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NCERT Solutions for Class 11 Hindi Aroh Chapter 17 – गद्य भाग – रजनी provide comprehensive guidance and support for students studying Hindi Aroh in Class 11. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication.
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Aroh Chapter 17 – गद्य भाग – रजनी
लेखिका परिचय
● जीवन परिचय-मन्नू भंडारी का जन्म 1931 ई. में मध्यप्रदेश के भानपुरा में हुआ। इनकी आरंभिक शिक्षा अजमेर में हुई। इन्होंने एम.ए. (हिंदी) की परीक्षा काशी हिंदू विश्वविद्यालय से उत्तीर्ण की। इन्होंने कोलकाता तथा दिल्ली के मिरांडा हाऊस में बतौर प्राध्यापिका के पद पर कार्य किया। इनकी साहित्यिक उपलब्धियों को देखते हुए इन्हें कई संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत किया गया। इन्हें हिंदी अकादमी, दिल्ली के शिखर सम्मान, बिहार सरकार, कोलकाता की भारतीय भाषा परिषद्, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा सम्मानित किया गया।
● रचनाएँ-इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं—
कहानी-संग्रह-एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, आँखों देखा झूठ।
उपन्यास-आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान (राजेंद्र यादव के साथ)।
पटकथाएँ-रजनी, निर्मला, स्वामी, दर्पण।
● साहित्यिक विशेषताएँ-मन्नू भंडारी हिंदी कहानी में उस समय सक्रिय हुई जब नई कहानी आंदोलन अपने उठान पर था। उनकी कहानियों में कहीं पारिवारिक जीवन, कहीं नारी-जीवन और कहीं समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन की विसंगतियाँ विशेष आत्मीय अंदाज़ में अभिव्यक्त हुई हैं। उन्होंने आक्रोश, व्यंग्य और संवेदना को मनोवैज्ञानिक रचनात्मक आधार दिया है-वह चाहे कहानी हो, उपन्यास हो या फिर पटकथा ही क्यों न हो। उनका मानना है-
‘‘लोकप्रियता कभी भी रचना का मानक नहीं बन सकती। असली मानक तो होता हैं रचनाकार का दायित्वबोध, उसके सरोकार, उसकी जीवन दृष्टि।”
पाठ का साराशी
पटकथा यानी पट या स्क्रीन के लिए लिखी गई वह कथा रजत पट अर्थात् फिल्म की स्क्रीन के लिए भी हो सकती है और टेलीविजन के लिए भी। मूल बात यह है कि जिस तरह मंच पर खेलने के लिए नाटक लिखे जाते हैं, उसी तरह कैमरे से फिल्माए जाने के लिए पटकथा लिखी जाती है। कोई भी लेखक अन्य किसी विधा में लेखन करके उतने लोगों तक अपनी बात नहीं पहुँचा सकता, जितना पटकथा लेखन द्वारा। इसका कारण यह है कि पटकथा शूट होने के बाद धारावाहिक या फिल्म के रूप में लाखों-करोड़ों दर्शकों तक पहुँच जाती है। इसी कारण पटकथा लेखन की ओर लेखकों का रुझान हुआ है। यहाँ मन्नू भंडारी द्वारा लिखित रजनी धारावाहिक की कड़ी दी जा रही है। यह नाटक 20वीं सदी के नवें दशक का बहुचर्चित टी.वी. धारावाहिक रहा है। यह वह समय था जब हमलोग और बुनियाद जैसे सोप ओपेरा दूरदर्शन का भविष्य गढ़ रहे थे। बासु चटर्जी के निर्देशन में बने इस धारावाहिक की हर कड़ी स्वयं में स्वतंत्र और मुकम्मल होती थी और उन्हें आपस में गूँथने वाली सूत्र रजनी थी। हर कड़ी में यह जुझारन और इंसाफ-पसंद स्त्री-पात्र किसी-न-किसी सामाजिक- राजनीतिक समस्या से जूझती नजर आती थी।
यहाँ रजनी धारावाहिक की जो कड़ी दी जा रही है, वह व्यवसाय बनती शिक्षा की समस्या की ओर समाज का ध्यान खींचती है।
पहला दृश्य
स्थान-लीला का घर
रजनी लीला के घर जाती है तथा उससे बाजार चलने को कहती है। लीला उसे बताती है कि अमित का आज रिजल्ट आ रहा है। रजनी उसे मिठाई तैयार रखने को कहती है, क्योंकि अमित बहुत होशियार है। अमित के लिए रजनी आंटी हीरो है। तभी अमित स्कूल से आता है। उसका चेहरा उतरा हुआ है। वह रिपोर्ट कार्ड माँ की तरफ फेंकते हुए कहता है कि मैंने पहले ही गणित में ट्यूशन लगवाने को कहा था। ट्यूशन न करने की वजह से उसे केवल 72 अंक मिले, लीला कहती है कि तूने सारे सवाल ठीक किए थे। तुझे पंचानवे नंबर जरूर मिलने थे। रजनी कार्ड देखती है। दूसरे विषयों में 86, 80, 88, 82, 90 अंक मिले। सबसे कम गणित में मिले। अमित गुस्से व दुख से कहता है कि सर बार-बार ट्यूशन की चेतावनी देते थे तथा न करने पर परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने की चेतावनी देते थे। लीला इसे अंधेरगर्दी कहती है। रजनी अमित को तसल्ली देती है तथा सारी बातों की जाँच करती है। उसे पता चलता है कि मिस्टर पाठक उन्हें गणित पढ़ाते हैं। वे हर बच्चे को ट्यूशन लेने के लिए कहते हैं। अमित ने हाफ ईयरली में छियानबे नंबर लिए थे। अध्यापक ने फिर भी उसे ट्यूशन रखने का आग्रह किया। अमित अपनी माँ पर इसका दोषारोपण किया। रजनी उसे समझाती है कि उसे अध्यापक से लड़ना चाहिए। यह सारी बदमाशी उसकी है। रजनी अमित को कहती है कि वह कल उसके स्कूल जाकर सर से मिलेगी। अमित डरकर उन्हें जाने से रोकता है। रजनी उसे डाँटती है तथा अगले दिन स्कूल जाने का संकल्प लेती है।
