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Miya Nasiruddin Class 11 Question Answer NCERT Solutions

Contents

NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 12 – गद्य भाग – मियाँ नसीरूद्दीन provide comprehensive guidance and support for students studying Hindi Aroh in Class 11. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication.

Class 11th Hindi Gadya Khand Chapter 12 Miya Nasiruddin Questions and Answers

मियाँ नसीरूद्दीन प्रश्न उत्तर

कक्षा 11 हिंदी आरोह के प्रश्न उत्तर पाठ 12

लेखिका परिचय

● जीवन परिचय-कृष्णा सोबती का जन्म 1925 ई. में पाकिस्तान के गुजरात नामक स्थान पर हुआ। इनकी शिक्षा लाहौर, शिमला व दिल्ली में हुई। इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया।

● रचनाएँ-कृष्णा सोबती ने अनेक विधाओं में लिखा। उनके कई उपन्यासों, लंबी कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दीर्घजीवी उपस्थिति सुनिश्चित की है। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास-जिंदगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय सरगम।
कहानी-संग्रह-डार से बिछुड़ी, मित्रों मरजानी, बादलों के घेरे, सूरजमुखी औधेरे के।
शब्दचित्र, संस्मरण-हम-हशमत, शब्दों के आलोक में।

● साहित्यिक परिचय-हिंदी कथा साहित्य में कृष्णा सोबती की विशिष्ट पहचान है। वे मानती हैं कि कम लिखना विशिष्ट लिखना है। यही कारण है कि उनके संयमित लेखन और साफ-सुथरी रचनात्मकता ने अपना एक नित नया पाठक वर्ग बनाया है। उन्होंने हिंदी साहित्य को कई ऐसे यादगार चरित्र दिए हैं, जिन्हें अमर कहा जा सकता है; जैसेमित्रो, शाहनी, हशमत आदि।
भारत-पाकिस्तान पर जिन लेखकों ने हिंदी में कालजयी रचनाएँ लिखीं, उनमें कृष्णा सोबती का नाम पहली कतार में रखा जाएगा। यह कहना उचित होगा कि यशपाल के झूठा-सच, राही मासूम रज़ा के आधा गाँव और भीष्म साहनी के तमस के साथ-साथ कृष्णा सोबती का जिंदगीनामा इस प्रसंग में विशिष्ट उपलब्धि है। संस्मरण के क्षेत्र में हम-हशमत कृति का विशिष्ट स्थान है। इसमें उन्होंने अपने ही एक-दूसरे व्यक्तित्व के रूप में हशमत नामक चरित्र का सृजन कर एक अद्भुत प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत किया है।
इनके भाषिक प्रयोग में विविधता है। उन्होंने हिंदी की कथा-भाषा को एक विलक्षण ताजगी दी है। संस्कृतनिष्ठ तत्समता, उर्दू का बाँकपन, पंजाबी की जिंदादिली, ये सब एक साथ उनकी रचनाओं में मौजूद हैं।

पाठ का सारांश

मियाँ नसीरुद्दीन शब्दचित्र हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज से रोट्री पकाने की कला और उसमें अपनी खानदानी महारत बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।

लेखिका बताती है कि एक दिन वह मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले की तरफ निकली तो एक अँधेरी व मामूली-सी दुकान पर आटे का ढेर सनते देखकर उसे कुछ जानने का मन हुआ। पूछताछ करने पर पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है। ये छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं। मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। उनके चेहरे पर अनुभव और आँखों में चुस्ती व माथे पर कारीगर के तेवर थे।

लेखिका के प्रश्न पूछने की बात पर उन्होंने अखबारों पर व्यंग्य किया। वे अखबार बनाने वाले व पढ़ने वाले दोनों को निठल्ला समझते हैं। लेखिका ने प्रश्न पूछा कि आपने इतनी तरह की रोटियाँ बनाने का गुण कहाँ से सीखा? उन्होंने बेपरवाही से जवाब दिया कि यह उनका खानदानी पेशा है। इनके वालिद मियाँ बरकत शाही नानबाई थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन थे। उन्होंने खानदानी शान का अहसास करते हुए बताया कि उन्होंने यह काम अपने पिता से सीखा।

