• Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • NCERT Solutions
    • NCERT Books Free Download
  • TS Grewal
    • TS Grewal Class 12 Accountancy Solutions
    • TS Grewal Class 11 Accountancy Solutions
  • CBSE Sample Papers
  • NCERT Exemplar Problems
  • English Grammar
    • Wordfeud Cheat
  • MCQ Questions

CBSE Tuts

CBSE Maths notes, CBSE physics notes, CBSE chemistry notes

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – गद्य भाग – चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – गद्य भाग – चार्ली चैप्लिन यानी हम सब

लेखक परिचय
विष्णु खरे

जीवन परिचय-समकालीन हिंदी कविता और आलोचना में विष्णु खरे एक विशिष्ट हस्ताक्षर हैं। इनका जन्म 1940 ई० में मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में हुआ था। इनकी प्रतिभा को देखते हुए इन्हें ‘रघुवीर सहाय सम्मान’ से अलंकृत किया गया। इन्हें हिंदी अकादमी, दिल्ली द्वारा सम्मानित किया गया। इनको शिखर सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, फिनलैंड का राष्ट्रीय सम्मान नाइट ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ दि व्हाइट रोज से नवाजा गया। अपनी बहुमुखी प्रतिभा के बल पर ये आज भी हिंदी भाषा को समृद्ध कर रहे हैं।

रचनाएँ-इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

  1. कविता-संग्रह-एक-गैर रूमानी समय में, खुद अपनी आँख से, सबकी आवाज के पर्दे में, पिछला बाकी।
  2. आलोचना-आलोचना की पहली किताब।
  3. सिने आलोचना-सिनेमा पढ़ने के तरीके।
  4. अनुवाद-मरु प्रदेश और अन्य कविताएँ (टी०एस० इलियट), यह चाकू समय (ऑर्तिला योझेफ), कालेवाल (फिनलैंड का राष्ट्रकाव्य)।

साहित्यिक विशेषताएँ-विष्णु खरे जी ने हिंदी जगत को विचारपरक कविताएँ दी हैं, साथ ही बेवाक आलोचनात्मक लेख भी दिए हैं। इनके रचनात्मक और आलोचनात्मक लेखन पर विश्व-साहित्य के गहन अध्ययन का प्रभाव दिखाई देता है। ये विश्व सिनेमा के अच्छे जानकार हैं। 1971-73 के अपने विदेश-प्रवास के दौरान इन्होंने चेकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग के प्रतिष्ठित फिल्म क्लब की सदस्यता प्राप्त करके संसार-भर की सैकड़ों उत्कृष्ट फिल्में देखीं। यहाँ से सिनेमा-लेखन को वैचारिक गरिमा और गंभीरता देने का सफ़र शुरू हुआ। इनका सिनेमा-विषयक लेखन दिनमान, नवभारत टाइम्स, दि पायोनियर, दि हिंदुस्तान, हंस, कथादेश आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होता रहा है। ये उन विशेषज्ञों में से हैं जिन्होंने फ़िल्म को समाज, समय और विचारधारा के आलोक में देखा तथा इतिहास, संगीत, अभिनय, निर्देशन की बारीकियों के सिलसिले में उसका विश्लेषण किया। इनके लेखन से हिंदी जगत के सिनेमा-विषयक लेखन की कमी दूर होती है।

पाठ का प्रतिपादय एवं सारांश

प्रतिपादय-हास्य फिल्मों के महान अभिनेता व निर्देशक चार्ली चैप्लिन पर लिखे इस पाठ में उनकी कुछ विशेषताओं को लेखक ने बताया है। चार्ली की सबसे बड़ी विशेषता करुणा और हास्य के तत्वों का सामंजस्य है। भारत जैसे देश में सिद्धांत व रचना-दोनों स्तरों पर हास्य और करुणा के मेल की कोई परंपरा नहीं है, इसके बावजूद चार्ली चैप्लिन की लोकप्रियता यह बताती है कि कला स्वतंत्र होती है, बँधती नहीं। दुनिया में एक-से-एक हास्य कलाकार हुए, पर वे चैप्लिन की तरह हर देश, हर उम्र और हर स्तर के दर्शकों की पसंद नहीं बन पाए। इसका कारण शायद यह है कि चार्ली ही वह शख्सियत हो सकता है जिसमें सबको अपनी छवि दिखती है, वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते।

सारांश-महान अभिनेता और निर्देशक चार्ली चैप्लिन की जन्मशती मनाई गई। इस वर्ष उनकी फ़िल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ के भी 75 वर्ष पूरे होते हैं। इतने लंबे समय से चार्ली दुनिया को मुग्ध कर रहा है। आज इसका प्रसार विकासशील देशों में भी हो रहा है। चार्ली की अनेक फ़िल्में या इस्तेमाल न की गई रीलें भी मिली हैं जो अभी तक दर्शकों तक नहीं पहुँचीं। इस तरह से चार्ली पर अगले पचास वर्षों तक काफ़ी कुछ कहने की गुंजाइश है। चार्ली की फ़िल्में भावना पर आधारित हैं, बुद्धि पर नहीं। मेट्रोपोलिस, द कैबिनेट ऑफ़ डॉक्टर कैलिगारी, द रोवंथ सील, लास्ट इयर इन मारिएनबाड, द सैक्रिफ़ाइस जैसी फ़िल्मों का आम आदमी से लेकर आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति तक एक जैसा रसास्वादन करते हैं। इन्होंने न सिर्फ़ फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया, बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को भी तोड़ा। चैप्लिन की फ़िल्में यह दर्शाती हैं कि हर व्यक्ति में त्रुटि है।

चैप्लिन परित्यक्ता व स्टेज अभिनेत्री के पुत्र थे। उन्होंने भयानक गरीबी व माँ के पागलपन से संघर्ष किया तथा पूँजीपति व सामंतों से अपमानित हुए। इनकी नानी खानाबदोश थीं और पिता यहूदीवंशी थे। इन सबने चैप्लिन को घुमंतू चरित्र बना दिया। वे कभी मध्यवर्गी, बुर्जुआ या उच्चवर्गी जीवन-मूल्य न अपना सके। चार्ली की कला को देखकर फ़िल्म-समीक्षकों तथा फ़िल्म कला के विद्वानों ने माना कि सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, अपितु कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है। देश-काल की सीमाओं को लाँघते हुए चार्ली सबको अपना लगते हैं।

दर्शक उनके किरदार में कभी स्वयं को देखता है, तो कभी अपने परिचित को। चालों ने भावना को चुना। इसके दो कारण थे। बचपन में जब वे बीमार थे तो उनकी माँ ने उन्हें बाइबिल से ईसा मसीह का जीवन पढ़कर सुनाया। ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रकरण तक आते-आते माँ और चार्ली-दोनों रोने लगे। इस प्रसंग से उन्होंने स्नेह, करुणा और मानवता का पाठ पढ़ा। दूसरी घटना ने चार्ली के जीवन को बहुत प्रभावित किया। उन दिनों बालक चार्ली ऐसे घर में रहता था जिसके पास कसाईखाना था। वहाँ प्रतिदिन सैकड़ों जानवर वध के लिए लाए जाते थे। एक बार एक भेड़ किसी तरह भाग निकली। उसको पकड़ने वाले कई बार गिरे व फिसले तथा दर्शकों के ठहाके लगे।

जब वह भेड़ पकड़ी गई तो चार्ली उसके अंत को सोचकर अपनी माँ के पास रोते हुए गया। उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वीकार किया है कि इस घटना से उन्हें करुणा व हास्य तत्वों के सामंजस्य का ज्ञान हुआ। भारतीय कला व सौंदर्यशास्त्र का संबंध रस से है, परंतु करुणा का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस-सिद्धांत की माँग करता है जो भारतीय परंपराओं में नहीं मिलता। हमारे यहाँ ‘हास्य’ सिर्फ़ दूसरों पर है तथा वह परसंताप से प्रेरित है। करुणा अच्छे मनुष्यों तथा कभी-कभी दुष्टों के लिए है। अपने ऊपर हँसने और दूसरों में भी वैसा माद्दा पैदा करने की शक्ति भारतीय विदूषक में कम नजर आती है।

