Contents
NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 3 – काव्य भाग – पथिक provide comprehensive guidance and support for students studying Hindi Aroh in Class 11. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication.
Class 11th Hindi Kavya Khand Chapter 3 Pathik Questions and Answers
पथिक प्रश्न उत्तर
कक्षा 11 हिंदी आरोह के प्रश्न उत्तर पाठ 3
कवि परिचय
रामनरेश त्रिपाठी
● जीवन परिचय-रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 1881 ई० में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक स्थान पर हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा विधिवत् नहीं हुई। इन्होंने स्वाध्याय से हिंदी, अंग्रेजी, बांग्ला और उर्दू का ज्ञान प्राप्त किया। इनकी कविताओं का विषय-वस्तु देश-प्रेम और वैयक्तिक प्रेम हैं। इन्होंने 20 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा की तथा हजारों ग्रामगीतों का संकलन भी किया। इनकी मृत्यु 1962 ई० में हुई।
● रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-
खड काव्य-पथिक, मिलन, स्वप्न।
कविता-संग्रह-मानसी।
संपादन-कविता कौमुदी, ग्रामगीत।
आलोचना-गोस्वामी तुलसीदास और उनकी कविता।
● साहित्यिक विशेषताएँ-रामनरेश त्रिपाठी छायावाद पूर्व की खड़ी बोली के महत्वपूर्ण कवि माने जाते हैं। इन्होंने अपने समय के समाज सुधार के स्थान पर रोमांटिक प्रेम को कविता का विषय बनाया। इनकी कविताओं में देश-प्रेम और वैयक्तिक प्रेम, दोनों मौजूद हैं, लेकिन देश-प्रेम को विशेष स्थान दिया है-
“पराधीन रहकर अपना सुख शोक न कह सकता है।
यह अपमान जगत में केवल पशु ही सह सकता है।”
‘कविता कौमुदी’ संकलन में इन्होंने हिंदी, उर्दू, बांग्ला और संस्कृत की लोकप्रिय कविताओं का संकलन किया है। ग्रामगीतों के संकलन से इन्होंने लोकसाहित्य का संरक्षण किया।
हिंदी में ये बाल साहित्य के जनक माने जाते हैं। इन्होंने कई वर्ष तक बानर नामक बाल पत्रिका का संपादन किया, जिसमें मौलिक एवं शिक्षाप्रद कहानियाँ, प्रेरक प्रसंग आदि प्रकाशित होते थे। कविता के अलावा उन्होंने नाटक, उपन्यास, आलोचना, संस्करण आदि अन्य विधाओं में भी रचनाएँ कीं।
पाठ का साराशा
‘पथिक’ कविता में दुनिया के दुखों से विरक्त काव्य नायक पथिक की प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने की इच्छा का वर्णन किया है। यहाँ वह किसी साधु द्वारा संदेश ग्रहण करके देशसेवा का व्रत लेता है। राजा उसे मृत्युदंड देता है, परंतु उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती है।
सागर के किनारे खड़ा पथिक, उसके सौंदर्य पर मुग्ध है। प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को वह मधुर मनोहर प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है। प्रकृति के प्रति पथिक का यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है। इस रचना में प्रेम, भाषा व कल्पना का अद्भुत संयोग मिलता है।
यह ‘पथिक’ खंडकाव्य का अंश है। इसमें कवि ने प्रकृति के सुंदर रूप का चित्रण किया है। पथिक सागर के किनारे खड़ा है। वह आसमान में मेघमाला और नीचे नीले-समुद्र को देखकर बादलों पर बैठकर विचरण करना चाहता है। वह लहरों पर बैठकर समुद्र का कोना-कोना देखना चाहता है। समुद्र तल से आते हए सूरज को देखकर कवि कल्पना करता है मानो सूर्य की किरणों ने लक्ष्मी को लाने के लिए सोने की सड़क बना दी हो। वह सागर की मजबूत, भयहीन व धीर गर्जनाओं पर मुग्ध है तथा असीम आनंद पाता है। चंद्रमा के उदय के बाद आकाश में तारे छिटक जाते हैं और कवि उस सौंदर्य पर मुग्ध है। चंद्रमा की रोशनी से वृक्ष अलंकृत से हो जाते हैं, पक्षी चहक उठते हैं, फूल महक उठते हैं तथा बादल बरसने लगते हैं। पथिक भी भावुक होकर आँसू बहाने लगता है। पथिक लहर, समुद्र, तट, पत्ते, वृक्ष पहाड़ आदि सबको पाकर सुख व आनंद का जीवन जीना चाहता है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1.
