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Saharsh Swikara Hai Class 12 Question Answer NCERT Solutions

Contents

NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 – काव्य भाग – सहर्ष स्वीकारा है provide comprehensive guidance and support for students studying Hindi Aroh in Class 12. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication.

Class 12th Hindi Kavya Khand Chapter 5 Saharsh Swikara Hai Questions and Answers

सहर्ष स्वीकारा है प्रश्न उत्तर

कक्षा 12 हिंदी आरोह के प्रश्न उत्तर पाठ 5

कवि परिचय

जीवन परिचय– प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ का जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर नामक स्थान पर 1917 ई० में हुआ था। इनके पिता पुलिस विभाग में थे। अत: निरंतर होने वाले स्थानांतरण के कारण इनकी पढ़ाई नियमित व व्यवस्थित रूप से नहीं हो पाई। 1954 ई. में इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० (हिंदी) करने के बाद राजनाद गाँव के डिग्री कॉलेज में अध्यापन कार्य आरंभ किया। इन्होंने अध्यापन, लेखन एवं पत्रकारिता सभी क्षेत्रों में अपनी योग्यता, प्रतिभा एवं कार्यक्षमता का परिचय दिया। मुक्तिबोध को जीवनपर्यत संघर्ष करना पड़ा और संघर्षशीलता ने इन्हें चिंतनशील एवं जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने को प्रेरित किया। 1964 ई० में यह महान चिंतक, दार्शनिक, पत्रकार एवं सजग लेखक तथा कवि इस संसार से चल बसा।
रचनाएँ- गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ की रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(i) कविता-संग्रह- चाँद का मुँह टेढ़ा है, भूरी-भूरी खाक-धूल।
(ii) कथा-साहित्य- काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी।
(iii) आलोचना- कामायनी-एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्मसंघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, समीक्षा की समस्याएँ एक साहित्यिक की डायरी।
(iv) भारत-इतिहास और संस्कृति।
काव्यगत विशेषताएँ- मुक्तिबोध प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रमुख सूत्रधारों में थे। इनकी प्रतिभा का परिचय अज्ञेय द्वारा संपादित ‘तार सप्तक’ से मिलता है। उनकी कविता में निहित मराठी संरचना से प्रभावित लंबे वाक्यों ने आम पाठक के लिए कठिन बनाया, लेकिन उनमें भावनात्मक और विचारात्मक ऊर्जा अटूट थी, जैसे कोई नैसर्गिक अंत:स्रोत हो जो कभी चुकता ही नहीं, बल्कि लगातार अधिकाधिक वेग और तीव्रता के साथ उमड़ता चला आता है। यह ऊर्जा अनेकानेक कल्पना-चित्रों और फैंटेसियों का आकार ग्रहण कर लेती है। इनकी रचनात्मक ऊर्जा का एक बहुत बड़ा अंश आलोचनात्मक लेखन और साहित्य-संबंधी चिंतन में सक्रिय रहे। ये पत्रकार भी थे। इन्होंने राजनीतिक विषयों, अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य तथा देश की आर्थिक समस्याओं पर लगातार लिखा है। कवि शमशेर बहादुर सिंह ने इनकी कविता के बारे में लिखा है-
“…….. अद्भुत संकेतों से भरी, जिज्ञासाओं से अस्थिर, कभी दूर से शोर मचाती, कभी कानों में चुपचाप राज की बातें कहती चलती है, हमारी बातें हमको सुनाती है। हम अपने को एकदम चकित होकर देखते हैं और पहले से अधिक पहचानने लगते हैं।”
भाषा-शैली- इनकी भाषा उत्कृष्ट है। भावों के अनुरूप शब्द गढ़ना और उसका परिष्कार करके उसे भाषा में प्रयुक्त करना भाषा-सौंदर्य की अद्भुत विशेषता है। इन्होंने तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, अरबी और फ़ारसी के शब्दों का भी प्रयोग किया है।

कविता का प्रतिपादय एवं सार

प्रतिपादय- मुक्तिबोध की कविताएँ आमतौर पर लंबी होती हैं। इन्होंने जो भी छोटी कविताएँ लिखी हैं उनमें एक है ‘सहर्ष स्वीकारा है‘ जो ‘भूरी-भूरी खाक-धूल‘ काव्य-संग्रह से ली गई है। एक होता है-‘स्वीकारना’ और दूसरा होता है-‘सहर्ष स्वीकारना’ यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा देती है। कवि को जहाँ से यह प्रेरणा मिली, कविता प्रेरणा के उस उत्स तक भी हमको ले जाती है।
उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता के इसी ‘सहजता’ के चलते उसको स्वीकार किया था-कुछ इस तरह स्वीकार किया था कि आज तक सामने नहीं भी है तो भी आस-पास उसके होने का एहसास है-

मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

सार- कवि कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी है, वह मुझे सहर्ष स्वीकार है। मुझे जो कुछ भी मिला है, वह तुम्हारा दिया हुआ है तथा तुम्हें प्यारा है। मेरी गवली गरीबी, विचार-वैभव, गंभीर अनुभव, दृढ़ता, भावनाएँ आदि सब पर तुम्हारा प्रभाव है। तुम्हारे साथ मेरा न जाने कौन-सा नाता है कि मैं जितनी भी भावनाएँ बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, वे भावनाएँ उतनी ही अधिक उमड़ती रहती हैं। तुम्हारा चेहरा मेरी ऊपरी धरती पर चाँद के समान अपनी कांति बिखेरता रहता है।
कवि कहता है कि “मैं तुम्हारे प्रभाव से दूर जाना चाहता हूँ क्योंकि मैं भीतर से दुर्बल पड़ने लगा हूँ। तुम्हीं मुझे दंड दो ताकि मैं दक्षिण ध्रुव की अंधकारमयी अमावस्या की रात्रि के अँधेरों में लुप्त हो जाऊँ। मैं तुम्हारे उजालेपन को अधिक सहन नहीं कर पा रहा हूँ। तुम्हारी ममता की कोमलता भीतर से चुभने-सी लगी है। मेरी आत्मा कमजोर पड़ने लगी है।” वह स्वयं को पाताली अँधेरों की गुफाओं में लापता होने की बात कहता है, किंतु वहाँ भी उसे प्रियतम का सहारा है।

व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1.

जिंदगी में जो कुछ हैं, जो भी है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा हैं
वह तुम्हें प्यारा हैं।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब

द्वढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत हैं अपलक हैं-
संवेदन तुम्हारा हैं!!         (पृष्ठ-30)
[CBSE (Delhi), 2009 (C), Sample Paper 2013, (Delhi) 2015]

शब्दार्थ – सहर्ष- खुशी के साथ। स्वीकारा- मन से माना। गरबीली– स्वाभिमानिनी। गांभीर– गहरा। अनुभव– व्यावहारिक ज्ञान। विचार-वैभव– भरे-पूरे विचार। दूढ़ता– मजबूती। सरिता– नदी। भीतर की सरिता – भावनाओं की नदी। अभिनव– नया। मौलिक– वास्तविक। जाग्रत– जागा हुआ। अयलक–निरंतर। संवेदन– अनुभूति।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ हैं। इस कविता में कवि ने जीवन में दुख-सुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या – कवि कहता है कि मेरी जिंदगी में जो कुछ है, जैसा भी है, उसे मैं खुशी से स्वीकार करता हूँ। इसलिए मेरा जो कुछ भी है, वह उसको (माँ या प्रिया) अच्छा लगता है। मेरी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, विचारों का वैभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में बहती भावनाओं की नदी-ये सब मौलिक हैं तथा नए हैं। इनकी मौलिकता का कारण यह है कि मेरे जीवन में हर क्षण जो कुछ घटता है, जो कुछ जाग्रत है, उपलब्धि है, वह सब कुछ तुम्हारी प्रेरणा से हुआ है।
विशेष-

(i) कवि अपनी हर उपलब्धि का श्रेय उसको (माँ या प्रिया) देता है।
(ii) संबोधन शैली है।
(iii) ‘मौलिक है’ की आवृत्ति प्रभावी बन पड़ी है।
(iv) ‘विचार-वैभव’ और ‘भीतर की सरिता’ में रूपक अलंकार तथा ‘पल-पल’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(v) ‘सहर्ष स्वीकारा’, ‘गरबीली गरीबी’, ‘विचार-वैभव’ में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
(vi) खड़ी बोली है।
(vi) काव्य की रचना मुक्तक छंद में है, जिसमें ‘गरबीली’, ‘गंभीर’ आदि विशेषणों का सुंदर प्रयोग है।

प्रश्न

(क) कवि जीवन की प्रत्यक परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार क्यों करता हैं?
(ख) गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेषण का औचित्य और सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) कवि किन्हें नवीन और मौलिक मानता है तथा क्यों?
(घ) ‘जो कुछ भी मरा हैं वह तुम्हें प्यारा हैं’—इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) कवि को अपने जीवन की हर उपलब्धि व स्थिति इसलिए सहर्ष स्वीकार है क्योंकि यह सब कुछ उसकी माँ या प्रेयसी को प्रिय लगता है; क्योंकि उसे कवि की हर उपलब्धि पसंद है।
(ख) गरीबी के लिए प्रयुक्त विशेषण है-गरबीली। इसका औचित्य यह है कि कवि इस दशा में भी अंपना स्वाभिमान बनाए हुए है। वह गरीबी को बोझ न मानकर उस स्थिति में भी प्रसन्नता महसूस कर रहा है।
(ग) कवि स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, वैचारिक चिंतन, व्यक्तित्व की दृढ़ता और अंत:करण की भावनाओं को मौलिक मानता है। इसका कारण यह है कि ये सब उसके यथार्थ के प्रतिफल हैं और इन पर किसी का प्रभाव नहीं है।
(घ) ‘जो कुछ भी मेरा है वह तुम्हें प्यारा है’-कथन का आशय यह है कि कवि के पास जो कुछ उपलब्धियाँ हैं वह उसे (अभीष्ट महिला) को प्रिय हैं। इन उपलब्धियों में वह अपनी प्रियतता (माँ या प्रिया) का समर्थन महसूस करता है।

2.