भारत में चार्ली को व्यापक रूप से स्वीकार कर लिया गया है। हास्य कब करुणा में बदल जाएगा और करुणा कब हास्य में परिवर्तित हो जाएगी, इससे पारंपरिक या सैद्धांतिक रूप से अपरिचित भारतीय जनता ने उस ‘फ़िनोमेनन’ को इस तरह स्वीकार किया जैसे बत्तख पानी को। यहाँ किसी भी व्यक्ति को परिस्थितियों के अनुसार ‘चार्ली’ कह दिया जाता है। यहाँ हर व्यक्ति दूसरे को कभी-न-कभी विदूषक समझता है। मनुष्य स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक, क्लाउन, जोकर या साइड-किक है। महात्मा गाँधी से चार्ली चैप्लिन का खासा पुट था तथा गांधी व नेहरू-दोनों ने कभी चार्ली का सान्निध्य चाहा था। चार्ली के इसी अभारतीय सौंदर्यशास्त्र की व्यापक स्वीकृति देखकर राजकपूर ने ‘आवारा’ व ‘श्री 420 ‘फ़िल्में बनाई। इससे पहले फ़िल्मी नायकों पर हँसने या नायकों के स्वयं अपने पर हँसने की परंपरा नहीं थी।

राजकपूर के बाद दिलीप कुमार, देवानंद, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन, श्री देवी आदि ने चैप्लिन जैसे किरदार निभाए। चार्ली की फ़िल्में भाषा का इस्तेमाल नहीं करतीं। उनमें मानवीय स्वरूप अधिक है और सार्वभौमिकता सर्वाधिक है। चार्ली सदैव चिरयुवा दिखते हैं तथा वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। चार्ली में सबको अपना स्वरूप दिखता है। इस प्रकार उनमें सब बनने की अद्भुत क्षमता है। भारत में होली के त्योहार को छोड़कर स्वयं अपने पर हँसने या स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। नगरीय लोग तो अपने पर हँसने की सोच भी नहीं सकते। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त, आत्मविश्वास से युक्त, सफलता, सभ्यता, संस्कृति तथा समृद्ध की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली व श्रेष्ठ दिखलाता है। उसका रोमांस पंक्चर हो जाता है। महानतम क्षणों में भी वह अपमानित होना जानता है। उसके पात्र लाचार दिखते हुए भी विजयी बन जाते हैं।

शब्दार्थ

पृष्छ– 120
जन्मशती-जन्म का सौवाँ वर्ष। पौन शताब्दी-पचहत्तर वर्ष। मुग्ध-प्रसन्न। खिलवाड़ करना-खेलना। युनजीवन-मृत्यु के बाद दुबारा जीवन लेना। विकासशील-विकास की प्रक्रिया में शामिल।

पृष्ठ-127
उच्चतर-और अधिक श्रेष्ठ। अहसास-अनुभूति। विकल-बेचैन। प्रतिभा-विलक्षण बौद्धिक शक्ति। रसास्वादन-आनंद का अनुभव। तत्र-तरीका, रीति। परित्यक्ता-पति द्वारा छोड़ी गई। भयावह-भयंकर। औदयोगिक क्रांति-बड़े-छोटे उद्योगों को लगाने का माहौल। पूँजीवाद-पूँजी बढ़ाने की नीति। सामंतशाही-बड़े-बड़े सामंतों द्वारा राज करने की व्यवस्था। मगरूर-घमंडी। दुरदुराया जाना-दुत्कारा जाना। खानाबदोश-घुमंतू। रूमानी-रोमांचक। चरित्र-व्यक्तित्व। बुजुआ-अवसरवादी मध्यम वर्ग। अवचेतन-सोया हुआ मस्तिष्क। समीक्षक-गुण-दोष पर टिप्पणी करने वाला। मानविकी-मानव-व्यवहार का अध्ययन। सिर धुनना-अधिक चिंता करना, पछताना।

पृष्ठ-122
पेट दुखाना-अधिक हँसी के कारण पेट में दर्द होना। सारगर्मित-महत्वपूर्ण। दूर की कड़ी लाना-असंभव बातें करना। उजागर-प्रकट। नाट्य-नाटक। मार्मिक-दिल को छूने वाला। भूमि तय करना-आधार तैयार करना। त्रासदी-दुखांत रचना। सामजिस्य-तालमेल । रस-साहित्य से मिलने वाला आनंद। श्रेयस्कर-उचित।

पृष्ठ-123
परसंताप-ईष्याभाव, जलन। विदूषक-जोकर, हँसाने वाला। माददा-क्षमता। व्यापक-फैलाव लिए हुए। मूल्यांकन-आकलन। पारंपरिक-परंपरा से चली आ रही। फिनोमेनन-तथ्य। अंशत:-थोड़ा-बहुत। सावजनिकता-सब लोगों के लिए होना। औचित्य-उचित होना। जानी वांकर-हिंदी फ़िल्मों का मशहूर हास्य कलाकार। नियति-भाग्य। क्लाउन-जोकर। पुट-संबंध। सानिध्य-समीपता। नितांत-बिलकुल। अभारतीय-विदेशी। साहसिक-हिम्मत-भरा।

पृष्ठ-124
भारतीयकरण-भारतीय बनाना। ट्रैम्य-आवारा। अवतार-नया रूप। दिवगत-मृत। त्रासद-दुखद। फजीहत-दुर्दशा। सवाक्चित्रपट-बोलती फ़िल्म। कॉमेडियन-हँसाने वाला। सार्वभौमिकता-व्यापक। पड़ताल-जाँच। अड़गे-बाधाएँ। खलनायक-बुरे पात्र। सतत-निरंतर। हास्यास्यद-हँसी का विषय। नागर-सभ्यता-शहरी जनजीवन। गवन्मत-गर्व से भरा हुआ। लबरेज-भरा हुआ। वज्रादपि कठोराणि-वज्र से कठोर। मृदूनि कुसुमादपि-फूल से भी कोमल। गरिमा-महिमा, महत्व। रोमांस-प्रेम। यवचार-असफल ।

पृष्ठ-125
चरमतम-सबसे ऊँचा। शूरवीर-बहादुर। क्लैव्य-कायरता। पलायन-जिम्मेदारी से भागना। सुपरमैन-महानायक। बुदिधमत्ता-समझदारी। चरमोत्कर्ष-सबसे ऊँचा स्थान। चार्ली-चार्ली होना-असफल और व्यर्थ होना।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित गदयांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1. पौन शताब्दी से चैप्लिन की कला दुनिया के सामने है और पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है। समय, भूगोल और संस्कृतियों की सीमाओं से खिलवाड़ करता हुआ चार्ली आज भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है जो उसे अपने बुढ़ापे तक याद रखेंगे। पश्चिम में तो बार-बार चालों का पुनर्जीवन होता ही है, विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है, एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से चार्ली को घड़ी ‘सुधारते।’ या जूते ‘खाने’ की कोशिश करते हुए देख रहा है। चैप्लिन की ऐसी कुछ फ़िल्में या इस्तेमाल न की गई रीलें भी मिली हैं जिनके बारे में कोई जानता न था। अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा।
प्रश्न

(क) चार्ली की जन्मशती का वर्ष क्यों महत्वपूर्ण हैं?
(ख) भारत में चार्ली की क्या स्थिति हैं?
(ग) विकासशील देशों में चलिन की लोकप्रियता का क्या कारण हैं?
(घ) लेखक ने यह क्यों कहा कि चैप्लिन पर करीब पचास वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?