नसीरुद्दीन ने बताया कि हमने यह सब मेहनत से सीखा। जिस तरह बच्चा पहले अलिफ से शुरू होकर आगे बढ़ता है या फिर कच्ची, पक्की, दूसरी से होते हुए ऊँची जमात में पहुँच जाता है, उसी तरह हमने भी छोटे-छोटे काम-बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी को आँच देना आदि करके यह हुनर पाया है। तालीम की तालीम भी बड़ी चीज होती है।

खानदान के नाम पर वे गर्व से फूल उठते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार बादशाह सलामत ने उनके बुर्जुगों से कहा कि ऐसी चीज बनाओ जो आग से न पके, न पानी से बने। उन्होंने ऐसी चीज बनाई और बादशाह को खूब पसंद आई। वे बड़ाई करते हैं कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। लेखिका ने इस कहावत की सच्चाई पर प्रश्नचिहन लगाया तो वे भड़क उठे। लेखिका जानना चाहती थी कि उनके बुजुर्ग किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। अब उनका स्वर बदल गया। वे बादशाह का नाम स्वयं भी नहीं जानते थे। वे इधर-उधर की बातें करने लगे। अंत में खीझकर बोले कि आपको कौन-सा उस बादशाह के नाम चिट्ठी-पत्री भेजनी है।

लेखिका से पीछा छुड़ाने की गरज से उन्होंने बब्बन मियाँ को भट्टी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका ने उनके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे उन्हें मजदूरी देते हैं। लेखिका ने रोटियों की किस्में जानने की इच्छा जताई तो उन्होंने फटाफट नाम गिनवा दिए। फिर तुनक कर बोले-तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है। फिर वे यादों में खो गए और कहने लगे कि अब समय बदल गया है। अब खाने-पकाने का शौक पहले की तरह नहीं रह गया है और न अब कद्र करने वाले हैं। अब तो भारी और मोटी तंदूरी रोटी का बोलबाला है। हर व्यक्ति जल्दी में है।

शब्दार्थ

पृष्ठ संख्या 22
साहबों-दोस्तों। अपन-हम। हज़ारों-हजार-अनगिनत। मसीहा-देवदूत। धूमधड़क्के-भीड़। नानबाई-रोटी बनाने और बेचने वाला। लुत्फ-आनंद। अंदाज-ढंग। आड़े-तिरछे। निहायत-बिल्कुल। पटापट-पट-पट की आवाज़। सनते-मलते। काइयाँ-चालाकी। पेशानी-माथा। तेवर-मुद्रा। पंचहज़ारी-पाँच हज़ार सैनिकों का अधिकारी। अखबारनवीस-पत्रकार। खुराफ़ात-शरारत।

पृष्ठ संख्या 23
निठल्ला-खाली। किस्म-प्रकार। इल्म-ज्ञान। हासिल-प्राप्त। कंचे-पुतली। तरेरकर-तानकर। नगीनासाज़-नगीना जड़ने वाला। आईनासाज-दर्पण बनाने वाला। मीनासाज-सोने-चाँदी पर रंग करने वाला। रफूगर-फटे कपड़ों के धागे जोड़कर पहले जैसा बनाने वाला। रँगरेज़-कपड़े रंगने वाला। तंबोली-पान लगाने वाला। फरमाना-कहना। खानदानी-पारिवारिक। पेशा-धंधा। वालिद-पिता। उस्ताद-गुरु। अख्तियार करना-स्वीकार करना।

पृष्ठ संख्या 24
हुनर-कला। मरहूम-स्वर्गीय उठ जाने-मृत्यु हो जाने। ठीया-जगह। लमहा-क्षण। आला-श्रेष्ठ। नसीहत-सीख। बजा फरमाना-ठीक कहना। कश खींचना-साँस खींचना। अलिफ-बे-जीम-फारसी लिपि के अक्षरों के नाम। सिर पर धरना-सिर पर मारना। शागिर्द-चेला। परवान करना-उन्नति की तरफ बढ़ना।

पृष्ठ संख्या 25
मदरसा-स्कूल। कच्ची-औपचारिक कक्षा, पहली कक्षा से पहले की पढ़ाई। जमात-श्रेणी। दागना-प्रश्न करना। मैंजे-कुशल तरीके से।