दूसरा दृश्य
स्थान-हैडमास्टर का कमरा।
रजनी अमित के स्कूल के हैडमास्टर से मिलने गई। उसने अमित सक्सेना की गणित की कापी देखने की अनुमति माँगी। हैडमास्टर ने वार्षिक परीक्षा की कॉपियाँ दिखाने में असमर्थता दिखाई। रजनी कहती है कि अमित ने मैथ्स में पूरा पेपर ठीक किया था, परंतु उसे केवल बहत्तर अंक मिले। वह देखना चाहती है कि गलती किसकी है। हैडमास्टर फिर भी कॉपी न दिखाने पर अड़ा रहता है और अमित को दोषी बताता है। रजनी कहती है कि अमित के पिछले रिजल्ट बहुत बढ़िया हैं। इस बार उसके नंबर किस बात के लिए काटे गए। हैडमास्टर नियमों की दुहाई देते हैं तो रजनी व्यंग्य करती है कि यहाँ होशियार बच्चों को भी ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया जाता है। हैडमास्टर ट्यूशन को टीचर्स व स्टूडेंट्स का आपसी मामला बताता है। वे इनसे अलग रहते हैं। रजनी उसे कुर्सी छोड़ने के लिए कहती है ताकि ट्यूशन के काले धंधे को रोका जा सके। हैडमास्टर आग-बबूला होकर रजनी को वहाँ से चले जाने को कहता है।
तीसरा दृश्य
स्थान-रजनी का घर
शाम के समय रजनी के पति घर आते हैं। वह उनके लिए चाय लाती है, फिर उन्हें अपने काम के बारे में बताती है। इस पर रवि उसे समझाते हैं कि टीचर ट्यूशन करें या धधा। तुम्हें क्या परेशानी है। तुम्हारा बेटा तो अभी पढ़ने नहीं जा रहा। इस बात पर रजनी भड़क जाती है और कहती है कि अमित के लिए आवाज क्यों नहीं उठानी चाहिए। अन्याय करने वाले से अधिक दोषी अन्याय सहने वाला होता है। तुम्हारे जैसे लोगों के कारण इस देश में कुछ नहीं होता।
चौथा दृश्य
स्थान-डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन का कार्यालय।
रजनी दफ्तर के बाहर बेंच पर बैठी अधिकारी से मिलने की प्रतीक्षा कर रही है। वह बैचेन हो रही है। प्रतीक्षा करते-करते जब बहुत देर हो जाती है तो वह बड़बड़ाने लगती है। तभी एक आदमी आता है तथा स्लिप के नीचे पाँच रुपये का नोट रखकर देता है। चपरासी उसे तुरंत अंदर भेजता है। रजनी यह देखकर क्रोधित होती है। वह चपरासी को धकेलकर अंदर चली जाती है। निदेशक उसे घंटी बजने पर अंदर आने की बात कहता है। रजनी उसे खरी-खोटी सुनाती है। इस पर निदेशक उससे बात करता है। रजनी प्राइवेट स्कूलों और बोर्ड के आपसी संबंधों के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रही है। निदेशक समझता है कि शायद वह कोई रिसर्च प्रोजेक्ट पर काम कर रही है। वह बताता है कि बोर्ड मान्यता प्राप्त प्राइवेट स्कूलों को 90% ग्रांट देता है। इस ग्रांट के बदले वे स्कूलों पर नियंत्रण रखते हैं। स्कूलों को उनके नियम मानने होते हैं। इस पर रजनी कहती है कि प्राइवेट स्कूलों में ट्यूशन के धंधे के बारे में आपका क्या रवैया है। निदेशक कहता है कि इसमें धंधे जैसी कोई बात नहीं है। कमजोर बच्चे के माँ-बाप उसे ट्यूशन दिलवाते हैं। यह कोई मजबूरी नहीं है। इस पर रजनी उसे बताती है कि होशियार बच्चों को भी ट्यूशन लेने के लिए मजबूर किया जाता है। अगर ट्यूशन न ली जाए तो उसके नंबर कम दिए जाते हैं। हैडमास्टर ऐसे टीचर के खिलाफ एक्शन लेने से परहेज करता है। क्या आपको ऐसे रैकेट बंद करने के लिए दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए? इस पर निदेशक कहता है कि आज तक कोई शिकायत नहीं आई। रजनी व्यंग्य करती है कि बिना शिकायत के आपको कोई जानकारी नहीं होती। निदेशक अपनी व्यस्तता का तर्क देता है तो रजनी उसे कहती है-मैं आपके पास शिकायतों का ढेर लगवाती हूँ।
पाँचवाँ दृश्य
स्थान-अखबार का कार्यालय
रजनी संपादक के पास जाती है। संपादक उनके कार्य की प्रशंसा करता है और कहता है कि आपने ट्यूशन के विरोध में बाकायदा एक आंदोलन खड़ा कर दिया। यह जरूरी है। रजनी जोश में कहती है कि आप हमारा साथ दीजिए तथा इसे अपने समाचार में स्थान दें। इससे यह थोड़े लोगों की बात नहीं रह जाती। इससे अनेक अभिभावकों को राहत मिलेगी तथा बच्चों का भविष्य सँवर जाएगा।