उत्तर –

(क) चार्ली की जन्मशती का वर्ष महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि इस वर्ष उनकी पहली फ़िल्म ‘मेकिंग ए लिविंग’ के 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। वह पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुकी है।
(ख) चार्ली अब समय, भूगोल व संस्कृतियों की सीमाओं को लाँघ चुका है। अब वह भारत के लाखों बच्चों को हँसा रहा है। वे उसकी कला को बुढ़ापे तक याद रखेंगे।
(ग) विकासशील देशों में टेलीविजन व वीडियो का प्रसार हो रहा है जिसके कारण एक बड़ा व नया दर्शक वर्ग फ़िल्मी कार्यक्रमों से जुड़ रहा है। वह चार्ली को घड़ी ‘सुधारते।’ या जूते ‘खाने’ की कोशिश करते हुए देख रहा है।
(घ) लेखक ने यह बात इसलिए कही है क्योंकि चैप्लिन की कुछ फ़िल्मों की रीलें मिली हैं जो इस्तेमाल नहीं हुई हैं। इनके बारे में किसी को जानकारी नहीं थी इसलिए अभी उन पर काम होना शेष है।

2. उनकी फ़िल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्ध पर नहीं। ‘मेट्रोपोलिस’, ‘द कैबिनेट ऑफ़ डॉक्टर कैलिगारी’, ‘द रोवंथ सील’, ‘लास्ट इयर इन मारिएनबाड’, ‘द सैक्रिफ़ाइस’ जैसी फिल्में दर्शक से एक उच्चतर अहसास की माँग करती हैं। चैप्लिन का चमत्कार यही है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले व्यक्ति तक कहीं एक स्तर पर और कहीं सूक्ष्मतम रसास्वादन के साथ देख सकते हैं। चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। यह अकारण नहीं है कि जो भी व्यक्ति, समूह या तंत्र गैर-बराबरी नहीं मिटाना चाहता वह अन्य संस्थाओं के अलावा चैप्लिन की फ़िल्मों पर भी हमला करता है। चैप्लिन भीड़ का वह बच्चा है जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़ हँस देती है। कोई भी शासक या तंत्र जनता का अपने ऊपर हँसना पसंद नहीं करता।
प्रश्न

(क) चार्ली की फिल्मों के दर्शक कैसे हैं?
(ख) चार्ली ने दशकों की वर्ण तथा वर्ण-व्यवस्था को कैसे तोड़ा?
(ग) चार्ली की फिल्मों को कौन – सा वर्ग नापसंद करता है?
(घ) चार्ली व शासक वर्ग के बीच नाराजगी का क्या कारण है?

उत्तर –

(क) चार्ली की फिल्मों के दर्शक पागलखाने के मरीज, सिरफिरे लोग व आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभा वाले लोग हैं। वे सभी चालों को पसंद करते हैं।
(ख) चार्ली ने दर्शकों की वर्ग व वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। उससे पहले लोग जाति, धर्म, समूह या वर्ण के लिए फ़िल्म बनाते थे। कुछ कला फ़िल्में बनती थीं जिनका दर्शक वर्ग विशिष्ट होता था, परंतु चालों ने ऐसी फ़िल्में बनाई जिनको देखकर हर आदमी आनंद का अनुभव करता है।
(ग) चार्ली की फ़िल्मों को वे लोग नापसंद करते हैं जो व्यक्ति, समूह या तंत्र में भेदभाव को नहीं मिटाना चाहते।
(घ) चार्ली आम आदमी की कमजोरियों के साथ-साथ शासक वर्ग की कमजोरियों को भी जनता के सामने प्रकट कर देता है। शासक या तंत्र नहीं चाहता कि जनता उन पर हँसे। इस कारण दोनों में तनातनी रहती थी।

3. एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना-इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो करोड़पति हो जाने के बावजूद अंत तक उनमें रहे। अपनी नानी की तरफ से चैप्लिन खानाबदोशों से जुड़े हुए थे और यह एक सुदूर रूमानी संभावना बनी हुई है कि शायद उस खानाबदोश औरत में भारतीयता रही हो क्योंकि यूरोप के जिप्सी भारत से ही गए थे-और अपने पिता की तरफ से वे यहूदीवंशी थे। इन जटिल परिस्थितियों ने चार्ली को हमेशा एक ‘बाहरी’, ‘घुमंतू चरित्र बना दिया। वे कभी मध्यवर्गी, बुर्जुआ या उच्चवर्गी जीवन-मूल्य न अपना सके। यदि उन्होंने अपनी फ़िल्मों में अपनी प्रिय छवि ‘ट्रैम्प’ (बद्दू, खानाबदोश, आवारागर्द) की प्रस्तुति की है तो उसके कारण उनके अवचेतन तक पहुँचते हैं।
प्रश्न

(क) चार्ली का बचपन कैसा बीता?
(ख) चार्ली के घुमंतू बनने का क्या कारण था?
(ग) चैप्लिन के जीवन में कौन-से मूल्य अंत तक रहे?
(घ) ‘चार्ली चलिन के जीवन में भारतीयता के संस्कार थे”-कैसे?

उत्तर –

(क) चार्ली का बचपन अत्यंत कष्टों में बीता। वह साधारण स्टेज अभिनेत्री का बेटा था जिसे पति ने छोड़ दिया था। उसे गरीबी व माँ के पागलपन से संघर्ष करना पड़ा। उसे पूँजीपतियों व सामंतों द्वारा दुत्कारा गया।
(ख) चार्ली की नानी खानाबदोश थीं। वह बचपन से ही बेसहारा रहा। माँ के पागलपन, समाज के दुत्कार के कारण उसे कभी संस्कार नहीं मिले। इन जटिल परिस्थितियों ने उसे घुमंतू बना दिया।
(ग) चैप्लिन के जीवन में निम्नलिखित मूल्य अंत तक रहे-एक परित्यक्ता व दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, भयावह गरीबी व माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्यवादी व पूँजीवादी समाज द्वारा दुत्कारा जाना।
(घ) चार्ली चैप्लिन की नानी खानाबदोश थीं। ये खानाबदोश कभी भारत से ही यूरोप में गए थे तथा ‘जिप्सी’ कहलाए थे। चार्ली ने भी घुमंतुओं जैसा जीवन जिया तथा फ़िल्मों में उसे प्रस्तुत किया। इस कारण उसके जीवन में भारतीयता के संस्कार मिलते हैं।

4. चार्ली पर कई फिल्म समीक्षकों ने नहीं, फ़िल्म कला के उस्तादों और मानविकी के विद्वानों ने सिर धुने हैं और उन्हें नेति-नेति कहते हुए भी यह मानना पड़ता है कि चार्ली पर कुछ नया लिखना कठिन होता जा रहा है। दरअसल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है। जो करोड़ों लोग चार्ली को देखकर अपने पेट दुखा लेते हैं उन्हें मैल ओटिंगर या जेम्स एजी की बेहद सारगर्भित समीक्षाओं से क्या लेना-देना? वे चार्ली को समय और भूगोल से काटकर देखते हैं और जो देखते हैं उसकी ताकत अब तक ज्यों-की-त्यों बनी हुई है। यह कहना कि ‘वे चार्ली में खुद को देखते हैं।’ दूर की कौड़ी लाना है लेकिन बेशक जैसा चार्ली वे देखते हैं वह उन्हें जाना-पहचाना लगता है, जिस मुसीबत में वह अपने को हर दसवें सेकेंड में डाल देता है वह सुपरिचित लगती है। अपने को नहीं लेकिन वे अपने किसी परिचित या देखे हुए को चार्ली मानने लगते हैं।
प्रश्न

(क) चार्ली के बारे में समीक्षकों को क्या मानना पड़ा?
(ख) कला व सिद्धांत के बारे में क्या बताया गया हैं?
(ग) समीक्षक चालों का विश्लेषण कैसे करते हैं?
(घ) चार्ली के बारे में दशक क्या सोचते हैं?