पृष्ठ संख्या 26
जिक्र-वर्णन। बहुतेरे-बहुत अधिक। चक्कर काटना-घूमते रहना। जहाँपनाह-राजा। रंग लाना-मजेदार बात कहना बेसब्री-अधीरता। रुखाई-रुखापन। इत्ता-इतना। गढ़ी-रची। करतब-कार्य।

पृष्ठ संख्या 27
लौंडिया-लड़की। रूमाली-रूमाल की तरह बड़ी और पतली रोटी। जहमत उठाना-कष्ट उठाना। कूच करना-मृत्यु होना। मोहलत-समय सीमा। मज़मून-विषय। शाही बावचीखाना-राजकीय भोजनालय। बेरुखी-उपेक्षा से। बाल की खाल उतारना-अधिक बारीकी में जाना। खिसियानी हँसी-शर्म से हँसना। वक्त-समय। खिल्ली उड़ाना-मज़ाक उडाना। रुक्का भेजना-संदेश भेजना।

पृष्ठ संख्या 28
बिटर-बिटर-एकटक। अंधड़-रेतीली आँधी, तीव्र भाव। आसार-संभावना। महीन-पतली। कौंधना-प्रकट होना। गुमशुदा-भूली हुई। कद्रदान-कला के पारखी।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. साहबों, उस दिन अपन मटियामहल की तरफ से न गुज़र जाते तो राजनीति, साहित्य और कला के हज़ारों-हज़ार मसीहों के धूम-धड़क्के में नानबाइयों के मसीहा मियाँ नसीरुद्दीन को कैसे तो पहचानते और कैसे उठाते लुत्फ उनके मसीही अदाज़ का!
हुआ यह कि हम एक दुपहरी जामा मस्जिद के आड़े पड़े मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले की ओर निकल गए। एक निहायत मामूली अँधेरी-सी दुकान पर पटापट आटे का ढेर सनते देख ठिठके। सोचा, सेवइयों की तैयारी होगी, पर पूछने पर मालूम हुआ खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान पर खड़े हैं। मियाँ मशहूर हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए। (पृष्ठ-22)

प्रश्न

  1. ‘हज़ारों-हज़ार मसीहों के धूम-धड़ाके ‘ से क्या अभिप्राय हैं?
  2. नानबाई किसे कहते हैं? यहाँ किस नानबाई का जिक्र हुआ है?
  3. मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान कहाँ स्थित थी?

उत्तर-

  1. इसका अभिप्राय यह है कि दिल्ली में राजनीति, साहित्य और कला में हजारों प्रतिभाशाली लोग अपनी प्रतिभा से हलचल बनाए रखते हैं।
  2. नानबाई उस व्यक्ति को कहते हैं जो कई तरह की रोटियाँ बनाने और बेचने का काम करता है। यहाँ मियाँ नसीरुद्दीन नामक खानदानी नानबाई का जिक्र हुआ है।
  3. मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान जामा मस्जिद के पास मटियामहल के गद्वैया मुहल्ले में थी।

2. मियाँ नसीरुद्दीन ने पंचहज़ारी अंदाज़ से सिर हिलाया-‘निकाल लेंगे वक्त थोड़ा, पर यह तो कहिए, आपको पूछना क्या है? ‘फिर घूरकर देखा और जोड़ा-‘मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोजियों की खुराफात है। हम तो अखबार बनानेवाले और अखबार पढ़नेवाले-दोनों को ही निठल्ला समझते हैं। हाँ-कामकाजी आदमी को इससे क्या काम है। खैर, आपने यहाँ तक आने की तकलीफ़ उठाई ही है तो पूछिए-क्या पूछना चाहते हैं!’ ” (पृष्ठ-22-23)

प्रश्न

  1. पचहजारी अदाज से क्या अभिप्राय है?
  2. मियाँ ने लेखिका को घूरकर क्यों देखा?
  3. अखबार वालों के बारे में उनकी क्या राय है?

