NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 9 – काव्य भाग – रुबाइयाँ, गज़ल provide comprehensive guidance and support for students studying Hindi Aroh in Class 12. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication.
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Aroh Chapter 9 – काव्य भाग – रुबाइयाँ, गज़ल
कवि परिचय
फ़िराक गोरखपुरी
जीवन परिचय-फ़िराक गोरखपुरी उर्दू-फ़ारसी के जाने-माने शायर थे। इनका जन्म 28 अगस्त, सन 1896 को गोरखपुर में हुआ था। इनका मूल नाम रघुपति सहाय ‘फ़िराक’ था। इन्होंने रामकृष्ण की कहानियों से अपनी शिक्षा की शुरुआत की। बाद में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेजी में शिक्षा ग्रहण की। 1917 ई० में ये डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयनित हुए, परंतु स्वतंत्रता आंदोलन के कारण इन्होंने 1918 ई० में इस पद को त्याग दिया। आंदोलन में हिस्सा लेने के कारण सन 1920 में इन्हें डेढ़ वर्ष की जेल हुई। ये इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विषय के अध्यापक भी रहे। इन्हें ‘गुले-नग्मा’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड मिला। सन 1938 में इनका देहावसान हो गया। रचनाएँ-गोरखपुरी जी ने शायरी के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए। इनकी महत्वपूर्ण कृतियाँ हैं
गुले-नग्मा, बज्में जिंदगी, रंगे-शायरी, उर्दू गजलगोई। काव्यगत विशेषताएँ-उर्दू शायरी साहित्य का बड़ा हिस्सा रुमानियत, रहस्य और शास्त्रीयता से बँधा रहा है जिसमें लोकजीवन और प्रकृति के पक्ष बहुत कम उभरकर सामने आए हैं। नजीर अकबराबादी, इल्ताफ हुसैन हाली जैसे कुछ शायरों ने इस परंपरा को तोड़ा है, फिराक गोरखपुरी भी उनमें से एक हैं। फ़िराक ने परंपरागत भावबोध और शब्द-भंडार का उपयोग करते हुए उसे नयी भाषा और नए विषयों से जोड़ा। उनके यहाँ सामाजिक दुख-दर्द व्यक्तिगत अनुभूति बनकर शायरी में ढला है। इंसान के हाथों इंसान पर जो गुजरती है, उसकी तल्ख सच्चाई और आने वाले कल के प्रति एक उम्मीद, दोनों को भारतीय संस्कृति और लोकभाषा के प्रतीकों से जोड़कर उन्होंने अपनी शायरी का अनूठा महल खडा किया।
भाषा-शैली-उर्दू शायरी अपने लाक्षणिक प्रयोगों और चुस्त मुहावरेदारी के लिए प्रसिद्ध है। शेर लिखे नहीं, कहे जाते हैं। यह एक तरह का संवाद होता है। मीर, गालिब की तरह फिराक ने भी इस शैली को साधकर आम-आदमी या साधारण-जन से अपनी बात कही है।
प्रतिपादय एवं सार
(क) रुबाइयाँ
प्रतिपादय-फ़िराक की रुबाइयाँ उनकी रचना ‘गुले-नग्मा’ से उद्धृत हैं। रुबाई उर्दू और फ़ारसी का एक छंद या लेखन शैली है। इसकी पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति में तुक मिलाया जाता है और तीसरी पंक्ति स्वतंत्र होती है। इन रुबाइयों में हिंदी का एक घरेलू रूप दिखता है। इन्हें पढ़ने से सूरदास के वात्सल्य वर्णन की याद आती है। सार-इस रचना में कवि ने वात्सल्य वर्णन किया है। माँ अपने बच्चे को आँगन में खड़ी होकर अपने हाथों में प्यार से झुला रही है। वह उसे बार-बार हवा में उछाल देती है जिसके कारण बच्चा खिलखिलाकर हँस उठता है। वह उसे साफ़ पानी से नहलाती है तथा उसके उलझे हुए बालों में कंघी करती है।
बच्चा भी उसे प्यार से देखता है जब वह उसे कपड़े पहनाती है। दीवाली के अवसर पर शाम होते ही पुते व सजे हुए घर सुंदर लगते हैं। चीनी-मिट्टी के खिलौने बच्चों को खुश कर देते हैं। वह बच्चों के छोटे घर में दीपक जलाती है जिससे बच्चों के सुंदर चेहरों पर दमक आ जाती है। आसमान में चाँद देखकर बच्चा उसे लेने की जिद पकड़ लेता है। माँ उसे दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब दिखाती है और उसे कहती है कि दर्पण में चाँद उतर आया है। रक्षाबंधन एक मीठा बंधन है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। सावन में रक्षाबंधन आता है। सावन का जो संबंध झीनी घटा से है, घटा का जो संबंध बिजली से है वहीं संबंध भाई का बहन से है।
(ख) गजल
प्रतिपादय-रुबाइयों की तरह फ़िराक की गजलों में भी हिंदी समाज और उर्दू शायरी की परंपरा भरपूर है। इस गजल में दर्द और पीड़ा के साथ-साथ शायर की ठसक भी अंतर्निहित है।
सार-इस गजल के माध्यम से शायर कहता है कि लोगों ने हमेशा उस पर कटाक्ष किए हैं और साथ ही उसकी किस्मत ने भी कभी उसका साथ नहीं दिया। गम उसके साथ हमेशा रहा। उसे लगता है जैसे रात का सन्नाटा उसे बुला रहा है। शायर कहता है कि इश्क वही कर सकता है जो अपना सब कुछ खो देता है। जब शराबी शराब पिलाते हैं तो उसे अपनी प्रेमिका की याद आ जाती है। अंतिम शेर में वह यह स्वीकार करता है कि उसकी गजलों पर मीर की गजलों का प्रभाव है।
व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(क) रुबाइयाँ
1.
आंगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती हैं खिलखिलाते बच्चे की हँसी।
शब्दार्थ-चाँद का टुकड़ा-बहुत प्यारा। गोद-भरी-गोद में भरकर, आँचल में लेकर। लोका देती हैं-उछाल देती है।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘रुबाइयाँ’ से उद्धृत है। इसके रचयिता उर्दू-फ़ारसी के प्रमुख शायर फिराक गोरखपुरी हैं। इस रुबाई में कवि ने माँ के स्नेह का वर्णन किया है।
व्याख्या-शायर कहता है कि एक माँ चाँद के टुकड़े अर्थात अपने बेटे को अपने घर के आँगन में लिए खड़ी है। वहीं अपने चाँद के टुकड़े को अपने हाथों पर झुलाने लगती है। बीच-बीच में वह उसे हवा में उछाल भी देती है। इस प्रक्रिया से बच्चा प्रसन्न हो उठता है तथा बच्चे की खिलखिलाहट-भरी हँसी गूँजने लगती है।
विशेष–
- माँ द्वारा बच्चे को झुलाना, बच्चे का हँसना आदि स्वाभाविक क्रियाएँ हैं। स्वभावोक्ति अलंकार है।
- वात्सल्य रस है।
- दृश्य बिंब है-
‘आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी’, ‘गोद-भरी’, ‘हाथों पे झुलाती’, ‘हवा में जो लोका देती है’। - अंतिम पंक्ति में श्रव्य बिंब है।
- ‘चाँद के टुकड़े’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।
- ‘रह-रह’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- ‘लोका देना’ देशज भाषा का प्रयोग है।
- उर्दू-हिंदी मिश्रित शब्दावली है।
प्रश्न
(क) कवि ने ‘चाँद का टुकड़ा’ किसे कहा है और क्यों?
(ख) माँ के लिए कविता में किस शब्द का प्रयोग हुआ है और क्यों?
(ग) बच्चे की हसी का कारण क्या है? उसके गूंजने से क्या तात्पर्य है?
(घ) काव्यांश के भाव को अपने शब्दों में चित्रित कीजिए।
उत्तर –
(क) कवि ने चाँद का टुकड़ा माँ की गोद में खेल रहे बच्चे को कहा है क्योंकि वह चाँद के समान ही सुंदर है।
(ख) माँ के लिए कविता में ‘गोद-भरी’ शब्द का प्रयोग है क्योंकि माँ की गोद में बच्चा होने के कारण उसकी गोद भरी हुई है।
(ग) बच्चे की हँसी का कारण है-माँ द्वारा बच्चे को हवा में लोका दिया जाना या उसे खुश करने के लिए हवा में उछालना। उसके गूंजने का तात्पर्य है-इससे बच्चा खुश होकर हँसता है और उसकी हँसी गूंजने लगती है।
(घ) काव्यांश का भाव यह है कि माँ अपने चाँद जैसी सुंदर संतान को गोद में लिए खड़ी है। वह उसे अपने हाथों पर झुलाती हुई हवा में उछाल देती है। इससे बच्चा खिलखिलाकर हँसने लगता है।
2.
नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी
किस प्यार से देखता हैं बच्चा मुँह को
करके जब घुटनियों में ले के हैं पिन्हाती कपड़े।
शब्दार्थ-छलके-हिलते-डुलते। निमल-स्वच्छ, साफ़। गेसुओं-बालों। घुटनियों-घुटनों। पिन्हाती-पहनाती।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘रुबाइयाँ’ से उद्धृत है। इसके रचयिता उर्दू-फ़ारसी के प्रमुख शायर फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें, माँ द्वारा बच्चे के नहाने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-शायर कहता है कि माँ अपने बच्चे को स्वच्छ जल से नहलाती है। उसके उलझे हुए बालों से पानी छलक रहा है। माँ क्यों केवल की कत है जब वाहउसे अप्ने पुटों में लेक कहे पिहनात हैत बच्था अयंता ने सेम के मुवक निहारता रहता है।
विशेष–
- माँ के स्नेह का स्वाभाविक वर्णन है। अत: स्वभावोक्ति अलंकार है।
- वात्सल्य रस की सहज अभिव्यक्ति है।
- ‘छलके-छलके’ में पुनरुक्ति प्रकाश एवं ‘कंघी करके’ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े’ में लोकभाषा का प्रयोग है।
- उर्दू-हिंदी भाषा का मिश्रित रूप है।
- दृश्य बिंब है।
- रुबाई छंद है।
प्रश्न
(क) माँ बच्चे को किस प्रकार नहलाती हैं?
(ख) माँ बच्चे की कंघी कैसे करती हैं?
(ग) बच्चा कब अपनी माँ को प्यार से देखता हैं?
(घ) बच्चा अपनी माँ को किस प्रकार देखता है?
उत्तर –
(क) माँ बच्चे को स्वच्छ जल से नहलाती है। पानी के छलकने से बच्चा प्रसन्न होता है।
(ख) माँ बच्चे के उलझे हुए बालों में कंघी करती है।
(ग) जब माँ बच्चे को अपने घुटनों में लेकर कपड़े पहनाती है तब वह अपनी माँ को देखता है।
(घ) बच्चा अपनी माँ को बहुत ही प्यार से देखता है।
3.
दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पैं इक नम दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती हैं दिए।
शब्दार्थ-शाम-संध्या। युते-साफ़-सुथरे, रैंगे। लावे-लाए। रूपवती-सुंदरी। मुखड़े-मुख। हुक-एक। दमक-चमक। घरोंदे-मिट्टी के घर। दिए-दीपक।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘रुबाइयाँ’ से उद्धृत है। इसके रचयिता उर्दू-फ़ारसी के प्रमुख शायर फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें दीवाली के त्योहार का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-शायर कहता है कि आज दीवाली की शाम है। इस अवसर पर घर रंग-रोगन से पुता हुआ तथा सजा हुआ है। घरों में मिठाई के नाम पर चीनी के बने हुए खिलौने आते हैं। रोशनी भी की जाती है। माँ के सुंदर मुँह पर हलकी चमक-सी आ जाती है। वह बच्चे के छोटे-से घर में दिया जलाती है।
विशेष-
- आम व्यक्ति के घर में दीवाली के अवसर पर हुई रौनक का स्वाभाविक चित्रण है।
- माँ की ममता का सुंदर चित्रण है।
- दृश्य बिंब है-
‘रंग-रोगन से पुते और सजे घर’, ‘चीनी के खिलौने जगमगाते’, ‘रूपवती मुखड़े पै इक नर्मदमक’, ‘घरौदे में जलाती है दिए’। - ‘रूपवती मुखड़ा’ व ‘नर्म दमक’ विलक्षण प्रयोग है।
- रुबाई छंद तथा भाषा का मिश्रित रूप है।
प्रश्न
(क) दीवाली पर लोग क्या करते हैं?
(ख) इस अवसर पर माँ बच्चे के लिए क्या लाती है?
(ग) माँ के चेहरे पर कैसा भाव आता हैं?
(ঘ) স্নাবিজ্ঞা লঙ্কল্লা সালানী ঐ লেখা লাজী?
उत्तर –
(क) दीवाली के अवसर पर लोग घरों में रंग-रोगन करते हैं तथा उसे सजाते हैं।
(ख) इस अवसर पर माँ बच्चे के लिए चीनी के बने खिलौने लाती है।
(ग) जब माँ बच्चे के घर में दिया जलाती है तो उसके सुंदर मुख पर दमक होती है।
(घ) माँ बच्चे के छोटे से घर में दिया जलाती है क्योंकि इस कार्य से बच्चा बहुत प्रसन्न होता है।
4.