उत्तर –

(क) चार्ली के बारे में फिल्म समीक्षकों, फ़िल्म कला के विशेषज्ञों तथा मानविकी के विद्वानों ने गहन शोध किया, परंतु उन्हें यह मानना पड़ा कि चार्ली पर कुछ नया लिखना बेहद कठिन है।
(ख) कला व सिद्धांत के बारे में बताया गया है कि सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, अपितु कला स्वयं अपने सिद्धांत को या तो लेकर आती है या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता है।
(ग) समीक्षक चार्ली को समय व भूगोल से काटकर देखते हैं। वे उसे एक निश्चित दायरे में देखते हैं, जबकि चार्ली समय व भूगोल की सीमा से परे है। उसका संदेश सार्वभौमिक है तथा वह सदैव एक जैसा रहता है।
(घ) चार्ली को देखकर लोग स्वयं में चार्ली देखते हैं या वह उन्हें जाना-पहचाना लगता है। उसकी हरकतें उन्हें अपनी या आस-पास के लोगों जैसी लगती हैं।

5. चार्ली के नितांत अभारतीय सौंदर्यशास्त्र की इतनी व्यापक स्वीकृति देखकर राजकपूर ने भारतीय फिल्मों का एक सबसे साहसिक प्रयोग किया। ‘आवारा’ सिर्फ ‘द ट्रैम्प’ का शब्दानुवाद ही नहीं था बल्कि चार्ली का भारतीयकरण ही था। वह अच्छा ही था कि राजकपूर ने चैप्लिन की नकल करने के आरोपों की परवाह नहीं की। राजकपूर के ‘आवारा’ और ‘श्री 420’ के पहले फिल्मी नायकों पर हँसने की और स्वयं नायकों के अपने पर हँसने की परंपरा नहीं थी। 1953-57 के बीच जब चैप्लिन अपनी गैर-ट्रैम्पनुमा अंतिम फिल्में बना रहे थे तब राजकपूर चैप्लिन का युवा अवतार ले रहे थे। फिर तो दिलीप कुमार (बाबुल, शबनम, कोहिनूर, लीडर, गोपी), देव आनंद (नौ दो ग्यारह, ‘फंटूश, तीन देवियाँ), शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन (अमर अकबर एंथनी) तथा श्री देवी तक किसी-न-किसी रूप से चैप्लिन का कर्ज स्वीकार कर चुके हैं। बुढ़ापे में जब अर्जुन अपने दिवंगत मित्र कृष्ण की पत्नियों को डाकुओं से न बचा सके और हवा में तीर चलाते रहे तो यह दृश्य करुण और हास्योत्पादक दोनों था किंतु महाभारत में सिर्फ उसकी त्रासद व्याख्या स्वीकार की गई। आज फ़िल्मों में किसी नायक को झाडुओ से पिटता भी दिखाया जा सकता है लेकिन हर बार हमें चार्ली की ही ऐसी फ़जीहतें याद आती हैं।
प्रश्न

(क) राजकपूर ने क्या साहसिक प्रयोग क्रिया?
(ख) राजकपूर ने किससे प्रभावित होकर कौन-कौन-सी फिल्में बनाईं?
(ग) कौन-कौन-से भारतीय नायकों ने अपने अभिनय में परिवतन किया?
(घ) यहाँ महाभारत के किस प्रसंग का उल्लेख किया गया हैं?

उत्तर –

(क) राजकपूर ने चार्ली के हास्य व करुणा के सामंजस्य के सिद्धांत को भारतीय फिल्मों में उतारा। उन्होंने ‘आवारा’ फिल्म बनाई जो ‘द ट्रैम्प’ पर आधारित थी। उन पर चैप्लिन की नकल करने के आरोप भी लगे।
(ख) राजकपूर ने चार्ली चैप्लिन की कला से प्रभावित होकर ‘आवारा’, ‘श्री 420’ जैसी फ़िल्में बनाई जिनमें नायकों को स्वयं पर हँसता दिखाया गया है।
(ग) राजकपूर, दिलीप कुमार, देव आनंद, शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन व श्री देवी जैसे कलाकारों ने चार्ली चैप्लिन के प्रभाव से अपने अभिनय में परिवर्तन किया।
(घ) महाभारत में अर्जुन की वृद्धावस्था का वर्णन है जब वह दिवंगत मित्र कृष्ण की पत्नियों को डाकुओं से नहीं बचा सके तथा हवा में तीर चलाते रहे। यह हास्य व करुणा का प्रसंग है, परंतु इसे सिर्फ त्रासद व्याख्या ही माना गया है।

6. चार्ली की अधिकांश फ़िल्में भाषा का इस्तेमाल नहीं करतीं इसलिए उन्हें ज्यादा-से-ज्यादा मानवीय होना पड़ा। सवाक् चित्रपट पर कई बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं, लेकिन वे चैप्लिन की सार्वभौमिकता तक क्यों नहीं पहुँच पाए, इसकी पड़ताल अभी होने को है। चार्ली का चिर-युवा होना या बच्चों जैसा दिखना एक विशेषता तो है ही, सबसे बड़ी विशेषता शायद यह है कि वे किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगते। यानी उनके आस-पास जो भी चीजें, अड़गे, खलनायक, दुष्ट औरतें आदि रहते हैं वे एक सतत ‘विदेश’ या ‘परदेस’ बन जाते हैं और चैप्लिन ‘हम’ बन जाते हैं। चार्ली के सारे संकटों में हमें यह भी लगता है कि यह ‘मैं’ भी हो सकता हूँ, लेकिन ‘मैं’ से ज्यादा चार्ली हमें ‘हम’ लगते हैं। यह संभव है कि कुछ अर्थों में ‘बस्टर कीटन’ चार्ली चैप्लिन से बड़ी हास्य प्रतिभा हो लेकिन कीटन हास्य का काफ़्का है जबकि चैप्लिन प्रेमचंद के ज्यादा नजदीक हैं।
प्रश्न

(क) चार्ली की फिल्मों को मानवीय क्यों होना पड़ा?
(ख) चार्ली चैप्लिन की सावभौमिकता का क्या कारण है?
(ग) चार्ली की फिल्मों की विशेषता क्या है?
(घ) चार्ली के कारनामे हमें ‘मैं’ न लगकर ‘हम’ क्यों लगते हैं?

उत्तर –

(क) चार्ली की फ़िल्मों में भाषा का प्रयोग नहीं किया गया। अत: उनमें मानव की क्रियाओं को सहजता व स्वाभाविकता से दिखाया गया ताकि दर्शक उन्हें शीघ्र समझ सकें। इसीलिए चार्ली की फ़िल्मों को मानवीय होना पड़ा।
(ख) चार्ली चैप्लिन की कला की सार्वभौमिकता के कारणों की जाँच अभी होनी है, परंतु कुछ कारण स्पष्ट हैं; जैसे वे सदैव युवा जैसे दिखते हैं तथा दूसरों को अपने लगते हैं।
(ग) चार्ली की फ़िल्मों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. चार्ली चिर युवा या बच्चों जैसा दिखते हैं।
  2. वे किसी को विदेशी नहीं लगते।
  3. उनके खलनायक सदैव विदेशी लगते हैं।

(घ) चार्ली के कारनामे इतने अधिक थे कि वे किसी एक पात्र की कहानी नहीं हो सकते। उनके संदर्भ बहुत विस्तृत होते थे। वे हर मनुष्य के आस-पास के जीवन को व्यक्त करते हैं।

7. अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली ही होते हैं जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है। अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम क्लैव्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलत: हम सब चाली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।
प्रश्न

(क) ‘चार्ली के टिली’ का क्या अभिप्राय हैं?
(ख) चार्ली के चरित्र में कैसी घटनाएँ हो जाती हैं?
(ग) चार्ली किस प्रकार के व्यक्तित्व का प्रतीक हैं?
(घ) चार्ली और सुपरमैन में क्या अंतर हैं?

