• Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • NCERT Solutions
    • NCERT Books Free Download
  • TS Grewal
    • TS Grewal Class 12 Accountancy Solutions
    • TS Grewal Class 11 Accountancy Solutions
  • CBSE Sample Papers
  • NCERT Exemplar Problems
  • English Grammar
    • Wordfeud Cheat
  • MCQ Questions

CBSE Tuts

CBSE Maths notes, CBSE physics notes, CBSE chemistry notes

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – काव्य भाग – कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

Contents

  • 1 NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – काव्य भाग – कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
    • 1.1 कवि परिचय
    • 1.2 कविताओं का प्रतिपादय एवं सार
      • 1.2.1 (क) कवितावली (उत्तरकांड से)
      • 1.2.2 (ख) लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप
    • 1.3 व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
      • 1.3.1 (क) कवितावली
    • 1.4 (ख) लक्ष्मण-मूच्छी और राम का विलाप दोहा
    • 1.5 काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
      • 1.5.1 (क) कवितावली
      • 1.5.2 (ख) लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप
    • 1.6 पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
    • 1.7 अन्य हल प्रश्न
    • 1.8 स्वयं करें

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Core – काव्य भाग – कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप

कवि परिचय

जीवन परिचय- गोस्वामी तुलसीदास का जन्म बाँदा जिले के राजापुर गाँव में सन 1532 में हुआ था। कुछ लोग इनका जन्म-स्थान सोरों मानते हैं। इनका बचपन कष्ट में बीता। बचपन में ही इन्हें माता-पिता का वियोग सहना पड़ा। गुरु नरहरिदास की कृपा से इनको रामभक्ति का मार्ग मिला। इनका विवाह रत्नावली नामक युवती से हुआ। कहते हैं कि रत्नावली की फटकार से ही वे वैरागी बनकर रामभक्ति में लीन हो गए थे। विरक्त होकर ये काशी, चित्रकूट, अयोध्या आदि तीर्थों पर भ्रमण करते रहे। इनका निधन काशी में सन 1623 में हुआ।
रचनाएँ- गोस्वामी तुलसीदास की रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
रामचरितमानस, कवितावली, रामलला नहछु, गीतावली, दोहावली, विनयपत्रिका, रामाज्ञा-प्रश्न, कृष्ण गीतावली, पार्वती–मंगल, जानकी-मंगल, हनुमान बाहुक, वैराग्य संदीपनी। इनमें से ‘रामचरितमानस’ एक महाकाव्य है। ‘कवितावली’ में रामकथा कवित्त व सवैया छंदों में रचित है। ‘विनयपत्रिका’ में स्तुति के गेय पद हैं।
काव्यगत विशेषताएँ- गोस्वामी तुलसीदास रामभक्ति शाखा के सर्वोपरि कवि हैं। ये लोकमंगल की साधना के कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यह तथ्य न सिर्फ़ उनकी काव्य-संवेदना की दृष्टि से, वरन काव्यभाषा के घटकों की दृष्टि से भी सत्य है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि शास्त्रीय भाषा (संस्कृत) में सर्जन-क्षमता होने के बावजूद इन्होंने लोकभाषा (अवधी व ब्रजभाषा) को साहित्य की रचना का माध्यम बनाया।
तुलसीदास में जीवन व जगत की व्यापक अनुभूति और मार्मिक प्रसंगों की अचूक समझ है। यह विशेषता उन्हें महाकवि बनाती है। ‘रामचरितमानस’ में प्रकृति व जीवन के विविध भावपूर्ण चित्र हैं, जिसके कारण यह हिंदी का अद्वतीय महाकाव्य बनकर उभरा है। इसकी लोकप्रियता का कारण लोक-संवेदना और समाज की नैतिक बनावट की समझ है। इनके सीता-राम ईश्वर की अपेक्षा तुलसी के देशकाल के आदशों के अनुरूप मानवीय धरातल पर पुनः सृष्ट चरित्र हैं।
भाषा-शैली- गोस्वामी तुलसीदास अपने समय में हिंदी-क्षेत्र में प्रचलित सारे भावात्मक तथा काव्यभाषायी तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनमें भाव-विचार, काव्यरूप, छंद तथा काव्यभाषा की बहुल समृद्ध मिलती है। ये अवधी तथा ब्रजभाषा की संस्कृति कथाओं में सीताराम और राधाकृष्ण की कथाओं को साधिकार अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाते हैं। उपमा अलंकार के क्षेत्र में जो प्रयोग-वैशिष्ट्य कालिदास की पहचान है, वही पहचान सांगरूपक के क्षेत्र में तुलसीदास की है।

कविताओं का प्रतिपादय एवं सार

(क) कवितावली (उत्तरकांड से)

प्रतिपादय-कवित्त में कवि ने बताया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ का दारुण व गहन यथार्थ है, जिसका समाधान वे राम-रूपी घनश्याम के कृपा-जल में देखते हैं। उनकी रामभक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है, साथ ही जीवन-बाह्य आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली भी है।
सार-कवित्त में कवि ने पेट की आग को सबसे बड़ा बताया है। मनुष्य सारे काम इसी आग को बुझाने के उद्देश्य से करते हैं चाहे वह व्यापार, खेती, नौकरी, नाच-गाना, चोरी, गुप्तचरी, सेवा-टहल, गुणगान, शिकार करना या जंगलों में घूमना हो। इस पेट की आग को बुझाने के लिए लोग अपनी संतानों तक को बेचने के लिए विवश हो जाते हैं। यह पेट की आग समुद्र की बड़वानल से भी बड़ी है। अब केवल रामरूपी घनश्याम ही इस आग को बुझा सकते हैं।
पहले सवैये में कवि अकाल की स्थिति का चित्रण करता है। इस समय किसान खेती नहीं कर सकता, भिखारी को भीख नहीं मिलती, व्यापारी व्यापार नहीं कर पाता तथा नौकरी की चाह रखने वालों को नौकरी नहीं मिलती। लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नहीं है। वे विवश हैं। वेद-पुराणों में कही और दुनिया की देखी बातों से अब यही प्रतीत होता है कि अब तो भगवान राम की कृपा से ही कुशल होगी। वह राम से प्रार्थना करते हैं कि अब आप ही इस दरिद्रता रूपी रावण का विनाश कर सकते हैं।
दूसरे सवैये में कवि ने भक्त की गहनता और सघनता में उपजे भक्त-हृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण किया है। वे कहते हैं कि चाहे कोई मुझे धूर्त कहे, अवधूत या जोगी कहे, कोई राजपूत या जुलाहा कहे, किंतु मैं किसी की बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करने वाला और न किसी की जाति बिगाड़ने वाला हूँ। मैं तो केवल अपने प्रभु राम का गुलाम हूँ। जिसे जो अच्छा लगे, वही कहे। मैं माँगकर खा सकता हूँ तथा मस्जिद में सो सकता हूँ किंतु मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। मैं तो सब प्रकार से भगवान राम को समर्पित हूँ।

(ख) लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप

प्रतिपादय- यह अंश ‘रामचरितमानस’ के लंकाकांड से लिया गया है जब लक्ष्मण शक्ति-बाण लगने से मूर्चिछत हो जाते हैं। भाई के शोक में विगलित राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल जाता है जिसमें लक्ष्मण के प्रति राम के अंतर में छिपे प्रेम के कई कोण सहसा अनावृत्त हो जाते हैं। यह प्रसंग ईश्वरीय राम का पूरी तरह से मानवीकरण कर देता है, जिससे पाठक का काव्य-मर्म से सीधे जुड़ाव हो जाता है। इस घने शोक-परिवेश में हनुमान का संजीवनी लेकर आ जाना कवि को करुण रस के बीच वीर रस के उदय के रूप में दिखता है।
सार- युद्ध में लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम की सेना में हाहाकार मच गया। सब वानर सेनापति इकट्ठे हुए तथा लक्ष्मण को बचाने के उपाय सोचने लगे। सुषेण वैद्य के परामर्श पर हनुमान हिमालय से संजीवनी बूटी लाने के लिए चल पड़े। लक्ष्मण को गोद में लिटाकर राम व्याकुलता से हनुमान की प्रतीक्षा करने लगे। आधी रात बीत जाने के बाद राम अत्यधिक व्याकुल हो गए। वे विलाप करने लगे कि तुम मुझे कभी भी दुखी नहीं देख पाते थे। मेरे लिए ही तुमने वनवास स्वीकार किया। अब वह प्रेम मुझसे कौन करेगा? यदि मुझे तुम्हारे वियोग का पता होता तो मैं तुम्हें कभी साथ नहीं लाता। संसार में सब कुछ दुबारा मिल सकता है, परंतु सहोदर भाई नहीं। तुम्हारे बिना मेरा जीवन पंखरहित पक्षी के समान है। अयोध्या जाकर मैं क्या जवाब दूँगा? लोग कहेंगे कि पत्नी के लिए भाई को गवा आया। तुम्हारी माँ को मैं क्या जवाब दूँगा? तभी हनुमान संजीवनी बूटी लेकर आए। वैद्य ने दवा बनाकर लक्ष्मण को पिलाई और उनकी मूच्छी ठीक हो गई। राम ने उन्हें गले से लगा लिया। वानर सेना में उत्साह आ गया। रावण को यह समाचार मिला तो उसने परेशान होकर कुंभकरण को उठाया। कुंभकरण ने जगाने का कारण पूछा तो रावण ने सीता के हरण से युद्ध तक की सारी बात बताई तथा बड़े-बड़े वीरों के मारे जाने की बात कही। कुंभकरण ने रावण को बुरा-भला कहा और कहा कि तुमने साक्षात ईश्वर से वैर लिया है और अब अपना कल्याण चाहते हो! राम साक्षात हरि तथा सीता जी जगदंबा हैं। उनसे वैर लेना कभी कल्याणकारी नहीं हो सकता।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(क) कवितावली

1. किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी,भाट,
चाकर, चपला नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गुढ़त, चढ़त गिरी,

अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।

ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही की पचित, बोचत बेटा-बेटकी।।
‘तुलसी ‘ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आग बड़वागितें बड़ी हैं आग पेटकी।।
(पृष्ठ-48)
[CBSE Sample Paper, 2013; (Outside) 2011 (C)]

शब्दार्थ-किसबी-धंधा। कुल- परिवार। बनिक- व्यापारी। भाट- चारण, प्रशंसा करने वाला। चाकर- घरेलू नौकर। चपल- चंचल। चार- गुप्तचर, दूत। चटकी- बाजीगर। गुनगढ़त- विभिन्न कलाएँ व विधाएँ सीखना। अटत- घूमता। अखटकी- शिकार करना। गहन गन- घना जंगल। अहन- दिन। करम-कार्य। अधरम- पाप। बुझाड़- बुझाना, शांत करना। घनश्याम- काला बादल। बड़वागितें- समुद्र की आग से। आग येट की- भूख।
प्रसंग- प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कवित्त में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि इस संसार में मजदूर, किसान-वर्ग, व्यापारी, भिखारी, चारण, नौकर, चंचल नट, चोर, दूत, बाजीगर आदि पेट भरने के लिए अनेक काम करते हैं। कोई पढ़ता है, कोई अनेक तरह की कलाएँ सीखता है, कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई दिन भर गहन जंगल में शिकार की खोज में भटकता है। पेट भरने के लिए लोग छोटे-बड़े कार्य करते हैं तथा धर्म-अधर्म का विचार नहीं करते। पेट के लिए वे अपने बेटा-बेटी को भी बेचने को विवश हैं। तुलसीदास कहते हैं कि अब ऐसी आग भगवान राम रूपी बादल से ही बुझ सकती है, क्योंकि पेट की आग तो समुद्र की आग से भी भयंकर है।
विशेष-

(i) समाज में भूख की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है।
(ii) कवित्त छंद है।
(iii) तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है।
(iv) ब्रजभाषा लालित्य है।
(v) ‘राम घनस्याम’ में रूपक अलंकार तथा ‘आगि बड़वागितें..पेट की’ में व्यतिरेक अलंकार है।
(vi) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
‘किसबी, किसान-कुल’, ‘भिखारी, भाट’, ‘चाकर, चपल’, ‘चोर, चार, चेटकी’, ‘गुन, गढ़त’, ‘गहन-गन’, ‘अहन अखेटकी ‘, ‘ बचत बेटा-बेटकी’, ‘ बड़वागितें  बड़ी  ‘
(vii) अभिधा शब्द-शक्ति है।

प्रश्न

(क) पेट भरने के लिए लोग क्या-क्या अनैतिक काय करते हैं ?
(ख) कवि ने समाज के किन-किन लोगों का वर्णन किया है ? उनकी क्या परेशानी है ?
(ग) कवि के अनुसार, पेट की आग कौन बुझा सकता है ? यह आग कैसे है ?
(घ) उन कमों का उल्लेख कीजिए, जिन्हें लोग पेट की आग बुझाने के लिए करते हैं ?

उत्तर-

(क) पेट भरने के लिए लोग धर्म-अधर्म व ऊंचे-नीचे सभी प्रकार के कार्य करते है ? विवशता के कारण वे अपनी संतानों को भी बेच देते हैं ?
(ख) कवि ने मज़दूर, किसान-कुल, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर, चोर, दूत, जादूगर आदि वर्गों का वर्णन किया है। वे भूख व गरीबी से परेशान हैं।
(ग) कवि के अनुसार, पेट की आग को रामरूपी घनश्याम ही बुझा सकते हैं। यह आग समुद्र की आग से भी भयंकर है।
(घ) कुछ लोग पेट की आग बुझाने के लिए पढ़ते हैं तो कुछ अनेक तरह की कलाएँ सीखते हैं। कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई घने जंगल में शिकार के पीछे भागता है। इस तरह वे अनेक छोटे-बड़े काम करते हैं।

2.

खेते न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों ‘ कहाँ जाई, का करी ?’

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे स सबैं पै, राम ! रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु !
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी। [(पृष्ठ-48) [CBSE (Outside), 2011 (C)]

शब्दार्थ-बलि- दान-दक्षिणा। बनिक- व्यापारी। बनिज- व्यापार। चाकर- घरेलू नौकर। चाकरी- नौकरी। जीविका बिहीन- रोजगार से रहित। सदयमान-दुखी। सोच- चिंता। बस- वश में। एक एकन सों- आपस में। का करी- क्या करें। बेदहूँ- वेद। पुरान- पुराण। लोकहूँ- लोक में भी। बिलोकिअत- देखते हैं। साँकरे- संकट। रावरें- आपने। दारिद- गरीबी। दसानन- रावण। दबाढ़- दबाया। दुनी- संसार। दीनबंधु- दुखियों पर कृपा करने वाला। दुरित- पाप। दहन-जलाने वाला, नाश करने वाला। हहा करी-दुखी हुआ।
प्रसंग-प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कवित्त में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या- तुलसीदास कहते हैं कि अकाल की भयानक स्थिति है। इस समय किसानों की खेती नष्ट हो गई है। उन्हें खेती से कुछ नहीं मिल पा रहा है। कोई भीख माँगकर निर्वाह करना चाहे तो भीख भी नहीं मिलती। कोई बलि का भोजन भी नहीं देता। व्यापारी को व्यापार का साधन नहीं मिलता। नौकर को नौकरी नहीं मिलती। इस प्रकार चारों तरफ बेरोजगारी है। आजीविका के साधन न रहने से लोग दुखी हैं तथा चिंता में डूबे हैं। वे एक-दूसरे से पूछते हैं-कहाँ जाएँ? क्या करें? वेदों-पुराणों में ऐसा कहा गया है और लोक में ऐसा देखा गया है कि जब-जब भी संकट उपस्थित हुआ, तब-तब राम ने सब पर कृपा की है। हे दीनबंधु! इस समय दरिद्रतारूपी रावण ने समूचे संसार को त्रस्त कर रखा है अर्थात सभी गरीबी से पीड़ित हैं। आप तो पापों का नाश करने वाले हो। चारों तरफ हाय-हाय मची हुई है।
विशेष-

(i) तत्कालीन समाज की बेरोजगारी व अकाल की भयावह स्थिति का चित्रण है।
(ii) तुलसी की रामभक्ति प्रकट हुई है।
(iii) ब्रजभाषा का सुंदर प्रयोग है।
(iv) ‘दारिद-दसानन’ व ‘दुरित दहन’ में रूपक अलंकार है।
(v) कवित्त छंद है।
(vi) तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
(vi) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है ‘किसान को’, ‘सीद्यमान सोच’, ‘एक एकन’, ‘का करी’, ‘साँकरे सबैं’, ‘राम-रावरें’, ‘कृपा करी’, ‘दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु’, ‘दुरित-दहन देखि’।

प्रश्न

(क) कवि ने समाज के किन-किन वरों के बारे में बताया है?
(ख) लोग चिंतित क्यों हैं तथा वे क्या सोच रहे हैं?
(ग) वेदों वा पुराणों में क्या कहा गया है ?
(घ) तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की हैं तथा क्यों ?

उत्तर-

(क) कवि ने किसान, भिखारी, व्यापारी, नौकरी करने वाले आदि वर्गों के बारे में बताया है कि ये सब बेरोजगारी से परेशान हैं।
(ख) लोग बेरोजगारी से चिंतित हैं। वे सोच रहे हैं कि हम कहाँ जाएँ क्या करें?
(ग) वेदों और पुराणों में कहा गया है कि जब-जब संकट आता है तब-तब प्रभु राम सभी पर कृपा करते हैं तथा सबका कष्ट दूर करते हैं।
(घ) तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना रावण से की है। दरिद्रतारूपी रावण ने पूरी दुनिया को दबोच लिया है तथा इसके कारण पाप बढ़ रहे हैं।

3.

धूत कहो, अवधूत कहों, रजपूतु कहीं, जोलहा कहों कोऊ।
कहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहूकी जाति बिगार न सौऊ।
तुलसी सरनाम गुलामु हैं राम को, जाको रुच सो कहें कछु आोऊ।
माँग कै खैबो, मसीत को सोइबो, लेबोको एकु न दैबको दोऊ।। [(पृष्ठ-48) [CBSE (Outside), 2008]

शब्दार्थ- धूत- त्यागा हुआ। अवधूत– संन्यासी। रजपूतु- राजपूत। जलहा- जुलाहा। कोऊ- कोई। काहू की- किसी की। ब्याहब- ब्याह करना है। बिगार-बिगाड़ना। सरनाम- प्रसिद्ध। गुलामु- दास। जाको- जिसे। रुच- अच्छा लगे। आोऊ- और। खैबो- खाऊँगा। मसीत- मसजिद। सोढ़बो- सोऊँगा। लैंबो-लेना। वैब-देना। दोऊ- दोनों।
प्रसंग- प्रस्तुत कवित्त हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के ‘उत्तरकांड’ से उद्धृत है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस कवित्त में कवि ने तत्कालीन सामाजिक व आर्थिक दुरावस्था का यथार्थपरक चित्रण किया है।
व्याख्या- कवि समाज में व्याप्त जातिवाद और धर्म का खंडन करते हुए कहता है कि वह श्रीराम का भक्त है। कवि आगे कहता है कि समाज हमें चाहे धूर्त कहे या पाखंडी, संन्यासी कहे या राजपूत अथवा जुलाहा कहे, मुझे इन सबसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। मुझे अपनी जाति या नाम की कोई चिंता नहीं है क्योंकि मुझे किसी के बेटी से अपने बेटे का विवाह नहीं करना और न ही किसी की जाति बिगाड़ने का शौक है। तुलसीदास का कहना है कि मैं राम का गुलाम हूँ, उसमें पूर्णत: समर्पित हूँ, अत: जिसे मेरे बारे में जो अच्छा लगे, वह कह सकता है। मैं माँगकर खा सकता हूँ, मस्जिद में सो सकता हूँ तथा मुझे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। संक्षेप में कवि का समाज से कोई संबंध नहीं है। वह राम का समर्पित भक्त है।
विशेष-

(i) कवि समाज के आक्षेपों से दुखी है। उसने अपनी रामभक्ति को स्पष्ट किया है।
(ii) दास्यभक्ति का भाव चित्रित है।
(iii) ‘लैबोको एकु न दैबको दोऊ’ मुहावरे का सशक्त प्रयोग है।
(iv) सवैया छंद है।
(v) ब्रजभाषा है।
(vi) मस्जिद में सोने की बात करके कवि ने उदारता और समरसता का परिचय दिया है।
(vii) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
‘कहौ कोऊ’, ‘काहू की’, ‘कहै कछु’।

प्रश्न

(क) कवि किन पर व्यंग्य करता है और क्यों ?
(ख) कवि अपने  किस रुप पर गर्व करता है ?
(ग) कवि समाज से क्या चाहता हैं?
(घ) कवि आपन जीवन-निर्वाह किस प्रकार करना चाहता है ?