जाने क्या रिश्ता हैं, जाने क्या नाता हैं
जितना भी ऊँड़ेलता हूँ भर-भर फिर आता हैं
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता हैं

भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा हैं! (पृष्ठ-30) 
[CBSE (Outside), 2011 (C) 2012) ]

शब्दार्थ-रिश्ता– रक्त संबंध। नाता– संबंध। ऊँड़ेलना- बाहर निकालना। सोता–झरना।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव ‘मुक्तिबध’ हैं । इस कविता में कवि ने जीवन में दुख-सुख संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या- कवि कहता है कि तुम्हारे साथ न जाने कौन-सा संबंध है या न जाने कैसा नाता है कि मैं अपने भीतर समाये हुए तुम्हारे स्नेह रूपी जल को जितना बाहर निकालता हूँ, वह फिर-फिर चारों ओर से सिमटकर चला आता है और मेरे हृदय में भर जाता है। ऐसा लगता है मानो दिल में कोई झरना बह रहा है। वह स्नेह मीठे पानी के स्रोत के समान है जो मेरे अंतर्मन को तृप्त करता रहता है। इधर मन में प्रेम है और उधर तुम्हारा चाँद जैसा मुस्कराता हुआ चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य के प्रकाश से मुझे नहलाता रहता है। कवि का आंतरिक व बाहय जगत-दोनों उसी स्नेह से युक्त स्वरूप से संचालित होते हैं।
विशेष-

(i) कवि अपने प्रिय के स्नेह से पूर्णत: आच्छादित है।
(ii) ‘दिल में क्या झरना है’ में प्रश्न अलंकार है।
(iii) ‘भर-भर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है,’जितना भी उँड़ेलता हूँ भर-भर फिर आता है’ में विरोधाभास अलंकार है, ‘मीठे पानी का सोता है’ में रूपक अलंकार है, प्रिय के मुख की चाँद के साथ समानता के कारण उपमा अलंकार है।
(iv) मुक्तक छंद है।
(v) खड़ी बोली युक्त भाषा में लाक्षणिकता है।

प्रश्न

(क) कवि अपने उस प्रिय सबधी के साथ अपने संबध कैसे बताता हैं?
(ख) कवि अपने दिल की तुलना किससे करता है तथा क्यों?
(ग) कवि प्रिय को अपने जीवन में किस प्रकार अनुभव करता है?
(घ) कवि ने प्रिय की तुलना किससे की है और क्यों ?

उत्तर-

(क) कवि का अपने उस प्रिय के साथ गहरा संबंध है। उसके स्नेह से वह अंदर व बाहर से पूर्णत: आच्छादित है और उसका स्नेह उसे भिगोता रहता है।
(ख) कवि अपने दिल की तुलना मीठे पानी के झरने से करता है। वह इसमें से जितना भी प्रेम बाहर ऊँड़ेलता है, उतना ही यह फिर भर जाता है।
(ग) कवि प्रिय को अपने जीवन पर इस प्रकार आच्छादित अनुभव करता है जैसे धरती पर सदा चाँद मुस्कराता रहता है। कवि के जीवन पर सदा उसके प्रिय का मुस्कराता हुआ चेहरा जगमगाता रहता है।
(घ) कवि ने अपने प्रिय की तुलना चाँद से इसलिए की है क्योंकि जिस प्रकार आकाश में हँसता चाँद अपने प्रकाश से पूर्वक नाहता रहाता है।उस प्रकरकवक अपने प्रिय का मुस्कराता चेहरा अपने अद्भुत सौंदर्य से नहलाता रहता हैं।

3.

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेटित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता हैं।
नहीं सहा जाता है।                                                  [CBSE (Delhi & Outside), 2010, 2011]
ममता के बदल की माँडराती कोमलता
भीतर पिरती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवित व्यता डराती है
बहलाती – सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है !
          (पृष्ठ-30-31)

शब्दार्थ- दंड– सजा। दक्षिण ध्रुवी अंधकार- दक्षिण ध्रुव पर छाने वाला गहरा औधेरा। अमावस्या- चंद्रमाविहीन काली रात। अंतर- हृदय, अंत:करण। परिवेटित- चारों ओर से घिरा हुआ। आच्छादित- छाया हुआ, ढका हुआ। रमणीय- मनोरम। उजेला- प्रकाश। ममता- अपनापन, स्नेह। माँडराती- छाई हुई। पिराता- दर्द करना। अक्षम- अशक्त। भवितव्यता- भविष्य की आशंका। बहलाती- मन को प्रसन्न करती। सहलाती- दर्द को कम करती हुई। आत्मीयता- अपनापन।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव ‘मुक्तिबध’ हैं । इस कविता में कवि ने जीवन में दुख-सुख संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या- कवि अपने प्रिय स्वरूपा को भूलना चाहता है। वह चाहता है कि प्रिय उसे भूलने का दंड दे। वह इस दंड को भी सहर्ष स्वीकार करने के लिए तैयार है। प्रिय को भूलने का अंधकार कवि के लिए दक्षिणी ध्रुव पर होने वाली छह मास की रात्रि के समान होगा। वह उस अंधकार में लीन हो जाना चाहता है। वह उस अंधकार को अपने शरीर, हृदय पर झेलना चाहता है। इसका कारण यह है कि प्रिय के स्नेह के उजाले ने उसे घेर लिया है। यह उजाला अब उसके लिए असहनीय हो गया है। प्रिय की ममता या स्नेह रूपी बादल की कोमलता सदैव उसके भीतर मैंडराती रहती है। यही कोमल ममता उसके हृदय को पीड़ा पहुँचाती है। इसके कारण उसकी आत्मा बहुत कमजोर और असमर्थ हो गई है। उसे भविष्य में होने वाली अनहोनी से डर लगने लगा है। उसे भीतर-ही-भीतर यह डर लगने लगा है कि कभी उसे अपनी प्रियतमा (माँ या प्रिया) प्रभाव से अलग होना पड़ा तो वह अपना अस्तित्व कैसे बचाए रख सकेगा। अब उसे उसका बहलाना, सहलाना और रह-रहकर अपनापन जताना सहन नहीं होता। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है।
विशेष-

