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Tatsam Tadbhav Shabd in Hindi: ध्यातव्य – प्रस्तुत प्रकरण के अन्तर्गत शब्द-रचना/शब्द-भण्डार से सम्बन्धित सामग्री किंचित विस्तार से दी गयी है। विद्यार्थियों को ज्ञान-बोध के लिए सम्पूर्ण सामग्री का अध्ययन करना चाहिए।
शब्द– निश्चित अर्थ को प्रकट करने वाले स्वतन्त्र वर्ण-समूह को शब्द कहते हैं; जैसे–घर, मकानं, विद्यालय, सुन्दरता आदि। ये सभी शब्द वर्गों के मेल से बने हैं। इनका अपना निश्चित अर्थ है। ये स्वयं में स्वतन्त्र इकाइयाँ हैं।
हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।
तत्सम तद्भव शब्द की परिभाषा भेद और उदाहरण (Tatsam Tadbhav Shabd) | Corresponding Words In Hindi Examples
तत्सम तद्भव शब्द की परिभाषा एवं उनके भेद
शब्दों का महत्त्व-जिस प्रकार व्यक्ति के बिना समाज नहीं बन सकता, बूंद के बिना जल नहीं बन सकता, उसी प्रकार शब्द के बिना भाषा का निर्माण नहीं हो सकता। हमारे प्रत्येक भाव या विचार शब्दों के द्वारा प्रकट होते हैं। शब्दों के बिना हम अपनी बात दूसरों तक नहीं पहुँचा सकते।।
शब्द-भण्डार–किसी भाषा में प्रयुक्त हो रहे या हो सकने वाले सभी शब्दों के समूह को उस भाषा का ‘शब्द-भण्डार’ कहते हैं। किसी भाषा के सभी शब्दों की गिनती करना सम्भव नहीं है। कारण यह है कि समय के साथ-साथ कुछ शब्दों का प्रयोग समाप्त होता रहता है तथा कुछ नये शब्द बढ़ते रहते हैं। उदाहरणार्थ-रत्ती, तोला, छटाँक, सेर आदि शब्द आजकल बाह्य (आउट ऑफ डेट) हो गये हैं। इसलिए इनका महत्त्व समाप्त होता जा रहा है। दूसरी ओर, नयी सभ्यता के साथ-साथ टी०वी०, दूरदर्शन, वीडियो, पॉलीथिन, ऑडियो आदि शब्दों का प्रचलन बढ़ रहा है।
शब्द-भण्डार का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है-
- इतिहास या स्रोत के आधार पर,
- चना के आधार पर,
- योग के आधार पर,
- करणिक प्रकार्य के आधार पर तथा
- अर्थ के आधार पर।
इतिहास या स्रोत की दृष्टि से वर्गीकरण
हिन्दी की शब्दावली मुख्यत: चार स्रोतों से आयी है। ये स्रोत हैं–तत्सम (संस्कृत), तद्भव, देशी भाषाएँ और विदेशी भाषाएँ। इन्हीं के आधार पर हिन्दी के शब्दों को भी चार भागों में बाँटा जाता है– तत्सम, तद्भव, देशी तथा विदेशी।
1. तत्सम शब्द- संस्कृत भाषा के ऐसे शब्द, जो हिन्दी में भी अपने मूल रूप में प्रचलित हैं, तत्सम कहलाते हैं; जैसे–पुष्प, पुस्तक, बालक, कन्या, विद्या, साधु, आत्मा, तपस्वी, विद्वान, राजा, पृथ्वी, नेता, माता, अहंकार, नवीन, सुन्दर, सहसा, नित्य, अकस्मात् आदि।।
इनके अतिरिक्त जिन संस्कृत शब्दों में संस्कृत के ही प्रत्यय लगाकर नवीन शब्दों का निर्माण किया गया है, वे भी तत्सम शब्द कहलाते हैं; जैसे-आकाशवाणी, दूरदर्शन, आयुक्त, उत्पादनशील, क्रयशक्ति, प्रौद्योगिकी आदि।