संपादक रजनी की भावनाएँ समझकर साथ देने का वादा करता है। उसने सारी बातें नोट की तथा एक समाचार भिजवाया। रजनी उसे बताती है कि 25 तारीख को पेरेंट्स की मीटिंग की जा रही है। वे यह सूचना अखबार में जरूर दे दें तो सब लोगों को सूचना मिल जाएगी।
छठा दृश्य
स्थान-बैठक-स्थल
एक हाल में पेरेंट्स की मीटिंग चल रही है। बाहर बैनर लगा हुआ है। काफी लोग आ रहे हैं। अंदर हाल भरा हुआ है। प्रेस के लोग आते हैं। रजनी जोश में संबोधित कर रही है-आपकी उपस्थिति से हमारी मंजिल शीघ्र मिल जाएगी। कुछ बच्चों को ट्यूशन जरूरी है, क्योंकि कुछ माएँ पढ़ा नहीं सकतीं तो कुछ पिता घर के काम में मदद जरूरी नहीं समझते। टीचर्स के एक प्रतिनिधि ने बताया कि उन्हें कम वेतन मिलता है। अत: उन्हें ट्यूशन करना पड़ता है। कई जगह कम वेतन देकर अधिक वेतन पर दस्तखत करवाए जाते हैं। इस पर हमारा कहना है कि वे संगठित होकर आदोलन चलाएँ तथा अन्याय का पर्दाफाश करें। हम यह नियम बनाएँ कि स्कूल का टीचर अपने स्कूल के बच्चों का ट्यूशन नहीं करेगा। इस नियम को तोड़ने वाले टीचर्स के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाएगी। इससे बच्चों के साथ जोर-जबरदस्ती अपने-आप बंद हो जाएगी। सभा में लोगों ने इस बात का समर्थन किया।
सातवाँ दृश्य
स्थान-रजनी का घर
रजनी के पति अखबार पढ़ते हुए बताते हैं कि बोर्ड ने तुम्हारे प्रस्ताव को ज्यों-का-त्यों स्वीकार कर लिया। रजनी बहुत प्रसन्न होती है। पति भी उस पर गर्व करते हैं। तभी लीला बेन, कांतिभाई और अमित मिठाई लेकर वहाँ आते हैं।
शब्दार्थ
पृष्ठ संख्या 81
काट देना-छोड़ देना। भोग लगाना-खाना।
पृष्ठ संख्या 82
मेधावी होशियार। कांग्रेचुलेशंस-बधाई हो, मुबारक हो। सफाई-वफाई-लिखते समय होने वाली छोटी गलतियाँ व काट-छोट।
पृष्ठ संख्या 83
सफाई देना-अपने बचाव में कहना। आर्थिक-धन संबंधी। अँधेर-अन्याय। बल पड़ना-तनाव आना। स्वीकृति-मंजूरी। टर्मिनल-सत्र। हाफ-ईयरली-छमाही।
पृष्ठ संख्या 84
बदमाशी-मनमानी। घुड़कना-डाँटना।
पृष्ठ संख्या 85
जुलुम-ज़्यादती-अन्याय-अत्याचार। बर्दाश्त-सहन। दनदनाती-तेज कदमों से। असहाय-बेचारा। अदब-सम्मान। ईयरली-वार्षिक।
पृष्ठ संख्या 86
गलतफहमी-गलत अनुमान। एकज़ामिनर-परीक्षक। तैश-क्रोध। व्हॉट डू यू मीन-क्या मतलब है आपका। हरकत-गलत कार्य।
पृष्ठ संख्या 87
धाँधली-गलत कार्य। बेगुनाह-बेकसूर। शिकजा-पकड़। घिनौना-सामाजिक दृष्टि से गलत काम। रैकेट-गैरकानूनी काम करने वालों का समूह। चिदियाँ बिखेरना-छोटे-छोटे टुकड़े करके फेंकना।
पृष्ठ संख्या 88
गदगद-प्रसन्न। ठेका लेना-जिम्मेदारी लेना।
पृष्ठ संख्या 89
गुनहगार-दोषी। हिकारत-उपेक्षा। माई फुट-तुच्छ समझना। हताश-निराश। सूली पर चढ़ाना-संकट में डालना। डायरेक्टर-निदेशक। निज़ी-व्यक्तिगत।
पृष्ठ संख्या 9o
कौतूहल-जिज्ञासा। रिलेशंस-संबंध। रिसर्च-शोध। प्रोजेक्ट-कार्य।
पृष्ठ संख्या 91
रिकगनाइज़-मान्य। ग्रांट-सरकारी अनुदान। एड-सहायता। कोंचता-तंग करना।
पृष्ठ संख्या 92
एक्शन-कार्यवाही। दखलअंदाजी-हस्तक्षेप। दिन-दहाड़े-सरेआम। छेद-कमी। गड्ढे में जाना-नष्ट होना। मोंटाज-टेलीविजन में दृश्यों व छवियों को एकत्रित करके जोड़ना।
पृष्ठ संख्या 93
बाकायदा-कायदे के अनुसार। एकाएक-अचानक। इश्यू-मामला। आँख मूंदना-ध्यान न देना। आवेश-जोश।
पृष्ठ संख्या 94
राइट-अप-लिखित विषय-सामग्री। पी.टी.आई-एक समाचार-एजेंसी। फोकस-ध्यान।
पृष्ठ संख्या 95
दस्तख्त-हस्ताक्षर। पदाफाश-भेद खोलना। राय-मत। एपूल्ड-स्वीकृत।
पृष्ठ संख्या 96
धज्जियाँ बिखेरना-फाड़कर फेंकना।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न
1. हाँ! कॉपी लौटाते हुए कहा था कि तुमने किया तो अच्छा है पर यह तो हाफ़-ईयरली है.बहुत आसान पेपर होता है इसका तो। अब अगर ईयरली में भी पूरे नंबर लेने हैं तो तुरंत ट्यूशन लेना शुरू कर दो। वरना रह जाओगे। सात लड़कों ने तो शुरू भी कर दिया था। पर मैंने जब मम्मी-पापा से कहा, हमेशा बस एक ही जवाब (मम्मी की नकल उतारते हुए) मैथ्स में तो तू वैसे ही बहुत अच्छा है, क्या करेगा ट्यूशन लेकर? देख लिया अब? सिक्स्थ पोज़ीशन आई है मेरी। जो आज तक कभी नहीं आई थी। (पृष्ठ-83-84)
प्रश्न
- अमित के अध्यापक ने उस क्या कहा? क्यों?