(i) कवि अत्यधिक मोह से अलग होना चाहता है।
(ii) संबोधन शैली है।
(iii) खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है, जिसमें तत्सम शब्दों की बहुलता है।
(iv) अंधकार-अमावस्या निराशा के प्रतीक हैं।
(v) ‘ममता के बादल’, ‘दक्षिण ध्रुव अंधकार-अमावस्या’ में रूपक अलंकार,’छटपटाती छाती’ में अनुप्रास अलंकार, तथा ‘बहलाती-सहलाती’ में स्वर मैत्री अलंकार है।
(vi) कोमलता व आत्मीयता का मानवीकरण किया गया है।
(vii) ‘सहा नहीं जाता है’ की पुनरुक्ति से दर्द की गहराई का पता चलता है।

प्रश्न

(क) कवि क्या दंड चाहता हैं और क्यों ?
(ख) कवि अपने जीवन में क्या चाहता है ?
(ग)  कवि को क्या सहन नहीं होता?
(घ)  कवि की आत्मा कैसे हो गई है तथा क्यों ?

उत्तर-

(क) कवि अपनी प्रियतमा (सबसे प्यारी स्त्री)को भूलने का दंड चाहता है क्योंकि उसके अत्यधिक स्नेह के कारण उसकी आत्मा कमजोर हो गई है। उसका अपराधबोध से दबा मन यह प्रेम सहन नहीं कर पा रहा है। उसका मन आत्मग्लानि से भर उठता है।
(ख) कवि चाहता है कि उसके जीवन में अमावस्या और दक्षिणी ध्रुव के समान गहरा अंधकार छा जाए। वस्तुत: वह अपने प्रिय को भूलना चाहता है तथा उसके विस्मरण को शरीर, मुख और हृदय में बसाकर उसमें डूब जाना चाहता है।
(ग) कवि की प्रियतमा (यानी सबसे प्रिय स्त्री) के स्नेह का उजाला अत्यंत रमणीय है। कवि का व्यक्तित्व चारों ओर से उसके स्नेह से घिर गया है। इस अद्भुत, निश्छल और उज्ज्वल प्रेम के प्रकाश को उसका मन सहन नहीं कर पा रहा है।
(घ) कवि की आत्मा अत्यंत कमजोर हो गई है क्योंकि वह अपनी प्यारी स्त्री के अत्यधिक स्नेह के कारण पराश्रित हो गया है। यह स्नेह उसके मन को अंदर-ही-अंदर पीड़ित कर रहा है। दुख से छटपटाता किसी अनहोनी की कल्पना मात्र से ही उसका मन काँप उठता है।

4.

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता हैं, होता-सा संभव हैं
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकार है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा हैं।  (पृष्ठ-32)

शब्दार्थ–पाताली आँधेरा- धरती की गहराई में पाई जाने वाली धुंध। गुहा- गुफा। विवर- बिल। लापता- गायब। कारण- मूल प्रेरणा। घेरा- फैलाव। वैभव-समृद्ध।
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2‘ में संकलित कविता ‘सहर्ष स्वीकारा है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ हैं। इस कविता में कवि ने जीवन में दुख-सुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है।
व्याख्या- कवि कहता है कि मैं अपनी प्रियतमा (सबसे प्यारी स्त्री) के स्नेह से दूर होना चाहता हूँ। वह उसी से दंड की याचना करता है। वह ऐसा दंड चाहता है कि प्रियतमा के न होने से वह पाताल की अँधेरी गुफाओं व सुरंगों में खो जाए। ऐसी जगहों पर स्वयं का अस्तित्व भी अनुभव नहीं होता या फिर वह धुएँ के बादलों के समान गहन अंधकार में लापता हो जाए जो उसके न होने से बना हो। ऐसी जगहों पर भी उसे अपने सर्वाधिक प्रिय स्त्री का ही सहारा है। उसके जीवन में जो कुछ भी है या जो कुछ उसे अपना-सा लगता है, वह सब उसके कारण है। उसकी सत्ता, स्थितियाँ भविष्य की उन्नति या अवनति की सभी संभावनाएँ प्रियतमा के कारण हैं। कवि का हर्ष-विषाद, उन्नति-अवनति सदा उससे ही संबंधित हैं। कवि ने हर सुख-दुख, सफलता-असफलता को प्रसन्नतापूर्वक इसलिए स्वीकार किया है क्योंकि प्रियतमा ने उन सबको अपना माना है। वे कवि के जीवन से पूरी तरह जुड़ी हुई हैं।
विशेष-

(i) कवि ने अपने व्यक्तित्व के निर्माण में प्रियतमा के योगदान को स्वीकार किया है।
(ii) ‘पाताली औधेरे’ व ‘धुएँ के बादल’ आदि उपमान विस्मृति के लिए प्रयुक्त हुए हैं।
(iii) ‘दंड दो’ में अनुप्रास अलंकार है।
(iv) ‘लापता कि . सहारा है!’ में विरोधाभास अलंकार है।
(v) काव्यांश में खड़ी बोली का प्रयोग है।
(vi) मुक्तक छंद है।

प्रश्न

(क) कवि दड पाने की इच्छा क्यों रखता हैं?
(ख) कवि दड-स्वरूप कहाँ जाना चाहता हैं और क्यों?
(ग) प्रियतमा के बारे में कवि क्या अनुभव करता है?
(घ) कवि को जीवन की हर दशा सहर्ष क्यों स्वीकार है?