प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही हैं नभ में वारिद-माला।
नीचे नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन है।
घन पर बैठ, बीच में बिचरूं यही चाहता मन है।
रत्नाकर गजन करता है, मलयानिल बहता है।
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता हैं।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के घर के-
कोने-कोने में लहरों पर बैठ फिरू जी भर के। (पृष्ठ-142)
शब्दार्थ
प्रतिक्षण-हर समय। नूतन-नया। वेश-रूप। रंग-बिरंग-रंगीन। निराला-अनोखा। रवि-सूर्य। सम्मुख-सामने। थिरक-नाच। नभ-आकाश। वारिद-माला-गिरती हुई वर्षा की लड़ियाँ। नील-नीला। मनोहर-सुंदर। गगन-आकाश। घन-बादल। बिचरूं-विचरण करूं। रत्नाकर-समुद्र। मलयानिल-मलय पर्वत से आने वाली सुगंधित हवा। हौसला-उत्साह। विस्तृत-फैली हुई। महिमामय-महान।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।
व्याख्या-प्रस्तुत कविता में पथिक कहता है कि आकाश में सूर्य के सामने बादलों का समूह हर क्षण नए रूप बनाकर निराले रंग में नाचता प्रतीत हो रहा है। नीचे नीला समुद्र है तथा ऊपर मन को हरने वाला नीला आकाश है। ऐसे में पथिक का मन चाहता है कि वह मेघ पर बैठकर इन दोनों के बीच विचरण करे।
पथिक कहता है कि उसके सामने समुद्र गर्जना कर रहा है और मलय पर्वत स आने वाली सुगंधित हवाएँ भी बह रही हैं। वह प्रिय को संबोधित करता है कि इन दृश्यों से मेरे मन में उत्साह भरा रहता है। मैं भी चाहता हूँ कि लहरों पर बैठकर समुद्र के इस विशालकाय व महिमा से युक्त घर के कोने-कोने को देखें।
विशेष-
- कवि ने प्रकृति का सुंदर चित्रण किया है।
- बादलों द्वारा नृत्य करने में मानवीकरण अलंकार है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
- मुक्त छंद है।
- ‘कोने-कोने’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- संबोधन शैली है।
● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. कवि किस दृश्य पर मुग्ध है?
2. बादलों को देखकर कवि का मन क्या करता है?
3. समुद्र के बारे में कवि क्या कहता है?
4. ‘कोने-कोने ’जी भर के।” पंक्ति का आशय बताइए।
उत्तर-
- कवि सूरज की धूप व बादलों की लुका-छिपी पर मुग्ध है। आकाश भी नीला है तथा मनोहर समुद्र भी नीला और विस्तृत है।
- बादलों को देखकर कवि का मन करता है कि वह बादल पर बैठकर नीले आकाश और समुद्र के मध्य विचरण करे।
- समुद्र के बारे में पथिक के माध्यम से कवि बताता है कि यह रत्नों से भरा हुआ है। यहाँ सुगंधित हवा बह रही है तथा समुद्र गर्जना कर रहा है।
- इसका अर्थ है कि कवि लहरों पर बैठकर महान तथा दूर-दूर तक फैले सागर का कोना-कोना घूमकर उसके अनुपम सौंदर्य को देखना चाहता है।
2.
निकल रहा हैं जलनिधि-तल पर दिनकर-बिब अधूरा।
कमला के कचन-मदिर का मानों कात कैंगूरा।
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।
निर्भय, दृढ़, गभीर भाव से गरज रहा सागर है।
लहरों पर लहरों का आना सुदर, अति सुदर हैं।
कहो यहाँ से बढ़कर सुख क्या पा सकता है प्राणी?