- अमित की मम्मी ने गणित का ट्यूशन लगाने से क्यों मना किया?
- अमित इस स्थिति में किसे दोषी मानता है? उसकी यह सोच कितनी उचित है?
उत्तर-
- अमित के अध्यापक ने उसे कहा कि हाफ़-ईयरली परीक्षा में तुमने अच्छा किया है, परंतु अगर ईयरली में तुम्हें पूरे नंबर लेने हैं तो तुरंत ट्यूशन लगवा लो। उसने ट्यूशन न लेने पर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी। वह ऐसा इसलिए कह रहे थे ताकि अमित भी उनके पास ट्यूशन पढ़ने आ जाए।
- अमित गणित में बहुत होशियार है। इस कारण उसकी मम्मी ने गणित का ट्यूशन लगाने से मना कर दिया। इसके अलावा उन्हें अमित की प्रतिभा पर भी भरोसा था।
- अमित गणित में कम अंक आने की वजह ट्यूशन न लगाना मानता है। वह अपने माता-पिता को इसके लिए दोषी मानता है। उसकी यह सोच तनिक भी उचित नहीं है, क्योंकि इसके लिए माँ-बाप को दोष देना उचित नहीं है।
2. कुछ नहीं कर सकते आप? तो मेहरबानी करके यह कुर्सी छोड़ दीजिए। क्योंकि यहाँ पर कुछ कर सकने वाला आदमी चाहिए। जो ट्यूशन के नाम पर चलने वाली धाँधलियों को रोक सके. मासूम और बेगुनाह बच्चों को ऐसे टीचर्स के शिकंजों से बचा सके जो ट्यूशन न लेने पर बच्चों के नंबर काट लेते हैं. और आप हैं कि कॉपियाँ न दिखाने के नियम से उनके सारे गुनाह ढक देते हैं। (पृष्ठ-87)
प्रश्न
- वक्ता का यह कथन ‘कुछ कर सकने. ‘ कहाँ तक उचित हैं?
- ट्यूशन के नाम पर क्या हो रहा है?
- कॉपियाँ न दिखाने का नियम कहाँ तक उचित है?
उत्तर-
- वक्ता का कथन पूर्णतया सत्य और उचित है, क्योंकि प्रधानाचार्य का पद जिम्मेदारी का पद है। जो उस पद की जिम्मेदारी नहीं ले सकता, उसे पद पर रहने का अधिकार नहीं है।
- ट्यूशन के नाम पर बच्चों का शोषण किया जाता है। उन्हें डराया-धमकाया जाता है। जो बच्चे ट्यूशन नहीं पढ़ते, उन्हें कम अंक दिए जाते हैं जैसा अमित के साथ हुआ।
- स्कूलों में वार्षिक परीक्षा की कॉपियाँ न दिखलाने का नियम सर्वथा अन्यायपूर्ण है। इस नियम के नाम पर अंकों की गड़बड़ी को ढका जाता है तथा दोषी अध्यापक अपनी मनमानी करके बच्चों का शोषण करते हैं।
3. मुझे बाहर करने की ज़रूरत नहीं। बाहर कीजिए उन सब टीचर्स को जिन्होंने आपकी नाक के नीचे ट्यूशन का यह घिनौना रैकेट चला रखा है। (व्यग्य से) पर आप तो कुछ कर नहीं सकते, इसलिए अब मुझे ही कुछ करना होगा और मैं करूंगी, देखिएगा आप। (तमतमाती हुई निकल जाती है) (हैंडमास्टर चपरासी पर ही बिगड़ पड़ता है) जाने किस-किस को भेज देते हो भीतर। (पृष्ठ-87)
प्रश्न
- वक्ता क्या करने की बात कहती हैं?
- वक्ता क्या धमकी देती हैं?
- प्रधानाचार्य किस पर बिगड़ा और क्या कहा तथा क्यों?
उत्तर-
- वक्ता ने हैडमास्टर को कहा कि आपको उन सभी टीचर्स को बाहर करना चाहिए जिन्होंने ट्यूशन का घिनौना रैकेट चला रखा है। वे बच्चों का शोषण कर रहे हैं तथा उनका भविष्य खराब कर रहे हैं।
- वक्ता हैडमास्टर को धमकी देती है कि आपने तो ट्यूशन करने वाले अध्यापकों के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया। अब मुझे ही इस गलत काम को रोकने के लिए कार्रवाई करनी होगी।
- प्रधानाचार्य चपरासी पर क्रोधित होता है। वह कहता है कि तुम किस तरह के लोगों को अंदर भेज देते हो। उसने ऐसा इसलिए कहा ताकि वक्ता का गुस्सा उस निरीह चपरासी पर उतार सके।
4. देखो, तुम मुझे फिर गुस्सा दिला रहे हो रवि. गलती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बर्दाश्त करने वाला भी कम गुनहगार नहीं होता जैसे लीला बेन और कांति भाई और हज़ारों-हज़ारों माँ-बाप। लेकिन सबसे बड़ा गुनहगार तो वह है जो चारों तरफ अन्याय, अत्याचार और तरह-तरह की धाँधलियों को देखकर भी चुप बैठा रहता है, जैसे तुम। (नकल उतारते हुए) हमें क्या करना है, हमने कोई ठेका ले रखा है दुनिया का। (गुस्से और हिकारत से) माई फुट (उठकर भीतर जाने लगती हैं। जाते-जाते मुड़कर) तुम जैसे लोगों के कारण ही तो इस देश में कुछ नहीं होता, हो भी नहीं सकता! (भीतर चली जाती है।) (पृष्ठ-89)
प्रश्न
- गलती सहने वाला गुनहगार कैसे होता है?
