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NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 16 – गद्य भाग-नमक provides comprehensive guidance and support for students studying Hindi Aroh in Class 12. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication.
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Aroh Chapter 16 – गद्य भाग-नमक
लेखिका परिचय
जीवन परिचय- रजिया सज्जाद जहीर का जन्म 15 फरवरी, 1917 को राजस्थान के अजमेर में हुआ था। इन्होंने बी०ए० तक की शिक्षा घर पर रहकर ही प्राप्त की। शादी के बाद इन्होंने इलाहाबाद से उर्दू में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। सन 1947 में ये अजमेर से लखनऊ आई और वहाँ करामत हुसैन गल्र्ज कॉलेज में पढ़ाने लगीं। सन 1965 में इनकी नियुक्ति सोवियत सूचना विभाग में हुई। इन्हें सोवियत भूमि नेहरू पुरस्कार, उर्दू अकादमी उ०प्र०, अखिल भारतीय लेखिका संघ अवार्ड से नवाजा गया। इनका देहावसान 18 दिसंबर, सन 1979 को हुआ।
रचनाएँ- ये मूलत: उर्दू की कहानी लेखिका हैं। इनकी उर्दू कहानियों के संग्रह का नाम ‘जर्द गुलाब’ है।
साहित्यिक विशेषताएँ- आधुनिक उर्दू कथा-साहित्य में इनका महत्वपूर्ण स्थान है। इन्होंने कहानी, उपन्यास व बाल-साहित्य भी लिखा है। इन्होंने मौलिक लेखन तो किया ही है, साथ ही अन्य भाषाओं के साहित्य का भी उर्दू में अनुवाद किया है। इनकी कहानियों में सामाजिक सद्भाव, धार्मिक सहिष्णुता और आधुनिक संदर्भों में बदलते हुए पारिवारिक मूल्यों को उभारने का सफल प्रयास हुआ है। सामाजिक यथार्थ व मानवीय गुणों का सहज सामंजस्य इनकी कहानियों की विशेषता है।
भाषा-शैली-उर्दू लेखिका रजिया जी की भाषा सहज, सरल और मुहावरेदार है। इनकी कुछ कहानियाँ हिंदी में भी रूपांतरित हो चुकी हैं।
पाठ का प्रतिपाद्य एवं सारांश
प्रतिपादय-‘नमक’ कहानी भारत-पाक विभाजन के बाद सरहद के दोनों तरफ के विस्थापित पुनर्वासित जनों के दिलों को टटोलती एक मार्मिक कहानी है। दिलों को टटोलने की इस कोशिश में अपने-पराये, देस-परदेस की कई प्रचलित धारणाओं पर सवाल खड़े किए गए हैं। विस्थापित होकर आई सिख बीवी आज भी लाहौर को ही अपना वतन मानती हैं और सौगात के तौर पर वहाँ का नमक लाए जाने की फ़रमाइश करती हैं। कस्टम अधिकारी नमक ले जाने की इजाजत देते हुए देहली को अपना वतन बताता है। इसी तरह भारतीय कस्टम अधिकारी सुनील दास गुप्ता का कहना है, ”मेरा वतन ढाका है। राष्ट्र-राज्यों की नयी सीमा-रेखाएँ खींची जा चुकी हैं और मजहबी आधार पर लोग इन रेखाओं के इधर-उधर अपनी जगहें मुकर्रर कर चुके हैं, इसके बावजूद जमीन पर खींची गई रेखाएँ उनके अंतर्मन तक नहीं पहुँच पाई हैं। एक अनचाही, अप्रीतिकर बाहरी बाध्यता ने उन्हें अपने-अपने जन्म-स्थानों से विस्थापित तो कर दिया है, पर वह उनके दिलों पर कब्जा नहीं कर पाई है। नमक जैसी छोटी-सी चीज का सफ़र पहचान के इस मार्मिक पहलू को परत-दर-परत उघाड़ देता है। यह पहलू जब तक सरहद के आर-पार जीवित है, तब तक यह उम्मीद की जा सकती है कि राजनीतिक सरहदें एक दिन बेमानी हो जाएँगी।”
लाहौर के कस्टम अधिकारी का यह कथन बहुत सारगर्भित है-”उनको यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ्ता ठीक हो जाएगा।”
सारांश-सफ़िया अपने पड़ोसी सिख-परिवार के यहाँ कीर्तन में गई थी। वहाँ एक सिख बीवी को देखकर वह हैरान हो गई क्योंकि उसकी आँखें, भारी भरकम जिस्म, वस्त्र आदि सब सफ़िया
की माँ की तरह थे। सफ़िया की प्रेम-दृष्टि से प्रभावित होकर सिख बीवी ने उसके बारे में अपनी बहू से पूछा। जब उसे पता चला कि वह सुबह लाहौर जा रही है तो वह लेखिका के पास आकर लाहौर की बातें करने लगी। उसने बताया कि वह विभाजन के बाद भारत आई थी। उनका वतन तो जी लाहौर ही है। कीर्तन समाप्त होने के समय सफ़िया ने लाहौर से कुछ लाने के लिए पूछा। उसने हिचकिचाहट के साथ लाहौरी नमक लाने के लिए कहा।
वह लाहौर में पंद्रह दिन रुकी। उसके भाइयों ने खूब खातिरदारी की। मिलने वाले अनेक उपहार लेकर आए। उसके सामने सेर भर लाहौरी नमक की पुड़िया ले जाने की समस्या थी। पुलिस अफ़सर भाई ने इसे गैर-कानूनी बताया तथा व्यंग्य किया कि भारत के हिस्से में अधिक नमक आया था। लेखिका इस पर झुंझला गई तथा नमक ले जाने की जिद की। भाई ने कस्टम की जाँच का हवाला दिया तथा बेइज्जती होने का डर दिखाया। लेखिका उसे चोरी से नहीं ले जाना चाहती थी। वह प्रेम की चीज को शालीनता से ले जाना चाहती थी, परंतु भाई ने कानून की सख्ती के विषय में बताया। अंत में वह रोने लगी तथा भाई सिर हिलाकर चुप हो गया।
अगले दिन दो बजे दिन को उसे रवाना होना था। उसने सारी रात पैकिंग की। सारा सामान सूटकेस व बिस्तरबंद में आ गया। अब कीनू की टोकरी तथा नमक की पुड़िया ही शेष रह गई थीं। गुस्सा उतरने पर भावना के स्थान पर बुद्ध धीरे-धीरे हावी हो रही थी। उसने कीनुओं के ढेर के नीचे नमक की पोटली छिपा दी। आते समय उसने देखा था कि भारत से केले जा रहे थे तथा पाकिस्तान से कीनू आ रहे थे। कोई जाँच नहीं हो रही थी। इस तरह नमक सुरक्षित पहुँच जाएगा। फिर वह सो गई। वह लाहौर के सौंदर्य, माहौल व सगे-संबंधियों के बारे में स्वप्न देख रही थी। यहाँ उसके तीन सगे भाई, चाहने वाले दोस्त, नन्हे-नन्हे भतीजे-भतीजियाँ-सब याद आ रहे थे। कल वह लाहौर से जा रही थी। शायद फिर वह न आ सके। फिर उसे इकबाल का मकबरा, लाहौर का किला, सूरज की डूबती किरणें आदि दिखाई दीं।
