक-समानाधिकरण समुच्चयबोधक के निम्नलिखित चार भेद हैं :

(क) संयोजक
(ख) विभाजक
(ग) विरोधसूचक
(घ) परिणामसूचक।

(क) संयोजक-जो अव्यय पद दो शब्दों, वाक्यांशों या समान वर्ग के दो उपवाक्यों में संयोग प्रकट करते हैं, वे ‘संयोजक’ कहलाते हैं; जैसे : और, एवं, तथा आदि।

  • राम और श्याम भाई-भाई हैं।
  • इतिहास एवं भूगोल दोनों का अध्ययन करो।
  • फुटबॉल तथा हॉकी दोनों मैच खेलूंगा।

(ख) विभाजक या विकल्प-जो अव्यय पद शब्दों, वाक्यों या वाक्यांशों में विकल्प प्रकट करते हैं, वे ‘विकल्प’ या ‘विभाजक’ कहलाते हैं; जैसे : कि, चाहे, अथवा, अन्यथा, या, नहीं, तो आदि।

  • तुम ढंग से पढ़ो अन्यथा फेल हो जाओगे।
  • चाहे ये दे दो चाहे वो।

(ग) विरोधसूचक-जो अव्यय पद पहले वाक्य के अर्थ से विरोध प्रकट करें, वे ‘विरोधसूचक’ कहलाते हैं; जैसे : परंतु, लेकिन, किंतु आदि।

  • रोटियाँ मोटी किंतु स्वादिष्ट थीं।
  • वह आया परंतु देर से।
  • मैं तो चला जाऊँगा, लेकिन तुम्हें भी आना पड़ेगा।

(घ) परिणामसूचक-जब अव्यय पद किसी परिणाम की ओर संकेत करता है, तो ‘परिणामसूचक’ कहलाता है; जैसे : इसलिए, अतएव, अतः, जिससे, जिस कारण आदि।

  • तुमने मना किया था इसलिए मैं नहीं आया।
  • मैंने यह काम खत्म कर दिया जिससे कि तुम्हें आराम मिल सके।

2. व्यधिकरण समुच्चयबोधक-वे संयोजक जो एक मुख्य वाक्य में एक या अनेक आश्रित उपवाक्यों को जोड़ते हैं, ‘व्यधिकरण समुच्चयबोधक’ कहलाते हैं; जैसे : यदि मेहनत करोगे तो फल पाओगे। व्यधिकरण समुच्चयबोधक के मुख्य चार भेद हैं :
(क) हेतुबोधक या कारणबोधक,
(ख) संकेतबोधक,
(ग) स्वरूपबोधक,
(घ) उद्देश्यबोधक।

(क) हेतुबोधक या कारणबोधक-इस अव्यय के द्वारा वाक्य में कार्य-कारण का बोध स्पष्ट होता है; जैसे : क्योंकि, चूँकि, इसलिए , कि आदि।

  • वह असमर्थ है, क्योंकि वह लंगड़ा है।
  • चूँकि मुझे वहाँ जल्दी पहुँचना है, इसलिए जल्दी जाना होगा।

(ख) संकेतबोधक-प्रथम उपवाक्य के योजक का संकेत अगले उपवाक्य में पाया जाता है। ये प्रायः जोड़े में प्रयुक्त होते हैं; जैसे : जो……..”तो, यद्यपि …….. तथापि, चाहे…….. पर, जैसे……..”तैसे।

  • ज्योंही मैंने दरवाजा खोला त्योंही बिल्ली अंदर घुस आई।
  • यद्यपि वह बुद्धिमान है तथापि आलसी भी।

(ग) स्वरूपबोधक-जिन अव्यय पदों को पहले उपवाक्य में प्रयुक्त शब्द, वाक्यांश या वाक्य को स्पष्ट करने हेतु प्रयोग में लाया जाए, उसे ‘स्वरूपबोधक’ कहते हैं; जैसे : यानी, अर्थात् यहाँ तक कि, मानो आदि।

  • वह इतनी सुंदर है मानो अप्सरा हो।
  • ‘असतो मा सद्गमय’ अर्थात् (हे प्रभु) असत्य से सत्य की ओर ले चलो।

(घ) उद्देश्यबोधक-जिन अव्यय पदों से कार्य करने का उद्देश्य प्रकट हो, वे उद्देश्यबोधक’ कहलाते हैं; जैसे : जिससे कि, की, ताकि आदि।