उत्तर-

(क) कवि धर्म, जाति, संप्रदाय के नाम पर राजनीति करने वाले ठेकेदारों पर व्यंग्य करता है, क्योंकि समाज के इन ठेकेदारों के व्यवहार से ऊँच-नीच, जाति-पाँति आदि के द्वारा समाज की सामाजिक समरसता कहीं खो गई है।
(ख) कवि स्वयं को रामभक्त कहने में गर्व का अनुभव करता है। वह स्वयं को उनका गुलाम कहता है तथा समाज की हँसी का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
(ग) कवि समाज से कहता है कि समाज के लोग उसके बारे में जो कुछ कहना चाहें, कह सकते हैं। कवि पर उनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वह किसी से कोई संबंध नहीं रखता।
(घ) कवि भिक्षावृत्ति से अपना जीवनयापन करना चाहता है। वह मस्जिद में निश्चित होकर सोता है। उसे किसी से कुछ लेना-देना नहीं है। वह अपने सभी कार्यों के लिए अपने आराध्य श्रीराम पर आश्रित है।

(ख) लक्ष्मण-मूच्छी और राम का विलाप
दोहा

1.

तव प्रताप उर राखि प्रभु, जैहउँ नाथ तुरंग।
अस कहि आयसु पाह पद, बदि चलेउ हनुमत।
भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत, पुनि-पुनि पवनकुमार।।
(पृष्ठ-49)

शब्दार्थ- तव-तुम्हारा, आपका। प्रताप-यश। उर-हृदय। राखि-रखकर। जैहऊँ-जाऊँगा। नाथ-स्वामी। अस-इस तरह। आयसु-आज्ञा। पाड़-पाकर। पद-चरण, पैर। बदि-वंदना करके। बहु-भुजा। सील-सद्व्यवहार। गुन-गुण। प्रीति-प्रेम। अयार-अधिक। महुँ-में। सराहत-बड़ाई करते हुए। पुनि- पुनि-फिर-फिर। पवनकुमार-हनुमान।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता कवि तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मण के मूर्चिछत होने तथा हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाने में भरत से मुलाकात का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- हे नाथ! हे प्रभो!! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत यानी समय से वहाँ पहुँच जाऊँगा। ऐसा कहकर और भरत जी से आज्ञा लेकर एवं उनके चरणों की वंदना करके हनुमान जी चल दिए।
भरत के बाहुबल, शील स्वभाव तथा प्रभु के चरणों में उनकी अपार भक्ति को मन में बार-बार सराहते हुए हनुमान संजीवनी बूटी लेकर लंका की तरफ चले जा रहे थे।
विशेष-

(i) हनुमान की भक्ति व भरत के गुणों का वर्णन हुआ है।
(ii) दोहा छंद है।
(iii) अवधी भाषा का प्रयोग है।
(iv) ‘मन महुँ’, ‘पुनि-पुनि पवन कुमार’, ‘पाइ पद’ में अनुप्रास तथा ‘पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

प्रश्न

(क) कवि तथा कविता का नाम बताइए?
(ख) हनुमान ने भरत जी को क्या आश्वासन दिया ?
(ग) हनुमान ने भरत सो क्या कहा ?
(घ) हनुमान भरत की किस बात से प्रभावित हुए ?
(ङ) हनुमान ने सकट में धैर्य नहीं खोया। वे वीर एवं धैर्यवान थे-स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) कवि-तुलसीदास।
कविता-लक्ष्मण-मूच्छी और राम का विलाप।
(ख) हनुमान जी ने भरत जी को यह आश्वासन दिया कि “हे नाथ! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत संजीवनी बूटी लेकर लंका पहुँच जाऊँगा। आप निश्चित रहिए।”
(ग) हनुमान ने भरत से कहा कि “हे नाथ! मैं आपके प्रताप को मन में धारण करके तुरंत जाऊँगा।”
(घ) हनुमान भरत की रामभक्ति, शीतल स्वभाव व बाहुबल से प्रभावित हुए।
(ङ) मेघनाथ का बाण लगने से लक्ष्मण घायल व मूर्चिछत हो गए थे। इससे श्रीराम सहित पूरी वानर सेना शोकाकुल होकर विलाप कर रही थी। ऐसे में हनुमान ने विलाप करने की जगह धैर्य बनाए रखा और संजीवनी लेने गए। इससे स्पष्ट होता है कि हनुमान वीर एवं धैर्यवान थे।

2.

उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसार।।
अप्ध राति गङ्ग कपि नहिं आयउ। राम उठाड़ अनुज उर लायउ ।।
सकडु न दुखित देखि मोहि काऊ। बांधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।। [CBSE (Delhi), 2011]
सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।
जों जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू।। [(पृष्ठ-49-50) (CBSE (Delhi), 2009, 2012)]

शब्दार्थ- उहाँ-वहाँ। लछिमनहि- लक्ष्मण को। निहारी- देखा। मनुज- मनुष्य। अनुसारी- समान। अध- आधी। राति- रात। कपि- बंदर (हनुमान)। आयउ-आया। अनुज- छोटा भाई, लक्ष्मण। उर- हृदय। सकटु- सके। दुखित- दुखी। मोह- मुझे। काऊ- किसी प्रकार । तव- तेरा। मृदुल- कोमल। सुभाऊ– स्वभाव। मम- मेरे। हित- भला। तजहु- त्याग दिया। सहेहु- सहन किया। बिपिन- जंगल। हिम- बर्फ । आतप- धूप। बाता- हवा, तूफ़ान। सो- वह। अनुराग- प्रेम। वच- वचन। बिकलाह- व्याकुल। जों- यदि। जनतेऊँ- जानता। बिछोहू- बिछड़ना, वियोग। मनतेऊँ– मानता। अगेहू- उस।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता कवि तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मण-मूच्छा पर राम के करुण विलाप का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- लक्ष्मण को निहारते हुए श्रीराम सामान्य आदमी के समान विलाप करते हुए कहने लगे कि आधी रात बीत गई है। अभी तक हनुमान नहीं आए। उन्होंने लक्ष्मण को उठाकर सीने से लगाया। वे बोले कि “तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख पाते थे। तुम्हारा स्वभाव सदैव कोमल व विनम्र रहा। मेरे लिए ही तुमने माता-पिता को त्याग दिया और जंगल में ठंड, धूप, तूफ़ान आदि को सहन किया। हे भाई! अब वह प्रेम कहाँ है? तुम मेरी व्याकुलतापूर्ण बातों को सुनकर उठते क्यों नहीं। यदि मैं यह जानता होता कि वन में तुम्हारा वियोग सहना पड़ेगा तो मैं पिता के वचनों को भी नहीं मानता और वन में नहीं आता।
विशेष-

(i) राम का मानवीय रूप एवं उनके विलाप का मार्मिक वर्णन है।
(ii) दृश्य बिंब है।
(iii) करुण रस की प्रधानता है।
(iv) चौपाई छंद का कुशल निर्वाह है।
(v) अवधी भाषा है।
(vi) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
‘बोले बचन’, ‘दुखित देखि’, ‘बन बंधु बिछोहू’, ‘बच बिकलाई’।

प्रश्न

(क) रात अधिक होते देख राम ने क्या किया?
(ख) राम ने लक्ष्मण की किन-किन विशेषताओं को बताया?
(ग) लक्ष्मण ने राम के लिए क्या-क्या कष्ट सहे?
(घ) ‘सी अनुराग’ कहकर राम कैसे अनुराग की दुलभता की ओर संकेत कर रहे हैं? सोदाहरण लिखिए।

उत्तर-

(क) रात अधिक होते देख राम व्याकुल हो गए। उन्होंने लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया।
(ख) राम ने लक्ष्मण की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई-

(i) वे राम को दुखी नहीं देख सकते थे।
(ii) उनका स्वभाव कोमल था।
(iii) उन्होंने माता-पिता को छोड़कर उनके लिए वन के कष्ट सहे।

(ग) लक्ष्मण ने राम के लिए अपने माता-पिता को ही नहीं, अयोध्या का सुख-वैभव त्याग दिया। वे वन में राम के साथ रहकर नाना प्रकार की मुसीबतें सहते रहे।
(घ) ‘सो अनुराग’ कहकर राम ने अपने और लक्ष्मण के बीच स्नेह की तरफ संकेत किया है। ऐसा प्रेम दुर्लभ होता है कि भाई के लिए दूसरा भाई अपने सब सुख त्याग देता है। राम भी लक्ष्मण की मूच्छी मात्र से व्याकुल हो जाते हैं।

3.

सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारह बारा।।
अस बिचारि जिय जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जों जड़ दैव जिआर्वे मोही।।
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाड़ गवाई।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बुसेष छति नहीं।। [(पृष्ठ-50) (CBSE (Delhi & Foreign), 2011, (Outside), 2009]

शब्दार्थ- बित-धन। नारि- स्त्री, पत्नी। होहिं- आते हैं। जाहि- जाते हैं। जग- संसार। बारहेिं बार- बार-बार। अस- ऐसा, इस तरह। बिचारि- सोचकर। जिय- मन में। ताता- भाई के लिए संबोधन। सहोदर– एक ही माँ की कोख से जन्मे। भ्राता- भाई। जथा- जिस प्रकार। बिनु- के बिना। दीना-दीन-हीन। मनि- नागमणि। फनि- फन (यहाँ-साँप)। करिबर- श्रेष्ठ हाथी। कर- सूंड़। हीना- से रहित। मम- मेरा। जिवन- जीवन। बंधु- भाई। तोही- तुम्हारे। जौं-यदि। जड़- कठोर। वैव- भाग्य। जिआवै- जीवित रखे। मोही- मुझे। जैहऊँ- जाऊँगा। कवन- कौन। मुहुँ- मुख। हेतु- के लिए। गवाड़- खोकर। बरु- चाहे। अयजस- अपयश। सहतेऊँ- सहन करता। माह- में। बिसेष- खास। छति- हानि, नुकसान।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूच्छी और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मण-मूच्छा पर राम के विलाप का वर्णन है।
व्याख्या- श्रीराम व्याकुल होकर कहते हैं कि संसार में पुत्र, धन, स्त्री, भवन और परिवार बार-बार मिल जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं, किंतु संसार में सगा भाई दुबारा नहीं मिलता। यह विचार करके, हे तात, तुम जाग जाओ।
हे लक्ष्मण! जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना साँप, सँड़ के बिना हाथी अत्यंत दीन-हीन हो जाते हैं, उसी प्रकार तुम्हारे बिना मेरा जीवन व्यर्थ है। हे भाई! तुम्हारे बिना यदि भाग्य मुझे जीवित रखेगा तो मेरा जीवन भी पंखविहीन पक्षी, मणि विहीन साँप और सँड़ विहीन हाथी के समान हो जाएगा। राम चिंता करते हैं कि वे कौन-सा मुँह लेकर अयोध्या जाएँगे? लोग कहेंगे कि पत्नी के लिए प्रिय भाई को खो दिया। मैं पत्नी के खोने का अपयश सहन कर लेता, क्योंकि नारी की हानि विशेष नहीं होती।
विशेष-

(i) राम का भ्रातृ-प्रेम प्रशंसनीय है।
(ii) दृश्य बिंब है।
(iii) ‘जथा पंख . तोही’ में उदाहरण अलंकार है।
(iv) चौपाई छंद का सुंदर प्रयोग है।
(v) अवधी भाषा है।
(vi) करुण रस है।
(vi) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-
‘जाहिं जग’, ‘बारहिं बारा’, ‘बंधु बिनु’, ‘करिबर कर’।

प्रश्न

(क) काव्यांश के आधार पर राम के व्यक्तित्व पर टिप्पणी कीजिए।
(ख) राम ने भ्रातृ-प्रेम की तुलना में किनकी हीन माना है?
(ग) राम को लक्ष्मण के बिना अपना जीवन कैसा लगता है?
(घ) ‘ जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई ‘ – कथन के पीछे निहित भावना पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर-

(क) इस काव्यांश में राम का आम आदमी वाला रूप दिखाई देता है। वे लक्ष्मण के प्रति स्नेह व प्रेमभाव को व्यक्त करते हैं तथा संसार के हर सुख से ज्यादा सगे भाई को महत्व देते हैं।
(ख) राम ने भ्रातृ-प्रेम की तुलना में पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार सबको हीन माना है। उनके अनुसार, ये सभी चीजें आती-जाती रहती हैं, परंतु सगा भाई बार-बार नहीं मिलता।
(ग) राम को लक्ष्मण के बिना अपना जीवन उतना ही हीन लगता है जितना पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना साँप तथा सँड़ के बिना हाथी का जीवन हीन होता है।
(घ) इस कथन से श्रीराम का कर्तव्यबोध झलकता है। वे अपनी जिम्मेदारी पर लक्ष्मण को अपने साथ लाए थे, परंतु वे अपना कर्तव्य पूरा न कर सके। अत: वे अयोध्या में अपनी जवाबदेही से डरे हुए थे।

4.

अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहहि निठुर कठोर उर मोरा।।
निज जननी के एक कुमारा । तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।।
सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।।
उतरु काह दैहऊँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।।
बहु बिधि सोचत सोचि बुमोचन। स्त्रवत सलिल राजिव दल लोचन।।
उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपालु देखाई।।  [CBSE (Delhi) (C) & Foreign, 2009; (Outside), 2011]

सोरठ

प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकर।
आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महं बीर रस।।  [(पृष्ठ-50) (CBSE (Outside), 2011)]

शब्दार्थ- अपलोकु-अपयश। सहाह- सहन कर लेगा। निदुर- कठोर। उर- हृदय। निज- अपनी। जननी- माँ। कुमारा- पुत्र। तात-पिता। तासु-उसके। प्रान अधारा- प्राणों के आधार। साँयेसि- सौपा था। मोह- मुझे। गहि- पकड़कर। यानी- हाथ। हित- हितैषी। जानी- जानकर। उतरु- उत्तर। काह- क्या। तेहि-उसे। किन- क्यों नहीं। स्त्रवत- चूता है। सलिल- जल। राजिव- कमल। गति- दशा। प्रलाप- तर्कहीन वचन-प्रवाह। विकल- परेशान। निष्कर- समूह। जिमि- जैसे। मँह– में।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंका कांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मण-मूच्छा पर राम के विलाप व हनुमान के वापस आने का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- लक्ष्मण के होश में न आने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि मेरा निष्ठुर व कठोर हृदय अपयश और तुम्हारा शोक दोनों को सहन करेगा। हे तात! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र हो तथा उसके प्राणों के आधार हो। उसने सब प्रकार से सुख देने वाला तथा परम हितकारी जानकर ही तुम्हें मुझे सौंपा था। अब उन्हें मैं क्या उत्तर दूँगा? तुम स्वयं उठकर मुझे कुछ बताओ। इस प्रकार राम ने अनेक प्रकार से विचार किया और उनके कमल रूपी सुंदर नेत्रों से आँसू बहने लगे। शिवजी कहते हैं-हे उमा ! श्री रामचंद्र जी अद्वितीय और अखंड हैं। भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान ने मनुष्य की दशा दिखाई है। प्रभु का विलाप सुनकर वानरों के समूह व्याकुल हो गए। इतने में हनुमान जी आ गए। ऐसा लगा जैसे करुण रस में वीर रस प्रकट हो गया हो।
विशेष-

(i) राम की व्याकुलता का सजीव वर्णन है।
(ii) दृश्य बिंब है।
(iii) अवधी भाषा का सुंदर प्रयोग है।
(iv) चौपाई व सोरठा छंद हैं।
(vi) करुण रस है।
(vii) निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है
‘तात तासु तुम्ह’, ‘बहु विधि’, ‘सोचत सोच’, ‘स्रवत सलिल’, ‘प्रभु प्रताप’।
(viii) ‘राजिव दल लोचन’ में रूपक अलंकार है।

प्रश्न

(क) व्याकुल श्रीराम अपना दुख कैसे प्रकट कर रहे हैं?
(ख) श्रीराम सुमित्रा माता का स्मरण करके क्यों दुखी हो उठते हैं?

उत्तर-

(क) व्याकुल श्रीराम आपना दुख प्रकट करते हुए कहते हैं कि वे कठोर हृदय से लक्ष्मण के वियोग व अपयश को सहन कर लेंगे, परंतु अयोध्या में सुमित्रा माता को क्या जवाब देंगे।
(ख) श्रीराम सुमित्रा माता के विषय में चिंतित हैं, क्योंकि उन्होंने राम को हर तरह से हितैषी मानकर लक्ष्मण को उन्हें सौंपा था। अत: वे उन्हें लक्ष्मण की मृत्यु का जवाब कैसे देंगे। वे लक्ष्मण से ही इसका जवाब पूछ रहे हैं।
(ग) इसका अर्थ यह है कि राम ने मानवरूप में जन्म लिया। उन्हें धरती पर होने वाली हर घटना का पूर्व ज्ञान है, परंतु वे लक्ष्मण-मूच्छा पर साधारण मानव की तरह व्यवहार कर रहे हैं।
(घ) हनुमान के आगमन से वानर सेना में उत्साह आ गया। ऐसा लगा जैसे करुण रस के प्रसंग में वीर रस का संचार हो गया।

5.