उत्तर-

  1. पंचहजारी अंदाज-बड़े सेनापतियों जैसा अंदाज। मुगलों के समय में पाँच हजार सिपाहियों के अधिकारी को पंचहजारी कहते थे। यह ऊँचा पद होता था। नसीरुद्दीन में भी उस पद की तरह गर्व व अकड़ थी।
  2. मियाँ नसीरुद्दीन को शक था कि कहीं लेखिका अखबार वाली तो नहीं हैं। वे उन्हें खुराफाती मानते हैं जो खोज करते रहते हैं। इस कारण उन्होंने लेखिका को घूरकर देखा।
  3. अखबार वालों के बारे में मियाँ की राय पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। वे अखबार बनाने वालों के साथ-साथ अखबार पढ़ने वालों को भी निठल्ला मानते हैं। इससे लोगों को कोई फायदा नहीं मिलता।

3. मियाँ नसीरुद्दीन ने आँखों के कंचे हम पर फेर दिए। फिर तरेरकर बोले-‘क्या मतलब? पूछिए साहब-नानबाई इल्म लेने कहीं और जाएगा? क्या नगीनासाज़ के पास? क्या आईनासाज़ के पास? क्या मीनासाज़ के पास? या रफूगर, रैंगरेज़ या तेली-तंबोली से सीखने जाएगा? क्या फरमा दिया साहब-यह तो हमारा खानदानी पेशा ठहरा। हाँ, इल्म की बात पूछिए तो जो कुछ भी सीखा, अपने वालिद उस्ताद से ही। मतलब यह कि हम घर से न निकले कि कोई पेशा अख्तियार करेंगे। जो बाप-दादा का हुनर था, वही उनसे पाया और वालिद मरहूम के उठ जाने पर बैठे उन्हीं के ठीये पर!’ (पृष्ठ-23-24)

प्रश्न

1. मियाँ ने लखिका को अखें तरेरकर क्यों उत्तर दिया
2. मियाँ ने किन-किन खानदानी व्यवसायों का उदाहरण दिया? क्यों?
3. मियाँ ने नानबाई का काम क्यों किया?

उत्तर-

1. मियाँ से जब लेखिका ने पूछा कि आपने नानबाई का काम किससे सीखा तो उन्हें क्रोध आ गया। उन्हें यह प्रश्न ही गलत लगा। वे अपनी आँखें तरेरकर अपनी प्रतिक्रिया जता रहे थे।
2. मियाँ ने नगीनासाज़, आईनासाज़, मीनासाज़, रफूगर, रैंगरेज व तेली-तंबोली व्यवसायों का उदाहरण दिया। उन्होंने लेखिका को समझाया कि इन लोगों के पास नानबाई का ज्ञान नहीं है। खानदानी पेशे को अपने बुर्जुगों से ही सीखा जाता है।
3. मियाँ ने नानबाई का काम किया, क्योंकि यह उनका खानदानी पेशा था। इनके पिता व दादा मशहूर नानबाई थे। मियाँ ने भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाया।

4. मियाँ कुछ देर सोच में खोए रहे। सोचा पकवान पर रोशनी डालने को है कि नसीरुद्दीन साहिब बड़ी रुखाई से बोले-‘यह हम न बतावेंगे। बस, आप इत्ता समझ लीजिए कि एक कहावत है न कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। कहावत जब भी गढ़ी गई हो, हमारे बुजुर्गों के करतब पर ही पूरी उतरती है।’ मज़ा लेने के लिए टोका-‘कहावत यह सच्ची भी है कि.।’ मियाँ ने तरेरा-‘और क्या झूठी है? आप ही बताइए, रोटी पकाने में झूठ का क्या काम! झूठ से रोटी पकेगी? क्या पकती देखी है कभी! रोटी जनाब पकती है आँच से, समझे!’ (पृष्ठ-26)

प्रश्न

  1. मियाँ नसीरुद्दीन ने किस चीज के लिए कहा कि-यह हम न बतावेंगे?
  2. मियाँ किस सोच में खो गए?
  3. मियाँ किस बात का दावा करते हैं?