- यहाँ किस-किसे गुनहगार कहा गया है तथा क्यों?
- वक्ता के चरित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-
- गलती सहने वाला गुनहगार होता है, क्योंकि इससे अन्याय करने वाले को साहस मिलता है। वह अपने काम को सही मानकर और अधिक अत्याचार करने लगता है।
- यहाँ दो प्रकार के लोगों को गुनहगार माना गया है-
(क) गुनाह करने वाले।
(ख) गुनाह को सहने वाले।
ये दोनों ही गुनहगार हैं। गुनाहगार गलती करता है तथा उसे सहने वाला उसे बढ़ावा देता है। - वक्ता समाजसेविका है। वह किसी के ऊपर हो रहे अत्याचार को सहन नहीं करती। वह अपने पति तक को दोषी मानती है। वह स्पष्ट वक्ताँ है।
5.
निदेशक : वैरी सैड! हैडमास्टर को एक्शन लेना चाहिए। ऐसे टीचर के खिलाफ।
रजनी : क्या खूब! आप कहते हैं कि हैडमास्टर को एक्शन लेना चाहिए… हैडमास्टर कहते हैं मैं कुछ नहीं कर सकता, तब करेगा कौन? मैं पूछती हूँ कि ट्यूशन के नाम पर चलने वाले इस घिनौने रैकेट को तोड़ने के लिए दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए आपको, आपके बोर्ड को? (चहरा तमतमा जाता हैं)
निदेशक : लेकिन हमारे पास तो आज तक किसी पेरेंट से इस तरह की कोई शिकायत नहीं आई।
रजनी : यानी की शिकायत आने पर ही आप इस बारे में कुछ सोच सकते हैं। वैसे शिक्षा के नाम पर दिन-दहाड़े चलने वाली इस दुकानदारी की आपके (बहुत ही व्यग्यात्मक ढंग से) बोर्ड ऑफ एजुकेशन को कोई जानकारी ही नहीं, कोई चिंता ही नहीं? (पृष्ठ-92)
प्रश्न
- रजनी निदेशक के पास क्यों गई?
- ‘क्या खूब ‘ में निहित व्यग्य स्पष्ट करें।
- शिक्षा बोड की कार्यशैली पर टिप्पणी करें।
उत्तर-
- रजनी ट्यूशन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करवाना चाहती है। वह जानना चाहती है कि शिक्षा बोर्ड के पास स्कूलों पर नियंत्रण के अधिकार हैं या नहीं।
- इस में शिक्षा-व्यवस्था पर करारा व्यंग्य है। अध्यापक ट्यूशन के नाम पर बच्चों का शोषण करते हैं, हैडमास्टर उनके खिलाफ एक्शन नहीं लेते तथा अधिकारी हैडमास्टर को जिम्मेदारी सिखाते हैं या लिखित शिकायत चाहते हैं। हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहता है।
- शिक्षा बोर्ड भी अन्य सरकारी विभागों की तरह अकर्मण्यशील है। वह शिकायत पर ही कोई कार्रवाई करता है अन्यथा उसे किसी बात की कोई जानकारी नहीं होती। वे स्कूलों में हो रहे शोषण से अवगत तो रहते हैं पर उसके खिलाफ कुछ नहीं करते।
6. (एकाएक जोश में आकर) आप भी महसूस करते हैं न ऐसा?. तो फिर साथ दीजिए हमारा। अखबार यदि किसी इश्यू को उठा ले और लगातार उस पर चोट करता रहे तो फिर वह थोड़े से लोगों की बात नहीं रह जाती। सबकी बन जाती है. आँख मूँदकर नहीं रह सकता फिर कोई उससे। आप सोचिए ज़रा अगर इसके खिलाफ कोई नियम बनता है तो (आवेश के मारे जैसे बोला नहीं जा रहा है) कितने पेरेंट्स को राहत मिलेगी. कितने बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा, उन्हें अपनी मेहनत का फल मिलेगा, माँ-बाप के पैसे का नहीं. शिक्षा के नाम पर बचपन से ही उनके दिमाग में यह तो नहीं भरेगा कि पैसा ही सब कुछ है. वे. वे. (पृष्ठ-93)
प्रश्न
- वक्ता किससे कब बात कर रहा है?
- अखबार किसी बात को व्यापक कैसे बना देता हैं?
- रजनी संपादक को ट्यूशन रोकने के क्या-क्या लाभ गिनाती हैं?