  • वह बहुत मेहनत कर रहा है ताकि सफल हो सके।
  • मेहनत करो जिससे कि प्रथम आ सको।

4. विस्मयादिबोधक (Interjection) विस्मय, हर्ष, शोक, आश्चर्य, घृणा, विषाद आदि भावों को प्रकट करने वाले अविकारी शब्द ‘विस्मयादिबोधक’ कहलाते हैं। इन शब्दों का वाक्य से कोई व्याकरणिक संबंध नहीं होता। अर्थ की दृष्टि से इसके मुख्य आठ भेद हैं :

1.  विस्मयसूचक  अरे!, क्या!, सच!, ऐं!, ओह!, हैं!
2.  हर्षसूचक  वाह!, अहा!, शाबाश!, धन्य!
3.  शोकसूचक  ओह !, हाय!, त्राहि त्राहि!, हाय राम!
4.  स्वीकारसूचक  अच्छा!, बहुत अच्छा!, हाँ हाँ!, ठीक!
5.  तिरस्कारसूचक  धिक्!, छिः!, हट!, दूर!
6.  अनुमोदनसूचक  हाँ हाँ!, ठीक!, अच्छा!
7.  आशीर्वादसूचक  जीते रहो!, चिरंजीवी हो! दीर्घायु हो!
8.  संबोधनसूचक  हे!, रे!, अरे!, ऐ!

इन सभी के अलावा कभी-कभी संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया और क्रियाविशेषण आदि का प्रयोग भी विस्मयादिबोधक के रूप में होता है; जैसे:

संज्ञा  शिव, शिव!, हे राम!, बाप रे!
सर्वनाम  क्या!, कौन?
विशेषण  सुंदर!, अच्छा!, धन्य!, ठीक!, सच!
क्रिया  हट!, चुप!, आ गए!
क्रियाविशेषण  दूर-दूर!, अवश्य!

5. निपात
निश्चित शब्द, शब्द-समूह अथवा पूरे वाक्य को अन्य भावार्थ प्रदान करने हेतु जिन शब्दों का प्रयोग होता है, उन्हें निपात कहते हैं। सहायक शब्द होते हुए भी ये वाक्य के अंग नहीं माने जाते। वाक्य में इनके प्रयोग से उस वाक्य का समग्र अर्थव्य होता है।

जो अव्यय किसी शब्द या पद के बाद लगकर उसके अर्थ में विशेष प्रकार का बल भर देते हैं, वे निपात या अवधारक अव्यय कहलाते हैं। हिंदी में प्रचलित महत्त्वपूर्ण निपात निम्नलिखित हैं :

1. ही: इसका प्रयोग व्यक्ति, स्थान या बात पर बल देने के लिए किया जाता है; जैसे :
राजेश दफ़्तर ही जाएगा।
तुम ही वहाँ जाकर यह काम करोगे।
अलका ही प्रथम आने के योग्य है।
2. भी: इसका प्रयोग व्यक्ति, स्थान व वस्तु के साथ अन्य को जोड़ने के लिए किया जाता है; जैसे :
राम के साथ श्याम भी जाएगा।
दिल्ली के अलावा मुंबई भी मुझे प्रिय है।
चावल के साथ दाल भी आवश्यक है।
3. तक: किसी व्यक्ति अथवा कार्य आदि की सीमा निश्चित करता है; जैसे :
वह शाम तक आएगा।
दिल्ली तक मेरी पहुँच है।
वह दसवीं तक पढ़ा हुआ है।
4. केवल/मात्र: केवल या अकेले के अर्थ को महत्त्व देने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है; जैसे :
प्रभु का नाम लेने मात्र से कष्ट दूर हो जाते हैं।
केवल तुम्हारे आने से काम न चलेगा।
दस रुपये मात्र लेकर क्या करोगे।
5. भर: यह अव्यय, सीमितता और विस्तार व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है; जैसे :
वह रातभर रोता रहा।
मैं जीवनभर उसका गुलाम बनकर रहा।
विश्वभर में उसकी ख्याति फैली हुई है।
6. तो: क्रिया के साथ उसका परिणाम व मात्रा आदि को प्रकट करने के लिए इस अव्यय का प्रयोग किया जाता है; जैसे:
तुम आते तो मैं चलता।
वर्षा होती तो फसल अच्छी होती।

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