उत्तर-

  1. मियाँ नसीरुद्दीन ने अपने पुरखों के करतबों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने बादशाह को ऐसी चीज खिलाई जो न आग से और न पानी से पकी थी। लेखिका ने जब चीज का नाम पूछा तो उन्होंने बेरुखाई से नाम बताने से इंकार कर दिया।
  2. मियाँ से जब अद्भुत चीज के बारे में पूछा गया तो वे सोच में पड़ गए। वास्तव में मियाँ को ऐसी चीज के बारे में पता ही नहीं था। उन्होंने अपने बुजुर्गों की प्रशंसा के लिए यह बात कह दी थी।
  3. मियाँ इस बात का दावा करते हैं कि खानदानी नानबाई कुछ भी पका सकता है। रोटी आँच से पकती है, झूठ से नहीं।

5. ‘अजी साहिब, क्यों बाल की खाल निकालने पर तुले हैं!’ कह दिया न कि बादशाह के यहाँ काम करते थे-सो क्या काफी नहीं?’
हम खिसियानी हँसी हँसे-‘है तो काफ़ी, पर ज़रा नाम लेते तो उसे वक्त से मिला लेते।’
‘वक्त से मिला लेते-खूब! पर किसे मिलाते जनाब आप वक्त से?’-मियाँ हँसे जैसे हमारी खिल्ली उड़ाते हों।
‘वक्त से वक्त को किसी ने मिलाया है आज तक! खैर-पूछिए-किसका नाम जानना चाहते हैं? दिल्ली के बादशाह का ही ना! उनका नाम कौन नहीं जानता-जहाँपनाह बादशाह सलामत ही न!’ (पृष्ठ-27)

प्रश्न

  1. मियाँ किस बात से भड़क उठे?
  2. मियाँ लेखिका की बात से क्यों खीझ गए?
  3. लेखिका ने बादशाह का नाम क्यों पूछा?

उत्तर-

  1. मियाँ ने बताया कि उनके पूर्वज बादशाह के नानबाई थे तो लेखिका ने उनसे बादशाह का नाम पूछा। इस बात परवे भड़क उठे।
  2. लेखिका उनसे यह जानना चाहती थी कि उनके पूर्वज दिल्ली के किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। मियाँ को इसका जवाब नहीं पता था। लेखिका द्वारा बार-बार यह प्रश्न पूछे जाने पर वे खीझ उठे।
  3. लेखिका बादशाह का नाम जानना चाहती थी ताकि उसके समय से मियाँ के व्यवसाय के काल का पता चल सके और मियाँ के कथन की पुष्टि हो सके।

6. फिर तेवर चढ़ा हमें घूरकर कहा-‘तुनकी पापड़ से ज़्यादा महीन होती है, महीन। हाँ किसी दिन खिलाएँगे, आपको।’ एकाएक मियाँ की आँखों के आगे कुछ कौंध गया। एक लंबी साँस भरी और किसी गुमशुदा याद को ताज़ा करने को कहा-‘उतर गए वे ज़माने। और गए वे कद्रदान जो पकाने-खाने की कद्र करना जानते थे। मियाँ अब क्या रखा है. निकाली तंदूर से-निगली और हज़म!’ (पृष्ठ-28)
प्रश्न

  1. तुनकी क्या है? उसकी विशेषता बताइए।
  2. मियाँ के आगे क्या काँध गया?
  3. ‘उतर गए वे जमान।’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर-

  1. तुनकी विशेष प्रकार की रोटी है। यह पापड़ से भी अधिक पतली होती है।
  2. मियाँ को अपने पुराने जमाने के दिन याद आने लगे जब लोग उनकी दुकान से तरह-तरह की रोटियाँ लेने आते थे।
  3. इसका अर्थ है कि पहले जमाने में लोग कलाकारों की कद्र करते थे। वे पकाने वालों की मेहनत, कलाकारी, योग्यता आदि का मान करते थे। आज जमाना बदल गया। अब किसी के पास समय नहीं है। हर व्यक्ति केवल पेट भरने का काम करता है। उसे स्वाद की कोई परवाह नहीं है।

 

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

पाठ के साथ

प्रश्न 1:
मियाँ नसीरुददीन को नानबाइयों का मसीहा क्यों कहा गया है?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन को नानबाइयों का मसीहा कहा गया है क्योंकि वे मसीहाई अंदाज से रोटी पकाने की कला का बखान करते थे। वे नानबाई हुनर में माहिर थे। उन्हें छप्पन तरह की रोटियाँ बनानी आती थी। यह तीन पीढियों से उनका खानदानी पेशा था। उनके दादा और पिता बादशाह सलामत के यहाँ शाही बावर्ची खाने में बादशाह की खिदमत किया करते थे। मियाँ रोटी बनाने को कला मानते हैं तथा स्वयं को उस्ताद कहते हैं। उनका बातचीत करने का ढंग भी महान कलाकारों जैसा है।