अनुभव करो हृदय से, ह अनुराग-भरी कल्याणी। (पृष्ठ-142)
शब्दार्थ
जलनिधि-सागर। दिनकर-सूर्य। बिंब-छवि। कमला-लक्ष्मी। कंचन-सोना। कांत-सुंदर। कैंगूरा-महल का ऊपरी भाग, गुंबद, बूर्ज। निज-अपना। असवारी-सवारी। रत्नाकर-समुद्र। स्वर्ण-सोना। निर्भय-निडर। दृढ़-मजबूत। गंभीर-गहरा। अनुराग-प्रेम। कल्याणी-मंगलकारिणी।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।
व्याख्या-पथिक सूर्योदय का वर्णन करते हुए कहता है कि समुद्र की सतह से सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है अर्थात् आधा सूर्य जल के अंदर है तथा आधा बाहर। ऐसा लगता है मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ कैंगूरा हो। पथिक को लगता है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए अति प्यारी सोने की सड़क बना दी हो। सुबह सूर्य का प्रकाश समुद्र तल पर सुनहरी सड़क का दृश्य प्रस्तुत करता है।
समुद्र भयरहित, मजबूत व गंभीर भाव से गरज रहा है। उस पर लहरें एक के बाद एक आ रही हैं, जो बहुत सुंदर हैं। वह अपनी प्रिया को कहता है कि हे प्रेममयी मंगलकारी प्रिया! तुम अपने हृदय से इस सौंदर्य का अनुभव करो और बताओ कि यहाँ जो सुख मिल रहा है, क्या उससे अधिक सुख कहीं मिल सकता है? अर्थात् इस सौंदर्य का कोई मुकाबला नहीं है।
विशेष-
- कवि ने सूर्योदय का अद्भुत वर्णन किया है; जैसे-स्वर्णमार्ग की कल्पना।
- कवि प्रकृति-सौंदर्य व प्रिया-प्रेम में प्रकृति को सुंदर मानता है।
- कमला ….. कँगूरा’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
- मुक्त छद है।
- प्रश्न अलंकार है।
- भाषा प्रवाहमयी है।
● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. सूर्योदय देखकर कवि को क्या लगता है?
2. सागर के विषय में पथिक क्या बताता है?
3. पथिक अपनी प्रिया को कैसे संबोधित करता है तथा उसे क्या बताना चाहता है?
4. ‘कमला का कचन-मंदिर’ किसे कहा गया है?
उत्तर-
- सूर्योदय का दृश्य देखकर कवि को लगता है कि समुद्र तल पर सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है अर्थात् आधा सूर्य जल के अंदर है तथा आधा बाहर, मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ कैंगूरा हो।
- सागर के विषय में पथिक बताता है कि वह निर्भय होकर मजबूती के साथ गंभीर भाव से गरज रहा है, उस पर लहरों का आना-जाना बहुत सुंदर लगता है।
- पथिक ने अपनी प्रिया को ‘अनुराग भरी कल्याणी’ कहकर संबोधित किया है। वह उसे बताना चाहता है कि प्रकृति-सौंदर्य असीम है। उसका कोई मुकाबला नहीं है।
- कमला का कंचन-मंदिर उदय होते सूर्य का छोटा-अंश है। यह कवि की नूतन कल्पना है। लक्ष्मी का निवास सागर ही है जहाँ से सूरज निकल रहा है।
3.
जब गभीर तम अद्ध-निशा में जग को ढक लता है।
अतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता हैं।
सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।
उसमें ही विमुग्ध हो नभ में चद्र विहस देता है।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।
पक्षी हर्ष सभाल न सकतें मुग्ध चहक उठते हैं।
फूल साँस लेकर सुख की सनद महक उठते हैं- (पृष्ठ-143)
शब्दार्थ
गंभीर-गहरा। तम-अँधेरा। अर्द्ध-आधी। निशा-रात्री। जग-संसार। अंतरिक्ष-धरती की सीमा से परे। सस्मित-मुसकराता हुआ। बदन-मुख। जगत-संसार। मृदु-कोमल। गगन-आकाश। विमुग्ध-प्रसन्न। नभ-आकाश। चंद्र-चाँद। विहँस-हँसना। वृक्ष-पेड़। विविध-कई तरह के। पुष्प-फूल। तन-शरीर। हर्ष-खुशी। मुग्ध-प्रसन्न। सानंद-आनंद सहित।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त होकर प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है। कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।
व्याख्या-पथिक बताता है कि जब आधी रात को गहरा अंधकार सारे संसार को ढक लेता है और आकाश की छत पर तारे बिखेर देता है अर्थात् आकाश में तारे चमकने लगते हैं। उस समय मुस्कराते हुए मुख से संसार का स्वामी अर्थात् ईश्वर धीमी गति से आता है और समुद्र तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मनमोहक गीत गाता है।
संसार के स्वामी के इस कार्य पर मुग्ध होकर आकाश में चाँद हँसने लगता है। उस समय प्रकृति भी प्रेम से मुग्ध हो जाती है। वृक्ष अपने पत्तों व फूलों से शरीर को सजा लेते हैं। पक्षी भी खुशी को सँभाल नहीं पाते और मुग्ध होकर चहचहाने लगते हैं। फूल भी सुख की आनंद युक्त साँस लेकर महकने लगते हैं।
विशेष-
- प्रकृति का मनोहारी चित्रण है।
- प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
- कवि की कल्पना अद्भुत है।
- संस्कृतनिष्ठ शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
- मुक्त छद है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- प्रसाद गुण है।
● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- अर्द्धरात्रि का सौदर्य बताइए।
- संसार का स्वामी क्या कार्य करता है?