उत्तर-

(क) कवि अपनी प्रियतमा के बिना अकेला रहना सीखना चाहता है। वह गुमनामी के अँधेरे में खोना चाहता है। प्रिया के अत्यधिक स्नेह ने कवि को भीतर से कमजोर बना दिया है। कवि स्वयं को अपनी प्रियतमा का दोषी मानता है, अत: वह दंड पाना चाहता है।
(ख) कवि दंड स्वरूप गहन अंधकार वाली गुफाओं, सुरंगों या धुएँ के बादलों में छिप जाना चाहता है। इससे वह अपनी प्रियतमा से दूर रह पाएगा और अकेला रहना सीख सकेगा।
(ग) कवि को अपनी प्रियतमा के बारे में यह अनुभव है कि उसके जीवन की हर गतिविधि पर उसका प्रभाव है। उसके जीवन में जो कुछ घटित होने वाला है, उन सब पर उसकी प्रियतमा की अदृश्य छाया है।
(घ) कवि ने अपने जीवन के सुख-दुख, सफलताएँ-असफलताएँ सभी कुछ खुशी-खुशी अपनाया है क्योंकि ये उसकी प्रियतमा को अच्छे लगते हैं और उन्हें अस्वीकार करना कवि के लिए असंभव है।

काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

निम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

1.

गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृदूढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिका है, मौलिका है।

प्रश्न

(क) ‘गरीबी‘ के लिए ‘गरबीली‘ विशेषण के प्रयोग से कवि का क्या आशय है ? स्पष्ट कीजिए ?
(ख) ‘भीतर की सरिता’ क्या है ? ‘ मौलिका है, मौलिका है  ‘के’ दोहराव से कथन में क्या विशेषता आ गई है।
(ग) काव्यांश की भाषा पर संक्षिप्त टिपण्णी कीजिए ?

उत्तर-

(क) कवि ने ‘गरीबी’ के लिए ‘गरबीली’ विशेषण का प्रयोग किया है। ‘गरबीली’ से तात्पर्य ‘स्वाभिमान’ से है। वह गरीबी को महिमामंडित करना चाहता है। उसे अपनी गरीबी भी प्रिय है।
(ख) ‘भीतर की सरिता’ का अर्थ है-कवि के हृदय की असंख्य कोमल भावनाएँ। कवि के मन में प्रिया के प्रति अनेक भावनाएँ उमड़ती रहती हैं ‘मौलिक है, मौलिक है’ के दोहराव से कवि अनुभूतियों की गहनता व्यक्त करता है।
(ग) कवि ने गरबीली, गंभीर आदि विशेषणों का सुंदर प्रयोग किया है। ‘भीतर की सरिता’ लाक्षणिक प्रयोग है। ‘विचार वैभव’ में अनुप्रास अलंकार है। भावानुकूल तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।

2.

जाने क्या रिश्ता हैं, जाने क्या नाता हैं
जितना भी ऊँड़ेलता हूँ भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता हैं
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा हैं!

प्रश्न

(क) भाव–संदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) अलकार-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग)  भाषागत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर-

(क) इन पंक्तियों द्वारा कवि के भावना प्रधान व्यक्तित्व का पता चलता है। वह अपने हृदय को मीठे जल के स्रोत के समान मानता है, जिसमें प्रेम जल कभी समाप्त नहीं होता। वह अपनी प्रियतमा से असीम प्रेम करता है। वह जितना प्रेम व्यक्त करता है, उतना ही वह बढ़ता जाता है। वह अपनी प्रियतमा की तुलना चाँद से करता है।
(ख) ‘जितना भी उँड़ेलता हूँ भर-भर फिर आता है’ में विरोधाभास अलंकार है। ‘जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है’ में प्रश्न अलंकार है। ‘भर-भर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। ‘मुसकाता ’ रात-भर’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है। ‘त्यों तुम्हारा’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ग)

● सरल, सहज, भावानुकूल साहित्यिक खड़ी बोली है जो भावाभिव्यक्ति में समर्थ है।
● काव्य की रचना मुक्त छंद में हैं।
● भाषा में चित्रात्मकता का गुण विद्यमान है।

3.

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ में भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अधिकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ में
झलूँ मैं , उसी मैं  नहा लूँ  मैं 
इसलिए कि तुमसे ही परिवेटित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है । 
नहीं सहा जाता है । 

प्रश्न

(क) अमावस्या के लिए प्रयुक्त विशेषणों से काव्यार्थ में क्या विशेषता आई हैं?
(ख) ‘मैं तुम्हें भूल जाना चाहता हूँ’- इस सामान्य कथन को व्यक्त करने के लिए कवि ने क्या युक्ति अपनाई हैं?
(ग) कवांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-

(क) कवि ने ‘अमावस्या’ के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी अंधकार’ विशेषण का प्रयोग किया है। इससे कवि का अपराध बोध व्यक्त होता है। वह दक्षिणी ध्रुव के अंधकार में स्वयं को विलीन करना चाहता है ताकि प्रियतमा से अलग रह सके।
(ख) कवि ने इस सामान्य कथन को कहने के लिए स्वयं को दक्षिण ध्रुवी अंधकार अमावस्या में लीन करने की बात कही है। उसने स्वयं को भूलने के लिए इस युक्ति का प्रयोग किया है।
(ग)

० कवि ने खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति की है।
० तत्सम शब्दावली का सुंदर प्रयोग है।
० ‘अमावस्या’, ‘अंधकार’ निराशा के प्रतीक हैं।
० ‘दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या’ में रूपक अलंकार है।
० ‘अंधकार-अमावस्था’ में अनुप्रास अलंकार है।

4.

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली आँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
लापता की वहाँ भी तो तुहारा ही सहारा है । [
CBSE (Foreign), 2014]

प्रश्न

(क) काव्याश का भाव-संदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्याश में प्रयुक्त किन्हीं दो प्रतीकों का प्रयोग-सौंदर्य समझाइए।
(ग) काव्यांश के भाषा-वैशिष्ट्रय पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर-

(क) कवि अपनी प्रियतमा के स्नेह से आच्छादित है। वह मानता है कि पाताल के गहन अंधकार में एकांतवास की अवधि में भी उसे प्रिया का ही सहारा मिलेगा। वहाँ भी उसकी यादें उसके साथ होंगी, जिनके सहारे वह जीवन बिताएगा। इससे उसके प्रेम की गहराई का पता चलता है।
(ख) ‘…….. . पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में’-शांत एवं एकांत स्थान का प्रतीक है और ‘धुएँ के बादलों में’-घोर एवं गहन औधेरे स्थान का प्रतीक है। इन स्थानों पर भी वह अपनी प्रिया की यादों के सहारे समय बिता लेगा।
(ग)

० कवि ने संबोधन शैली का प्रयोग किया है।
० ‘लापता कि ……… . सहारा है!!’ में विरोधाभास अलंकार है।
० ‘पाताली अँधेरी गुफाओं’, ‘विवर’ आदि शब्दों से अपराध बोध व्यक्त होता है।
० तत्सम शब्दावली का प्रयोग है।
० व्यंजना शब्द-शक्ति है।
० विशेषणों का सुंदर प्रयोग है।

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

कविता के साथ

1. टिपण्णी कीजिए : गरबीली गरबी, भीतर की सरिता, बहलाती – सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल।  [CBSE (Outside), 2011] (C)]

उत्तर-
गरबीली गरीबी-इससे तात्पर्य है कि गरीबी में भी स्वाभिमान को बचाए रखना, किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना। अपने को दीन रूप में प्रस्तुत न करना। अपने कर्म पर विश्वास करना। भीतर की सरिता-से अभिप्राय मानवीय संवेदना से है। जिस व्यक्ति के मन में संवेदनाओं की नदी नहीं होगी वह मानव हो ही नहीं सकता। वह तो स्वार्थी और अहंकारी होगा। बहलाती सहलाती आत्मीयता-कवि कहता है कि सर्वहारा वर्ग के प्रति मेरी सहानुभूति ही मुझे बहलाती और सहलाती है कि मैं स्वार्थी न बनें। इसी सहानुभूति ने मुझे इस वर्ग से जोड़ रखा है। ममता के बादल-इससे कवि का तात्पर्य है कि मेरे मन में ममता रूपी बादल उँमड़ते रहते हैं। इन्हीं के कारण मेरा मन सर्वहारा वर्ग से जुड़े रहना चाहता है। कवि कहता है कि ममता के बादलों ने ही मुझे इस वर्ग से रिश्ता बनाए रखने को प्रेरित किया।

2. इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग है। एसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख करके उस पर टिप्पणी करें।

उत्तर-

इस कविता में अनेक पद टिप्पणी योग्य हैं। ऐसा ही एक पद है-दिल में क्या झरना है?-इसका अर्थ यह है कि जिस प्रकार झरने में चारों तरफ की पहाड़ियों से पानी इकट्ठा हो जाता है, उसे आप जितना चाहे खाली करने का प्रयास करें, वह खाली नहीं होता यह झरना पर्वत या पहाड़ी के दिल के पानी से बनता है, उसी प्रकार कवि के हृदय में भी प्रियतमा के प्रति स्नेह उमड़ता है। वह बार-बार अपनी भावनाएँ व्यक्त करता है, परंतु भावनाएँ कम होने की बजाय और अधिक उमड़कर आ जाती हैं। कवि कहना चाहता है कि उसके मन में प्रियतमा के प्रति अत्यधिक प्रेम है। वह झरने के समान है, जो कभी समाप्त नहीं होता।

3. व्याख्या कीजिए :

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है।
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा हैं!

उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार- अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है ?

उत्तर-
कवि सर्वहारा वर्ग के दुख देख देखकर परेशान हो गया है। उनके अंतहीन दुख उसे अब दुख देते हैं। इस कारण वह
चाहता है कि किसी तरह इनसे मुक्ति पा ली जाए। वह इन दुखों को उसी तरह भूल जाना चाहता है जिस प्रकार दक्षिण ध्रुवी अमावस्या में चाँद दिखाई नहीं देता। कवि कहता है कि चाँद भी तभी दिखाई देना बंद करता है जब वह बादलों से
ढक जाए। इसी तरह मैं भी तभी इस वर्ग से दूर होऊँगा जब मैं स्वार्थी बन जाऊँगा।

4.

तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अधिकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए की तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है ।
(क) यहाँ अंधकार-अमावस्या के लिए क्या विशेषण इस्तेमाल किया गया है और उससे विशेष्य में क्या अर्थ जुड़ता हैं ।
(ख) कवि ने व्यक्तिगत संदर्भ में किस स्थिति को अमावस्या कहा हैं?
(ग) इस स्थिति से ठीक  वाले शब्द का व्याख्यापूवक उल्लेख करें
(घ) कवि अपने संबोध्य (जिसको कविता संबोधित हैं कविता का ‘तुम) को पूरी तरह भूल जाना चाहता है। इस बात को प्रभावी तरीके से व्यक्त करने के लिए कवि ने क्या युक्ति अपनाई हैं? रेखांकित अंशों को ध्यान में रखकर उत्तर दें।

उत्तर-

(क) यहाँ ‘अंधकार-अमावस्या’ के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी’ विशेषण का इस्तेमाल किया गया है। इसके प्रयोग से अंधकार का घनत्व और अधिक बढ़ जाता है।
(ख) कवि व्यक्तिगत संदर्भ में अंधकार को अपने शरीर व हृदय में बसा लेना चाहता है ताकि वह प्रियतमा के स्नेह से स्वयं को दूर कर सके। वह एकाकी जीवन जीना चाहता है। इसे ही उसने अमावस्या कहा है।
(ग) इस स्थिति से ठीक विपरीत ठहरने वाली स्थिति निम्नलिखित है ‘तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित रहने का रमणीय यह उजेला’ कवि ने प्रियतमा की आभा से सदैव घिरे रहने की स्थिति को उजाले के रूप में व्यक्त किया है। उजाला मनुष्य को मार्ग दिखाता है। इसी तरह प्रिया का स्नेह रूपी उजाला उसे जीवन-पथ पर चलने के लिए प्रोत्साहित करता है।
(घ) कवि अपने संबोध्य को पूरी तरह भूल जाना चाहता है। अपनी बात को प्रभावी ढंग से व्यक्त करने के लिए वह प्रियतमा को भूल जाने, उसके प्रभाव को शरीर और हृदय में उतार लेने, झेलने और नहा लेने की युक्ति अपनाता है। वह अंधकार में इस प्रकार लीन होना चाहता है कि प्रियतमा की स्मृति रूपी प्रकाश की किरण उसे छू न सके।

5. ‘बहलाती-सहलाती आत्मीयता बरदाश्ता नहीं होती है‘ और कविता के’ शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है ‘  में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं। चर्चा कीजिए।

उत्तर-
एक ओर तो कवि सर्वहारा वर्ग के दुखों के प्रति सहानुभूति जताता है। वह कहता है कि उनके यही दुख मुझे बहला लेते हैं और सहला लेते हैं। लेकिन दूसरी ओर वह यह कहता है कि मैंने अपने जीवन के सभी दुखों को सहर्ष स्वीकार किया है। वास्तव में यह अंतर्विरोध दुखों की अधिकता के कारण है। जब दुखों ने कवि को ज्यादा दुखी कर दिया तो वह उससे उकता गया।

कविता के आस-पास

1. अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक हैं? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक जरूरी कष्ट हैं, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाएँ।
उत्तर-
वास्तव में कई कष्ट मानव को झेलने जरूरी होते हैं। मनुष्य संवेदना के कारण ये कष्ट झेलता है। जब किसी से आत्मीय लगाव हो जाए तो इस प्रकार के कष्ट होने स्वाभाविक हैं। हमारा संबंध कईयों से होता है। प्रत्येक व्यक्ति एक ही समय में कई रिश्तों को निभाता है इसलिए वह इन ज़रूरी कष्टों को भोगता है। ऐसे कष्टों की सूची इस प्रकार है

  • बेटी की विदाई का कष्ट
  • माँ-बाप के बिछुड़ने का कष्ट
  • भाई, बेटा-बेटी के बिछुड़ने का कष्ट
  • स्कूल जाने के कारण परिवार वालों से दूर होने का कष्ट।
  • अध्यापक/अध्यापिका द्वारा पीटे जाने का कष्ट।

2. ‘प्रेरणा’ शब्द पर सोचिए और उसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई
महपुरुष/महानारी आपके औधेरे क्षणों में प्रकाश भर गए।
उत्तर-
विद्यार्थी स्वयं करें।

3. ‘ भय ‘ शब्द पर सोचिए । सोचिए  की मन में किन-किन चीज़ों का भय बैठ है । उससे निपटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की  तुलना कीजिए।
उत्तर-
मेरे मन में केवल इस चीज़ का भय है कि शोषक लोग कब तक शोषण करते रहेंगे? क्या इनका यह क्रूर चक्र कभी चलना बंद होगा? इस भय को दूर करने के लिए मेरी सहानुभूति उन लोगों के साथ हमेशा रही है जो शोषण सहते हैं।

उन्हें किसी न किसी तरीके से इस शोषण से मुक्ति दिलाने का प्रयास करता हूँ। कवि की मन:स्थिति मेरी ही मन:स्थिति है। जो कुछ कवि सोचता है ठीक मैं भी वैसा ही सोचता हूँ। कवि कहता है कि किसी तरह सर्वहारा वर्ग के कष्ट दूर हो जाएँ, वे भी अपने कष्टों से मुक्त हो जाएँ। उन्हें पूँजीपति तंग न करें। मेरी सोच भी कवि की तरह है।