आँगन में ठुनक रहा हैं जिदयाय है
बालक तो हई चाँद में ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही हैं माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
शब्दार्थ-दुनक-मचलना, बनावटी रोना। जिदयाया-जिद के कारण मचला हुआ। हड़-है ही। दयण-शीशा। आड़ना-दर्पण।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘रुबाइयाँ’ से उद्धृत है। इसके रचयिता उर्दू-फ़ारसी के प्रमुख शायर फिराक गोरखपुरी हैं। इस रुबाई में बाल-हठ का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-शायर कहता है कि छोटा बच्चा आँगन में मचल रहा है। वह जिद लगाए हुए है कि उसे आकाश का चाँद चाहिए। उसका मन उस चाँद पर ललचा गया है। माँ उसे दर्पण में चाँद दिखाते हुए कहती है कि देख बेटा, दर्पण में चाँद उतर आया है। इस तरह वह बच्चे की जिद पूरी करती है।
विशेष-
- बच्चे की जिद तथा माँ द्वारा उसके समाधान का स्वाभाविक वर्णन हुआ है। अत: स्वभावोक्ति अलंकार है।
- ‘जिदयाया’ और ‘हई’ शब्द का प्रयोग विशेष है। इससे कोमलता में वृद्धि हुई है।
- वात्सल्य रस घनीभूत है।
- चित्रात्मक शैली है।
- उर्दू-हिंदी मिश्रित भाषा है।
- ‘आईने में चाँद उतर आया’-सुंदर कल्पना है।
- ‘ठुनक’ शब्द में बच्चे के बाल-मनोविज्ञान का सहज वर्णन है।
प्रश्न
(क) कौन दुनक रहा है और जिदयाया है?
(ग) बाल – मनोविज्ञान के किस पक्ष का वर्णन हुआ है?
(ख) बच्चा किसको देखकर ललचाया है?
(घ) माँ अपने बेटे को किस तरह मनाती हैं?
उत्तर –
(क) बच्चा दुनक रहा है और जिदयाया हुआ है।
(ख) बच्चा चाँद को देखकर ललचाया है।
(ग) इसमें शायर ने बाल-मनोविज्ञान का सहज चित्रण किया है। बच्चे किसी भी बात या वस्तु पर जिद कर बैठते हैं तथा मचलने लगते हैं।
(घ) माँ बच्चे को दर्पण में चाँद का प्रतिबिंब दिखाकर उसे बहलाती है।
5.
रक्षाबंदन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी
शब्दार्थ-रस की पुतली-आनंद की सौगात, मीठा बंधन। घटा-बादल। गगन-आकाश। लच्छा-राखी के चमकदार लच्छा।
प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘रुबाइयाँ’ से उद्धृत है। इसके रचयिता उर्दू-फ़ारसी के प्रमुख शायर फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें रक्षाबंधन पर्व का वर्णन प्रकृति के माध्यम से किया गया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि रक्षाबंधन की सुबह आनंद व मिठास की सौगात है। यह दिन मीठे बंधन का दिन है। सावन का महीना है। आकाश में काले-काले बादलों की हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। इन बादलों में बिजली चमक रही है। इसी तरह राखी के लच्छे भी बिजली की तरह चमकते हैं। बहिन अपने भाई की कलाई पर चमकीली राखी बाँधती है।
विशेष–
- रक्षाबंधन के त्योहार का प्रभावी चित्रण है।
- उर्दू-हिंदी मिश्रित भाषा है।
- ‘हलकी-हलकी’ में पुनरुक्ति प्रकाश तथा ‘बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे’ में उपमा अलंकार है।
- प्रसन्न बालिका को ‘रस की पुतली’ की संज्ञा दी गई है।
- रुबाई छंद का प्रयोग है।
प्रश्न
(क) ‘रस की पुतली ‘ कौन है? उसे यह संज्ञा क्यों दी गई हैं?
(ख) राखी के दिन कैसा मौसम है? बताइए।
(ग) ‘बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे।-पक्ति का आशय बताइए।
(घ) बहन किसके हाथों में कैसी राखी बाँधती है?
उत्तर –
(क) ‘रस की पुतली’ राखी बाँधने वाली बहन है। उसे यह संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि उसके मन मैं अपने भाई के प्रति अत्यधिक स्नेह है।
(ख) राखी के दिन आकाश में हलके-हलके काले बादल छाए हैं तथा बिजली भी चमक रही है।
(ग) इसका अर्थ यह है कि राखी में जो चमकदार लच्छे हैं, वे बिजली की तरह चमकते हैं।
(घ) बहन अपने भाई के हाथों में चमकती राखी बाँधती है।
(ख) गजल
1.
नौरस गुंचे पंखडियों की नाजुक गिरहैं खोले हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोले हैं।
शब्दार्थ-नौरस-नया रस। गुच-कली। नाजुक-कोमल। गिरहें-बंधन, गुत्थियाँ। बू-खुशबू। गुलशन-बाग-बगीचा। पर तोलना-पंख फैलाकर उड़ना।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में बसंत ऋतु का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि बसंत ऋतु में नए रस से भरी कलियों की कोमल पंखुड़ियों की गाँठे खुल रही हैं। वे धीरे-धीरे फूल बनने की ओर अग्रसर हैं। ऐसा लगता है मानो रंग और सुगंध-दोनों आकाश में उड़ जाने के लिए पंख फड़फड़ा रहे हों। दूसरे शब्दों में, बाग में कलियाँ खिलते ही सुगंध फैल जाती है।
विशेष–
- प्रकृति के सौंदर्य का सुंदर वर्णन है।
- उर्दू-फारसी भाषा का प्रयोग है।
- प्रसाद गुण है।
- बिंब योजना है।
- संदेह अलंकार है।
- रंग व खुशबू पर मानवीय क्रियाओं के आरोपण से मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्न
(क) कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया हैं?
(ख) पहली पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘नीरस ‘विशेषण से क्या अभिप्राय हैं?
(घ) कलियाँ किस तैयारी में हैं?
उत्तर –
(क) कवि ने बसंत ऋतु का वर्णन किया है।
(ख) इसका अर्थ यह है कि बसंत ऋतु में कलियों में नया रस भरा होता है और वे अपनी पंखुड़ियों से कोमल बंधनों को खोल रही हैं।
(ग) इसका अर्थ है-नया रस। बसंत के मौसम में कलियों में नया रस भर जाता है।
(घ) कलियाँ फूल बनने की तैयारी में हैं। उनके खिलने से खुशबू चारों तरफ फैल जाएगी।
2.
तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा – जर्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो। शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं।
शब्दार्थ-बंद करते और खोलते। जरा-ज़रा-कण-कण। शब-रात। सन्नाटा-मौन, चुप्पी।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में उद्धृत ‘गज़ल’ से संकलित है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने रात के तारों का सौंदर्य वर्णन किया है।
व्याख्या-शायर कहता है कि रात ढल रही है। अब तारे भी आँखें झपका रहे हैं। इस समय सृष्टि का कण-कण सो रहा है, शांत है। वह कहता है कि हे मित्रो! रात में पसरा यह सन्नाटा भी कुछ कह रहा है। यह भी अपनी वेदना व्यक्त कर रहा है।
विशेष–
- प्रकृति के उद्दीपन रूप का चित्रण है।
- ‘जर्रा-जर्रा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- ‘सन्नाटे का बोलना’ में मानवीकरण तथा विरोधाभास अलंकार है।
- तारों का मानवीकरण किया गया है।
- उर्दू शब्दावली है।
प्रश्न
(क) रात के समय कैसा दूश्य हैं?
(ख) ज़र्रा-ज़र्रा हैं में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है
(ग) शब में कौन बोलता हैं तथा कैसे?
(घ) कवि किसे संबोधित कर रहा है तथा क्यों?
उत्तर –
(क) रात के समय वातावरण शांत है। आकाश में तारे आँखें झपकाते हुए लगते हैं।
(ख) इसका अर्थ है-रात के समय सारी सृष्टि शांत हो जाती है। हर जगह सन्नाटा छा जाता है।
(ग) रात में सन्नाटा बोलता है। इस समय चुप्पी की आवाज सुनाई देती है।
(घ) कवि दोस्तों को संबोधित करता है और बताता है कि रात को खामोशी भी बोलती हुई लगती है।
3.
हम हों या किस्मत हो हमारी दीनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।
शब्दार्थ-किस्मत-भाग्य। द्वक-एक। लेवे हैं-लेती है।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गज़ल’ से लिया गया है। इसके रचयिता फ़िराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने मनुष्य के दोषारोपण करने की प्रवृत्ति के विषय में बताया है।
व्याख्या-शायर कहता है कि संसार में मेरी किस्मत और मैं खुद दोनों ही एक जैसे हैं। हम दोनों एक ही काम करते हैं। अभाव के लिए मैं अपनी किस्मत को दोषी मानता हूँ तथा इसलिए किस्मत पर रोता हूँ। किस्मत मेरी दशा को देखकर रोती है। वह शायद मेरी हीन कर्मनिष्ठा को देखकर झल्लाती है।
विशेष–
- निराशा व अकर्मण्यता पर व्यंग्य है।
- उर्दू-फारसी शब्दों का प्रयोग है।
- ‘किस्मत’ को मानवीय क्रियाएँ करते हुए दिखाया गया है। अत: मानवीकरण अलंकार है।
- गजल छंद है।
- ‘हम’ कहना उर्दू की पहचान है।
प्रश्न
(क) कवि किस-किसको समान बताता है?
(ख) ‘किस्मत हमको रो ले है।’ -अर्थ स्पष्ट करें।
(ग) कवि तथा किस्मत क्या कार्य करते हैं?
(घ) कवि ने मानव स्वभाव के बारे में किस सत्य का उल्लेख किया हैं?
उत्तर –
(क) कवि ने स्वयं तथा भाग्य को एक समान बताया है।
(ख) इसका अर्थ यह है कि कवि की बदहाली को देखकर किस्मत उसकी अकर्मण्यता पर झल्लाती है।
(ग) कवि अपनी दयनीय दशा के लिए भाग्य को दोषी ठहराता है तथा किस्मत उसकी अकर्मण्यता को देखकर झल्लाती है। दोनों एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते हैं।
(घ) कवि ने अपने माध्यम से मानव स्वभाव के बारे में उस सत्य का उल्लेख किया है कि किसी भी प्रकार की अभावग्रस्तता होने पर वह किस्मत को ही दोषी ठहराता है।
4.
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।
शब्दार्थ-काटा-ऐसा हो सकता तो । यरदा-रहस्य।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गज़ल’ से लिया गया है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने निंदकों पर प्रहार किया है।
व्याख्या-शायर कहता है कि संसार में कुछ लोग उसे बदनाम करना चाहते हैं। ऐसे निंदकों के लिए कवि कामना करता है कि वे केवल यह बात समझ सकें कि वे मेरी जो बुराइयाँ संसार के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं, उससे खुद उनकी कमियाँ उजागर हो रही हैं। वे मेरा परदा खोलने की बजाय अपना परदा खोल रहे हैं।
विशेष–
- शायर ने दूसरों को बदनाम करने वालों पर व्यंग्य किया है।
- उर्दू भाषा का प्रयोग है।
- गजल छंद है।
- भाषा में प्रवाह है।
प्रश्न
(क) निदा करने वाले दूसरों की निदा के साथ-साथ अपनी निदा स्वय कर जाते हैं, कैसे?
(ख) निदक किन्हें कहते हैं? वे किसे बदनाम करना चाहते हैं?
(ग) कवि कुछ लोगों को सचेत क्यों करना चाहता है?
(घ) ‘मेरा परदा खोले हैं-आशय स्पष्ट करें।
उत्तर –
(क) निंदक किसी की बुराइयाँ जब दूसरों के सामने प्रस्तुत करते हैं तो उससे उनकी अपनी कमियाँ स्वयं प्रकट हो जाती हैं। इस प्रकार वे अपनी निंदा स्वयं कर जाते हैं।
(ख) निंदक वे लोग होते हैं जो अकारण दूसरों की कमियों को बिना सोचे-समझे दूसरों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। ऐसे लोग कवि को बदनाम करना चाहते हैं।
(ग) कवि कुछ लोगों को इसलिए सचेत करना चाहता है क्योंकि जो लोग कवि को बदनाम करना चाहते हैं, उन्हें इतना समझना चाहिए कि इस कार्य से वे अपने रहस्य भी दूसरों को बता रहे हैं।
(घ) इसका अर्थ यह है कि कवि के विरोधी उसकी कमियों को समाज के सामने प्रस्तुत करते हैं ताकि उसकी बदनामी हो जाए।
5.
