NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 8 – काव्य भाग – हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर provide comprehensive guidance and support for students studying Hindi Aroh in Class 11. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication.
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Aroh Chapter 8 – काव्य भाग – हे भूख! मत मचल, हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
कवयित्री परिचय
- जीवन परिचय-इतिहास में शैव आदोलन से जुड़े कवियों और रचनाकारों की लंबी सूची है। अक्क महादेवी इस आंदोलन से जुड़ी एक महत्वपूर्ण कवयित्री थीं। इनका जन्म कर्नाटक के उडुतरी गाँव जिला-शिवमोगा में 12वीं सदी में हुआ। इनके आराध्य चन्नमल्लिकार्जुन देव अर्थात् शिव थे। इनके समकालीन कन्नड़ संत कवि बसवन्ना और अल्लामा प्रभु थे। कन्नड़ भाषा में अक्क शब्द का अर्थ बहिन होता है। अक्क महादेवी अपूर्व सुंदरी थीं। वहाँ का राजा इनके अद्भुत अलौकिक सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो गया तथा इनसे विवाह हेतु इनके परिवार पर दबाव डाला।
अक्क महादेवी ने विवाह के लिए राजा के सामने तीन शतें रखीं। विवाह के बाद राजा ने उन शतों का पालन नहीं किया, इसलिए महादेवी ने उसी क्षण राज-परिवार को छोड़ दिया। अक्क ने इसके बाद जो किया, वह भारतीय नारी के इतिहास की एक विलक्षण घटना बन गई। इससे उनके विद्रोही चरित्र का पता चलता है। अक्क ने सिर्फ राजमहल नहीं छोड़ा, वहाँ से निकलते समय पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति के रूप में अपने वस्त्रों को भी उतार फेंका।
वस्त्रों का उतार फेंकना केवल वस्त्रों का त्याग नहीं, बल्कि एकांगी मर्यादाओं और केवल स्त्रियों के लिए निर्मित नियमों का तीखा विरोध था। स्त्री केवल शरीर नहीं है, इसके गहरे बोध के साथ महावीर आदि महापुरुषों के समक्ष खड़े होने का प्रयास था। इस दृष्टि से देखें तो मीरा की पंक्ति तन की आस कबहू नहीं कीनी ज्यों रणमाँही सूरो अक्क पर पूर्णत: चरितार्थ होती है। अक्क के कारण शैव आदोलन से बड़ी संख्या में स्त्रियाँ जुड़ीं जिनमें अधिकतर निचले तबकों से थीं और अपने संघर्ष व यातना की कविता के रूप में अभिव्यक्ति दी। इस प्रकार अक्कमहादेवी की कविता पूरे भारतीय साहित्य में क्रांतिकारी चेतना का पहला सर्जनात्मक दस्तावेज हैं और संपूर्ण स्त्रीवादी आंदोलन के लिए एक अजस्व प्रेरणास्रोत भी। - प्रमुख रचनाएँ-इनकी रचना हिंदी में वचन-सौरभ के नाम से तथा अंग्रेजी में स्पीकिंग ऑफ शिवा (सं. -ए. के. रामानुजन) है।
पाठ का सारांश
यहाँ इनके दो वचन पाठ्यक्रम में लिए गए हैं। दोनों वचनों का अंग्रेजी से अनुवाद केदारनाथ सिंह ने किया है। प्रथम वचन में इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश दिया गया है। यह उपदेशात्मक न होकर प्रेम-भरा मनुहार है। वे चाहती हैं कि मनुष्य को अपनी भूख, प्यास, नींद आदि वृत्तियों व क्रोध, मोह, लोभ, अह, ईष्र्या आदि भावों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। वह लोगों को समझाती हैं कि इंद्रियों को वश में करने से ही शिव की प्राप्ति संभव है। दूसरा वचन एक भक्त का ईश्वर के प्रति समर्पण है।
चन्नमल्लिकार्जुन की अनन्य भक्त अक्क महादेवी उनकी अनुकंपा के लिए हर भौतिक वस्तु से अपनी झोली खाली रखना चाहती हैं। वे ऐसी निस्पृह स्थिति की कामना करती हैं जिससे उनका स्व या अहंकार पूरी तरह से नष्ट हो जाए। वह ईश्वर को जूही के फूल के समान बताती हैं, वह कामना करती हैं कि ईश्वर उससे ऐसे काम करवाए जिनसे उसका अहंकार समाप्त हो जाए। वह उससे भीख मैंगवाए, भले ही उसे भीख न मिले। वह उससे घर की मोह-माया छुड़वा दे। जब कोई उसे कुछ देना चाहे तो वह गिर जाए और उसे कोई कुत्ता छीनकर ले जाए। कवयित्री का एकमात्र लक्ष्य अपने परमात्मा की प्राप्ति है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1.