प्रश्न 2:
लेखिका मियाँ नसीरुददीन के पास क्यों गई थी?
उत्तर-

लेखिका मियाँ नसीरुद्दीन के पास इसलिए गई थी ताकि वे रोटी बनाने की कारीगरी को जाने तथा उसे लोगों को बता सके। मियाँ छप्पन तरह की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर थे। वह उनकी इस कारीगरी का रहस्य भी जानना चाहती थी। इसलिए उसने मियाँ से अनेक प्रश्न पूछे।

प्रश्न 3:
बादशाह के नाम का प्रसंग आते ही लेखिका की बातों में मियाँ नसीरुददीन की दिलचस्पी क्यों खत्म होने
लगी?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन अपनी कला में माहिर सुप्रसिद्ध नानबाई थे। वे स्वभाव से बड़े बातूनी और अपनी तारीफ़ स्वयं करनेवाले भी थे। बातचीत के दौरान उन्होंने लेखक को बताया कि तीन पीढ़ियों से वे खानदानी नानबाई हैं। उनके दादा और वालिद मरहूम बादशाह सलामत के शाही बावर्चीखाने में ऐसे पकवान पकाया करते थे कि बादशाह सलामत खूब खाते और सराहते थे। इस पर लेखिका ने उनसे बादशाह का नाम पूछा तो वे नाराज होकर बोले क्या कीजिएगा? कोई चिट्ठी-रुक्का भेजना है? और यह कहकर वे उखड़ गए? ऐसा जान पड़ता है कि बादशाह के विषय में वे झूठ कह रहे थे। इसी कारण रुखाई से अपने काम में लग गए।

प्रश्न 4:
मियाँ नसीरुददीन के चेहरे पर किसी दबे हुए अंधड़ के आसार देख यह मजूमून न छेड़ने का फैसला किया-इस कथन के पहले और बाद के प्रसंग का उल्लेख करते हुए इसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
लेखिका ने मियाँ नसीरुद्दीन से बादशाह का नाम पूछा तो वे सही उत्तर नहीं दे पाए। लेखिका द्वारा बहादुरशाह जफ़र का नाम लेने पर वह चिढ़ गए और बोले कि यही नाम लिख लीजिए, आपको कौन-सी बादशाह के नाम चिट्ठी भेजनी है। वह लेखिका की बातों से उकता गए थे इसलिए उन्होंने उसे नज़रअंदाज़ करने के लिए अपने कारीगर बब्बन मियाँ को भट्ठी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका उनके बेटे-बेटियों के बारे में जानना चाहती थी, परंतु मियाँ को चिढ़ता देख वह चुप रह गई, फिर उसने पूछा कि कारीगर लोग आपकी शागिर्दी करते हैं? तो मियाँ ने गुस्से में उत्तर दिया कि खाली शागिर्दी ही नहीं, दो रुपये मन आटा और चार रुपये मन मैदा के हिसाब से इन्हें गिन-गिन कर मजूरी भी देता हूँ। लेखिका द्वारा रोटियों के नाम पूछने पर मियाँ ने पल्ला झाड़ते हुए कुछ रोटियों के नाम गिना दिए। इसके बाद लेखिका ने उनके चेहरे पर तनाव देखा।

प्रश्न 5:
पाठ में मियाँ नसीरुददीन का शब्दचित्र लेखिका ने कैसे खींचा है?

उत्तर-
पाठ में मियाँ नसीरुद्दीन का शब्दचित्र लेखिका ने इस प्रकार खींचा है-हमने जो अंदर झाँका तो पाया, मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी का मज़ा ले रहे हैं। मौसमों की मार से पका चेहरा, आँखों में काइयाँ, भोलापन और पेशानी पर मैंजे हुए कारीगर के तेवर।

पाठ के आस-पास

प्रश्न 1:
मियाँ नसीरुददीन की कौन-सी बातें आपको अच्छी लगीं?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन की सबसे अच्छी बात है–अपने हुनर में माहिर होना। आज जब अधिकांश लोग अपने पारंपरिक पेशे को छोड़ते जा रहे हैं तो ऐसे लोग ही कला को जीवित रखते हैं। दूसरी बात जो उन्होंने कही थी कि ‘सीख और शिक्षा क्या? काम तो करने से आता है’-कर्म करने में विश्वास रखना एक बड़ी बात है। आज लोग आरामतलबी में पड़कर अपनी क्षमता खो देते हैं, पर वे बुजुर्ग होकर भी व्यस्त थे। और तीसरी बात, वे अखबारवालों से दूर ही रहना पसंद करते थे।