हरषि राम भेंटेउ हनुमान। अति कृतस्य प्रभु परम सुजाना ।।
तुरत बँद तब कीन्हि उ पाई। उठि बैठे लछिमन हरषाड़।।
हृदयाँ लाइ प्रभु भेटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।
कपि पुनि बँद तहाँ पहुँचवा। जेहि बिधि तबहेिं ताहि लह आवा।। (पृष्ठ-50)

शब्दार्थ- हरषि-खुश होकर। भेटेउ- गले लगाकर प्रेम प्रकट किया। अति- बहुत अधिक। कृतग्य- आभार। सुजाना- अच्छा ज्ञानी, समझदार। बैद- वैद्य। कीन्हि- किया। भ्राता– भाई। हरषे- खुश हुए। सकल- समस्त। ब्रता- समूह, झंड। युनि- दुबारा। ताहि- उसको। लद्ध आवा- लेकर आए थे।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मण के स्वस्थ होकर उठने तथा सभी की प्रसन्नता का वर्णन है।
व्याख्या- हनुमान के आने पर राम ने प्रसन्न होकर उन्हें गले से लगा लिया। परम चतुर और एक समझदार व्यक्ति की तरह भगवान राम ने हनुमान के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की। वैद्य ने शीघ्र ही उपचार किया जिससे लक्ष्मण उठकर बैठ गए और बहुत प्रसन्न हुए। लक्ष्मण को राम ने गले से लगाया। इस दृश्य को देखकर भालुओं और वानरों के समूह में खुशी छा गई। हनुमान ने वैद्यराज को वहीं उसी तरह पहुँचा दिया जहाँ से वे उन्हें लेकर आए थे।
विशेष-

(i) लक्ष्मण के ठीक होने पर वानर सेना व राम की खुशी का वर्णन है।
(ii) अवधी भाषा है।
(iii) चौपाई छंद है।
(iv) ‘प्रभु परम’, ‘तबहिं ताहि में’।
(v) घटना क्रम में तीव्रता है।

प्रश्न

(क) हनुमान के आने पर राम ने क्या प्रतिक्रिया जताई ?
(ख) लक्ष्मण की मूर्च्छा किस तरह टूटी ?
(ग) किस घटना से वानर सेना प्रसन्न हुई ?
(घ) ‘जेहि विधि तबहिं ताहि लद्ध लावा। ‘- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) हनुमान के आने पर राम प्रसन्न हो गए तथा उन्हें गले से लगाया। उन्होंने हनुमान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।
(ख) सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार किया। परिणामस्वरूप उनकी  मूर्च्छा टूटी और लक्ष्मण हँसते हुए उठ बैठे।
(ग) लक्ष्मण के ठीक होने पर प्रभु राम ने उन्हें गले से लगा लिया। इस दृश्य को देखकर सभी बंदर, भालू व हनुमान प्रसन्न हो गए।
(घ) इसका अर्थ यह है कि हनुमान जिस तरीके से सुषेण वैद्य को उठाकर लाए थे, उसी प्रकार उन्हें उनके स्थान पर पहुँचा दिया।

6.

यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।।
ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा ।।
जागा निसिचर देखिअ कैस। मानहुँ कालु देह धरि बैंस ।।
कुंभकरन बूझा कहु भाई । काहे तव मुख रहे सुखाई।। (पृष्ठ-50)

शब्दार्थ- बृतांत-वर्णन। बिषाद-दुख। सिर धुनेऊ-पछताया। पहिं- पास। बिबिध-अनेक। जतन- उपाय, प्रयास। करि- करके। ताहि- उसे। जगावा-जगाया। निसिचर-राक्षस अर्थात कुंभकरण। कालु- मौत। देह- शरीर। धरि- धारण करके। बैंसा- बैठा। बूद्धा- पूछा। कहु-कहो। काहे-क्यों। तव- तेरा। सुखार्द्र- सूख रहे हैं।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में कुंभकरण के जागने का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- जब रावण ने लक्ष्मण के ठीक होने का समाचार सुना तो वह दुख से अपना सिर धुनने लगा। व्याकुल होकर वह कुंभकरण के पास गया और कई तरह के उपाय करके उसे जगाया। कुंभकरण जागकर बैठ गया। वह ऐसा लग रहा था मानो यमराज ने शरीर धारण कर रखा हो। कुंभकरण ने रावण से पूछा-कहो भाई, तुम्हारे मुख क्यों सूख रहे हैं?
विशेष-

(i) रावण के दुख का सुंदर चित्रण किया गया है।
(ii) ‘पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(iii) कुंभकरण के लिए काल की उत्प्रेक्षा प्रभावी है। यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।
(iv) अवधी भाषा है।
(v) चौपाई छंद है।
(vi) ‘सिर धुनना’ व ‘मुख सूखना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।

प्रश्न

(क) रावण ने कॉन-सा वृत्तांत सुना? उसकी क्या प्रतिक्रिया थी?
(ख) रावण कहाँ गया तथा क्या किया?
(ग) कुंभकर्ण कैसा लग रहा था?
(घ) कुंभकर्ण ने रावण से क्या पूछा?

उत्तर-

(क) रावण ने लक्ष्मण की मूच्छीँ टूटने का समाचार सुना। यह सुनकर वह अत्यंत दुखी हो गया तथा सिर पीटने लगा।
(ख) रावण कुंभकरण के पास गया तथा अनेक तरीकों से उसे नींद से जगाया।
(ग) कुंभकरण जागने के बाद ऐसा लग रहा था मानो यमराज शरीर धारण करके बैठा हो।
(घ) कुंभकरण ने रावण से पूछा, ‘कहो भाई, तुम्हारे मुख क्यों सूख रहे हैं? अर्थात तुम्हें क्या कष्ट है? ”

7.

कथा कही सब तेहिं अभिमानी। कही प्रकार सीता हरि आनी।।
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे महा।।
दुर्मुख सुररुपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।।
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा।।

दोहा

सुनि दसकंधर बचन तब, कुंभकरन बिलखान।।
जगदबा हरि अनि अब, सठ चाहत कल्यान।। (पृष्ठ-50-51)

शब्दार्थ- कथा-कहानी। तेहिं- उस। जहि- जिस। हरि- हरण करके। आन- लाए। कपिन्ह- हनुमान आदि वानर। महा महा– बड़े-बड़े। जोधा- योद्धा। संधारे- संहार किया। दुमुख- एक राक्षस का नाम। सुररियु- देवताओं का शत्रु (इंद्रजीत)। मनुज अहारी- नरांतक। भट- योद्धा। अतिकाय- एक राक्षस का नाम। आयर- दूसरा। महोदर- एक राक्षस का नाम। आदिक- आदि। समर- युद्ध। महि- धरती। रनधीर- रणधीर। दसकंधर- रावण। बिलखान- दुखी होकर रोने लगा। जगदंबा- जगत-जननी। हरि- हरण करके। आनि- लाकर। सठ- मूर्ख। कल्यान- कल्याण, शुभ।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में कुंभकरण व रावण के वार्तालाप का वर्णन है।
व्याख्या- अभिमानी रावण ने जिस प्रकार से सीता का हरण किया था उसकी और उसके बाद तक की सारी कथा उसने कुंभकरण को सुनाई। रावण ने बताया कि हे तात, हनुमान ने सब राक्षस मार डाले हैं। उसने महान-महान योद्धाओं का संहार कर दिया है। दुर्मुख, देवशत्रु, नरांतक, महायोद्धा, अतिकाय, अकंपन और महोदर आदि अनेक वीर युद्धभूमि में मरे पड़े हैं। रावण की बातें सुनकर कुंभकरण बिलखने लगा और बोला कि अरे मूर्ख, जगत-जननी जानकी को चुराकर अब तू कल्याण चाहता है ? यह संभव नहीं है।
विशेष-

(i) रावण की व्याकुलता तथा कुंभकरण की वाक्पटुता का पता चलता है।
(ii) अवधी भाषा का प्रयोग है।
(iii) चौपाई तथा दोहा छंद हैं।
(iv) वीर रस विद्यमान है।
(v) ‘महा महा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(vi) संवाद शैली है।
(vi) ‘कथा कही’, ‘अतिकाय अकप्पन अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न

(क) किसने, किसको, क्या कथा सुनाई थी?
(ख)
रावण की सेना के कौन-कौन से वीर मारे गए?
(ग)
हनुमान के बारे में रावण क्या बताता हैं?
(घ)
रावण की बातों पर कुंभकरण ने क्या प्रतिक्रिया जताई?

उत्तर-

(क) रावण ने कुंभकरण से सीता-हरण से लेकर अब तक के युद्ध और उसमें मारे गए अपनी सेना के वीरों के बारे में बताया ।
(ख) रावण की सेना के दुर्मुख, अतिकाय, अकंपन, महोदर, नरांतक आदि वीर मारे गए।
(ग) हनुमान ने अनेक बड़े-बड़े वीरों को मारकर रावण की सेना को गहरी क्षति पहुँचाई थी। रावण कुंभकरण को हनुमान की वीरता, अपनी विवशता और पराजय की आशंका के बारे में बताता है।
(घ) रावण की बात सुनकर कुंभकरण बिलखने लगा। उसने कहा, ‘हे मूर्ख, जगत-जननी का हरण करके तू कल्याण की बात सोचता है? अब तेरा भला नहीं हो सकता।”

काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

(क) कवितावली

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1.

किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,

चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।

पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरी,

अटत गहन-गन अहन अखेटकी।।

ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,

पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेतेकी।

‘तुलसी ‘ बुझाह एक राम घनस्याम ही तें,

आगि बढ़वागितें बड़ी हैं आगि पेटकी ।।

प्रश्न

(क) इन काव्य-पक्तियों का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ?
(ख) पेट की आग को कैसे शांति किया जा कीजिए।
(ग) काव्यांश के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए। [CBSE Sample Paper 2015]

उत्तर-

(क) इस समाज में जितने भी प्रकार के काम हैं, वे सभी पेट की आग से वशीभूत होकर किए जाते हैं।’पेट की आग’विवेक नष्ट करने वाली है। ईश्वर की कृपा के अतिरिक्त कोई इस पर नियंत्रण नहीं पा सकता।
(ख) पेट की आग भगवान राम की कृपा के बिना नहीं बुझ सकती। अर्थात राम की कृपा ही वह जल है, जिससे इस आग का शमन हो सकता है।
(ग)

• पेट की आग बुझाने के लिए मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कार्यों का प्रभावपूर्ण वर्णन है।
• काव्यांश कवित्त छंद में रचित है।
• ब्रजभाषा का माधुर्य घनीभूत है।
• ‘राम घनश्याम’ में रूपक अलंकार है। ‘किसबी किसान-कुल’, ‘चाकर चपल’, ‘बेचत बेटा-बेटकी’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।

2.

खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,

बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी ।

कहैं एक एकन सों ‘कहाँ जाड़, क्या करी ?’

साँकरे सबँ पैं, राम रावरें कृपा करी ।

दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु!

दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी ।।

प्रश्न

(क) किसन, व्यापारी, भिखारी और चाकर किस बात से परेशन हैं?
(ख) बेदहूँ पुरान कही …… कृपा करी ‘ – इस पंक्ति का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि ने दरिद्रता को किसके समान बताया हैं और क्यों?

उत्तर-

(क) किसान को खेती के अवसर नहीं मिलते, व्यापारी के पास व्यापार की कमी है, भिखारी को भीख नहीं मिलती और नौकर को नौकरी नहीं मिलती। सभी को खाने के लाले पड़े हैं। पेट की आग बुझाने के लिए सभी परेशान हैं।
(ख) के सुभ ह लता हैऔसंसारमेंबाह देता गया है कभगवान श्रमिक कृपादृष्टपड्नेरह द्विता दूर होती है।
(ग) कवि ने दरिद्रता को दस मुख वाले रावण के समान बताया है क्योंकि वह भी रावण की तरह समाज के हर वर्ग को प्रभावित करते हुए अपना अत्याचार-चक्र चला रही है।

(ख) लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1.

भरत बाहु बल सील गुन, प्रभु पद प्रीति अपारा।
मन महुँ जात सराहत, पुनि–पुनि पवनकुमार।।   [CBSE (Delhi), 2013)]

प्रश्न

(क) अनुप्रास अलकार के दो उदाहरण चुनकर लिखिए।
(ख) कविता के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।
(ग) काव्याशा के भाव-वैशिष्ट्रय को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) अनुप्रास अलंकार के दो उदाहरण–

(i) प्रभु पद प्रीति अपार।
(ii) पुनि–पुनि पवनकुमार।

(ख) काव्यांश में सरस, सरल अवधी भाषा का प्रयोग है। इसमें दोहा छद का प्रयोग है।
(ग) काव्यांश में हनुमान द्वारा भरत के बाहुबल, शील-स्वभाव तथा प्रभु श्री राम के चरणों में उनकी अपार भक्ति की सराहना का वर्णन है।

2.

सुत बित नारि भवन परिवारा । होहि जाहिं ज7 बारह बारा ।।
अस बिचारि जिय जपहु ताता। मिलह न जगत सहोदर भ्रात।।
जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।।
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाई गँवाई।।
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।

प्रश्न

(क) काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ख) इन पंक्तियों को पढ़कर राम-लक्ष्मण की किन-किन विशेषताओं का पता चलता है।
(ग)
अंतिम दो पंक्तियों को पढ़कर हमें क्या सीख मिलती है।

उत्तर-

(क) विष्णु भगवान के अवतार भगवान श्री राम का मनुष्य के समान व्याकुल होना और राम, लक्ष्मण एवं भरत का यह परस्पर भ्रातृ-प्रेम हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।
(ख) दोनों भाइयों में अगाध प्रेम था। श्री राम अनुज से बहुत लगाव रखते थे तथा दोनों के बीच पिता-पुत्र-सा संबंध था। लक्ष्मण श्री राम का बहुत सम्मान करते थे।
(ग) भगवान श्री राम के अनुसार संसार के सब सुख भाई पर न्यौछावर किए जा सकते हैं। भाई के अभाव में जीवन व्यर्थ है और भाई जैसा कोई हो ही नहीं सकता। आज के युग में यह सीख अनेक सामाजिक कष्टों से मुक्त करवा सकती है।

3.

प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकरा
आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महाँ बीर रस। [CBSE (Delhi), 2015]

प्रश्न

(क) भाषा-प्रयोग की दो विशेषताएँ लिखिए।
(ख) काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(ग) काव्यांश की अलकार-योजना पर प्रकाश डालिए।

उत्तर-

(क) भाषा-प्रयोग की दो विशेषताएँ हैं-

(i) सरस, सरल, सहज, मधुर अवधी भाषा का प्रयोग।
(ii) भाषा में दृश्य बिंब साकार हो उठा है।

(ख) काव्यांश में लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर श्री राम एवं वानरों की शोक-संवेदना एवं दुख का वर्णन है। उसी बीच हनुमान के आ जाने से दुख में हर्ष के संचार हो जाने का वर्णन है, क्योंकि उनके संजीवनी बूटी लाने से अब लक्ष्मण के प्राण बच जाएँगे।
(ग) ‘विकल भए वानर निकर’ में अनुप्रास तथा ‘आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महँ वीर रस’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

4.

हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।। 
तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।।
ह्रदय लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपि ब्राता।।
कपि पुनि बैद  तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लई आवा।।

प्रश्न

(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
(ख) इन पंक्तियों   के आधार पर हनुमान की विशेषताएँ बताईए।
(ग) काव्यांश  की भाषागत विशेषताएँ  लिखिए।

उत्तर-

(क) इसमें राम-भक्त हनुमान की बहादुरी व कर्मठता का, लक्ष्मण के स्वस्थ होने का श्री राम सहित भालू और वानरों के समूह के हर्षित होने का बहुत ही सजीव वर्णन किया गया है।
(ख) हनुमान जी की वीरता और कर्मनिष्ठा ऐसी है कि वे दुख में व्याकुल नहीं होते और हर्ष में कर्तव्य नहीं भूलते। इसीलिए लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर उन्होंने बैठकर रोने के स्थान पर संजीवनी लाये और काम होते ही वैद्य को यथास्थान पहुँचाया।
(ग)

(i) काव्यांश सरल, सहज अवधी भाषा में है, जिसमें चौपाई छंद है।
(ii) अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(iii) भाषा प्रवाहमयी है।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ

1. ‘कवितावली’ में उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।
[CBSE 2011 (C)]

अथवा

तुलसीदास के कवित्त के आधार पर तत्कालीन समाज की आर्थिक विषमता पर प्रकाश डालिए। [CBSE (Delhi), 2015, Set-III)]
उत्तर-
तुलसीदास अपने युग के स्रष्टा एवं द्रष्टा थे। उन्होंने अपने युग की प्रत्येक स्थिति को गहराई से देखा एवं अनुभव किया था। लोगों के पास चूँकि धन की कमी थी इसलिए वे धन के लिए सभी प्रकार के अनैतिक कार्य करने लग गए थे। उन्होंने अपने बेटा-बेटी तक बेचने शुरू कर दिए ताकि कुछ पैसे मिल सकें। पेट की आग बुझाने के लिए हर अधर्मी और नीचा कार्य करने के लिए तैयार रहते थे। जब किसान के पास खेती न हो और व्यापारी के पास व्यापार न हो तो ऐसा होना स्वाभाविक है।

2. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग सत्य है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर-
दीजिए/ पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है-तुलसी का यह काव्य-सत्य कुछ हद तक इस समय का भी युग-सत्य हो सकता है किंतु यदि आज व्यक्ति निष्ठा भाव, मेहनत से काम करे तो उसकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है। निष्ठा और पुरुषार्थ-दोनों मिलकर ही मनुष्य के पेट की आग का शमन कर सकते हैं। दोनों में एक भी पक्ष असंतुलित होने पर वांछित फल नहीं मिलता। अत: पुरुषार्थ की महत्ता हर युग में रही है और आगे भी रहेगी।

3.

तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत काँ ज़रूस्त क्यों समझी ?
धूत कहौ, अवधूत कहौ, राजपूतु कहौ जोलहा लहा कहौ कोऊ
काहू की बेटीसों  बेटा न ब्याहब काहूकी जाति बिकार न सोऊ।
इस सवैया में ‘काहू के बेटा सों बेटी न ब्याहब’ कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या पपरिवर्तन आता ?

उत्तर-
तुलसीदास जाति-पाँति से दूर थे। वे इनमें विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार व्यक्ति के कर्म ही उसकी जाति बनाते हैं। यदि वे काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते हैं तो उसका सामाजिक अर्थ यही होता कि मुझे बेटा या बेटी किसी में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। यद्यपि मुझे बेटी या बेटा नहीं ब्याहने, लेकिन इसके बाद भी मैं बेटा-बेटी का कद्र करता हूँ।

4. धूत कहीं ’ वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की हैं। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं ?

अथवा

‘धूत कहीं  ……’ ‘छंद के आधार पर तुलसीदास के भक्त-हृदय की विशेषता पर टिप्पणी कीजिए। [CBSE (Delhi), 2014)]
उत्तर-
तुलसीदास ने इस छंद में अपने स्वाभिमान को व्यक्त किया है। वे सच्चे रामभक्त हैं तथा उन्हीं के प्रति समर्पित हैं। उन्होंने किसी भी कीमत पर अपना स्वाभिमान कम नहीं होने दिया और एकनिष्ठ भाव से राम की अराधना की। समाज के कटाक्षों का उन पर कोई प्रभाव नहीं है। उनका यह कहना कि उन्हें किसी के साथ कोई वैवाहिक संबंध स्थापित नहीं करना, समाज के मुँह पर तमाचा है। वे किसी के आश्रय में भी नहीं रहते। वे भिक्षावृत्ति से अपना जीवन-निर्वाह करते हैं तथा मस्जिद में जाकर सो जाते हैं। वे किसी की परवाह नहीं करते तथा किसी से लेने-देने का व्यवहार नहीं रखते। वे बाहर से सीधे हैं, परंतु हृदय में स्वाभिमानी भाव को छिपाए हुए हैं।

5. व्याख्या करें-

(क)
मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौं जनतेऊँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू।

(ख)
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जों जड़ दैव जिआवै मोही।

(ग)
माँगि के खैबो, मसीत को सोइबो,
लैबोको एकु न दैबको दोऊ।

(घ)
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी ।

उत्तर-
(क) मेरे हित के लिए तूने माता-पिता त्याग दिए और इस जंगल में सरदी-गरमी तूफ़ान सब कुछ सहन किया। यदि मैं यह जानता कि वन में अपने भाई से बिछुड़ जाऊँगा तो मैं पिता के वचनों को न मानता।

(ख) मेरी दशा उसी प्रकार हो गई है जिस प्रकार पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की, सँड़ के बिना हाथी| की होती है। मेरा ऐसा भाग्य कहाँ जो तुम्हें दैवीय शक्ति जीवित कर दे।

(ग) तुलसीदास जी कहते हैं कि मैंने तो माँगकर खाया है मस्ती में सोया हूँ किसी का एक लेना नहीं है और दो देने नहीं अर्थात् मैं बिल्कुल निश्चित प्राणी हूँ।

(घ) तुलसी के युग में लोग पैसे के लिए सभी तरह के कर्म किया करते थे। वे धर्म-अधर्म नहीं जानते थे केवल पेट भरने की सोचते। इसलिए कभी-कभी वे अपनी संतान को भी बेच देते थे।

6. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर-लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
उत्तर-
लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम को जिस तरह विलाप करते दिखाया गया है, वह ईश्वरीय लीला की बजाय आम व्यक्ति का विलाप अधिक लगता है। राम ने अनेक ऐसी बातें कही हैं जो आम व्यक्ति ही कहता है, जैसे-यदि मुझे तुम्हारे वियोग का पहले पता होता तो मैं तुम्हें अपने साथ नहीं लाता। मैं अयोध्या जाकर परिवारजनों को क्या मुँह दिखाऊँगा, माता को क्या जवाब दूँगा आदि। ये बातें ईश्वरीय व्यक्तित्व वाला नहीं कह सकता क्योंकि वह तो सब कुछ पहले से ही जानता है। उसे कार्यों का कारण व परिणाम भी पता होता है। वह इस तरह शोक भी नहीं व्यक्त करता। राम द्वारा लक्ष्मण के बिना खुद को अधूरा समझना आदि विचार भी आम व्यक्ति कर सकता है। इस तरह कवि ने राम को एक आम व्यक्ति की तरह प्रलाप करते हुए दिखाया है जो उसकी सच्ची मानवीय अनुभूति के अनुरूप ही है। हम इस बात से सहमत हैं कि यह विलाप राम की नर-लीला की अपेक्षा मानवीय अनुभूति अधिक है।

7. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविभव क्यों कहा गया हैं?

[CBSE Sample Papler-I, 2008]

उत्तर-
जब सभी लोग लक्ष्मण के वियोग में करुणा में डूबे थे तो हनुमान ने साहस किया। उन्होंने वैद्य द्वारा बताई गई संजीवनी लाने का प्रण किया। करुणा के इस वातावरण में हनुमान का यह प्रण सभी के मन में वीर रस का संचार कर गया। सभी वानरों और अन्य लोगों को लगने लगा कि अब लक्ष्मण की मूच्र्छा टूट जाएगी। इसीलिए कवि ने हनुमान के अवतरण को वीर रस का आविर्भाव बताया है।

8. जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गवाई।
बरु अपजस सहतेऊँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।
भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप-वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित हैं?
उत्तर-
भाई के शोक में डूबे राम ने कहा कि मैं अवध क्या मुँह लेकर जाऊँगा? वहाँ लोग कहेंगे कि पत्नी के लिए प्रिय भाई को खो दिया। वे कहते हैं कि नारी की रक्षा न कर पाने का अपयशता में सह लेता, किन्तु भाई की क्षति का अपयश सहना मुश्किल है। नारी की क्षति कोई विशेष क्षति नहीं है। राम के इस कथन से नारी की निम्न स्थिति का पता चलता है।उस समय पुरुष-प्रधान समाज था। नारी को पुरुष के बराबर अधिकार नहीं थे। उसे केवल उपभोग की चीज समझा जाता था। उसे असहाय व निर्बल समझकर उसके आत्मसम्मान को चोट पहुँचाई जाती थी।

पाठ के आस-पास

1. कालिदास के ‘रघुवंश’ महाकाव्य में पत्नी (इंदुमत) के मृत्यु-शोक पर अज तथा निराला की ‘सरोज-स्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्यु-शोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।
उत्तर-
रघुवंश महाकाव्य में पत्नी की मृत्यु पर पति का शोक करना स्वाभाविक है। ‘अज’ इंदुमती की अचानक हुई मृत्यु से शोकग्रस्त हो जाता है। उसे उसके साथ बिताए हर क्षण की याद आती है। वह पिछली बातों को याद करके रोता है, प्रलाप करता है। यही स्थिति निराला जी की है। अपनी एकमात्र पुत्री सरोज की मृत्यु होने पर निराला जी को गहरा आघात लगता है। निराला जी जीवनभर यही पछतावा करते रहे कि उन्होंने अपनी पुत्री के लिए कुछ नहीं किया। उसका लालन-पालन भी न कर सके। लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर राम का शोक भी इसी प्रकार का है। वे कहते हैं कि मैंने स्त्री के लिए अपने भाई को खो दिया, जबकि स्त्री के खोने से ज्यादा हानि नहीं होती। भाई के घायल होने से मेरा जीवन भी लगभग खत्म-सा हो गया है।

2. ‘पेट ही को यचत, बेचत बेटा-बेटकी’तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य हैं/ भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय-विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वतमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।
उत्तर-
गरीबी के कारण तुलसीदास के युग में लोग अपने बेटा-बेटी को बेच देते थे। आज के युग में भी ऐसी घटनाएँ घटित होती है। किसान आत्महत्या कर लेते हैं तो कुछ लोग अपनी बेटियों को भी बेच देते हैं। अत्यधिक गरीब व पिछड़े क्षेत्रों में यह स्थिति आज भी यथावत है। तुलसी तथा आज के समय में अंतर यह है कि पहले आम व्यक्ति मुख्यतया कृषि पर निर्भर था, आज आजीविका के लिए अनेक रास्ते खुल गए हैं। आज गरीब उद्योग-धंधों में मजदूरी करके जब चल सकता है पंतुकटु सब बाह है किगबकीदता में इस यु” और वार्तमान में बाहु अंत नाह आया हैं ।

3. तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं ? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचचा करें।
उत्तर-
तुलसी युग की बेकारी का सबसे बड़ा कारण गरीबी और भुखमरी थी। लोगों के पास इतना धन नहीं था कि वे कोई रोजगार कर पाते। इसी कारण लोग बेकार होते चले गए। यही कारण आज की बेकारी का भी है। आज भी गरीबी है, भुखमरी है। लोगों को इन समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती, इसी कारण बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

4. राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर (एक ही माँ के पेट से जन्मे) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य करके ऐसा क्यों कहा—‘मिलह न जगत सहोदर भ्राता’2 इस पर विचार करें।
उत्तर-
राम और लक्ष्मण भले ही एक माँ से पैदा नहीं हुए थे, परंतु वे सबसे ज्यादा एक-दूसरे के साथ रहे। राम अपनी माताओं में कोई अंतर नहीं समझते थे। लक्ष्मण सदैव परछाई की तरह राम के साथ रहते थे। उनके जैसा त्याग सहोदर भाई भी नहीं कर सकता था। इसी कारण राम ने कहा कि लक्ष्मण जैसा सहोदर भाई संसार में दूसरा नहीं मिल सकता।

5. यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित, सवैया-ये पाँच छद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छद तथा काव्य-रूप आए हैं। ऐसे छदों व काव्य-रूपों की सूची बनाएँ।
उत्तर-
तुलसी साहित्य में अन्य छंदों का भी प्रयोग हुआ है जो निम्नलिखित है-बरवै, छप्पय, हरिगीतिका।
तुलसी ने इसके अतिरिक्त जिन छंदों का प्रयोग किया है उनमें छप्पय, झूलना मतंगयद, घनाक्षरी वरवै, हरिगीतिका, चौपय्या, त्रिभंगी, प्रमाणिका तोटक और तोमर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। काव्य रूप-तुलसी ने महाकाव्य, प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्यों की रचना की है। इसीलिए अयोध्यासिंह उपाध्याय लिखते हैं कि “कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।”

इन्हें भी जानें

चौपाई-

चौपाई सम-मात्रिक छंद है जिसके दोनों चरणों में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयों वाली रचना को चालीसा कहा जाता है-यह तथ्य लोक-प्रसिद्ध है।

दोहा-

दोहा अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इनके साथ अंत लघु (1) वर्ण होता है।

सोरठा- 

दोहे को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। परंतु दोहे के विपरीत इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं रहती, विषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होती है।

कवित्त-

यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

सवैया-

चूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 23-23 वर्ण होते हैं जो 7 भगण + 2 गुरु (33) के क्रम के होते हैं।

अन्य हल प्रश्न

लघूत्तरात्मक प्रश्न

1. ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ काव्या’श के आधार पर आव्रर्शाक में बेचैन राय कौ दशा को अपने शब्दों में प्रस्तुत
काँजिए ।

अथवा

‘लक्ष्मण-मूच्छा और राम का विलाप’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।  [CBSE (Outside), 2008)]
उत्तर-
लक्ष्मण को मूर्चिछत देखकर राम भाव-विहवल हो उठते हैं। वे आम व्यक्ति की तरह विलाप करने लगते हैं। वे लक्ष्मण को अपने साथ लाने के निर्णय पर भी पछताते हैं। वे लक्ष्मण के गुणों को याद करके रोते हैं। वे कहते हैं कि पुत्र, नारी, धन, परिवार आदि तो संसार में बार-बार मिल जाते हैं, किंतु लक्ष्मण जैसा भाई दुबारा नहीं मिल सकता। लक्ष्मण के बिना वे स्वयं को पंख कटे पक्षी के समान असहाय, मणिरहित साँप के समान तेजरहित तथा सँड़रहित हाथी के समान असक्षम मानते हैं। वे इस चिंता में थे कि अयोध्या में सुमित्रा माँ को क्या जवाब देंगे तथा लोगों का उपहास कैसे सुनेंगे कि पत्नी के लिए भाई को खो दिया।

2. बेकारी की समस्या तुलसी के जमाने में भी थी, उस बेकारी का वर्णन तुलसी के कवित्त के आधार पर कीजिए।

अथवा

तुलसी ने अपने युग की जिस दुर्दशा का चित्रण किया हैं, उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-
तुलसीदास के युग में जनसामान्य के पास आजीविका के साधन नहीं थे। किसान की खेती चौपट रहती थी। भिखारी को भीख नहीं मिलती थी। दान-कार्य भी बंद ही था। व्यापारी का व्यापार ठप था। नौकरी भी लोगों को नहीं मिलती थी। चारों तरफ बेरोजगारी थी। लोगों को समझ में नहीं आता था कि वे कहाँ जाएँ क्या करें?