अन्य हल प्रश्न

लघूत्तरात्मक प्रश्न

1. कवि के जीवन में ऐसा क्या-क्या है जिसे उसने सहर्ष स्वीकारा है? [CBSE (Delhi), 2009]
उत्तर-
कवि ने जीवन के सुख-दुख की अनुभूतियों को सहर्ष स्वीकारा है। उसके पास गर्वीली गरीबी है, जीवन के गहरे अनुभव हैं, विचारों का वैभव, भावनाओं की बहती सरिता है, व्यक्तित्व की दृढ़ता है तथा प्रिय का प्रेम है। ये सब उसकी प्रियतमा को पसंद हैं, इसलिए उसे ये सब सहर्ष स्वीकार हैं।

2. मुक्तिबोध की कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने किसे सहर्ष स्वीकार था।  आगे चलकर वह उसी को क्यों भूलना चाहता था? [CBSE (Outside), 2009]
उत्तर-
कवि ने अपने जीवन में सुखद-दुखद, कटु, मधुर, व्यक्तित्व की दृढ़ता व मीठे-तीखे अनुभव आदि को सहर्ष स्वीकारा है क्योंकि वह इन सबको अपनी प्रियतमा के साथ जुड़ा पाता है। कवि का जीवन प्रियतमा के स्नेह से आच्छादित है। वह अतिशय भावुकता व संवेदनशीलता से तंग आ चुका है। इससे छुटकारा पाने के लिए वह विस्मृति के अंधकार में खो जाना चाहता है।

3. ‘सहर्ष स्वीकारा हैं’ के कवि ने जिस चाँदनी को सहर्ष स्वीकारा था, उससे मुक्ति पाने के लिए वह अंग-अंग में अमावस की चाह क्यों कर रहा है? [CBSE (Foreign), 2009]
उत्तर-
कवि अपनी प्रियतमा के अतिशय स्नेह, भावुकता के कारण परेशान हो गया। अब वह अकेले जीना चाहता है ताकि मुसीबत आने पर उसका सामना कर सके। वह आत्मनिर्भर बनना चाहता है। यह तभी हो सकता है, जब वह प्रियतमा के स्नेह से मुक्ति पा सके। अत: वह अपने अंग-अंग में अमावस की चाह कर रहा है ताकि प्रिया के स्नेह को भूल सके।

4. ‘सहर्ष स्वीकारा है‘ कविता का प्रतिपाद्य बतायिए।
उत्तर-
सहर्ष स्वीकारा है’ कविता गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ के काव्य-संग्रह ‘भूरी-भूरी खाक-धूल’ से ली गई है। इसमें कवि ने अपने जीवन के समस्त अनुभवों, सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक आदि स्थितियों को सहर्ष स्वीकारने की बात कहता है, क्योंकि इन सभी के साथ वह अपनी प्रियतमा का जुड़ाव अनुभव करता है। उसका जो कुछ है वह सब उसकी प्रियतमा को अच्छा लगता है। कवि अपनी स्वाभिमानयुक्त गरीबी, जीवन के गंभीर अनुभव, व्यक्तित्व की दृढ़ता, मन में उठती भावनाएँ जीवन में मिली उपलब्धियाँ सभी के लिए अपनी प्रियतमा को प्रेरक मानता है। कवि को लगता है कि वह अपनी प्रियतमा के प्रेम के प्रभावस्वरूप कमजोर पड़ता जा रहा है। उसे अपना भविष्य अंधकारमय लगता है। वह अंधकारमय गुफा में एकाकी जीवन जीना चाहता है, इसके लिए वह अपनी प्रियतमा को पूरी तरह से भूल जाना चाहता है।

स्वयं करें

  1. कवि के पास जो कुछ भी है वह सब विशिष्ट और मौलिक क्यों है?’सहर्ष स्वीकारा है’ कविता के आधार पर उत्तर दीजिए।
  2. कवि को लगता है कि शायद उसके दिल में झरना है जिसमें मीठे जल का स्रोत है। ऐसा क्यों?
  3. ‘भीतर वह, ऊपर तुम’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
  4. कवि कौन-सा दंड पाना चाहता है और क्यों?
  5. ‘सुखद-मधुर स्थिति’ आम आदमी को अच्छी लगती है पर कवि के लिए यही स्थिति असहय बन गई है, ऐसा क्यों?
  6. कवि कहाँ लापता होना चाहता है और क्यों? वहाँ भी उसके साथ कौन होगा?
  7. कवि अतीत, वर्तमान और भविष्य की सभी उपलब्धियों को किस भाव से स्वीकारता है तथा इसके क्या कारण हो सकते हैं?
  8. निम्नलिखित काव्यांशों के आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

(अ) जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ मेरा है।
वह सब तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब।
(क) भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) भाषागत दो विशेताएँ लिखिए। 
(ग)  ‘ गरबीली गरीबी ‘ कासौंदर्य स्पष्ट दीजिए। 

(ब) सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में बिलकुल मैं लापता।
(क) काव्यांश का स्पष्ट दीजिए। 
(ख) भाषिक-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
(ग) ‘पाताली आँधेरे की गुहाओं में विवरों में” के प्रयोग से काव्य-सौंदर्य में क्या विशिष्टता आ गई है ?

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