प्रश्न 2:
तालीम की तालीम ही बड़ी चीज़ होती है-यहाँ लेखिका ने तालीम शब्द का दो बार प्रयोग क्यों किया है? क्या आप दूसरी बार आए तालीम शब्द की जगह कोई अन्य शब्द रख सकते हैं? लिखिए।

उत्तर-
यहाँ ‘तालीम’ शब्द का दो बार प्रयोग किया गया है। पहले ‘तालीम’ का अर्थ है-शिक्षा या प्रशिक्षण। दूसरे ‘तालीम’ का अर्थ है-पालन करना या आचरण करना। इसका अर्थ यह है कि जो शिक्षा पाई जाए, उसका पालन करना अधिक जरूरी है। दूसरी बार आए तालीम की जगह हम ‘पालन’ शब्द भी लिख सकते हैं।

प्रश्न 3:
मियाँ नसीरुददीन तीसरी पीढ़ी के हैं जिसने अपने खानदानी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान समय में प्राय: लोग अपने पारंपरिक व्यवसाय को नहीं अपना रहे हैं। ऐसा क्यों?

उत्तर-
आज के परिवेश में अनेक हुनरमंद लोग अपनी संतान को उसी कला को व्यवसाय बनाने की सलाह नहीं देते या संतान स्वयं ऐसा नहीं चाहती। इसका मुख्य कारण है कि खानदानी व्यवसाय में धन-लाभ के अवसर अपेक्षाकृत कम रहते हैं। दूसरा कारण यह भी है कि आजकल खानदानी हुनर के प्रशंसक नहीं रहे। आधुनिकता और भौतिकता के युग में कला को मान नहीं मिल रहा।

प्रश्न 4:
मियाँ, कहीं अखबारनवीस तो नहीं हो? यह तो खोज़ियों की खुराफात है-अखबार की भूमिका को देखते
हुए इस पर टिप्पणी करें।
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन के अनुसार अखबार बनाने वाला व पढ़ने वाला-दोनों निठल्ले हैं। उनका यह दृष्टिकोण गलत है। वे उन्हें खोजियों की खुराफ़ात कहते हैं। यह कथन ठीक है। पत्रकार नए-नए तथ्यों को प्रकाश में लाते हैं। इससे लोगों का शोषण खत्म होता है। नयी खोजों से ज्ञान का प्रसार होता है, परंतु निरर्थक या भ्रम फैलाने वाली बातों को तूल देना सामाजिक दृष्टि से गलत है। सनसनीखेज खबरों से शांति भंग होती है।

प्रश्न 5:
पकवानों को जानें

● पाठ में आए रोटियों के अलग-अलग नामों की सूची बनाएँ और इनके बारे में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर-
छात्र स्वयं करें।

भाषा की बात

प्रश्न 1:
तीन चार वाक्यों में अनुकूल प्रसंग तैयार कर नीचे दिए गए वाक्यों का इस्तेमाल करें-

(क) पचहज़ारी अदाज़ से सिर हिलाया।
(ख) अखों के कच्चे हम पर फेर दिए।
(ग) आ बैठे उन्हीं के ठीये पर।

उत्तर-

(क) हमारे पड़ोस में एक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति रहते थे। वे लोगों के हर कष्ट में साथ होते थे। समाजसेवा के कार्यों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे! मैंने एक दिन उनकी समाजसेवा की प्रशंसा की तो उन्होंने पंचहज़ारी अंदाज़ में सिर हिलाया।
(ख) इस पर वे अपने कार्यों की बड़ाई करने लगे। तभी मैंने उनके कुछ कारनामे बताए जिनमें वे समाज-सेवा के नाम अपनी सेवा करते हैं। इस पर वे बौखला गए और अपनी आँखों के कंचे हम पर फेर दिए।
(ग) वे सज्जन चाहे अपना फायदा देखते हों, परंतु समाज-सेवक अवश्य हैं। वे क्षेत्र के प्रसिद्ध समाज-सेवी के चेले हैं। उनके जाने के बाद वे उन्हीं के ठीये पर आ बैठे।