अचानक उसकी आँखें खुल गई क्योंकि उसका हाथ कीनुओं की टोकरी पर जा पड़ा था। उसके दोस्त ने कहा था कि यह हिंदुस्तान व पाकिस्तान की एकता का मेवा है। वह फस्र्ट क्लास के वेटिंग रूम में बैठी थी। उसके भाई ने उसे दिल्ली तक का टिकट खरीद दिया था। वह सोच रही थी कि आस-पास टहल रहे लोगों में सिर्फ़ वही जानती थी कि टोकरी की तह में कीनुओं के नीचे नमक की पुड़िया है।
जब सामान कस्टम जाँच के लिए जाने लगा तो उसने फैसला किया कि मुहब्बत का यह तोहफ़ा वह चोरी से नहीं ले जाएगी। उसने जल्दी से पुड़िया निकाली और हैंडबैग में रख ली। जब सामान जाँच के बाद रेल की तरफ़ चला तो वह एक कस्टम अफ़सर की तरफ बढ़ी। वह लंबा, पतला, खिचड़ी बालों वाला था। उसने उसके वतन के बारे में पूछा। उसने हैरान होकर अपना वतन दिल्ली बताया। लेखिका ने हैंडबैग मेज पर रख दिया और नमक की पुड़िया निकालकर उसके सामने रख दी तथा उसे सब कुछ बता दिया।
सारी बातें सुनकर उसने पुड़िया को अच्छी तरह लपेटकर स्वयं सफ़िया के बैग में रख दिया तथा कहा कि मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है। उसने जामा मस्जिद की सीढ़ियों को सलाम देने को कहा तथा सिख बीवी को भी संदेश देने को कहा-”लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ्ता-रफ़्ता ठीक हो जाएगा।”
सफ़िया कस्टम के जैगले से निकलकर दूसरे प्लेटफ़ॉर्म पर आ गई। यहाँ सभी ने उसे भावपूर्ण विदाई दी। अटारी में भारतीय पुलिस रेल में चढ़ी। एक जैसी भाषा, सूरत, वस्त्र, लहजा, अंदाज व गालियों आदि के कारण लाहौर खत्म होने व अमृतसर शुरू होने का पता नहीं चला। अमृतसर में कस्टम की जाँच शुरू हुई तो वह कस्टम अफ़सर के पास पहुँची तथा अपने पास नमक होने की पूरी बात कह सुनाई। अफ़सर ने उसे साथ चलने को कहा। एक कमरे में जाकर उसने उसे बैठाया तथा दो चाय लाने का ऑर्डर दिया। उसने मेज की दराज से एक किताब निकाली। उसके पहले पन्ने पर लिखा था-”शमसुल इसलाम की तरफ से सुनील दास गुप्ता को प्यार के साथ, ढाका 1946 ।”
लेखिका के पूछने पर उसने अपने वतन का नाम ढाका बताया। विभाजन के समय वह ढाका में था। जिस दिन वह भारत आ रहा था, उससे एक वर्ष पहले उसकी सालगिरह पर उसके दोस्त ने यह किताब दी थी। फिर वे कलकत्ता में रहकर पढ़े तथा नौकरी करने लगे। उन्होंने बताया कि हम वतन आते-जाते थे। सफ़िया ‘वतन’ की बात पर हैरान थी। कस्टम अफ़सर ने कहा कि अब वहाँ भी कस्टम हो गया। उसने अपने वतन की ‘डाभ’ की प्रशंसा की। चलते वक्त उसने पुड़िया सफ़िया के बैग में रख दी तथा खुद उस बैग को उठाकर आगे-आगे चलने लगा। जब सफ़िया अमृतसर के पुल पर चढ़ रही थी तब वह पुल की सबसे निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप खड़ा था। लेखिका सोच रही थी कि किसका वतन कहाँ है? वह जो इस कस्टम के इस तरफ़ है या उस तरफ़ ?
शब्दार्थ
पृष्ठ-130
कदर-प्रकार। नेकी-भलाई। रहमदिली-दयालुता । मुहर्रम-मुसलमानों का एक त्योहार। उम्दा-अच्छा। नफीसबढ़िया। शौकीन-रसिया। जिदादिली-उत्साह व जोश। साडा-हमारा। दुआ-प्रार्थना। रुखसत-विदा। सौगात-उपहार जिमखाना-व्यायामशाला। खातिरदारी-स्वागत। अजीज-प्रिय।
पृष्ठ-137
सेर- एक किलो से कम। अंदाज़-तरीका। बाजी-बहन जी। कस्टम-सीमा-शुल्क। चिंदी-चिंदी बिखरना-बुरी तरह बिखेरना। जता-बतला। हुकूमत-सरकार। मुरोंवत-मानवीयता लिहाज। शोक-खुशी। स्मगल-गैर-कानूनी व्यापार। ब्लैक माकेट-काला बाजार। बहस-तर्क। अदब-साहित्यकार। बदनामी-अपयश।
पृष्ठ– 133
पैकिंग- सामान बाँधना। सिमट-सहेज। नाजुक-कोमल। हावी होना-भारी पड़ना। तकती-देखती। शहजादा-राजकुमार। रान-जाँघ। खौफनाक-भयानक। सरहद-सीमा। तरकीब-उपाय। दोहर-चादर, लिहाफ़। दरखत-पेड़।
पृष्छ-134
अक्स- प्रतिबिंब। लहका-लहरा। बेशुमार-अत्यधिक। मासूमियत-भोलापन। नारंगी-संतरिया। दूब-एक प्रकार की घास। वेटिंग स्नम-यात्रियों के लिए प्रतीक्षा करने का कमरा। निगाह-नजर।
पृष्ठ-135
द्विरद्विरी- सी-कंपन-सी। पासपोर्ट-विदेश जाने के लिए पहचान-पत्र। खिचड़ी बाल-अधपके बाल। खातून-कुलीन स्त्री। रक्ता-रक्ता-धीरे-धीरे। हसरत-इच्छा।
पृष्ठ-136
ज़बान- भाषा। लिबास-पहनावा । लोबोलहजा-बोलचाल का तरीक। नवाज़ना- सम्मानित- करानाभ। पैर तले ज़मीन खिसकना- यभीत होना। टाइटल-शीर्षक। फख-गर्व। डिवीजन-विभाजन
पृष्ठ– 137
गोलमाल होना- गड़बड़ होना। डाभ-कच्चा नारियल।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1. उन सिख बीवी को देखकर सफ़िया हैरान रह गई थी, किस कदर वह उसकी माँ से मिलती थी। वही भारी भरकम जिस्म, छोटी-छोटी चमकदार आँखें, जिनमें नेकी, मुहब्बत और रहमदिली की रोशनी जगमगाया करती थी। चेहरा जैसे कोई खुली हुई किताब। वैसा ही सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा जैसा उसकी अम्मा मुहर्रम में ओढ़ा करती थी।
जब सफ़िया ने कई बार उनकी तरफ मुहब्बत से देखा तो उन्होंने भी उसके बारे में घर की बहू से पूछा। उन्हें बताया गया कि ये मुसलमान हैं। कल ही सुबह लाहौर जा रही हैं अपने भाइयों से मिलने, जिन्हें इन्होंने कई साल से नहीं देखा। लाहौर का नाम सुनकर वे उठकर सफ़िया के पास आ बैठीं और उसे बताने लगीं कि उनका लाहौर कितना प्यारा शहर है। वहाँ के लोग कैसे खूबसूरत होते हैं, उम्दा खाने और नफीस कपड़ों के शौकीन, सैर-सपाटे के रसिया, जिंदादिली की तसवीर। (पृष्ठ-130)
प्रश्न
(क) सिख बीवी को देखकर सफ़ियाहैरान रह गई, क्यों?
(ख) घर की बहू ने सफ़िया के बारे में क्या बताया?
(ग) सिख बीवी ने लेखिका को क्या बताया ?