- चंद्रमा के हँसने का क्या कारण है? “
- वृक्षों व पक्षियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
- अद्र्धरात्रि में संसार पर गहरा अंधकार छा जाता है। ऐसे समय में आकाश की छत पर तारे टिमटिमाने लगते हैं। आकाश गंगा को निहारने के लिए संसार का स्वामी गुनगुनाता है।
- संसार का स्वामी मुसकराते हुए धीमी गति से आता है तथा तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के लिए मधुर गीत गाता है।
- संसार का स्वामी आकाश-गंगा के लिए गीत गाता है। उस प्रक्रिया को देखकर चंद्रमा हँसने लगता है।
- रात में आकाश-गंगा के सौंदर्य, चंद्रमा के हँसने, जगत-स्वामी के गीतों से वृक्ष व पक्षी भी प्रसन्न हो जाते हैं। वृक्ष अपने शरीर को पत्तों व फूलों से सजा लेता है तथा पक्षी चहकने लगते हैं।
4.
वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
मेरा आत्म-प्रलय होता हैं, नयन नीर झड़ते हैं।
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहरी।।
कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल हैं यह प्रेम-कहानी।
जी में हैं अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।
स्थिर, पवित्र, आनद-प्रवाहित, सदा शांति सुखकर हैं।
अहा! प्रेम का राज्य परम सुदर, अतिशय सुदर हैं।।
शब्दार्थ
वन-जंगल। उपवन-बाग। गिरि-पहाड़। सानु-समतल भूमि। कुंज-वनस्पतियों का झुरमुट मेघ-बादल। आत्म-प्रलय-मन का फूट पड़ना। नयन-आँख। नीर-पानी। झड़ना-निकला। तट-किनारा। तृण-घास। तरु-पेड़। नभ-आकाश। जलद-बादल। विश्व-विमोहनहारी-संसार को मुग्ध करने वाली। मनोहर-सुंदर। उज्ज्वल-उजली। जी-दिल। बानी-वाणी। स्थिर-ठहरा हुआ। आनंद-प्रवाहित-आनंद से बहने वाली धारा। सुखकर-सुखदायी। परम-अत्यधिक अतिशय-अत्यधिक।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित कविता ‘पथिक’ से उद्धृत है। इसके रचयिता रामनरेश त्रिपाठी हैं। इस कविता में पथिक दुनिया के दुखों से विरक्त है और प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसना चाहता है, कवि पथिक के प्रकृति-प्रेम के बारे में बताता है।
व्याख्या-पथिक प्रकृति सौंदर्य से अभिभूत है। वह कहता है कि प्रकृति की प्रेमलीला से वन, उपवन, पहाड़, समुद्र तल व वनस्पतियों पर मेघ बरसने लगते हैं। स्वयं पथिक भी भावुक हो जाता है। उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं। वह अपनी प्रिया से कहता है कि समुद्र की लहरों, किनारों, तिनकों, पेड़ों, पर्वतों, आकाश, किरन व बादलों पर लिखी गई विश्व को मोहित करने वाली कहानी को पढो। यह बहुत प्यारी है।
प्रकृति-सौंदर्य की यह प्रेम-कहानी बहुत मधुर, मनोहर व पवित्र है। पथिक चाहता है कि वह इस प्रेम-कहानी का अक्षर बन जाए और विश्व की वाणी बने। यहाँ सदा आनंद प्रवाहित होता है, पवित्रता है तथा सुख देने वाली शांति है। यहाँ प्रेम का राज्य छाया रहता है तथा यह बहुत सुंदर है।
विशेष-
- प्रकृति-प्रेम का उत्कट रूप है।
- प्रश्न, आश्चर्यबोधक व भावबोधक शैली है।
- प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
- संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है।
- मुक्त छंद है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- आँसुओं के लिए ‘नयन-नीर’ सुंदर प्रयोग है।
- ‘सुंदर’ के साथ दो विशेषण-परम व अतिशय बहुत प्रभावी हैं।
● अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- कवि कब भाव-विभोर हो जाता है?