प्रश्न 2:
बिटर-बिटर देखना-यहाँ देखने के एक खास तरीके को प्रकट किया गया है? देखने संबंधी इस प्रकार के चार क्रियाविशेषणों का प्रयोग कर वाक्य बनाइए।
उत्तर-

  1. टुकुर-टुकुर देखना – बकरी सहमकर कसाई की ओर टुकुर-टुकुर देख रही थी।
  2. घूर-घूरकर देखना – दरोगा लगातार जुम्मन को घूर घूरकर देख रहा था।
  3. चोरी-चोरी देखना – तुम जब भी मुझे चोरी-चोरी देखते हो, मुझे अच्छा लगता है।
  4. कनखियों से देखना – वह मुझे कभी मुँह उठाकर नहीं देखता, जब भी देखता है, कनखियों से देखता है।

प्रश्न 3:
नीचे दिए वाक्यों में अर्थ पर बल देने के लिए शब्द-क्रम परिवर्तित किया गया है। सामान्यत: इन वाक्यों को किस क्रम में लिखा जाता है? लिखें।

(क) मियाँ मशहूर हैं छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए।
(ख) निकाल लगे वक्त थोड़ा।
(ग) दिमाग में चक्कर काट गई है बात।
(घ) रोटी जनाब पकती हैं अच स।

उत्तर-

(क) मियाँ छप्पन किस्म की रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं।
(ख) थोड़ा वक्त निकाल लेंगे।
(ग) बात दिमाग में चक्कर काट गई है।
(घ) जनाब! रोटी आँच से पकती है।

अन्य हल प्रश्न

● बोधात्मक प्रशन

प्रश्न 1:
‘मियाँ नसीरुददीन’ पाठ का प्रतिपादय बताइए।
उत्तर-

मियाँ नसीरुददीन शब्दचित्र हम-हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज़ से रोटी पकाने की कला और उसमें अपने खानदानी महारत को बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो དེ། ། अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं।

प्रश्न 2:
मियाँ नसीरुददीन के मन में कौन-सा दर्द छिपा है?

उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन को लोगों की बदली रुचि से दुख है। पहले लोग कला की कद्र करते थे। वे पकाने वाले का सम्मान भी करते थे। अब जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है। कमाने के साथ चलने की होड़ मची है। ऐसे में खाने वाला और पकाने वाला-दोनों जल्दी में हैं। इस दृष्टिकोण के कारण देश की पुरानी कलाएँ दम तोड़ रही हैं।

प्रश्न 3:
अखबार वालों के प्रति मियाँ नसीरुददीन का दृष्टिकोण कैसा है?

उत्तर-
मियाँ नसीरूददीन का मानना है कि अखबार छापने वाले व पढ़ने वाले-दोनों बेकार होते हैं। ये वक्त खराब करते हैं। वे खबरों को मसाला लगाकर छापते हैं। मियाँ अखबार पढ़ने से ज्यादा महत्व काम को देते हैं। वे अखबारों की खोजी प्रवृत्ति से भी चिढ़ते हैं।

प्रश्न 4:
मियाँ नसीरुददीन के अनुसार सच्ची तालीम क्या है?
उत्तर-
मियाँ नसीरुद्दीन के अनुसार सच्ची तालीम व्यावहारिक प्रशिक्षण है। यदि वे बर्तन माँजना, भट्ठी सुलगाना नहीं सीखते तो वे अच्छे नानबाई नहीं बन पाते। केवल कागजी या जबानी बातों से काम नहीं सीखा जाता है। शिक्षा को अपनाना अधिक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 4:
मियाँ ने पढ़ाई के कितने तरीके बताए हैं?
उत्तर-

मियाँ ने पढ़ाई के दो तरीके बताएँ हैं-पहला किताबी, दूसरा व्यावहारिक। पहले तरीके में उस्ताद चेले को एक-एक शब्द का उच्चारण करवाकर पढ़ाता है। दूसरे तरीके में काम करते हुए सिखाया जाता है। इसमें छोटे काम पहले करवाए जाते हैं, फिर बड़े काम सिखाए जाते हैं।

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