(घ) सिख बीवी और सफ़िया में क्या समानता थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(क) जैसे सफ़िया ने सिख बीवी को देखा, वह हैरान रह गई। उनकी शक्ल उसकी माँ से मिलती थी। उनके भारी शरीर नेकी, मुहब्बत, करुणा से भरी, छोटी-छोटी चमकदार आँखें थीं, चेहरे पर कोई छिपाव नहीं था। वे भी माँ की तरह सफेद बारीक मलमल का दुपट्टा ओढ़े हुए थीं।
(ख) घर की बहू ने सिख बीवी को बताया कि सफ़िया मुसलमान है। वह काफी असें के बाद अपने भाइयों से मिलने सुबह लाहौर जा रही है।
(ग) सिख बीवी ने लाहौर के बारे में सफ़िया को बताया कि लाहौर बहुत प्यारा शहर है। वहाँ के लोग बहुत सुंदर हैं। वे बढ़िया खाने व महँगे कपड़ों के शौकीन हैं। वे घूमने के शौकीन व जिंदादिल हैं।
(घ) सिख बीवी और सफ़िया में यह समानता थी कि दोनों ही अपनी जन्मभूमि से अगाध प्रेम करती थीं। यह प्रेम ही सफ़िया को लाहौर खींचे ले जा रहा था तो सिख बीवी के मस्तिष्क में लाहौर की यादें तरोताजी थीं।
2. ”हाँ बेटी! जब हिंदुस्तान बना था तभी आए थे। वैसे तो अब यहाँ भी हमारी कोठी बन गई है। बिजनेस है, सब ठीक ही है, पर लाहौर बहुत याद आता है। हमारा वतन तो जी लाहौर ही है।” फिर पलकों से कुछ सितारे टूटकर दूधिया आँचल में समा जाते हैं। बात आगे चल पड़ती, मगर घूम-फिरकर फिर उसी जगह पर आ जाती-‘साडा लाहौर’! (पृष्ठ-130)
प्रश्न
(क) किसने किसको कहाँ की यादें तरोताजी करा दिया2
(ख) उत्तरदाता ने अपने बारे में क्या बताया?
(ग) सिख बीवी की व्यक्तित्व से क्या पता चलता है?
(घ) सिख बीवी के व्यक्तित्व से आप कौन-सा गुण अपनाना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर-
(क) सफ़िया ने सिख बीवी को लाहौर की यादें तरोताजी करा दीं।
(ख) सिख बीवी ने बताया कि वह भारत-पाक विभाजन के समय आई थी। अब यहाँ उनकी कोठी भी बन गई है। अच्छा खासा व्यापार चल रहा है, परंतु उन्हें अभी भी लाहौर की याद आ रही है। लाहौर ही उनका वतन है।
(ग) सिख बीवी की बातों से पता चलता है कि मनुष्य का अपनी जन्मभूमि से बहुत अनुराग होता है। वह चाहे कितनी ही अच्छी जगह क्यों न चला जाए, जन्मभूमि की यादें उसका पीछा नहीं छोड़तीं।
(घ) सिख बीवी के व्यक्तित्व से मैं जन्मभूमि से प्रगाढ़, उत्कट प्रेम करने का गुण अपनाना चाहूँगा, क्योंकि यहीं की वायु, अन्न, जल ग्रहण करके हम पले हैं।
3. ‘‘ अरे, फिर वही कानून-कानून कहे जाते हो! क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते? आखिर कस्टम वाले भी इंसान होते हैं, कोई मशीन तो नहीं होते।”
‘‘ हाँ वे मशीन तो नहीं होते, पर मैं आपको यकीन दिलाता हूँ वे शायर भी नहीं होते। उनको तो अपनी ड्यूटी करनी होती हैं।”
‘‘ अरे बाबा, तो मैं कब कह रही हूँ कि वह ड्यूटी न करें। एक तोहफ़ा है, वह भी चंद पैसों का, शौक से देख लें, कोई सोना-चाँदी नहीं, स्मगल की हुई चीज नहीं, ब्लैक मार्केट का माल नहीं।”
‘‘ अब आपसे कौन बहस करे। आप अदीब ठहरी और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा तो जरूर ही घूमा होता है। वैसे मैं आपको बताए देता हूँ कि आप ले नहीं जा पाएँगी और बदनामी मुफ्त में हम सबकी भी होगी। आखिर आप कस्टम वालों को कितना जानती हैं?”
उसने गुस्से से जवाब दिया,‘‘ कस्टम वालों को जानें या न जानें, पर हम इंसानों को थोड़ा-सा जरूर जानते हैं। और रही दिमाग की बात, सो अगर सभी लोगों का दिमाग हम अदीबों की तरह घूमा हुआ होता तो यह दुनिया कुछ बेहतर ही जगह हो जाती, भैया।” (पृष्ठ-137)
प्रश्न
(क) कानून की बात क्यों हो रही हैं? किसे कानून की परवाह नहीं हैं?
(ख) तोहफ़ के बारे में सफ़िया क्या तक देती हैं?
(ग) अदीबों पर सफ़िया का भाई क्या टिप्पणी करता हैं?
(घ) सफ़िया भाई को क्या जवाब देती हैं?
उत्तर-
(क) सफ़िया सेर भर लाहौरी नमक भारत ले जाना चाहती है। पाकिस्तान में यह कार्य गैर-कानूनी है। अत: उसके संदर्भ में कानून की बात हो रही है। सफ़िया को कानून की परवाह नहीं है।
(ख) तोहफ़े के बारे में सफ़िया तर्क देती है कि वह कोई गैर-कानूनी व्यापार नहीं कर रही है। यह चोरी की चीज नहीं है। इंसानियत का मूल्य कानून से अधिक होता है।
(ग)सफ़िया का भाई अदीबों पर टिप्पणी करता है कि साहित्यकार भावुक होते हैं। उनका दिमाग थोड़ा घूमा हुआ होता है। वे कानून-कायदे को कुछ नहीं समझते।
(घ) सफ़िया भाई को कहती है कि वह इंसानियत को जानती है। अगर सभी इंसानों का दिमाग साहित्यकारों की तरह भावना को समझ पाता तो संसार का रूप ही अलग होता।
4. अब तक सफ़िया का गुस्सा उतर चुका था। भावना के स्थान पर बुद्ध धीरे-धीरे उस पर हावी हो रही थी। नमक की पुड़िया ले तो जानी है, पर कैसे? अच्छा, अगर इसे हाथ में ले लें और कस्टम वालों के सामने सबसे पहले इसी को रख दें? लेकिन अगर कस्टम वालों ने न जाने दिया! तो मजबूरी है, छोड़ देंगे। लेकिन फिर उस वायदे का क्या होगा जो हमने अपनी माँ से किया था? हम अपने को सैयद कहते हैं। फिर वायदा करके झुठलाने के क्या मायने? जान देकर भी वायदा पूरा करना होगा। मगर कैसे? अच्छा, अगर इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रख लिया जाए तो इतने कीनुओं के ढेर में भला कौन इसे देखेगा? और अगर देख लिया? नहीं जी, फलों की टोकरियाँ तो आते वक्त भी किसी की नहीं देखी जा रही थीं। उधर से केले, इधर से कीनू सब ही ला रहे थे, ले जा रहे थे। यही ठीक है, फिर देखा जाएगा। (पृष्ठ-133)
प्रश्न
(क) भावना के स्थान पर बुद्ध के हावी होने का क्या तात्पर्य हैं?
(ख) सफ़िया के गुस्से का क्या कारण था?
(ग) सफ़िया के मन में क्या द्ववद्व चल रहा था?
(घ) अंत में सफ़िया ने क्या निर्णय लिया ?
उत्तर-
(क) भावना के कारण लेखिका अपने भाई के साथ तर्क-वितर्क कर रही थी। उसने नमक ले जाने से साफ़ मना कर दिया। गुस्सा उतर जाने के बाद उसने बुद्ध से अपने निर्णय के पक्ष-विपक्ष के बारे में सोचा। ”
(ख) सफ़िया सेर भर नमक तोहफ़े के तौर पर भारत ले जाना चाहती थी, परंतु उसके भाई ने ऐसा करने से मना कर दिया। इससे बदनामी भी हो सकती थी। कानून की बात पर सफ़िया गुस्से में थी।
(ग) सफ़िया के मन में यह द्वंद्व चल रहा था कि वह नमक को अपने हाथ में ले और सबसे पहले उसे कस्टम वालों के सामने रख दे। फिर उसने सोचा कि कस्टम वालों ने इसे ले जाने से मना कर दिया तो उसके द्वारा किए गए वायदे का क्या होगा।
(घ) अंत में सफ़िया ने निर्णय लिया कि वह नमक की पुड़िया को कीनुओं के ढेर के नीचे छिपा देगी। उसने आते वक्त । देखा था कि फलों की टोकरियों की जाँच नहीं हो रही थी। अत: ऐसा करने से उसका काम हो जाएगा।
5. एक बार झाँककर उसने पुड़िया को देखा और उसे ऐसा महसूस हुआ मानो उसने अपने किसी प्यारे को कब्र की गहराई में उतार दिया हो! कुछ देर उकड़ें बैठी वह पुड़िया को तकती रही और उन कहानियों को याद करती रही जिन्हें वह अपने बचपन में अम्मा से सुना करती थी, जिनमें शहजादा अपनी रान चीरकर हीरा छिपा लेता था और देवों, खौफनाक भूतों तथा राक्षसों के सामने से होता हुआ सरहदों से गुजर जाता था। इस जमाने में ऐसी कोई तरकीब नहीं हो सकती थी वरना वह अपना दिल चीरकर उसमें यह नमक छिपा लेती। उसने एक आह भरी। (पृष्ठ-133)
प्रश्न
(क) लखिका बार-बार पुड़िया की झाँककर क्यों दखती हैं?
(ख) अपने किसी प्यारे को कब्र की गहराइयों में उतार देने से लखिका का क्या आशय हैं?
(ग) नमक लेखिका की परेशानी का कारण कैसे बन गया?
(घ) ‘उसने एक आह भरी-कथन के आधार पर लखिका की मानसिक दशा पर टिप्पणी कीजिए। [CBSE (Foreign), 2014]
उत्तर-
(क) सफ़िया कीनुओं की टोकरी में छिपाए नमक की पुड़िया को बार-बार इसलिए देख रही थी क्योंकि किसी ने नमक को उपहार स्वरूप मैंगवाया था। सफ़िया इसे ले जाना चाहती थी पर यह पाकिस्तानी कानून के विरुद्ध था।
(ख) अपने किसी प्यारे को कब्र की गहराइयों में उतार देने से लेखिका का आशय है-अत्यंत सुरक्षित और सावधानीपूर्वक अपनी अत्यधिक प्रिय वस्तु को रखना ताकि वह खो न जाए।
(ग) नमक लेखिका की परेशानी का कारण इस तरह बन गया था कि लेखिका से उसकी सहेली ने पाकिस्तान से नमक ले जाने को कहा था। लेखिका नमक लेकर भारत आना चाहती थी पर सीमा पर गहन जाँच की जाती थी, जिससे पकड़े जाने का डर था क्योंकि यह पाकिस्तानी कानून के विरुद्ध था।
(घ) ‘उसने एक आह भरी’ कथन से ज्ञात होता है कि लेखिका की मानसिकता विवश इंसान जैसी है जो कोई काम करना चाहता है पर चाहकर भी नहीं कर पा रहा है। उसके पास कोई जादुई शक्ति नहीं है कि वह नमक को छिपाकर भारत लेकर चली जाए।
6. रात को तकरीबन डेढ़ बजे थे। मार्च की सुहानी हवा खिड़की की जाली से आ रही थी। बाहर चाँदनी साफ़ और ठंडी थी। खिड़की के करीब लगा चंपा का एक घना दरख्त सामने की दीवार पर पत्तियों के अक्स लहका रहा था। कभी किसी तरफ़ से किसी की दबी हुई खाँसी की आहट, दूर से किसी कुत्ते के भूकने या रोने की आवाज, चौकीदार की सीटी और फिर सन्नाटा! यह पाकिस्तान था। यहाँ उसके तीन सगे भाई थे, बेशुमार चाहने वाले दोस्त थे, बाप की कब्र थी, नन्हे-नन्हे भतीजे-भतीजियाँ थीं जो उससे बड़ी मासूमियत से पूछते, “फूफीजान, आप हिंदुस्तान में क्यों रहती हैं, जहाँ हम लोग नहीं आ सकते?” उन सबके और सफ़िया के बीच में एक सरहद थी और बहुत ही नोकदार लोहे की छड़ों का जैगला, जो कस्टम कहलाता था । (पृष्ठ-133-134)
प्रश्न
(क) रात्रि का वातावरण कैसा था?
(ख) पाकिस्तान में लेखिका के कौन-से प्रियजन रहते थे? वे उससे क्या प्रश्न करते थे?
(ग) लेखिका पाकिस्तान में क्यों नहीं रह सकती थी।
(घ) लेखिका के अनुसार कस्टम क्या है?
उत्तर-
(क) रात को खिड़की से सुहानी हवा आ रही थी। चाँदनी रात थी। चंपा के पेड़ की पत्तियों की परछाई सामने की दीवार पर दिखाई दे रही थी। कभी कुत्ते की रोने की आवाज या कभी किसी की दबी हुई खाँसी की आहट सुनाई देती थी।
(ख) पाकिस्तान में सफ़िया के तीन सगे भाई व चाहने वाले अनेक दोस्त थे। उसके पिता की कब्र भी यहीं थी। उसके छोटे-छोटे भतीजे-भतीजियाँ मासूमियत से उससे पूछते कि वे भारत में क्यों रहती हैं जहाँ वे नहीं आ सकते।
(ग) लेखिका पाकिस्तान में इसलिए नहीं रह सकती थी क्योंकि विभाजन के बाद उसने भारत में रहने का निर्णय किया था।
(घ) लेखिका कस्टम के बारे में बताती है कि सरहद पर नोकदार लोहे की छड़ों का जैगला ‘कस्टम’ कहलाता है।
7. उन्होंने पुड़िया को धीरे से अपनी तरफ सरकाना शुरू किया। जब सफ़िया की बात खत्म हो गई तब उन्होंने पुड़िया को दोनों हाथों में उठाया, अच्छी तरह लपेटा और खुद सफ़िया के बैग में रख दिया। बैग सफ़िया को देते हुए बोले,”मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती है कि कानून हैरान रह जाता है।”
वह चलने लगी तो वे भी खड़े हो गए और कहने लगे, ‘जामा मस्जिद की सीढ़ियों को मेरा सलाम कहिएगा और उन खातून को यह नमक देते वक्त मेरी तरफ से कहिएगा कि लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा, तो बाकी सब रफ़्ता-रफ़्ता ठीक हो जाएगा।’ (पृष्ठ-135)
प्रश्न
(क) सफ़िया ने नमक की पुड़िया कस्टम अधिकारी के सामने क्यों रख दी?
(ख) कस्टम अधिकारी ने क्या किया?
(ग) ‘‘मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती हैं कि कानून हैरान रह जाता हैं।”-आशय स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘बाकी सब रफ़्ता-रफ़्ता ठीक हो जाएगा।’ -इस कथन से कस्टम अधिकारी क्या कहना चाहता हैं? [CBSE (Outside), 2010]
उत्तर-
(क) सफ़िया प्यार के तोहफ़े को चोरी से नहीं ले जाना चाहती थी। इसलिए उसने नमक की पुड़िया कस्टम अधिकारी के सामने रख दी।
(ख) कस्टम अधिकारी ने सफ़िया की सारी बातें सुनीं और पुड़िया को दोनों हाथों से उठाकर अच्छी तरह लपेटकर स्वयं सफ़िया के बैग में रख दिया।
(ग) इसका अर्थ यह है कि प्रेम के तोहफे की कस्टम वाले जाँच नहीं करते। वे प्रेम की भेंट को ऐसे प्रेमपूर्वक भेज देते हैं कि कानून को इसकी भनक भी नहीं लगती।
(घ) कस्टम अधिकारी यह कहना चाहता है कि अभी तक दोनों देशों के लोग दूसरे देश को अपना वतन मानते हैं। यह भावनात्मक लगाव एक दिन विभाजन को भी समाप्त कर देगा।
8. प्लेटफ़ार्म पर उसके बहुत-से दोस्त, भाई, रिश्तेदार थे, हसरत भरी नजरों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिचे हुए होठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बढ़ी। अटारी में पाकिस्तानी पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन थी, एक जबान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबी-लहजा, और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही सी थीं जिनसे दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ़ इतनी थी कि भरी हुई बन्दूकें दोनों के हाथों में थीं। (पृष्ठ-135-136)
प्रश्न
(क) क्यों पता नहीं लगता कि कहाँ लाहौर खत्म हुआ और कहाँ अमृतसर शुरू हुआ?