संस्कृत भाषा ने अपने समय में जिन शब्दों को अन्य भाषाओं से लिया था, उन्हें भी हम तत्सम मानते हैं। ऐसे कुछ शब्द हैं-केन्द्र, यवन, असुर, पुष्प, नीर, गण, मर्कट, रात्रि, गंगा, कदली, ताम्बूल, दीनार, सिन्दूर, मुद्रा, तीर आदि।
2. तद्भव शब्द- संस्कृत के जो शब्द प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी आदि सोपानों से गुजरने के कारण आज हिन्दी में परिवर्तित रूप में मिल रहे हैं, वे तद्भव कहलाते हैं। हिन्दी में प्रचलित कुछ तद्भव शब्द मूल संस्कृत रूपों के साथ नीचे दिये जा रहे हैं-
तत्सम तद्भव शब्द के उदाहरण
तद्भव | तत्सम |
(अ, आ) | |
अम्मा | अम्बा |
अंगूठा | अंगुष्ठ |
आग | अग्नि |
आमा | आम्र |
आँख | अक्षि |
अनाज | अन्न |
आखर | अक्षर |
अनजान | अज्ञान |
अटारी | अट्टालिका |
अनाज | धान्य |
अन्धा | अन्ध |
आधा | अर्ध |
आसीस | आशिष |
अमिय | अमृत |
अमोल | अमूल्य |
अँधेरा | अंधकार |
आज | अद्य |
आसरा | आश्रय |
आँसू | अश्रु |
अच्छर | अक्षर |
अंगुली | अंगुलि |
ओठ | ओष्ठ |
इ, उ, ओ | |
इख | इक्षु |
उल्लू | उलूक |
उचारन | उच्चारण |
उद्दाह | उत्साह |
उछाह | उत्साह |
ऊपर | उपरि |
ऊँट | उष्ट्र |
क | |
कातिक | कार्तिक |
कुपुत्र | कपूत |
काठ | काष्ठ |
कायर | कातर |
किरपा | कृपा |
कीरति | कीर्ति |
कुम्हार (कोहार) | कुम्भकार |
कोढ़ | कष्ट |
कंगन | कंकण |
करम | करम |
कलेस | क्लेश |
कबूतर | कपोत |
कान | कर्ण |
काजल | कज्जल |
किशन | कृष्ण |
कन्धा | स्कन्ध। |
कुँवारा | कुमार |
कौवा | कपूर |
केला | कदलीफल |
काज | कार्य |
काम | कर्म |
कपाट | किवाड़ |
कुआँ | कूप |
कोयल | कोकिल |
कुल्हाड़ा | कुठार |
कड़वा | कटु |
कपड़ा | वसन |
ख | |
खार | क्षार |
खेत | क्षेत्र |
स्तम्भ | खम्भा |
खीर | क्षीर |
ग | |
गाँव | ग्राम |
गिनती | गणना |
गोबर | गोविष्ठा |
गधा | गर्दभ |
गाँठ | ग्रन्थि |
गड्ढा | गर्त |
गोरा | गैर |
गात | गत्र |
घ | |
घड़ा | घट |
घी | घृत |
घर | गृह |
घोड़ा | घोटक |
च | |
चाम | चर्म |
चैत | चैत्र |
चोंच | चञ्चु |
चाँद | चन्द्र |
चून | चन्दा |
चन्द्र | चूर्ण |
चाँदनी | चन्द्रिका |
चिड़िया | चटका |
चरन | चरण |
छ | |
छिन | क्षण |
छेद | छिद्र |
छतरी | छत्र |
ज | |
जंघा | जाँघ |
जीभ | जिह्वा |
जीरण | जीर्ण |
जेठ | ज्येष्ठ |
जनम | जन्म |
जमुना | यमुना |
जोगी | योगी |
त | |
तुरन्त | त्वरित |
तिनका | तृण |
तालाब | तड़ाग |
थ | |
थल | स्थल |
थन | स्तन |
द | |
दूध | दुग्ध |
दही | दधि |
दुबला | दुर्बल |
दश | दस |
दीया | दीपक |
दरसन | दर्शन |
ध | |
धीरज | धैर्य |
धरम | धर्म |
धरती | धरिणी/पृथ्वी |
धुआँ | धुम् |
न | |
नाच | नृत्य |
नया | नव, नवीन |
नेह | स्नेह |
नारियल | नारिकेल |
नाक | नासिका |
नींद | निद्रा |
निरगुन | निर्गुण |
निठुर | निष्ठुर |
नंगा | नग्न |
नखत | नक्षत्र |
प | |
पत्ता | पत्र |
पारबती | पार्वती |
पहर | प्रहर |
पलंग | पर्यङ्क |
पोखर | पुष्कर |
पाहना | पाषाण |