हो भूख ! मत मचल
प्यास, तड़प मत हे
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
मद ! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
अो चराचर ! मत चूक अवसर
आई हूँ सदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का
शब्दार्थ
मचल-पाने की जिद। तड़प-छटपटाना। पाश-बंधन। ढील-ढीला करना। मद-नशा। मदहोश-नशे में उन्मत या होश खो बैठना। चराचर-जड़ व चेतन। चूक-छोड़ना, भूलना। चन्नमल्लिकार्जुन-शिव।
प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘वचन’ से उद्धृत है। जो शैव आंदोलन से जुड़ी कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्क महादेवी द्वारा रचित है। वे शिव की अनन्य भक्त थीं। इस पद में कवयित्री इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश देती है।
व्याख्या-इसमें अक्क महादेवी इंद्रियों से आग्रह करती हैं। वे भूख से कहती हैं कि तू मचलकर मुझे मत सता। सांसारिक प्यास को कहती हैं कि तू मन में और पाने की इच्छा मत जगा। हे नींद ! तू मानव को सताना छोड़ दे, क्योंकि नींद से उत्पन्न आलस्य के कारण वह प्रभु-भक्ति को भूल जाता है। हे क्रोध! तू उथल-पुथल मत मचा, क्योंकि तेरे कारण मनुष्य का विवेक नष्ट हो जाता है। वह मोह को कहती हैं कि वह अपने बंधन ढीले कर दे। तेरे कारण मनुष्य दूसरे का अहित करने की सोचता है। हे लोभ! तू मानव को ललचाना छोड़ दे। हे अहंकार! तू मनुष्य को अधिक पागल न बना। ईष्य मनुष्य को जलाना छोड़ दे। वे सृष्टि के जड़-चेतन जगत् को संबोधित करते हुए कहती हैं कि तुम्हारे पास शिव-भक्ति का जो अवसर है, उससे चूकना मत, क्योंकि मैं शिव का संदेश लेकर तुम्हारे पास आई हैं। चराचर को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।
विशेष-
- प्रभु-भक्ति के लिए इंद्रिय व भाव नियंत्रण पर बल दिया गया है।
- सभी भावों व वृत्तियों को मानवीय पात्रों के समान प्रस्तुत किया गया है, अत: मानवीकरण अलंकार है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा है।
- संबोधन शैली है।
- शांत रस का परिपाक है।
- खड़ी बोली है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- कवयित्री ने किन-किन को संबोधित किया है?
- कवयित्री क्या प्रार्थना करती है तथा क्यों?
- कवयित्री चराचर जगत् को क्या प्रेरणा देती है?
- कवयित्री किसकी भक्त है? अपने आराध्य को प्राप्त करने का उसने क्या उपाय बताया है?
उत्तर –
- कवयित्री ने भूख, प्यास, नींद, मोह, ईष्या, मद और चराचर को संबोधित किया है।
- कवयित्री इंद्रियों व भावों से प्रार्थना करती है कि वे उसे सांसारिक कष्ट न दें, क्योंकि इससे उसकी भक्ति बाधित होती है।
- कवयित्री चराचर जगत् को प्रेरणा देती है कि वे इस अवसर को न चूकें तथा सांसारिक मोह को छोड़कर प्रभु की भक्ति करें। वह भगवान शिव का संदेश लेकर आई है।
- कवयित्री चन्नमल्लिकार्जुन अर्थात् शिव की भक्त है। उसने आराध्य को प्राप्त करने का यह उपाय बताया है कि मनुष्य की अपनी इंद्रियों को वश में करने से आराध्य (शिव) की प्राप्ति की जा सकती है।
2.