(ख) प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े लोगों की दशा कैसी थी, और क्यों?
(ग) पाकिस्तान और हिंदुस्तान की पुलिस कहाँ बदली और क्यों?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए-‘मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बदूकें दोनों के हाथों में थीं।” [CBSE (Delhi), 2015]
उत्तर-
(क) लेखक को लाहौर खत्म होने और अमृतसर शुरू होने का पता इसलिए नहीं लग पाया क्योंकि लाहौर और अमृतसर के लोगों के स्वभाव, व्यवहार, रहन-सहन, बात-चीत, संस्कार आदि में कोई अंतर नहीं दिख रहा था जबकि दोनों अलग-अलग देशों में स्थित हैं, पर उनके दिलों में कोई अंतर नहीं है। (ख) प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े लोग आशा, उत्साह, सुख-दुख की अलग-अलग अनुभूति लिए खड़े थे। वे दुखी मन से ट्रेन से जाते लोगों को विदा कर रहे थे। उनकी ऐसी मनोदशा इसलिए थी क्योंकि कुछ अपने प्रियजनों-भाई, दोस्त और निकट संबंधियों-से अलग हो रहे थे।
(ग) पाकिस्तान और हिंदुस्तान की पुलिस अटारी रेलवे पर स्टेशन पर बदली क्योंकि वहीं से पाकिस्तान की सीमा खत्म और हिंदुस्तान की सीमा शुरू होती है। ट्रेन में बैठे यात्रियों की सुरक्षा का जिम्मा उन देशों की सीमा तक उनकी पुलिस का था।
(घ) हिंदुस्तान और पाकिस्तान की बोली-भाषा, रहन-सहन में समानता इतनी थी कि एक-दूसरे को इस आधार पर अलग करना कठिन था। दोनों का आचार-विचार, व्यवहार एक था और वे परस्पर प्यार भी दर्शा रहे थे पर इन देशों के शीर्षस्थ व्यक्तियों को यह पसंद नहीं था। वे सुरक्षा के नाम पर भरी बंदूकें दिखाकर भय और असुरक्षा का वातावरण उत्पन्न कर रहे थे।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
सफ़िया के भाई ने नमक की पुड़िया ले जाने से क्यों मना कर दिया? [CBSE (Delhi), 2009 (C)]
अथवा
नमक की पुड़िया को लेकर सफ़िया के मन में क्या द्ववद्व था? सफ़िया के भाई ने नमक ले जाने के लिए मना क्यों कर दिया था?
[CBSE (Delhi), 2013]
उत्तर-
सफ़िया का भाई एक बहुत बड़ा पुलिस अफ़सर था। वह कानून-कायदों से भली-भाँति परिचित था। वह जानता था कि लाहौरी नमक ले जाना सर्वथा गैरकानूनी है। यदि कोई व्यक्ति दूसरे देश में इसे ले जाए तो यह कानून के खिलाफ किया हुआ कार्य बन जाता है। इसलिए उसने अपनी सफ़िया को नमक की पुड़िया ले जाने से मना कर दिया। वह नहीं चाहता था कि उसकी बहन कस्टम कार्यों की जाँच में पकड़ी जाए।
प्रश्न 2:
नमक की पुड़िया ले जानेके संबंध में सफ़िया के मन काद्वंद्व स्पष्ट कीजिए। [CBSE (Outside), 2012]
अथवा
नमक की पुड़िया ले जाने, न ले जाने के बारे में सफ़िया के मन का द्वद्व स्पष्ट कीजिए। [CBSE (Delhi), 2015, Set-III]
उत्तर-
नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में सफ़िया के मन में यह द्वंद्व था कि वह नमक की पुड़िया को चोरी से छिपाकर ले जाए या कस्टम अधिकारियों को दिखाकर ले जाए। पहले वह इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रखकर कीनुओं से ढँक लेती है। फिर वह निर्णय करती है कि वह प्यार के इस तोहफ़े को चोरी से नहीं ले जाएगी। वह नमक की पुड़िया को कस्टम वालों को दिखाएगी।
प्रश्न 3:
जब सफ़िया अमृतसर पुल पर चढ़ रही थी तो कस्टम आफिसर निचली सीढ़ी के पास सिर झुकाए चुपचाप क्यों खड़े थे?
उत्तर-
कस्टम ऑफ़िसर जो कि बंगाली था उसे सफ़िया की संवेदनाएँ बहुत अच्छी लगीं। उसे महसूस हुआ कि कानून बाद में है। इंसानियत पहले। कानून को इंसानियत के आगे झुकना ही पड़ता है। सफ़िया की ईमानदारी और वायदे को देखकर कस्टम अधिकारी ने अपना सिर झुका लिया। उसे सफ़िया द्वारा किए गए कार्य पर नाज था। वह सिर झुकाकर अपनी श्रद्धा सफ़िया के प्रति व्यक्त करना चाहता था।
प्रश्न 4:
लाहाँर अभी तक उनका वतन है और देहली सिर या येस वतन ढाका हे जैसे उदगार किम सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं?
उत्तर-
ये कथन उस सामाजिक यथार्थ का संकेत करते हैं कि राजनीतिक तौर पर लोग भले ही विस्थापित हो जाते हों, परंतु भावनात्मक लगाव मातृभूमि से ही रहता है। राजनीतिक बँटवारे लोगों के दिलों को बाँट नहीं पाते। वे लोगों को अलग रहने पर मजबूर कर सकते हैं, परंतु उनका प्रेम अंतिम समय तक मातृभूमि से रहता ही है।
प्रश्न 5:
नमक ले जाने के बारे में सफ़िया के मन में उठे द्वंद्व के आधार पर उसर्का चारित्रिक विशेषताओं को स्पष्ट र्काजिए [CBSE (Outside), 2011 (C)]
उत्तर-
नमक ले जाने की बात सोचकर सफ़िया द्वंद्वग्रस्त हो जाती है। उसके भाई ने जब उसे यह बताया कि नमक ले जाना गैरकानूनी है तो वह और अधिक परेशान हो जाती है। चूंकि वह आत्मविश्वास से भरी हुई है इसलिए वह मन में ठान लेती है कि नमक पाकर ही रहेगी। उसमें किसी भी प्रकार का दुराव या छिपाव नहीं है। वह देश प्रेमिका है। दूसरों की। भावनाओं का ख्याल वह रखती है, उसमें भावुकता है इसी कारण भाई जब नमक ले जाने से मना कर देता है तो वह रो देती है।
प्रश्न 6:
” मानचित्र पर एक लकीर खींच देने भर से ज़मीन और जानता बँट नहीं जाती हैं। ” -उक्ति तर्कों व उदाहरणों के जरिये इसकी पुष्टि करें। [CBSE (Outside), 2008 (C)]
उत्तर-
मानचित्र पर एक लकीर खींच देने भर से जमीन और जनता बँट नहीं जाती है।-लेखिका का यह कथन पूर्णतया सत्य है। राजनीतिक कारणों से मानचित्र पर लकीर खींचकर देश को दो भागों में बँट दिया जाता है। इससे जमीन व जनता को अलग-अलग देश का लेवल मिल जाता है, परंतु यह कार्य जनता की भावनाओं को नहीं बाँट पाता। उनका मन अंत तक अपनी जन्मभूमि से जुड़ा रहता है। पुरानी यादें उन्हें हर समय घेरे रहती हैं। जैसे ही उन्हें मौका मिलता है, वे प्रत्यक्ष तौर पर उभरकर सामने आ जाती हैं। ‘नमक’ कहानी में भी सिख बीवी लाहौर को भुला नहीं पातीं और ‘नमक’ जैसी साधारण चीज वहाँ से लाने की बात कहती हैं। कस्टम अधिकारी नौकरी अलग देश में कर रहे हैं, परंतु अपना वतन जन्म-प्रदेश को ही मानते हैं। सभी का अपनी जन्म-स्थली के प्रति लगाव है।
प्रश्न 7:
‘‘ नमक ” कहानी में भारत व पाक की जनता के आरोपित भेदभावों के बीच मुहब्बत का नमकीन स्वाद घुला हुआ हैं, केंस? [CBSE (Delhi), 2010]
उत्तर-
दोनों देशों को यद्यपि भूगोल ने विभाजित कर दिया है लेकिन लोगों में वही मुहब्बत अब भी समाई हुई है। यद्यपि यह आरोप लगाया जाता है कि इन देशों के बीच नफ़रत है लेकिन ऐसा नहीं है। इन दोनों के बीच रिश्ते मधुर और पवित्र हैं। इनमें मुहब्बत ही वह डोर है जो एक-दूसरे को बाँधे हुए है। मुहब्बत का नमकीन स्वाद इनके रिश्तों में घुला हुआ है। सिख बीबी, बंगाली अधिकारी और सफ़िया के माध्यम से कहानीकार ने इसी बात को सिद्ध किया है।
क्यों कहा गया?