उत्तर –

(क) ‘चार्ली के टिली’ का अर्थ है-चाली के कारनामों की नकल। चार्ली के कारनामे व प्रेम अंत में असफल हो जाते हैं, उसी तरह आम आदमी के रोमांस भी फुस्स हो जाते हैं।
(ख) चार्ली के चरित्र में अनेक ऐसी घटनाएँ होती हैं कि वे सफलता के नजदीक पहुँचने वाले होते हैं तो एकदम असफल हो जाते हैं। कभी लाचार होते हुए भी जीत सकते हैं तो कभी वीरता के क्षण में पलायनवादी भी हो सकते हैं। उनके चरित्र में एकदम परिवर्तन हो जाता है।
(ग) चार्ली उस असफल व्यक्ति का प्रतीक है जो सफलता पाने के लिए बहुत परिश्रम करता है, कभी-कभी वह सफल भी हो जाता है, परंतु अकसर वह निरीह व तुच्छ प्राणी ही रहता है।
(घ) चार्ली आम आदमी है। वह सर्वोच्च स्तर पर पहुँचकर भी अपमान झेलता है, जबकि सुपरमैन शक्तिशाली है। वह सदैव जीतता है तथा अपमानित नहीं होता।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ
प्रश्न 1:

लेखक ने ऐसा क्यों कहा है कि अभी चैप्लिन पर करीब 50 वर्षों तक काफी कुछ कहा जाएगा?
उत्तर –
चैप्लिन एक महान कलाकार थे। उन पर जितना लिखा जाए कम है। उन्होंने अपने समाज और राष्ट्र के लिए बहुत कुछ किया। उन पर जितना अभी तक लिखा गया है, वह कम है। इसलिए लेखक ने कहा कि अभी उन पर 50 वर्षों तक काफ़ी कुछ लिखा जाएगा ताकि उनके जीवन के बारे में लोग अच्छी तरह से जान सकें।

प्रश्न 2:
” चैप्लिन ने न सि.र्फ. फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोडा।” इस पंक्ति में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय है? क्या आप इससे सहमत हैं?
उत्तर –
में लोकतांत्रिक बनाने का और वर्ण-व्यवस्था तोड़ने का क्या अभिप्राय हैं? क्या आप इससे सहमत हैं? उत्तर ‘लोकतांत्रिक बनाने’ का अर्थ है-आम व्यक्ति के लिए उपयोगी बनाना। चालों से पहले फिल्में एक वर्ग-विशेष के लिए बनाई जाती थीं। इनका निर्माण सामंतों, बुद्धजीवियों, कलाकारों आदि की रुचियों के अनुरूप किया जाता था। चार्ली ने अपनी फिल्मों में आम आदमी को स्थान दिया, उनकी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी। उसने हर व्यक्ति की कमजोरी को बताया।
‘वर्ण-व्यवस्था तोड़ने’ का अर्थ है-जाति-संबंधी व्यवस्था को तोड़ना। चार्ली ने फ़िल्मों में निम्न वर्ग को स्थान दिया। कुछ लोग किसी विचारधारा के समर्थन में फिल्में बनाते थे। चार्ली ने इस जकड़न को तोड़ा तथा सारे संसार के व्यक्तियों के लिए फिल्में बनाई। उन्होंने कला के एकाधिकार को समाप्त किया।

प्रश्न 3:
लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण किसे कहा और क्यों? गाँधी और नेहरू ने भी उनका सन्निध्य क्यों चाहा?

अथवा

चार्ली चैप्लिन का भारतीयकरण किन-किन रूपों में पाया जाता है? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर –
लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण राजकपूर जी को कहा क्योंकि उस समय वही एकमात्र नायक थे जो चार्ली की नकल किया करते थे। अपनी कई फ़िल्मों में उन्होंने चार्ली जैसी ऐक्टिंग (अभिनय) की। आवारा, श्री 420 आदि फ़िल्मों के माध्यम से राजकपूर जी ने चार्ली का भारतीयकरण किया। महात्मा गांधी से चार्ली का बहुत लगाव था। इसलिए श्री जवाहरलाल नेहरू और गांधी दोनों ही चार्ली का सान्निध्य चाहते थे ताकि उनकी क्षमताओं, उनकी कार्यकुशलता से कुछ सीखा जाए।

प्रश्न 4:
लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में किसे श्रेयस्कर माना है और क्यों? क्या आप कुछ ऐसे उदाहरण दे सकते हैं जहाँ कई रस साथ-साथ आए हों?
उत्तर –
लेखक ने कलाकृति और रस के संदर्भ में रस को श्रेयस्कर माना है। किसी कलाकृति में एक साथ कई रसों का मिश्रण हो तो वह समृद्ध व रुचिकर बनती है। जीवन में हर्ष व विषाद आते-जाते रहते हैं। करुण रस का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस की माँग करता है जो भारतीय परंपरा में नहीं मिलता। उदाहरणस्वरूप युवक-युवती लाइब्रेरी में बैठकर प्रेम वार्तालाप कर रहे हैं। उसी समय सुरक्षा अधिकारी उन्हें देखता है तो उनमें भय का संचार हो जाता है।

प्रश्न 5:
जीवन की जद्दोजहद ने चार्ली के व्यक्तित्व को कैसे संपन्न बनाया?

अथवा

उन सधर्षों का उल्लख कीजिए, जिनसे टकराते-टकराते चार्ली चेप्लिन के व्यक्तित्व में निखार आता चला गया।

अथवा

चार्ली चेप्लिन के जीवन-सघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर –
चार्ली को जीवन बहुत संघर्षमय रहा है। उसने अपने जीवन में बहुत संघर्ष किए है। हर संघर्ष और असफलता ने उसे अधिक ऊर्जावान बनाया है। वह कभी निराश नहीं हुआ। लोगों की सहायता करता रहा। कभी भी उसने संकटों की परवाह नहीं की। हर संकट को डटकर मुकाबला किया। वह अपनी माँ के पागलपन से संघर्ष करता रहा। सामंतशाही और पूँजीवादी समाज ने उसे ठुकरा दिया। गरीब चार्ली हर पल अपनी मंजिल के बारे में सोचता और उस तक पहुँचने का मार्ग खोजता । आखिरकार उसे अपनी मंजिल मिल ही गई। रोडपति से वह करोड़पति बन गया।

प्रश्न 6:
चार्ली चेप्लिन की फ़िल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्रर की परिधि में क्यों नहीं आता?
उत्तर –
भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र अनेक रसों को स्वीकृति देता है, परंतु चार्ली की फ़िल्मों में निहित त्रासदी/करुणा/हास्य का सामंजस्य को अलग मानता है। इसका कारण यह है कि यह रस सिद्धांत के अनुकूल नहीं है। यहाँ हास्य को करुणा में नहीं बदला जाता।’रामायण’ और’महाभारत में पाया जाने वाला हास्य दूसरों पर है, अपने पर नहीं। इनमें दर्शाई गई करुणा प्राय: सद्व्यक्तियों के लिए है, कभी-कभी वह दुष्टों के लिए भी है। संस्कृत नाटकों का विदूषक कुछ बदतमीजियाँ अवश्य करता है, परंतु वह भी दूसरों पर होती है।

प्रश्न 7:
चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर कब हँसता है?

अथवा

चार्ली सबसे ज़्यादा स्वय पर कब और क्यों हसता है?
उत्तर –
चार्ली सबसे ज्यादा स्वयं पर तब हँसता है जब वह अपने को स्वाभिमानी, आत्मविश्वास से पूर्ण, सफलता, सभ्यता, संस्कृति की प्रतिमूर्ति मानता है। जब वह स्वयं को दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली और समृद्ध तथा श्रेष्ठ समझता है तब भी वह अपने पर हँसता है।

पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
आपके विचार से मूक और सवाकू फिल्मों में से किसमें ज्यादा परिश्रम करने की आवश्यकता है और क्यों?
उत्तर –
मेरे विचार में मूक फ़िल्मों में ज्यादा परिश्रम की जरूरत होती है। सवाक् फिल्मों में भाषा के माध्यम से कलाकार अपने भाव व्यक्त कर देता है। वह वाणी के आरोह-अवरोह से अपनी दशा बता सकता है, परंतु मूक फिल्मों में हर भाव शारीरिक चेष्टाओं द्वारा व्यक्त किया जाता है। इस कार्य में अत्यंत दक्षता की जरूरत होती है।

प्रश्न 2:
सामान्यत: व्यक्ति अपने ऊपर नहीं हँसते, दूसरों पर हँसते हैं। कक्षा में ऐसी घटनाओं का जिक्र कीजिए जब-
(क) आप अपने ऊपर हँसे हों;
(ख) हास्य करुणा में या करुणा हास्य में बदल गई हो।
उत्तर –
(क) एक दिन मैं कक्षा में जाकर बैठ गया। मैं जल्दी-जल्दी में गलती से अपनी कक्षा में नहीं बैठा बल्कि दूसरी कक्षा में जा बैठा। जब टीचर पढ़ाने आया तो मैं उन्हें चुपचाप सुनता रहा। जब उन्होंने मुझसे प्रश्न पूछा तब मुझे लगा कि यह मेरी कक्षा नहीं है। मैंने तुरंत टीचर से कहा उन्होंने मुझे बाहर जाने की अनुमति दे दी। इस बात पर मैं बिना हँसे नहीं रह सका।

(ख) हमारी विदाई पार्टी चल रही थी। बच्चे, अध्यापक सभी खूब मौज-मस्ती कर रहे थे। अचानक एक लड़के की चीख सुनाई दी सभी सहम गए। उसके दिल में जोर का दर्द उठा। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया। हास्य करुणा में बदल गई। तभी हममें से एक छात्र ने उस छात्र से कहा कि तेरे दिल में दर्द किसके लिए हुआ। सभी जोर से हँसने लगे। वह छात्र भी हँसने लगा। करुणा हास्य में बदल गई।

प्रश्न 3:
‘चार्ली हमारी वास्तविकता हैं, जबकि सुपरमैन स्वप्न’। आप इन दोनों में खुद को कहाँ पाते हैं?
उत्तर –
हम इन दोनों में खुद को चार्ली के नजदीक पाते हैं क्योंकि हम आम आदमी हैं और आम आदमी स्वप्न देखकर भी लाचार ही रहता है।

प्रश्न 4:
भारतीय सिनेमा और विज्ञापनों ने चार्ली की छवि का किन-किन रूपों में उपयोग किया है? कुछ फ़िल्मों (जैसे-आवारा, श्री 420, मेरा नाम जोकर, मिस्टर इंडिया) और विज्ञापनों (जैसे-चैरी ब्लॉसस) को गौर से देखिए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 5:
आजकल विवाह आदि उत्सवों, समारोहों एवं रेस्तराँ में आज भी चार्ली चेप्लिन का रूपधरे किसी व्यक्ति से आप अवश्य टकराए होंगे। सोचकर बताइए कि बरजार ने चार्ली चौप्लिन का कैसा उपयोग किया है?
उत्तर –
आजकल विवाह आदि उत्सवों, समारोहों एवं रेस्तरों में चार्ली चौप्लिन का उपयोग हँसी-मजाक के प्रतीक के रूप में किया जाता है।

भाषा की बात

प्रश्न 1:
“” ….. तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।” वाक्य में ‘चार्ली’ शब्द की पुनरुक्ति से किस प्रकार की अर्थ-छटा प्रकट होती है? इसी प्रकार के पुनरुक्त शब्दों का प्रयोग करते हुए कोई तीन वाक्य बनाइए। यह भी बताइए कि संज्ञा किन स्थितियों में विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने लगती हैं?
उत्तर –
‘चार्ली’ शब्द की पुनरुक्ति से स्पष्ट होता है-आम मनुष्य होने के बाद यह मनुष्य की वास्तविकता को दर्शाता है।

  1. पानी-पानी-रँगे हाथों पकड़े जाने पर रमेश पानी-पानी हो गया।
  2. लाल-लाल-बाग में लाल-लाल फूल खिले हैं।
  3. सुन-सुन-लेक्चर सुन-सुनकर मैं बोर हो गया। जब किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व एक निश्चित क्षेत्र में विख्यात या कुख्यात हो जाता है तो उसके नाम (संज्ञा) का प्रयोग विशेषण की तरह होने लगता है; जैसे
    रोहन अपने क्षेत्र का अर्जुन है। यहाँ ‘अर्जुन’ संज्ञा का प्रयोग विशेषण की तरह किया गया है।

प्रश्न 2:
नीचे दिए वाक्यांशों में हुए भाषा के विशिष्ट प्रयोगों को पाठ के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए-

(क) सीमाओं से खिलवाड़ करना
(ख) समाज से दुरदुराया जना
(ग) सुदूर रूमानी संभावना
(घ) सारी गरीसा सूह-चुझे गुब्बारे जैसी फुस्स हो उठेगी।
(ड) जिसमें रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं।

उत्तर –

(क) चार्ली की फ़िल्में पिछले 75 वर्षों से समाज को मुग्ध कर रही हैं। इनके प्रभाव ने समय, भूगोल व संस्कृतियों की सीमाओं का अतिक्रमण कर दिया।
(ख) चार्ली को गरीबी व हीन सामाजिक दशा के कारण समाज से दुत्कारा गया।
(ग) चार्ली की नानी खानाबदोशों के समुदाय की थीं। इसके आधार पर लेखक कल्पना करता है कि चालों में कुछ भारतीयता अवश्य होगी क्योंकि यूरोप में जिप्सी जाति भारत से ही गई थी।
(घ) चार्ली जब जीवन के अनेक क्षेत्रों में स्वयं को श्रेष्ठतम दिखाता है तब एकाएक ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है कि उसकी गरिमा परिहास का रूप ले लेती है।
(ड) चार्ली ने महानतम क्षणों में अपमान, चरमतम शूरवीर क्षणों में क्लैब्य व पलायन, लाचारी में भी विजय के उदाहरण दिए हैं। वहाँ रोमांस हास्यास्पद घटना से मजाक में बदल जाता है।

गौर करें

(क) दर असल सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत या तो लेकर आती हैं या बाद में उन्हें गढ़ना पड़ता हैं।
(ख) कला में बेहतर क्या हैं-बुद्ध को प्रेरित करने वाली भावना या भावना को उकसाने वाली बुद्ध?
(ग) दरअसल मनुष्य स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक, क्लाउन, जोकर या साइडकिक हैं।
(घ) सत्ता, शक्ति, बुद्धमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्ष में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता हैं।
(ङ) माडर्न टाइम्स द ग्रेट डिक्टेटर आदि फिल्में कक्षा में दिखाई जाएँ और फिल्मों में चार्ली की भूमिका पर चर्चा की जाए।
उत्तर –
विदूयरर्थों इन पर स्वयं मनन की