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि में झूकूं उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
शब्दार्थ
जूही-एक सुगधित फूल। भीख-भिक्षा। हाथ बढ़ाना-सहायता करना। झपटकर-खींचकर।
प्रसंग-प्रस्तुत पद पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-1 में संकलित ‘वचन’ से उद्धृत है। जो शैव आदोलन से जुड़ी कर्नाटक की प्रसिद्ध कवयित्री अक्क महादेवी द्वारा रचित है। वे शिव की अनन्य भक्त थीं। इस पद में कवयित्री ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव व्यक्त करती है। वह अपने अहंकार को नष्ट करके ईश्वर में समा जाना चाहती है।
व्याख्या-कवयित्री ईश्वर से प्रार्थना करती है कि हे जूही के फूल को समान कोमल व परोपकारी ईश्वर! आप मुझसे ऐसे-ऐसे कार्य करवाइए जिससे मेरा अह भाव नष्ट हो जाए। आप ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कीजिए जिससे मुझे भीख माँगनी पड़े। मेरे पास कोई साधन न रहे। आप ऐसा कुछ कीजिए कि मैं पारिवारिक मोह से दूर हो जाऊँ। घर का मोह सांसारिक चक्र में उलझने का सबसे बड़ा कारण है। घर के भूलने पर ईश्वर का घर ही लक्ष्य बन जाता है। वह आगे कहती है कि जब वह भीख माँगने के लिए झोली फैलाए तो उसे कोई भीख नहीं दे। ईश्वर ऐसा कुछ करे कि उसे भीख भी नहीं मिले। यदि कोई उसे कुछ देने के लिए हाथ बढ़ाए तो वह नीचे गिर जाए। इस प्रकार वह सहायता भी व्यर्थ हो जाए। उस गिरे हुए पदार्थ को वह उठाने के लिए झुके तो कोई कुत्ता उससे झपटकर छीनकर ले जाए। कवयित्री त्याग की पराकाष्ठा को प्राप्त करना चाहती है। वह मान-अपमान के दायरे से बाहर निकलकर ईश्वर में विलीन होना चाहती है।
विशेष-
- ईश्वर के प्रति समर्पण भाव को व्यक्त किया गया है।
- जूही के फूल जैसे ईश्वर’ में उपमा अलंकार है।
- अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
- सहज एवं सरल भाषा है।
- ‘घर’ सांसारिक मोह-माया का प्रतीक है।
- ‘कुत्ता’ सांसारिक जीवन का परिचायक है।
- संवादात्मक शैली है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
- कवयित्री आराध्य से क्या प्रार्थना करती है?
- ‘अपने घर भूलने’ से क्या आशय है?
- पहले भीख और फिर भोजन न मिलने की कामना क्यों की गई है?
- ईश्वर को जूही के फूल की उपमा क्यों दी गई है?
उत्तर –
- कवयित्री आराध्य से प्रार्थना करती है कि वह ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करे जिससे संसार से उसका लगाव समाप्त हो जाए।
- ‘अपना घर भूलने’ से आशय है-गृहस्थी के सांसारिक झंझटों को भूलना, जिसे संसार को लोग सच मानने लगते हैं।
- भीख तभी माँगी जा सकती है जब मनुष्य अपने अहभाव को नष्ट कर देता है और भोजन न मिलने पर मनुष्य वैराग्य की तरफ जाता है। इसलिए कवयित्री ने पहले भीख और फिर भोजन न मिलने की कामना की है।
- ईश्वर को जूही के फूल की उपमा इसलिए दी गई है कि ईश्वर भी जूही के फूल के समान लोगों को आनंद देता है, उनका कल्याण करता है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न
1.
हो भूख ! मत मचल
प्यास, तड़प मत हे
हे नींद! मत सता
क्रोध, मचा मत उथल-पुथल
हे मोह! पाश अपने ढील
लोभ, मत ललचा
मद ! मत कर मदहोश
ईर्ष्या, जला मत
अो चराचर ! मत चूक अवसर
आई हूँ सदेश लेकर चन्नमल्लिकार्जुन का
प्रश्न
- इस पद का भाव स्पष्ट करें।
- शिल्प व भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर –
- इस पद में, कवयित्री ने इंद्रियों व भावों पर नियंत्रण रखकर ईश्वर-भक्ति में लीन होने की प्रेरणा दी है। मनुष्य को भूख, प्यास, नींद, क्रोध, मोह, लोभ, ईष्या, अहंकार आदि प्रवृत्तियाँ सांसारिक चक्र में उलझा देती हैं। इस कारण वह ईश्वर-भक्ति के मार्ग को भूल जाता है।
- यह पद कन्नड़ भाषा में रचा गया है। इसका यहाँ अनुवाद है। इस पद में संबोधन शैली का प्रयोग किया है। इंद्रियों व भावों को मानवीय तरीके से संबोधित किया गया है। अत: मानवीकरण अलंकार है। ‘मत मचल’ ‘मचा मत’ में अनुप्रास अलंकार है। प्रसाद गुण है। शैली में उपदेशात्मकता है। खड़ी बोली के माध्यम से सहज अभिव्यक्ति है।
2.