प्रश्न 1:
क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरोंवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते?
उत्तर-
सफ़िया का भाई पुलिस अफ़सर है। जब उसने लाहौर का नमक भारत ले जाने की बात अपने भाई को बताई तो उसने यह कार्य गैर-कानूनी बताया। उसने यह भी बताया कि पाकिस्तान और भारत के बीच नमक का व्यापार प्रतिबंधित है। तब लेखिका ने यह तर्क दिया कि क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं, कुछ मुहब्बत, मुरौवत, आदमियत, इंसानियत के नहीं होते ?
प्रश्न 2:
भावना के स्थान पर बुद्धि र्धारे-र्धारे उम पर हावी हो रही थी?
उत्तर-
जब भावनाओं से काम नहीं चला तो सफ़िया ने दिमाग से काम लिया। उसने बुद्धि से नमक हिंदुस्तान ले जाने की युक्ति सोची। वह निडर हो गई और निर्णय लिया कि मैं नमक अवश्य ले जाऊँगी।
प्रश्न 3:
मुहब्बत तो कस्टम से इस तरह गुजर जाती हैं कि कानून हैरान रह जाता है।
उत्तर-
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी सफ़िया से कहता है कि मुहब्बत के सामने कस्टम वाले भी लाचार हैं। उनके सम्मुख कानून निष्प्रभावी हो जाते हैं। मुहब्बत कानून को धत्ता बताकर आगे चली जाती है। वह स्वयं नमक की पुड़िया को लेखिका के बैग में रखकर उपर्युक्त वाक्य कहता है।
प्रश्न 4:
हमारी ज़मीन, हमारे पानी का मज़ा ही कुछ और है।
उत्तर-
यह बात सफ़िया को ईस्ट बंगाल का कस्टम अधिकारी कहता है। वह बताता है कि उसके देश की ज़मीन बहुत ऊपजाऊ है। यहाँ का पानी मीठा और ठंडा है। मेरे देश की मिट्टी बहुत कुछ पैदा करती है। वहाँ चारों ओर खुशहाली बसी हुई
समझाइए तो ज़रा
प्रश्न 1:
फिर पलकों से कुछ सितारे टूटकर दूधिया अचल में समा जाते हैं।
उत्तर-
सिख बीवी को लाहौर की याद आ रही थी। वह लेखिका को वहाँ के जीवन, दिनचर्या आदि के बारे में बताती हुई यादों में खो जाती है। भावुकता के कारण उसकी आँखों से आँसू निकलकर उसके सफ़ेद मलमल के दुपट्टे पर टपक जाते हैं।
प्रश्न 2:
किसका वतन कहाँ हैं-वह जो कस्टम के इस तरफ हैं या उस तरफ।
उत्तर-
जब सफ़िया अमृतसर स्टेशन पर पहुँची तो वह यह बात सोचने लगती है। उसे समझ में नहीं आता कि वतन कहाँ है अर्थात् पाकिस्तान अथवा हिंदुस्तान कहाँ है। ये दोनों देश तो एक हैं केवल कस्टम ने इन दोनों को बाँटा हुआ है। मेरी समझ में तो यही आता है।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
‘नमक’ कहानी में हिंदुस्तान-पाकिस्तान में रहने वाले लोगों की भावनाओं, संवेदनाओं को उभारा गया है। वर्तमान संदर्भ में इन संवेदनाओं की स्थिति को तर्क सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लोगों की भावनाएँ और संवेदनाएँ आज भी वैसी ही हैं जैसी 58-60 वर्ष पहले थीं। लोग आज भी उतनी ही मुहब्बत एक-दूसरे मुल्कों के बाशिंदों की करते हैं। आज हिंदुस्तान और पाकिस्तान दोनों ही देशों ने आपसी भाईचारे को बढ़ाने और कायम रखने के लिए नई-नई योजनाएँ बनाए हैं। बस, रेल यातायात पुनः बहाल कर दिया है। जो दोनों देशों की एकता को प्रस्तुत करता है। दोनों मुल्कों के लोग आ जा सकते हैं। आपसी दुख दर्द बाँटते हैं। पिछले 5-7 वर्षों में तो दोनों के बीच रिश्ते अधिक मजबूत हुए हैं। दोनों में आपसी सौहार्द बढ़ा है।
प्रश्न 2:
सफ़िया की मनःस्तिति को कहानी में एक विशिष्ट संदर्भ में अलग तरह से स्पष्ट किया गया है। अगर आप सफ़िया की जगह होते/होतीं तो क्या आपकी मनःस्तिति भी वैसी ही होती? स्पष्ट र्काजिए।
उत्तर-
अगर मैं सफ़िया की जगह होता तो मेरी मन:स्थिति भी सफ़िया की तरह ही होती। सफ़िया लेखिका है, अत: वह अपनी भावनाओं को साहित्यिक रूप से व्यक्त कर सकी है, परंतु मैं सीधे तौर पर अपनी भावनाएँ जता देता। मैं सिख बीवी को माँ का दर्जा दे देता। दूसरे, लाहौर से नमक लाने के लिए मैं हर संभव तरीके का प्रयोग करता।
प्रश्न 3:
भारत-पाकिस्तान के आपसी संबधों को सुधारने के लिए दोनों सरकारें प्रयासरत हैं। व्यक्तिगत तौर पर आप इसमें क्या योगदान दे सकते/सकती हैं?
उत्तर-
हम व्यक्तिगत तौर पर कला और साहित्य से संबंधित गोष्ठियाँ, सेमिनार आयोजित कर सकते हैं। अपनी भावनाओं को कविता या लेखों के माध्यम से व्यक्त कर इन दोनों के संबंधों को सुधार सकते हैं। हम उनकी भावनाओं को समझकर यथासंभव उनकी सहायता कर सकते हैं ताकि भाईचारे और सौहार्द का माहौल कायम हो सके।
प्रश्न 4:
लेखिका ने विभाजन से उपजी विस्थापन की समस्या का चित्रण करते हुए सफ़िया व सिख बीवी के माध्यम से यह भी सहमत हैं?