उत्तर-
- वक्ता यानी रजनी अखबार के कार्यालय में संपादक से ट्यूशन के विषय में बात कर रही है। वह उन्हें ट्यूशन के कुप्रभावों के बारे में महसूस कराती है तथा उनसे समर्थन माँगती है।
- जब अखबार किसी बात को उठाता है तो उसका प्रचार-प्रसार पूरे समाज में हो जाता है। सभी लोग उस मुद्दे पर अपना विचार प्रस्तुत करते हैं साथ ही इससे जनमत तैयार होता है। फलस्वरूप अन्याय या शोषण के खिलाफ लोग खड़े हो जाते हैं।
- संपादक को ट्यूशन रोकने के निम्नलिखित लाभ गिनवाए गए-
(क) इससे प्रभावित अनगिनत बच्चों व उनके माता-पिताओं को ट्यूशन की समस्या से राहत मिलेगी।
(ख) बच्चों का भविष्य सुधर जाएगा।
(ग) उन्हें अपनी मेहनत का फल मिलेगा।
(घ) वे शिक्षा को बड़ा मानेंगे न कि पैसे को।
7. (रुककर) बड़ा अच्छा लगा जब टीचर्स की ओर से भी एक प्रतिनिधि ने आकर बताया कि कई प्राइवेट स्कूलों में तो उन्हें इतनी कम तनख्वाह मिलती है कि ट्यूशन न करें तो उनका गुज़ारा ही न हो। कई जगह तो ऐसा भी है कि कम तनख्वाह देकर ज्यादा पर दस्तखत करवाए जाते हैं। ऐसे टीचर्स से मेरा अनुरोध है कि वे संगठित होकर एक आंदोलन चलाएँ और इस अन्याय का पर्दाफाश करें (हॉल में बैठा हुआ पति धीरे से फुसफुसाता है, लो, अब एक और आदोलन का मसाला मिल गया, कैमरा फिर रजनी पर) इसलिए अब हम अपनी समस्या से जुड़ी सारी बातों को नज़र में रखते हुए ही बोंड के सामने यह प्रस्ताव रखेंगे कि वह ऐसा नियम बनाए (एक-एक शब्द पर जोर देते हुए) कि कोई भी टीचर अपने ही स्कूल के छात्रों का ट्यूशन नहीं करेगा।
(रुककर) ऐसी स्थिति में बच्चों के साथ ज़ोर-ज़बरदस्ती करने, उनके नंबर काटने की गंदी हरकतें अपने आप बंद हो जाएँगी। साथ ही यह भी हो कि इस नियम को तोड़ने वाले टीचर्स के खिलाफ सख्त-से-सख्त कार्यवाही की जाएगी..। (पृष्ठ-95)
प्रश्न
- प्राइवेट स्कूल के अध्यापकों की कौन-कौन-सी समस्याएँ सामने आई?
- वक्ता ने प्राइवेट स्कूल के अध्यापकों की समस्या का क्या समाधान बताया?
- ट्यूशन के बारे में सभा में कौन-सा प्रस्ताव रखा गया?
उत्तर-
- प्राइवेट स्कूल के अध्यापकों की मुख्य रूप से दो समस्याएँ सामने आईं-
(क) अध्यापकों को बेहद कम तनख्वाह मिलती है। इस कारण गुज़ारा करने के लिए उन्हें ट्यूशन करना पड़ता है।
(ख) कई जगह उन्हें अधिक वेतन पर हस्ताक्षर करने पड़ते हैं तथा वेतन कम दिया जाता है। - वक्ता रजनी है। उसने प्राइवेट स्कूलों के अध्यापकों को कहा कि वे संगठित होकर आंदोलन चलाएँ और कम वेतन की धाँधलेबाजी का पर्दाफाश करें।
- ट्यूशन के बारे में सभा में एक प्रस्ताव रखा गया कि बोर्ड यह नियम बनाए कि कोई भी टीचर अपने ही स्कूल के छात्रों को ट्यूशन नहीं करेगा। यदि वह ऐसा करे तो उस टीचर्स के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न
पाठ के साथ
प्रश्न 1:
रजनी ने अमित के मुददे को गंभीरता से लिया, क्योंकि-
(क) वह अमित से बहुत स्नेह करती थी।
(ख) अमित उसकी मित्र लीला का बटा था।
(ग) वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की सामथ्य रखती थी।
(घ) उस अखबार की सुखियों में आने का शौक था।
उत्तर-
(ग) वह अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने की सामथ्र्य रखती थी।
प्रश्न 2:
जब किसी का बच्चा कमज़ोर होता है, तभी उसके माँ-बाप दयूशन लगवाते हैं। अगर लगे कि कोई टीचर लूट रहा है, तो उस टीचर से न ले ट्यूशन, किसी और के पास चले जाएँ. यह कोई मजबूरी तो है नहीं-प्रसंग का उल्लेख करते हुए बताएँ कि यह संवाद आपको किस सीमा तक सही या गलत लगता है, तर्क दीजिए।
उत्तर-
रजनी ट्यूशन के रैकेट के बारे में निदेशक के पास जाती है। उसे बताती है कि बच्चों को जबरदस्ती ट्यूशन करने के लिए कहा जाता है। ऐसे लोगों के बारे में बोर्ड क्या कर रहा है? निदेशक ने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। वे सहज भाव से कहते हैं कि ट्यूशन करने में कोई मजबूरी नहीं है। कमजोर बच्चे को ट्यूशन पढ़ना पड़ता है। अगर कोई अध्यापक उन्हें लूटता है तो वे दूसरे के पास चले जाएँ।
शिक्षा निदेशक का यह जवाब बहुत घटिया व गैरजिम्मेदाराना है। वे ट्यूशन को बुरा नहीं मानते। उन्हें इसमें गंभीरता नज़र नहीं आती। वे बच्चों के शोषण को नहीं रोकना चाहते। ऐसी बातें कहकर वह अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना चाहता है।
प्रश्न 3:
तो एक और आदोलन का मसला मिल गया-फुसफुसाकर कही गई यह बात-
(क) किसने किस प्रसंग में कही?
(ख) इससे कहने वाले की किस मानसिकता का पता चलता है?