हे मेरे जूही के फूल जैसे ईश्वर
मँगवाओ मुझसे भीख
और कुछ ऐसा करो
कि भूल जाऊँ अपना घर पूरी तरह
झोली फैलाऊँ और न मिले भीख
कोई हाथ बढ़ाए कुछ देने को
तो वह गिर जाए नीचे
और यदि में झूकूं उसे उठाने
तो कोई कुत्ता आ जाए
और उसे झपटकर छीन ले मुझसे।
प्रश्न
- इस पद का भाव स्पष्ट करें।
- शिल्प–सौदंर्य बताइए।
उत्तर –
- इस वचन में, कवयित्री ने अपने आराध्य के प्रति पूर्णत: समर्पित भाव को व्यक्त किया है। वह अपने आराध्य के लिए तमाम भौतिक साधनों को त्यागना चाहती है वह अपने अहकार को खत्म करके ईश्वर की प्राप्ति करना चाहती है। कवयित्री निस्पृह जीवन जीने की कामना रखती है।
- कवयित्री ने ईश्वर की तुलना जूही के फूल से की है। अत: उपमा अलंकार है। ‘मैंगवाओ मुझसे’ व ‘कोई कुत्ता’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘अपना घर’ यहाँ अह भाव का परिचायक है। सुंदर बिंब योजना है, जैसे भीख न मिलने, झोली फैलाने, भीख नीचे गिरने, कुत्ते द्वारा झपटना आदि। खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है। संवादात्मक शैली है। शांत रस का परिपाक है।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
कविता के साथ
प्रश्न 1:
‘लक्ष्य प्राप्ति में इंद्रियाँ बाधक होती हैं’-इसके संदर्भ में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर –
ज्ञानेंद्रियाँ मानव शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग हैं जो अनुभव का साधन हैं। लक्ष्य प्राप्ति की जहाँ तक बात है, यदि वह ईश्वर प्राप्ति है तो वह एक ऐसी साधना के समान है जिसमें इंद्रियाँ बाधक हैं। इस समय भूख, प्यास, लालसा, कामना, प्रेम आदि का अनुभव हमें लक्ष्य से भटका देता है। इन सबका अनुभव इंद्रियाँ करवाती हैं। अतः वे ही बाधक हैं।
प्रश्न 2:
‘ओ चराचर! मत चूक अवसर’- इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
इस पंक्ति में अक्क महादेवी का कहना है कि प्राणियों ने जो जीवन प्राप्त किया है, उसे यदि वे शिव की भक्ति में लगाएँ तो उनका कल्याण हो जाएगा। समय बीत जाने के बाद कुछ नहीं मिलता। जीव इंद्रियों के वश में होकर सांसारिक मोह-माया में उलझा रहता है। वह इन चक्करों में उलझा रहा तो ईश्वर-प्राप्ति का अवसर चूक जाएगा।
प्रश्न 3:
ईश्वर के लिए किस दृष्टांत का प्रयोग किया गया है? ईश्वर और उसके साम्य का आधार बताइए।
उत्तर –
अक्क महादेवी दूसरे वचन में ईश्वर को जूही के फूल के समान बताती हैं। इन दोनों में साम्य का आधार यह है कि जिस प्रकार जूही का फूल श्वेत,सात्विक, कोमल और सुगंधयुक्त है, उसी प्रकार ईश्वर भी समस्त विश्व में सबसे सात्विक, कोमल हृदय हैं। जिस प्रकार जूही का पुष्प अपनी सुगंध बिखेरने में भेदभाव नहीं करता, उसी प्रकार ईश्वर भी अपनी कृपा सब पर समान रूप से बरसाते हैं।
प्रश्न 4:
अपना घर से क्या तात्पर्य है? इसे भूलने की बात क्यों कही गई है?
उत्तर –
‘अपना घर’ से तात्पर्य है-मोहमाया से युक्त जीवन। व्यक्ति इस घर में सभी से लगाव महसूस करता है। वह इसे बनाने व बचाने के लिए निन्यानवे के फेर में पड़ा रहता है। कवयित्री इसे भूलने की बात कहती है, क्योंकि घर की मोह-ममता को छोड़े बिना ईश्वर-भक्ति नहीं की जा सकती। घर का मोह छूटने के बाद हर संबंध समाप्त हो जाता है और मनुष्य एकाग्रचित होकर भगवान में ध्यान लगा सकता है।
प्रश्न 5:
दूसरे वचन में ईश्वर से क्या कामना की गई है और क्यों?
उत्तर –
दूसरे वचन में अक्कमहादेवी ईश्वर से कहती हैं कि मुझसे भीख मँगवाओ; मेरी यह दशा कर दो कि भीख में मिला भी गिर जाए और कुत्ता उसे झपट कर खा जाए। यह सब कामना करने के पीछे कवयित्री की स्वयं के अहंकार को शून्य बनाने की बात छिपी है। संसार द्वारा उपेक्षित और तिरस्कृत व्यवहार से हम ईश्वर की अनन्य भक्ति की ओर प्रवृत्त होते हैं।
कविता के आसपास
प्रश्न 1:
क्या अक्क महादेवी को कन्नड़ की मीरा कहा जा सकता है? चर्चा करें।
उत्तर –
मीराबाई ने भक्ति में लीन होकर घर-परिवार और सांसारिक मोह त्याग दिया था, ठीक ऐसा ही व्यवहार अक्कमहादेवी ने भी किया था। इस दृष्टि से देखें तो मीरा की पंक्ति ‘तन की आस कबहू नहीं कीनी ज्यों रणमाँही सूरो’ अक्कमहादेवी पर पूर्णतः चरितार्थ होती है। पुस्तकालय से दोनों कवयित्रियों का साहित्य लें, तुलनात्मक पद एवं वचन पढ़कर कक्षा में चर्चा का आयोजन करें।
अन्य हल प्रश्न
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
पहले वचन का प्रतिपादय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
प्रथम वचन में इंद्रियों पर नियंत्रण का संदेश दिया गया है। यह उपदेशात्मक न होकर प्रेम-भरा मनुहार है। वे चाहती हैं कि मनुष्य को अपनी भूख, प्यास, नींद आदि वृत्तियों व क्रोध, मोह, लोभ, अह, ईष्र्या आदि भावों पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। वे लोगों को समझाती हैं कि इंद्रियों को वश में करने से शिव की प्राप्ति संभव है।
प्रश्न 2:
दूसरे वचन का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
दूसरा वचन एक भक्त का ईश्वर के प्रति समर्पण है। चन्नमल्लिकार्जुन की अनन्य भक्त अक्कमहादेवी उनकी अनुकंपा के लिए हर भौतिक वस्तु से अपनी झोली खाली रखना चाहती हैं। वे ऐसी निस्पृह स्थिति की कामना करती हैं जिससे उनका स्व या अहंकार पूरी तरह से नष्ट हो जाए। वह ईश्वर को जूही के फूल के समान बताती हैं, वह कामना करती हैं कि ईश्वर उससे ऐसे काम करवाए जिनसे उसका अहकार समाप्त हो जाए। वह उससे भीख मैंगवाए, भले ही उसे भीख न मिले। वह उससे घर की मोह-माया छुड़वा दे। जब कोई उसे कुछ देना चाहे तो वह गिर जाए और उसे कोई कुत्ता छीनकर ले जाए। कवयित्री का एकमात्र लक्ष्य अपने परमात्मा की प्राप्ति है।
प्रश्न 3:
कवयित्री मनोविकारों को क्यों दुकारती है?
उत्तर –
कवयित्री का मानना है कि मनोविकार मनुष्य को सांसारिक मोह-माया में लिप्त रखते हैं। मोह से व्यक्ति वस्तु संग्रह करता है। क्रोध में वह विवेक खोकर हानि पहुँचाता है। लोभ मनुष्य से गलत कार्य करवाता है। अहंकार मानव को मदहोश कर देता है तथा वह स्वयं को महान समझने लगता है। ये सभी मनुष्य को ईश्वरीय भक्ति से दूर ले जाते हैं। इसी कारण मनुष्य का कल्याण नहीं होता।
प्रश्न 4:
कवयित्री शिव का क्या संदेश लेकर आई है?
उत्तर –
कवयित्री शिव की अनन्य भक्त है। वह संसार में शिव का संदेश प्रचारित करना चाहती है कि ईशभक्ति में ही प्राणी की मुक्ति है। शिव करुणामयी हैं तथा संसार का कल्याण करने वाले हैं। जो प्राणी सच्चे मन से उनकी भक्ति करता है, वे उसे मुक्ति प्रदान करते हैं। प्राणी को जीतन में ऐसा अवसर बार-बार नहीं मिलता। अत: उसे इस अवसर को छोड़ाना नहीं चाहिए।
प्रश्न 5:
अक्क महादेवी ईश्वर से भीख मैंगवाने की प्रार्थना क्यों करती है?
उत्तर –
अक्कमहादेवी का मानना है कि व्यक्ति तभी भीख माँगता है जब उसका अहभाव समाप्त हो जाता है। वह निर्विकार हो जाता है। ऐसी दशा में ही ईश्वर भक्ति की जा सकती है। व्यक्ति निस्पृह होकर लोककल्याण की सोचने लगता है।