उत्तर-
कहानी में ऐसा संकेत कहीं नहीं है कि विभाजन के कारण हुए विस्थापन से नारी ही अधिक विस्थापित हुई है। सिख बीवी व सफ़िया परिवार के साथ ही विस्थापित हुई हैं। यही स्थिति पाकिस्तान में भी है। दूसरी बात इस रूप में सही है कि विवाह के कारण स्त्री ही सबसे अधिक विस्थापित होती है। इस विस्थापन के कारण उसका अपनी जन्मभूमि से लगाव कभी कम नहीं होता। स्मृतियाँ उसे घेरे रहती हैं।
प्रश्न 5:
विभाजन के अनेक स्वरूपों में बाँटी जनता को मिलाने की अनेक भूमियाँ हो सकती हैं-रक्त संबंध, विज्ञान, साहित्य व कला। इनमें से कौन सबसे ताकतवर हैं और क्यों?
उत्तर-
जनता को मिलाने की यद्यपि अनेक भूमिकाएँ हो सकती हैं लेकिन इनमें साहित्य और कला की भूमिका सबसे ज्यादा ताकतवर है क्योंकि इन दोनों क्षेत्रों से हम एक-दूसरे तक अपनी भावनाएँ अधिक आसानी से पहुँचा सकते हैं। साहित्य से एक-दूसरे की संस्कृति रहन-सहन, आचार-व्यवहार का पता चल जाता है। कला के माध्यम से हम उनके अंतर्मन में झाँक सकते हैं। भारतीय साहित्य और कला पिछले कई वर्षों से पाकिस्तान को रुचिकर लगता रहा है। यही बात पाकिस्तानी साहित्य के संदर्भ में कहीं जा सकती है।
आपकी राय
प्रश्न 1:
मान लीजिए आप अपने मित्र के पास विदेश जा रहे/रही हैं।आप सौगात के तौर पर भारत की कौन-सी चीज़ ले जाना पसंद करेंगे/करेंगी और क्यों?
उत्तर-
मैं अपने मित्र के पास विदेश जा रहा हूँ। सौगात के तौर मैं भारत से निम्नलिखित चीज़ें ले जाना पसंद करूँगा-
(i) ताजमहल की प्रतिकृति।
(ii) अच्छे साहित्यकारों की रचनाएँ।
(iii) रामायण।
(iv) मित्र की पसंद की खाने की चीजें।
भाषा की बात
प्रश्न 1:
नीचे दिए गए वाक्यों को ध्यान से पढ़िए-
(क) हमारा वतन तो जी लाहौर ही है।
(ख) क्या सब कानून हुकूमत के ही होते हैं?
सामान्यतः ‘ही` ‘ निपात का प्रयोगप किसी बात पर बल देने के लिए किया जाता है। ऊपर दिए गए दोनों वाक्यों में ‘ही’ के प्रयोग से अर्थ में क्या परिवतन आया है? स्पष्ट कीजिए। ‘ही’ का प्रयोग करते हुए दोनों तरह के अर्थ वाले पाँच-पाँच वाक्य बनाइए।
उत्तर-
(क) वाक्य से पता चलता है कि वक्ता का वतन लाहौर ही है, अन्य नहीं। यह ‘ही’ के प्रयोग के कारण है।
(ख) वाक्य में ‘ही’ के प्रयोग से यह अर्थ निकलता है कि हुकूमत से परे भी अन्य कानून होते हैं।
(क) पाँच वाक्य-
(i) मुझे दिल्ली ही जाना है।
(ii) मैं फल ही खाता हूँ।
(iii) रात का खाना तो सुमन के हाथ का ही खाऊँगा।
(iv) वाल्मीकि ने ही रामायण लिखी है।
(v) उसकी मोटरसाइकिल काली ही है।
(ख) पाँच वाक्य-
(i) क्या सारा ज्ञान आज ही देंगे?
(ii) क्या तुम मुझे स्कूल से ही निकाल दोगे?
(iii) क्या क्रिकेट लड़के ही खेलते हैं?
(iv) क्या सोहन अंग्रेजी ही पढ़ता है?
(v) क्या तुम मेरी ही बात मानते हो?
प्रश्न 2:
नीचे दिए गए शब्दों के हिंदी रूप लिखिए-
मुरैवत, आदमियत, अतीबव, साडा, मायने, सरहद,अक्स, लबोलहजा, नफ़ीस
उत्तर-
मुरैवत – संकोच
आदमियत – मनुष्यता
अदीब – साहित्यकार
साडा – हमारा
मायने – अर्थ
सरहद – सीमा
अक्स – प्रभा
लबोलहजा – बोलचाल का ढंग
नफ़ीस – सुरुचिपूर्ण
प्रश्न 3:
पंद्रह दिन योंगुजरे कि पता ही नहीं चला-वाक्य को ध्यान से पढ़िए और इसी प्रकार के (यों कि, ही से युक्त) पाँच वाक्य बनाइए।
उत्तर-
1. वह यों ही चला गया कि पता ही नहीं चला।
2. कुछ वर्ष यों ही बीत गए कि पता ही नहीं चला।
3. क्लर्क ने यों ही टरका दिया कि आज साहब नहीं आए हैं।
4. यों ही मैं घर से निकलने वाला था कि सोहन आ गया।
5. सुमन यों आई कि पता ही न चला।
इन्हें भी जानें
1. मुहर्रम -इस्लाम धर्म के अनुसार साल का पहला महीना, जिसकी दसवीं तारीख को इमाम हुसैन शहीद हुए थे।
2. सैयद -मुसलमानों के चौथे खलीफ़ा अली के वंशजों को सैयद कहा जाता है।
3. इकबाल-सारे जहाँ से अच्छा के गीतकार।
4. नजरुल इस्लाम-बांग्ला के क्रांतिकारी कवि।
5. शमसुल इस्लाम-बांग्ला देश के प्रसिद्ध कवि।
6. इस कहानी को पढ़ते हुए कई फ़िल्म, कई रचनाएँ कई गाने आपके जेहन में आए होंगे। उनकी सूची बनाइए और किन्हीं दो (फिल्म और रचना) की विशेषता लिखिए। आपकी सुविधा के लिए कुछ नाम दिए जा रहे हैं।
फिल्में रचनाएँ
1947 अर्थ तमस (उपन्यास-भीष्म साहनी)
मम्मो टोबाटेक सिंह (कहानी-मंटो)
ट्रेन टु पाकिस्तान जिंदगीनामा (उपन्यास-कृष्णा सोबती)
गदर पिंजर (उपन्यास-अमृता प्रीतम)
खामोश पानी झूठा सच (उपन्यास-यशपाल)
हिना मलबे का मालिक (कहानी-मोहन राकेश)
वीर जऱा पेशावर एक्सप्रेस (कहानी-कृश्न चदर)
7.
सरहद और मजहब के सदर्भ में इसे देखें –
तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा,
इंसान की औलाद हैं, इंसान बनेगा।
मालिक ने हर इंसान को इंसान बनाया,
हमने उसे हिंदू या मुसलमान बनाया।
कुदरत ने तो बख्शी थी हमें एक ही धरती,
हमने कहीं भारत, कहीं ईरान बनाया।।
जो तोड़ दे हर बद वो तूफान बनेगा।
इंसान की औलाद हैं इंसान बनेगा।
-फ़िल्मः धूल का फूल, गीतकारः साहि लुधियानवी
अन्य हल प्रश्न
बोधात्मक प्रशन
प्रश्न 1:
सिख बीवी के प्रति सफ़िया के आकर्षण का क्या कारण था? ‘नमक’ पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर-
जब सफ़िया ने सिख बीवी को देखा, तो वह हैरान रह गई। बीवी का वैसा ही चेहरा था, जैसा सफ़िया की माँ का था। बिलकुल वही कद, वही भारी शरीर, वही छोटी-छोटी चमकदार आँखें, जिनमें नेकी, मुहब्बत और रहमदिली की रोशनी जगमगा रही थी। चेहरा खुली किताब जैसा था। बीवी ने वैसी ही सफ़ेद मलमल का दुपट्टा ओढ़ रखा था, जैसा सफ़िया की अम्मा मुहर्रम में ओढ़ा करती थीं, इसीलिए सफ़िया बीवी की तरफ बार-बार बड़े प्यार से देखने लगी। उसकी माँ तो बरसों पहले मर चुकी थीं, पर यह कौन? उसकी माँ जैसी हैं, इतनी समानता कैसे है? यही सोचकर सफ़िया उनके प्रति आकर्षित हुई।
प्रश्न 2:
लाहौर और अमृतसर के कस्टम अधिकारियों ने सफ़िया के साथ कैसा व्यवहार किया?