उत्तर-
(क) यह बात रजनी के पति रवि ने पेरेंट्स मीटिंग के दौरान कही। रजनी ने कम वेतन पर काम करने वाले अध्यापकों को भी आंदोलन करने के लिए कहती है। उन्हें एकजुट होकर अन्याय करनेवालों का पर्दाफाश करना चाहिए।
(ख) इस कथन से रवि की उदासीन मानसिकता का पता चलता है। इस तरह के व्यक्ति अन्याय के खिलाफ कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता। ये स्वार्थी प्रवृत्ति के होते हैं तथा अपने तक ही सीमित रहते हैं।
प्रश्न 4:
रजनी धारावाहिक की इस कड़ी की मुख्य समस्या क्या है? क्या होता अगर-
(क) अमित का पर्चा सचमुच खराब होता।
(ख) संपादक रजनी का साथ न देता।
उत्तर-
रजनी धारावाहिक की इस कड़ी की मुख्य समस्या शिक्षा का व्यवसायीकरण है। स्कूल के अध्यापक बच्चों को ज़बरदस्ती ट्यूशन पढ़ने के लिए विवश करते हैं तथा ट्यूशन न लेने पर वे उनको कम अंक देते हैं।
(क) यदि अमित का पर्चा खराब होता तो यह समस्या सामने नहीं आती और न ही रजनी इसे आंदोलन का रूप दे पाती। बच्चों और अभिभावकों को ट्यूशन के शोषण से पीड़ित होना पड़ता।
(ख) यदि संपादक रजनी का साथ न देता तो यह समस्या सीमित लोगों के बीच ही रह जाती। कम संख्या का बोर्ड पर कोई असर नहीं होता। आंदोलन पूरी ताकत से नहीं चल पाता और सफलता संदिग्ध रहती।
पाठ के आस-पास
प्रश्न 1:
गलती करने वाला तो है ही गुनहगार, पर उसे बदश्त करने वाला भी कम गुनहगार नहीं होता-इस संवाद के संदर्भ में आप सबसे ज्यादा किसे और क्यों गुनहगार मानते हैं?
उत्तर-
इस संवाद के संदर्भ में हम सबसे ज्यादा, अत्याचार करनेवाले को दोषी मानते हैं, क्योंकि सामान्य रूप से चल रहे संसार में भी बहुत से कष्ट, दुख और तकलीफें हैं। अत्याचारी उन्हें अपने कारनामों से और बढ़ा देता है। वह स्वयं ऊपर से खुश दिखाई देता है, पर उसकी आत्मा तो जानती ही है कि वह गलती कर रहा है। उसके द्वारा जिसे सताया जा रहा है वह भी कष्ट उठा रहा है और उसकी आत्मा भी कष्ट उठाती है। इसलिए वह कष्ट से मुक्त होने के उपाय सोचता है, पर ऐसा कर नहीं पाती। ज्यादातर यही होता है। अतः अत्याचारी ही कष्ट का प्रथम कारण होने की वजह से अधिक दोषी है।
प्रश्न 2:
स्त्री के चरित्र की बनी बनाई धारणा से रजनी का चेहरा किन मायनों में अलग है?
उत्तर-
रजनी आम स्त्रियों से अलग है। आम स्त्री सहनशील होती है, वह डरपोक होती है। वह अन्याय का विरोध नहीं करती तथा संघर्षों से दूर रहना चाहती है। रजनी इन सबके विपरीत जुझारू, संघर्षशील व बहादुर है। वह अपने सामने हो रहे अन्याय को नहीं सहन कर सकती। वह अपने पति तक को खरी-खोटी सुनाती है तथा अधिकारियों की खिंचाई करती है। यह ट्यूशन के विरोध में जन-आंदोलन खड़ा कर देती है।
प्रश्न 3:
पाठ के अंत में मीटिंग के स्थान का विवरण कोष्ठक में दिया गया है। यदि इसी दृश्य को फिल्माया तो आप कौन-कौन-से निर्देश देंगे?
उत्तर-
इस दृश्य को फ़िल्माते समय हम निम्नलिखित निर्देश देंगे –
- स्टेज के पीछे बैनर लगा हो तथा उस पर एजेंडा लिखा होना चाहिए।
- स्टेज पर माइक व कुर्सी की व्यवस्था होनी चाहिए।
- रजनी को संवाद याद होने चाहिए।
- तालियाँ समयानुसार बजनी चाहिए।
प्रश्न 4:
इस पटकथा में दृश्य-संख्या का उल्लेख नहीं है। मगर गिनती करें तो सात दृश्य हैं। आप किस आधार पर इन दृश्यों को अलग करेंगे?