परमारथ | परमार्थ |
पाथर | प्रस्तर |
पच्छी, पंछी | पक्षी |
परीच्छा | परीक्षा |
प्यास | पिपासा |
पाँव | पाद |
पैर | पाद |
पूस | पौष |
पाख | पक्ष |
पहेली | प्रहेलिका |
पक्का | पक्व |
प्रमोद | परमोद |
प्रस्तर | पत्थर |
प्यारा | प्रिय |
पाँच | पंच |
पूत | पुत्र |
पुहुप | पुष्प |
पोथी | पुस्तिका |
पानी | पानीय |
फ | |
फुती | स्फूर्ति |
फागुन | फाल्गुन |
फूल | पुष्प |
ब | |
बाँझ | वन्ध्य |
बात | वार्ता |
बहू | वधु |
बरस | वर्ष |
बछड़ा | बाछा |
बिलाव | बिडाल |
बूंद | बिन्दु |
वानर | बन्दर |
बहन | भगिनी |
बेल | बिल्व |
बयार | वात |
ब्याह | विवाह |
बरखा | वर्षा |
बाँह | बाहु |
बुड्ढा | वृद्ध |
भ | |
भाई | भ्राता |
भीत | भित्ति |
भाप | वाष्प |
भैंस | महिषी |
भौंरा | भ्रमर |
भगत | भक्त |
भीख | भिक्षा |
म | |
मक्खी | मक्षिका |
मरा | मृत |
मीठा | मिष्ट |
मुँह | मुख |
माता | मातृ |
मनुष्य | मानव |
मिट्टी | मृत्तिका |
मुखिया | मुख्य |
मनुख, मानुस | मनुष्य |
मिठाई | मिष्टान्न |
माथा | मस्तक |
मीत | मित्र |
मोती | मौक्तिक |
मोर | मयूर |
र | |
रात | रात्रि |
रूखा | रुक्ष |
रानी | राज्ञी |
रतन | रत्न |
ल | |
लाज | लज्जा |
लाख | लक्ष |
लोग | लोक |
लोहार | लौहकार |
लोन | लवण |
व | |
विआह | विवाह |
द्वाह | |
स | |
साजन | सज्जन |
साँस | श्वास |
साँप | सर्प |
सीख | शिक्षा |
सुहाग | सौभाग्य |
सूखा | शुष्क |
सौ | शत |
सौत | सपत्नी |
सरवन | श्रवण |
सींग | शृंग |
साग | शाक |
सास | श्वश्रू |
सुनार | स्वर्णकार |
सूत | सूत्र |
सेज | शय्या |
सम्पति | सम्पत्ति |
श्राप | शाप |
सुमिरन | स्मरण |
सब | सर्व |
सात | सप्त |
सांवला | श्यामल |
सूरज | सूर्य |
सोना | स्वर्ण |
सावन | श्रावण |
सपना | स्वप्न |
ह | |
हाथी | हस्ती, हस्ति |
हाथ | हस्त |
हँसी | हास |
होठ | ओष्ठ |
हड्डी | अस्थि |
हिय | हृदय |
3.देशी या देशज शब्द- देशी या देशज शब्द वे हैं, जिनका स्रोत संस्कृत नहीं है, बल्कि वे भारत के ग्राम्य क्षेत्रों और जनजातियों में बोली जाने वाली देशी बोलियों में से लिये गये हैं। इनका स्रोत अज्ञात है; जैसे—झाडू, टट्टी, ठोकर, भोंपू, अटकल, भोंदू, पगड़ी, लोटा, झोला, टाँग, ठेठ, पेट, खिड़की, झंझट, थप्पड़, थूकं, चीनी आदि।
4. आगत (विदेशी) शब्द- हिन्दी में अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी भाषा के शब्द प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। इसका कारण यह है कि इन भाषाभाषियों ने भारत पर पर्याप्त समय तक राज्य किया। इनके अतिरिक्त ग्रीक, तुर्की, पुर्तगाली तथा फ्रांसीसी भाषा के शब्द भी यत्र-तत्र मिल जाते हैं।
उपर्युक्त प्रमुख स्रोतों के अतिरिक्त शब्दों के निर्माण में निम्नलिखित विधियों का भी प्रयोग हुआ है-
अनुकरणात्मक शब्द | खटखटाना, फ़ड़फड़ाना, फुफकार, ठसक आदि। |