उत्तर-
दोनों जगह के कस्टम अधिकारियों ने सफ़िया और उसकी नमक रूपी सद्भावना का सम्मान किया। केवल सम्मान ही नहीं, उसे यह भी जानकारी मिली कि उनमें से एक देहली को अपना वतन मानते हैं और दूसरे ढाका को अपना वतन कहते हैं। उन दोनों ने सफ़िया के प्रति पूरा सद्भाव दिखाया, कानून का उल्लंघन करके भी उसे नमक ले जाने दिया। अमृतसर वाले सुनील दास गुप्त तो उसका थैला उठाकर चले और उसके पुल पार करने तक वहीं पर खड़े रहे। उन अधिकारियों ने यह साबित कर दिया कि कोई भी कानून या सरहद प्रेम से ऊपर नहीं है।
प्रश्न 3:
नमक की पुड़िया के सबध में सफ़िया के मन में क्या द्वद्व था? उसका क्या समाधान निकला?
उत्तर-
नमक की पुड़िया ले जाने के संबंध में सफ़िया के मन में यह द्वंद्व था कि वह नमक की पुड़िया को चोरी से छिपाकर ले जाए या कस्टम अधिकारियों को दिखाकर ले जाए। पहले वह इसे कीनुओं की टोकरी में सबसे नीचे रखकर कीनुओं से ढँक लेती है। फिर वह निर्णय करती है कि वह प्यार के तोहफ़े को चोरी से नहीं ले जाएगी। वह नमक की पुड़िया को कस्टम वालों को दिखाएगी।
प्रश्न 4:
सफ़िया को अटारी में समझ ही नहीं आया कि कहाँ लाहौर खत्म हुआ और किस जगह अमृतसर शुरू हो गया, एसा क्यों?
[CBSE (Foreign), 2009]
उत्तर-
अमृतसर व लाहौर दोनों की सीमाएँ साथ लगती हैं। दोनों की भौगोलिक संरचना एक जैसी है। दोनों तरफ के लोगों की भाषा एक है। एक जैसी शक्लें हैं तथा उनका पहनावा भी एक जैसा है। वे एक ही लहजे से बोलते हैं तथा उनकी गालियाँ भी एक जैसी ही हैं। इस कारण सफ़िया को अटारी में समझ ही नहीं आया कि कहाँ लाहौर खत्म हुआ और किस जगह अमृतसर शुरू हो गया।
प्रश्न 5:
‘नमक’ कहानी में क्या सन्देश छिपा हुआ है? स्पष्ट कीजिए। [CBSE (Delhi), 2014]
उत्तर-
‘नमक’ कहानी में छिपा संदेश यह है कि मानचित्र पर एक लकीर मात्र खींच देने से वहाँ रहने वाले लोगों के दिल नहीं बँट जाते। जमीन बँटने से लोगों के आवागमन पर प्रतिबंध और पाबंदियाँ लग जाती हैं परंतु लोगों का लगाव अपने मूल स्थान से बना रहता है। पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी द्वारा दिल्ली को तथा भारतीय कस्टम अधिकारी द्वारा ढाका को अपना वतन मानना इसका प्रमाण है।
प्रश्न 6:
‘नमक’ कहानी का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर-
पाठ के आरंभ में प्रतिपाद्य देखें।
प्रश्न 7:
‘नमक’ कहानी में ‘नमक’ किस बात का प्रतीक है? इस कहानी में ‘वतन’ शब्द का भाव किस प्रकार दोनों तरफ के लोगों को भावुक करता है? [CBSE Sample Paper, 2015]
उत्तर-
‘नमक’ कहानी में ‘नमक’ भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद इन अलग-अलग देशों में रह रहे लोगों के परस्पर प्यार का प्रतीक है जो विस्थापित और पुनर्वासित होकर भी एक-दूसरे के दिलों से जुड़े हैं। इस कहानी में ‘वतन’ शब्द का भाव एक-दूसरे को याद करके अतीत की मधुर यादों में खो देने का भाव उत्पन्न करके दोनों तरफ के लोगों को भावुक कर देता है। दोनों देशों के राजनीतिक संबंध अच्छे-बुरे जैसे भी हों, इससे उनका कुछ लेना-देना नहीं होता।
स्वय करें
1. सिख बीवी ने सफ़िया से क्या सौगात लाने के लिए कहा था? क्या उनकी यह चाहत पूरी हो सकी?
2. सफ़िया को सिख बीवी की सौगात लाने में किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
3. आप सफ़िया की जगह होते तो क्या करते, कानून का उल्लंघन या अपने किसी मित्र की भावनाओं की कद्र? कारण सहित लिखिए।
4. सफ़िया पहले थैली को छिपाकर ले जाना चाहती थी, पर अंत में उसने उसे स्वयं ही जाँच करने वाले के सामने क्यों रख दिया? कारण सहित लिखिए।
5. सफ़िया और उसके भाई के विचारों में क्या अंतर था ? आपको किसके विचार अच्छे लगे और क्यों?
6. निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(अ) प्लेटफ़ॉर्म पर उनके बहुत-से दोस्त, भाई, रिश्तेदार थे, हसरत भरी नजरों, बहते हुए आँसुओं, ठंडी साँसों और भिचे हुए होंठों को बीच में से काटती हुई रेल सरहद की तरफ बढ़ी। अटारी में पाकिस्तानी पुलिस उतरी, हिंदुस्तानी पुलिस सवार हुई। कुछ समझ में नहीं आता था कि कहाँ से लाहौर खत्म हुआ और किस जगह से अमृतसर शुरू हो गया। एक जमीन थी, एक जबान थी, एक-सी सूरतें और लिबास, एक-सा लबोलहजा, और अंदाज थे, गालियाँ भी एक ही-सी थीं जिनसे दोनों बड़े प्यार से एक-दूसरे को नवाज रहे थे। बस मुश्किल सिर्फ इतनी थी कि भरी हुई बंदूकें दोनों के हाथों में थीं।
(क) प्लेटफ़ॉर्म पर कैसा दुश्य था?
(ख) अटारी क्या है? वहाँ क्या परिवर्तन हुआ?
(ग) सफ़िया की समइ में क्या बात नहीं आ रही थी?
(घ) लेखिका किस मुश्किल के बारे में बता रही हैं?
(ब) उन्होंने चाय की प्याली सफ़िया की तरफ खिसकाई और खुद एक बड़ा-सा घूंट भरकर बोले, ‘वैसे तो डाभ कलकत्ता में सेनाकवाभहोता हैप हमारेय के बाधक क्या बातहै हमारीजन हमारे पानक माह कुछ और है!” उठते वक्त उन्होंने पुड़िया सफ़िया के बैग में रख दी और खुद उस बैग को उठाकर आगे-आगे चलने लगे; सफ़िया ने उनके पीछे चलना शुरू किया। जब सफ़िया अमृतसर के पुल पर चढ़ रही थी तब पुल की सबसे निचली सीढ़ी के पास वे सिर झुकाए चुपचाप खड़े थे। सफ़िया सोचती जा रही थी किसका वतन कहाँ है-वह जो कस्टम के इस तरफ है या उस तरफ!
(क) ‘उन्होंने’ कौन हैं? उसने अपने देश के बारे में क्या बताया?
(ख) ‘उन्होंने’ सफ़िया और उपहार का सम्मान किस तरह किया?
(ग) सफ़िया किस सोच में पड़ी थी?
(घ) ‘वे’ सफ़िया से विदा लेते वक्त सिर झुकाए क्यों खड़े थे?
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