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ली हैं।
शब्दार्थ-कामत-मूल्य। अदा-चुकाना। बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास-विवेक के साथ। दीवाना-प्रेमी। सौदा करने वाले-चाहने वाले, प्रेम करने वाले।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें कवि ने प्रेम की कीमत अदा करने के बारे में बताया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि हम पूरे विवेक के साथ तुम्हारे प्रेम के लिए पूरी कीमत अदा कर रहे हैं। हम तुम्हारे प्रेम का सौदा करने वाले हैं, इसके लिए हम दीवाना बनने को भी तैयार हैं। कवि कहता है कि जो प्रेमी है, वह समाज की नजरों में पागल होता है।
विशेष–
- कवि ने प्रेम के संपूर्ण समर्पण का वर्णन किया है।
- उर्दू शब्दावली का प्रभावी प्रयोग है।
- ‘कीमत अदा करना’ मुहावरे का प्रयोग है।
- गजल छंद है।
प्रश्न
(क) ‘हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास’ का अर्थ बताइए।
(ख) कवि किसे संबोधित करता है?
(ग) ‘सौदा करने’ से क्या अभिप्राय है?
(घ) कवि किसकी कीमत अदा करने की बात कहता है?
उत्तर –
(क) इसका अर्थ है-हम पूरे होशोहवास से। दूसरे शब्दों में ‘हम पूरे विवेक से’।
(ख) कवि प्रियतमा को संबोधित करता है।
(ग) इसका अर्थ है—किसी चीज को खरीदना। यहाँ यह प्रेम की कीमत अदा करने से संबंधित है।
(घ) कवि प्रेम की कीमत अदा करने की बात कहता है।
6.
तेरे गम का पासे-अदब हैं कुछ दुनिया का खयाल भी हैं
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।
शब्दार्थ-गम-दुख, पीड़ा। पासे-अदब-लिहाज, सम्मान का भाव। दुनिया-संसार। खयाल-ध्यान।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गज़ल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें शायर ने प्रेम की पीड़ा को व्यक्त किया है।
व्याख्या-कवि अपनी प्रेमिका से कहता है कि मुझे तुम्हारे गम का पूरा ख्याल है। मैं तुम्हारी पीड़ा का सम्मान करता हूँ, परंतु मुझे संसार का भी ध्यान है। यदि मैं हर जगह तुम्हारे दिए दुख को सबके सामने गाता फिरूं तो दुनिया हमारे प्रेम को बदनाम करेगी। इसलिए मैं इस पीड़ा को अपने हृदय में छिपा लेता हूँ और चुपचाप अकेले में रो लेता हूँ। आशय यह है कि प्रेमी अपने दुख को संसार के सामने प्रकट नहीं करते।
विशेष–
- कवि ने विरह-भावना का प्रभावी चित्रण किया है।
- उर्दू मिश्रित हिंदी भाषा है।
- ‘चुपके-चुपके’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- गजल छंद है।
- वियोग श्रृंगार रस है।
प्रश्न
(क) ‘तेरे गम का पास-अदब हैं – भाव स्पष्ट कीजिए।
(ख) कवि को किसका ख्याल हैं, क्यों?
(ग) कवि चुपके-चुपके क्यों रोता है?
(घ) कवि की मनोदशा कैसी है?
उत्तर –
(क) इसका अर्थ यह है कि कवि के मन में अपने प्रिय की विरह-वेदना के प्रति पूर्ण सम्मान है।
(ख) कवि को सांसारिकता का ख्याल है क्योंकि वह सामाजिक प्राणी है और अपने प्रेम को बदनाम नहीं होने देना चाहता।
(ग) कवि अपने प्रेम को दुनिया के लिए मजाक या उपहास का विषय नहीं बनाना चाहता। इसी कारण वह चुपके-चुपके रो लेता है।
(घ) कवि प्रेम के विरह से पीड़ित है। उसे संसार की प्रवृत्ति से भी भय है। वह अपने वियोग को चुपचाप सहन करता है ताकि बदनाम न हो।
7.
फितरत का कायम हैं तवाजुन आलमे हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं।
शब्दार्थ-फितरत-स्वभाव। कायम-स्थापित करना। तवाजुन-संतुलन। आलमे-हुस्न-द्वश्क-प्रेम और सौंदर्य का संसार। खुद-स्वय।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में कवि ने प्रेम की प्राप्ति का उपाय बताया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि प्रेम और सौंदर्य के संसार में संतुलन कायम है। इसमें हम उतना ही प्रेम पा सकते हैं जितना हम स्वयं को खोते हैं। दूसरे शब्दों में, प्रेम में पहले स्वयं को मिटाना पड़ता है। जो व्यक्ति जितना अधिक समर्पण करता है, वह उतना ही प्रेम पाता है।
विशेष–
- कवि ने प्रेम के स्वभाव को स्पष्ट किया गया है।
- कबीर के साथ भाव-साम्य है जिन खोजा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठि। मैं बपुरा खोजन चला, रहा किनारे बैठि।
- ‘खोकर पाने में’ विरोधाभास अलंकार है।
- उर्दू-मिश्रित हिंदी भाषा का प्रयोग है।
- गजल छंद है।
प्रश्न
(क) कवि किस संतुलन की बात करता है?
(ख) ‘आलमे-हुस्नो-इश्क’ का अर्थ बताइए।
(ग) प्रिय को कैसे पाया जा सकता है?
(घ) ‘खुद को खोने’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क) कवि प्रेम और सौंदर्य के लिए खोने और पाने में संतुलन की बात करता है।
(ख) इसका अर्थ है-प्रेम और सौंदर्य की दुनिया।
(ग) प्रिय को पाने का एकमात्र उपाय है-खुद को प्रेमी के प्रति समर्पित कर देना।
(घ) इसका अर्थ है-अहं भाव को छोड़कर प्रेमी के प्रति समर्पित होना।
8.
आबो-ताब अश्आर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं।
शब्दार्थ-आबो-ताब अश्आर-चमक-दमक के साथ। आँखें रक्खो हो-देखने में समर्थ हो । बैत-शेर । दमक-चमक । मोती रोले—आँसू छलकाना।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इसमें कवि ने अपने काव्य-सृजन का आधार अपनी व्यथा बताया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि तुम्हें मेरी शायरी में जो चमक-दमक दिखाई देती है, उस पर फ़िदा मत होओ। तुम्हें अपनी आँखें खुली रखनी चाहिए अर्थात ध्यान से देखना चाहिए। मेरे शेरों में जो चमक है, वह मेरे आँसुओं की देन है। दूसरे शब्दों में, कवि की पीड़ा से उसके काव्य में दर्द उभरकर आया है।
विशेष–
- कवि ने विरह को काव्य के सृजन का आधार बताया है।
- बच्चन ने भी कहा है-
मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते छंद बनाना। - ‘मोती रोले’विरह को व्यक्त करता है।
- ‘आँखें रखना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।
- उर्दू की कठिन शब्दावली का प्रयोग किया गया है।
- ‘आबो-ताब’ में अनुप्रास अलंकार है।
- वियोग श्रृंगार रस है।
प्रश्न
(क) कवि किसकी चमक की बात कर रहा हैं?