संकर शब्द | दो विभिन्न स्रोतों से आये शब्दों को मिलाकर जो शब्द बनते हैं, उन्हें ‘संकर’ कहते हैं; जैसे हिन्दी और संस्कृत |
वर्षगाँठ, माँगपत्र, कपड़ा | उद्योग, पूँजीपति आदि। |
हिन्दी और विदेशी | किताबघर, घड़ीसाज, थानेदार, बैठकबाज, रेलगाड़ी, पानदान आदि। |
संस्कृत और विदेशी | रेलयात्री, योजना कमीशन, कृषि, मजदूर, रेडियोतरंग, छायादार आदि। |
अरबी/फ़ारसी और अंग्रेज़ी | अफ़सरशाही, बीमापॉलिसी, पार्टीबाजी, सीलबंद आदि। |
रचना के आधार पर वर्गीकरण
रचना की दृष्टि से शब्द दो प्रकार के होते हैं-
- मूल शब्द तथा
- व्युत्पन्न शब्द।
1. मूल शब्द– इन्हें रूढ़ भी कहते हैं। ये स्वतन्त्र और अपने में पूर्ण होते हैं। इनकी रचना अन्य किसी शब्द या शब्दांश की सहायता से नहीं होती। इसलिए इनके सार्थक खण्ड नहीं हो सकते; जैसे-सेना, फूल, कुत्ता, कुरसी, दिन, किताब, घर, मुँह, काला, घड़ा, घोड़ा, जल, कमल, कपड़ी, घास आदि।
2. व्युत्पन्न शब्द- व्युत्पन्न का अर्थ है-उत्पन्न। दो या अधिक शब्दों अथवा शब्दांशों के योग से बने शब्द ‘व्युत्पन्न’ कहलाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-यौगिक तथा योगरूढ़।
यौगिक शब्द-जो शब्द किसी शब्द में अन्य शब्द या शब्दांश (उपसर्ग, प्रत्यय) लगाने से उत्पन्न होते हैं, उन्हें यौगिक शब्द कहते हैं; जैसे–
प्रधान | + | मन्त्री | = | प्रधानमन्त्री | (शब्द + शब्द का उदाहरण) |
सेना | + | पति | = | सेनापति | (शब्द + शब्द का उदाहरण) |
चतुर | + | .आई | = | चतुराई | (शब्द + प्रत्यय का उदाहरण) |
उप | + | लक्ष्य | = | उपलक्ष्य | (उपसर्ग + शब्द का उदाहरण) |
योगरूढ़ शब्द-जिन यौगिक शब्दों का एक रूढ़ अर्थ हो गया है और अपने विशिष्ट अर्थ में उनका प्रयोग होने लगा है, ऐसे शब्द योगरूढ़ कहे जाते हैं; उदाहरण के लिए-पंकज एक यौगिक शब्द है जिसमें एक शब्द पंक (कीचड़) और प्रत्यय-ज (से उत्पन्न) है। इस यौगिक का सामान्य अर्थ है-कीचड़ से उत्पन्न वस्तु। परन्तु यह शब्द केवल ‘कमल’ के लिए रूढ़ हो गया है। इसलिए यह योगरूढ़ है।
बहुव्रीहि समास के सभी शब्द योगरूढ़ के ही उदाहरण हैं; यथा–
एकदन्त | = | एक | + | दन्त | = | गणेश |
लम्बोदर | = | लम्बा | + | उदर | = | गणेश |
पीताम्बरधारी | = | पीत | + | अम्बर + धारी | = | कृष्ण |
प्रयोग के आधार पर वर्गीकरण
प्रयोग की दृष्टि से शब्दों को निम्नलिखित दो वर्गों में बाँटा जा सकता है–
1. सामान्य शब्द- सामान्य शब्दावली वह शब्दावली है जिसका प्रयोग सामान्य जन अपने दैनिक कार्य-व्यवहार में करते हैं। ऐसी शब्दावली प्राय: अधिक प्रचलित होती है तथा लोक-व्यवहार से इसका ज्ञान होता है; उदाहरणार्थ
हाथ, नाक, पैर, रेडियो, स्कूल, कॉलेज, माता-पिता, ईश्वर, दुकान, नमक, चीनी, साइकिल, चाचा, मामा, मेज, कुर्सी, सुबह, शाम, घर, बाज़ार, दाल, भात आदि।
2. पारिभाषिक शब्द- इसे तकनीकी शब्दावली भी कहते हैं। पारिभाषिक शब्द का अर्थ है- ऐसे शब्द, जिनकी परिभाषा सुनिश्चित हो। ये शब्द किसी एक शास्त्र से सम्बन्धित होते हैं तथा एक ही सुनिश्चित अर्थ का वहन करते हैं।
विज्ञान से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्द निम्नवत् हैं-
- बल, रेखा, अनुक्रिया, प्रदूषण, पर्यावरण।।
प्रशासन से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्द निम्नवत् हैं
- आयोग, कनिष्ठ, वरिष्ठ, पदोन्नति, बन्धपत्र, कार्यवृत्त, सीमा-शुल्क आदि।
राजनीतिशास्त्र से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्द निम्नवत् हैं-
- राज्य, राष्ट्रपति, राज्यपाल, संविधान, महान्यायवादी आदि।
साहित्य से सम्बन्धित पारिभाषिक शब्द निम्नवत् हैं—
- छायावाद, दोहा, रूपक, उपमा, समास, सन्धि, साधारणीकरण आदि।
व्याकरणिक प्रकार्य के आधार पर वर्गीकरण
व्याकरणिक दृष्टि से शब्दों को उनके प्रकार्य के आधार पर दो वर्गों में बाँटा जाता है—
- विकारी तथा
- अविकारी।
(1) विकारी शब्द- जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक अथवा काल आदि के अनुसार परिवर्तन या विकार होता है, उन्हें विकारी शब्द कहते हैं। संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया विकारी शब्द हैं। निम्नलिखित उदाहरण देखिए-
(क) संज्ञा–
लड़का-लड़के, लड़कों, लड़कपन।
लड़की-लड़कियाँ, लड़कियों।
माता-माताएँ, माताओं।
(ख) सर्वनाम–
मैं-मुझ (को); मुझे; मेरा।
यह–उस (को); उन्हें; ये—उन्होंने।
(ग) विशेषण–
अच्छा-अच्छे, अच्छी, अच्छों।
(घ) क्रिया–
जाना—जाऊँगा, जाता हूँ, जाएँ, जाओ, जाते आदि।
(2) अविकारी शब्द अथवा अव्यय-जिन शब्दों के रूप में लिंग, वचन, कारक अथवा काल आदि के अनुसार कोई परिवर्तन नहीं होता, वे अविकारी शब्द अथवा अव्यय कहलाते हैं। क्रिया-विशेषण, सम्बन्धसूचक, समुच्चयबोधक, विस्मयादिबोधक शब्द अविकारी शब्द अथवा अव्यय हैं। उदाहरणार्थ
- क्रिया-विशेषण-जो शब्द क्रिया की विशेषता को प्रकट करें, उन्हें क्रिया-विशेषण कहते हैं; जैसे-धीरे, सहसा, इधर, कहाँ, अधिक आदि।
- सम्बन्धसूचक-जो अव्यय शब्द संज्ञा या सर्वनाम का वाक्य के अन्य शब्दों के साथ सम्बन्ध प्रकट करें, उन्हें सम्बन्धसूचक कहते हैं; जैसे-तक, भर, यहाँ, साथ आदि।
- समुच्चयबोधक-जो अव्यय शब्द दो या अधिक शब्दों और वाक्यों को जोड़ते हैं, उन्हें समुच्चयबोधक कहते हैं; जैसे-तथा, और, किन्तु, अथवा आदि।
- विस्मयादिबोधक-विस्मय, पीड़ा, हर्ष, शोक, घृणा आदि मानसिक भावों को प्रकट करने वाले शब्द विस्मयादिबोधक कहलाते हैं; जैसे–अहो ! ओहो ! छी-छी ! आदि।
अर्थ के आधार पर वर्गीकरण
शब्द भाषा की लघुतम सार्थक इकाई है। इसका अर्थ से केवल एक ही निश्चित सम्बन्ध नहीं होता। किसी शब्द का एक निश्चित अर्थ होता है, किसी के एक से अधिक अर्थ होते हैं तथा किसी शब्द के समानार्थी शब्दों की उपलब्धता रहती है। कुछ शब्द अन्य शब्दों के विरोधी भाव को प्रकट करते हैं। इस प्रकार शब्द के निम्नलिखित चार भेद हो जाते हैं-