उत्तर-
पटकथा में दृश्य-संख्या नहीं है, परंतु दृश्य अलग-अलग दिए गए हैं। हम सभी दृश्यों को स्थान के आधार पर अलग-अलग करेंगे।
भाषा की बात
प्रश्न 1:
निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित अंश में जो अर्थ निहित हैं उन्हें स्पष्ट करते हुए लिखिए-
(क) वरना तुम तो मुझे काट ही देतीं।
(ख) अमित जब तक तुम्हारे भोग नहीं लगा लता, हमलोग खा थोड़े ही सकते हैं।
(ग) बस-बस मैं समझ गया।
उत्तर-
(क) यहाँ काट ही देतीं का अर्थ है-बुरी तरह परेशान कर देतीं या जीना हराम कर देतीं। यह वाक्यांश शाब्दिक अर्थ से हटकर अर्थ प्रकट कर रहा है।
(ख) भोग लगाना-अर्थात् अमित रजनी आंटी का इतना मान रखता है, उन्हें इतना स्नेह-आदर देता है कि अपने घर में बननेवाली हर चीज़ सबसे पहले उन्हें खिलाकर आता है फिर स्वयं खाता है। अतः यह प्रयोग मान देने के अर्थ में हुआ है। थोड़े ही अर्थात् खा नहीं सकते या खा नहीं पाते ! जिस प्रकार भगवान को भोग लगाना और उसके बाद खाना हमारा स्वयं का ही बनाया हुआ नियम है, वैसे ही अमित रजनी आंटी को खिलाकर ही खाता है।
(ग) इस वाक्य में बस-बस का अर्थ यह है कि और अधिक बोलने की आवश्यकता नहीं है मैं सबकुछ समझ चुका हूँ। ज्यादा स्पष्टीकरण नहीं चाहता।
कोड मिक्सिंग/कोड स्विचिग
प्रश्न 1:
कोई रिसर्च प्रोजेक्ट है क्या? क्हेरी द्वटरेस्टिग सब्जेक्ट।
ऊपर दिए गए संवाद में दो पंक्तियाँ हैं पहली पंक्ति में रेखांकित अंश हिंदी से अलग अंग्रेजी भाषा का है जबकि शेष हिंदी भाषा का है। दूसरा वाक्य पूरी तरह अंग्रेजी में है। हम बोलते समय कई बार एक ही वाक्य में दो भाषाओं (कोड) का इस्तेमाल करते हैं। यह कोड मिक्सिंग कहलाता है। जबकि एक भाषा में बोलते-बोलते दूसरी भाषा का इस्तेमाल करना कोड स्विचिंग कहलाता है। पाठ में से कोड मिक्सिंग और कोड स्विचिंग के तीन-तीन उदाहरण चुनिए और हिंदी भाषा में रूपांतरण करके लिखिए।
उत्तर-
कोड मिक्सिंग
(क) नाइंटी फाइव तो तेरे पक्के हैं।
(ख) मैथ्स में ही पूरे नंबर आ सकते हैं।
(ग) सॉरी मैडम, ईयरली एक्जाम्स की कॉपियाँ तो हम नहीं दिखाते हैं।
हिदी रूपांतरण
(क) पंचानवे तो तेरे पक्के हैं।
(ख) गणित में ही तो पूरे अंक आ सकते हैं।
(ग) क्षमा कीजिए, बहन जी, वार्षिक परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाएँ तो हम लोग नहीं दिखाते हैं।
कोड स्विचिंग
(क) आई मीन व्हॉट आई से। नियम का जरा भी ख्याल होता तो इस तरह की हरकतें नहीं होतीं स्कूल में।
(ख) कोई रिसर्च प्रोजेक्ट है क्या? व्हेरी इंटरेस्टिंग सब्जेक्ट।
(ग) विल यू प्लीज गेट आउट ऑफ दिस रूम। ….. मेमसाहब को बाहर ले जाओ।
हिंदी रूपां
(क) मैं जो कह रही हूँ वह सच है। नियम.।
(ख) कोई रिसर्च प्रोजेक्ट है क्या? बहुत रोचक विषय है।
(ग) कृपया आप इस कमरे से बाहर चले जाए। …… मेमसाहब…… ।
अन्य हल प्रश्न
बोधात्मक प्रश्न
प्रश्न 1:
‘रजनी’ पाठ का प्रतिपाद्य बताइए।
उत्तर-
यह पाठ शिक्षा के व्यवसायीकरण, ट्यूशन के रैकेट, अधिकारियों की उदासीनता तथा आम जनता द्वारा अन्याय का विरोध आदि के बारे में बताता है। यह हमें अन्याय का विरोध करने की प्रेरणा देता है। यह पाठ सिखाता है कि यदि अन्याय को नहीं रोका गया तो वह बढ़ता जाएगा। अन्याय का विरोध समाज को साथ लेकर हो सकता है, क्योंकि आम आदमी की सहभागिता के बिना सामाजिक, प्रशासनिक व राजनैतिक व्यवस्था में सकारात्मक परिवर्तन संभव नहीं है।
प्रश्न 2:
गणित के टीचर के खिलाफ अन्य बच्चों ने आवाज क्यों नहीं उठाई?
उत्तर-
गणित का अध्यापक बच्चों को जबरदस्ती ट्यूशन पर आने के लिए कहता था। ऐसा न करने पर उनके अंक तक काट देता था। दूसरे बच्चों ने उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई, क्योंकि उन्हें लगता था कि ऐसा करने पर अगली कक्षाओं में भी उनके साथ भेदभाव किया जाएगा। अध्यापक उनका भविष्य बिगाड़ देगा और उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। इस डर से अमित व उसकी माँ भी रजनी को विरोध करने से रोकना चाहते थे।
प्रश्न 3:
रजनी संपादक से क्या सहायता माँगती है?
उत्तर-
रजनी संपादक को ट्यूशन की समस्या बताती है तथा उसे अखबार में छापने का आग्रह करती है। वह उनसे कहती है कि 25 तारीख की पेरेंट्स मीटिंग की खबर भी प्रकाशित करें। इससे सब लोगों तक खबर पहुँच जाएगी। व्यक्तिगत तौर पर हम कम लोगों से संपर्क कर पाएँगे।
प्रश्न 4:
शिक्षा बोर्ड और प्राइवेट स्कूलों के बीच क्या संबंध होता है?
उत्तर-
शिक्षा बोर्ड शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए प्राइवेट स्कूलों को 90% सहायता देकर मान्यता देता है। यह सहायता स्कूलों के रखरखाव, अध्यापक और विद्यार्थियों के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए दी जाती है। शिक्षा बोर्ड के नियमों का पालन करना प्राइवेट स्कूल का कर्तव्य है। शिक्षा बोर्ड सिलेबस बनाता है, वार्षिक परीक्षा बोर्ड करवाता है।
प्रश्न 5:
सरकारी कार्यालयों की व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
सरकारी कार्यालयों में आम आदमी को परेशान किया जाता है। यहाँ हर कदम पर भ्रष्टाचार है। अफसर अंदर खाली बैठे रहते हैं, परंतु बाहर ‘बिजी” होने का संदेश दिया जाता है। चपरासी भी रिश्वत लेकर ही मुलाकातियों को साहब से मिलने भेजता है। अधिकारी का रवैया काम को टालने वाला होता है। उसे जनता से कोई लेना-देना नहीं होता।