(ख) ‘आँखें’ रक्खो हो’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘जगमग बैंतों की चमक’ का आशय बताइए।
(घ) ‘या हम सोती रोले हैं’ का अर्थ बताइए।
उत्तर –
(क) कवि अपनी शायरी की चमक की बात कर रहा है।
(ख) इसका अर्थ है-विवेक से हर बात को समझना, मर्म को जानना।
(ग) इसका अर्थ है-शेरो-शायरी का आलंकारिक सौंदर्य।
(घ) कवि कहता है कि मेरी कविता में विरह की वेदना व्यक्त हुई है।
9.
ऐसे में तू याद आए है अंजुमने-मय में रिंदों को
रात गए गर्दूं पै फ़रिश्ते बाबे-गुनह जग खोले हँ।
शब्दार्थ-अंजुमने-मय-शराब की महफ़िल। रिदों को-शराबियों को। गदू-आकाश। फरिश्ता-देवदूत। बाबे-गुनह-पाप का अध्याय । ज7-ससार ।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल” से उद्धृत है। इसके रचयिता फिराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में कवि ने प्रियजन की यादों का बखान किया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि हे प्रिय! तुम वियोग के समय में इस तरीके से याद आते हो जैसे शराब की महफ़िल में शराबियों को शराब की याद आती है तथा जैसे आधी रात के समय देवदूत आकाश में संसार के पापों का अध्याय खोलते हैं।
विशेष–
- विरहावस्था का सुंदर चित्रण है।
- ‘अंजुमने-मय, रिंदों, गर्दू, फरिश्ते, बाबे-गुनह’ आदि फ़ारसी शब्दों का सुंदर प्रयोग है।
- गजल छंद है।
- माधुर्य गुण है।
- वियोग श्रृंगार रस है।
प्रश्न
(क) प्रथम पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ख) ‘तू ‘ कौन हैं? उसके बारे में कवि क्या कहता हैं?
(ग) रात में फ़रिश्ते क्या करते हैं?
(घ) ‘अंजुमने-मय में रिंदों को ‘ से कवि क्या बताता हैं?
उत्तर –
(क) प्रथम पंक्ति का भाव यह है कि शायर अपनी प्रिया, प्रेमिका को बहुत ही सिद्दत से याद करता है। यह याद ठीक वैसी है जैसे शराबखाने में शराबी को शराब याद आती है।
(ख) ‘तू कवि की प्रेमिका है। वह उसे विरह के समय याद आती है।
(ग) रात के समय देवदूत आकाश में सारे संसार के पापों का अध्याय खोलते हैं।
(घ) इसमें कवि शराबखाने में शराबियों की दशा का वर्णन करता है। यहाँ उसे शराब की बहुत याद आती है।
10.
सदके फिराक एजाज-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज
इन गजलों के परदों में तो ‘मीर’ की गजलें बोले हैं।
शब्दार्थ-सदके-कुर्बान। एजाज-सुखन-बेहतरीन काव्य। परदा-चरण।
प्रसंग-प्रस्तुत शेर हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘गजल’ से उद्धृत है। इसके रचयिता फ़िराक गोरखपुरी हैं। इस शेर में शायर अपनी शायरी पर ही मुग्ध है।
व्याख्या-फिराक कहते हैं कि उसकी गजलों पर लोग मुग्ध होकर कहते हैं कि फिराक, तुमने इतनी अच्छी शायरी कहाँ से सीख ली? इन गजलों के शब्दों से हमें ‘मीर’ कवि की गजलों की-सी समानता दिखाई पड़ती है। भाव यह है कि कवि की शायरी प्रसिद्ध कवि ‘मीर’ के समान उत्कृष्ट है।
विशेष–
- कवि अपनी प्रशंसा स्वयं करता है।
- उर्दू शब्दावली की बहुलता है।
- गजल छंद है।
- ‘उड़ा लेना’ मुहावरे का अर्थ है-चुराना।
- गेयता है।
प्रश्न
(क) फिराक किस पर कुबनि हैं?
(ख) फिराक की शायरी किससे प्रभावित है।
(ग) कवि के प्रशंसकों ने क्या प्रतिक्रिया जताई।
(घ) ‘मीर की गजलें बोले हैं’ का भाव समझाइए
उत्तर –
(क) फिराक अपनी शायरी पर कुर्बान हैं।
(ख) फिराक की शायरी प्रसिद्ध शायर मीर से प्रभावित है।
(ग) कवि के प्रशंसकों ने कहा कि उसने कविता की यह सुंदरता कहाँ से उड़ा ली।
(घ) ‘मीर की गजलें बोले हैं’ का भाव यह है कि कवि फिराक गोरखपुरी की गजलों और सुप्रसिद्ध शायर ‘मीर’ की गजलों में पर्याप्त समानता है।
काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न
(क) रुबाइयाँ
निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
1.
आंगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती हैं उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूँज उठती हैं खिलखिलाते बच्चे की हँसी।
नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी
किस प्यार से देखता हैं बच्चा मुँह को
करके जब घुटनियों में ले के हैं पिन्हाती कपड़े।
प्रश्न
(क) ‘चाँद का टुकड़ा’ कौन हैं? इस बिंब के प्रयोगगत भावों में क्या विशेषता हैं?
(ख) बच्चे को लेकर माँ के किन क्रियाकलापों का चित्रण किया गया हैं? उनसे उसके किस भाव की अभिव्यक्ति हो रही है?