अन्य हल प्रश्न

बोधात्मक प्रशन
प्रश्न 1:
चार्ली चैप्लिन की जिंदगी ने उन्हें कैसा बना दिया? ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ पाठ के आधार यर स्पष्ट र्काजिए।
उत्तर –
चार्ली एक परित्यक्ता, दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री के बेटे थे। उन्होंने भयंकर गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना सीखा। साम्राज्यवाद, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज का तिरस्कार उन्होंने सहन किया। इसी कारण मासूम चैप्लिन को जो जीवन-मूल्य मिले, वे करोड़पति हो जाने के बाद भी अंत तक उनमें रहे। इन परिस्थितियों ने चैप्लिन में भीड़ का वह बच्चा सदा जीवित रखा, जो इशारे से बतला देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है, जितना मैं हूँ और हँस देता है। यही वह कलाकार है, जिसने विषम परिस्थितियों में भी हिम्मत से काम लिया।

प्रश्न 2:
चार्ली चैप्लिन ने दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था की कैसे तोडा है?
उत्तर –
चार्ली की फिल्में बच्चे-बूढ़े, जवान, वयस्कों सभी में समान रूप से लोकप्रिय हैं। यह चैप्लिन का चमत्कार ही है कि उनकी फिल्मों को पागलखाने के मरीजों, विकल मस्तिष्क लोगों से लेकर आइंस्टाइन जैसे महान प्रतिभावाले व्यक्ति तक एक स्तर पर कहीं अधिक सूक्ष्म रसास्वाद के साथ देख सकते हैं। इसलिए ऐसा कहा जाता है कि हर वर्ग में लोकप्रिय इस कलाकार ने फिल्म-कला को लोकतांत्रिक बनाया और दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण-व्यवस्था को तोड़ा। कहीं-कहीं तो भौगोलिक सीमा, भाषा आदि के बंधनों को भी पार करने के कारण इन्हें सार्वभौमिक कलाकार कहा गया है।

प्रश्न 3:
चैप्लिन के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए जिनके कारण उन्हें भुलाना कठिन हैं?

अथवा

चार्ली के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर –
चैप्लिन के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं जिनके कारण उन्हें भुलाना कठिन है-

  1. चाली चैप्लिन सदैव खुद पर हँसते थे।
  2. वे सदैव युवा या बच्चों जैसा दिखते थे।
  3. कोई भी व्यक्ति उन्हें बाहरी नहीं समझता था।
  4. उनकी फिल्मों में हास्य कब करुणा के भाव में परिवर्तित हो जाता था, पता नहीं चलता था।

प्रश्न 4:
चार्ली चैप्लिन कौन था? उसके ‘ भारतीयकरण’ से लेखक का क्या आशय हैं?
उत्तर –
चार्ली चैप्लिन पश्चिम का महान कलाकार था जिसने हास्य मूक फ़िल्में बनाई। उसकी फिल्मों में हास्य करुणा में बदल जाता था। भारतीय रस सिद्धांत में इस तरह का परिवर्तन नहीं पाया जाता। यहाँ फ़िल्म का अभिनेता स्वयं पर नहीं हँसता। राजकपूर ने ‘आवारा’ फिल्म को ‘द ट्रैम्प’ के आधार पर बनाया। इसके बाद ‘श्री 420’ व कई अन्य फ़िल्मों के कलाकारों ने चालों का अनुकरण किया।

प्रश्न 5:
भारतीय जनता ने चार्ली के किस ‘फिनोमेनन” को स्वीकार किया? उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
भारतीय जनता ने चार्ली के उस फिनोमेनन को स्वीकार किया जिसमें नायक स्वयं पर हँसता है। यहाँ उसे इस प्रकार स्वीकार किया गया जैसे बत्तख पानी को स्वीकारती है। भारत में राजकपूर, जानी वाकर, अमिताभ बच्चन, शम्मी कपूर, देवानंद आदि कलाकारों ने ऐसे चरित्र के अभिनय किए। लेखक ने चार्ली का भारतीयकरण राजकपूर को कहा। उनकी फ़िल्म ‘आवारा’ सिर्फ ‘द ट्रैम्प’ का शब्दानुवाद ही नहीं थी, बल्कि चार्ली का भारतीयकरण ही थी।

प्रश्न 6:
पश्चिम में बार-बार चार्ली का पुनजीवन होता हैं।-कैसे?
उत्तर –
लेखक बताता है कि पश्चिम में चाली द्वारा निभाए गए चरित्रों की नकल बार-बार की जाती है। अनेक अभिनेता उसकी तरह नकल करके उसकी कला को नए रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार चार्ली नए रूप में जन्म लेता रहता है।

प्रश्न 7:
चार्ली के जीवन पर प्रभाव डालने वाली घटनाओं का उल्लेख कीजिए।

अथवा

बचपन की किन दो घटनाओं ने चार्ली के जीवन पर गहरा एव स्थायी प्रभाव डाला?
उत्तर –
चार्ली के जीवन पर दो घटनाओं का प्रमुख प्रभाव पड़ा, जो निम्नलिखित हैं

  1. एक बार चार्ली बीमार हो गया। उस समय उसकी माँ ने बाइबिल से ईसा मसीह का जीवन चरित्र पढ़कर सुनाया। ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रसंग पर माँ बेटे दोनों रोने लगे। इस कथा से उसने करुणा, स्नेह व मानवता का पाठ पदा।
  2. दूसरी घटना चार्ली के घर के पास की है। पास के कसाईखाने से एक बार एक भेड़ किसी प्रकार जान बचाकर भाग निकली। उसको पकड़ने के लिए उसके पीछे भागने वाले कई बार फिसलकर सड़क पर गिरे जिसे देखकर दर्शकों ने हँसी के ठहाके लगाए। इसके बाद भेड़ पकड़ी गई। चार्ली ने भेड़ के साथ होने वाले व्यवहार का अनुमान लगा लिया। उसका हृदय करुणा से भर गया। हास्य के बाद करुणा का यही भाव उसकी भावी फ़िल्मों का आधार बना।

प्रश्न 8:
‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ पाठ का प्रतिपादृय बताइए।
उत्तर –
पृष्ठ-377 पर ‘पाठ का प्रतिपाद्य एवं सारांश’ में प्रतिपाद्य’ शीर्षक के अंतर्गत देंखें।

प्रश्न 9:
चार्ली की फ़िल्मों की कौन- कौन सी विशेषताएँ हैं?
उत्तर –
लेखक ने चालों की फिल्मों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं

  1. इनमें भाषा का प्रयोग बहुत कम है।
  2. इनमें मानवीय स्वरूप अधिक है।
  3. चालों में सार्वभौमिकता है।
  4. वह सदैव चिर युवा या बच्चे जैसा दिखता है।
  5. वह किसी भी संस्कृति को विदेशी नहीं लगता।
  6. वह सबको अपना स्वरूप लगता है।

प्रश्न 10:
अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम क्या होते हैं?
उत्तर –
अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली के टिली ही होते हैं जिसके रोमांस हमेशा पंक्चर होते रहते हैं। हमारे महानतम क्षणों में कोई भी हमें चिढ़ाकर या लात मारकर भाग सकता है और अपने चरमतम शूरवीर क्षणों में हम क्लैब्य और पलायन के शिकार हो सकते हैं। कभी-कभार लाचार होते हुए जीत भी सकते हैं। मूलत: हम सब चार्ली हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सत्ता, शक्ति, बुद्धिमत्ता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्षों में जब हम आईना देखते हैं तो चेहरा चार्ली-चार्ली हो जाता है।

प्रश्न 11:
‘चार्ली की फिल्में भावनाओं पर टिकी हुई हैं, बुद्ध पर नहीं।”-‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
हास्य फ़िल्मों के महान अभिनेता एवं निर्देशक चार्ली चैप्लिन की सबसे बड़ी विशेषता थी-करुणा और हास्य के तत्वों का सामंजस्य। उनकी फिल्मों में भावना-प्रधान अभिनय दर्शकों को बाँधे रहता है। उनकी फ़िल्मों में भावनाओं की प्रधानता है, बुद्ध तत्व की नहीं। चार्ली को बचपन से ही करुणा और हास्य ने जबरदस्त रूप से प्रभावित किया है। वह बाइबिल पढ़ते हुए ईसा के सूली पर चढ़ने की घटना पर रो पड़ा और कसाई खाने से भागी भेड़ देखकर वह दयाद्र। होता है तो उसे पकड़ने वाले फिसल-फिसलकर गिरते हुए हँसी पैदा करते हैं।

प्रश्न 12:
‘चार्ली चैप्लिन’ का जीवन किस प्रकार हास्य और त्रासदी का रूप बनकर भारतीयों को प्रभावित करता है? उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर –
चार्ली चैप्लिन का जीवन हास्य और त्रासदी का रूप बनकर भारतीयों को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है-

  1. प्रसिद्ध भारतीय सिनेजगत के कलाकारों-राजकपूर, दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, देवानंद आदि, के अभिनय पर चार्ली चैप्लिन के अभिनय का प्रभाव देखा जा सकता है।
  2. चार्ली चैप्लिन के असंख्य प्रशंसक भारतीय हैं जो उनके अभिनय को बहुत पसंद करते हैं।
  3. उन्होंने जीवन की त्रासदी भरी घटनाओं को भी हास्य द्वारा अभिव्यक्त करके दर्शकों को प्रभावित किया।

स्वयं करें

  1. ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब’ पाठ के शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  2. संस्कृत नाटकों के विदूषक और चार्ली चैप्लिन के अभिनय में क्या-क्या अंतर है?
  3. चार्ली की फिल्मों के विषय में लेखक के क्या विचार हैं?
  4. चार्ली की फिल्मों ने दर्शकों की वर्ग और वर्ण-व्यवस्था को ध्वस्त किया। इससे आप कितना सहमत हैं? उदाहरण सहित लिखिए।
  5. निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
    (अ) भारतीय कला और सौंदर्यशास्त्र को कई रसों का पता है, उनमें से कुछ रसों का किसी कलाकृति में साथ-साथ पाया जाना श्रेयस्कर भी माना गया है। जीवन में हर्ष और विषाद आते रहते हैं यह संसार की सारी सांस्कृतिक परंपराओं को मालूम है, लेकिन करुणा का हास्य में बदल जाना एक ऐसे रस-सिद्धांत की माँग करता है जो भारतीय परंपराओं में नहीं मिलता। ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ में जो हास्य है वह ‘दूसरों’ पर है और अधिकांशत: वह परसंताप से प्रेरित है। जो करुणा है वह अकसर सद्व्यक्तियों के लिए और कभी-कभार दुष्टों के लिए है। संस्कृत नाटकों में जो विदूषक है वह राजव्यक्तियों से कुछ बदतमीजियाँ अवश्य करता है, किंतु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमें भी नहीं है। अपने ऊपर हँसने और दूसरों में भी वैसा ही माद्दा पैदा करने की शक्ति भारतीय विदूषक में कुछ कम ही नजर आती है।

(क) भारतीय कला व सौंदर्यशास्त्र के बारे में क्या बताया गया हैं?
(ख) भारतीय परंपरा में क्या नहीं मिलता?
(ग) भारतीय कलाओं में करुणा व हास्य किन पर व्यक्त किया जाता हैं?
(घ) विदूषक कौन है? उसकी क्या सीमाएँ हैं?

(ब) एक होली का त्योहार छोड़ दें तो भारतीय परंपरा में व्यक्ति के अपने पर हँसने, स्वयं को जानते-बूझते हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं के बराबर है। गाँवों और लोक-संस्कृति में तब भी वह शायद हो, नगर-सभ्यता में तो वह थी ही नहीं। चैप्लिन का भारत में महत्व यह है कि वह ‘अंग्रेजों जैसे’ व्यक्तियों पर हँसने का अवसर देता है। चार्ली स्वयं पर सबसे ज्यादा तब हँसता है जब वह स्वयं को गर्वोन्मत्त, आत्म-विश्वास से लबरेज, सफलता, सभ्यता, संस्कृति, तथा समृद्धि की प्रतिमूर्ति, दूसरों से ज्यादा शक्तिशाली तथा श्रेष्ठ, अपने को ‘वज्रादपि कठोराणि’ अथवा ‘मृदूनि कुसुमादपि’ क्षण में दिखाता है।

(क) होली का त्योहार किस रूप में क्या अवसर प्रदान करता है?
(ख) अपने पर हँसने के संदर्भ में लोक-संस्कृति एवं नगर-सभ्यता में मूल अतर क्या था और क्यों?
(ग) ‘अंग्रेजों जैसे व्यक्तियों’ वाक्यांश में निहित व्यंग्यार्थ को स्पष्ट र्काजिए।
(घ) चार्ली जिन दशाओं में अपने पर हँसता है, उन दशाओं में ऐसा करना अन्य व्यक्तियों के लिए सभव क्यों नहीं हैं?

More Resources for CBSE Class 12:

  • RD Sharma class 12 Solutions
  • CBSE Class 12th English Flamingo
  • CBSE Class 12th English Vistas
  • CBSE Class 12 Accountancy
  • CBSE Class 12 Biology
  • CBSE Class 12 Physics
  • CBSE Class 12 Chemistry
  • CBSE Sample Papers For Class 12

NCERT SolutionsHindiEnglishMathsHumanitiesCommerceScience

Primary Sidebar

NCERT Exemplar problems With Solutions CBSE Previous Year Questions with Solutoins CBSE Sample Papers

Recent Posts

  • Letter to The Editor Class 12 CBSE Format, Samples and Examples
  • Speech Writing Format CBSE Class 11 Examples, Samples, Topics
  • Report Writing Class 12 Format, Examples, Topics, Samples
  • Decimals
  • CBSE Class 12 English Letter Writing – Letters Of Application for Jobs
  • NCERT Exemplar Problems Class 7 Maths – Exponents and Powers
  • NCERT Exemplar Class 7 Maths Practical Geometry Symmetry and Visualising Solid Shapes
  • NCERT Exemplar Class 7 Maths Algebraic Expression
  • NCERT Solutions for Class 11 Maths Chapter 8 Binomial Theorem Ex 8.2
  • NCERT Exemplar Problems Class 7 Maths – Perimeter and Area
  • NEET Physics Chapter Wise Mock Test – General properties of matter
  • ML Aggarwal Class 10 Solutions for ICSE Maths Chapter 6 Factorization MCQS
  • Division of a Polynomial by a Monomial
  • Multiplication-Decimal Numbers
  • Proper, Improper and Mixed fractions

Footer

Maths NCERT Solutions

NCERT Solutions for Class 12 Maths
NCERT Solutions for Class 11 Maths
NCERT Solutions for Class 10 Maths
NCERT Solutions for Class 9 Maths
NCERT Solutions for Class 8 Maths
NCERT Solutions for Class 7 Maths
NCERT Solutions for Class 6 Maths

SCIENCE NCERT SOLUTIONS

NCERT Solutions for Class 12 Physics
NCERT Solutions for Class 12 Chemistry
NCERT Solutions for Class 11 Physics
NCERT Solutions for Class 11 Chemistry
NCERT Solutions for Class 10 Science
NCERT Solutions for Class 9 Science
NCERT Solutions for Class 7 Science
MCQ Questions NCERT Solutions
CBSE Sample Papers
cbse ncert
NCERT Exemplar Solutions LCM and GCF Calculator
TS Grewal Accountancy Class 12 Solutions
TS Grewal Accountancy Class 11 Solutions