- कवि अपनी प्रेयसी से क्या अपेक्षा रखता है?
- प्रकृति के लिए कवि ने किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया है?
- कवि किसे प्रेम का राज्य कह रहा है? उसकी क्या विशेषता है?
उत्तर-
- वन, उपवन, पर्वत आदि सभी पर बरसते बादलों को देखकर कवि भाव-विभोर हो जाता है। फलस्वरूप उसकी आँखों से आँसू बहने लगते हैं।
- कवि अपनी प्रेयसी से अपेक्षा रखता है कि वह लहर, तट, तिनका, पेड, पर्वत, आकाश, किरण व बादलों पर लिखी हुई प्यारी कहानी को पढ़े और उनसे कुछ सीखे।
- प्रकृति के लिए कवि ने ‘स्थिर, पवित्र, आनंद-प्रवाहित’ तथा ‘सदा शांति सुखकर’ विशेषणों का प्रयोग किया है।
- कवि प्रकृति के असीम सौंदर्य को प्रेम का राज्य कह रहा है। यह प्रेम-राज्य स्थिर, पवित्र शांतिमय, सुंदर व सुखद है।
● काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न
1.
प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही हैं नभ में वारिद-माला।
नीच नील समुद्र मनोहर ऊपर नील गगन हैं।
घन पर बैठ, बीच में बिचरूं यही चाहता मन हैं।
प्रश्न
- भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
- काव्यांश का शिल्प–सौदर्य बताइए।
उत्तर-
- इस काव्यांश में कवि ने पथिक के माध्यम से बादलों के क्षण-क्षण में रूप बदलकर नृत्य करने का वर्णन करता है। प्रकृति का सौंदर्य अप्रतिम है।
- ● प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।
● संगीतात्मकता है। अनुप्रास अलंकार है-नीचे नील, नील गगन।
● खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। मुक्त छद है।
● तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
● कवि की कल्पना निराली है।
● दृश्य बिंब है।
2.
रत्नाकर गजन करता हैं, मलयानिल बहता हैं।
हरदम यह हौसला हृदय में प्रिये! भरा रहता है।
इस विशाल, विस्तृत, महिमामय रत्नाकर के-
घर केकोने-कोने में लहरों पर बैठ. फिरूं जी भर के।
प्रश्न
- भाव-सौंदर्य स्पष्ट करें।
- काव्याश का शिल्प–सौदर्य बताइए।
उत्तर-
- कवि ने पथिक के माध्यम से समुद्र के गर्जन, सुगंधित हवा तथा अपनी इच्छा को व्यक्त किया है। सूर्योदय का सुंदर वर्णन है। पथिक सागर का कोना-कोना देखना चाहता है।
- ● संस्कृतनिष्ठ शब्दावली है; जैसे- रत्नाकर, मलयानिल, विस्तृत।
● ‘कोन-कोने’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
● ‘जी भरकर’ मुहावरे का सटीक प्रयोग है।
● ‘रत्नाकर’ का मानवीकरण किया गया है।
● विशेषणों का सुंदर प्रयोग है; जैसे-विशाल, विस्तृत, महिमामय।
● संबोधन शैली से सौंदर्य में वृद्धि हुई है।
● अनुप्रास अलंकार है-विशाल विस्तृत।
● मुक्त छंद है।
3.
निकल रहा हैं जलनिधि-तल पर दिनकर-बिब अधूरा।
कमला के कचन-मदिर का मानो कात कैंगूरा।
लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निर्मित कर दी स्वर्ण-सड़क अति प्यारी।
प्रश्न
- भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
- शिल्प-सौदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
- पथिक के माध्यम से कवि सूर्योदय का वर्णन करने में अद्भुत कल्पना करता है। वह सूर्योदय के समय समुद्र पर उत्पन्न सौंदर्य से अभिभूत है।
- ● सुनहरी लहरों में लक्ष्मी के मंदिर की कल्पना तथा चमकते सूरज में कैंगूरे की कल्पना रमणीय है।
● स्वर्णिम सड़क का निर्माण भी अनूठी कल्पना है।
● रत्नाकर का मानवीकरण किया गया है। अत: मानवीकरण अलंकार है।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-कमला के कंचन, कांत कैंगूरा।
● ‘कमला के …… ’ कैंगूरा’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
● तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
● ‘असवारी’ शब्द में परिवर्तन कर दिया गया है।
● दृश्य बिंब है।
4.
वन, उपवन, गिरि, सानु, कुंज में मेघ बरस पड़ते हैं।
मेरा आत्म-प्रलय होता है, नयन नीर झड़ते हैं।
पढ़ो लहर, तट, तृण, तरु, गिरि, नभ, किरन, जलद पर प्यारी।
लिखी हुई यह मधुर कहानी विश्व-विमोहनहारी।
प्रश्न
- भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।?
- शिल्प–सौदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
- इस काव्यांश में कवि ने प्रकृति के प्रेम को व्यक्त किया है। सागर किनारे खड़ा होकर ‘पथिक’ सूर्योदय के सौंदर्य पर मुग्ध है।
- ● प्रकृति को मानवीय क्रियाकलाप करते हुए दिखाया गया है। अत: मानवीकरण अलंकार है।
● संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
● ‘आत्म-प्रलय’ कवि की विभोरता का परिचायक है।
● छोटे-छोटे शब्द अर्थ को स्पष्ट करते हैं।
● अनुप्रास अलंकार की छटा है-नयन नीर, तट, तृण, तरु, पर प्यारी, विश्व-विमोहनहारी।
● संगीतात्मकता है।
● संबोधन शैली भी है।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
कविता के साथ
प्रश्न 1:
पथिक का मन कहाँ विचरना चाहता है?
उत्तर-
पथिक का मन बादल पर बैठकर नीलगगन में घूमना चाहता है और समुद्र की लहरों पर बैठकर सागर का कोना-कोना देखना चाहता है।
प्रश्न 2:
सूर्योदय वर्णन के लिए किस तरह के बिंबों का प्रयोग हुआ है?
उत्तर-
सूर्योदय वर्णन के लिए कवि ने निम्नलिखित बिंबों का प्रयोग किया है-
(क) समुद्र तल से उगते हुए सूर्य का अधूरा बिंब अर्थात् गोला अपनी प्रात:कालीन लाल आभा के कारण बहुत ही मनोहर दिखता है।
(ख) वह सूर्योदय के तट पर दिखने वाले आधे सूर्य को कमला के स्वर्ण-मंदिर का कैंगूरा बताता है।
(ग) दूसरे बिंब में वह इसे लक्ष्मी की सवारी के लिए समुद्र द्वारा बनाई स्वर्ण-सड़क बताता है।
प्रश्न 3:
आशय स्पष्ट करें-
(क) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है। तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।
(ख) कैसी मधुर मनोहर उज्ज्वल हैं यह प्रेम कहानी। जी में हैं अक्षर बन इसके बनूँ विश्व की बानी।
उत्तर-
(क) इन पंक्तियों में कवि रात्रि के सौंदर्य का वर्णन करता है। वह बताता है कि संसार का स्वामी मुस्कराते हुए धीमी गति से आता है तथा तट पर खड़ा होकर आकाश-गंगा के मधुर गीत गाता है।
(ख) कवि कहता है कि प्रकृति के सौंदर्य की प्रेम-कहानी को लहर, तट, तिनके, पेड़, पर्वत, आकाश, और किरण पर लिखा हुआ अनुभव किया जा सकता है। कवि की इच्छा है कि वह मन को हरने वाली उज्ज्वल प्रेम कहानी का अक्षर बने और संसार की वाणी बने। वह प्रकृति का अभिन्न हिस्सा बनना चाहता है।
प्रश्न 4:
कविता में कई स्थानों पर प्रकृति को मनुष्य के रूप में देखा गया है। ऐसे उदाहरणों का भाव स्पष्ट करते हुए लिखें।
उत्तर-
कवि ने अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया है जो निम्नलिखित हैं-
(क) प्रतिक्षण नूतन वेश बनाकर रंग-बिरंग निराला।
रवि के सम्मुख थिरक रही है। नभ में वारिद-माला।
भाव-यहाँ कवि ने सूर्य के सामने बादलों को रंग-बिरंगी वेशभूषा में थिरकती नर्तकी रूप में दर्शाया है।
वे सूर्य को प्रसन्न करने के लिए नए-नए रूप बनाते हैं।
(ख) रत्नाकर गर्जन करता है-
भाव-समुद्र के गर्जन की बात कही है। वह गर्जना ऐसी प्रतीत होती है मानो कोई वीरं अपनी वीरता का हुकार भर रहा हो।
(ग) लाने को निज पुण्य भूमि पर लक्ष्मी की असवारी।
रत्नाकर ने निमित कर दी स्वण-सड़क अति प्यारी।
भाव-कवि को सूर्य की किरणों की लालिमा समुद्र पर सोने की सड़क के समान दिखाई देती है, जिसे समुद्र ने लक्ष्मी जी के स्वागत के लिए तैयार किया है। यह आतिथ्य भाव को दर्शाता है।
(घ) जब गभीर तम अद्ध-निशा में जग को ढक लता हैं।
अंतरिक्ष की छत पर तारों को छिटका देता है।
भाव-इस अंश में अंधकार द्वारा सारे संसार को ढकने तथा आकाश में तारे छिटकाने का वर्णन है। इसमें प्रकृति को चित्रकार के रूप में दर्शाया गया है।
(ड) सस्मित-वदन जगत का स्वामी मृदु गति से आता है।
तट पर खड़ा गगन-गगा के मधुर गीत गाता है।
भाव-इस अंश में ईश्वर को मानवीय रूप में दर्शाया है। वह मुस्कराते हुए आकाश-गंगा के गीत गाता है।
(च) उससे ही विमुग्ध हो नभ में चद्र विहस देता है।
वृक्ष विविध पत्तों-पुष्पों से तन को सज लेता है।
फूल साँस लेकर सुख की सनद महक उठते हैं—
भाव-इसमें चंद्रमा को प्रकृति की प्रेम-लीला पर हँसते हुए दिखाया गया है। मधुर संगीत व अद्भुत सौंदर्य पर मुग्ध होकर चंद्रमा भी मानव की तरह हँसने लगता है। वृक्ष भी मानव की तरह स्वयं को सजाते हैं तथा प्रसन्नता प्रकट करते हैं। फूल द्वारा सुख की साँस लेने की प्रक्रिया मानव की तरह मिलती है।
कविता के आस-पास
प्रश्न 1:
समुद्र को देखकर आपके मन में क्या भाव उठते हैं? लगभग 200 शब्दों में लिखें।
उत्तर-
समुद्र अथाह जलराशि का स्रोत है। उसमें तरह-तरह के जीव-जंतु पाए जाते हैं। वह स्वयं में रहस्य है तथा इसी कारण आकर्षण का बिंदु है। मेरे मन में बचपन से ही उत्कंठा रही है कि सागर को समीप से देखें। उसके पास जाकर देखें कि पानी की विशाल मात्रा को यह कैसे नियत्रित करता है? इसमें किस-किस तरह की वनस्पतियाँ तथा जीव हैं? लहरें किस तरह आती-जाती हैं?
समुद्र पर सूर्योदय व सूर्यास्त का दृश्य सबसे अद्भुत होता है। सुबह लाल सूर्य धीरे-धीरे ऊपर उठता है और समुद्र के पानी का रंग धीरे-धीरे बदलता रहता है। पहले वह लाल होता है फिर वह नीले रंग में बदल जाता है। शाम के समय समुद्र की लहरों का अपना आकर्षण है। लहरें एक के बाद एक आती हैं। ये जीवन की परिचायक हैं। समुद्र की गर्जना भी सुनाई देती है। शांत समुद्र मन को भाता है। चाँदनी रात में लहरें मादक सौंदर्य प्रस्तुत करती हैं।
प्रश्न 2:
प्रेम सत्य है, सुंदर है-प्रेम के विभिन्न रूपों को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर परिचर्चा करें।
उत्तर-
यह सही है कि प्रेम सत्य है और सुंदर है। यह अनुभूति हमें ईश्वर का बोध कराती है। प्रेम के अनेक रूप होते हैं-
● मौ का प्रेम
● देश–प्रेम
● प्रेयसी-प्रेम
● मानव-प्रेम
● सहचरणी-प्रेम
● प्रकृति–प्रेम
● बाल-प्रेम
उपर्युक्त बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए विद्यार्थी स्वयं परिचर्चा आयोजित करें।
प्रश्न 3:
वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं इस पर चर्चा करें और लिखें कि प्रकृति से जुड़े रहने के लिए क्या कर सकते हैं?