(ग) ‘किस प्यार से देखता हैं बच्चा मुँह को ‘ में अभिव्यक्त बच्चे के चष्टजन्य सौंदर्य की विशेषता को स्पष्ट कीजिए।
(घ) माँ और बच्चे के स्नेह-सबधों पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर –
(क) ‘चाँद का टुकड़ा’ माँ की गोद में खेल रहा वह बच्चा है, जिसे माँ हाथों में लिए हवा में झुला रही है। इस प्रयोग से बच्चे को प्रसन्न करने के लिए उसे हवा में झुलाती माँ का बिंब साकार हो उठा है।
(ख) बच्चे को लेकर माँ आँगन में खड़ी है। वह हँसाने के लिए बच्चे को हवा में झुला रही है, लोका दे रही है। इन क्रियाओं से प्रेम और वात्सल्य के साथ ही उसकी ममता की अभिव्यक्ति हो रही है।
(ग) ‘किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को’ अंश में बालसुलभ और चेष्टाजन्य क्रियाएँ साकार हो उठी हैं। माँ बच्चे को नहला-धुलाकर जब अपने घुटनों में लेकर कपड़े पहनाती है तो बच्चा अपनत्व भाव से माँ के चेहरे को देखता है। ऐसे में बच्चे का सौंदर्य और भी निखर जाता है।
(घ) माँ और बच्चे का संबंध वात्सल्य और ममता से भरपूर होता है। बच्चा अपनी सारी जरूरतों के लिए जहाँ माँ पर निर्भर होता है, वहीं माँ को बच्चा सर्वाधिक प्रिय होता है। वह उसकी जरूरतों का ध्यान रखती है तथा प्यार और ममता से पोषित करके उसे बड़ा करती है।
2.
आँगन में ठुनक रहा हैं जिदयाय है
बालक तो हई चाँद में ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही हैं माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
प्रश्न
(क) काव्यांश की भाषा की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ख) यह काव्यांश किस छंद में लिखा गया हैं? विशेषता बताइए।
(ग) ‘देख आईने में चाँद उतर आया है’ कथन के सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क) काव्यांश की भाषा उर्दू-हिंदी भाषा है। इसमें सरलता, सुबोधता है। बाल-मनोविज्ञान का सजीव चित्रण है।
(ख) यह काव्यांश रुबाई छंद में लिखा गया है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। इसकी पहली व चौथी पंक्ति में तुक मिलाया जाता है तथा तीसरी पंक्ति स्वतंत्र होती है।
(ग) इस कथन में माँ की सूझ-बूझ का वर्णन है। वह बच्चे की जिद को आईने में चाँद को दिखाकर पूरा करती है। यहाँ ग्रामीण संस्कृति प्रत्यक्ष रूप से साकार हो उठती है।
(ख) गजल
निम्नलिखित शेरो को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
हम हों या किस्मत हो हमारी दीनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।
प्रश्न
(क) गजल के इस अंश की दो भाषिक विशेषताएँ बताइए।
(ख) प्रधम शेर में आइ पंक्तियों की व्यंजना स्पष्ट र्काजिए।
(ग) भाव-सौंदर्य स्पष्ट र्काजिए-
‘मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं ‘
उत्तर –
(क) गजल में उर्दू भाषा के शब्दों का अधिक प्रयोग होता है। दूसरा, इसमें सर्वनामों का प्रयोग होता है। जो, वे, हम, अपना आदि सर्वनाम उर्दू गजलों में पाए जाते हैं। इनका लक्ष्य कोई भी हो सकता है।
(ख) कवि अपनी किस्मत से असंतुष्ट है। वह उसे अपने ही समान मानता है। दोनों एक-दूसरे को कोसते रहते हैं।
(ग) कवि इन पंक्तियों में कहता है कि उसको बदनाम करने वाले लोग स्वयं ही बदनाम हो रहे हैं। वे अपने चरित्र को स्वयं ही उद्घाटित कर रहे हैं।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
शायर राखी के लच्छे को बिजली की चमक की तरह कहकर क्या भाव व्यंजित करना चाहता हैं?
उत्तर –
रक्षाबंधन एक मीठा और पवित्र बंधन है। रक्षाबंधन के कच्चे धागों पर बिजली के लच्छे हैं। वास्तव में सावन का संबंध घटा से होता है। घटा का जो संबंध बिजली से है वही संबंध भाई का बहन से है। शायर यही भाव व्यंजित करना चाहता है कि यह बंधन पवित्र और बिजली की तरह चमकता रहे।
प्रश्न 2:
खुद का परदा खोलने से क्या आशय है?
उत्तर –
‘खुद का परदा’ खोलने का आशय है-अपनी कमियों या दोषों को स्वयं ही प्रकट करना। यदि कोई व्यक्ति दूसरे की निंदा करता है तो वह अपनी स्वयं की ही कमजोरी व्यक्त कर रहा होता है। कवि की बुराई करने वाला अपनी बुराइयों से भी परदा उठाता है।
प्रश्न 3:
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो लेवे हैं-इस पंक्ति में शायर की किस्मत के साथ तना-तनी का रिश्ता अभिव्यक्त हुआ है। चर्चा र्काजिए।
उत्तर –
ऊपर की पंक्ति को देखकर (पढ़कर) कहा जा सकता है कि शायर कभी भाग्यवादी नहीं रहा। वास्तव में किस्मत ने उसका कभी साथ नहीं दिया। वह इसलिए किस्मत पर भरोसा नहीं करता। जब कभी भाग्य की बात चलती है तो वह उसके नाम पर केवल रो लेता है।
टिप्पणी करें
प्रश्न
(क) गोदी के चाँद और गगन के चाँद का रिश्ता।
(ख) सावन की घटाएँ रक्षाबंधन का पर्व।
उत्तर –
(क) ‘गोदी के चाँद’ का अर्थ है-नन्हा कोमल बच्चा जो अपनी माँ की गोद में रहता है। वह अपनी माँ को खुशियाँ प्रदान करता है। उसका अप्रतिम सौंदर्य माँ को अभिभूत करता है। इसी तरह आकाश में चाँद होता है जो अपनी चाँदनी से संसार को उजाला देता है। वह बच्चों की तरह खुशी का प्रसार करता है। इसके अतिरिक्त, गगन का चाँद गोदी के चाँद को अच्छा लगता है।
(ख) सावन की घटा व रक्षाबंधन के त्योहार में अटूट संबंध है। राखी का त्योहार सावन के महीने में आता है। इस मौसम में घटाएँ आसमान में छाई रहती हैं। इसी तरह भाई-बहन के मन में प्यार की घटाएँ होती हैं।
कविता के आस-पास
प्रश्न 1:
इन रुबाइयों से हिंदी, उर्दू और लोकभाषा के मिले-जुले प्रयोगों को छाँटिए।
उत्तर –
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी।
- रह-रह के हवा में जो लोका देती है।
- उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
- दीवार की शाम घर पुते और सजे
- बालक तो हुई चाँद पें ललचाया है।
- आँगन में ठनक रहा है ज़िदयाया है।
- देख आईने में चाँद उतर आया है।
प्रश्न 2:
फिराक ने सुनो हो, रक्खी हो आदि शब्द मीर की शायरी के तज पर इस्तेमाल किए हैं। ऐसी ही मीर की कुछ गजलें ढूंढ़ कर लिखिए।
उत्तर –
विद्यार्थी स्वयं प्रयास करें।
अन्य हल प्रश्न
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
‘रुबाइयाँ” के आधार पर घर-आँगन में दीवाली और राखी के द्वश्य-बिंब को अपने शब्दों में समझाइए।
उत्तर –
कवि दीपावली के त्योहार के बारे में बताते हुए कहता है कि इस अवसर पर घर में पुताई की जाती है तथा उसे सजाया जाता है। घरों में मिठाई के नाम पर चीनी के बने खिलौने आते हैं। रोशनी भी की जाती है। बच्चे के छोटे-से घर में दिए के जलाने से माँ के मुखड़े की चमक में नयी आभा आ जाती है। रक्षाबंधन का त्योहार सावन के महीने में आता है। इस त्योहार पर आकाश में हल्की घटाएँ छाई होती हैं। राखी के लच्छे भी बिजली की तरह चमकते हुए प्रतीत होते हैं।
प्रश्न 2:
फिराक की गजल में प्रकृति को किस तरह चित्रित किया गया है?