3. तुलसी के समय के समाज के बारे में बताइए।
उत्तर-
तुलसीदास के समय का समाज मध्ययुगीन विचारधारा का था। उस समय बेरोजगारी थी तथा आम व्यक्ति की हालत दयनीय थी। समाज में कोई नियम-कानून नहीं था। व्यक्ति अपनी भूख शांत करने के लिए गलत कार्य भी करते थे। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। जाति व संप्रदाय के बंधन कठोर थे। नारी की दशा हीन थी। उसकी हानि को विशेष नहीं माना जाता था।

4. तुलसी  युग की आर्थिक स्थिति का अपने शब्दों में वर्णन र्काजिए।
उत्तर-
तुलसी के समय आर्थिक दशा खराब थी। किसान के पास खेती न थी, व्यापारी के पास व्यापार नहीं था। यहाँ तक कि भिखारी को भीख भी नहीं मिलती थी। लोग यही सोचते रहते थे कि क्या करें, कहाँ जाएँ? वे धन-प्राप्ति के उपायों के बारे में सोचते थे। वे अपनी संतानों तक को बेच देते थे। भुखमरी का साम्राज्य फैला हुआ था।

5. लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम क्या सोचने लगे?
उत्तर-
लक्ष्मण शक्तिबाण लगने से मूर्चिछत हो गए। यह देखकर राम भावुक हो गए तथा सोचने लगे कि पत्नी के बाद अब भाई को खोने जा रहे हैं। केवल एक स्त्री के कारण मेरा भाई आज मृत्यु की गोद में जा रहा है। यदि स्त्री खो जाए तो कोई बड़ी हानि नहीं होगी, परंतु भाई के खो जाने का कलंक जीवनभर मेरे माथे पर रहेगा। वे सामाजिक अपयश से घबरा रहे थे।

6. क्या तुलसी युग की समस्याएँ वतमान में समाज में भी विद्यमान हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
तुलसी ने लगभग 500 वर्ष पहले जो कुछ कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समय की मूल्यहीनता, नारी की स्थिति, आर्थिक दुरवस्था का चित्रण किया है। इनमें अधिकतर समस्याएँ आज भी विद्यमान हैं। आज भी लोग जीवन-निर्वाह के लिए गलत-सही कार्य करते हैं। नारी के प्रति नकारात्मक सोच आज भी विद्यमान है। अभी भी जाति व धर्म के नाम पर भेदभाव होता है। इसके विपरीत, कृषि, वाणिज्य, रोजगार की स्थिति आदि में बहुत बदलाव आया है। इसके बाद भी तुलसी युग की अनेक समस्याएँ आज भी हमारे समाज में विद्यमान हैं।

7. कुंभकरण ने रावण को किस सच्चाई का आइना दिखाया?
उत्तर-
कुंभकरण रावण का भाई था। वह लंबे समय तक सोता रहता था। उसका शरीर विशाल था। देखने में ऐसा लगता था मानो काल आकर बैठ गया हो। वह मुँहफट तथा स्पष्ट वक्ता था। वह रावण से पूछता है कि तुम्हारे मुँह क्यों सूखे हुए हैं? रावण की बात सुनने पर वह रावण को फटकार लगाता है तथा उसे कहता है कि अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। इस प्रकार उसने रावण को उसके विनाश संबंधी सच्चाई का आईना दिखाया।

8. नीचे लिख काव्य-खड को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए: [CBSE (Delhi), 2014]
सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।
अस विचारि जियें जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।

(क) काव्याशा में प्रयुक्त भाषा एव छद का नाम लिखिए।
(ख) प्रयुक्त अलकार का नाम और दो उदाहरण लिखिए।
(ग) कविता का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) काव्यांश में प्रयुक्त भाषा सरस, सरल अवधी तथा छद चौपाई है।
(ख) काव्यांश में अनुप्रास अलंकार है। इसके दो उदाहरण हैं

(i) होहि जाहि जग बारहि बारा।
(ii) अस विचारि जिय जागहु ताता।

(ग) काव्यांश में लक्ष्मण को मूर्चिछत देखकर राम की व्याकुलता एवं दुख का वर्णन है। वे जगत में सहोदर भाई फिर न मिल पाने की बात कहकर उठ जाने के लिए कह रहे हैं।

9. कुंभकरण के द्वारा पूछे जाने पर रावण ने अपनी व्याकुलता के बारे में क्या कहा और कुंभकरण से क्या सुनना पड़ा?

[CBSE (Delhi), 2015)]

उत्तर-
कुंभकरण के पूछने पर रावण ने उसे अपनी व्याकुलता के बारे में विस्तारपूर्वक बताया कि किस तरह उसने माता संकण किया कि उसे बताया कि हानुमान ने सवागस मारडले हैं औ महान यथाओं का साहार कर दिया है।
उसकी ऐसी बातें सुनकर कुंभकरण ने उससे कहा कि अरे मूर्ख! जगत-जननी को चुराकर अब तू कल्याण चाहता है। यह संभव नहीं है।

स्वयं करें

  1. आप कवि तुलसीदास के नारी संबंधी सामाजिक दृष्टिकोण को वर्तमान में कितना प्रासंगिक समझते हैं? लिखिए।
  2. ‘मिलइ न जगत सहोदर भ्राता”-यदि लोगों द्वारा इसे अपने जीवन में उतार लिया जाए तो सामाजिक समरसता पर क्या असर पडेगा?
  3. तुलसी के समय में आर्थिक विषमता का बोलबाला था-कवितावली (उत्तरकांड से) के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
  4. तुलसीदास ने वेद-पुराण के किस कथन की ओर संकेत किया है और क्यों?
  5. ‘राम-लक्ष्मण का परस्पर प्रेम भ्रातृ-प्रेम का अनूठा उदाहरण है।’ इस कथन की पुष्टि उदाहरण सहित कीजिए।
  6. निम्नलिखित काव्यांशों के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
    (अ)
    जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
    अस मम जिवन बंधु बिन तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
    (क) काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
    (ख) काव्यांश की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
    (ग) इन पंक्तियों की अलंकार-योजना पर प्रकाश डालिए।

(ब)
सुनि दसकंधर बचन तब, कुंभकरन बिलखान।
जगदंबा हरि आनि अब, सठ चाहत कल्याण।॥
(क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) अलकार-योजना पर प्रकाश डालिए।
(ग) काव्यांश के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए।

More Resources for CBSE Class 12:

  • RD Sharma class 12 Solutions
  • CBSE Class 12th English Flamingo
  • CBSE Class 12th English Vistas
  • CBSE Class 12 Accountancy
  • CBSE Class 12 Biology
  • CBSE Class 12 Physics
  • CBSE Class 12 Chemistry
  • CBSE Sample Papers For Class 12

NCERT SolutionsHindiEnglishMathsHumanitiesCommerceScience

Primary Sidebar

NCERT Exemplar problems With Solutions CBSE Previous Year Questions with Solutoins CBSE Sample Papers

Recent Posts

  • Letter to The Editor Class 12 CBSE Format, Samples and Examples
  • Speech Writing Format CBSE Class 11 Examples, Samples, Topics
  • Report Writing Class 12 Format, Examples, Topics, Samples
  • Decimals
  • CBSE Class 12 English Letter Writing – Letters Of Application for Jobs
  • NCERT Exemplar Problems Class 7 Maths – Exponents and Powers
  • NCERT Exemplar Class 7 Maths Practical Geometry Symmetry and Visualising Solid Shapes
  • NCERT Exemplar Class 7 Maths Algebraic Expression
  • NCERT Solutions for Class 11 Maths Chapter 8 Binomial Theorem Ex 8.2
  • NCERT Exemplar Problems Class 7 Maths – Perimeter and Area
  • NEET Physics Chapter Wise Mock Test – General properties of matter
  • ML Aggarwal Class 10 Solutions for ICSE Maths Chapter 6 Factorization MCQS
  • Division of a Polynomial by a Monomial
  • Multiplication-Decimal Numbers
  • Proper, Improper and Mixed fractions

Footer

Maths NCERT Solutions

NCERT Solutions for Class 12 Maths
NCERT Solutions for Class 11 Maths
NCERT Solutions for Class 10 Maths
NCERT Solutions for Class 9 Maths
NCERT Solutions for Class 8 Maths
NCERT Solutions for Class 7 Maths
NCERT Solutions for Class 6 Maths

SCIENCE NCERT SOLUTIONS

NCERT Solutions for Class 12 Physics
NCERT Solutions for Class 12 Chemistry
NCERT Solutions for Class 11 Physics
NCERT Solutions for Class 11 Chemistry
NCERT Solutions for Class 10 Science
NCERT Solutions for Class 9 Science
NCERT Solutions for Class 7 Science
MCQ Questions NCERT Solutions
CBSE Sample Papers
cbse ncert
NCERT Exemplar Solutions LCM and GCF Calculator
TS Grewal Accountancy Class 12 Solutions
TS Grewal Accountancy Class 11 Solutions