उत्तर-
यह सही है कि वर्तमान समय में हम प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं। आज अपनी सुविधाओं के लिए हम जंगलों को काटकर कंक्रीट के नगर-महानगर बसाते जा रहे हैं। रोजगार के लिए चारों तरफ से लोग यहाँ आकर छोटे-छोटे घरों में रहते हैं। यहाँ रहने वाला व्यक्ति कभी प्रकृति के संपर्क में नहीं रह सकता। उन्हें धूप, छाया, वर्षा, ठंड आदि का आनंद नहीं मिलता। वे लोग गमलों में प्रकृति-प्रेम को दर्शा लेते हैं। यह स्थिति बेहद चिंताजनक है। प्रकृति से जुड़े रहने के लिए हम निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं
- हम कोशिश करें कि मनुष्यों के आवास स्थान पर खुला पार्क हो।
- सार्वजनिक कार्यक्रम प्राकृतिक स्थलों के समीप आयोजित किए जाएँ।
- हर घर में वृक्ष अवश्य हों।
- स्कूलों एवं अन्य संस्थाओं में पौधे लगवाने चाहिए।
- सड़क के दोनों किनारों पर काफी संख्या में वृक्ष लगाएँ।
- महीने में कम-से-कम एक बार नजदीक जगल, नदी, पर्वत या पठार पर जाना चाहिए।
प्रश्न 4:
सागर संबंधी दस कविताओं का संकलन करें और पोस्टर बनाएँ।
उत्तर-
विद्याथी स्वयं करें।
अन्य हल प्रश्न
● लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
‘पथिक” कविता का प्रतिपादय लिखें।
उत्तर-
‘पथिक’ कविता में दुनिया के दुखों से विरक्त काव्य नायक पथिक की प्रकृति के सौंदर्य पर मुग्ध होकर वहीं बसने की इच्छा का वर्णन किया है। यहाँ वह किसी साधु द्वारा संदेश ग्रहण करके देशसेवा का व्रत लेता है। राजा उसे मृत्युदंड देता है, परंतु उसकी कीर्ति समाज में बनी रहती है।
सागर के किनारे खड़ा पथिक, उसके सौंदर्य पर मुग्ध है। प्रकृति के इस अद्भुत सौंदर्य को वह मधुर मनोहर उज्ज्वल प्रेम कहानी की तरह पाना चाहता है। प्रकृति के प्रति पथिक का यह प्रेम उसे अपनी पत्नी के प्रेम से दूर ले जाता है। इस रचना में प्रेम, भाषा व कल्पना का अद्भुत संयोग मिलता है।
प्रश्न 2:
किन-किन पर मधुर प्रेम-कहानी लिखी प्रतीत होती है?
उत्तर-
समुद्र के तटों, पर्ततों, पेड़ों, तिनकों, किरणों, लहरों आदि पर यह मधुर प्रेम-कहानी लिखी प्रतीत होती है।
प्रश्न 3:
‘अहा! प्रेम का राज परम सुंदर, अतिशय सुंदर है।’-भाव स्पष्ट करें।
उत्तर-
कवि प्रकृति के सुंदर रूप पर मोहित है। उसके सौंदर्य से अभिभूत होकर उसे सबसे अधिक सुंदर राज्य कहकर अपने आनंद को अभिव्यक्त कर रहा है।
प्रश्न 4:
सूर्योदय के समय समुद्र के दृश्य का कवि ने किस प्रकार वर्णन किया है?
उत्तर-
पथिक के माध्यम से सूर्योदय का वर्णन करते हुए कवि कहते हैं कि इस समय समुद्र की सतह से सूर्य का बिंब अधूरा निकल रहा है अर्थात् आधा सूर्य जल के अंदर है तथा आधा बाहर। ऐसा लगता है मानो यह लक्ष्मी देवी के स्वर्ण-मंदिर का चमकता हुआ कैंगूरा हो। पथिक को लगता है कि समुद्र ने अपनी पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की सवारी लाने के लिए अति प्यारी सोने की सड़क बना दी हो। सुबह सूर्य का प्रकाश समुद्र तल पर सुनहरी सड़क का दृश्य प्रस्तुत करता है।
NCERT SolutionsHindiEnglishHumanitiesCommerceScience
NCERT Solutions for Class 11 Hindi काव्य भाग
- Hum Toh Ek Ek Kari Jana Class 11 Question Answer
- Mere To Girdhar Gopal Dusro Na Koi Class 11 Question Answer
- Pathik Class 11 Question Answer
- Ve Aankhen Class 11 Question Answer
- Ghar Ki Yaad Class 11 Question Answer
- Champa Kaale-Kaale Achar Nahi Chinhat Class 11 Question Answer
- Gajal Class 11 Question Answer
- Hai Bhukh Mat Machal Class 11 Question Answer
- Sabse Khatarnak Claass 11 Question Answer
- Aao Milkar Bachaye Class 11 Question Answer