उत्तर –
फिराक की गजल के प्रथम दो शेर प्रकृति वर्णन को ही समर्पित हैं। प्रथम शेर में कलियों के खिलने की प्रक्रिया का भावपूर्ण वर्णन है। कवि इस शेर को नव रसों से आरंभ करता है। हर कोमल गाँठ के खुल जाने में कलियों का खिलना और दूसरा प्रतीकात्मक अर्थ भी है कि सब बंधनों से मुक्त हो जाना, संबंध सुधर जाना। इसके बाद कवि कलियों के खिलने से रंगों और सुगंध के फैल जाने की बात करता है। पाठक के समक्ष एक बिंब उभरता है। वह सौंदर्य और सुगंध दोनों को महसूस करता है।
प्रश्न 3:
‘फिराक’ की रुबाइयों में उभरे घरेलू जीवन के बिबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
‘फिराक’ की रुबाइयों में घरेलू जीवन का चित्रण हुआ है। इन्होंने कई बिंब उकेरे हैं। एक बिंब में माँ छोटे बच्चे को अपने हाथ में झुला रही है। बच्चे की तुलना चाँद से की गई है। दूसरे बिंब में माँ बच्चे को नहलाकर कपड़े पहनाती है तथा बच्चा उसे प्यार से देखता है। तीसरे बिंब में बच्चे द्वारा चाँद लेने की जिद करना तथा माँ द्वारा दर्पण में चाँद कवि दवाक बचेक बहानेक कशिक बताया गया है। ये साथ बिंबालभागह घेलूजवनामें पाए जाते हैं।
प्रश्न 4:
पाठ्यपुस्तक में संकलित फिराक गोरखपुरी की गजल का केंद्रीय भाव लिखिए।
उत्तर –
फिराक गोरखपुरी ने ‘गजल” में दर्द व कसक का वर्णन किया है। उसने बताया है कि लोगों ने उसे सदा ताने दिए हैं। उसकी किस्मत हमेशा उसे दगा देती रही। दुनिया में केवल गम ही था जो उसके पास रहा। उसे लगता है जैसे रात के सन्नाटे में कोई बोल रहा है। इश्क के बारे में शायर का कहना है कि इश्क वही पा सकता है जो अपना सब-कुछ दाँव पर लगा दे। कवि की गजलों पर मीर की गजलों का प्रभाव है। यह गज़ल इस तरह बोलती है जिसमें दर्द भी है, एक शायर की ठसक भी है और साथ ही है काव्यशिल्प की वह ऊँचाई, जो गजल की विशेषता मानी जाती है।
प्रश्न 5:
फिराक की रुबाई में भाषा के विलक्षण प्रयोग किए गए हैं-स्पष्ट करें।
उत्तर –
कवि की भाषा उर्दू है, परंतु उन्होंने हिंदी व लोकभाषा का भी प्रयोग किया है। उनकी रचनाओं में हिंदी, उर्दू व लोकभाषा के अनूठे गठबंधन के विलक्षण प्रयोग हैं जिसे गाँधी जी हिंदुस्तानी के रूप में पल्लवित करना चाहते थे। ये विलक्षण प्रयोग हैं-लोका देना, घुटनियों में लेकर कपड़े पिन्हाना, गेसुओं में कंघी करना, रूपवती मुखड़ा, नर्म दमक, जिदयाया बालक, रस की पुतली। माँ हाथ में आईना देकर बच्चे को बहला रही है
देख आईने में चाँद उतर आया है।
चाँद की परछाई भी चाँद ही है।
प्रश्न 6:
नीच लिखे काव्य-खड को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें।
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं।
(क) कविता का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्याश की भाषा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
(ग) “परदा खोलना’ का प्रयोग—सौदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
(क) कविता का भाव यह है कि जो कवि की बुराई दूसरों से कर रहे हैं, वे बुराई करते हुए अपनी कमियाँ स्वयं प्रकट कर रहे हैं। इस प्रकार वे अपनी निंदा खुद ही कर रहे हैं।
(ख) काव्यांश की भाषिक विशेषताएँ
- गजल छद है।
- प्रवाहमयी उर्दू का प्रयोग है।
(ग) ‘परदा खोलना’ की पुनरुक्ति से गजल का भाव-सौंदर्य बढ़ गया है। यहाँ निंदा करने वाले कवि का परदा खोलना चाहते हैं अर्थात उसकी बुराई करना चाहते हैं पर इससे उनकी अपनी खुद ही उजागर होती जा रही हैं।
स्वयं करें
- त्योहार हमारे चेहरों पर खुशी का भाव प्रकट कर देते हैं। ‘रुबाइयाँ’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
- बाल-सुलभ हठ और माँ द्वारा बच्चे को बहलाने के लिए किए गए प्रयासों को ‘रुबाइयाँ’ के आधार पर लिखिए।
- भाई के हाथों में बँधी राखी की तुलना किससे की गई है और क्यों?
- कवि अपनी किस्मत पर और किस्मत कवि पर क्यों रोती है? दोनों के एक-दूसरे पर रोने को आप कितना तर्कसंगत मानते हैं?
- शायर फिराक ने दुनिया के जिस दस्तूर का जिक्र किया है, उसे आप कितना उचित मानते हैं? शायर इससे बचने के लिए वया करता है ?
- निम्नलिखित रुबाइयों के अंशों एवं शेर को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(अ) आँगन में ठुनक रहा है, जिदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की भाषागत विशेषताएँ लिखिए।
(ग) माँ बच्चे के हठ को किस प्रकार पुरा कर रही है?
(ब) तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं
(क) शायर अपने प्रिय के दुख का लिहाज किस तरह करता हैं?
(ख) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांश के भाषिक सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
More Resources for CBSE Class 12: